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बुधवार, जून 24, 2015

मत पालो किसी में ज़रा सा भी ज्वालामुखी

मैं अपराजित हूँ 
वेदनाओं से 
चेहरे पर चमक 
लब पर मुस्कान 
अश्रु सागर शुष्क
 नयन मौन  
पीढ़ा जो नित्याभ्यास है 
पीढ़ा जो मेरा विश्वास है . 
जागता हूँ 
सोता हूँ 
किन्तु
खुद में नहीं 
खोता हूँ !
इस कारण 
मैं अपराजित हूँ 
जीता हूँ जिस्म की अधूरी 
संरचना के साथ 
जीतीं हैं कई 
स्पर्धाएं और प्रतिघात 
विस्मित हो मुझे क्यों देखते हो ?
तुम क्या जानो 
जब ज्वालामुखी सुप्त है 
लेलो मेरी परीक्षा ...!
याद रखो जब वो फटता है तो 
.......... जला देता है जड़ चेतन सभी को 
मत पालो किसी में ज़रा सा भी ज्वालामुखी 
   

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