10.11.09

"भावुक भारतीय बनाम मराठी मानुस के कलुषित अगुआओं की गैंग"

प्रज़ातन्त्र की सबसे काली घिनौनी घटना ही कहा जाएगा जब संविधान के रक्षकों ने मूर्खता पूर्ण हरकत कर देश को उस स्थान पर लाकर खडा कर दिया जहां से देश बिखरा बिखरा नज़र आ रहा है. इसे किसी राजनैतिक स्वार्थ परकवृत्ति की पराकाष्ठा ही कहा जाएगा .
          अब समय आ गया है कि जब इन बुनियाद परस्तों को सख्ती से निपटा जाए किन्तु भारतीय प्रज़ातंत्र की सबसे बडी ताकत जहां वोट है वहीं दूसरी ओर यही वोट सबसे बडी कमज़ोरी है.यही कमज़ोरी राष्ट्र के लिए घातक है
     बरसों से तुष्टि-तुष्टि का खेल खेल रहे राज नेता जब भाषा/रंग/क्षेत्र/ तक को "तुष्टि" के लिये इस्तेमाल करने लग गए हैं. यानि सर्वोपरि है स्वार्थ उसके सामने देश क्या है इसकी प्रवाह कौन करे. सम्माननीय सदन में झापड मारना देश की प्रतिष्ठा को तमाचा जडना दिख रहा था.
जहां तक हिंदुस्तान में हिंदी के अपमान का सवाल वो तो गरीबों की भाषा है......भारत में सियासी लोग गरीब और गरीबों का इस्तेमाल कब और कैसे करतें हैं हम सभी जानतें है. और इन गरीबों के साथ वास्तव में कैसा बर्ताव होता यह भी किसी से छिपा भी कहां है. तो उसकी भाषा और भूषा के साथ वही बर्ताव होना आम बात है जैसा आज एम एन एस के माननीय विधायकों ने किया.
अभी वंदे मातरम वाली पीढा को हिंदुस्तान  भूला नही है कि यह दूसरा रुला देने वाला दर्दनाक दृश्य.......सच अब तो लग रहा है कि कहीं हम कबीलियाई जीवन की ओर तो नहीं मुड रहे हैं.
राष्ट्र आज़ जिस संकट की ओर धकेला जा रहा है.....उसका हिसाब आज़ नहीं तो कल देना होगा किंतु हिसाब देने वाले निरीह भारतीय लोग ही होंगे जिनके पास आम आदमी वाला अघोषित एवम वर्चुअल  आई० कार्ड है.
 ओम शांति शांति शांति   

5.11.09

इन्टरनेट पर उन्माद फ़ैलाने वालों पर आई०टी० प्रतिबन्ध लगाए

                      http://flash-map-india.smartcode.com/images/sshots/flash_map_india_22916.gif                                                             राष्ट्रीय समरसता को भग्न करने की कोशिश देश के अमन चैन को क्षति ग्रस्त करने की मंशा कदापि स्वीकार्य नहीं. भारत एक बहु-धर्मीय विशेषता युक्त राष्ट्र है यहां सभी को सभी के धर्मों का सम्मान करना हमें घुट्टी में पिलाया है. किन्तु कुछ दिनों से देख रहा हूँ इंटरनेट पर  चार किताबें पड़कर उत्तेज़ना फैलाने वाले लोगों के लिए अब उपेक्षा ही एक ही  इलाज़ है जो सहजता से संभव है. मित्रों भारत-देश को भारत कहलाने के लिए किसी धर्म,वर्ग,समूह,विचारधारा की कतई ज़रुरत नहीं भारत अखंड है रहेगा क्योंकि भारत का जितना सुदृढ़ भोगौलिक अस्तित्व है उससे कहीं अधिक इसका आत्मिक जुडाव प्रभावशाली है. अस्तु अंतर जाल पर सक्रीय ऐसे तत्वों के खिलाफ उपेक्षा का भाव रखिये जी उनके आलेखों तक जाना भी देश का अपमान मानता हूँ.साथ ही भारत सरकार के मेरी आई०टी० से विनम्र अपील है ऐसे लेखकों को प्रतिबंध करने का कार्य सबसे पहले किया जाए.जो किसी भी  धर्म का खुला उपहास करते हुए समरसता के विरुद्ध वातावरण बना रहे हैं.  

3.11.09

काव्य पहेली देखें सुधि पाठकों की पसंद कौन हैं.?

रेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं

"......................................."

के बाद चतुर्थ पंक्ति के लिये मुझे न तो भाव मिल पा रहे थे न ही शब्द-संयोजना संभव हो पा रही थी. किंतु मेरी बात को पूरी करने वाले मित्र को यह चार पंक्तियां सादर भेंट कर दी जावेंगी इस से मेरा हक समाप्त हो जाएगा आपको भी यदि कोई पंक्ति सूझ रही हो तो देर किस बात यदि आप प्रविष्ठि न देना चाहें तो आप अपनी पसंद के कवि का नाम ज़रूर दर्ज़ कीजिए 
"समस्या-पूर्ती" हेतु मिसफिट पर आयोजित प्रतियोगिता काव्य पहेली के लिए प्राप्त प्रविष्ठियों पर आपकी पसंद क्रमानुसार दर्ज़ कीजिये तब तक आता है जूरी का निर्णय
                                                          प्रतिभा जी की पंक्ति जोडने  से पद को  देखिये
हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
कि कुछ पग बस जीत दूर है..
____________________________________________
समीर भाई की पंक्ति जुडते ही पद का स्वरुप ये हुआ है
 हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
हरेक लश्कर है रोया रोया.
_____________________________________________
  अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी जी की पंक्ति जुडते ही
हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
''हो जायेगा पत्थर इन्सां गोया |''
_____________________________________________________
राजीव तनेजा जी जो कवि हो गये है इस बहाने

हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
अपना भविष्य आप बनाएँ
_____________________________________________________
पहेली सम्राठ ताउ राम पुरिया उवाच

हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
परेशानी का बीज खुद ही बोया बोया.
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एम. वर्मा जी की पंक्तियां जोडते ही पद हुआ यूं

हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
काटोगे वही जो बीज बोया
_______________________________________________
बवाल
  हरेक लश्कर है खोया खोया
    हरेक लश्कर है सोया सोया
    चलो जगाएं इन्हैं उठाएं.....
    है गर्म पानी लहू समोया   
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1.11.09

काव्य पहेली

सुधि सहयोगियो/सहयोगिनो
सादर अभिवादन इस पद की चौथी पंक्ति पूरी कीजिए सबसे उपयुक्त पंक्ति जुडते ही पद घोषित विजेता का हो जाएगा . झट सोचिए पट से टाईप कर दीजिए
हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
................................

29.10.09

अफसर और साहित्यिक आयोजन :भाग एक

::एक अफसर का साहित्यिक आयोजन में आना ::
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पिछले कई दिनों से मेरी समझ में आ रहा है और मैं देख भी रहा हूँ एक अफसर नुमा साहित्यकार श्री रमेश जी को तो जहां भी बुलाया जाता पद के साथ बुलाया जाता है ..... अगर उनको रमेश कुमार को केवल साहित्यकार के रूप में बुलाया जाता है तो वे अपना पद साथ में ज़रूर ले जाते हैं जो सांकेतिक होता है। यानी साथ में एक चपरासी, साहब को सम्हालता हुआ एक बच्चे को रही उनकी मैडम को सम्हालने की बात साहब उन्हें तो पूरी सभा सम्हाले रहती है। एक तो आगे वाली सीट मिलती फ़िर व्यवस्था पांडे की हिदायत पर एक ऐसी महिला बतौर परिचर मिलती जिसे आयोजन स्थली का पूरा भौगौलिक ज्ञान हो ताकि कार्यक्रम के दौरान किसी भी प्रकार की शंका का निवारण सहजता से कराया जा सके। और कुछ लोग जो मैडम की कुरसी के उस सटीक एंगल वाली कुर्सी पर विराजमान होते हैं जहाँ से वे तो नख से शिख तक श्रीमती सुमिता रमेश कुमार की देख भाल करते हैं । उधर कार्यक्रम को पूरे यौवन पे आता देख रमेश जी पूरी तल्लीनता से कार्यक्रम में शामिल रहतें हैं साहित्यिक कार्यक्रम उनके लिए तब तक आकर्षक होता है जब तक शहर के लीडिंग अखबार और केबल टी वी वाले भाई लोग कवरेज़ न कर लें । कवरेज़ निपटते ही रमेश कुमार जी के दिव्य चक्षु ओपन हो जातें हैं और वे अपनी सरकारी मज़बूरी का हवाला देते हुए जनता से विदा लेते हैं । रमेश कुमार जैसे लोगों को इस समाज में साहित्य समागम के प्रमुख बना कर व्यवस्था पांडे जन अपना रिश्ता कायम कर लेतें हैं साहित्य की इस सच्ची सेवा से मित्रों मन अभीभूत है .................शायद आप भी ..........!!
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मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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