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शनिवार, अगस्त 27, 2022
बापू के बंदरों के वंशज
गुरुवार, अगस्त 25, 2022
चिंतन : सुख और आनंद
मंगलवार, अगस्त 23, 2022
राजा दाहिर का भारत की रक्षा में योगदान

भारत पर आक्रमण के क्या कारण रहे होंगे?
भारत की खाद्य पदार्थों के उत्पादन क्षमता शेष विश्व के सापेक्ष बहुत श्रेष्ठ एवं स्तरीय रही है। दूसरा कारण था भारत में अद्वितीय स्वर्ण भंडार। इसके अलावा भारत की सांस्कृतिक परंपराएं सामाजिक व्यवस्था किसी भी अन्य सभ्यता से उत्कृष्ट रही हैं।
उपरोक्त कारणों से भारत कबीलो के आकर्षण का केंद्र बना रहा।
आप जानते हैं कि सिकंदर और पोरस की लड़ाई में सिकंदर भारत पर साम्राज्य स्थापित नहीं कर पाया उसे वापस जाना पड़ा और वापसी के दौरान रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो गई।
भारत का व्यापार व्यवसाय हड़प्पा काल से ही अरब यूनान ओमान तक विस्तृत था।
भारत में विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण के संबंध में पृथक से कभी बात की जाएगी । इस आर्टिकल के जरिए आपको यह अवगत कराना चाहता हूं कि भारत में सबसे पहला आक्रमण मुंबई के ठाणे शहर में अरब आक्रामणकारीयों द्वारा किया गया था। इसके उपरांत मकरान के रास्ते से 644, 659 , 662, 664 ईस्वी में लगातार आक्रमण होते रहे।
उस अवधि में कश्मीर भारत का सांस्कृतिक सामरिक केंद्र था। इसका विवरण आप भली प्रकार राज तरंगिणीयों में देख सकते हैं। सन 632 में मोहम्मद साहब के देहांत के बाद खलीफ़ाई व्यवस्था कायम हो चुकी थी। सातवीं शताब्दी के उपरोक्त समस्त आक्रमणों में अरबों की पराजय हुई। परंतु आठवीं शताब्दी के आने तक अरबों की सामरिक क्षमता में वृद्धि हो चुकी थी। सन 712 इसी में सिंध पर कश्मीर मूल के राजा जो जाति से ब्राह्मण थे की राजवंश का साम्राज्य था। सिंध जो वर्तमान में पाकिस्तान का हिस्सा है का राजा दाहिर, इराक के शाह हज्जाज के निशाने पर थे। इराक के शाह द्वारा भारत पर आक्रमण की दो वजहें सुनिश्चित की थीं
[ ] एक वजह थी ओमान के शासक माबिया बिन हलाफी, तथा उसके भाई मोहम्मद द्वारा सिंध में शरण लेना। इन दोनों भाइयों ने खलीफा से असहमति जाहिर की थी।
[ ] दूसरा कारण इस्लाम को विस्तार करने का था।
हज्जाज की सेना ने राजा दाहिर शासित सिंध पर आक्रमण किया, परंतु उसे असफल होकर वापस लौटना पड़ा। इसके बाद भी राजा दाहिर पर आक्रमण के प्रयास लगातार होते रहे। सन 712 ईसवी में हज्जाज ने अपने दामाद 17 वर्षीय मोहम्मद बिन कासिम को नई रणनीति के साथ राजा दाहिर के साम्राज्य सिंध पर आक्रमण करने का निर्देश दिया। मोहम्मद बिन कासिम क्रूर धर्म भीरु धर्म विस्तारक गजवा ए हिंद की भावनात्मक उत्तेजना के साथ भारत में आया और उसने स्थानीय लोगों को घूस देकर तथा कुछ बुद्धिस्ट लोगों को हिंदुत्व के विरुद्ध भड़का कर तथा बुद्धिज्म के विस्तार का लालच देकर अपनी ओर आकर्षित कर लिया तथा उनका सामरिक उपयोग भी किया। मोहम्मद बिन कासिम के पास बालिष्ठ नाम का एक ऐसा यंत्र था जिससे बड़े-बड़े पत्थर दूरी तक फेंके जा सकते थे। यह युद्ध देवल में लड़ा गया। हिंदू वासियों की मान्यता थी कि देवल का ध्वज गिरना पराजय का कारण होगा यह बात मोहम्मद बिन कासिम को भारतीय बिके हुए लोगों ने बता दी। मोहम्मद बिन कासिम ने देवल के मंदिर पर लगी ध्वजा पर सबसे पहले आक्रमण किया इस आक्रमण में ध्वजा क्षतिग्रस्त हो गई। इससे सिंध की सेना का मनोबल कमजोर हुआ। मोहम्मद बिन कासिम की सेना के साथ राजा दाहिर की सेना नें वीरता पूर्वक मुकाबला जारी रखा। तभी अचानक राजा दाहिर का हाथी अनियंत्रित हो गया और उसे नियंत्रित करने महावत ने रणभूमि से अलग ले जाकर हाथी को काबू में लाने का प्रयास किया। इस बीच सिंध की सेना में यह अफवाह भी फैल गई कि राजा दाहिर ने पलायन कर दिया है। कुछ समय पश्चात राजा दाहिर वापस युद्ध भूमि पर लौटे तब तक बहुत सारे सैनिक पलायन कर चुके थे।
उधर लगातार तीन दिन मोहम्मद बिन कासिम के लड़ाके बस्तियों में लूटपाट करते रहे। 17 वर्ष से अधिक के महिला पुरुषों को इस्लाम कुबूल करने की हिदायत दी गई और ना मानने पर कत्लेआम किया गया। यह कत्लेआम लगभग 3 दिन तक लगातार चला।
राजा दहिर के महल की स्त्रियों ने स्वयं को अग्नि के हवाले कर दिया किंतु उनकी दूसरी पत्नी तथा दो पुत्रियां शेष रह गई। जिन्हें मोहम्मद बिन कासिम बंदी बनाकर रानी को अपने हरम में रख लिया तथा पुत्रियों को खलीफा के समक्ष पेश किया। दोनों राजकुमारियों में सूर्य देवी तथा परमार देवी वैसे खलीफा ने सूर्य देवी को अपने पास रख लिया और परमार देवी को अपने हरम में भेज दिया। सूर्य देवी को मोहम्मद बिन कासिम से बदला लेने का अवसर प्राप्त हो गया। उसने खलीफा को बताया कि-" हमारा शील हरण तो पहले ही मोहम्मद बिन कासिम ने कर दिया है"
इस बात से क्रुद्ध होकर मोहम्मद बिन कासिम को मारने की आज्ञा खलीफा ने जारी कर दी। और मोहम्मद बिन कासिम का अंत हो गया।
मोहम्मद बिन कासिम की मृत्यु के उपरांत भारत के वे सभी क्षेत्र अरबों से मुक्त करा दिए गए जो मोहम्मद बिन कासिम के आधिपत्य में आ चुके थे। परंतु मोहम्मद बिन कासिम नहीं लाखों लोगों का कत्लेआम तथा मंदिरों एवं जनता को लूट कर अकूत धन सोना तथा अन्य कीमती धातु रत्न इत्यादि पहले ही अरब पहुंचा दिए थे। राजा दाहिर की बेटियों का बलिदान अखंड भारत बेटियों का सर्वोच्च बलिदान कहा जा सकता है।
(स्रोत: चचनामा, पर डॉ राजीव रंजन प्रसाद की व्याख्या)
सोमवार, अगस्त 22, 2022
धारणा, ध्यान और समाधि
*धारणा, ध्यान और समाधि*
महर्षि कणाद ने वैज्ञानिक चिंतन को दिशा दी है जिसका आधार धारणा ध्यान और समाधि है। यहां पूर्व आलेख की तरह मैं सतर्क कर देना चाहता हूं कि ईश्वर को समझने के लिए रिचुअल्स अथवा सांप्रदायिक प्रक्रियाओं ( रिलीजियस प्रैक्टिस) प्रथम चरण के रूप में ही स्वीकारना चाहिए।
पूज्य कला मौसी ने बताया कि कभी स्वर्गीय माताजी ने पूज्य कला मौसी से कहा था -"अभी तुम पहली क्लास में हो!" वास्तव में रिचुअल्स अथवा प्रैक्टिसेज आत्म नियंत्रण का प्रथम पाठ है। उदाहरण के तौर पर उपवास रखना या पूजा प्रक्रिया करना अपनी चित्त अर्थात मन को व्यवस्थित करने का एक तरीका है। क्योंकि अगर मन गतिमान होगा तो स्थिरता की कल्पना करना ही मुश्किल है। इस कठिनाई से निवृत्त होने के लिए धारणा का सहारा लेना चाहिए। धारणा पूजा प्रणाली तथा रिचुअल्स यानी रीति-रिवाजों के अनुपालन के आगे का विषय है।
[ ] धारणा का अर्थ है विषय वस्तु के प्रति चिंतनशीलता । धारणा का विस्तार ध्यान की ओर ले जाता है और इसका अंतिम चरण समाधि कहलाता है।
[ ] धारणा से समाधि तक जाना सहज प्रक्रिया नहीं है। इसे हम अर्जुन की आंख वाली कहानी से समझ सकते हैं। अर्जुन ने अपनी धारणा में केवल मछली की आंख को चुना। स्वभाविक है कि अर्जुन का चित्त आत्मनियंत्रित था। और उसने मछली की आंख को अपनी धारणा के रूप में अवस्थित किया। फिर को विस्तारित कर ध्यान की स्थिति में ले गया। और जब वह समाधिष्ट हुआ, तो हाथ से निकला सटीक निशाने पर जा बैठा।
[ ] अर्जुन की यह कहानी स्पष्ट रूप से हमारी आत्मशक्ति के उपयोग की कहानी है यही है समाधि का सर्वोच्च उदाहरण वह भी कथा के रूप में।
अब इस चित्त के नियंत्रण से धारणा ध्यान और समाधि की प्रक्रिया को समझते हैं।
आप देखते हैं कि आपका बच्चा दिन भर ढेरों सवाल करता है। सवालों का जवाब देते देते आप कई बार थक जाते हैं कई बार मुस्कुराने लगते हैं और तो और कई बार उसे झूठे जवाब भी देकर संतुष्ट करते हैं। वास्तव में यह वह स्थिति है जब बच्चा अपने मन में उठते हुए सवालों को समझने की कोशिश करता है यह एक बायोलॉजिकल इवेंट है। इस इवेंट का ना होना खतरनाक मुद्दा होगा अतः बच्चों को उनके सवालों की जवाब देना और जवाब देने के लिए स्वयं को गहन अध्ययन चिंतन करना जरूरी है। अक्सर बच्चे किसी भी खिलौने को तोड़कर उसके भीतर के रहस्य को भी जानना चाहते हैं। तब अभिभावक के रूप में हमें अपने आर्थिक नुकसान के संदर्भ को ऊपर रखकर बच्चे को डांटना या प्रताड़ित करना अपराध ही है। बच्चे के सामने उसके सवालों का जवाब देना ईश्वर की आराधना करने के बराबर है ऐसा मेरा मानना है। चलिए हम वापस लौटते हैं धारणा की ओर जिसका विस्तार ध्यान और समाधि तक जाता है। यह प्रक्रिया एक जन्म में पूर्ण हो ऐसा नहीं है वास्तव में जन्म जन्मांतर तक हमें इन प्रैक्टिस को तब तक करना होता है जब तक की हम लक्ष्य तक अर्थात धारणा तक न पहुंच पाएं।
मैं आपको कोई धार्मिक उपदेश नहीं दे रहा हूं बल्कि यह एक वैज्ञानिक प्रमाणित सत्य है। आप ऐसे तथ्य पर चकित अवश्य होंगे परंतु अगर आप प्रजापिता ब्रह्मा की कल्पना करें तो आप जानेंगे कि हमारे रेस लीडर अर्थात प्रजापिता ब्रह्मा की अंतरिक्ष ज्ञान का विस्तार समझ पाएंगे। प्रजापिता ब्रह्मा ने ग्रहों की स्थिति नक्षत्रों की गति का सटीक विश्लेषण किया है। ग्रहों नक्षत्रों का अध्ययन कालांतर में बहुत से महर्षि यों यहां तक कि मयासुर नामक असुर ने भी किया। यहां एक शब्द संयम का उल्लेख करना आवश्यक है। संयम शब्द का अर्थ संकेंद्रीकरण है। उदाहरण के तौर पर मयासुर ने सूर्य पर समाधि के उपरांत संयम किया। और उसने इस संपूर्ण रहस्य को जाना। सूर्य के रहस्य का विवरण मयासुर ने सूर्य सिद्धांत के रूप में लिखा जो प्राचीन भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान का दस्तावेज है। इसके अतिरिक्त वशिष्ठ विश्वामित्र जैसे विद्वानों के अलावा कई अन्य विद्वानों ने अंतरिक्ष विज्ञान का अध्ययन किया और अपने अपने सिद्धांत प्रतिपादित किए थे। वशिष्ठ और विश्वामित्र की आपसी संघर्ष की कहानी भी आपने सुनी होगी। यह संघर्ष नक्षत्र विज्ञान को लेकर ही हुआ था। वास्तव में यह संघर्ष नहीं बल्कि वैचारिक असहमतियां रही है।
जब धारणा,ध्यान,समाधि से आगे बढ़कर हम किसी विषय पर संयमित हो जाते हैं तो हमें उसके समस्त रहस्य से सहज परिचय हो जाता है।हिमालय की कंदरा में अथवा समुदाय से दूर होकर योग साधना करने योगी क्या करते होंगे कभी सोचा आपने?
नहीं सोचा होगा तो बताता हूं- सबसे पहले हम धारणा,ध्यान,समाधि, और उसकी परिणीति अर्थात संयम के सहारे हम अपनी आत्मशक्ति को उभार सकते हैं ।
उदाहरण के तौर पर मुझे अपनी आत्मा को समझना है तो मुझे इन्हीं तीनों प्रक्रियाओं का अभ्यास करना चाहिए। जो चित्र बनाते हैं जो कविता लिखते हैं जो संगीत रचना करते हैं जो सामाजिक चिंतन करते हैं वह अगर इन तीनों साधनों का उपयोग ना करें तो वे अपने कार्य को कर ही नहीं सकते।
संस्कृत की कठिन श्लोक मात्र का रट कर प्रस्तुतीकरण कर देना सनातन धर्म की उद्देश्य नहीं है। अगर हम समाधि तो होकर ब्रह्म पर अपना ध्यान संयमित करते हैं तो हमें ब्रह्म के रहस्य सहज ही जान सकते हैं। परंतु ब्रह्म तक जाने से पहले हमें बुल्ले शाह की तरह पूरे प्राणपन से गाना चाहिए-"बुल्ले की जाणा मैं कौन. ?"
अर्थात हमें अपने आप को समझना चाहिए और यह समझ हम समाधि अवस्था को प्राप्त कर विकसित कर सकते हैं। यही है अगली कक्षाएं। जो मौसी जी को स्वर्गीय माताजी ने पढ़ने के लिए कहीं थी। सच मानिए मैं पूजा नहीं करता। मुझे उतने श्लोक भी याद नहीं है। परंतु अभी अपनी आत्मा को पहचानने की प्रक्रिया में भाग ले रहा हूं।
अध्यात्म की इस व्याख्या पर ध्यान देकर हम सब अपनी पिछली तीन जिंदगी हो का अनुमान लगा सकते हैं। इतनी सहज क्रिया है कि आप किसी भी व्यक्ति के चेहरे को देखकर उसे स्कैन कर सकते हैं।
रविवार, अगस्त 07, 2022
Ukrainian-origin teenager Carolina Proterisco
Ukrainian-origin
teenager Carolina Proterisco has been in the hearts and minds of music lovers
around the world these days. Carolina Proterisko was born on October 3, 2008 in Ukraine to a music-loving family.. Parents are also
well versed in guitar and piano.
This Melodius family moved to the United
States in 2015 when Karolina was 6 years
old. She started violin lessons in the same year and started taking classical
music training.
In the summer of
2017, Karolina publicly debuted as a street-artist for the
public in Santa Monica, (CA). The music-loving audience also gets mesmerized at
each of his performances. Children are also compelled to dance after watching
the musical performances.
Carolina
Proterisco has 3 YouTube channels and is also on Facebook and Instagram.
In less than 4 years his fan base has grown to over 11 million in more than 50 countries. If we talk
about YouTube and other media sites, their videos have been viewed more than 1 billion times. She has shown her skills in the Ellen Show.
Another feature of Carolina you need to be
introduced to is that Carolina presents the tunes of every language of the
world. Carolina also presents the tunes of Hindi film songs.
You will see her
achievements small when you come to know that, this teenager does charity
program to raise funds for cancer patients in USA.
She is the
American brand-ambassador of this cancer cure campaign. It is my belief that
Carolina, which has captivated the hearts of millions of viewers, will leave
Michael-Jackson and Justin Weaver far behind in the coming era.
Carolina learns
the nuances of the violin from the Suzuki Violin book series and Karolina
learns pop songs with her mother while practicing classical music with violin
teacher Mr. Fisher.
Carolina admits that- "Initially she
found it very easy to play the violin, but eventually she found it difficult to
play ensembles, but because of her love for the violin, she considers herself
successful."
Carolina says
that- “She does not forget to practice pop singing on her violin for three
hours every day, practicing other linguistic songs as well as practicing
classical music. Carolina is greatly influenced and inspired by Lindsay
Stirling.
Girish Billore
"Mukul"
writer and art
promoter
मंगलवार, अगस्त 02, 2022
Some Important Issues in Parenting Rabbits
सोमवार, अगस्त 01, 2022
यूक्रेनियन मूल की नन्हीं विश्व-प्रसिद्ध वायलिन वादिका: केरोलिना प्रोटेरिस्को
यूक्रेन-मूल की किशोरी कैरोलिना प्रोटेरिस्को इन दिनों दुनिया भर के
संगीत प्रेमियों के दिलो-दिमाग में छाई हुई है। कैरोलिना प्रोटेरिस्को का जन्म 3
अक्टूबर 2008 को यूक्रेन में एक संगीत-प्रेमी
परिवार में हुआ था।। माता-पिता भी
गिटार और पियानो में पारंगत है।
यह मेलोडीयस
परिवार 2015 में संयुक्त राज्य अमेरिका चला गया जब करोलिना 6 साल की थी।
उसने उसी वर्ष वायलिन पाठ शुरू किया और शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया।
2017 की गर्मियों के दिनों में करोलिना ने सेंटा मोनिका, ( सी.ए.) में , आम लोगों के
लिए स्ट्रीट-आर्टिस्ट के रूप में
सार्वजनिक रूप से यलिन वादन प्रारम्भ किया था । उसकी हरेक प्रस्तुति पर संगीत-
प्रेमी दर्शक मन्त्रमुग्ध भी हो जाते हैं. संगीत प्रस्तुतियों के देख बच्चे भी
थिरकने को मज़बूर हो जाते हैं.
केरोलिना प्रोटेरिस्को 3 यूट्यूब
चैनल हैं और वह फेसबुक और इंस्टाग्राम पर भी है। 4 साल से भी कम समय में 50 से अधिक देशों
में उनके प्रशंसकों की संख्या 11 मिलियन से अधिक हो गई है। यूट्यूब और अन्य मीडिया साइटों की चर्चा की जावे
तो उनके वीडियोस को 1 बिलियन से अधिक बार देखा जा चुका है.
वे एलेन शो में अपना हुनर दिखा चुकीं है.
कैरोलिना की एक अन्य विशेषता से आपका परिचय ज़रूरी है, कि कैरोलिना विश्व के हर भाषाई गीतों की
धुन प्रस्तुत करतीं हैं. हिन्दी फ़िल्मी गीतों की धुनें भी प्रस्तुत करतीं हैं कैरोलिना .
आपको उनकी उपलब्धियाँ छोटी तब नजर आएंगी जब आपको पता चलेगा कि,
यह किशोरी
यूएसए में कैंसर रोगियों के लिए धन-राशि एकत्र करने के लिए चैरिटी
कार्यक्रम करतीं हैं.
वे इस कैंसर से मुक्ति देने वाले अभियान
कि अभियान की अमेरिकी ब्रांड-एम्बेसडर हैं. करोड़ों दर्शकों के मन को मोह लेने वाली
कैरोलिना आने वाले दौर में माइकल-जैक्सन एवं जस्टिन वीवर को बहुत पीछे छोड़ देंगीं यह मेरा मानना है.
कैरोलिना, सुजुकी वायलिन पुस्तक सीरीज़ से वायलिन की बारीकियाँ सीखतीं हैं तथा
करोलिना अपनी मां के साथ पॉप गाने सीखतीं है जबकि वायलिन शिक्षक मिस्टर फिशर के साथ शास्त्रीय
संगीत का अभ्यास करती हैं।
कैरोलिना मानतीं है कि- “ शुरू
में उनको वायलिन बजाना बहुत आसान लगा,
लेकिन अंततः उसे
टुकड़ियाँ बजाना मुश्किल लगा,
लेकिन वायलिन के प्रति
अपने प्रेम के कारण, वे खुद को
सफल मानतीं हैं.”
कैरोलिना कहतीं हैं कि- “वह हर दिन तीन घंटे तक अपने वायलिन पर पॉप गाने अन्य भाषाई गीतों
का अभ्यास के साथ- साथ शास्त्रीय संगीत बजाने का अभ्यास करना बिलकुल नहीं भूलतीं
।करोलिना को लिंडसे स्टर्लिंग का से खासी प्रभावित एवं प्रेरित हैं.
ये उपलब्धियाँ बौनी तब नजर आएंगी जब आपको पता चलेगा कि- यूएसए में कैंसर
रोगियों के लिए धन-राशि एकत्र करने के लिए चैरिटी कार्यक्रम किये. वे इस अभियान की
अमेरिकी ब्रांड-एम्बेसडर हैं. करोड़ों दर्शकों के मन को मोह लेने वाली कैरोलिना आने
वाले दौर में माइकल-जैक्सन एवं जस्टिन वीवर को बहुत पीछे छोड़ देंगीं यह मेरा मानना है.
सुजुकी
वायलिन पुस्तक से वायलिन की बारीकीयाँ सीखने वाली करोलिना अपनी मां के साथ पॉप
गाने और अपने वायलिन शिक्षक मिस्टर फिशर के साथ शास्त्रीय संगीत का अभ्यास करती
हैं।कैरोलिना मानतीं है कि- “ शुरू में उनको वायलिन बजाना बहुत आसान लगा, लेकिन
अंततः उसे टुकड़ियाँ बजाना मुश्किल लगा,
लेकिन वायलिन के प्रति
अपने प्रेम के कारण, वह सफल है.” कैरोलिना कहतीं हैं कि वह हर
दिन तीन घंटे तक अपने वायलिन पर पॉप गाने अन्य भाषाई गीतों का अभ्यास और शास्त्रीय संगीत बजाने का अभ्यास करना कतई
नहीं भूलतीं ।करोलिना को लिंडसे स्टर्लिंग का से खासी प्रभावित एवं प्रेरित हैं.
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