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सोमवार, अगस्त 22, 2022

धारणा, ध्यान और समाधि


*धारणा, ध्यान और समाधि*
        महर्षि कणाद ने वैज्ञानिक चिंतन को दिशा दी है जिसका आधार धारणा ध्यान और समाधि है। यहां पूर्व आलेख की तरह मैं सतर्क कर देना चाहता हूं कि ईश्वर को समझने के लिए रिचुअल्स अथवा सांप्रदायिक प्रक्रियाओं ( रिलीजियस प्रैक्टिस) प्रथम चरण के रूप में ही स्वीकारना चाहिए।
पूज्य कला मौसी ने बताया कि कभी स्वर्गीय माताजी ने पूज्य कला मौसी से कहा था -"अभी तुम पहली क्लास में हो!" वास्तव में रिचुअल्स अथवा प्रैक्टिसेज आत्म नियंत्रण का प्रथम पाठ है। उदाहरण के तौर पर उपवास रखना या पूजा प्रक्रिया करना अपनी चित्त अर्थात मन को व्यवस्थित करने का एक तरीका है। क्योंकि अगर मन गतिमान होगा तो स्थिरता की कल्पना करना ही मुश्किल है। इस कठिनाई से निवृत्त होने के लिए धारणा का सहारा लेना चाहिए। धारणा पूजा प्रणाली तथा रिचुअल्स यानी रीति-रिवाजों के अनुपालन के आगे का विषय है। 
[  ] धारणा का अर्थ है विषय वस्तु के प्रति चिंतनशीलता । धारणा का विस्तार ध्यान की ओर ले जाता है और इसका अंतिम चरण समाधि कहलाता है।
[  ]  धारणा से समाधि तक जाना सहज प्रक्रिया नहीं है। इसे हम अर्जुन की आंख वाली कहानी से समझ सकते हैं। अर्जुन ने अपनी धारणा में केवल मछली की आंख को चुना। स्वभाविक है कि अर्जुन का चित्त आत्मनियंत्रित था। और उसने मछली की आंख को अपनी धारणा के रूप में अवस्थित किया। फिर  को विस्तारित कर ध्यान की स्थिति में ले गया। और जब वह समाधिष्ट हुआ, तो हाथ से निकला सटीक निशाने पर जा बैठा।
[  ] अर्जुन की यह कहानी स्पष्ट रूप से हमारी आत्मशक्ति के उपयोग की कहानी है यही है समाधि का सर्वोच्च उदाहरण वह भी कथा के रूप में।
अब इस चित्त के नियंत्रण से धारणा ध्यान और समाधि की प्रक्रिया को समझते हैं।
आप देखते हैं कि आपका बच्चा दिन भर ढेरों सवाल करता है। सवालों का जवाब देते देते आप कई बार थक जाते हैं कई बार मुस्कुराने लगते हैं और तो और कई बार उसे झूठे जवाब भी देकर संतुष्ट करते हैं। वास्तव में यह वह स्थिति है जब बच्चा अपने मन में उठते हुए सवालों को समझने की कोशिश करता है यह एक बायोलॉजिकल इवेंट है। इस इवेंट का ना होना खतरनाक मुद्दा होगा अतः बच्चों को उनके सवालों की जवाब देना और जवाब देने के लिए स्वयं को गहन अध्ययन चिंतन करना जरूरी है। अक्सर बच्चे किसी भी खिलौने को तोड़कर उसके भीतर के रहस्य को भी जानना चाहते हैं। तब अभिभावक के रूप में हमें अपने आर्थिक नुकसान के संदर्भ को ऊपर रखकर बच्चे को डांटना या प्रताड़ित करना अपराध ही है। बच्चे के सामने उसके सवालों का जवाब देना ईश्वर की आराधना करने के बराबर है ऐसा मेरा मानना है। चलिए हम वापस लौटते हैं धारणा की ओर जिसका विस्तार ध्यान और समाधि तक जाता है। यह प्रक्रिया एक जन्म में पूर्ण हो ऐसा नहीं है वास्तव में जन्म जन्मांतर तक हमें इन प्रैक्टिस को तब तक करना होता है जब तक की हम लक्ष्य तक अर्थात धारणा तक न पहुंच पाएं।
  मैं आपको कोई धार्मिक उपदेश नहीं दे रहा हूं बल्कि यह एक वैज्ञानिक प्रमाणित सत्य है। आप ऐसे तथ्य पर चकित अवश्य होंगे परंतु अगर आप प्रजापिता ब्रह्मा की कल्पना करें तो आप जानेंगे कि हमारे रेस लीडर अर्थात प्रजापिता ब्रह्मा की अंतरिक्ष ज्ञान का विस्तार समझ पाएंगे। प्रजापिता ब्रह्मा ने ग्रहों की स्थिति नक्षत्रों की गति का सटीक विश्लेषण किया है। ग्रहों नक्षत्रों का अध्ययन कालांतर में बहुत से महर्षि यों यहां तक कि मयासुर नामक असुर ने भी किया। यहां एक शब्द संयम का उल्लेख करना आवश्यक है। संयम शब्द का अर्थ संकेंद्रीकरण है। उदाहरण के तौर पर मयासुर ने सूर्य पर समाधि के उपरांत संयम किया। और उसने इस संपूर्ण रहस्य को जाना। सूर्य के रहस्य का विवरण मयासुर ने सूर्य सिद्धांत के रूप में लिखा जो प्राचीन भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान का दस्तावेज है। इसके अतिरिक्त वशिष्ठ विश्वामित्र जैसे विद्वानों के अलावा कई अन्य विद्वानों ने अंतरिक्ष विज्ञान का अध्ययन किया और अपने अपने सिद्धांत प्रतिपादित किए थे। वशिष्ठ और विश्वामित्र की आपसी संघर्ष की कहानी भी आपने सुनी होगी। यह संघर्ष नक्षत्र विज्ञान को लेकर ही हुआ था। वास्तव में यह संघर्ष नहीं बल्कि वैचारिक असहमतियां रही है।
  जब धारणा,ध्यान,समाधि से आगे बढ़कर हम किसी विषय पर संयमित हो जाते हैं तो हमें उसके समस्त रहस्य से सहज परिचय हो जाता है।हिमालय की कंदरा में अथवा समुदाय से दूर होकर योग साधना करने  योगी क्या करते होंगे कभी सोचा आपने?
नहीं सोचा होगा तो बताता हूं- सबसे पहले हम धारणा,ध्यान,समाधि, और उसकी परिणीति अर्थात संयम के सहारे हम अपनी आत्मशक्ति को उभार  सकते हैं ।
    उदाहरण के तौर पर मुझे अपनी आत्मा को समझना है तो मुझे इन्हीं तीनों प्रक्रियाओं का अभ्यास करना चाहिए। जो चित्र बनाते हैं जो कविता लिखते हैं जो संगीत रचना करते हैं जो सामाजिक चिंतन करते हैं वह अगर इन तीनों साधनों का उपयोग ना करें तो वे अपने कार्य को कर ही नहीं सकते।
  संस्कृत की कठिन श्लोक मात्र का रट कर प्रस्तुतीकरण कर देना सनातन धर्म की उद्देश्य नहीं है। अगर हम समाधि तो होकर ब्रह्म पर अपना ध्यान संयमित करते हैं तो हमें ब्रह्म के रहस्य सहज ही जान सकते हैं। परंतु ब्रह्म तक जाने से पहले हमें बुल्ले शाह की तरह पूरे प्राणपन से गाना चाहिए-"बुल्ले की जाणा मैं कौन. ?"
   अर्थात हमें अपने आप को समझना चाहिए और यह समझ हम समाधि अवस्था को प्राप्त कर विकसित कर सकते हैं। यही है अगली कक्षाएं। जो मौसी जी को स्वर्गीय माताजी  ने पढ़ने के लिए कहीं थी। सच मानिए मैं पूजा नहीं करता। मुझे उतने श्लोक भी याद नहीं है। परंतु अभी अपनी आत्मा को पहचानने की प्रक्रिया में भाग ले रहा हूं।
  अध्यात्म की इस व्याख्या पर ध्यान देकर हम सब अपनी पिछली तीन जिंदगी हो का अनुमान लगा सकते हैं। इतनी सहज क्रिया है कि आप किसी भी व्यक्ति के चेहरे को देखकर उसे स्कैन कर सकते हैं।

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