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शनिवार, जून 05, 2021

बोलने की आजादी बनाम मलाला यूसुफजई

       मलाला यूसुफजई गूगल फोटो
मलाला यूसुफजई के मुतालिक पाकिस्तान में दिनों खासा हंगामा बरपा है। मलाला ने जो भी कहा निकाह को लेकर उसे एक अग्राह्य नैरेटिव के रूप में देखा जा रहा है। सोशल मीडिया पर तो गया गजब की आग सी लगी हुई है और यूट्यूब चैनल रेगुलर न्यूज़ चैनल आपको बाकायदा जिंदा रखे हुए हैं। ऐसा क्या कह दिया मलाला ने कि इतना बवाल मच गया?
दरअसल मलाला ने वोग पत्रिका को इंटरव्यू में बताया कि-" पता नहीं लोग निकाह क्यों करते हैं एक बेहतर पार्टनरशिप के लिए निकाह नामें पर सिग्नेचर का मीनिंग क्या होता है..?
दरअसल भारत में लिव इन रिलेशन में जाने वाली महिलाओं को बकायदा अधिकार से सुरक्षित किया गया है। बहुत सारे काम मिलार्ड लोग सरल कर देते हैं या यह कहें कि भारत में न्याय व्यवस्था बहुत हम्बल है। लिहाजा हमारे देश में सैद्धांतिक रूप से तो समाज ने इसे अस्वीकृत किया है परंतु आपको स्मरण होगा कि सनातन से बड़ा लिबरल मान्यताओं वाला धर्म और कोई नहीं है। गंधर्व विवाह को यहां मान्यता है भले ही उसका श्रेणी करण सामान्य विवाह संस्था से कमतर क्यों ना माना गया हो।
  23 साल की मलाला यूसुफजई नोबेल अवॉर्ड् से सम्मानित है और इस वक्त ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पीएचडी कर रही है। हालिया दौर में वे पाकिस्तान के कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं जबसे उन्होंने इजराइल फिलिस्तीन संघर्ष में फिलिस्तीन के संदर्भ में विशेष रूप से कुछ नहीं कहा था इतना ही नहीं कुछ वर्ष पहले उन्होंने तालिबान की कठोर निंदा भी की थी। स्वात घाटी की रहने वाली पाकिस्तानी नागरिक पाकिस्तान में हमेशा विवाद में लपेटा जाता है ।
मलाला ने किस कांटेक्ट में निकाहनामे को गैरजरूरी बताया इस पर चर्चा नहीं करते  हुए अभिव्यक्ति की आजादी पर मैं यहां अपनी बात रख रहा हूं। विश्व में भारत और अमेरिका ही दो ऐसे देश है जहां बोलने पर किसी की कोई पाबंदी नहीं। जबकि विश्व के अधिकांश राष्ट्रों में अपनी बात कहने के लिए उनके अपनी कानून है। पाकिस्तान से भागकर कनाडा में रहने वाले बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो कि पाकिस्तान में आसानी से जिंदगी बसर नहीं कर पा रहे थे। उनमें सबसे पहला नाम आता है तारिक फतेह का और फिर ताहिर गोरा , आरिफ अजकारिया
 इतना ही नहीं हामिद मीर भी इन दिनों  फौज के खिलाफ टिप्पणियों की वजह से कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं । इसी तरह गलवान में चाइना की सेना की जवानों की सही संख्या लिखने पर वहां के एक माइक्रो ब्लॉगर को 8 महीने से गायब कर रखा है। जैक मा की कहानी आप से छिपी नहीं है। अब रवीश कुमार ब्रांड उन उन सभी लोगों को भारतीयों को समझ लेना चाहिए कि  हिंदुस्तान बोलने की आजादी है लिखने की आजादी है और इसका बेजा फायदा भी उठाया जा रहा है। मैं यहां एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि-"भारत के अलावा आप और किसी देश में बोलने लिखने की आजादी के हक से मरहूम ही रहेंगे" उम्मीद है कि मेरा संकेत सही जगह पर पहुंच रहा होगा ।

बुधवार, जून 02, 2021

नेपाली राजमहल हत्याकांड की बरसी पर विशेष

नेपाल में प्रजातंत्र और राजशाही की उठापटक बरसों से जारी है। इतिहासिक परिपेक्ष में जो जानकारियां पब्लिक डोमेन में मौजूद है उससे स्पष्ट होता है कि नेपाल अप्रत्यक्ष रूप से प्रजातांत्रिक स्वरूप से एक तंत्र वाली शासन प्रणाली की ओर बढ़ रहा है। आज हम उस घटना को याद करेंगे जो 1 जून 2001 में नेपाल में घटित हुई थी। कहानी प्रेम के दुर्दांत अंत की है।
नेपाल की राजशाही का सांकेतिक रूप से अंत 20 जून 2001 एक को ही वास्तविक रूप में हो गया था जब महारानी ऐश्वर्या के प्रिंस द्वारा प्रस्तावित विवाह से असहमत राज परिवार के विरोध के चलते हुआ। जन्म दात्री मां महारानी ऐश्वर्या के विरोध ने जब विरोध किया तब  क्रॉउन प्रिंस आपे से बाहर हो गए। और फिर क्राउन प्रिंस दीपेंद्र ने एक के बाद एक नौ रक्त संबंधियों की हत्या कर दी । यह हत्याकांड अपने पीछे 9 से अधिक चिंतन को जन्म देता है। 
    राजशाही के दौरान नेपाल एकमात्र हिंदू राष्ट्र नेपाल की राजकीय परंपरा अनुसार प्रिंस दीपेंद्र को राष्ट्र का राजा घोषित किया गया।  परंतु दीपेंद्र उस समय ट्रॉमा सेंटर में बेहोशी की हालत में 56 घंटों तक अपनी मौत का इंतजार कर रहा था। इसके बाद उनके छोटे भाई को राजा घोषित किया गया।
 नेपाल का इतिहास प्रजातांत्रिक नहीं रहा किंतु विकिपीडिया में दर्ज विवरण के अनुसार बीसवीं शताब्दी में नेपाल ने अपने राजनीतिक अस्तित्व में परिवर्तन किया विकिपीडिया में दर्ज विवरण कुछ इस तरह है
1940 दशक के उत्तरार्ध में लोकतन्त्र- समर्थित आन्दोलनों का उदय होने लगा व राजनैतिक पार्टियां राणा शासन के विरुद्ध हो गईं। उसी समय चीन ने 1950 में तिब्बत पर कब्ज़ा कर लिया जिसकी वजह से बढ़ती हुई सैनिक गतिविधियों को टालने के लिए भारत नेपाल की स्थायित्व पर चाख बनाने लगा। फलस्वरुप राजा त्रिभुवन को भारत ने समर्थन किया 1951 में सत्ता लेने में सहयोग किया, नई सरकार का निर्माण हो गया, जिसमें ज्यादा आन्दोलनकारी नेपाली कांग्रेस पार्टी के लोगों की सहभागिता थी। राजा व सरकार के बीच वर्षों की शक्ति खींचातानी के पश्चात्, 1959 में राजा महेन्द्र ने लोकतान्त्रिक अभ्यास अन्त किया व "निर्दलीय" पंचायत व्यवस्था लागू करके राज किया। सन् 1989 के "जन आन्दोलन" ने राजतन्त्र को संवैधानिक सुधार करने व बहुदलीय संसद बनाने का वातावरण बन गया सन 1990 में कृष्णप्रसाद भट्टराई अन्तरिम सरकार के प्रधानमन्त्री बन गए, नये संविधान का निर्माण हुआ राजा बीरेन्द्र ने 1990 में नेपाल के इतिहास में दूसरा प्रजातन्त्रिक बहुदलीय संविधान जारी किया  व अन्तरिम सरकार ने संसद के लिए प्रजातान्त्रिक चुनाव करवाए। नेपाली कांग्रेस ने राष्ट्र के दूसरे प्रजातन्त्रिक चुनाव में बहुमत प्राप्त किया व गिरिजा प्रसाद कोइराला प्रधानमन्त्री बने।
इक्कीसवीं सदी के आरम्भ से नेपाल में माओवादियों का आन्दोलन तेज होता गया। मधेशियों के मुद्दे पर भी आन्दोलन हुए। अन्त में सन् 2008 में राजा ज्ञानेन्द्र ने प्रजातान्त्रिक निर्वाचन करवाए जिसमें माओवादियों को बहुमत मिला और प्रचण्ड नेपाल के प्रधानमन्त्री बने और नेपाली कांग्रेस नेता रामबरन यादव ने राष्ट्रपति का कार्यभार संभाला। वर्तमान में एकीकृत कम्युनिस्ट पार्टियों के प्रमुखों के बीच संघर्ष चल रहा है और ज्ञात हुआ है कि केपी ओली फिर से प्रधानमंत्री के रूप में नेपाली सत्ता पर काबिज है।
नेपाल की प्रजातांत्रिक व्यवस्था पर लेखक की टिप्पणी :- 
     वर्तमान परिस्थितियों में नेपाल की स्थिति प्रो चाइना होने के कारण बहुत अधिक मजबूत नहीं कही जा सकती। परंतु ऐसा नहीं है कि वर्तमान में नेपाल की जनता वापिस राजशाही की मांग ना कर रही हो। राजनीति का एक चक्र होता है इस चक्र में अक्सर प्रजातंत्र राजशाही की ओर जाता है और राजशाही वापस प्रजातंत्र की ओर । लेकिन  भारतीय व्यवस्था में राजतंत्र या राजशाही केवल एक प्रशासनिक व्यवस्था का मुख्य केंद्र है। अगर भारत में राजशाही का दौर वापस आता है तो भी प्रजातांत्रिक मूल्यों का भविष्य के परिवर्तन में ध्यान रखा जाना स्वभाविक है। यह सुविधा माओवाद में उपलब्ध नहीं है। भारतीय इतिहास को देखें तो प्राचीन इतिहास महाभारत कालीन इतिहास से ही शुरु करते हैं प्रजातांत्रिक मूल्यों का संरक्षण राजशाही में भी हमेशा रहा है। आयातित विचारधारा मेरी सुविचार से सहमत नहीं होगी क्योंकि उनका अध्ययन कम है। वे भारतीय socio-political- philosophy से अनभिज्ञ हैं। नेपाल को हम भारत से सोशियोकल्चरल तौर पर अलग नहीं मानते। यह सामाजिक चिंतन है हमारा संस्कृति एवं रक्त संबंध इस राष्ट्र से अपेक्षाकृत अधिक सुदृढ़ और ऐतिहासिक है। परंतु पिछले दशक में नेपाल में जिस तरह से आयातित विचारधारा ने सत्ता में प्रवेश पाया है वह नेपाल को लोकतंत्र से एक तंत्र की व्यवस्था की ओर ले जाने का संकेत दे रहा है। अधिकांश कम्युनिस्ट देशों में राष्ट्राधक्ष एक लंबी पारी खेलने के आदी हैं। जबकि भारत में ऐसा नहीं है भारतीय प्राचीन इतिहास प्रजातांत्रिक मूल्यों का संरक्षण करता रहा बावजूद इसके कि- राजतंत्र द्वारा प्रशासनिक व्यवस्थाएं संचालित होती रही। जबकि वामपंथी व्यवस्था एक लंबे समय तक किसी को भी प्रधानमंत्री या राष्ट्र अध्यक्ष बने रहने की अनुमति प्रदान करती है। जैसा कि पिछले एक दशक में नेपाल में नजर आ रहा है। वह दिन दूर नहीं यदि नेपाल में वास्तविक प्रजातंत्र जिसे भारतीय प्रजातंत्र कहा जाता है के मॉडल को एडिट नहीं किया गया तो चीनी नैरेटिव इस बात को सिद्ध भी कर सकता है। यह मेरा अपना ओपिनियन है भविष्य में क्या होगा इस संबंध में मुझे बहुत अधिक नहीं कहना। परंतु इस सिद्धांत को आप अवश्य मानेंगे की दीर्घ काल में प्रजातंत्र का विकल्प एक तंत्र या राजशाही होता है और राजशाही का विकल्प प्रजातंत्र होता है यह एक चक्र है धीरे धीरे बदलने वाला चक्र है।
     भारतीय लोकतंत्र अपने आप में बेहद प्रभावशाली एवं परिपक्व उत्तम माना जा सकता है जबकि यहां का एक-एक मतदाता किसी भी लुभावने वातावरण से आकर्षित ना हो। क्योंकि वातावरण  लूभावना हो सकता है लेकिन सत्य तो वही होता है जो कि नजर आता है पुण्य

शुक्रवार, मई 28, 2021

मासिक धर्म स्वच्छता दिवस 2021 अब मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता में अधिक कार्रवाई और निवेश का आह्वान कर रहा है : स्नेहा चौहान

!        हर साल 28 मई को, गैर-सरकारी संगठन, सरकारी एजेंसियां, निजी क्षेत्र, मीडिया और व्यक्ति मासिक धर्म स्वच्छता दिवस (एमएच दिवस) मनाने के लिए एक साथ आते हैं और अच्छे मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (एमएचएम) के महत्व को उजागर करते हैं।28-मई  -2020 इस दिन को मनाने के पीछे मुख्य विचार मासिक धर्म से जुड़े सामाजिक कलंक को बदलना है।  28 मई की तारीख को इस दिन को मनाने के लिए चुना गया था क्योंकि औसतन ज्यादातर महिलाओं के लिए मासिक धर्म चक्र 28 दिनों का होता है और ज्यादातर महिलाओं के लिए मासिक धर्म की अवधि पांच दिनों की होती है।  इसलिए, तारीख 28/5 रखी गई थी।


मासिक धर्म एक प्राकृतिक शारीरिक प्रक्रिया है, न कि कोई बीमारी। जैसा कि अब भी बहुत से लोग सोचते हैं। हर महीने होने वाली यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो हर महिला के शरीर को गर्भधारण के लिए तैयार करती है। मासिक धर्म के दौरान, एक महिला के गर्भाशय से रक्त और अन्य सामग्री वेजाइना के माध्यम से बाहर स्रावित होती है। हर महीने 3-5 दिन तक जारी रहने वाली यह प्रक्रिया प्‍यूबर्टी (10-15 वर्ष) से ​​शुरू होकर रजोनिवृत्ति (40-50 वर्ष) तक चलती है। अब भी हमारे समाज में इस प्राकृतिक शारीरिक प्रक्रिया को कलंक और वर्जनाओं की दृष्टि से देखा जाता है।


 इस विषय पर महिलाओं में भी शर्म और संकोच मौजूद है। अपने स्‍त्री होने पर ही शर्म महसूस करना जैसे इस प्रक्रिया का दूसरा प्रतीक बन गया है। इसके अलावा अन्‍य शारीकिर परेशानियां भी महिलाओं के लिए इस दौरान होने वाली दिक्‍कतों में शामिल हैं। पेट में ऐंठन, दर्द और मूड स्विंग ऐसी परेशानियां हैं जिनसे ज्‍यादातर महिलाएं मासिक धर्म के दौरान परेशान रहती हैं। जबकि आज भी मासिक धर्म पर स्‍वच्‍छता का अभाव देखने को मिलता है। जिसकी वजह से कई तरह के संक्रमणों का खतरा बना रहता है। इन सभी मुद्दों पर ज्‍यादा से ज्‍यादा जागरुकता पैदा करने के लिए जर्मनी के गैर सरकारी संगठन WASH यूनाइटेड द्वारा 28 मई को मासिक धर्म स्वच्छता दिवस (MHD) मनाने का संकल्‍प किया है।


फील्‍ड में और ऑनलाइन माध्‍यमों में इस संदर्भ में अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। दुनिया भर में मासिक धर्म के संदर्भ में फैली रूढि़यों और वर्जनाओं को दूर करने की जरूरत है।  मासिक धर्म स्वच्छता दिवस 2019 की थीम थी ‘It’s Time for Action’। अर्थात अब कुछ करने का समय है। इस थीम का उद्देश्‍य था मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को अपनी निजी स्‍वच्‍छता के प्रति जागरुक करने, नई जान‍कारियां देने, इस दिशा में कार्यरत संस्‍थाओं जैसे संयुक्त राष्ट्र की संस्‍थाओं, सरकारों, फ़ंडों, गैर-सरकारी संगठनों और विश्व निकायों की भूमिका को और सक्रिय करने की जरूरत है। साथ ही उन्हें स्वच्छता सुनिश्चित करने संबंधी उत्‍पादों को सुलभ करवाने में भी मदद की जरूरत है।

मासिक के उन दिनों के प्रति जागरूकता हेतु 
 इसके अलावा आप अपने इलाके में एक छोटी रैली आयोजित कर सकते हैं। जिसमें मासिक धर्म स्वास्थ्य पर संदेश लिखे पोस्‍टर, बैनर और टी-शर्ट और कैप आदि भी शामिल कर सकते हैं। स्कूल के शिक्षक और अन्‍य अधिकारी 28 मई का दिन बच्‍चों को मासिक धर्म के बारे में जागरुक करने के लिए समर्पित कर सकते हैं। स्कूल परिसर में बच्चों के बीच एक क्विल, निबंध, पेंटिंग प्रतियोगिता आयोजित कर इस संदर्भ में फैले भ्रम को दूर कर जागरूकता बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। यह छोटे-छोटे प्रयास अगली पीढ़ी को इन वर्जनाओं से मुक्ति दिलवाने में मदद करेगी।
इसके अलावा समाज में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की लड़कियों के लिए सैनिटरी पैड खरीदने के लिए धन जुटाना भी एक अच्छी पहल हो सकती है। यदि आप ऐसी किसी भी गतिविधि में शामिल हैं तो आप इसे मासिक धर्म स्वच्छता दिवस  की आधिकारिक वेबसाइट  (www.menstrualhygieneday.org/events) पर पंजीकृत कर सकते हैं। इस वेबसाइट पर एक मैप दिखाई देगा, जिसमें इस अवसर पर आयोजित होने वाले तमाम आयोजनों को मार्क किया जाएगा। इसमें मीडिया संगठनों को भी शामिल किए जाने की जरूरत है। जिससे आपका संदेश और प्रयास एक बड़े सर्कल तक संप्रेषित हो पाएगा।

 मासिक धर्म स्वच्छता दिवस कैसे मनाएं

मासिक धर्म स्वच्छता दिवस दुनिया भर में रैलियों, फिल्म स्क्रीनिंग, थिएटर, प्रदर्शनियों, कार्यशालाओं, सेमिनारों और भाषणों, सोशल मीडिया अभियानों के माध्यम से मनाया जाता है। ऐसे कई तरीके हैं जिनसे आप इन समारोहों का हिस्सा बन सकते हैं। आप मासिक धर्म के बारे में फोटो, वीडियो, जानकारी या अपने विचार पोस्ट करने के लिए अपने सोशल मीडिया हैंडल का उपयोग कर सकते हैं। इसके अलावा, आप लोगों को टैबू को तोड़ने और इस मुद्दे पर खुलकर बात करने के लिए प्रेरित करने संबंधी कहानियां भी शेयर कर सकते हैं।

मासिक धर्म स्वच्छता बनाए रखने के टिप्स

मासिक धर्म स्वच्छता बनाए रखने के लिए, आपको यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि आप कम से कम हर 6 घंटे के बाद अपना पैड बदलें। यदि आप लंबे समय तक एक ही सैनिटरी नैपकिन लगाए रखती हैं तो आपको यूरिनरी ट्रेक्‍ट इंफेक्‍शन होने का खतरा रहता है। इसके अलावा, पैड की जगह सूती कपड़े का उपयोग भी स्वच्छता के लिहाज से ठीक नहीं है। हमेशा सैनिटरी नैपकिन, टैम्पोन या मेन्‍स्‍ट्रुअल कप्‍स का ही इस्‍तेमाल करें।
अपने पीरियड्स के दौरान अपने वेजाइना अर्थात योनि को नियमित अंतराल पर गुनगुने पानी से साफ करें। धोने के बाद वेजाइना को पोंछ कर सुखाना न भूलें। वरना यहां बदबू और संक्रमण होने का खतरा रहता है। मासिक धर्म के दौरान नियमित स्‍नान करें, हो सके तो रात में सोने से पहले भी। इससे पीरियड में होने वाले क्रेम्‍प्‍स और मूड स्विंग से भी छुटकारा मिलता है। इसके साथ ही  अपने इस्‍तेमाल किए हुए सैनिटरी पैड का उचित निस्‍तारण भी बहुत जरूरी है। अन्यथा, वे संक्रमण फैला सकते हैं। यूज किए गए सेनिटरी पैड को अच्‍छी तरह रैप करके फेंकना चाहिए। भूलकर भी उसे फ्लश में न डालें।
अब इन दिनों के लिए बाजार में कई तरह के  पैड उपलब्ध है।
इन दिनों महिलाएं मेन्‍स्‍ट्रुअल  कप का इस्तेमाल कर रही है। जो कि पैड से ज्यादा सुरक्षित और ह्यजेनिक है। बस जरूरत है इनके बारे में उचित जानकारी हो।

मासिक धर्म एक प्राकर्तिक क्रिया है इसके बारे में बात कीजिये,अपने बच्चो से फिर वो लड़का हो या लड़की। शरीर मे बदलाव दोनो के एक उम्र के बाद होते है। दोनो को एक दूसरे के इन बदलावों के बारे में जानकारी होनी जरूरी है। इन बदलावों की जानकारी घरों में सबके सामने बात कर करनी चाहिए।
अब वक्त के साथ उस सोच को बदलना ही होगा कि इन दिनों लड़की अशुद्ध होती है ,या पीरियड्स की बात खुलके नही करनी चाहिए। सिर्फ औरतों के बीच हो,मर्दों के सामने इन दिनों न आये ,उनसे दूरी बनाए और भी बहुत।

अब समय के साथ पीरियड्स शुरू होने की उम्र भी कम होती जा रही है, इसके कई कारण है । 
13 -14 के उम्र में होने वाले शारीरिक बदलाव 5 या 6 साल में देखने मिल रहे है। आपके घर के माहौल, बच्चो के प्रति व्यवहार,उनके लिए वक़्त, उनके खानपान सब इसके लिए जिम्मेदार है। एक बच्चा कब कितनी जल्दी प्रौढ़ हो जाता है ये माता पिता को बहुत देर से समझ आता है।खैर।

मुद्दा ये है कि इस विषय पे आज भी उतनी खुल के बात नही होती जितनी होनी चाहिए।

जिम्मेदार लोगों का ये फ़र्ज़ बनता है कि अपने समाज के बच्चो के लिए भी वक़्त निकाले उन से उनकी बात करे ,उनको जानकारी दे। जो जानकारी आपको नही है उनके पास है तो आप भी उनसे साझा करें।

इन दिनों मेरे संपर्क से मुझे ये देखने मिला कि  पीरियड्स में मेन्‍स्‍ट्रुअल  कप्स के इस्तमाल की जानकारी हमउम्र महिलाओं को भी नही है।
उनसे जब मैंने पूछा कि कौन यूज़ करता है,सब चुप थी।
 एक ने डरते हुए पूछा ये क्या है?
 जब हमने कप्स की जानकारी दी तो वो आश्चर्य चकित थी। 
फिर दूसरी महिला बोली मैंने नाम सुना था पर ज्यादा ध्यान नही दिया।
फिर जब हमने उनको इसके बारे में सब बताया तो बोली   ,देखते है । मित्र ने  यूज़ करने के बाद बोल ये तो बड़ा ही सरल है। डर पहली बार लगा ,अब आदत हो गयी है ।

संवाद करना जरूरी है ,फिर चाहे महिला हो या पुरुष। ये संवाद घरों से शुरू हो तो आने वाली पीढ़ियों के आधे मसले ठीक हो जाएंगे। 
 सारा खेल दुनिया का औरत और उसके शरीर पे निर्भर करता है।
28/5 कितना जरूरी है सोचिए।   
                                       लेखिका सुश्री स्नेहा चौहान स्वतंत्र पत्रकारिता करती हैैं


बुधवार, मई 26, 2021

महात्मा गौतम बुद्ध 583 BCE में नहीं बल्कि1865 BCE में अवतरित हुए थे :वेदवीर आर्य


आज महात्मा गौतम बुद्ध की जयंती है वैशाख पूर्णिमा पर महात्मा बुध का जन्म नेपाल के लुंबिनी उपवन में  हुआ था।
महात्मा गौतम बुद्ध की जन्म स्थली  को लेकर किसी भी तरह का कोई भ्रम नहीं है । और यह भी भ्रम नहीं है कि उनका जन्म वैशाख पूर्णिमा को ना हुआ हो । परंतु नवीनतम समीक्षाओं से पता चलता है कि महात्मा बुध का जन्म  583  बीसीई में हुआ में इस बात को लेकर बड़ा असमंजस है।
   महात्मा बुद्ध महाभारत युद्ध के 1200 वर्ष उपरांत अट्ठारह सौ चौंसठ बीसीई  लुंबिनी में जन्मे थे और वे इक्ष्वाकु वंश राजा के राजा शुद्धोधन महारानी माया देवी पुत्र थे। इसमें भी कोई शक नहीं है।
आप आपने जुरुथरुष्ट का नाम सुना होगा । जुरुथरुष्ट जब अपनी मान्यताओं को प्रचारित प्रसारित करने के लिए मध्य एशिया तक आए तब बौद्ध धर्म लगभग 29 देशों में विस्तारित था। विश्व के समकालीन 29 देशों में जोराष्ट्रीयन आईडियोलॉजी का विस्तार करने वाले जोराष्ट्र दो ने बुद्ध मत को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया और उसे अफगानिस्तान तक सीमित कर दिया तब अफगानिस्तान को बैक्ट्रिया के नाम से जाना जाता था। अर्थात बुद्ध जोराष्ट्र के पहले
मान्यताओं के हिसाब से जो राष्ट्र दो 647 से 570 bc-e में जन्मे थे तथा बुध का जन्म 563 से 483 बीसीई दर्शाया गया है। अबू रेहान की किताब  अतहर उल बाकी या नामक किताब में अबू रियान  कहते हैं कि बुद्ध का जन्म जोराष्ट्र सेकंड के पहले हुआ था। अब आप समझ सकते हैं कि अलबरूनी या अबू रियान एक कथन को ओवरलूक किया गया है।
[  ] नेपाल के लुंबिनी में उपवन महामाया देवी भ्रमण पर गई हुई थी तथा वहां महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था। सारे बुद्धिज्म मानने वाले जानते हैं लुंबिनी का उपवन केवल उपवन ही था वहां किसी तरह का कोई स्ट्रक्चर बुद्ध के जन्म के पूर्व उपलब्ध नहीं था परंतु बुद्ध के बाद था एक मंदिर का निर्माण  किया गया। जिसके कार्बन डेटिंग और ओएसएल परीक्षण के प्रमाण मौजूद है।
[  ] महाभारत की समाप्ति 3162 बी सी के 1210 डायनेस्टी 1000 वर्ष प्रद्योत डायनेस्टी 138 वर्ष हिस्ट्री 360 और नंद डायनेस्टी 100 वर्ष कुल 1600 वर्ष के उपरांत बुद्ध का जन्म हुआ।
[  ] 0 गया में उपलब्ध एक लिपि में 1813 संवत में प्रकाश नेपाली मान्यताओं में 1800 वर्ष शताब्दी यानी शक संवत में उनका जन्म होना पाया माना है
इससे साबित होता है कि महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म एवं महानिर्वाण 1765 BCE में सुनिश्चित किया जाता है ।
    और इस से 80 वर्ष पूर्व महात्मा बुद्ध का लुंबिनी में जन्म हुआ था। 15 मार्च 1944 बीसीई वैशाख माह उनका जन्म स्थापित होता है। तथा इसके 80 वर्ष उपरांत 23 अप्रैल 1909 BCE में उन्हें बुद्धत्व की प्राप्ति हुई तथा उनका निर्वाण 5 अप्रैल 1864 ईसवी में वैशाख पूर्णिमा को हुआ था।
    इसके एस्ट्रोनॉमिकल एविडेंसेस भी उपलब्ध है। तदनुसार 8 मार्च अट्ठारह सौ चौंसठ बीसीई में चंद्र ग्रहण तथा सूर्य ग्रहण 23 मार्च 18 सो 64 ईस्वी में हुआ है तथा उसके 15 दिनों के बाद गौतम बुद्ध का निर्वाण हुआ है ।
उपरोक्त ऐतिहासिक बिंदु की पुष्टि के लिए आप the chronology of India from Manu To Mahabharat में विस्तार से देख सकते हैं अमेजॉन पर यह पुस्तक उपलब्ध है। कुछ दिन इंतजार कीजिए संस्कृति के प्रवेश द्वार नामक मेरी आगामी हिंदी कृति का जिसमें हिंदी रहस्यों पर से पर्दा हटाने की कोशिश की है।
बुद्ध जयंती पर सभी भारतीयों और विश्व के समस्त उन लोगों को हार्दिक शुभकामनाएं जो बुद्ध के प्रति आस्थावान है

आज तक किया बाबा रामदेव का मीडिया ट्रायल : आयुर्वेद और नेचुरोपैथी दुर्भाग्यपूर्ण दौर में

#आजतक चैनल पर आइएम के महासचिव डॉक्टर जयेश लेले एवं एवं पूर्व अध्यक्ष श्री राजन शर्मा ने एंकर अंजना ओम कश्यप की मौजूदगी में एक विवादास्पद बहस में हिस्सा लिया जिसमें टारगेट किया जा रहा था प्राकृतिक चिकित्सा के पुनर्प्रवर्तक बाबा रामदेव को। इस बहस में परिचर्चा का कोई भी गुण नजर नहीं आ रहा था बल्कि यह  अपराध परीक्षण जी हां मीडिया ट्रायल था यह एक सबसे बड़ी विवादास्पद बहस थी। एलोपैथिक वर्सेस आयुर्वेद एवं नेचरोपैथी को लेकर आजतक न्यूज़ ने जिस तरह का नेगेटिव अवधारणा को जन्म दिया है शर्मनाक है। भारत ने आयुर्वेद योग दर्शन और फिलासफी के लिए बहुत अधिक योगदान नहीं किया है और अगर किया भी है तो वह निजी तौर पर हुआ है उनमें से एक है रामदेव जिनकी अपनी अवधारणा है और  वे इस दिशा में काम कर रहे हैं। परंतु उनके इस आयुर्वेदिक एवं प्राकृतिक #innovation को इस कदर अपमानित किया गया जो आज तक न्यूज़ चैनल की टीआरपी के लिए भले अच्छा हो लेकिन भारत के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। एलोपैथिक को बुरा नहीं कहा जा सकता तो आयुर्वेद और नेचुरोपैथी को भी अपमानित करने का अधिकार किसी को नहीं है। और खासकर तब जबकि कोविड-19 जैसी महामारी का दौर है। आप स्पष्ट रूप से जान लीजिए कि हमारा रसोईघर अपने आप में एक मेडिसिन सेंटर है। जो हम खाते हैं उसमें माइक्रोन्यूट्रिएंट्स पर्याप्त मात्रा में मौजूद होता है और इम्यूनिटी पावर बढ़ाने की क्षमता हमारे भोजन में मौजूद होती है। कुछ इन्हीं सिद्धांतों पर काम करती है बाबा रामदेव की दवाई यूनानी आयुर्वेद बायोकेमिक नेचुरोपैथी द्वारा किए गए कार्य एलोपैथी के तीव्र विस्तार के कारण बहुत अधिक नकारात्मक रूप से प्रभावित हुए हैं। ना तो इससे भारत का भला है और ना ही एलोपैथी का। एलोपैथिक चिकित्सा प्रणाली धन कमाने का बहुत बड़ा साधन है अमेरिकन मेडिकल सिस्टम एक माफिया की तरह काम करता है ऐसा लोगों का मानना है परंतु इस मान्यता की मेरे द्वारा आज तक पुष्टि नहीं की जा सकती है पर क्या नहीं किया जा सकता अमेरिका या यूरोप देशों द्वारा। भारत का प्राकृतिक अधिकार है परंतु अगर आप विश्व के किसी भी हिस्से में योग कक्षा खोलना चाहते हैं तो आपको यूरोप के किसी इंस्टिट्यूशन से हजारों डॉलर देखकर लाइसेंस हासिल करना पड़ता है। आप समझ सकते हैं कि हमारे चिकित्सक जो एलोपैथी को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं उनको यह भी मानना होगा कि अगर आयुर्वेद यूनानी बायोकेमिक जर्मनी नेचुरोपैथी आदि चिकित्सा प्रणालियों पर कार्य होता तो निश्चित तौर पर देश काफी आगे होते और एकमात्र चिकित्सा प्रणाली के पीछे भटकाव नहीं हो पाता। यह सब हमारी मूर्खताओं का परिणाम है क्योंकि हम आयातित चीजों को अपना स्टेटस सिंबल मानते हैं। जैसा कर रहे हो तो भोगना ही होगा बहराल में अपना व्यक्तिगत अनुभव बता दो की 2010 से लेकर 2019 तक प्रतिवर्ष मुझे फेफड़ों की शिकायत होती थी और मुझे लगातार लगभग 50+ से अधिक रुपए खर्च करने होते थे लेकिन लेकिन कोविड-19 के कारण आयुर्वेदिक खास तौर पर पतंजलि की मेडिसिन का प्रयोग किया ताकि मुझे कफ की वजह से फेफड़ों की समस्या से मुक्ति मिले और उन दवाओं से मुझे लाभ हुआ है। जबकि यह सामर्थ्य एलोपैथी में नहीं है। निर्णय आपको करना है सभी चिकित्सा प्रणालियां अपने आप में प्रभावशाली हैं किसी को अपमानित करने की जरूरत नहीं है ना तो एलोपैथिक को और 9 अन्य को लेकिन यह वीडियो यह सिद्ध कर रहा है कि एलोपैथी के अलावा दुनिया में इसका का कोई विकल्प नहीं है। मैं एक ऐसे विद्वान को जानता हूं जो इसी शहर में रहते हैं और जिन्होंने एनाटॉमी का रेखा चित्र बनाकर ब्रिटेन में भेजा और ब्रिटेन ने  एनाटॉमी संरचना को अपने मेडिकल स्टूडेंट्स के लिए पाठ्यक्रम में शामिल किया । आप चाहेंगे तो आपसे मुलाकात किसी दिन जरूर कर आऊंगा। फिलहाल आप  दिए लिंक को क्लिक करके डॉ हेमराज जैन साहब के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं

दुर्भाग्य यह है कि जनसत्ता जनसत्ता ने भी अपने समाचार में जो हेडिंग दी है वह कम भड़काऊ या अपमानकारी है

गुरुवार, मई 20, 2021

सच है दुनिया वालो कि हम हैं अनाड़ी...!

" सच है दुनिया वालो कि हम हैं #अनाड़ी"
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जो भी व्यक्ति आर्यों को बाहर से आया हुआ साबित करेगा उसे जयपुर डायलॉग के सीईओ संजय दीक्षित रिटायर्ड आईएएस दो करोड़ की राशि देंगे। तो आइए  जानते हैं क्या आर्य विदेशों से आए थे...?
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आज भारत आए थे इस मुद्दे पर एक लंबी बहस चल रही है किंतु अभी तक एनसीईआरटी की किताबों से यह सिद्ध हो जाने के बावजूद की आर्य भारत के ही मूल निवासी थे तथा उनका डीएनए पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण समान रूप से मैच करता है ।
   ब्रिटिश कालखंड  में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया कि 1500 वर्ष ईसा पूर्व आर्यों का आगमन हुआ और उन्होंने वेदों की रचना की और उन्होंने भारत के मूलनिवासी लोगों को अपमानित किया उन्हें स्लेवरी करने को मजबूर किया इस तरह से एक अशुद्ध सिद्धांत का प्रतिपादन कर फूट डालने का काम ब्रिटिश सरकार की सहमति के अनुसार हुआ है।
आर्यों के आगमन के संबंध में एक प्रश्न आपके समक्ष भी रखता हूं
[  ] अगर आर्य 3500 वर्ष पूर्व अर्थात ईसा के 1500 वर्ष पूर्व भारत आए थे और उन्होंने संस्कृत में वेदों,संहिताओं, उपनिषदों ब्राह्मण आरण्यकों का लेखन किया।  लेखन का काल हम ईशा के 1500 वर्ष पूर्व निर्धारित कर भी लेते हैं तो उस सरस्वती नदी के संबंध में क्या जवाब होगा जो बताए गए 1500 साल पूर्व के भी 2000 साल पहले विलुप्त हो गई। अर्थात यह एक अशुद्ध एवं तथ्यहीन भ्रामक थ्योरी है। जिसकी पुष्टि अब तक नहीं हुई है परंतु इस आधार पर किताब में लिखी जा चुकी है।
[  ] संविधान सभा के अध्यक्ष डॉक्टर भीमराव अंबेडकर भी इस तथ्य के समर्थक नहीं थे
[  ] उपलब्ध जानकारी के आधार पर यह कहा गया है कि वेदों का रचनाकाल 14500 से 10500 ईसा पूर्व किया गया था। सब सरस्वती नदी अस्तित्व में रही है
[  ] मैक्स मूलर द्वारा इस थ्योरी विकसित करने का उद्देश्य मात्र भाषा नस्ल के आधार पर विभाजन कर एक व्यवस्थित व्यवस्था को दूषित करना था इसके पीछे उनका संप्रदायिक उद्देश्य भी शामिल है ।
[  ] अनाड़ी ( नीरज अत्री जी से साभार Niraj Atri  ) शब्द का अर्थ आप समझेंगे तो आपको आर्यों के संबंध में समझ बढ़ सकती है। आर्य का अर्थ एक विशेषण है अर्थात हे आर्य अर्थात हे सुविज्ञ और यह शब्द एक संबोधन है जो ऋग्वेद में 33 बार प्रयोग किया गया है। हालांकि मैंने इसकी कोई गिनती नहीं की है परंतु स्रोत यही कहते हैं अब जो सुविज्ञ हैं वे आर्य हैं और जो अभी दिया उस ज्ञान से वंचित है वह अनार्य है अर्थात अनाड़ी है अनाड़ी शब्द का अर्थ अनार्य से ही संबंधित है देशज भाषा में अनार्य को अनाड़ी कहा गया है। हो सकता है कि विद्वान इतिहासकार इसे अस्वीकार कर दें परंतु  भाषाई धरातल पर यही सत्य है। आर्य का संबोधन कर देना मात्र एक जाति का उत्पन्न हो जाना नहीं है। और वह भी इस हद तक कि समाज में विघटन की स्थिति भी पैदा हो सके !
[  ]  मैक्स मूलर ने पूरी प्लानिंग के साथ सबसे पहले वेद का ट्रांसलेशन किया ट्रांसलेशन करने के उपरांत औसत भारतीय को कॉन्फिडेंस में लिया तत्सम कालीन व्यवस्था को कॉन्फिडेंस में लिया और महामहिम मोक्षमूलर की उपाधि से अलंकृत भी हुए। सुधि पाठक कृपया ध्यान दें कि यही वह मोक्ष मूलर साहब हैं जिन्होंने एक शांत निश्छल समाज का वर्गीकरण किया वर्गीकरण करके उनके बीच में एक अवधारणा डाली गई जिससे कि वे विक्टिम है और दूसरा पक्ष जो अधिक शक्तिशाली है वह उनका शोषण कर रहे हैं। अब आप बिन बुलाए मेहमान बन कर इस अवधारणा को विस्तारित करेंगे तो निश्चित रूप से वर्ग संघर्ष पैदा होगा। वाम मार्ग तथा धर्म का विस्तार करने वाली ताकतें इसी तरह के हथकंडे अपनाती हैं। यह एक ऐतिहासिक सत्य है और तथ्य भी।
[ फोटो आभार सहित Vishal Hans क्रिएटिव डायरेक्टर सिटी मुंबई ]

बुधवार, मई 19, 2021

आर्यों को विदेशी बताना नस्लभेदी विप्लव की साजिश है...!

 चित्र गूगल से साभार
ब्रिटिश उपनिवेशवाद के कालखंड में जिस तरह से कांसेप्ट भारतीय जन के मस्तिष्क में डालने की कोशिश की गई उससे सामाजिक विखंडन एवं विप्लव की स्थिति स्थिति निर्मित हुई है। आर्य भारत के ही थे इस बात की पुष्टि के हजारों तथ्य हैं किंतु आर्य भारत में आए थे इसके कोई तार्किक उत्तर नहीं है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति में आर्य अनार्य अथवा दास जैसे शब्दों की व्याख्या भ्रामक एवं सामाजिक विघटन के लिए प्रविष्ट किया गया नैरेटिव है। इस सिद्धांत की स्थापना  के पीछे ब्रिटिश विद्वानों का उद्देश्य राजनीतिक विप्लव सामाजिक विघटन एवं भाषा तथा नस्ल भेद को बढ़ावा देना है।
     आर्यों की भारत आने का सिद्धांत सही साबित करने वाले को दो करोड़ का पुरस्कार
आज भारत आए थे इस मुद्दे पर एक लंबी बहस चल रही है किंतु अभी तक एनसीईआरटी की किताबों से यह सिद्ध हो जाने के बावजूद की आर्य भारत के ही मूल निवासी थे तथा उनका डीएनए पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण समान रूप से मैच करता है ।
   ब्रिटिश कालखंड  में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया कि 1500 वर्ष ईसा पूर्व आर्यों का आगमन हुआ और उन्होंने वेदों की रचना की और उन्होंने भारत के मूलनिवासी लोगों को अपमानित किया उन्हें स्लेवरी करने को मजबूर किया इस तरह से एक अशुद्ध सिद्धांत का प्रतिपादन कर फूट डालने का काम ब्रिटिश सरकार की सहमति के अनुसार हुआ है।
आर्यों के आगमन के संबंध में एक प्रश्न आपके समक्ष भी रखता हूं
[  ] अगर आर्य 3500 वर्ष पूर्व अर्थात ईसा के 1500 वर्ष पूर्व भारत आए थे और उन्होंने संस्कृत में वेदों,संहिताओं, उपनिषदों ब्राह्मण आरण्यकों का लेखन किया।  लेखन का काल हम ईशा के 1500 वर्ष पूर्व निर्धारित कर भी लेते हैं तो उस सरस्वती नदी के संबंध में क्या जवाब होगा जो बताए गए 1500 साल पूर्व के भी 2000 साल पहले विलुप्त हो गई। अर्थात यह एक अशुद्ध एवं तथ्यहीन भ्रामक थ्योरी है। जिसकी पुष्टि अब तक नहीं हुई है परंतु इस आधार पर किताब में लिखी जा चुकी है।
[  ] संविधान सभा के अध्यक्ष डॉक्टर भीमराव अंबेडकर भी इस तथ्य के समर्थक नहीं थे
[  ] आर्यों के भारत आने के सिद्धांत के पीछे जो अवधारणा है उसमें भाषा का समूह बनाकर उसे प्रस्तुत करना सबसे बड़ा षड्यंत्र है। जिसमें दक्षिण भारत की भाषाएं जो अधिक संस्कृतनिष्ठ को द्रविड़ भाषा समूह में रखा गया है जबकि दक्षिण भारतीय भाषाएं संस्कृत के सबसे नजदीकी भाषा है। और इनका विकास भी बड़े पैमाने पर भाषा विज्ञानियों ने संस्कृत के आधार पर ही किया है। उत्तर भारत की भाषा जिस समूह की प्रतिनिधित्व करती हैं अपेक्षाकृत कम संस्कृतनिष्ठ होने के बावजूद भी संस्कृत के बिल्कुल नजदीक रखी गई है।
[  ] उपलब्ध जानकारी के आधार पर यह कहा गया है कि वेदों का रचनाकाल 14500 से 10500 ईसा पूर्व किया गया था। सब सरस्वती नदी अस्तित्व में रही है
[  ] मैक्स मूलर द्वारा इस थ्योरी विकसित करने का उद्देश्य मात्र भाषा नस्ल के आधार पर विभाजन कर एक व्यवस्थित व्यवस्था को दूषित करना था इसके पीछे उनका संप्रदायिक उद्देश्य भी शामिल है
         

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