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बुधवार, जून 02, 2021

नेपाली राजमहल हत्याकांड की बरसी पर विशेष

नेपाल में प्रजातंत्र और राजशाही की उठापटक बरसों से जारी है। इतिहासिक परिपेक्ष में जो जानकारियां पब्लिक डोमेन में मौजूद है उससे स्पष्ट होता है कि नेपाल अप्रत्यक्ष रूप से प्रजातांत्रिक स्वरूप से एक तंत्र वाली शासन प्रणाली की ओर बढ़ रहा है। आज हम उस घटना को याद करेंगे जो 1 जून 2001 में नेपाल में घटित हुई थी। कहानी प्रेम के दुर्दांत अंत की है।
नेपाल की राजशाही का सांकेतिक रूप से अंत 20 जून 2001 एक को ही वास्तविक रूप में हो गया था जब महारानी ऐश्वर्या के प्रिंस द्वारा प्रस्तावित विवाह से असहमत राज परिवार के विरोध के चलते हुआ। जन्म दात्री मां महारानी ऐश्वर्या के विरोध ने जब विरोध किया तब  क्रॉउन प्रिंस आपे से बाहर हो गए। और फिर क्राउन प्रिंस दीपेंद्र ने एक के बाद एक नौ रक्त संबंधियों की हत्या कर दी । यह हत्याकांड अपने पीछे 9 से अधिक चिंतन को जन्म देता है। 
    राजशाही के दौरान नेपाल एकमात्र हिंदू राष्ट्र नेपाल की राजकीय परंपरा अनुसार प्रिंस दीपेंद्र को राष्ट्र का राजा घोषित किया गया।  परंतु दीपेंद्र उस समय ट्रॉमा सेंटर में बेहोशी की हालत में 56 घंटों तक अपनी मौत का इंतजार कर रहा था। इसके बाद उनके छोटे भाई को राजा घोषित किया गया।
 नेपाल का इतिहास प्रजातांत्रिक नहीं रहा किंतु विकिपीडिया में दर्ज विवरण के अनुसार बीसवीं शताब्दी में नेपाल ने अपने राजनीतिक अस्तित्व में परिवर्तन किया विकिपीडिया में दर्ज विवरण कुछ इस तरह है
1940 दशक के उत्तरार्ध में लोकतन्त्र- समर्थित आन्दोलनों का उदय होने लगा व राजनैतिक पार्टियां राणा शासन के विरुद्ध हो गईं। उसी समय चीन ने 1950 में तिब्बत पर कब्ज़ा कर लिया जिसकी वजह से बढ़ती हुई सैनिक गतिविधियों को टालने के लिए भारत नेपाल की स्थायित्व पर चाख बनाने लगा। फलस्वरुप राजा त्रिभुवन को भारत ने समर्थन किया 1951 में सत्ता लेने में सहयोग किया, नई सरकार का निर्माण हो गया, जिसमें ज्यादा आन्दोलनकारी नेपाली कांग्रेस पार्टी के लोगों की सहभागिता थी। राजा व सरकार के बीच वर्षों की शक्ति खींचातानी के पश्चात्, 1959 में राजा महेन्द्र ने लोकतान्त्रिक अभ्यास अन्त किया व "निर्दलीय" पंचायत व्यवस्था लागू करके राज किया। सन् 1989 के "जन आन्दोलन" ने राजतन्त्र को संवैधानिक सुधार करने व बहुदलीय संसद बनाने का वातावरण बन गया सन 1990 में कृष्णप्रसाद भट्टराई अन्तरिम सरकार के प्रधानमन्त्री बन गए, नये संविधान का निर्माण हुआ राजा बीरेन्द्र ने 1990 में नेपाल के इतिहास में दूसरा प्रजातन्त्रिक बहुदलीय संविधान जारी किया  व अन्तरिम सरकार ने संसद के लिए प्रजातान्त्रिक चुनाव करवाए। नेपाली कांग्रेस ने राष्ट्र के दूसरे प्रजातन्त्रिक चुनाव में बहुमत प्राप्त किया व गिरिजा प्रसाद कोइराला प्रधानमन्त्री बने।
इक्कीसवीं सदी के आरम्भ से नेपाल में माओवादियों का आन्दोलन तेज होता गया। मधेशियों के मुद्दे पर भी आन्दोलन हुए। अन्त में सन् 2008 में राजा ज्ञानेन्द्र ने प्रजातान्त्रिक निर्वाचन करवाए जिसमें माओवादियों को बहुमत मिला और प्रचण्ड नेपाल के प्रधानमन्त्री बने और नेपाली कांग्रेस नेता रामबरन यादव ने राष्ट्रपति का कार्यभार संभाला। वर्तमान में एकीकृत कम्युनिस्ट पार्टियों के प्रमुखों के बीच संघर्ष चल रहा है और ज्ञात हुआ है कि केपी ओली फिर से प्रधानमंत्री के रूप में नेपाली सत्ता पर काबिज है।
नेपाल की प्रजातांत्रिक व्यवस्था पर लेखक की टिप्पणी :- 
     वर्तमान परिस्थितियों में नेपाल की स्थिति प्रो चाइना होने के कारण बहुत अधिक मजबूत नहीं कही जा सकती। परंतु ऐसा नहीं है कि वर्तमान में नेपाल की जनता वापिस राजशाही की मांग ना कर रही हो। राजनीति का एक चक्र होता है इस चक्र में अक्सर प्रजातंत्र राजशाही की ओर जाता है और राजशाही वापस प्रजातंत्र की ओर । लेकिन  भारतीय व्यवस्था में राजतंत्र या राजशाही केवल एक प्रशासनिक व्यवस्था का मुख्य केंद्र है। अगर भारत में राजशाही का दौर वापस आता है तो भी प्रजातांत्रिक मूल्यों का भविष्य के परिवर्तन में ध्यान रखा जाना स्वभाविक है। यह सुविधा माओवाद में उपलब्ध नहीं है। भारतीय इतिहास को देखें तो प्राचीन इतिहास महाभारत कालीन इतिहास से ही शुरु करते हैं प्रजातांत्रिक मूल्यों का संरक्षण राजशाही में भी हमेशा रहा है। आयातित विचारधारा मेरी सुविचार से सहमत नहीं होगी क्योंकि उनका अध्ययन कम है। वे भारतीय socio-political- philosophy से अनभिज्ञ हैं। नेपाल को हम भारत से सोशियोकल्चरल तौर पर अलग नहीं मानते। यह सामाजिक चिंतन है हमारा संस्कृति एवं रक्त संबंध इस राष्ट्र से अपेक्षाकृत अधिक सुदृढ़ और ऐतिहासिक है। परंतु पिछले दशक में नेपाल में जिस तरह से आयातित विचारधारा ने सत्ता में प्रवेश पाया है वह नेपाल को लोकतंत्र से एक तंत्र की व्यवस्था की ओर ले जाने का संकेत दे रहा है। अधिकांश कम्युनिस्ट देशों में राष्ट्राधक्ष एक लंबी पारी खेलने के आदी हैं। जबकि भारत में ऐसा नहीं है भारतीय प्राचीन इतिहास प्रजातांत्रिक मूल्यों का संरक्षण करता रहा बावजूद इसके कि- राजतंत्र द्वारा प्रशासनिक व्यवस्थाएं संचालित होती रही। जबकि वामपंथी व्यवस्था एक लंबे समय तक किसी को भी प्रधानमंत्री या राष्ट्र अध्यक्ष बने रहने की अनुमति प्रदान करती है। जैसा कि पिछले एक दशक में नेपाल में नजर आ रहा है। वह दिन दूर नहीं यदि नेपाल में वास्तविक प्रजातंत्र जिसे भारतीय प्रजातंत्र कहा जाता है के मॉडल को एडिट नहीं किया गया तो चीनी नैरेटिव इस बात को सिद्ध भी कर सकता है। यह मेरा अपना ओपिनियन है भविष्य में क्या होगा इस संबंध में मुझे बहुत अधिक नहीं कहना। परंतु इस सिद्धांत को आप अवश्य मानेंगे की दीर्घ काल में प्रजातंत्र का विकल्प एक तंत्र या राजशाही होता है और राजशाही का विकल्प प्रजातंत्र होता है यह एक चक्र है धीरे धीरे बदलने वाला चक्र है।
     भारतीय लोकतंत्र अपने आप में बेहद प्रभावशाली एवं परिपक्व उत्तम माना जा सकता है जबकि यहां का एक-एक मतदाता किसी भी लुभावने वातावरण से आकर्षित ना हो। क्योंकि वातावरण  लूभावना हो सकता है लेकिन सत्य तो वही होता है जो कि नजर आता है पुण्य

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