दूर तक निगाहैं जमा जमा के लोगों नपुंसक-भीड़ में एकाध जिगरे वाले को ... जो दिखता नहीं हैं.. अपने हरामखोर बास को बाहर से गरियाते और सामने एक पुचकार की बाट जोहते मुंह से ऊं कूं कूं .. आवाज़ निकालते लोग !! मज़बूरी हैं.. हरवक़्त वफ़ादारी की गवाही पेश करना उनके लिये ज़रूरी है..!! कुत्ते की तरह वफ़ादारी चाहते है मालिक.. ज़रूर वफ़ादार रहो पर ऐसा न हो कि कुत्ते के कुछ और दुर्गुण आ जाएं तुम में .. आचार-विचार और आहार से कुत्ता न बनना मेरे दोस्त !! Ø गिरीश बिल्लोरे “मुकुल” |
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बुधवार, सितंबर 07, 2011
एक पुचकार की बाट जोहते मुंह से ऊं कूं कूं .. आवाज़ निकालते लोग !!
मंगलवार, सितंबर 06, 2011
ऐसी वाणी बोलिए...
प्रस्तुत है राकेश कुमार जी के ब्लॉग मनसा वाचा कर्मणा से एक पोस्ट
सुर और असुर समाज में हमेशा से ही होते आयें हैं. सुर वे जन हैं जो अपने विचारों ,भावों
और कर्मो के माध्यम से खुद अपने में व समाज में सुर ,संगीत और हार्मोनी लाकर
आनन्द और शांति की स्थापना करने की कोशिश में लगे रहते हैं. जबकि असुर वे हैं
जो इसके विपरीत, सुर और संगीत के बजाय अपने विचारों ,भावों और कर्मो के द्वारा
अप्रिय शोर उत्पन्न करते रहते हैं और समाज में अशांति फैलाने में कोई कोर कसर
नहीं छोड़ते. इसका मुख्य कारण तो यह ही समझ में आता है कि सुर जहाँ ज्ञान का
अनुसरण कर जीवन में 'श्रेय मार्ग' को अपनाना अपना ध्येय बनाते हैं वहीँ असुर अज्ञान
के कारण 'प्रेय मार्ग' पर ही अग्रसर रहना पसंद करते हैं और जीवन के अमूल्य वरदान को भी
निष्फल कर देते हैं.
'प्रेय मार्ग' तब तक जरूर अच्छा लगेगा जब तक यह हमें भटकन ,उलझन ,टूटन व अनबन
आदि नहीं प्रदान कर देता. जब मन विषाद से अत्यंत ग्रस्त हो जाता है तभी हम कुछ
सोचने और समझने को मजबूर होते हैं. यदि हमारा सौभाग्य हो तो ऐसे में ही संत समाज
और सदग्रंथ हमे प्रेरणा प्रदान कर उचित मार्गदर्शन करते हैं.
वास्तव में तो चिर स्थाई चेतन आनन्द की खोज में हम सभी लगे हैं. जिसे शास्त्रों में
ईश्वर के नाम से पुकारा गया है. ईश्वर के बारें में हमारे शास्त्र बहुत स्पष्ट हैं.
यह कोई ऐसा .काल्पनिक विचार नहीं कि जिसको पाया न जा सके. इसके लिए
आईये भगवद गीता अध्याय १० श्लोक ३२ (विभूति योग) में ईश्वर के बारे में दिए गए
निम्न शब्दों पर विचार करते हैं .
सोमवार, सितंबर 05, 2011
योग्य शिष्य ही गुरु की सबसे बड़ी दौलत - वित्त मंत्री राघव जी, गुरुजनों के सम्मान में सदैव नतमस्तक रहूँगा - सहकारिता मंत्री श्री बिसेन
शिक्षक दिवस के अवसर पर आज बालाघाट में ऐतिहासिक शिक्षक सम्मान समारोह में एक हजार शिक्षकों का सम्मान किया गया। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री श्री गौरी शंकर बिसेन ने गुरुजनों की वंदना करते हुए उनकी चरण-रज माथे पर लगाकर विद्यार्थियों के सामने उदाहरण पेश किया। प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा राष्ट्रपति पदक से अलंकृत स्वर्गीय श्री श्यामबिहारी वर्मा की स्मृति में आयोजित गुरूजन सम्मान एवं चरण-पूजन समारोह के मुख्य अतिथि वित्त मंत्री राघवजी ने गुरुजनों के सम्मान समारोह को ऐतिहासिक बताया। उन्होंने कहा कि गुरूजनों को उनके योग्य शिष्य मंत्री श्री गौरीशंकर बिसेन द्वारा दिया गया यह सम्मान अविस्मरणीय रहेगा। श्री राघवजी ने कहा कि योग्य शिष्य ही गुरू की महिमा एवं सम्मान को बढ़ाता है। गुरू वशिष्ठ का सम्मान राम-लक्ष्मण ने बढ़ाया था। इसी तरह गुरू सांदीपनि-श्रीकृष्ण, समर्थ गुरू रामदास-शिवाजी और गुरू चाणक्य के शिष्य चन्द्रगुप्त की कीर्ति से कौन परिचित नहीं है। मंत्री श्री राघवजी ने कहा कि मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में राज्य सरकार ने विगत साढ़े सात वर्षों में शासन के सीमित साधनों के बावजूद गुरूजनों को भरपूर सम्मान दिया है। उन्होंने कहा कि भविष्य में भी सरकार गुरूजनों की समस्याओं के निराकरण में पीछे नहीं रहेगी। श्री राघवजी ने बताया कि उन्होंने भी दो वर्ष तक अध्यापन कार्य किया है। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री श्री गौरीशंकर बिसेन ने कहा कि आज मैं जो कुछ भी हूँ वह गुरूजनों द्वारा दिये गये संस्कार, ज्ञान और कृपा की बदौलत हूँ। मंत्री श्री बिसेन ने कहा कि अगले वर्ष भी शिक्षक दिवस के अवसर पर गुरूजनों के सम्मान में भव्य एवं गरिमामय समारोह का आयोजन किया जायेगा। प्रारंभ में मंत्री श्री बिसेन और श्रीमती रेखा बिसेन ने गुरुजनों का चरण पखार, चरण रज को माथे पर लगाकर, तिलक लगाकर, पगड़ी पहना कर, शाल, श्रीफल और मिष्ठान्न भेंट कर सम्मान किया। समारोह में गुरुजन ने मंत्री श्री बिसेन के बचपन के संस्मरण सुनाये। मंत्री श्री बिसेन ने भी स्वर्गीय पं. श्यामबिहारी वर्मा के कड़े अनुशासन तथा शिक्षा के प्रति उनके समर्पित व्यक्तित्व का स्मरण किया। उन्होंने स्वर्गीय वर्मा के पुत्र धीरेन्द्र वर्मा एवं परिजनों को सम्मानित किया। मंत्री द्वय ने समारोह की स्मारिका का भी विमोचन किया। समारोह में छिंदवाड़ा जिले के निवासी अमर शहीद अमित ठेंगे के माता-पिता का भी सम्मान हुआ। |
दुर्गेश रायकवार |
रविवार, सितंबर 04, 2011
जनता खुद भ्रष्टाचार पनपाने के जतन में लगी हुई है
दरअसल जब से दुनिया बनीं है तब से दुनियां भर की समस्याएं भी बन गईं. समस्या है तो उनका ठीकरा किसके सर फ़ोड़ा जाए यह “खोज” दुनियां को नित-नये काम सुझाती है. अब भ्रष्टाचार को ही लीजिये यह आचरण कहां से शुरु हुआ इस पर विद्वान एक राय हो ही नहीं सकते. कोई कहता है कि ईव ने चाकू न होने की वज़ह से उस फ़ल का बिना काटे स्वाद चखा जिसमें विशेष प्रकार के कीड़े थे जो वे देख न सकीं. कुछ का मानना है कि भगवान की भूल की वज़ह से यह भाववाचक संग्या तेज़ी से हार्ट-टू-हार्ट हैल गई. लेकिन वर्तमान समय में इसे अन्ना के पीछे खड़ी हम भारतीयों की जमात ने नेताओं एवम कर्मचारियों के माथे पे दे मारा. बावज़ूद इसके कि बिना दिये कुछ मिलता नहीं का अनुपालन करती जनता खुद भ्रष्टाचार पनपाने के जतन में लगी हुई है. शादी के लिये लड़के का सौदा करना, खम्बों से बिजली चुराना, अपने फ़ायदे के लिये येन केन प्रकारेण किसी की भी दीवार पोत देना. दूसरों के भ्रष्टाचार को बुरा खुद के किये भ्रष्टाचरण को अच्छा बताने वाले लोग उस समय सब कुछ भूल जातें हैं जब अपनी “बकत” बनाने के लिये इन सभी आचरणों का सहारा लेते हैं. एक व्यक्ति बेचारा समझता है कि दुनियां में जिसे कोई कष्ट होता है उसका कारण उस व्यक्ति का पाप करना है.. एक बारउस व्यक्ति के मित्र किसी षड़यंत्र का शिकार बनाया गया तो वह व्यक्ति मित्र का उल्लेख कर कर के अपने नैतिकता मय यशस्वी जीवन गाथा का यश गान कर रहा था .. मित्र को उसके कार्यों की सतत रिपोर्ट मिल रही थी.मित्र भी वैराग्य भाव से उसे देखता रहा कभी उसका प्रतिकार नहीं किया करता भी क्यों उसे मालूम था कि :-“सलीब पर ईसा का टांगा जाना, राम का चौदह बरस के लिये वनवास भोगना उनके पाप का का परिणाम नहीं था ”
लोकपाल या जन लोकपाल बिल पास होगा इससे इस देश में कोई खास फ़र्क नहीं पड़ने जा रहा है. मारा सबसे कमज़ोर ही जाएगा जो उसकी नियति है.
है न सच्ची और खरी बात. हां,अन्ना ने जो करवाया उससे एक बात अवश्य सामने आई कि लोग भ्रष्टाचार से आज़िज़ आ चुके हैं. पर आत्म चिंतन कितने कर रहे हैं इस बात पर गौर करना ज़रूरी है.
यह परामर्श सभी के लिये है कि हमें भ्रष्टाचरण के प्रति घ्रणा होनी और हम आत्म-चिंतन भी करें साथ साथ
यह परामर्श सभी के लिये है कि हमें भ्रष्टाचरण के प्रति घ्रणा होनी और हम आत्म-चिंतन भी करें साथ साथ
शुक्रवार, सितंबर 02, 2011
मध्य-प्रदेश बाल आयोग:श्रीमति रीना गुज़राल
"मध्य-प्रदेश बाल आयोग :एक परिचय"
प्रस्तुति: श्रीमति रीना गुज़राल,सदस्य, बाल आयोग
विश्व में सर्वाधिक बच्चों की संख्या भारत वर्ष में है और उनके कल्याण हित संरक्षण और सवंर्धन एवं विकास के लिए संविधान के अनुच्छेद 39 (ङ) तथा (च) अधिकारों का सुनिश्चय किया गया है। संविधान संशोधन अधिनियम 2002 के द्वारा अनुच्छेद 21 (क) जोडकर भारत का संविधान बच्चों के शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार के रुप में प्रस्तुत करता है। इसी तरह अनुच्छेद 51 (क) में एक प्रावधान जोडा गया है जिसमें नैर्सगिक पालकों को बच्चों को शिक्षा दिलाने के कर्त्तव्य के बारे में सचेत करता है। अनुच्छेद 45 में 06 वर्ष तक की आयु पूर्ण करने तक बाल्यावस्था में बच्चों की देखरेख एवं शिक्षा देने के उपबंध को सम्मिलित किया गया हैं । भारतीय संविधान का अनुच्छेद 24 कारखानों ,खदानों में जोखिम भरे कार्यों से 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को अलग रखने का निर्देश देता है।इतना ही नहीं इसी क्रम में संयुक्त राष्ट्र संघ की सामान्य सभा 20 नवंबर 1989 के अंतरराष्ट्रीय अनुबंध में बाल अधिकारों के प्रति भारत ने अपनी प्रतिबद्धता दषिष्त की है। बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम 2005 (2006 के 4) के तहत बच्चों के अधिकारों के संरक्षण ,सुरक्षा ,प्रोत्साहन एवं विकास के लिए राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग मार्च 2007 में एक वैधानिक निकाय के रुप में स्थापित किया गया। मध्यप्रदेष में भी बाल अधिकार संरक्षण आयोग का गठन किया जाकर जस्टिस शीला खन्ना ने आयोग के अध्यक्ष का कार्यभार 1 फरवरी 2010 को संभाला। इस अधिनियम में 18 वर्ष से कम आयु के मानव के बच्चों की परिभाषा में रखा गया है।
20 नवंबर 1989 संयुक्त राष्ट्र की संधि में बच्चों के अधिकारों से संबंधित मापदण्ड एवं प्रावधान 30 बिन्दुओं में व्यापक रुप से दर्शित हैं। जिसकस संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है:-
माता पिता ,वैध संरक्षक के सामाजिक / आर्थिक स्तर, राष्ट्रीयता ,वर्ण ,जाति लिंग ,भाषा ,धर्म, राजनीतिक विचारधारा के आधार कोई भेदभाव नहीं होगा। बच्चों के हितों के संदर्भ में संस्थागत ,सार्वजनिक एवं व्यैक्तिक कार्यों एवं िक्रयाकलापों को प्राथमिकता। प्रत्येक बच्चे को उत्तम जीवन जीने का एवं विकास जन्मजाति अधिकार है। बच्चों की मानसिक एवं शारीरिक सुरक्षा कर संपूर्ण विकास भी इसमें शामिल है। बच्चे को अपने नाम पहचान प्राप्त करने का अधिकार आराम विश्राम मनोरंजन ,शारीरिक ,मानसिक आत्मिक नैतिक विकास ,दैनंदिन जीवन स्वतंत्रता से जीने का अधिकार । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वैचारिक एवं धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को भी संधि में उल्लेखित किया है।
परिस्थिति वश कुछ बच्चे प्राकृतिक (नैसर्गिक) अभिभावकों से वंचित होते हैं तो सरकार से विशेष संरक्षण एवं सहायता प्राप्त करने का अधिकार सुनिष्चित किया गया है। नैसर्गिक अभिभावक अर्थात् माता पिता , तथा वैधानिक संरक्षक के कर्त्तव्यों को रेखांकित किया गया है। संधि पर हस्ताक्षर करने वाले राष्ट्रों को यह भी सुनिष्चित करना होगा कि बच्चों के शारीरिक मानसिक शोशण उपेक्षापूर्ण व्यवहार ,तथा यौनिक शोषण से बचाने के लिए समुचित व्यवस्थाऐं की जावें। विशेष श्रेणी के बच्चों जो मानसिक शारीरिक रुप से विकलांग हैं को मुफत चिकित्सा सुविधा शिक्षण एवं जीन यापन करने में मदद दी जावेगी।
अनुबंधित राष्ट्र बच्चों को बीमारियों की रोकथाम तथा जन्म लेने एंव जीने के अधिकार को भी सुनिष्चित करेंगे। संधि में यह भी निष्चित किया गया है कि संधि पर हस्ताक्षर करने वाले राष्ट्र कानूनी एवं प्रशासनिक तौर पर एसे प्रावधान करेंगे। जिससे न तो बच्चे की गर्भ में मृत्यु हो न ही जन्म लेने के दौरान।
बच्चों की खरीद फरोख्त ,मादक द्रव्यों के व्यापार ,उपयोग एवं व्यवसाय से दूर रखने के लिए अनुबंधित राष्ट्रों को कानून बनाना अनिवार्य होगा। कोई भी बच्चा एसी किसी संस्था में भरती किया जावे न ही रखा जावे ,जहां हिसात्मक कार्यवाही की जाती है।
अपराधी अथवा दंडनीय कानूनों के उलल्घन के आरेापी बच्चों के सामाजिक स्थापना के लिए ,तथा उन्हें आदर्ष नागरिक के रुप में विकसित करने के लिए प्रयास करने के लिए अनुबंधकर्ता राष्ट्र उत्तरदायी होंगे।
उपरोक्त अंतरराष्ट्रीय संधि पत्र के प्रकाश में भारत में एकीकृत बाल सरंक्षण योजना की व्यवस्था सुनिष्चित की गई है। म.प्र.सरकार ने बाल अधिकार सरंक्षण आयोग अधिनियम 2005 की धारा 13 (1) में आयोग के ढांचे ,कार्यकलापों ,कर्त्तव्यों को विस्तार से उल्लेखित किया है। म.प्र.में गठित बाल संरक्षण आयोग बच्चों के लिए सुनिष्चित अधिकारों को पालन कराने , समस्याग्रस्त बच्चों के अधिकारों के संरक्षण की दिशा में सक्रिय होगा। जिसमें राज्य सरकारों के अतंर्गत आने वाले शासकीय संस्थानों , एजेंसियों ,विद्यालयों ,सुधार गृहों ,बच्चों के संरक्षण एवं विकास के लिए कार्यरत् शासकीय विभागों के कार्यकलापों पर निगाह रख सकेगा।
एक संवैधानिक संस्था के रुप में बाल अधिकारों के किसी भी स्तर पर हुए उल्लंघन के परिपेक्ष्य में प्राप्त शिकायतों , सूचनाओं पर कार्यवाही कर सकेगा। आयेाग स्वप्रेरणा से भी अधिकारों के वंचन एवं उल्लंघन के मामलों को संज्ञान में ले सकेगा। म.प्र में बाल संरक्षण आयोग 2007 का नियम 10 बाल अधिकारों के प्रति अपने प्रस्ताव ,जांच रिपोर्ट ,अनुसंधान ,अघ्ययन ,रिर्पोटस के रुप में दे सकेगा।
शक्तियां
आयोग को दीवानी प्रक्रिया संहिता 1908 के नियम 5 के तहत दीवानी न्यायालय की शक्तियों प्राप्त हैं -
1. किसी भी व्यक्ति को बुलाना ,उसकी उपस्थिति को बाध्य करना तथा उसकी जांच करना ।
2. दस्तावेजों को खोजना एंव प्रस्तुत करना।
3. शपाथ पत्र के तहत साक्ष्य लेना
4. किसी भी कार्यालय एवं न्यायालय से सार्वजनिक अभिलेख की प्रति मंगाना
5. गवाहो या दस्तावेजों की जांच हेतु आज्ञा पत्र जारी करना।
6. क्षेत्राधिकार रखने वाले मजिस्ट्रेट को किसी प्रकरण को सुनवाई हेतु भेजना।
7. जांच की समाप्ति के उपरांत कार्यवाही
1. बाल अधिकारों अथवा तत्समय विधि प्रवृत्त विधि के उल्लंघन होने पर अभियोग चलाने की अनुशंसा
2. सर्वोच्च न्यायालय/उच्च न्यायालय को उन निर्देशों आदेशों या आदेश पत्रों के लिए प्रार्थना करना जिन्हे ंकोर्ट आवश्यक समझे।
3. सरकार या अन्य प्राधिकारण को पीडित या उसके परिवारजनों को मध्यकालीन सहायता की ,जैसे की उचित हो ,प्रतिपादन के लिए अनुशंसा करना।
प्रक्रिया -
परिवादों के निपटाने की प्रक्रिया के अंतर्गत समस्त परिवादों जो किसी भी प्रकार से प्राप्त हों को पंजीकृत करते हुए उन्हें एक क्रम दिया जावेगा तथा आगामी दो सप्ताह के भीतर सामान्य रुप से दो सदस्सीय न्यायपीठ में प्रकरण की स्वीकृति की जावेगी। परिवाद निपटाने में किसी भी तरह कोई शुल्क नहीं होगा। आयेाग स्वविवेक से तार ईमेल ,फैक्स के माध्यम से भेजी गई शिकायतो को स्वीकृति हेतु विचारार्थ रख सकेगा।
बुधवार, अगस्त 31, 2011
स्व.श्री हरिशंकर परसाई का एक व्यंग्य: " अपनी-अपनी हैसियत "
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परसाई जी का दुर्लभ छाया चित्र फ़ोटो : स्व०शशिन यादव |
हरिशंकर परसाई (२२ अगस्त, १९२२ - १० अगस्त, १९९५) हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और व्यंग्यकार थे। उनका जन्म जमानी, होशंगाबाद, मध्य प्रदेश में हुआ था। वे हिंदी के पहले रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के–फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा। उनकी व्यंग्य रचनाएँ हमारे मन में गुदगुदी ही पैदा नहीं करतीं बल्कि हमें उन सामाजिक वास्तविकताओं के आमने–सामने खड़ा करती है, जिनसे किसी भी व्यक्ति का अलग रह पाना लगभग असंभव है। लगातार खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनॅतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मन की सच्चाइयों को उन्होंने बहुत ही निकटता से पकड़ा है। सामाजिक पाखंड और रूढ़िवादी जीवन–मूल्यों की खिल्ली उड़ाते हुए उन्होंने सदैव विवेक और विज्ञान–सम्मत दृष्टि को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी भाषा–शैली में खास किस्म का अपनापा है, जिससे पाठक यह महसूस करता है कि लेखक उसके सामने ही बैठा है। (साभार विकी)
परसाई जी की रचनावलियों को टेक्स्ट में आपने देखा किंतु ब्लाग की सहस्वामिनी एवम पाडकास्टर अर्चना चावजी नें इसका पाडकास्ट तैयार कर प्रस्तुत किया है.मित्रो परसाई जी के शहर जबलपुर में उनकी अनुमति के बगै़र उनकी सेव की गई पोस्ट में टेक्स्ट-कंटैंट्स डाल रहा हूं.. आशा है वे नाराज़ न होंगी..
इसे सुनिये ब्लागप्रहरी पर भी "इधर" अर्चना जी की आवाज़ में
कुछ व्यंग्य परसाई जी के जो हम इधर से लाएं हैं परसाई जी की चुनिंदा व्यंग्य रचनाएं
मंगलवार, अगस्त 30, 2011
30.08.2011 : और टोपी पहना ही दी अन्ना जी ने
ज़ीरो से हीरो तक सबके दिमाग में अन्ना इस क़दर हावी हैं कि कुछ लोग इस स्थिति को मास हिस्टीरिया कहने से परहेज़ नहीं कर रहें हैं. सबका अपना नज़रिया है आप और हम समय का इंतज़ार करते हैं . बहरहाल अभी तो एक चर्चा गर्म है "अन्ना की टोपी " अन्ना जी ने जिस दबंग तरीके से टोपियां पहनाईं है उसे देख कर दुनियां भर के सियासत दां सकते में आ गये. एक सज्जन के बाल काटते हुए हज़्ज़ाम साब बोले :”अमां, इस बार आपके बडे़ नर्म हैं..?
सज्जन बोले :-मियां,हम ने अन्ना को पहचाना और स्वेच्छा से पहन ली सो हमारे सो बाल नर्म हुए हैं, उनके पूछो जिनके अन्ना ने जबरन पहनाई है जुबानें तक नर्म हो गईं.
यानी अन्ना ने सबको पहना दी..?
"हओ, मियां कुछ ने स्वेच्छा से कुछ ने जबरिया "
अन्ना आंदोलन के शुरु होने पर एक सज्जन टोपी वाले की दूकान पे पहुंचे बोले..टोपी मिलेगी.
गांधी टोपी ?
न अन्ना टोपी ?
जे टोपी में क्या फ़रक है बाबू ?
फ़रक है .. भाई गांधी की टोपी में कुछ लिखा पढ़ी नाय थी, अन्ना टोपी में "मैं अन्ना हूं" लिखा होए है भाई..
न, वो तो मेरे कने नहीं..
रात घर पहुंचा तो उसने बीवी को वाक़या बताया:"सुन फ़ूला, आज़ एक ग्राहक अन्ना टोपी मांग रिया था "
"तुम भी कुएं के मैंढक हो , अरे टी वी देखो सब जान जाओगे .. "
राम लीला मैदान में "मैं अन्ना हूं" लिखी टोपियां ही टोपियां नज़र आई. बस फ़िर क्या था.. टोपी-वाले नें झट अन्ना-टोपी का आर्डर दे मारा . अगली दोपहर तक दूकान पे अन्ना टोपी उपलब्ध है का बोर्ड तक टंग गया.
टोपी की कीमत मुंह मांगी हो गई किसी को चालीस की तो किसी साठ की दर से टोपी थमाता दूकानदार नें लछ्मी-गनेश के पहले "अन्ना-केजरीवाल-किरन" वाले पोस्टर के समक्ष अगरबत्ती जलाना शुरु कर दिया.
अन्ना की कृपा से भाई की दूकान पर अब सम्पूर्ण अन्ना-सामग्री उपलब्ध होने का बोर्ड नज़र आने लगा है.
मेरे मित्र सलिल समाधिया चेला वह दुकानदार सलिल जी से मिला चरण स्पर्श किये और बोला "गुरु, अगला आंदोलन कब करवा रहें हैं अन्ना..?"
क्यों..?
गुरु टोपी झण्डे बच गये हैं.. कुछ टी शर्ट भी.. गनीमत कि मैं टी शर्ट कम लाया था..
वात्सल्य भरी निगाह से शिष्य की ओर अपलक निहारते समाधिया जी दार्शनिक भाव से बोल पड़े:-"प्रिय, किसी का नुकसान नहीं किया अन्ना जी ने.. तुम्हारा कैसे होगा.. वत्स प्रतीक्षा करो..?"
सज्जन बोले :-मियां,हम ने अन्ना को पहचाना और स्वेच्छा से पहन ली सो हमारे सो बाल नर्म हुए हैं, उनके पूछो जिनके अन्ना ने जबरन पहनाई है जुबानें तक नर्म हो गईं.
यानी अन्ना ने सबको पहना दी..?
"हओ, मियां कुछ ने स्वेच्छा से कुछ ने जबरिया "
अन्ना आंदोलन के शुरु होने पर एक सज्जन टोपी वाले की दूकान पे पहुंचे बोले..टोपी मिलेगी.
गांधी टोपी ?
न अन्ना टोपी ?
फ़रक है .. भाई गांधी की टोपी में कुछ लिखा पढ़ी नाय थी, अन्ना टोपी में "मैं अन्ना हूं" लिखा होए है भाई..
न, वो तो मेरे कने नहीं..
रात घर पहुंचा तो उसने बीवी को वाक़या बताया:"सुन फ़ूला, आज़ एक ग्राहक अन्ना टोपी मांग रिया था "
"तुम भी कुएं के मैंढक हो , अरे टी वी देखो सब जान जाओगे .. "
राम लीला मैदान में "मैं अन्ना हूं" लिखी टोपियां ही टोपियां नज़र आई. बस फ़िर क्या था.. टोपी-वाले नें झट अन्ना-टोपी का आर्डर दे मारा . अगली दोपहर तक दूकान पे अन्ना टोपी उपलब्ध है का बोर्ड तक टंग गया.
टोपी की कीमत मुंह मांगी हो गई किसी को चालीस की तो किसी साठ की दर से टोपी थमाता दूकानदार नें लछ्मी-गनेश के पहले "अन्ना-केजरीवाल-किरन" वाले पोस्टर के समक्ष अगरबत्ती जलाना शुरु कर दिया.
अन्ना की कृपा से भाई की दूकान पर अब सम्पूर्ण अन्ना-सामग्री उपलब्ध होने का बोर्ड नज़र आने लगा है.
मेरे मित्र सलिल समाधिया चेला वह दुकानदार सलिल जी से मिला चरण स्पर्श किये और बोला "गुरु, अगला आंदोलन कब करवा रहें हैं अन्ना..?"
क्यों..?
गुरु टोपी झण्डे बच गये हैं.. कुछ टी शर्ट भी.. गनीमत कि मैं टी शर्ट कम लाया था..
वात्सल्य भरी निगाह से शिष्य की ओर अपलक निहारते समाधिया जी दार्शनिक भाव से बोल पड़े:-"प्रिय, किसी का नुकसान नहीं किया अन्ना जी ने.. तुम्हारा कैसे होगा.. वत्स प्रतीक्षा करो..?"
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