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रविवार, अगस्त 16, 2009

मांगो तो हजूर दिल और जाँ सब कुछ तुमको दे दूंगीं



वो दूर से देख मुस्कुराती शोख चंचल नयनो वाली सुकन्या मुझे भा गई ऊपर की जितनी भी तारिकाएँ हैं उनका हुस्न फीका पड़ गया उसके सामने।
मैंने पूछा - मुझे ,कुछ देर का वक्त मिलेगा
क्यों नहीं ! ज़रूर मिलेगा ।
उत्तर में थी मादक खनक ...एक-एक काफी का आफ़र उसमें भी सहज स्वीकृति मैंने फ़िर कहा -आज मेरी छुट्टी है जबलपुर के पास भेडाघाट है चलो घूम आते हैं उसमें भी सहमत लगा आज लाटरी लग गई वीरानी जीवन बगिया में प्रेमांकुर फूट पड़ा .... सोचा आज पहले दिन इतनी समझदार ओर मुझे सहज स्वीकारने वाली अनुगामिनि मिल गई अब जीवन का रास्ता सहज़ ही कट जाएगा।
बातों ही बातों में मैंने कहा: तुम मुझे कुछ देने का वादा कर सकोगी ?
वादा क्या दे दूंगीं जो कहोगे
दिल,
हां ज़रूर
मोहब्बत
ऑफ़ कोर्स
वफ़ा
क्यों नहीं ?
और कभी जब मुझे वक्त की ज़रूरत हो तो
ज़नाब ये सब कुछ अभी के अभी या फ़िर कभी ?
सोच के बताता हूँ कुछ दिन बाद कह दूंगा
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घर में माँ के ज़रिये पापा तक ख़बर की मुझे ".......'' से प्यार हो गया है । अब चाहता हूँ कि मैं शादी भी उसी से करुँ ! घर से इजाज़त मिलते ही मैंने फोन डायल किया....98........... लेटेस्ट रूमानी गीत न होकर "एक मीरा का भजन हे री मैं तो प्रेम दीवानी मेरा....''सुन कर लगा आग उधर भी तेज़ है इश्क की जैसी इधर धधक रही है ।
बातों ही बातों में मैंने उससे वो सब दिल,मोहब्बत, वफ़ा और वक्त की मांग कीउसने कहा शाम को तुम्हारे घर रहीं हूँये सब साथ ले आउंगी
शाम को पापा,माँ,दीदी अपनी होने वाली बहू का इंतज़ार कर रहे थे। मेरे मन में भी चाकलेट के रूमानी विज्ञापन वाले प्यार का जायका ज़ोर मार रहा था। एक खूबसूरत नाज़नीन का घर में आना मेरे लिए दिल,मोहब्बत, वफ़ा और वक्त साथ लाना मेरी उपलब्धि थी ।
सभी सभी उससे बारी बारी बात कर रहे थे अन्त में मुझे मौका मिला . मैने पूछा "वो सब जो मैने कहा था "
"हां लाई हूं न"
सुनहरी पर्स खोल कर उसने मेरे हाथों रख दीं - दिल,मोहब्बत,वफ़ा और वक्त की सीडीयां और पूछने लगी : पुरानी फ़िल्मों के शौकीन लगतें हैं आप . ?
"हां"
अब मुझे फ़िल्म ज़हर और ज़ख्म की सी डी ज़रूर ला देना .
ज़रूर ला दूंगी.... पर एक हफ़्ते बाद कल मेरी एन्गेज़्मेंट है. एन्गेज़्मेंट के बाद हम दौनो हफ़्ते भर साथ रहेंगे एक दूसरे को समझ तो लें .

ब्लागर्स जो सेलिब्रिटीज़ हैं


शुक्रवार, अगस्त 14, 2009

जबलपुर रत्न एक नई परंपरा


यूँ भेजा था न्योता
अपने जबलपुर को


विश्वास की परंपरा को कायम रखने का संकल्प लिए नई दुनिया">नई दुनिया ने जब रत्नों की तलाश शुरू की थी तो लगा था कि शायद व्यावसायिक प्रतिष्ठान द्वारा की गई कोई शुरुआत जैसी बात होगी ? किंतु जब जूरी ने रत्नों को जनमत के लिए सामने रखा तो लगा नहीं कुछ नया है जिसे सराहा जावेगा आगे चल कर , हुआ भी वही आज मैं जितने लोगों से मिला सबने कहा :"वाह ऐसी व्यक्ति-पूजा विहीन मूल्यांकन की परम्परा ही है विश्वास की परंपरा ओर सम्मानित हुए विशेष सम्मान शिक्षा क्षेत्र : एसपी कोष्टा उद्योग क्षेत्र : सिद्धार्थ पटेल चिकित्सा क्षेत्र : डॉ. सतीश पांडे न्याय क्षेत्र : अधिवक्ता आरएन सिंह पर्यावरण क्षेत्र : योगेश गनोरे
छा गए मंत्री जी भा गए बल्लू
करीब पांच घंटे तक चले आयोजन के दौरान लोगों का मनोरंजन करने के लिए प्रख्यात बाँसुरी वादक बलजिंदर सिंह बल्लू, पॉलीडोर आर्केस्टा के कलाकारों सहित प्रियंका श्रीवास्तव, प्रसन्न श्रीवास्तव, श्रेया तिवारी ने शानदार रचनाएं पेश कर लोगों को मुग्ध कर दिया।बलजिंदर सिंह ने जब बांसुरी से "तू ही रे" और "पंख होते तो उ़ड़ जाती रे" की तान छे़ड़ी तो मेरे मन को किसी भी तरह की बाहरी हलचल बर्दाश्त नहीं हो रही उद्योगमंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने साबित कर दिया कि वे वास्तव में एक स्थापित कलाकार हैं । मंत्रीजी ने देशभक्ति गीत "कर चले हम फिदा जानो तन साथियों" "छोटी-छोटी गैया, छोटे-छोटे ग्वाल" पेश किया। प्रियंका के गीत "बलमा खुली हवा में" से लोग सावन के भीने अहसास में खो गए। जबकि प्रसन्न श्रीवास्तव ने "मेरे महबूब कयामत होगी" सुनाकर लोगों को किशोर कुमार की याद ताजा करा दी।
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संस्कारधानी के सपूत न्यायविदों की वर्तमान पी़ढ़ी के लिए ऋषितुल्य न्यायमूर्ति जीपी सिंह को पहला "जबलपुर रत्न" सम्मान आज़ सबसे ज़्यादा चर्चा का विषय रहा नई दुनिया ने इन विभूति का सम्मान कर विश्वास की परम्परा को कायम रखा
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तरंग प्रेक्षागृह में गुरुवार शाम एक गरिमामय समारोह में जबलपुर रत्न सहित साहित्य-कला, शिक्षा, चिकित्सा, न्याय, समाजसेवा, पर्यावरण, उद्योग, खेल क्षेत्रों की नौ हस्तियों को रत्न सम्मान दिया गया जिनमें । समारोह की अध्यक्षता मप्र उच्च न्यायालय के प्रशासनिक न्यायाधीश जस्टिस आरएस गर्ग ने की, मुख्य अतिथि निर्माता-निर्देशक सुभाष घई थे। इस मौके पर बतौर अतिथि संगीतकार आदेश श्रीवास्तव और निर्देशक विवेक शर्मा के अलावा नईदुनिया समूह के प्रधान संपादक पद्मश्री आलोक मेहता भी विशेष रूप से उपस्थित थे। रूपरेखा की विस्तृत जानकारी स्थानीय संपादक आनंद पांडे ने दी। कार्यक्रम को संगीतकार आदेश श्रीवास्तव और निर्देशक विवेक शर्मा ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम का संचालन प्रदीप दुबे व सुरेंद्र दुबे "(सव्यसाची अलंकरण से अलंकृत) "ने किया। अंत में आभार प्रदर्शन महाप्रबंधक मनीष मिश्रा ने किया।
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संस्कार धानी जबलपुर के नौ रत्न
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जबलपुर के रत्न : साहित्य-डा०चित्रा चतुर्वेदी/कला-अरुण पांडे/समाज-सेवा: पुष्पा बेरी/खेल-रत्न :मधु यादव/शिक्षा रत्न : ईश्वरी प्रसाद तिवारी/उद्योग-रत्न:वी एन दुबे /चिकित्सा-रत्न:डा0 एम सी० डाबर/न्याय-रत्न :एस सी दत्त/पर्यावरण रत्न: नरसिंह रंगा
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सुभाष घई ने कहा : "बच्चों के मामले सही सोच की ज़रूरत है उनकी प्रतिभा को पहचानिये /आजाद भारत में अंग्रेजियत की सेवा पर टिप्पणी करते हुए सुभाष घई ने कहा गुलामी के दौर में हमने उनकी सेवा की आज पश्चिमी संस्कृति की नक़ल कर उनकी सेवा कर रहें हैं "/अपार संभावनाएं है रजत पट पर प्रतिभाओं की मया नगरी को हमेशा ज़रूरत थी , है और रहेगी ।
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आलेख : गिरीश बिल्लोरे मुकुल / सहयोग श्रीमती सुलभा बिल्लोरे /राजेश दुबे "डूबे जी" एवं शैली खत्री

विश्व के सबसे पहले कामरेड कृष्ण का कर्मवाद चिर स्थाई है

मेरे कवि अग्रज घनश्याम बादल ने कहा था अपने गीत में
"यहाँ खेल खेल में बाल सखा तीनो तिरलोक दिखातें हैं
रणभूमि में भी शांत चित्त गीता उपदेश सुनातें है "

Janmashtami
वही बृज का माखन चोर से महान कूटनितिज्ञ,प्रेम का सर्वश्रेष्ठ आइकान बने कृष्ण को अगर भारत और विश्व अगर सर्वकालीन योगेश्वर कह रहा है तो उसमें मुझे कोई धर्मभीरुता नज़र नहीं आ रही. कृष्ण को यदि भगवान कहा जा रहा है तो गलत नहीं है. कर्म योगी का सबक तत्-समकालीन परिस्थितियों के बिलकुल अनुकूल था. और तो और यह सबक भी उतना ही समीचीन है जितना कल था । जहाँ तक द्वापर काल की ग्रामीण व्यवस्था की कल्पना करें तो प्रतीत होता है कृष्ण के बगैर तत्-समकालीन ग्राम्य-व्यवस्था की पीर को समझने और मज़दूर किसान को शोषण से मुक्ति दिलाने का सामर्थ्य अन्य किसी में भी न था।कृष्ण का कंस शासित मथुरा को गांवों से सुख के साधन वंचित कराने की सफल कोशिश सिद्ध करती है - कि आज से 5100 सौ वर्ष पूर्व भी वो दौर आया था जब सर्वहारा को ठगे जाने की प्रवृत्ति व्याप्त थी योगेश्वर कृष्ण ने गोकुल की श्रमिकों को विलासी मथुरा से विमुख रखने का प्रयास किया, ठीक उसी तरह आज भी गाँवों से पल रहे शहरों ने गाँवों की उपेक्षा की है और स्वयं का विकास को जारी रखने की कोशिश की है किंतु कृष्ण के समान नेतृत्त्व क्षमता के कोई आइकान दृष्टिगोचर नहीं होते। माखन चोरी का नाता साफ़ तौर पर गाँव के उत्पादों का गाँव के अकिंचनों के लिए गाँव में ही रोकने से था। ताकि विकास समान रूप से आकार ले। सर्वहारा वर्ग शक्तिवान उनके बच्चे सामर्थ्य वान बनें ।
महान राजनैतिक क्षमताओं के धनी श्रीकृष्ण द्वारा कंस वध करने के उपरांत द्वारिका में राज्य स्थापना करने का अर्थ है समकालीन राजनैतिक ढाँचे में लोक-शक्ति की स्थापना करना । जो द्वापरयुग के लिए एक अत्यावश्यक घटना थी।
फ़िर कुरुक्षेत्र में 5 भाइयों को 100 पर विजय दिलाने की घटना कृष्ण के उस कार्य को उजागर करती है जिसे "आज हम शोषण के विरुद्ध आवाज़ कहतें हैं "कृष्ण ने नस्ल वर्ण वर्ग धर्म किसी बिन्दु पर भी विचार कर आध्यात्मिक /राजनीतिक /सामाजिक संरचना का प्रयास करते तो निश्चित ही कृष्ण सर्व कालीन सर्व मान्य नेता नहीं होते। आज की विश्व भर की राजनैतिक व्यवस्थाएँ जो धारण/वर्ण/वर्ग/जाति पर आधारित कृष्ण कालीन व्यवस्था से लोक हित में सीख सकतीं है।
उसी विश्व नायक उर्द्वरैता (नैष्ठिक-ब्रह्मचारी) के जन्म दिवस पर सभी को हार्दिक शुभ कामनाएं

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(सभी फोटो वेब दुनिया से साभार)


गुरुवार, अगस्त 06, 2009

सलीम भाई के नाम खुला ख़त

प्रिय सलीम भाई "

आज के परिपेक्ष्य में बात कीजिये हिन्दू धर्म में ये सारी बातें हैं ही नहीं
हिंदुत्व केवल और केवल विश्व में सर्वाधिक गंभीर धर्म है न तो इस धर्म ने सत्ता की पीठ पर सवारी कर विश्व में संप्रभुता प्राप्त करने की कोशिश की है नहीं यह आयुधों के सहारे / आतंक के सहारे विश्व पर छाया . इसे मानव ने सहजता से स्वीकारा, हिंदुत्व कभी भी प्रतिक्रया वादी नहीं रहा आप अपने पूर्वजों जो पूछिए या उनका इतिहास जानिए कभी भी औरत को दोयम दर्जा नहीं मिला. मैं साफ़ तौर पर आपको बता दूं आप भारतीय परिवेश में रह कर नकारात्मक सोच की बानगी पेश कर रहें हैं आप गार्गी,मैत्रेयी,सीता,आदि के बारे में जान लें. आप जान लें हिन्दू धर्म में ही नारी को शक्ति कहा है. कट्टर पंथियों नें रजिया सुलतान, को बर्दाश्त नहीं किया. गोंडवाना के इतिहास को देखिये वीरांगना माँ दुर्गावती को भी अंग्रेजों के साथ मिल कर किस ने शहीद कराया सब जानतें हैं.
चलिए छोडिये इस धर्म में बिना वामा के कोई अनुष्ठान पूर्ण नहीं माने जाते . जबकि कुछ पूजा गृहों / आराधना स्थानों पर नारी का प्रवेश वर्जित है मित्र इस पर गौर किया कभी आपने.
कई धार्मिक व्यवस्थाएं गलत व्याख्याओं के कारण गलत तरीके से लागू की गयीं . इस/इन कारणों से सम्पूर्ण धर्म को कटघरे में लाना बुद्धि-वमन ही है. आशा है मेरे पत्र की गंभीरता को आप समझ रहे होंगे . मेरे घर में इस्लाम/क्रिश्चियनिटि/सिक्ख-धर्म/का आदर करना मुझे सिखाया है. मेरी माँ सव्यसाची घंटों मेरे शायर मित्र "इरफान झांस्वी" से कुरान की प्रासंगिकता,आवश्यकता, के तत्वों पर चर्चा करतीं थीं . मेरे पिता ने कभी इस बात का विरोध नहीं किया. आगे मुझे कुछ कहने की ज़रुरत नहीं
अल्लाह (भगवान्),मुझे और आपको उसके रास्ते पे चलने की तमीज सिखाए इसी मंगल कामना के साथ
आपका ही "मुकुल "


सोमवार, अगस्त 03, 2009

समाज में बदलने को कुछ बाक़ी नहीं है...?....

विश्व की अधिकाधिक आबादी जिस मूल्यहीनता से गुज़र रही है उसके लिए कितने भी प्रयास कियें जावें मुझे नज़र नहीं आ रहा की कोई परिवर्तन आएगा। आज का दौर "आर्थिक-लिप्सा" का दौर है । कुलमिला कर विश्व को अब एक ऐसे श्रीमद्‍भगवद्‍गीता की ज़रूरत है जो विश्व की इस गन्दगी को समाप्त । केवल और केवल धन की लिप्सा से मुक्ति के लिए सार्थक चिंतन की ज़रूरत है आप सोच रहें होंगे इस तरह के प्रवचनों का आज और वो भी इस ब्लॉग जगत में क्यों कर रहा हूँ...? मेरा यह करने का सीधा-साफ़ कारण यह है कि उपदेश,लेखक,विचारक,जों भी आज बाँट रहे हैं चाहे वो कितना भी सर्व-प्रिय,है शुद्ध व्यापारी नज़र आता है मुझे। इन सभी को आत्मसंयमयोग के स्मरण/अनुकरण की ज़रूरत है।
ओशो ने भी कहा है ""यह भी हो सकता है कि आदमी अंधा हो और अपने को जानता हो तो वह आँख वाले से बेहतर है। आखिर तुम्हारी आँख क्या देखेगी? उसने अंधा होकर भी अपने को देख लिया है। और अपने को देखते ही उसने उस केंद्र को देख लिया है जो सारे अस्तित्व का केंद्र है।
"
इन मुद्दों पर विचार करना ज़रूरी है।
यदि अब भी इस और ध्यान नहीं दिया तो कल हम कह देंगें:-"समाज में बदलने को कुछ बाक़ी नहीं है...?..."

गुरुवार, जुलाई 09, 2009

मुखेटाबाज टिप्पणीकर्ता कोई नाजायज़ जिस्म होगा !

देर रात आज ऑफिस से लौटा हूँ नेट खोला तो भाई महेंद्र मिश्रा जी का यह आलेख पढ़कर दुःख हुआ, किसी का अश्लील अनाम टिप्पणीकार होना उसकी कुंठित बुद्धि का परिचायक है मुझे तो ये लोग नाजायज़ तरीके से दुनियाँ में फ़िर दुनिया से ब्लॉग जगत में आए लोग लगतें है। किसी के आलेख से असहमत होना स्वाभाविक है किंतु इस असहमति को इस तरह व्यक्त करना निकृष्टता है। ऐसे अनाम/गलीच/गंदे टिप्पणीकारों को ईश्वर जितनी ज़ल्दी हो सके सदगति दे ऐसी कामना है । महेंद्र जी हम सभी आपके साथ है ।

सोमवार, जुलाई 06, 2009

ट्रांसलेशन करना गूगल बाबा की क्षमताओं से परे ?

Google
HomeText and WebTranslated SearchTools

नीचे लिखे आलेख का हिन्दी तर्जुमा इस लिंक http://translate.google.co.in/translate_t# पर किया
NEW DELHI: "The Budget has been formulated against the background of strong recovery in national income and agriculture, and an equally

impressive improvement in our balance of payments." That was how Pranab Mukherjee opened his speech the last time he presented a full Budget in 1984. When he starts his speech today, you can bet he won't say that.

The radically different situation he now finds himself in — an economy desperately trying to keep its growth momentum in the face of a global slump — will mean he has a more difficult balancing act to do than most finance ministers.

Any Budget calls for trade-offs between various desired goals given the finite money available, but Mukherjee has the unenviable job of finding larger than normal amounts of money to fund a stimulus package and various social welfare schemes at a time when a sluggish economy has slowed down government revenue collections.

While presenting the interim Budget for this year in February, Mukherjee had said: "While the proposed provisions are appropriate for a Vote-on-Account, I would like to point out that Plan expenditure for 2009-10 may have to be increased substantially at the time of the presentation of the regular Budget, if we are to give the economy the stimulus it needs to cope with the global recession that is likely to continue through the year."

In other words, expect the expenditure figure to be significantly higher than the Rs 953,231 crore he had estimated five months ago. But that's not all. Since the FM made that comment, the government has promised to bring in a Food Security Act under which all families below the poverty line will be entitled to 25kg of rice or wheat per month at Rs 3 per kg.

How much that guarantee will add to the government's expenditure will depend on the precise details, which are yet to be announced, but even the most conservative estimates suggest the food subsidy bill will rise by at least Rs 3,000 crore.

On the revenue side, there is no reason to believe that the revenue receipts estimate of Rs 609,551 crore made in February was unduly pessimistic. In the absence of fresh taxes, it would be difficult to justify scaling up that figure. And fresh taxes will be difficult to impose. If anything, there is pressure from the middle class to give some concessions to relieve the impact of stagnant or declining salaries and job losses.

So where will the money to fund the additional expenditure come from? Again, Mukherjee himself answered that question in February: "Since the scope for revenue mobilization is bound to be limited in a period of economic slowdown, any increase in plan expenditure will increase the fiscal deficit."

There is, in the Economic Survey presented on Thursday, enough indication that the FM might look at another source for raising funds. That's the disinvestment route. However, this is unlikely to be a source of huge amounts of money in the current year. For starters, disinvestment takes time and one quarter of the year is already over. Also, there might be questions about whether now is the best time for divestment. Wouldn't it be better to wait till the economy revives and hopefully so does the market and hence the appetite for PSU shares?

Allowing the fiscal deficit to balloon a little more with larger borrowings seems to be the most viable option for the FM, but he would hesitate to let it get completely out of control, conscious of the promise to get back to fiscal rectitude as soon as

परिणाम देखिए
नई दिल्ली: "बजट
राष्ट्रीय आय और कृषि क्षेत्र में मजबूत वसूली की पृष्ठभूमि के खिलाफ है, और एक समान रूप से तैयार की गई है
भुगतान की हमारी संतुलन में प्रभावशाली सुधार. "वह कैसे प्रणव मुखर्जी वह 1984 में एक पूर्ण बजट प्रस्तुत अपने भाषण आखिरी बार खोला गया था. जब वो आज अपने भाषण शुरू हो, तुम वह नहीं कहूँगा शर्त लगा सकता हूँ.

इस मौलिक अलग स्थिति में अब वह खुद को ढूँढता है - एक अर्थव्यवस्था सख्त एक वैश्विक मंदी का सामना करने के अपने विकास की गति को रखने की कोशिश कर रहा - वह सबसे वित्त मंत्रियों के अलावा कुछ करने के लिए एक और अधिक कठिन संतुलन साधने की है मतलब होगा.

कोई बजट व्यापार के लिए कॉल विभिन्न वांछित लक्ष्यों के बीच offs के परिमित धन उपलब्ध दिया, लेकिन जब मुखर्जी एक सुस्त अर्थव्यवस्था धीमी है एक समय पर एक प्रोत्साहन पैकेज और विभिन्न समाज कल्याण योजनाओं के कोष के लिए पैसे की बड़ी मात्रा सामान्य से अधिक पाने की अवांछनीय नौकरी है सरकार के राजस्व संग्रह नीचे.

जबकि इस वर्ष के लिए फरवरी में अंतरिम बजट पेश करते हुए मुखर्जी ने कहा था: "हालांकि प्रस्तावित प्रावधानों एक वोट पर खाते के लिए उपयुक्त हैं, मैं 2009-10 के लिए पर्याप्त रूप से वृद्धि की जानी करने के लिए हो सकता है कि योजना व्यय से बात करना चाहेंगे नियमित बजट की प्रस्तुति के समय, अगर हम अर्थव्यवस्था यह है कि साल के माध्यम से जारी होने की संभावना है कि वैश्विक मंदी के साथ मुकाबला करने की आवश्यकता को प्रेरणा देने के लिए कर रहे हैं. "

दूसरे शब्दों में, व्यय आंकड़ा काफी रु 953231 जितना वह पाँच महीने पहले अनुमान लगाया था करोड़ रुपए अधिक होने की उम्मीद करते हैं. लेकिन वह नहीं है सब. चूंकि एफएम कि टिप्पणी बनाया, सरकार ने एक खाद्य सुरक्षा अधिनियम है जिसके तहत गरीबी रेखा से नीचे के सभी परिवारों 25kg चावल या प्रति माह गेहूं के लिए 3 रुपये प्रति किलो पर हकदार होंगे में लाने का वादा किया है.

कितना है कि गारंटी सरकार के खर्च करने के लिए जो अभी तक कर रहे हैं सटीक विवरण, पर निर्भर करेगा जोड़ना होगा, पर की घोषणा की जानी करने के लिए भी सबसे अधिक रूढ़िवादी अनुमान खाद्य सब्सिडी बिल से बढ़ जाएगा सुझाव है कि कम से कम 3000 करोड़ रुपये है.

राजस्व तरफ, वहाँ यह है कि राजस्व प्राप्तियां 609,551 रुपये की फ़रवरी में किया करोड़ अनुमान पर विश्वास करने का कोई कारण नहीं अशांति निराशावादी गया है. नए करों के अभाव में, यह है कि व्यक्ति को स्केलिंग को सही करने के लिए मुश्किल होगा. और ताजा कर अधिरोपित करने के लिए मुश्किल होगा. कुछ भी अगर, वहीं मध्यम वर्ग के दबाव के प्रभाव को राहत देने के लिए कुछ रियायतें देने के लिए है या स्थिर वेतन और काम नुकसान गिरावट.

तो कहाँ पैसे अतिरिक्त खर्च से आ निधि से होगा? फिर से, मुखर्जी खुद फ़रवरी में उस प्रश्न का उत्तर: "राजस्व जुटाने के लिए गुंजाइश से आर्थिक मंदी की अवधि में, राजकोषीय घाटा बढ़ जाएगा योजना खर्च में कोई वृद्धि सीमित होना स्वाभाविक है."

वहाँ, आर्थिक सर्वेक्षण में है गुरुवार पर, पर्याप्त संकेत है कि वित्त मंत्री ने धन जुटाने के लिए एक अन्य स्रोत पर कर सकते हैं देखो प्रस्तुत किया. वह विनिवेश मार्ग है. हालांकि, इस चालू वर्ष में पैसे की बड़ी मात्रा का स्रोत होने की संभावना नहीं है. शुरुआत के लिए, विनिवेश है पर पहले से ही समय और इस वर्ष की एक तिमाही लेता है. इसके अलावा, वहाँ है कि क्या अब अनावरण के लिए सबसे अच्छा समय है के बारे में सवाल किया जा सकता है. नहीं यह होना बेहतर अर्थव्यवस्था revives तक और इंतजार करना तो और इसलिए उम्मीद है कि सार्वजनिक उपक्रमों के शेयरों के लिए भूख बाजार करता है?

राजकोषीय घाटे की अनुमति दे बड़ा उधार थोड़ा और साथ गुब्बारे को एफएम के लिए सबसे सस्ता विकल्प लगती है, लेकिन वह इसे पूरी तरह से नियंत्रण के बाहर, वापस राजकोषीय ईमानदारी से ही के रूप में प्राप्त करने के लिए वचन के प्रति जागरूक हो जाने में संकोच होता
आप को कुछ पल्ले पडा ?

रविवार, जून 07, 2009

ढाबॉ पे भट्ठियां नहीं देह सुलगती है .

यहाँ भी एक चटका लगाइए जी

इक पीर सी उठती है इक हूक उभरती है

मलके जूठे बरतन मुन्नी जो ठिठुरती है.
अय. ताजदार देखो,ओ सिपहेसलार देखो -
ढाबॉ पे भट्ठियां नहीं देह सुलगती है .
कप-प्लेट खनकतें हैं सुन चाय दे रे छोटू
ये आवाज बालपन पे बिजुरी सी कड़कती है
मज़बूर माँ के बच्चे जूठन पे पला करते
स्लम डाग की कहानी बस एक झलक ही है
बारह बरस की मुन्नी नौ-दस बरस की बानो
चाहत बहुत है लेकिन पढने को तरसती है
क्यों हुक्मराँ सुनेगा हाकिम भी क्या करेगा
इन दोनों की छैंयाँ लंबे दरख्त की है

शनिवार, जून 06, 2009

एक विनम्र आग्रह

मैंने अंकित की मदद से यह साईट बना ली है
आप से आग्रह है कि इस साइट को ब्लागर्स के उपयोग के लिए क्या क्या किया जा सकता है यहाँ मुझे बताएं ।
मिसफिट जो अब डोमेन पर है आप में से कोई भी मुझे ज्वाइन करे
कारवां बनता जाएगा
इस मामले में सोच साफ़ है "कि हम सब " जिस मिशन को लेकर ब्लॉग पर हैं क्यों न अपनी साइट पर जाएँ हिन्दी के विस्तार के लिए

शुक्रवार, जून 05, 2009

पर्यावरण दिवस पर विशेष


जननी जन्म भूमिश्च : को विनत प्रणाम के साथ गीत पुन: दे रहा हूँ ..... काम-की अधिकता के कारण ब्लॉग पर नई पोस्ट संभव नहीं थी ।शायद आपको पसंद आए ..... यदि पसंद नहीं आता है तो कृपया इस आलेख को अवश्य
को पढ़ा जाए
धरा से उगती उष्मा , तड़पती देहों के मेले
दरकती भू ने समझाया, ज़रा अब तो सबक लो

यहाँ उपभोग से ज़्यादा प्रदर्शन पे यकीं क्यों है
तटों को मिटा देने का तुम्हारा आचरण क्यों है
तड़पती मीन- तड़पन को अपना कल समझ लो
दरकती भू ने समझाया, ज़रा अब तो सबक लो

मुझे तुम माँ भी कहते निपूती भी बनाते हो
मेरे पुत्रों की ह्त्या कर वहां बिल्डिंग उगाते हो
मुझे माँ मत कहो या फिर वनों को उनका हक दो
दरकती भू ने समझाया, ज़रा अब तो सबक लो

मुझे तुमसे कोई शिकवा नहीं न कोई अदावत है
तुम्हारे आचरण में पल रही ये जो बगावत है
मेघ तुमसे हैं रूठे , बात इतनी सी समझ लो
दरकती भू ने समझाया, ज़रा अब तो सबक लो।
आज जबलपुर के सर्रापीपर में जगत मणि चतुर्वेदी जी एक आयोजन कर रहें हैं जिसके अतिथि वृक्ष होंगें यानी .... यानी क्या देखता हूँ शाम को कार्यक्रम है लौट के रपट मिलेगी

मंगलवार, मई 26, 2009

वृषभानुज यानी सांड

मुझे उसे उसकी हरकत देख कर सांड कहना था . किन्तु किसी को सरे आम सांड कह देना मुझ जैसे कवि को क्या किसी को भी अलस्तर-पलस्तर से सँवरने की तैयारी होती और कुछ नहीं . रहा सवाल क्रोध निकालने का सो कहना तो था ही . राजपथ चारी वो सत्ता के मद में चूर जब मेरे दफ्तर आया तो अपनी कथित गरीब "प्रजा"के कार्य न होने का आक्रोश निकाल रहा . ... कुछ इस तरह वो चीखे :-"साब, आप ने तुलसा बाई को आँगनवाडी वर्कर न बनाया मैं आपकी दीवालें पोत दूंगा ! सी एम् साहब आ रहे हैं उनके सामने पेश कराउंगा ! आप अपनी कुर्सी बच्चा लीजिये "

मैंने कहा श्रीमान जी आप जन-प्रतिनिधि हैं गरीब जनता को सही बातें सिखाइए . झूठे आश्वासन देकर आप खुद फंस जाते हैं फिर हम पर दवाब बनाते है गलत काम करने के लिए ?
"देखता हूँ,क्या और कितना गलत सही करतें हैं ?
यह जानते हुए की श्रीमान का नाम "........" है मैंने कहा:-"वृषभानुज जी हम चाहेंगे की आप कलैक्टर साब की कोर्ट में इस मामले को लगा दीजिये "
वो:-"मेरा नाम वृषभानुज नहीं है "
मैं:"आप मेरे लिए सम्माननीय है मुझे आज से आपको यह नाम देने से कोई रोक नहीं सकता आप भी नहीं ?
वो:-(गुस्सा उतरने की वज़ह से नर्म हो गए थे बोले )- ठीक है पंडित जी आप मुझे जो भी नाम दें सर माथे पर इस महिला को नौकरी दे देते ?

मैं:- वृषभानुज जी, संभव नहीं आपकी यह गरीब आवेदिका "पंच" है जो विधान में वर्जित
वृषभानुज जी कसमसाते अपना सा मुंह लिए लौट गए किन्तु अपने को मिले नए नाम का उछाह लिए
नोट: इस पोस्ट की सभी छवियाँ गूगल से प्राप्त हैं छवि के स्वामी अथवा अन्य किसी को भी कोई आपत्ति हो तो सूचित कीजिये ताकि छवि पोस्ट हटाई जा सके अग्रिम आभार सहित /

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