6.8.09

सलीम भाई के नाम खुला ख़त

प्रिय सलीम भाई "

आज के परिपेक्ष्य में बात कीजिये हिन्दू धर्म में ये सारी बातें हैं ही नहीं
हिंदुत्व केवल और केवल विश्व में सर्वाधिक गंभीर धर्म है न तो इस धर्म ने सत्ता की पीठ पर सवारी कर विश्व में संप्रभुता प्राप्त करने की कोशिश की है नहीं यह आयुधों के सहारे / आतंक के सहारे विश्व पर छाया . इसे मानव ने सहजता से स्वीकारा, हिंदुत्व कभी भी प्रतिक्रया वादी नहीं रहा आप अपने पूर्वजों जो पूछिए या उनका इतिहास जानिए कभी भी औरत को दोयम दर्जा नहीं मिला. मैं साफ़ तौर पर आपको बता दूं आप भारतीय परिवेश में रह कर नकारात्मक सोच की बानगी पेश कर रहें हैं आप गार्गी,मैत्रेयी,सीता,आदि के बारे में जान लें. आप जान लें हिन्दू धर्म में ही नारी को शक्ति कहा है. कट्टर पंथियों नें रजिया सुलतान, को बर्दाश्त नहीं किया. गोंडवाना के इतिहास को देखिये वीरांगना माँ दुर्गावती को भी अंग्रेजों के साथ मिल कर किस ने शहीद कराया सब जानतें हैं.
चलिए छोडिये इस धर्म में बिना वामा के कोई अनुष्ठान पूर्ण नहीं माने जाते . जबकि कुछ पूजा गृहों / आराधना स्थानों पर नारी का प्रवेश वर्जित है मित्र इस पर गौर किया कभी आपने.
कई धार्मिक व्यवस्थाएं गलत व्याख्याओं के कारण गलत तरीके से लागू की गयीं . इस/इन कारणों से सम्पूर्ण धर्म को कटघरे में लाना बुद्धि-वमन ही है. आशा है मेरे पत्र की गंभीरता को आप समझ रहे होंगे . मेरे घर में इस्लाम/क्रिश्चियनिटि/सिक्ख-धर्म/का आदर करना मुझे सिखाया है. मेरी माँ सव्यसाची घंटों मेरे शायर मित्र "इरफान झांस्वी" से कुरान की प्रासंगिकता,आवश्यकता, के तत्वों पर चर्चा करतीं थीं . मेरे पिता ने कभी इस बात का विरोध नहीं किया. आगे मुझे कुछ कहने की ज़रुरत नहीं
अल्लाह (भगवान्),मुझे और आपको उसके रास्ते पे चलने की तमीज सिखाए इसी मंगल कामना के साथ
आपका ही "मुकुल "


7 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

पृष्टभूमि अभी पता नहीं मगर आपने जो लिखा है वो सही हैं, सहमत!!

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

सार्थक लेख, आपने जो लिखा है वाकई सत्‍य से परिपूर्ण है। हिन्‍दू धर्म ही है जहॉं नारियों को इज्‍जत दी जाती है और माता भगिनि आदि से सम्‍बोधित किया जाता है।

अनुनाद सिंह ने कहा…

"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" में नारी के लिये क्या कहा गया है?

"जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" का क्या सन्देश है?

सर्वत एम० ने कहा…

आपने इस लेख में सलीम भाई को जितना भी कुछ बताया है, उससे मैं पूरे तौर पर सहमत हूँ. सच स्वीकार किया जाना चाहिए वह भी सच्चे मन से. आपका लेखन तर्कसंगत है, अध्ययन किया है आपने, लेखन इस बात का प्रमाण है.
मैं बहुत देर से आपसे सम्पर्क कर रहा हूँ. अपनी मजबूरी ब्लॉग पर बता चुका हूँ. फ़िलहाल अब कोइ संकट नहीं है. आशा है, स्नेह बनाये रखेंगे.

Mithilesh dubey ने कहा…

आप सलिम को कीतना भी समझा लिजिए वह बातो से मानने वाला नही है।

मुकेश कुमार तिवारी ने कहा…

गिरीश जी,

बात से सहमत हैं जी। हिन्दू धर्म में कभी लिंगभेद रहा ही नही और विशेषतौर पर तो नारी को वह स्थान दिया है (भले ही वह व्यवहार में आज नही हो) पर कोई धार्मिक प्रतिबंध या मान्यतायें नारी के हेय नही बनाती।

रहा सवाल यह कि यह समझना है तो मेरी भी ईश्वर से प्रार्थना है कि " हे प्रभु सद्‍बुद्धि दे!

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

बेनामी ने कहा…

महोदय
यह बात तो बिल्कुल ही सत्य है की हिंदू धर्म में स्त्रियों का स्थान अत्यंत हीं सम्मान जनक था. लेकिन जो भी कुरीतियाँ आज हिंदू धर्म में हैं वे सभी आक्रमणकारियों से बचाव के लिए ही थे. उदाहरण के लिए बाल विवाह एवं घुंघट प्रथा. चूकि मुस्लिम आक्रमणकारी हिंदू स्त्रियों को उठा ले जाते थे इसलिए ये प्रथाए चलन में आईं.
बिनोद

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