मेरे कवि अग्रज घनश्याम बादल ने कहा था अपने गीत में
"यहाँ खेल खेल में बाल सखा तीनो तिरलोक दिखातें हैंरणभूमि में भी शांत चित्त गीता उपदेश सुनातें है "
महान राजनैतिक क्षमताओं के धनी श्रीकृष्ण द्वारा कंस वध करने के उपरांत द्वारिका में राज्य स्थापना करने का अर्थ है समकालीन राजनैतिक ढाँचे में लोक-शक्ति की स्थापना करना । जो द्वापरयुग के लिए एक अत्यावश्यक घटना थी।
फ़िर कुरुक्षेत्र में 5 भाइयों को 100 पर विजय दिलाने की घटना कृष्ण के उस कार्य को उजागर करती है जिसे "आज हम शोषण के विरुद्ध आवाज़ कहतें हैं "कृष्ण ने नस्ल वर्ण वर्ग धर्म किसी बिन्दु पर भी विचार कर आध्यात्मिक /राजनीतिक /सामाजिक संरचना का प्रयास करते तो निश्चित ही कृष्ण सर्व कालीन सर्व मान्य नेता नहीं होते। आज की विश्व भर की राजनैतिक व्यवस्थाएँ जो धारण/वर्ण/वर्ग/जाति पर आधारित कृष्ण कालीन व्यवस्था से लोक हित में सीख सकतीं है।
उसी विश्व नायक उर्द्वरैता (नैष्ठिक-ब्रह्मचारी) के जन्म दिवस पर सभी को हार्दिक शुभ कामनाएं
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(सभी फोटो वेब दुनिया से साभार)