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शुक्रवार, अगस्त 14, 2009

विश्व के सबसे पहले कामरेड कृष्ण का कर्मवाद चिर स्थाई है

मेरे कवि अग्रज घनश्याम बादल ने कहा था अपने गीत में
"यहाँ खेल खेल में बाल सखा तीनो तिरलोक दिखातें हैं
रणभूमि में भी शांत चित्त गीता उपदेश सुनातें है "

Janmashtami
वही बृज का माखन चोर से महान कूटनितिज्ञ,प्रेम का सर्वश्रेष्ठ आइकान बने कृष्ण को अगर भारत और विश्व अगर सर्वकालीन योगेश्वर कह रहा है तो उसमें मुझे कोई धर्मभीरुता नज़र नहीं आ रही. कृष्ण को यदि भगवान कहा जा रहा है तो गलत नहीं है. कर्म योगी का सबक तत्-समकालीन परिस्थितियों के बिलकुल अनुकूल था. और तो और यह सबक भी उतना ही समीचीन है जितना कल था । जहाँ तक द्वापर काल की ग्रामीण व्यवस्था की कल्पना करें तो प्रतीत होता है कृष्ण के बगैर तत्-समकालीन ग्राम्य-व्यवस्था की पीर को समझने और मज़दूर किसान को शोषण से मुक्ति दिलाने का सामर्थ्य अन्य किसी में भी न था।कृष्ण का कंस शासित मथुरा को गांवों से सुख के साधन वंचित कराने की सफल कोशिश सिद्ध करती है - कि आज से 5100 सौ वर्ष पूर्व भी वो दौर आया था जब सर्वहारा को ठगे जाने की प्रवृत्ति व्याप्त थी योगेश्वर कृष्ण ने गोकुल की श्रमिकों को विलासी मथुरा से विमुख रखने का प्रयास किया, ठीक उसी तरह आज भी गाँवों से पल रहे शहरों ने गाँवों की उपेक्षा की है और स्वयं का विकास को जारी रखने की कोशिश की है किंतु कृष्ण के समान नेतृत्त्व क्षमता के कोई आइकान दृष्टिगोचर नहीं होते। माखन चोरी का नाता साफ़ तौर पर गाँव के उत्पादों का गाँव के अकिंचनों के लिए गाँव में ही रोकने से था। ताकि विकास समान रूप से आकार ले। सर्वहारा वर्ग शक्तिवान उनके बच्चे सामर्थ्य वान बनें ।
महान राजनैतिक क्षमताओं के धनी श्रीकृष्ण द्वारा कंस वध करने के उपरांत द्वारिका में राज्य स्थापना करने का अर्थ है समकालीन राजनैतिक ढाँचे में लोक-शक्ति की स्थापना करना । जो द्वापरयुग के लिए एक अत्यावश्यक घटना थी।
फ़िर कुरुक्षेत्र में 5 भाइयों को 100 पर विजय दिलाने की घटना कृष्ण के उस कार्य को उजागर करती है जिसे "आज हम शोषण के विरुद्ध आवाज़ कहतें हैं "कृष्ण ने नस्ल वर्ण वर्ग धर्म किसी बिन्दु पर भी विचार कर आध्यात्मिक /राजनीतिक /सामाजिक संरचना का प्रयास करते तो निश्चित ही कृष्ण सर्व कालीन सर्व मान्य नेता नहीं होते। आज की विश्व भर की राजनैतिक व्यवस्थाएँ जो धारण/वर्ण/वर्ग/जाति पर आधारित कृष्ण कालीन व्यवस्था से लोक हित में सीख सकतीं है।
उसी विश्व नायक उर्द्वरैता (नैष्ठिक-ब्रह्मचारी) के जन्म दिवस पर सभी को हार्दिक शुभ कामनाएं

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(सभी फोटो वेब दुनिया से साभार)


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