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मंगलवार, अगस्त 23, 2022

राजा दाहिर का भारत की रक्षा में योगदान

  यूनानीयों ने ईसा के पूर्व भारत पर सांस्कृतिक सामरिक हमला किया किंतु उनकी विफलता सर्व व्यापी है।वामधर्मी  इतिहासकार जिस मंतव्य को स्थापित करने के लिए ऐसी ऐतिहासिक घटनाओं का विवरण प्रस्तुत करने की कोशिश करते हैं जो भारतीय सांस्कृतिक पहचान को विलुप्त कर दें। यूनानीयों के अलावा कुषाण हूण इत्यादि कबीलों ने भारत पर आक्रमण किया। अरब के लोग भी भारत पर अपनी प्रभु सत्ता स्थापित करने के लिए लगभग इस्लाम के आने के पूर्व लगभग कई बार आक्रमण कर चुके थे।
भारत पर आक्रमण के क्या कारण रहे होंगे?
    भारत की खाद्य पदार्थों के उत्पादन क्षमता शेष विश्व के सापेक्ष बहुत श्रेष्ठ एवं स्तरीय रही है। दूसरा कारण था भारत में अद्वितीय स्वर्ण भंडार। इसके अलावा भारत की सांस्कृतिक परंपराएं सामाजिक व्यवस्था किसी भी अन्य सभ्यता से उत्कृष्ट रही हैं।
   उपरोक्त कारणों से भारत कबीलो के आकर्षण का केंद्र बना रहा।
   आप जानते हैं कि सिकंदर और पोरस की लड़ाई में सिकंदर भारत पर साम्राज्य स्थापित नहीं कर पाया उसे वापस जाना पड़ा और वापसी के दौरान रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो गई।
  भारत का व्यापार व्यवसाय हड़प्पा काल से ही अरब यूनान ओमान तक विस्तृत था।
   भारत में विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण के संबंध में पृथक से कभी बात की जाएगी । इस आर्टिकल के जरिए आपको यह अवगत कराना चाहता हूं कि भारत में सबसे पहला आक्रमण मुंबई के ठाणे शहर में अरब आक्रामणकारीयों द्वारा किया गया था। इसके उपरांत मकरान के रास्ते से 644, 659 , 662, 664 ईस्वी में लगातार आक्रमण होते रहे।
   उस अवधि में कश्मीर भारत का सांस्कृतिक सामरिक केंद्र था। इसका विवरण आप भली प्रकार राज तरंगिणीयों में देख सकते हैं। सन 632 में मोहम्मद साहब के देहांत के बाद खलीफ़ाई व्यवस्था कायम हो चुकी थी। सातवीं शताब्दी के उपरोक्त समस्त आक्रमणों में अरबों की पराजय हुई। परंतु आठवीं शताब्दी के आने तक अरबों की सामरिक क्षमता में वृद्धि हो चुकी थी। सन 712 इसी में सिंध पर कश्मीर मूल के राजा जो जाति से ब्राह्मण थे की राजवंश का साम्राज्य था। सिंध जो वर्तमान में पाकिस्तान का हिस्सा है का राजा दाहिर, इराक के शाह हज्जाज के निशाने पर थे। इराक के शाह द्वारा भारत पर आक्रमण की दो वजहें सुनिश्चित की थीं
[  ] एक वजह थी ओमान के शासक माबिया बिन हलाफी, तथा उसके भाई मोहम्मद द्वारा सिंध में शरण लेना। इन दोनों भाइयों ने खलीफा से असहमति जाहिर की थी।
[  ] दूसरा कारण इस्लाम को विस्तार करने का था।
     हज्जाज की सेना ने राजा दाहिर शासित सिंध पर आक्रमण किया, परंतु उसे असफल होकर वापस लौटना पड़ा। इसके बाद भी राजा दाहिर पर आक्रमण के प्रयास लगातार होते रहे। सन 712 ईसवी में हज्जाज ने अपने दामाद 17 वर्षीय मोहम्मद बिन कासिम को नई रणनीति के साथ राजा दाहिर के साम्राज्य सिंध पर आक्रमण करने का निर्देश दिया। मोहम्मद बिन कासिम क्रूर धर्म भीरु धर्म विस्तारक गजवा ए हिंद की भावनात्मक उत्तेजना के साथ भारत में आया और उसने स्थानीय लोगों को घूस देकर तथा कुछ बुद्धिस्ट लोगों को हिंदुत्व के विरुद्ध भड़का कर तथा बुद्धिज्म के विस्तार का लालच देकर अपनी ओर आकर्षित कर लिया तथा उनका सामरिक उपयोग भी किया। मोहम्मद बिन कासिम के पास बालिष्ठ नाम का एक ऐसा यंत्र था जिससे बड़े-बड़े पत्थर दूरी तक फेंके जा सकते थे। यह युद्ध देवल में लड़ा गया। हिंदू वासियों की मान्यता थी कि देवल का ध्वज गिरना पराजय का कारण होगा यह बात मोहम्मद बिन कासिम को भारतीय बिके हुए लोगों ने बता दी। मोहम्मद बिन कासिम ने देवल के मंदिर पर लगी ध्वजा पर सबसे पहले आक्रमण किया इस आक्रमण में ध्वजा क्षतिग्रस्त हो गई। इससे सिंध की सेना का मनोबल कमजोर हुआ। मोहम्मद बिन कासिम की सेना के साथ राजा दाहिर की सेना नें वीरता पूर्वक मुकाबला जारी रखा। तभी अचानक राजा दाहिर का हाथी अनियंत्रित हो गया और उसे नियंत्रित करने महावत ने रणभूमि से अलग ले जाकर हाथी को काबू में लाने का प्रयास किया। इस बीच सिंध की सेना में यह अफवाह भी फैल गई कि राजा दाहिर ने पलायन कर दिया है। कुछ समय पश्चात राजा दाहिर वापस युद्ध भूमि पर लौटे तब तक बहुत सारे सैनिक पलायन कर चुके थे।
    उधर लगातार तीन दिन मोहम्मद बिन कासिम के लड़ाके बस्तियों में लूटपाट करते रहे। 17 वर्ष से अधिक के महिला पुरुषों को इस्लाम कुबूल करने की हिदायत दी गई और ना मानने पर कत्लेआम किया गया। यह कत्लेआम लगभग 3 दिन तक लगातार चला।
  राजा दहिर के महल की स्त्रियों ने स्वयं को अग्नि के हवाले कर दिया किंतु उनकी दूसरी पत्नी तथा दो  पुत्रियां शेष रह गई। जिन्हें मोहम्मद बिन कासिम बंदी बनाकर रानी को अपने हरम में रख लिया तथा पुत्रियों को खलीफा के समक्ष पेश किया। दोनों राजकुमारियों में सूर्य देवी तथा परमार देवी वैसे खलीफा ने सूर्य देवी को अपने पास रख लिया और परमार देवी को अपने हरम में भेज दिया। सूर्य देवी को मोहम्मद बिन कासिम से बदला लेने का अवसर प्राप्त हो गया। उसने खलीफा को बताया कि-" हमारा शील हरण तो पहले ही मोहम्मद बिन कासिम ने कर दिया है"
   इस बात से क्रुद्ध होकर मोहम्मद बिन कासिम को मारने की आज्ञा खलीफा ने जारी कर दी। और मोहम्मद बिन कासिम का अंत हो गया।
   मोहम्मद बिन कासिम की मृत्यु के उपरांत भारत के वे सभी क्षेत्र अरबों से मुक्त करा दिए गए जो मोहम्मद बिन कासिम के आधिपत्य में आ चुके थे। परंतु मोहम्मद बिन कासिम नहीं लाखों लोगों का कत्लेआम तथा मंदिरों एवं जनता को लूट कर अकूत धन सोना तथा अन्य कीमती धातु रत्न इत्यादि पहले ही अरब पहुंचा दिए थे। राजा दाहिर की बेटियों का बलिदान अखंड भारत बेटियों का सर्वोच्च बलिदान कहा जा सकता है।
(स्रोत: चचनामा, पर डॉ राजीव रंजन प्रसाद की व्याख्या)

सोमवार, अगस्त 22, 2022

धारणा, ध्यान और समाधि


*धारणा, ध्यान और समाधि*
        महर्षि कणाद ने वैज्ञानिक चिंतन को दिशा दी है जिसका आधार धारणा ध्यान और समाधि है। यहां पूर्व आलेख की तरह मैं सतर्क कर देना चाहता हूं कि ईश्वर को समझने के लिए रिचुअल्स अथवा सांप्रदायिक प्रक्रियाओं ( रिलीजियस प्रैक्टिस) प्रथम चरण के रूप में ही स्वीकारना चाहिए।
पूज्य कला मौसी ने बताया कि कभी स्वर्गीय माताजी ने पूज्य कला मौसी से कहा था -"अभी तुम पहली क्लास में हो!" वास्तव में रिचुअल्स अथवा प्रैक्टिसेज आत्म नियंत्रण का प्रथम पाठ है। उदाहरण के तौर पर उपवास रखना या पूजा प्रक्रिया करना अपनी चित्त अर्थात मन को व्यवस्थित करने का एक तरीका है। क्योंकि अगर मन गतिमान होगा तो स्थिरता की कल्पना करना ही मुश्किल है। इस कठिनाई से निवृत्त होने के लिए धारणा का सहारा लेना चाहिए। धारणा पूजा प्रणाली तथा रिचुअल्स यानी रीति-रिवाजों के अनुपालन के आगे का विषय है। 
[  ] धारणा का अर्थ है विषय वस्तु के प्रति चिंतनशीलता । धारणा का विस्तार ध्यान की ओर ले जाता है और इसका अंतिम चरण समाधि कहलाता है।
[  ]  धारणा से समाधि तक जाना सहज प्रक्रिया नहीं है। इसे हम अर्जुन की आंख वाली कहानी से समझ सकते हैं। अर्जुन ने अपनी धारणा में केवल मछली की आंख को चुना। स्वभाविक है कि अर्जुन का चित्त आत्मनियंत्रित था। और उसने मछली की आंख को अपनी धारणा के रूप में अवस्थित किया। फिर  को विस्तारित कर ध्यान की स्थिति में ले गया। और जब वह समाधिष्ट हुआ, तो हाथ से निकला सटीक निशाने पर जा बैठा।
[  ] अर्जुन की यह कहानी स्पष्ट रूप से हमारी आत्मशक्ति के उपयोग की कहानी है यही है समाधि का सर्वोच्च उदाहरण वह भी कथा के रूप में।
अब इस चित्त के नियंत्रण से धारणा ध्यान और समाधि की प्रक्रिया को समझते हैं।
आप देखते हैं कि आपका बच्चा दिन भर ढेरों सवाल करता है। सवालों का जवाब देते देते आप कई बार थक जाते हैं कई बार मुस्कुराने लगते हैं और तो और कई बार उसे झूठे जवाब भी देकर संतुष्ट करते हैं। वास्तव में यह वह स्थिति है जब बच्चा अपने मन में उठते हुए सवालों को समझने की कोशिश करता है यह एक बायोलॉजिकल इवेंट है। इस इवेंट का ना होना खतरनाक मुद्दा होगा अतः बच्चों को उनके सवालों की जवाब देना और जवाब देने के लिए स्वयं को गहन अध्ययन चिंतन करना जरूरी है। अक्सर बच्चे किसी भी खिलौने को तोड़कर उसके भीतर के रहस्य को भी जानना चाहते हैं। तब अभिभावक के रूप में हमें अपने आर्थिक नुकसान के संदर्भ को ऊपर रखकर बच्चे को डांटना या प्रताड़ित करना अपराध ही है। बच्चे के सामने उसके सवालों का जवाब देना ईश्वर की आराधना करने के बराबर है ऐसा मेरा मानना है। चलिए हम वापस लौटते हैं धारणा की ओर जिसका विस्तार ध्यान और समाधि तक जाता है। यह प्रक्रिया एक जन्म में पूर्ण हो ऐसा नहीं है वास्तव में जन्म जन्मांतर तक हमें इन प्रैक्टिस को तब तक करना होता है जब तक की हम लक्ष्य तक अर्थात धारणा तक न पहुंच पाएं।
  मैं आपको कोई धार्मिक उपदेश नहीं दे रहा हूं बल्कि यह एक वैज्ञानिक प्रमाणित सत्य है। आप ऐसे तथ्य पर चकित अवश्य होंगे परंतु अगर आप प्रजापिता ब्रह्मा की कल्पना करें तो आप जानेंगे कि हमारे रेस लीडर अर्थात प्रजापिता ब्रह्मा की अंतरिक्ष ज्ञान का विस्तार समझ पाएंगे। प्रजापिता ब्रह्मा ने ग्रहों की स्थिति नक्षत्रों की गति का सटीक विश्लेषण किया है। ग्रहों नक्षत्रों का अध्ययन कालांतर में बहुत से महर्षि यों यहां तक कि मयासुर नामक असुर ने भी किया। यहां एक शब्द संयम का उल्लेख करना आवश्यक है। संयम शब्द का अर्थ संकेंद्रीकरण है। उदाहरण के तौर पर मयासुर ने सूर्य पर समाधि के उपरांत संयम किया। और उसने इस संपूर्ण रहस्य को जाना। सूर्य के रहस्य का विवरण मयासुर ने सूर्य सिद्धांत के रूप में लिखा जो प्राचीन भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान का दस्तावेज है। इसके अतिरिक्त वशिष्ठ विश्वामित्र जैसे विद्वानों के अलावा कई अन्य विद्वानों ने अंतरिक्ष विज्ञान का अध्ययन किया और अपने अपने सिद्धांत प्रतिपादित किए थे। वशिष्ठ और विश्वामित्र की आपसी संघर्ष की कहानी भी आपने सुनी होगी। यह संघर्ष नक्षत्र विज्ञान को लेकर ही हुआ था। वास्तव में यह संघर्ष नहीं बल्कि वैचारिक असहमतियां रही है।
  जब धारणा,ध्यान,समाधि से आगे बढ़कर हम किसी विषय पर संयमित हो जाते हैं तो हमें उसके समस्त रहस्य से सहज परिचय हो जाता है।हिमालय की कंदरा में अथवा समुदाय से दूर होकर योग साधना करने  योगी क्या करते होंगे कभी सोचा आपने?
नहीं सोचा होगा तो बताता हूं- सबसे पहले हम धारणा,ध्यान,समाधि, और उसकी परिणीति अर्थात संयम के सहारे हम अपनी आत्मशक्ति को उभार  सकते हैं ।
    उदाहरण के तौर पर मुझे अपनी आत्मा को समझना है तो मुझे इन्हीं तीनों प्रक्रियाओं का अभ्यास करना चाहिए। जो चित्र बनाते हैं जो कविता लिखते हैं जो संगीत रचना करते हैं जो सामाजिक चिंतन करते हैं वह अगर इन तीनों साधनों का उपयोग ना करें तो वे अपने कार्य को कर ही नहीं सकते।
  संस्कृत की कठिन श्लोक मात्र का रट कर प्रस्तुतीकरण कर देना सनातन धर्म की उद्देश्य नहीं है। अगर हम समाधि तो होकर ब्रह्म पर अपना ध्यान संयमित करते हैं तो हमें ब्रह्म के रहस्य सहज ही जान सकते हैं। परंतु ब्रह्म तक जाने से पहले हमें बुल्ले शाह की तरह पूरे प्राणपन से गाना चाहिए-"बुल्ले की जाणा मैं कौन. ?"
   अर्थात हमें अपने आप को समझना चाहिए और यह समझ हम समाधि अवस्था को प्राप्त कर विकसित कर सकते हैं। यही है अगली कक्षाएं। जो मौसी जी को स्वर्गीय माताजी  ने पढ़ने के लिए कहीं थी। सच मानिए मैं पूजा नहीं करता। मुझे उतने श्लोक भी याद नहीं है। परंतु अभी अपनी आत्मा को पहचानने की प्रक्रिया में भाग ले रहा हूं।
  अध्यात्म की इस व्याख्या पर ध्यान देकर हम सब अपनी पिछली तीन जिंदगी हो का अनुमान लगा सकते हैं। इतनी सहज क्रिया है कि आप किसी भी व्यक्ति के चेहरे को देखकर उसे स्कैन कर सकते हैं।

रविवार, अगस्त 07, 2022

Ukrainian-origin teenager Carolina Proterisco

 


Ukrainian-origin teenager Carolina Proterisco has been in the hearts and minds of music lovers around the world these days. Carolina Proterisko was born on October 3, 2008 in Ukraine to a music-loving family.. Parents are also well versed in guitar and piano.

     This Melodius family moved to the United States in 2015 when Karolina was 6 years old. She started violin lessons in the same year and started taking classical music training.

In the summer of 2017, Karolina publicly debuted as a street-artist for the public in Santa Monica, (CA). The music-loving audience also gets mesmerized at each of his performances. Children are also compelled to dance after watching the musical performances.

Carolina Proterisco has 3 YouTube channels and is also on Facebook and Instagram. In less than 4 years his fan base has grown to over 11 million in more than 50 countries. If we talk about YouTube and other media sites, their videos have been viewed more than 1 billion times. She has shown her skills in the Ellen Show.

  Another feature of Carolina you need to be introduced to is that Carolina presents the tunes of every language of the world. Carolina also presents the tunes of Hindi film songs.

You will see her achievements small when you come to know that, this teenager does charity program to raise funds for cancer patients in USA.

She is the American brand-ambassador of this cancer cure campaign. It is my belief that Carolina, which has captivated the hearts of millions of viewers, will leave Michael-Jackson and Justin Weaver far behind in the coming era.

Carolina learns the nuances of the violin from the Suzuki Violin book series and Karolina learns pop songs with her mother while practicing classical music with violin teacher Mr. Fisher.

     Carolina admits that- "Initially she found it very easy to play the violin, but eventually she found it difficult to play ensembles, but because of her love for the violin, she considers herself successful."

Carolina says that- “She does not forget to practice pop singing on her violin for three hours every day, practicing other linguistic songs as well as practicing classical music. Carolina is greatly influenced and inspired by Lindsay Stirling.

Girish Billore "Mukul"

writer and art promoter

 

मंगलवार, अगस्त 02, 2022

Some Important Issues in Parenting Rabbits


Today let me introduce you to some important issues related to parenting of rabbits. You must have always wondered how to raise rabbit babies? I have 5 rabbit babies who are being looked after by my wife these days. Dear friend asked that till what age children should be given mother's milk.We have decided that it will be necessary for the children to be fed mother's milk till the milk from the mother's breasts, that is, the female rabbit, does not stop. Like the human species, the production of milk in mammals does not stop as long as the mother wants. The female rabbit demands a lot of food to feed. She has to maintain the status of lactating mother till she feels herself now that the children have grown up.Currently I have a pet rabbit that is 23 days old. And I think my female rabbit will maintain the status of lactating mother for at least 45 days. Lactating mother rabbits face a problem during breastfeeding. You must be thinking that what can be the problem to maintain the status of lactating mother for a long time? The reality is that the growth of rabbits is very speedy. Their teeth also grow very fast.Lactating mother rabbits are often bitten by children, this is the biggest problem for the female rabbit.

सोमवार, अगस्त 01, 2022

यूक्रेनियन मूल की नन्हीं विश्व-प्रसिद्ध वायलिन वादिका: केरोलिना प्रोटेरिस्को



यूक्रेन-मूल  की किशोरी  कैरोलिना प्रोटेरिस्को इन दिनों दुनिया भर के संगीत प्रेमियों के दिलो-दिमाग में छाई हुई है। कैरोलिना प्रोटेरिस्को का जन्म 3 अक्टूबर 2008 को यूक्रेन में एक संगीत-प्रेमी  परिवार में हुआ था।। माता-पिता भी  गिटार और पियानो में पारंगत है।

     यह  मेलोडीयस  परिवार 2015 में संयुक्त राज्य अमेरिका चला गया जब करोलिना 6 साल की थी। उसने उसी वर्ष वायलिन पाठ शुरू किया और शास्त्रीय संगीत का  प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया।  

2017 की गर्मियों के दिनों में करोलिना ने सेंटा मोनिका, ( सी.ए.)  में आम लोगों  के लिए  स्ट्रीट-आर्टिस्ट के रूप में सार्वजनिक रूप से यलिन वादन प्रारम्भ किया था । उसकी हरेक प्रस्तुति पर संगीत- प्रेमी दर्शक मन्त्रमुग्ध भी हो जाते हैं. संगीत प्रस्तुतियों के देख बच्चे भी थिरकने को मज़बूर हो जाते हैं.

केरोलिना प्रोटेरिस्को 3 यूट्यूब  चैनल हैं और वह फेसबुक और इंस्टाग्राम पर भी  है। 4 साल से भी कम समय में 50 से अधिक देशों में उनके प्रशंसकों की संख्या 11 मिलियन से अधिक हो गई है। यूट्यूब  और अन्य मीडिया साइटों की चर्चा की जावे तो  उनके वीडियोस  को 1 बिलियन से अधिक बार देखा जा चुका है. वे  एलेन शो में अपना हुनर दिखा चुकीं है.

  कैरोलिना की एक अन्य  विशेषता से आपका परिचय ज़रूरी हैकि कैरोलिना विश्व के हर भाषाई गीतों की धुन प्रस्तुत करतीं हैं. हिन्दी फ़िल्मी गीतों की धुनें  भी  प्रस्तुत करतीं हैं कैरोलिना .

आपको उनकी  उपलब्धियाँ छोटी  तब नजर आएंगी जब आपको पता चलेगा कि, यह किशोरी  यूएसए में कैंसर रोगियों के लिए धन-राशि एकत्र करने के लिए चैरिटी कार्यक्रम करतीं हैं. 

वे इस कैंसर से मुक्ति देने वाले अभियान कि अभियान की अमेरिकी ब्रांड-एम्बेसडर हैं. करोड़ों दर्शकों के मन को मोह लेने वाली कैरोलिना आने वाले दौर में माइकल-जैक्सन एवं जस्टिन वीवर को बहुत  पीछे छोड़ देंगीं यह मेरा मानना है.

  कैरोलिना,   सुजुकी वायलिन पुस्तक सीरीज़  से वायलिन की बारीकियाँ सीखतीं हैं  तथा  करोलिना अपनी मां के साथ पॉप गाने सीखतीं है जबकि  वायलिन शिक्षक मिस्टर फिशर के साथ शास्त्रीय संगीत का अभ्यास करती हैं।

    कैरोलिना मानतीं है कि- शुरू में उनको वायलिन बजाना बहुत आसान लगा, लेकिन अंततः उसे टुकड़ियाँ बजाना मुश्किल लगा, लेकिन वायलिन के प्रति अपने प्रेम के कारण, वे खुद को  सफल मानतीं हैं.

कैरोलिना कहतीं हैं कि- वह हर दिन तीन घंटे तक अपने वायलिन पर पॉप गाने अन्य भाषाई गीतों का अभ्यास के साथ- साथ शास्त्रीय संगीत बजाने का अभ्यास करना बिलकुल नहीं भूलतीं ।करोलिना को लिंडसे स्टर्लिंग का से खासी प्रभावित एवं प्रेरित हैं.    

  

ये उपलब्धियाँ बौनी तब नजर आएंगी जब आपको पता चलेगा कि- यूएसए में कैंसर रोगियों के लिए धन-राशि एकत्र करने के लिए चैरिटी कार्यक्रम किये. वे इस अभियान की अमेरिकी ब्रांड-एम्बेसडर हैं. करोड़ों दर्शकों के मन को मोह लेने वाली कैरोलिना आने वाले दौर में माइकल-जैक्सन एवं जस्टिन वीवर को बहुत  पीछे छोड़ देंगीं यह मेरा मानना है.     

  सुजुकी वायलिन पुस्तक से वायलिन की बारीकीयाँ सीखने वाली करोलिना अपनी मां के साथ पॉप गाने और अपने वायलिन शिक्षक मिस्टर फिशर के साथ शास्त्रीय संगीत का अभ्यास करती हैं।कैरोलिना मानतीं है कि- “ शुरू में उनको वायलिन बजाना बहुत आसान लगा, लेकिन अंततः उसे टुकड़ियाँ बजाना मुश्किल लगा, लेकिन वायलिन के प्रति अपने प्रेम के कारण, वह सफल है.” कैरोलिना कहतीं हैं कि वह हर दिन तीन घंटे तक अपने वायलिन पर पॉप गाने अन्य भाषाई गीतों का अभ्यास  और शास्त्रीय संगीत बजाने का अभ्यास करना कतई नहीं भूलतीं ।करोलिना को लिंडसे स्टर्लिंग का से खासी प्रभावित एवं प्रेरित हैं.  

 


 

शुक्रवार, जुलाई 29, 2022

पप्पू भाई चल दिए : विनम्र श्रद्धांजलि

मैं तो अपनी यात्रा पर निकल पड़ा हूं। तुम मेरे जीवन का विश्लेषण करते रहना क्या फर्क पड़ता है? मेरा नाम संजीव है घर में लोग मुझे पप्पू कहते हैं। बहुत बड़ा कुटुंब है हमारा। सब से बात होती रहती है। मुझ में कितने गुण और कितने अवगुण रहे हैं इसका जोड़ घटाना तुम सब करते रहना, मेरी तो सांसे पूर्ण हो चुकी है और मुझे जाना होगा। कुछ जिम्मेदारी और बहुत सारी यादें कुटुंब पर छोड़कर जा रहा हूं। अब मुझे शरीर बदलना है।
पप्पू जी  अपने प्रस्थान का एहसास उन्होंने कई बार करा दिया था। एक बार संभवत: दीपावली के बाद की भाई दूज पर संजीव यानी पप्पू भाई ने कहा था-"अगले साल हम मिलते हैं कि नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं' सच ही कहा था और आज हम उन्हें विदा कर आए। कल यानी 28 जुलाई 2022 को उन्होंने मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय जबलपुर में अपनी आखिरी सांस ली। उनका एक बेटा है राहुल। शांत सहज सरल और सब पर प्यार बरसाने वाला। राहुल की मां राहुल को बहुत उम्र में ही छोड़कर चल बसी थी।  राहुल पर प्यार बरसाने वालों की हमारे कुटुंब में कमी नहीं है । शरद जी भी चार-पांच साल पहले हम सबक
स्मृतियां देकर निकल  गए उनका भी एक बेटा है पिछले माह तक मां का सहारा था पर अब मां भी नहीं है। ये दोनों बच्चे अतिशय प्रिय हैं पूरे कुटुंब को। जब इनकी चिंता और इनके बारे में सकारात्मक चिंतन करते हैं। दोनों पेशे से इंजीनियर हैं पर मां बाप की अनुपस्थिति सबसे बड़ा खालीपन होता है। 
   यूं तो कुटुम्ब के हम 17 चचेरे भाई बहन हैं । परंतु आज़ यहां मैं चर्चा केवल तीन भाइयों की कर रहा हूं।
   हम तीन चचेरे भाइयों में शरद मुझसे कुछ महीने बड़े थे पप्पू मुझे कुछ महीने छोटे थे। हम तीनों के बारे नें सब एक राय हैं- कि परिवार और कुटुंब में हम उस स्तर के बच्चे नहीं हैं,  जितनी ऊंचाइयां और अन्य कई भाइयों ने स्पर्श कीं हैं। हम से असहमति बहुत से लोगों की हो सकती हैं। उन असहमतियों का मुझे लगता है-" मेरे दोनों स्वर्गीय भाइयों ने असहमतियों का सम्मान अवश्य किया होगा।
   हम तीनों के फ्लैशबैक में कोई ना कोई स्टोरी अवश्य चलती है। उन सबको हम गलत समझ में अवश्य आते होंगे जो एक सहज जीवन जीते हैं परंतु यह अच्छा वह बुरा इस ने यह कहा उसने वह कहा जैसे क्षेत्र अन्वेषण में संलग्न है। कोई फर्क नहीं पड़ता इससे किसी के भी जीवन पर। लोगों को मालूम ही नहीं कि जीवन जीने का नाम ही नहीं है, बल्कि मृत्यु पथ है। मृत्यु पथ अर्थात जीवन बहुत सरल और सफल नहीं होता किसी का भी। पर अधिकतर लोग अपने अंधेरों को छुपाने के लिए आर्टिफिशियल लाइटनिंग का इस्तेमाल करते हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो कि अपना ब्लैक एंड वाइट सामने रखते हैं। ऐसा करने में कोई हर्ज भी नहीं है। हमारे अंधेरे पक्ष को कौन कितना एक्सप्लेन करता है और हमें तदनुसार पोट्रेट करता है इससे हमें कोई लेना देना इसलिए नहीं क्योंकि हम जानते हैं कि वह लोग जो न में नेगेटिवली पोट्रेट कर रहे हैं उनका मानसिक स्तर घुप अंधेरे वाली सोच है।
 मेरा साफ कहना है कि-"किसी के जीवन का विश्लेषण करने का केवल ब्रह्म का है ये अधिकार हमको कभी हासिल नहीं है।"
   हर व्यक्ति के लिए हमें केवल प्रेम स्नेह आदर सम्मान सनातन परंपरा ने दिए हैं। बाक़ी आप समझदार है।



बुधवार, जुलाई 27, 2022

Politicians and Leftists don't have the right to define Hindutva...?

Hindutva may be alone but it is safe , Beautiful, 
and protective  
  Recently, I was having a discussion with a professor. Professor Saheb said that we have objection to Hindutva. You must have understood that they are influenced by imported ideology.
One who does not understand Hindutva is far from spirituality, I believe.I can say to the best of my knowledge that Hindutva is a philosophy.And more broadly speaking, Hindutva is the philosophy of life, and the way of integrating life.
Apart from Artha Dharma, Kama Moksha, Vishwa fraternity and Sarve Jana Sukhino Bhavantu's principle is the identity of Hindutva.
  The vision of Hindutva is universal and Hindutva has the quality of stability.
Don't know that there is enough Coffee houses that the bases of intellectual corruption, narratives are set about Hindutva. 
All of us have envisioned one #Brahm.The Shaiv, Vaishnava, Shakta, and Smartha sects were never seen fighting with each other.There is unity among these four sects of Hinduism. Every sect leads to a form of #Brahm.I have been successful in explaining this to my respected professor friend, whether he was successful in understanding it or not, it is a different matter.
No politician and Leftist need to define Hindutva

14 साल से लड़ रहे दंपत्ति को माननीय जस्टिस श्री रोहित आर्या जी का सबक

 


        14 साल से लड़ रहे दंपत्ति को माननीय जस्टिस श्री रोहित आर्या जी का सबक  समाज के लिए भी महान सन्देश .
      मुझे अच्छी तरह याद है है आर्या सर जबलपुर में प्रेक्टिस कर रहे थे . वर्ष 2010  दिल्ली यात्रा के दौरान  माननीय आर्या सर से आख़िरी भेंट  मात्र 5 मिनिट से भी कम समय के लिए हुई थी .  एयर-क्राफ्ट से एग्जिट ( इंदिरा गांधी एयर पोर्ट पर ) पहुँचने के दौरान हुई थी . अब जब सुनवाई लाइव हो चुकीं हैं, यह सुनवाई  दाम्पत्य विच्छेद के प्रकरण की  सुनवाई ग्वालियर पीठ की है. यहाँ जज साहब की टिप्पणी समाज के लिए आँख खोलने वाली सिद्ध होती है. .   

सोमवार, जुलाई 25, 2022

सिन्धु घाटी सभ्यता का काल निर्धारण होते ही बदल जाएगी विश्व की सभी सभ्यताओं की टाइम लाइन ?

 



श्री आर सी मजूमदार खुले तौर पर स्वीकारते हैं कि-“भारत के आदिम निवासियों कि संस्कृति के सम्बन्ध में पीछे जो भी कुछ कहा गया है वह भाषाशास्त्र के आधार- वर्तमान भाषाओं में जीवित प्राचीनतम शब्दों के अध्ययन के निष्कर्ष –पर ही आश्रित है . यह परोक्ष एवं अत्यंत संदिग्ध साधन है और किसी प्रकार भी तत्कालीन संस्कृति का विस्तृत चित्र उपस्थित नहीं करता. किन्तु जब तक ऐसे स्मारक नहीं मिल जाते इससे अधिक कुछ कह सकना संभव भी नहीं है. (सन्दर्भ-डा रमेशचंद्र मजूमदार कृत ग्रन्थ “प्राचीन भारत” प्रथम संस्करण 1962 के 8वाँ संस्करण पृष्ठ 7) शेष पन्नों पर  श्री मजूमदार नदी घाटी सभ्यता की विशेषताओं पर आलेखन करते हुए तत्समकालीन नगर-निवेश,मकान,स्नानागार,खाद्य,वस्त्र,आभूषण,फर्नीचर एवं बर्तन,हथियार,कला,मुहरें, मातृका-मूर्तियाँ, शिव, शिव लिंग-पूजन, पशु-वृक्ष की पूजा आदि का उल्लेख करतें हैं. श्री मजूमदार ने 1922-23 तक प्राप्त अवशेषों के आधार पर उपरोक्त कथन किया, जो स्वाभाविक है. इसके उपरांत बहुतेरे वामधर्म के पूजक विद्वानों ने अवेश्ता एवं वेदों की भाषा को लगभग समतुल्य मानते हुए वेदों को आर्यों नामक नस्ल के स्टेफी चरोखर से आकर रचने की पुष्टि कर दी .यह कैसा सच है कि असभ्य लड़ाके माने जाने वाले आक्रमण कर्ता आर्य भारत में आते ही एकदम पवित्र हो गए उनने संस्कृत भाषा का निर्माण भी कर लिया तथा उस भाषा में वेद भी लिख दिए. विचार करें तो इतिहासकार चरवाहों को आक्रान्ता,  बना देते हैं फिर उनको विद्वान्  बना कर भाषा निर्माता (संस्कृत भाषा) भी कह देते हैं. इतना ही नहीं इतिहास विद इन आर्यों को वेदों का सर्जक भी कह देते हैं. यह सब कुछ ईसा के 2000 से 1500 वर्ष पूर्व घटित हो जाना कितना उचित एवं वैज्ञानिक सत्य है इसे ईश्वर ही जानता है.

जब भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार की पड़ताल की तो ज्ञात हुआ कि वामधर्मी विद्वान् नक्षत्र विज्ञान के एंगल से अब भी कुछ नहीं देख रहे हैं. मध्य-प्रदेश के भुवाणा-मालवा निमाड़ में एक लोकोक्ति मशहूर है जिसमे कहा गया है कि “ कानी गाय कोsss एक गोयो...!” अर्थात कानी गाय चरोखर से लौटे हुए एक ही रास्ते पर चलती है. अस्तु वेदवीर आर्य ने वेद एवं वेदोत्तर साहित्य में वर्णित नक्षत्रों की युति/संगती/स्थितियों का वर्तमान में प्रयुक्त एस्ट्रोनामिकल गणना के आधार पर पैमाइश की तो वेदों का निर्माण श्रुति रूप में 14500 ईसा पूर्व से प्रारम्भ किया जाकर 11200 ईसापूर्व तक नियत किया है.

नदी-घाटी सभ्यता के उपरांत श्रुति में संचित वेदों की लिखित रूप से रचना की गई. अर्थात नदी घाटी सभ्यता का काल उसके पूर्व लगभग 16000 ईसा पूर्व कहीं रहा होगा ऐसा मेरा मानना है जो निष्कर्ष के रूप में  कृति “भारतीय मानव-सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार 16000 ईसा-पूर्व” में उल्लेखित है.अपनी रिसर्च के आधार पर नदी घाटी सभ्यता को मैं पूरे विश्वास के साथ निम्नानुसार कालानुक्रम देने में असहमति व्यक्त करता हूँ.....      

1.  पूर्व हड़प्पा काल : 3300-2500 ईसा पूर्व,

2.  परिपक्व काल: 2600-1900 ई॰पू॰;

3.  उत्तरार्ध हड़प्पा काल: 1900-1300 ईसा पूर्व

उपरोक्त वर्गीकरण के अस्वीकृत करने का आधार श्रीयुत वाकणकर की खोज को स्वीकारना आवश्यक है जो नर्मदा घाटी सभ्यता के अवशेषों को पुष्टिकृत करते हैं. साथ ही लगभग 10 हज़ार साल पूर्व विलुप हुई सरस्वती नदी जिसका उल्लेख बारम्बार वेदों में है को भी आधार मानकर इतिहास का पुनरीक्षण आवश्यक है. भारतीय प्राचीन इतिहास में रूचि रखने वाले युवा साथियों को खुला आमंत्रण है कि वे भी भारत के प्राचीन इतिहास का आलोचनात्मक अध्ययन करते हुए रिसर्च भी करें ताकि वाम-धर्मियों द्वारा स्थापित मिथकों से आने वाली पीढी को बचाएं. तथा छोटा सा किन्तु महान कार्य करके विश्व की सभ्यताओं की टाइम लाइन को भी सुनिश्चित करके महान कार्य करें . 

                               आलेख गिरीश बिल्लोरे मुकुल  

शनिवार, जुलाई 23, 2022

भारत से प्रतिभा पलायन : कारण और निदान [ गिरीश बिल्लोरे मुकुल]

          


   संसद के मानसून सत्र में तारांकित लोकसभा प्रश्न के जवाब में जानकारी स्पष्ट हुई है जिसके अनुसार भारत से 392000 लोग विदेशों में स्थाई रूप से बसने के इरादे से लगभग 120 देशों के नागरिक बन चुके हैं। 


मीडिया सूत्रों से तथा संसद में दिए जवाब के अनुसार टॉप 10 देशों की सिटीजनशिप लेने वालों में अमेरिका में सिटीजनशिप प्राप्त करने वालों की संख्या 1,70,795  है। जबकि कैनेडा की नागरिकता प्राप्त करने वाली आबादी 64,071  है। ऑस्ट्रेलिया को भी लोगों ने तीसरी प्राथमिकता पर रखते हुए अब तक. 58,391 वहां की नागरिकता प्राप्त कर चुके हैं। यूनाइटेड किंगडम की नागरिकता लेने वालों की संख्या 35,435 , तथा 12131 लोग इटली और 8,882 लोग न्यूजीलैंड के नागरिक बन चुके हैं. भारत के लोग सिंगापुर और जर्मनी की नागरिकता क्रमश:  7,046 , 6,690 जर्मनी, 3,754, स्वीडन के नागरिक हो गए हैं।भारत और भारतीयों की नजर में सबसे अशांत हमारे पड़ोसी  पाकिस्तान में  48 भारतीयों ने नागरिकता प्राप्त की है।


उपरोक्त नागरिकता संबंधी  आंकड़ों के सापेक्ष  हम अनिवासी प्रवासी भारतीयों अर्थात एन आर आई के आंकड़ों पर गौर करें तो विगत 20 वर्षों में 1.80 करोड़ है. अर्थात एक करोड़ अस्सी लाख भारतीय पहले से ही विदेशों में विभिन्न कारणों से प्रवास पर हैं . अर्थात कुल प्रवासियों के 2.8% लोगों ने ही विदेशी नागरिकता हासिल की है.    


विगत दो दिनों में नागरिकता के मुद्दे पर सबकी अपनी अपनी अलग-अलग राय है। कुछ लोगों का कहना है कि राजनीतिक अस्थिरता, एक महत्वपूर्ण वजह है। ऐसे लोगों की राय से कोई भी सहमत नहीं होगा और होना भी नहीं चाहिए। जो राष्ट्र की नागरिकता त्याग कर अन्यत्र राष्ट्रों में नागरिकता ग्रहण करते हैं यह उन व्यक्तियों के लिए सर्वथा व्यक्तिगत मुद्दा है ना कि राजनीति अथवा सामाजिक परिस्थितियों से इसका कोई लेना देना नहीं। विश्लेषक अपनी तरह से इस बात का विश्लेषण करने के लिए स्वतंत्र हैं और उनका अधिकार भी है परंतु मेरा मानना है कि केवल भारत में ऐसी कोई राजनीतिक परिस्थिति नहीं है जिसके कारण भारत को छोड़कर भारतवासी जाएं।भारतीय नागरिक विशेष तौर पर युवा अंग्रेज़ी भाषा के ज्ञान तथा अपने कर्मशील व्यक्तित्व के कारण यूरोप में अपना अस्तित्व सुनिश्चित करने के कारण सरलता से वीजा पा लेते हैं. एक और बात ध्यान देने योग्य है कि –“यूरोपीय एवं खाड़ी देख बिना लाभ के भारतीयों को वीजा नहीं देते..!”


यह महत्वपूर्ण है कि -" भारत से ब्रेन ड्रेनेज को अब रोकने की आवश्यकता है." भारत सरकार एवं राज्य सरकारों को ऐसी नीतियों का निर्माण करना आवश्यक है ताकि ब्रेन ड्रेन इसकी स्थिति उत्पन्न ना हो और प्रतिभावान युवाओं को यूरोप को मज़बूत बनाने से रोका जावे. ।


भारतीय 135 करोड़ की आबादी में से 1.80 करोड़ लोगों का प्रवासी होना ब्रेन ड्रेन है अत: सरकार के लिए माथे शिकन आनी जरूरी है।


यहाँ एक अपवाद पाकिस्तान की नागरिकता लेने वाले 48 लोग हैं. इसके कारणों पर इनका पाकिस्तान जाना सर्वथा व्यक्तिगत निर्णय है। इसे ब्रेन ड्रेनेज की श्रेणी से एकदम हटा देना चाहिए।


  विगत 3 वर्षों में जिस गति से भारतीय जन इतनी बड़ी संख्या में विदेशों में बस रहे हैं वह चिंताजनक अवश्य है। विदेशी नागरिकता ग्रहण करने के कारणों पर ध्यान दिया जाए तो आप पाएंगे

1.भारतवंशी युवा यूरोप में इस वजह से जाता है क्योंकि उसे जॉब सिक्योरिटी बेहतर जीवन प्रणाली उपलब्ध हो जाती है। परंतु यह सिद्धांत सब जगह लागू नहीं होता उदाहरण के लिए ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों के साथ दुर्व्यवहार आम बात है।

यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका  जर्मनी सिंगापुर में नागरिकता पाने वाले भारतीय मुख्य रूप से उच्च स्तरीय नौकरी अथवा व्यापार संस्थान स्थापित करने के कारण निजी सुविधा के चलते सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं। इस समाचार के आने के बाद जब युवाओं से बात की गई तो उन्होंने अमेरिका जर्मनी यूनाइटेड किंगडम सिंगापुर और उसके बाद केनेडा को प्राथमिकता क्रम में रखा।

2. भारत से अमेरिका जाकर सॉफ्टवेयर और आईटी के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों ने बताया कि भारत की तुलना में अमेरिका का जीवन कठिन है। बावजूद इसके डॉलर की मोहनी छवि उनके मस्तिष्क से निकल नहीं पाती है।

3.  केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों को इस बात का ध्यान रखना ही होगा की ब्रेन ड्रेनेज की स्थिति निर्मित ना हो।

    कनाडा की नागरिकता लेने या कैनेडा में बसने के सपने पंजाब में सर्वाधिक देखे जाते हैं। कनाडा की सिटीजनशिप मिलने का प्रमुख कारण वहां की आबादी कम होना है। कनाडा में निजी कारोबार करने वाले सिखों एवं पंजाब के लोगों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक है। 


2050 से 2060 तक विदेशों की नागरिकता ग्रहण करने वालों की संख्या में तेज़ी से वृद्धि की संभावना है।अगर विदेशों की नागरिकता ग्रहण करने वाले भारतीयों की संख्या 10% से 15% का इजाफा होता है तो प्रतिभाओं के पलायन के दुष्परिणाम साफ़तौर नज़र आएँगे . 


 अत: भारत में प्रतिभावान युवाओं के लिए सकारात्मक वातावरण बनाने के लिए केंद्र एवं राज्यों की सरकारों की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।


स्पष्ट है कि व्यक्तिगत कारणों से नागरिकता लेना चिंता का विषय नहीं है। चिंता का विषय तो यह है कि-" भारत में प्रतिभाओं के सही तरीके से प्रोत्साहन एवं उपयोग की आवश्यकता पर हम सतर्क क्यों नहीं हैं...?"

  प्रवासियों की उपलब्धि पर एक नजर -  

   अब हम चर्चा करते हैं उन राष्ट्रों की जहां पर भारतीयों का खासा दबदबा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 16 देशों में 200 से अधिक भारतवंशी  सक्रिय राजनीति में सांसद अथवा अन्य जनप्रतिनिधि के रूप में कार्यरत हैं। उदाहरणार्थ  अमेरिका में उपराष्ट्रपति की हैसियत हासिल करने में कमला हैरिस को ज्यादा जद्दोजहद नहीं करनी पड़ी। वर्तमान में भारतीय मूल के ऋषि सुनक के बारे में पूरा विश्व जानता है। मेरे एक परिचित योगाचार्य स्वामी अनंत बोध हरियाणा के निवासी हैं। तथा वे इन दिनों यूक्रेन से लगे लिथुआनिया देश में निवास कर रहे हैं। उनका उद्देश्य भारतीय सनातन का विस्तार तथा योग का प्रचार प्रसार करना है। स्वामी अनंत बोध विधिवत लिथुआनिया में योग का प्रशिक्षण भी देते हैं तथा आयुर्वेद का प्रचार-प्रसार भी करते हैं।


   अतः यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि-" भारत से अन्य देशों में जाकर बसने वालों के बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि भारत में प्रतिभाओं का सम्मान नहीं है अथवा उन्हें वांछित अवसर नहीं मिल रहे हैं।"

सोमवार, जून 20, 2022

जब एक कलेक्टर ने कमिश्नर लोकव्यहवार का पाठ

*आज़ादी की 75वीं वर्षगाँठ पर स्मृति कथा  01*
(15 अगस्त 2022 तक लगभग  ब्रिटिश हुकूमत पर कहानियों की सीरीज)
   1897-1898 की बात है, भारत अंग्रेजों का गुलाम था उस समय जबलपुर कमिश्नर के रूप में सर जे बेनफील्ड  फुलर पदस्थ थे। डिप्टी कमिश्नर वर्तमान में जिन्हें कलेक्टर कहा जाता है कि पद पर श्री स्टेंडन पदस्थ थे । जी हां मैं उसी फुलर साहब की बात कर रहा हूं जिनके नाम पर वर्तमान शहपुरा विकासखंड के एक गांव का नाम फुलर रखा गया था । अधिकांश अंग्रेज अधिकारी भारतीयों को अपमानित करते और अपमानित करने का अवसर की तलाश में रहते । फुलर साहब उसी तरह के अंग्रेज अफ़सर थे ।
    हाथी पर सवार होकर ग्रामीण क्षेत्रों की भ्रमण के लिए निकले। उनके साथ जबलपुर कलेक्टर अर्थात डिप्टी कमिश्नर स्टेंडन सरकारी कर्मचारी और माल गुजार भी चल रहे थे मालगुजार घोड़े पर सवार थे वे आसानी से घोड़े से चढ़ उतर नहीं सकते थे।
     यात्रा के दौरान कमिश्नर साहब ने मालगुजार से हाथी पर बैठे-बैठे कोई सवाल पूछा । मालगुजार ने भी हाथी पर बैठे-बैठे जवाब दे दिया।
  भारतीयों को अयोग्य और मूर्ख समझने वाले सर जे बेनफील्ड  फुलर के क्रोध का ठिकाना ना रहा। क्रोध का कारण था मालगुजार का घोड़े पर बैठे बैठे जवाब देना। वे आपे से बाहर हो गए और मालगुजार को अपमानित करते हुए अनाप-शनाप बोलने लगे, तथा घोड़े से उतर कर जवाब देने को बाध्य कर दिया। मालगुजार को पुनः घोड़े पर सवार होने के लिए अधीनस्थों की मदद लेनी पड़ी।
   डिप्टी कमिश्नर को उनका यह व्यवहार अशोभनीय लगा। डिप्टी कमिश्नर स्टेडेंन ने कमिश्नर को कहा- आपका यह व्यवहार अनुचित है। अगर आप जनता को प्रताड़ित करने का व्यवहार करते हैं तो मैं जिलाधीश होने के नाते आप के विरुद्ध कार्रवाई करूंगा। यह सुनते ही सर जे बेनफील्ड  फुलर के होश ठिकाने आ गए।
    फुलर की तरह कई अधिकारी इस तरह की भावना आम जनता के प्रति रखते थे। परंतु इससे उलट कुछ अधिकारी भारत के प्रति सकारात्मक सोच लेकर भारत के आम आदमी से सहज होकर व्यवहार करते थे। जिनमें नरसिंहपुर के डिप्टी कमिश्नर आई जे बोर्न एम स्लीमन साहब को आज भी जबलपुर की जनता सम्मान के साथ याद रखती है। स्लीमन साहब के वंश के लोग आज भी भारत का उतना ही सम्मान करते हैं।
यह कहानी स्वर्गीय डॉक्टर महेश चंद्र चौबे की पुस्तक जबलपुर अतीत दर्शन से ली गई है।

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