20.6.22

जब एक कलेक्टर ने कमिश्नर लोकव्यहवार का पाठ

*आज़ादी की 75वीं वर्षगाँठ पर स्मृति कथा  01*
(15 अगस्त 2022 तक लगभग  ब्रिटिश हुकूमत पर कहानियों की सीरीज)
   1897-1898 की बात है, भारत अंग्रेजों का गुलाम था उस समय जबलपुर कमिश्नर के रूप में सर जे बेनफील्ड  फुलर पदस्थ थे। डिप्टी कमिश्नर वर्तमान में जिन्हें कलेक्टर कहा जाता है कि पद पर श्री स्टेंडन पदस्थ थे । जी हां मैं उसी फुलर साहब की बात कर रहा हूं जिनके नाम पर वर्तमान शहपुरा विकासखंड के एक गांव का नाम फुलर रखा गया था । अधिकांश अंग्रेज अधिकारी भारतीयों को अपमानित करते और अपमानित करने का अवसर की तलाश में रहते । फुलर साहब उसी तरह के अंग्रेज अफ़सर थे ।
    हाथी पर सवार होकर ग्रामीण क्षेत्रों की भ्रमण के लिए निकले। उनके साथ जबलपुर कलेक्टर अर्थात डिप्टी कमिश्नर स्टेंडन सरकारी कर्मचारी और माल गुजार भी चल रहे थे मालगुजार घोड़े पर सवार थे वे आसानी से घोड़े से चढ़ उतर नहीं सकते थे।
     यात्रा के दौरान कमिश्नर साहब ने मालगुजार से हाथी पर बैठे-बैठे कोई सवाल पूछा । मालगुजार ने भी हाथी पर बैठे-बैठे जवाब दे दिया।
  भारतीयों को अयोग्य और मूर्ख समझने वाले सर जे बेनफील्ड  फुलर के क्रोध का ठिकाना ना रहा। क्रोध का कारण था मालगुजार का घोड़े पर बैठे बैठे जवाब देना। वे आपे से बाहर हो गए और मालगुजार को अपमानित करते हुए अनाप-शनाप बोलने लगे, तथा घोड़े से उतर कर जवाब देने को बाध्य कर दिया। मालगुजार को पुनः घोड़े पर सवार होने के लिए अधीनस्थों की मदद लेनी पड़ी।
   डिप्टी कमिश्नर को उनका यह व्यवहार अशोभनीय लगा। डिप्टी कमिश्नर स्टेडेंन ने कमिश्नर को कहा- आपका यह व्यवहार अनुचित है। अगर आप जनता को प्रताड़ित करने का व्यवहार करते हैं तो मैं जिलाधीश होने के नाते आप के विरुद्ध कार्रवाई करूंगा। यह सुनते ही सर जे बेनफील्ड  फुलर के होश ठिकाने आ गए।
    फुलर की तरह कई अधिकारी इस तरह की भावना आम जनता के प्रति रखते थे। परंतु इससे उलट कुछ अधिकारी भारत के प्रति सकारात्मक सोच लेकर भारत के आम आदमी से सहज होकर व्यवहार करते थे। जिनमें नरसिंहपुर के डिप्टी कमिश्नर आई जे बोर्न एम स्लीमन साहब को आज भी जबलपुर की जनता सम्मान के साथ याद रखती है। स्लीमन साहब के वंश के लोग आज भी भारत का उतना ही सम्मान करते हैं।
यह कहानी स्वर्गीय डॉक्टर महेश चंद्र चौबे की पुस्तक जबलपुर अतीत दर्शन से ली गई है।

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