मैं तो अपनी यात्रा पर निकल पड़ा हूं। तुम मेरे जीवन का विश्लेषण करते रहना क्या फर्क पड़ता है? मेरा नाम संजीव है घर में लोग मुझे पप्पू कहते हैं। बहुत बड़ा कुटुंब है हमारा। सब से बात होती रहती है। मुझ में कितने गुण और कितने अवगुण रहे हैं इसका जोड़ घटाना तुम सब करते रहना, मेरी तो सांसे पूर्ण हो चुकी है और मुझे जाना होगा। कुछ जिम्मेदारी और बहुत सारी यादें कुटुंब पर छोड़कर जा रहा हूं। अब मुझे शरीर बदलना है।
पप्पू जी अपने प्रस्थान का एहसास उन्होंने कई बार करा दिया था। एक बार संभवत: दीपावली के बाद की भाई दूज पर संजीव यानी पप्पू भाई ने कहा था-"अगले साल हम मिलते हैं कि नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं' सच ही कहा था और आज हम उन्हें विदा कर आए। कल यानी 28 जुलाई 2022 को उन्होंने मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय जबलपुर में अपनी आखिरी सांस ली। उनका एक बेटा है राहुल। शांत सहज सरल और सब पर प्यार बरसाने वाला। राहुल की मां राहुल को बहुत उम्र में ही छोड़कर चल बसी थी। राहुल पर प्यार बरसाने वालों की हमारे कुटुंब में कमी नहीं है । शरद जी भी चार-पांच साल पहले हम सबक
स्मृतियां देकर निकल गए उनका भी एक बेटा है पिछले माह तक मां का सहारा था पर अब मां भी नहीं है। ये दोनों बच्चे अतिशय प्रिय हैं पूरे कुटुंब को। जब इनकी चिंता और इनके बारे में सकारात्मक चिंतन करते हैं। दोनों पेशे से इंजीनियर हैं पर मां बाप की अनुपस्थिति सबसे बड़ा खालीपन होता है।
यूं तो कुटुम्ब के हम 17 चचेरे भाई बहन हैं । परंतु आज़ यहां मैं चर्चा केवल तीन भाइयों की कर रहा हूं।
हम तीन चचेरे भाइयों में शरद मुझसे कुछ महीने बड़े थे पप्पू मुझे कुछ महीने छोटे थे। हम तीनों के बारे नें सब एक राय हैं- कि परिवार और कुटुंब में हम उस स्तर के बच्चे नहीं हैं, जितनी ऊंचाइयां और अन्य कई भाइयों ने स्पर्श कीं हैं। हम से असहमति बहुत से लोगों की हो सकती हैं। उन असहमतियों का मुझे लगता है-" मेरे दोनों स्वर्गीय भाइयों ने असहमतियों का सम्मान अवश्य किया होगा।
हम तीनों के फ्लैशबैक में कोई ना कोई स्टोरी अवश्य चलती है। उन सबको हम गलत समझ में अवश्य आते होंगे जो एक सहज जीवन जीते हैं परंतु यह अच्छा वह बुरा इस ने यह कहा उसने वह कहा जैसे क्षेत्र अन्वेषण में संलग्न है। कोई फर्क नहीं पड़ता इससे किसी के भी जीवन पर। लोगों को मालूम ही नहीं कि जीवन जीने का नाम ही नहीं है, बल्कि मृत्यु पथ है। मृत्यु पथ अर्थात जीवन बहुत सरल और सफल नहीं होता किसी का भी। पर अधिकतर लोग अपने अंधेरों को छुपाने के लिए आर्टिफिशियल लाइटनिंग का इस्तेमाल करते हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो कि अपना ब्लैक एंड वाइट सामने रखते हैं। ऐसा करने में कोई हर्ज भी नहीं है। हमारे अंधेरे पक्ष को कौन कितना एक्सप्लेन करता है और हमें तदनुसार पोट्रेट करता है इससे हमें कोई लेना देना इसलिए नहीं क्योंकि हम जानते हैं कि वह लोग जो न में नेगेटिवली पोट्रेट कर रहे हैं उनका मानसिक स्तर घुप अंधेरे वाली सोच है।
मेरा साफ कहना है कि-"किसी के जीवन का विश्लेषण करने का केवल ब्रह्म का है ये अधिकार हमको कभी हासिल नहीं है।"
हर व्यक्ति के लिए हमें केवल प्रेम स्नेह आदर सम्मान सनातन परंपरा ने दिए हैं। बाक़ी आप समझदार है।