श्री आर सी मजूमदार खुले तौर पर स्वीकारते हैं कि-“भारत
के आदिम निवासियों कि संस्कृति के सम्बन्ध में पीछे जो भी कुछ कहा गया है वह भाषाशास्त्र
के आधार- वर्तमान भाषाओं में जीवित प्राचीनतम शब्दों के अध्ययन के निष्कर्ष –पर ही
आश्रित है . यह परोक्ष एवं अत्यंत संदिग्ध साधन है और किसी प्रकार भी तत्कालीन
संस्कृति का विस्तृत चित्र उपस्थित नहीं करता. किन्तु जब तक ऐसे स्मारक नहीं मिल
जाते इससे अधिक कुछ कह सकना संभव भी नहीं है. (सन्दर्भ-डा रमेशचंद्र मजूमदार कृत ग्रन्थ
“प्राचीन भारत” प्रथम संस्करण 1962 के 8वाँ संस्करण पृष्ठ 7) शेष पन्नों पर श्री मजूमदार नदी घाटी सभ्यता की विशेषताओं पर
आलेखन करते हुए तत्समकालीन नगर-निवेश,मकान,स्नानागार,खाद्य,वस्त्र,आभूषण,फर्नीचर
एवं बर्तन,हथियार,कला,मुहरें, मातृका-मूर्तियाँ, शिव, शिव लिंग-पूजन, पशु-वृक्ष की
पूजा आदि का उल्लेख करतें हैं. श्री मजूमदार ने 1922-23 तक प्राप्त अवशेषों के
आधार पर उपरोक्त कथन किया, जो स्वाभाविक है. इसके उपरांत बहुतेरे वामधर्म के पूजक
विद्वानों ने अवेश्ता एवं वेदों की भाषा को लगभग समतुल्य मानते हुए वेदों को
आर्यों नामक नस्ल के स्टेफी चरोखर से आकर रचने की पुष्टि कर दी .यह कैसा सच है कि असभ्य
लड़ाके माने जाने वाले आक्रमण कर्ता आर्य भारत में आते ही एकदम पवित्र हो गए उनने
संस्कृत भाषा का निर्माण भी कर लिया तथा उस भाषा में वेद भी लिख दिए. विचार करें
तो इतिहासकार चरवाहों को आक्रान्ता, बना
देते हैं फिर उनको विद्वान् बना कर भाषा
निर्माता (संस्कृत भाषा) भी कह देते हैं. इतना ही नहीं इतिहास विद इन आर्यों को वेदों
का सर्जक भी कह देते हैं. यह सब कुछ ईसा के 2000 से 1500 वर्ष पूर्व घटित हो जाना
कितना उचित एवं वैज्ञानिक सत्य है इसे ईश्वर ही जानता है.
जब भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार की
पड़ताल की तो ज्ञात हुआ कि वामधर्मी विद्वान् नक्षत्र विज्ञान के एंगल से अब भी कुछ
नहीं देख रहे हैं. मध्य-प्रदेश के भुवाणा-मालवा निमाड़ में एक लोकोक्ति मशहूर है जिसमे
कहा गया है कि “ कानी गाय कोsss एक गोयो...!” अर्थात कानी गाय चरोखर से लौटे हुए
एक ही रास्ते पर चलती है. अस्तु वेदवीर आर्य ने वेद एवं वेदोत्तर साहित्य में वर्णित
नक्षत्रों की युति/संगती/स्थितियों का वर्तमान में प्रयुक्त एस्ट्रोनामिकल गणना के
आधार पर पैमाइश की तो वेदों का निर्माण श्रुति रूप में 14500 ईसा पूर्व से
प्रारम्भ किया जाकर 11200 ईसापूर्व तक नियत किया है.
नदी-घाटी सभ्यता के उपरांत श्रुति में संचित वेदों की लिखित
रूप से रचना की गई. अर्थात नदी घाटी सभ्यता का काल उसके पूर्व लगभग 16000 ईसा
पूर्व कहीं रहा होगा ऐसा मेरा मानना है जो निष्कर्ष के रूप में कृति “भारतीय मानव-सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश
द्वार 16000 ईसा-पूर्व” में उल्लेखित है.अपनी रिसर्च के आधार पर नदी घाटी सभ्यता
को मैं पूरे विश्वास के साथ निम्नानुसार कालानुक्रम देने में असहमति व्यक्त करता
हूँ.....
1. पूर्व हड़प्पा काल :
3300-2500 ईसा पूर्व,
2. परिपक्व काल: 2600-1900 ई॰पू॰;
3. उत्तरार्ध हड़प्पा काल:
1900-1300 ईसा पूर्व
उपरोक्त वर्गीकरण के अस्वीकृत करने का आधार श्रीयुत
वाकणकर की खोज को स्वीकारना आवश्यक है जो नर्मदा घाटी सभ्यता के अवशेषों को
पुष्टिकृत करते हैं. साथ ही लगभग 10 हज़ार साल पूर्व विलुप हुई सरस्वती नदी जिसका उल्लेख
बारम्बार वेदों में है को भी आधार मानकर इतिहास का पुनरीक्षण आवश्यक है. भारतीय
प्राचीन इतिहास में रूचि रखने वाले युवा साथियों को खुला आमंत्रण है कि वे भी भारत
के प्राचीन इतिहास का आलोचनात्मक अध्ययन करते हुए रिसर्च भी करें ताकि वाम-धर्मियों
द्वारा स्थापित मिथकों से आने वाली पीढी को बचाएं. तथा छोटा सा किन्तु महान कार्य करके विश्व की सभ्यताओं की टाइम लाइन को भी सुनिश्चित करके महान कार्य करें .
आलेख
गिरीश बिल्लोरे मुकुल