संसद के मानसून सत्र में तारांकित लोकसभा प्रश्न के जवाब में जानकारी स्पष्ट हुई है जिसके अनुसार भारत से 392000 लोग विदेशों में स्थाई रूप से बसने के इरादे से लगभग 120 देशों के नागरिक बन चुके हैं।
मीडिया सूत्रों से तथा संसद में दिए जवाब के अनुसार टॉप 10 देशों की सिटीजनशिप लेने वालों में अमेरिका में सिटीजनशिप प्राप्त करने वालों की संख्या 1,70,795 है। जबकि कैनेडा की नागरिकता प्राप्त करने वाली आबादी 64,071 है। ऑस्ट्रेलिया को भी लोगों ने तीसरी प्राथमिकता पर रखते हुए अब तक. 58,391 वहां की नागरिकता प्राप्त कर चुके हैं। यूनाइटेड किंगडम की नागरिकता लेने वालों की संख्या 35,435 , तथा 12131 लोग इटली और 8,882 लोग न्यूजीलैंड के नागरिक बन चुके हैं. भारत के लोग सिंगापुर और जर्मनी की नागरिकता क्रमश: 7,046 , 6,690 जर्मनी, 3,754, स्वीडन के नागरिक हो गए हैं।भारत और भारतीयों की नजर में सबसे अशांत हमारे पड़ोसी पाकिस्तान में 48 भारतीयों ने नागरिकता प्राप्त की है।
उपरोक्त नागरिकता संबंधी आंकड़ों के सापेक्ष हम अनिवासी प्रवासी भारतीयों अर्थात एन आर आई के आंकड़ों पर गौर करें तो विगत 20 वर्षों में 1.80 करोड़ है. अर्थात एक करोड़ अस्सी लाख भारतीय पहले से ही विदेशों में विभिन्न कारणों से प्रवास पर हैं . अर्थात कुल प्रवासियों के 2.8% लोगों ने ही विदेशी नागरिकता हासिल की है.
विगत दो दिनों में नागरिकता के मुद्दे पर सबकी अपनी अपनी अलग-अलग राय है। कुछ लोगों का कहना है कि राजनीतिक अस्थिरता, एक महत्वपूर्ण वजह है। ऐसे लोगों की राय से कोई भी सहमत नहीं होगा और होना भी नहीं चाहिए। जो राष्ट्र की नागरिकता त्याग कर अन्यत्र राष्ट्रों में नागरिकता ग्रहण करते हैं यह उन व्यक्तियों के लिए सर्वथा व्यक्तिगत मुद्दा है ना कि राजनीति अथवा सामाजिक परिस्थितियों से इसका कोई लेना देना नहीं। विश्लेषक अपनी तरह से इस बात का विश्लेषण करने के लिए स्वतंत्र हैं और उनका अधिकार भी है परंतु मेरा मानना है कि केवल भारत में ऐसी कोई राजनीतिक परिस्थिति नहीं है जिसके कारण भारत को छोड़कर भारतवासी जाएं।भारतीय नागरिक विशेष तौर पर युवा अंग्रेज़ी भाषा के ज्ञान तथा अपने कर्मशील व्यक्तित्व के कारण यूरोप में अपना अस्तित्व सुनिश्चित करने के कारण सरलता से वीजा पा लेते हैं. एक और बात ध्यान देने योग्य है कि –“यूरोपीय एवं खाड़ी देख बिना लाभ के भारतीयों को वीजा नहीं देते..!”
यह महत्वपूर्ण है कि -" भारत से ब्रेन ड्रेनेज को अब रोकने की आवश्यकता है." भारत सरकार एवं राज्य सरकारों को ऐसी नीतियों का निर्माण करना आवश्यक है ताकि ब्रेन ड्रेन इसकी स्थिति उत्पन्न ना हो और प्रतिभावान युवाओं को यूरोप को मज़बूत बनाने से रोका जावे. ।
भारतीय 135 करोड़ की आबादी में से 1.80 करोड़ लोगों का प्रवासी होना ब्रेन ड्रेन है अत: सरकार के लिए माथे शिकन आनी जरूरी है।
यहाँ एक अपवाद पाकिस्तान की नागरिकता लेने वाले 48 लोग हैं. इसके कारणों पर इनका पाकिस्तान जाना सर्वथा व्यक्तिगत निर्णय है। इसे ब्रेन ड्रेनेज की श्रेणी से एकदम हटा देना चाहिए।
विगत 3 वर्षों में जिस गति से भारतीय जन इतनी बड़ी संख्या में विदेशों में बस रहे हैं वह चिंताजनक अवश्य है। विदेशी नागरिकता ग्रहण करने के कारणों पर ध्यान दिया जाए तो आप पाएंगे
1.भारतवंशी युवा यूरोप में इस वजह से जाता है क्योंकि उसे जॉब सिक्योरिटी बेहतर जीवन प्रणाली उपलब्ध हो जाती है। परंतु यह सिद्धांत सब जगह लागू नहीं होता उदाहरण के लिए ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों के साथ दुर्व्यवहार आम बात है।
यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका जर्मनी सिंगापुर में नागरिकता पाने वाले भारतीय मुख्य रूप से उच्च स्तरीय नौकरी अथवा व्यापार संस्थान स्थापित करने के कारण निजी सुविधा के चलते सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं। इस समाचार के आने के बाद जब युवाओं से बात की गई तो उन्होंने अमेरिका जर्मनी यूनाइटेड किंगडम सिंगापुर और उसके बाद केनेडा को प्राथमिकता क्रम में रखा।
2. भारत से अमेरिका जाकर सॉफ्टवेयर और आईटी के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों ने बताया कि भारत की तुलना में अमेरिका का जीवन कठिन है। बावजूद इसके डॉलर की मोहनी छवि उनके मस्तिष्क से निकल नहीं पाती है।
3. केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों को इस बात का ध्यान रखना ही होगा की ब्रेन ड्रेनेज की स्थिति निर्मित ना हो।
कनाडा की नागरिकता लेने या कैनेडा में बसने के सपने पंजाब में सर्वाधिक देखे जाते हैं। कनाडा की सिटीजनशिप मिलने का प्रमुख कारण वहां की आबादी कम होना है। कनाडा में निजी कारोबार करने वाले सिखों एवं पंजाब के लोगों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक है।
2050 से 2060 तक विदेशों की नागरिकता ग्रहण करने वालों की संख्या में तेज़ी से वृद्धि की संभावना है।अगर विदेशों की नागरिकता ग्रहण करने वाले भारतीयों की संख्या 10% से 15% का इजाफा होता है तो प्रतिभाओं के पलायन के दुष्परिणाम साफ़तौर नज़र आएँगे .
अत: भारत में प्रतिभावान युवाओं के लिए सकारात्मक वातावरण बनाने के लिए केंद्र एवं राज्यों की सरकारों की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।
स्पष्ट है कि व्यक्तिगत कारणों से नागरिकता लेना चिंता का विषय नहीं है। चिंता का विषय तो यह है कि-" भारत में प्रतिभाओं के सही तरीके से प्रोत्साहन एवं उपयोग की आवश्यकता पर हम सतर्क क्यों नहीं हैं...?"
प्रवासियों की उपलब्धि पर एक नजर -
अब हम चर्चा करते हैं उन राष्ट्रों की जहां पर भारतीयों का खासा दबदबा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 16 देशों में 200 से अधिक भारतवंशी सक्रिय राजनीति में सांसद अथवा अन्य जनप्रतिनिधि के रूप में कार्यरत हैं। उदाहरणार्थ अमेरिका में उपराष्ट्रपति की हैसियत हासिल करने में कमला हैरिस को ज्यादा जद्दोजहद नहीं करनी पड़ी। वर्तमान में भारतीय मूल के ऋषि सुनक के बारे में पूरा विश्व जानता है। मेरे एक परिचित योगाचार्य स्वामी अनंत बोध हरियाणा के निवासी हैं। तथा वे इन दिनों यूक्रेन से लगे लिथुआनिया देश में निवास कर रहे हैं। उनका उद्देश्य भारतीय सनातन का विस्तार तथा योग का प्रचार प्रसार करना है। स्वामी अनंत बोध विधिवत लिथुआनिया में योग का प्रशिक्षण भी देते हैं तथा आयुर्वेद का प्रचार-प्रसार भी करते हैं।
अतः यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि-" भारत से अन्य देशों में जाकर बसने वालों के बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि भारत में प्रतिभाओं का सम्मान नहीं है अथवा उन्हें वांछित अवसर नहीं मिल रहे हैं।"