मित्रो, देश एक
अनोखे नुक्कड़ पर आ कर हतप्रभ था चकित कर देने वाले किसी परिणाम के लिये सवाल बार
बार देख रहा था. सवाल थे :-
“अब क्या.होगा..!”
“सब कैसे.होगा..!”
“ये सब कौन करेगा भई..!”
मित्रो सवाल हल हो चुके हैं उत्सव भी मना लिया.
अब आपके पास आईकान है.. न .. न भाई.. अब आईकान्स हैं. अपने कई आलेखों में आईकान के
अभाव की.. चिंता मैने व्यक्त भी की थी अपने आलेखों में.
आपको याद होगा कि अन्ना के आंदोलन के दौर में “अन्ना” एक आईकान के रूप में नज़र आए . पर मुझे ऐसा कुछ खास न लगा न ही मुझ सा अदना लेखक उनको आइकान मान रहा था. इसके कई कारण थे जिसमें सबसे अव्वल था एक क्योंकि उनके अभियान से एक सज्जन को जब करीब से जाना और जानने के तुरंत बाद मुझे एहसास हो गया था कि अन्ना के इर्दगिर्द जुड़ाव शायद आकस्मिक और हड़बड़ाहट का जुड़ाव था. अथवा अन्ना जी का लक्ष्य केवल मुद्दे को हवा देना मात्र रहा हो जो भी हो वे आईकान बनने में असफ़ल रहे.. कारण जो भी हो आईकान की ज़रूरत यानी एक पोत के लिये दिशासूचक की ज़रूरत थी . अचानक मोदी को सामने गया.. थोड़ी अचकचाहट के साथ भारतीय जनता जनार्दन में अंतर करंट प्रवाहित हो गया. ढाबे वाला ड्रायवर जो पंजाब और यूपी से लौट रहा था उसने एहसास दिला दिया कि क्या होने जा रहा है वैसा ही हुआ. ये अलग बात थी कि मैं और खाना खा रहे लोगों ने बेहद सामान्य ढंग से लिया. जो भी हुआ गोया तय कर लिया था कि क्या करना है. आपको याद होगा कि किसी राजा ने राज्य के लोगों से टंकी को भरने दूध मंगाया पर सब ने पानी लाए ये सोच कि मेरे एक लोटे पानी लाने से क्या होगा सब तो दूध ही लाएंगें.. और सबके सबों ने पानी से भर दी टंकी... इस बार सबने दूध से लबालब कर दिया टंकी को .. दूध लाने वालो आपसे एक अपेक्षा है कि - सिर्फ़ दूध इस लिये लाएं हैं कि कल उनके लिये दूध से बनी मिठाईयां.. मिलने लगेंगी.
प्रिय
देशवासियो, अब केवल एक वोट का मामला नहीं देश को हर मोर्चे पर अव्वल लाने के लिये आत्म
आचरणों में बदलाव लाना ही होगा .. अब नल की टोंटी न चुराना, मुफ़्त में सरकारी
इमदाद को न लूटना, सरकारी कर्मचारी के रूप में सतत काम करना . बिना बारी और
पात्रता के येनकेन प्रकारेण लाभ लेने की लालच छोड़ना होगा. अब सिगमेंट में जीना
छोड़ना होगा. देश वासियो....धर्म आधारित व्यवस्था की अपेक्षा न करेंगें.. जाति के समूह के.. समुदाय के भाषा के नफ़े नुकसान का मीजान न लगाना वरना आप को फ़िर उन्ही दिनों की ओर लौटना होगा.. जिनसे आप उकता रहे थे. इस आलेख का आशय पूर्णतया आप समझ ही रहे होगे... शायद नहीं तो साफ़ साफ़ समझ लीजिये ... अब व्यक्तिगत लाभ के भाव को त्याग कर सार्वभौमिक विकास के भाव को आत्मसात करना होगा.