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रविवार, जून 07, 2009

ढाबॉ पे भट्ठियां नहीं देह सुलगती है .

यहाँ भी एक चटका लगाइए जी

इक पीर सी उठती है इक हूक उभरती है

मलके जूठे बरतन मुन्नी जो ठिठुरती है.
अय. ताजदार देखो,ओ सिपहेसलार देखो -
ढाबॉ पे भट्ठियां नहीं देह सुलगती है .
कप-प्लेट खनकतें हैं सुन चाय दे रे छोटू
ये आवाज बालपन पे बिजुरी सी कड़कती है
मज़बूर माँ के बच्चे जूठन पे पला करते
स्लम डाग की कहानी बस एक झलक ही है
बारह बरस की मुन्नी नौ-दस बरस की बानो
चाहत बहुत है लेकिन पढने को तरसती है
क्यों हुक्मराँ सुनेगा हाकिम भी क्या करेगा
इन दोनों की छैंयाँ लंबे दरख्त की है

शनिवार, जून 06, 2009

एक विनम्र आग्रह

मैंने अंकित की मदद से यह साईट बना ली है
आप से आग्रह है कि इस साइट को ब्लागर्स के उपयोग के लिए क्या क्या किया जा सकता है यहाँ मुझे बताएं ।
मिसफिट जो अब डोमेन पर है आप में से कोई भी मुझे ज्वाइन करे
कारवां बनता जाएगा
इस मामले में सोच साफ़ है "कि हम सब " जिस मिशन को लेकर ब्लॉग पर हैं क्यों न अपनी साइट पर जाएँ हिन्दी के विस्तार के लिए

शुक्रवार, जून 05, 2009

पर्यावरण दिवस पर विशेष


जननी जन्म भूमिश्च : को विनत प्रणाम के साथ गीत पुन: दे रहा हूँ ..... काम-की अधिकता के कारण ब्लॉग पर नई पोस्ट संभव नहीं थी ।शायद आपको पसंद आए ..... यदि पसंद नहीं आता है तो कृपया इस आलेख को अवश्य
को पढ़ा जाए
धरा से उगती उष्मा , तड़पती देहों के मेले
दरकती भू ने समझाया, ज़रा अब तो सबक लो

यहाँ उपभोग से ज़्यादा प्रदर्शन पे यकीं क्यों है
तटों को मिटा देने का तुम्हारा आचरण क्यों है
तड़पती मीन- तड़पन को अपना कल समझ लो
दरकती भू ने समझाया, ज़रा अब तो सबक लो

मुझे तुम माँ भी कहते निपूती भी बनाते हो
मेरे पुत्रों की ह्त्या कर वहां बिल्डिंग उगाते हो
मुझे माँ मत कहो या फिर वनों को उनका हक दो
दरकती भू ने समझाया, ज़रा अब तो सबक लो

मुझे तुमसे कोई शिकवा नहीं न कोई अदावत है
तुम्हारे आचरण में पल रही ये जो बगावत है
मेघ तुमसे हैं रूठे , बात इतनी सी समझ लो
दरकती भू ने समझाया, ज़रा अब तो सबक लो।
आज जबलपुर के सर्रापीपर में जगत मणि चतुर्वेदी जी एक आयोजन कर रहें हैं जिसके अतिथि वृक्ष होंगें यानी .... यानी क्या देखता हूँ शाम को कार्यक्रम है लौट के रपट मिलेगी

मंगलवार, मई 26, 2009

वृषभानुज यानी सांड

मुझे उसे उसकी हरकत देख कर सांड कहना था . किन्तु किसी को सरे आम सांड कह देना मुझ जैसे कवि को क्या किसी को भी अलस्तर-पलस्तर से सँवरने की तैयारी होती और कुछ नहीं . रहा सवाल क्रोध निकालने का सो कहना तो था ही . राजपथ चारी वो सत्ता के मद में चूर जब मेरे दफ्तर आया तो अपनी कथित गरीब "प्रजा"के कार्य न होने का आक्रोश निकाल रहा . ... कुछ इस तरह वो चीखे :-"साब, आप ने तुलसा बाई को आँगनवाडी वर्कर न बनाया मैं आपकी दीवालें पोत दूंगा ! सी एम् साहब आ रहे हैं उनके सामने पेश कराउंगा ! आप अपनी कुर्सी बच्चा लीजिये "

मैंने कहा श्रीमान जी आप जन-प्रतिनिधि हैं गरीब जनता को सही बातें सिखाइए . झूठे आश्वासन देकर आप खुद फंस जाते हैं फिर हम पर दवाब बनाते है गलत काम करने के लिए ?
"देखता हूँ,क्या और कितना गलत सही करतें हैं ?
यह जानते हुए की श्रीमान का नाम "........" है मैंने कहा:-"वृषभानुज जी हम चाहेंगे की आप कलैक्टर साब की कोर्ट में इस मामले को लगा दीजिये "
वो:-"मेरा नाम वृषभानुज नहीं है "
मैं:"आप मेरे लिए सम्माननीय है मुझे आज से आपको यह नाम देने से कोई रोक नहीं सकता आप भी नहीं ?
वो:-(गुस्सा उतरने की वज़ह से नर्म हो गए थे बोले )- ठीक है पंडित जी आप मुझे जो भी नाम दें सर माथे पर इस महिला को नौकरी दे देते ?

मैं:- वृषभानुज जी, संभव नहीं आपकी यह गरीब आवेदिका "पंच" है जो विधान में वर्जित
वृषभानुज जी कसमसाते अपना सा मुंह लिए लौट गए किन्तु अपने को मिले नए नाम का उछाह लिए
नोट: इस पोस्ट की सभी छवियाँ गूगल से प्राप्त हैं छवि के स्वामी अथवा अन्य किसी को भी कोई आपत्ति हो तो सूचित कीजिये ताकि छवि पोस्ट हटाई जा सके अग्रिम आभार सहित /

बुधवार, मई 20, 2009

आओ बहस करें: बांये पथचारीयों को समर्पित

आओ बहस करें
जूतम-पैजार तक
मोहल्ले से बाज़ार तक
दो हों तो भी
और हों हज़ार तक
आओ हम बहस करें
आओ हम बहस करें
काम करे और कोई
आओ हम बहस करें
विषय के चुक जाने तक
आम के पाक जाने तक
नक्सलियों के आयुध से
जीभों का उपचार करें
गांधी अब याद आया
कल दीं दयाल का
विष पिलाने का आर्ट
आपमें कमाल का
घर मेरे है आग लगी
रास कलस ताक रखें
बस्ती के जलने तक हम
"कारण पे बात रखें "
सोमनाथ टूटा था
सोमनाथ है हताश
मोगरे के पेड़ पे क्यों
न उगे है पलाश
बाएँ पथ धारी हम
इस की तलाश करें
प्रश्न हम सहस करें
आओ हम बहस करें

शनिवार, अप्रैल 18, 2009

"जबलपुर में आज से शुरू दो दिनी ब्लागिंग कार्यशाला "

जबलपुर में हुई पहली हंगामेदार ब्लागर्स मीट में तय हुआ
था कि ब्लागिंग का व्यापक प्रचार प्रसार हो . वादा सिर्फ आलेखों
तक सीमित नहीं रहा आज यानी 18 अप्रेल से 19 अप्रेल 2009
तक जमा हो रहे हैं 50 युवक युवतियां हिंदी ब्लॉगर बनने . इन में से
यदि कुछेक भी ब्लॉगर बनें तो तय है कि शहर जबलपुर से ब्लागिंग
ब्लागिंग में उत्कृष्ट अवदान होगा . डाक्टर प्रशांत कौरव ने अपने कालेज
मीडिया कालेज ऑफ़ जनर्लिज्म में ब्लागिंग पर कार्यशाला करने का वादा
पूरा किया है .
नि:स्वार्थ भाव से ब्लागिंग हम सिखाएंगे आप की शुभ कामनाएँ
ज़रूर रंग लायेंगी

बुधवार, अप्रैल 15, 2009

ग्राम कथा भाग एक :भैया तीरथ,अकल बड़ी होत है तैं भैंस को बड़ी बता रओं है.

कलेक्टर साहब का गाँव में दौरा जान कर भोला खेत नहीं गया उसे देखना था की ये कलेक्टर साहब क्या....कौन .....कैसे होते हैं ?
दिन भर मेहनत मशक्कत कर के रोजी-रोटी कमाने वाला मज़दूर आज दिल पे पत्थर रख के रुका था , सिरपंच जी के आदेश को टालना भी उसकी सामर्थ्य से बाहर की बात थी सो बेचारा रुक गया , रात को गुलाब कुटवार [कोटवार ] की पुकार ने सारे पुरुषों को संकर-मन्दिर [शंकर ] खींच लिया बीडी जलाई गई.यहाँ सिरपंच ने तमाखू चूने,बीड़ी,का इंतज़ाम कर दिया था.
सरपंच:-"काय भूरे आओ कई नई...?"
"मरहई खौं जाएँ बे आएं तो आएं कक्का हम तो हैं जुबाब देबी"
"जब से भूरे आलू छाप पाल्टी को मेंबर हो गाओ है मिजाज...............कल्लू की बात अधूरी रह गई कि आ टपका भूरे.....तिरछी नज़र से कल्लू को देखा और निपट लेने की बात कहते कहते रुक गया कि झट कल्लू ने पाला बदला :"जय गोपाल भैया बड़ी देर कर दई........काय भौजी रोकत हथीं का"
"सुन कल्लू , चौपाल में बहू-बेटी की चर्चा मति करियो"
सरपंच ने मौके की नजाकत भांप बात बदली -''भैया,कल कलेक्टर साब आहैं सबरे गाँव वारे''
भूरे;'काय,कलेक्टर सा'ब का कर हैं इ तै आन खें'
सुन तो भूरे अपने गाँव में शौचालय बनने हैं , सबरे लोग लुगाई दिसा मैदान न जावें गाँव में साप-सपैयत की सुभीता हो जाए जेइ बात समझा हैं बे इतै आन खें
इधर सबके लिए बीडी जलाता भोला सरपंच की बात पे सर हिला हिला के समर्थन जता रहा था . तभी सरपंच बोला:हमाए गाँव में जित्ते बी पी एल बारे हैं सब के शौचालय पंचायत बनबाहे बाकी सब ख़ुद बनाने ?
"न सरपंच भैया ,जे नहीं चलेगा , अब भीख़म के घर है 10 एकड़ जिन्घा-जिमीन है,बहू आँगनबाड़ी की मेडम है बाको बी पी एल कारड बनाओ है, बाहे मुफत में बनी बनाई टट्टी मिल जै है और हम भीखम जित्ते बड़े अदमी नईं हमाओ नाम .....आज लाक नें ..आओ गरीबी में .?तीरथ बोला
कल्लू ने अपना सुर तेज किया :- तुमाए दिमाक में भीखम के अलावे कोई बात नईं सूझती , अरे जब कारड बनत हाथे तो तुम बड़े अपनी रहीसी झाडत रहे सब जानत हैं रेब्नू साब (राजस्व-निरीक्षक) ने तुमाई रहीसी की बिबसता बना दइ अब रोजिन्ना तुमाओ रोबो गलत है। बोल देते तुमाये पास कछु नई है । भीखम ने रेब्नू साब कों बताओ हथो की बो गरीब है सो बन गओ कारड अब तुमाओ पेट काये पिरा (दुःख ) रओ है।
भीखम की साँस में साँस आई भीखम बोला:भैया तीरथ,अकल बड़ी होत है तैं भैंस को बड़ी बता रओं है.
देर रात तक सरपंच ने सारे गाँव को एक तरह से सेट करलिया।

सोमवार, अप्रैल 13, 2009

सामाजिक पत्रिकाओं में प्रकाशित रपट


मित्रो एवं सुधि पाठको
सादर अभिवादन
बावरे-फकीरा एलबम के लांच समारोह की रपट नार्मदीय -जगत इंदौर,सनाड्य-संगम,जबलपुर,नार्मदीय-लोक इंदौर,नार्मदीय-लोकनागपुर के ताज़ा अंको मे प्रमुखता से प्रकाशित हुई है,
सव्यसाची कला ग्रुप इनके प्रति आभारी है।

२०० पोस्ट मिसफिट पर

उन सभी मित्रों का जिनने ब्लॉग पर मुझे स्नेह दिया उन सबका आभारी हूँ

शुक्रवार, अप्रैल 10, 2009

मिसफिट पर होटल्स की जानकारी लेकर निकलिए विश्व यात्रा पे निकलिए

मित्रो मुझे कल ही पहला विज्ञापन मिला हैं इस ट्रेवल कंपनी से
EMMA के मेल से मन उत्साहित हुआ चलो पहला विज्ञापन मिला मेरे हिन्दी ब्लॉग कोझट समीर लाल जी से बात कर के मैंने स्वीकृति दी आज विज्ञापन टांक भी दिया है यहाँ और यहाँ भीदेखता हूँ वादे के मुताबिक डालर आते हैं तो ठीक है वरना जय राम जी की करना ही पडेगा
तब तक आप विश्व यात्रा पर निकलना चाहतें हों तो पास पोर्ट एप्लाय कर ही दीजिये ।
वैसे इस बात का खुलासा आशीष खंडेलवाल जी कर रहे हैं की डालर वाली दिल्ली बहुत दूर है बहुत दूर सो इस पोस्ट को लिखने के बाद मैं इस विषय से मैं बहुत .दूर ..चला ।


मंगलवार, अप्रैल 07, 2009

ब्लॉग कार्य शाला 18-19 अप्रेल 2009 को

सेंटर फॉर मीडिया एंड जनर्लिज्म ने वादे के मुताबिक हिन्दी ब्लागिंग को लेकर कार्य शाला का संकल्प पूर्ण किया . इस बीच जबलपुर के लिए "इरशाद अली "ने अपनी कृति टू जेड ब्लागिंग मानो हम पर उपकार ही किया जबकि वे इस बात से बेखबर थे की हम कोई सेमीनार कराने जा रहे हैं "शुक्रिया इरशाद अली जी "

शनिवार, अप्रैल 04, 2009

टिप्पणी लोलुप/वातावरण बिगाडू ब्लागर

समय का पहिया सदैव अपनी गति से गतिमान आगाह करता है कि किसी भी गफलत से बवाल मच सकता है
केवल
इनकीही नहीं सभी की चकाचक धुलाई ... का वक्त आ गया है । ये अलग बात है कि इकरार ओर इनकार आजकल "चुटकी मेदिखाई देने का समय है । सियासत इसे ही कहतें है, शायद इसे भी
"सियासत तेरे ज़लवे देखें है
हमने मुफलिसों के तलवे देखें है
होंठों पे राग राहत का दिलों में
पलते बलवे देखें हैं "
उधर मानसिक हलचल से उभरा ब्रह्म सत्य काबिले तारीफ़ है

ज्ञान को सर्वत्र फैलाने का मन हो रहा है। भारत के नव युवक-युवतियों उठो, सरकारी नौकरी पर कब्जा करो और हिन्दुस्तान की धरती को पुत्र रत्नों से भर दो। भविष्य तुम्हारा और तुम्हारे पुत्रों का है। उनके माध्यम से सब संपदा तुम्हारी होगी!

सपनों की कब्रगाह है-बॉलीवुड..

राय कुछ हद तक माननी चाहिए वैसे अब तो हर जगह कब्र गाह मिल जातीं हैं सपनों की
तक़नीकी के दौर में मन का लिंकितहोना लाजिमी है । बेहद रोचक शैली में शोध परक ब्लॉग के लिए नीलिमा और मसिजीवी बधाई के पात्र हैं..........
अंत में एक ज़रूरी बात

सावधान मित्रो

1. आपके नाम से अपने ब्लॉग पर

अथवा

2. अन्य किसी ब्लॉग पर आपके नाम से

टिप्पणी की जाने की घटनाएँ सामने

आ रहीं हैं जिसके सूत्रधार है

· टिप्पणी लोलुप/वातावरण बिगाडू ब्लागर

· मित्रो सावधान रहें मेरे साथ ऐसी घटना घटित हुई है जिसकी तकनीकी जांच परख आरंभ करा दी गयी है .





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