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रविवार, सितंबर 07, 2025

नवारो को इतना भी नहीं मालूम कि भारत में ब्राह्मण नहीं बल्कि वैश्य व्यापार व्यवसाय करते हैं!



 हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पूर्व व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने भारत पर रूस से तेल खरीदने और यूक्रेन युद्ध को बढ़ावा देने के आरोप लगाकर वैश्विक सुर्खियाँ बटोरीं। उनकी टिप्पणियों, विशेष रूप से भारत के "ब्राह्मणों" को रूसी तेल से मुनाफाखोरी का दोषी ठहराने वाले बयान, ने न केवल भारत में विवाद खड़ा किया, बल्कि अमेरिका-भारत संबंधों में तनाव को भी बढ़ाया। भारत के विदेश मंत्रालय ने इन बयानों को "गलत और भ्रामक" बताकर खारिज कर दिया। इस बीच, एलन मस्क के स्वामित्व वाले X प्लेटफॉर्म पर नवारो की पोस्ट को फैक्ट-चेक किया गया, जिसमें भारत के तेल आयात को ऊर्जा सुरक्षा से जोड़ा गया, न कि मुनाफाखोरी से। इससे नाराज नवारो ने मस्क पर "प्रोपेगैंडा" फैलाने का आरोप लगाया।

यह लेख कोल्ड वॉर के दौरान अमेरिकी नीतियों और यूक्रेन युद्ध में हताहतों के आंकड़ों के संदर्भ में नवारो के बयानों का विश्लेषण करता है, और यह बताता है कि उनकी टिप्पणियाँ ऐतिहासिक तथ्यों और वर्तमान भू-राजनीतिक जटिलताओं को समझने में उनकी कमी को दर्शाती हैं।

कोल्ड वॉर और अमेरिकी भागीदारी: हताहतों की भारी कीमत

कोल्ड वॉर (1947-1991) के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ के बीच वैचारिक और प्रॉक्सी युद्धों ने विश्व भर में लाखों लोगों की जान ली। कोरियाई युद्ध (1950-1953) और वियतनाम युद्ध (1954-1975) जैसे प्रमुख संघर्षों में अमेरिकी भागीदारी से भारी नुकसान हुआ:

अमेरिकी सैन्य हताहत: लगभग 95,000 अमेरिकी सैनिक मारे गए, जिसमें कोरियाई युद्ध में 36,574 और वियतनाम युद्ध में 58,220 मौतें शामिल हैं।

कुल हताहत: इन युद्धों में 3-5 मिलियन लोग मारे गए, जिसमें नागरिक और सैन्य हताहत शामिल हैं। हालांकि, ये सभी मौतें केवल अमेरिकी कार्रवाइयों के कारण नहीं थीं, क्योंकि सोवियत संघ और अन्य देशों की भी भूमिका थी।

प्रॉक्सी युद्धों की जटिलता: सटीक आंकड़ों की कमी और प्रॉक्सी युद्धों की प्रकृति के कारण हताहतों की संख्या अनिश्चित बनी हुई है।

कोल्ड वॉर में अमेरिका ने न केवल सैन्य बल्कि वैचारिक और आर्थिक प्रभाव का भी उपयोग किया, जिसके परिणामस्वरूप कई देशों में दीर्घकालिक अस्थिरता पैदा हुई। नवारो जैसे लोग, जो आज भी आक्रामक बयानबाजी करते हैं, ऐतिहासिक संदर्भों को नजरअंदाज करते हुए वैश्विक तनाव को बढ़ा रहे हैं।

यूक्रेन युद्ध: हताहतों का अनुमान

यूक्रेन-रूस युद्ध, जो 2014 में शुरू हुआ और 2022 में रूसी आक्रमण के बाद और तेज हुआ, ने भारी मानवीय क्षति पहुँचाई है। विभिन्न स्रोतों के आधार पर हताहतों का अनुमान निम्नलिखित है:

2014-2022 (क्रीमिया और डोनबास): लगभग 14,200-14,400 मौतें, जिनमें 3,404 नागरिक, 4,400 यूक्रेनी सैनिक, और 6,500 रूस समर्थक अलगाववादी शामिल हैं।

2022 रूसी आक्रमण: संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2022 से 2024 तक 30,457 नागरिक हताहत हुए, जिनमें 10,582 मारे गए और 19,875 घायल हुए।

रूसी सैन्य हताहत: यूक्रेनी दावों के अनुसार 50,000 से 6,00,000 रूसी सैनिक मारे गए, जबकि बीबीसी और मेडियाज़ोना ने 50,000 मौतों की पुष्टि की।

यूक्रेनी सैन्य हताहत: सटीक आंकड़े अस्पष्ट हैं, लेकिन हजारों में होने का अनुमान है।

कुल हताहत: 2014 से 2025 तक 60,000 से 1,00,000 लोग मारे गए, और लाखों लोग विस्थापित हुए।

यूक्रेन युद्ध की जटिलता और अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों की भूमिका को देखते हुए, नवारो का भारत को "यूक्रेन युद्ध को बढ़ावा देने" का दोषी ठहराना न केवल तथ्यात्मक रूप से गलत है, बल्कि भू-राजनीतिक अज्ञानता को भी दर्शाता है।

नवारो का भारत पर हमला: तथ्यों से परे बयानबाजी

पीटर नवारो ने भारत पर रूस से तेल खरीदने और "ब्राह्मणों" द्वारा मुनाफाखोरी का आरोप लगाया, जिसे भारत ने खारिज कर दिया। उनके बयानों में कई खामियाँ हैं:

सांस्कृतिक अज्ञानता: नवारो ने "ब्राह्मणों" को मुनाफाखोरी से जोड़ा, जबकि भारत में व्यापार और व्यवसाय मुख्य रूप से वैश्य समुदाय से जुड़ा है। यह उनकी भारतीय सामाजिक संरचना के प्रति अज्ञानता को दर्शाता है।

तथ्यात्मक गलतियाँ: भारत का रूस से तेल खरीदना ऊर्जा सुरक्षा और अपने 140 करोड़ नागरिकों के आर्थिक हितों के लिए है, न कि मुनाफाखोरी के लिए। X पर कम्युनिटी नोट्स ने भी इसकी पुष्टि की।

विवादास्पद बयान: नवारो ने भारत को "क्रेमलिन की मनी लॉन्ड्रिंग मशीन" और यूक्रेन युद्ध को "मोदी का युद्ध" कहा, जिससे भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव बढ़ा।

राजनीतिक विवाद: भारत में कांग्रेस नेता उदित राज ने नवारो के "ब्राह्मण" बयान का समर्थन किया, जिससे देश में नया राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया।

नवारो की बयानबाजी और डोनाल्ड ट्रंप की छवि

नवारो की टिप्पणियाँ न केवल भारत-अमेरिका संबंधों को नुकसान पहुँचा रही हैं, बल्कि डोनाल्ड ट्रंप की छवि पर भी सवाल उठा रही हैं। अब्राहम लिंकन के समय के अमेरिकी मूल्यों, जैसे कूटनीति और सहयोग, को नवारो जैसे लोग अपनी आक्रामक बयानबाजी से कमजोर कर रहे हैं। यदि नवारो को कोल्ड वॉर और यूक्रेन युद्ध के ऐतिहासिक और वर्तमान संदर्भों की समझ होती, तो शायद उनकी पोस्ट को X पर बार-बार फैक्ट-चेक का सामना न करना पड़ता।

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शनिवार, अगस्त 09, 2025

नोबल शांति पुरस्कार की दौड़े

विश्व का सबसे प्रतिष्ठित सम्मान नोबेल पुरस्कार है, और यह तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब यह वैश्विक शांति के लिए दिया जाए। डोनाल्ड ट्रंप इस पुरस्कार की चाहत रखते हैं और कई  बार दावा कर चुके हैं कि उन्होंने 'ऑपरेशन सिंदूर' को रुकवाया, साथ ही छह अन्य युद्धों में शांति स्थापित करने का प्रचार कर रहे हैं।
नोबेल शांति पुरस्कार शांति, सहयोग और मानवता की उन्नति के लिए दिया जाता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या युद्ध को बढ़ावा देकर या युद्धविराम का दावा करने वाली शक्तियों को यह पुरस्कार देना उचित है?
अमेरिका का सामरिक हथियार व्यापार पांच से छै ट्रिलियन डॉलर का है। पब्लिक डोमेन के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका छै से आठ प्रत्यक्ष युद्धों और तीस से चालीस प्रॉक्सी युद्धों में शामिल रहा है, जिसके परिणामस्वरूप लाखों लोग अपने जीने के अधिकार से वंचित हुए हैं। हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमले इसका ऐतिहासिक उदाहरण हैं। विश्व के हथियार व्यापार में अमेरिका की हिस्सेदारी लगभग चालीस प्रतिशत है, और प्रथम विश्व युद्ध से लेकर अब तक वह हथियारों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता रहा है।
अमेरिका ने कभी भी निशस्त्रीकरण की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए। एक अच्छा राष्ट्र वह है जो अपनी और गरीब राष्ट्रों की संप्रभुता की रक्षा के लिए सामरिक सहायता दे, लेकिन अमेरिका हथियारों को व्यावसायिक रूप से उत्पादित करता है और 'अमेरिका फर्स्ट' नीति के तहत गरीब व विकासशील देशों के किसानों के हितों को नजरअंदाज करता है।
ट्रंप का दावा है कि उन्होंने 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम कराया। व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने कहा कि ट्रंप ने हर महीने एक संघर्ष समाप्त किया, जैसे भारत-पाकिस्तान, थाईलैंड-कंबोडिया, और इज़राइल-ईरान। भारत ने इन दावों को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि 'ऑपरेशन सिंदूर' उसका स्वतंत्र रणनीतिक निर्णय था, जिसमें किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता नहीं थी
ट्रंप के पहले कार्यकाल में अमेरिका ने दो सौ बिलियन डॉलर के हथियार निर्यात किए, जिनमें सऊदी अरब और भारत के साथ सौदे शामिल थे। उनके वर्तमान कार्यकाल में भी (भारत के साथ तीन दशमलव छै बिलियन डॉलर की डील एवं एफ-पैंतीस को छोड़कर) , अन्य देशों के साथ समान स्तर के सौदे हुए हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध में अमेरिका का हथियारों का व्यापार और अप्रत्यक्ष भूमिका उसकी नीतियों को और स्पष्ट करती है।
अमेरिका भारत में अपनी कृषि सप्लाई चेन स्थापित करना चाहता है। यह भारतीय किसानों के प्रति अप्रत्यक्ष हिंसा है, जो उनकी आजीविका को प्रभावित करती है। क्या ट्रंप नोबेल शांति पुरस्कार के हकदार हैं?
अमेरिका का इतिहास शांति के बजाय हथियार व्यापार और भू-राजनीतिक हितों को बढ़ावा देने का रहा है। प्रथम विश्व युद्ध से लेकर अब तक, अमेरिका ने युद्धों को बढ़ावा देने और हथियारों के व्यापार में अग्रणी भूमिका निभाई है। ट्रंप की नीतियाँ, जैसे भारत पर टैरिफ और रूस-यूक्रेन युद्ध में हथियारों की आपूर्ति, उनकी 'शांति' की छवि पर सवाल उठाती हैं।
नोबेल शांति पुरस्कार ऐसी शख्सियतों को दिया जाना चाहिए जो वास्तव में मानवता और शांति के लिए समर्पित हों, न कि उन शक्तियों को जो युद्धों को बढ़ावा देकर युद्धविराम का श्रेय लेने का प्रयास करें। अमेरिका का 'डीप स्टेट' और पूंजीवादी हित राष्ट्रपति की नीतियों पर हावी रहते हैं, जिसके कारण शांति की स्थापना में उनकी विश्वसनीयता संदिग्ध है।
मेरा मानना है कि अमेरिका का इतिहास और ट्रंप की नीतियाँ उनके शांतिप्रिय होने के दावे को खोखला साबित करती हैं। नोबेल शांति पुरस्कार समिति को चाहिए कि वह अमेरिकी राष्ट्रपतियों को डिफ़ॉल्ट रूप से इस पुरस्कार की पात्रता से बाहर रखे, क्योंकि उनकी नीतियाँ शांति के बजाय व्यापारिक और सामरिक हितों को प्राथमिकता देती हैं। 

गुरुवार, मई 29, 2025

भोलाराम का राज्याभिषेक


#भोलाराम 
#भोलाराम_का_राज्याभिषेक 
#व्यंग्य: गिरीश बिल्लौरे मुकुल 

नंदनवन के हरे-भरे जंगल में एक अनोखा दौर था। जानवर इंसानों की तरह संगठित थे, और शेर की अचानक मृत्यु के बाद राजगद्दी खाली थी। सभी जानवरों ने गजराज हाथी को राजा बनाने की मांग की, लेकिन गजराज ने ठोस तर्क दिया, "मुझे और मेरे परिवार को बहुत भोजन चाहिए। राजा बनकर मैं अपने बच्चों को आलसी बना दूंगा, जो न बोलना सीखेंगे, न भोजन जुटाना।
"ऊदबिलाव ने सुझाव दिया, "जो योग्य हो, वही राजा बने! 
    हमारा नंदनवन अफ्रीका का जंगल नहीं, जहाँ एकता की कमी हो।" 
  उल्लू और छछूंदर ने इस विचार का समर्थन किया ।
 भूरी लोमड़ी, पप्पुन गधा, और भोलाराम कुत्ते मैं अपनी दावेदारी पेश की। 
सभी जानवरों ने आम सहमति से भूरी पप्पुन और भोलाराम को  राजगद्दी की दौड़ के लिए चुना गया।
   फुदक चिरैया ने समझाया कि - इसके लिए एक दौड़ का आयोजन किया जाए, सिंहासन से   15 किलोमीटर दूर  वाली टेकरी से सिंहासन तक की दूरी तय करके जो भी इन तीनों में से पहले सिंहासन तक पहुंचेगा उसे राजा घोषित कर दिया जाएगा। 
  15 किलोमीटर दूर टेकरी पर दौड़ का आयोजन तय करने के बाद  झल्ला बंदर को समय तय करने का जिम्मा सौंपा गया। 
 निश्चित तिथि पर दौड़ का आयोजन हुआ।
 दौड़ वाले रास्ते पर   मिक्की खरगोश और उसका खानदान जंगली रास्तों पर निगरानी रख रहे थे। 
  रास्ते में गाँव थे, जहाँ पालतू कुत्तों ने अपनी चौकसी बरती। ये कुत्ते इंसानों के साथ रहकर अपनी जंगली प्रवृत्ति भूल चुके थे। इस बात की जानकारी मिकी ने तीनों प्रतिभागियों को दे दी। भोलाराम भी मानसिक तौर पर तैयार था। वह जानता था कि उसकी जाति के लोग ही उसे बड़ा पहुंचाएंगे। 
 दौड़ शुरू होते ही भूरी लोमड़ी ने तेजी दिखाई, लेकिन तीसरे गाँव तक पालतू कुत्तों ने उसे घायल कर दिया।
  भोलाराम और पप्पुन गधा पीछे-पीछे दौड़ रहे थे। 
  पालतू कुत्तों का शोर चारों दिशाओं में गूंज रहा था।
  रास्ते भर पालतू कुत्तों के हमले भोलाराम पर ही हो रहे थे, लेकिन पप्पुन गधे को कोई नहीं छूता था।
कुत्तों  ने गाँव वालों से सुना था, "गधे से पंगा नहीं लेना चाहिए , गधे तो गधे हैं... जाने कब पलट के दुलती मार दें !" 
पप्पुन अपनी सामान्य से ज़रा तेज स्पीड से दौड़ रहा था। 
 पहले तो भोलाराम सबसे आगे था परंतु बाद में   दूसरे गांव को पार करते मैं उसे बहुत वक्त लग गया, अपनी बिरादरी वालों से संघर्ष करने में। तीसरा और चौथा गांव पर करते-करते तो उसकी सांस उखड़ रही थी। संकल्प लिया था तो दौड़ना जरूरी भी था। 
  जैसे तैसे भोलाराम सिंहासन से आधा किलोमीटर दूर पहुंचा तो उसे गधे की गंध मिली। फिनिशिंग लाइन पर पहुंचकर उसने देखा—पप्पुन गधा पहले ही वहाँ था! भोलाराम ने माथा पकड़ लिया। तभी तोताराम और कंपनी ने गाना शुरू कर दिया - "अपने ही गिराते हैं नशेमन पे बिजलियां..!"
(यह कहानी उन भारतीयों को समर्पित है, जो आयातित विचारधारा के प्रबल समर्थक हैं और भारत को हर वक्त नीचा दिखाते हैं)

बुधवार, मई 14, 2025

भोलाराम का विमोचन

#भोलाराम_का_विमोचन
(व्यंग्यकार गिरीश बिल्लौरे मुकुल 
जबलपुर मध्य प्रदेश)
  सम्मान-सम्मान का यह खेल इतना मस्त है कि इसे ओलंपिक में शामिल कर देना चाहिए। ओलंपिक न सही, तो एशियाई खेलों में। और अगर वह भी न हो, तो जिला-स्तरीय तमाशे में तो जरूर!
यह खेल जेब ढीली कराता है, आत्ममुग्धता को चाँद पर ले जाता है, और भीड से़ तालियां बजवाता  है।
  अर्थात यह खेल बहुत सारे शास्त्रों पर आधारित  है।  अर्थशास्त्र, छापस-शास्त्र, दिखास-शास्त्र, और बकास-शास्त्र का गजब का कॉकटेल।   
     हर शहर में यह खेल जोर-शोर से खेला जाता है। मेरा शहर कोई अपवाद नहीं—बल्कि इस खेल का प्रयागराज, मानसरोवर, येरुशलम मक्का-मदीना है।
   वैचारिकता को ठेंगा दिखाते हुए रोज "सम्मान का ड्रामा" रचा जाता है।
  खेल तो खेल है, खेलने के लिए ही बना है। तो इसे खेलना जरूरी है—बिल्कुल जरूरी!
आयोजक इस खेल का अर्थशास्त्र बखूबी समझते हैं। आप कवि हों, शायर हों, या साहित्य के तुर्रमखाँ—जब तक इस विमोचन की भट्टी से न गुजरें, तब तक आपका नामोनिशान नहीं।
खुशी की बात यह है कि आजकल तो पद्म सम्मानों के लिए कंसलटेंसी एजेंसियाँ खुल गई हैं। दिल्ली की एक रेडियो जॉकी और एक लेखक, जिनका नाम गिनीज बुक में चमकता है, इस धंधे में सर से पाँव तक डूबे हैं।
    यूं तो ये धंधा बड़ा आराम का है, लेकिन जैसा राहत इंदौरी ने फरमाया:
हमसे पूछो कि ग़ज़ल मांगती है कितना लहू,
सब समझते हैं ये धंधा बड़े आराम का है।
  पर क्या करें, कितना भी लहू से भीगो लें कोई हमें साहित्यकार मानता ही नहीं।
  पर हमें अचानक एक दिन भोलाराम जी के टेलीफोन कॉल ने ब्रह्म ज्ञान दे दिया ! तो यह भोलाराम जी कौन है ?
वास्तव में भोलाराम परसाई जी वाले भोलाराम का पुनर्जन्म है । जो इस जन्म में कवि के तौर पर पैदा हुआ है।
  कवि भोलाराम ने जिंदगी भर पुर्जों पर कविताएँ ठूँसीं और पहुंच गए परमज्ञानी जी के दरबार। "साहब, मेरी कविताएँ छपवानी हैं," भोलाराम ने गुहार लगाई।
  परम ज्ञानी, जो ग्राहकों की टोह में बैठे थे, बोले, "कविता पढ़ने की क्या जरूरत? एक नजर में समझ गया। अरे, तुम तो मनोज मुंतशिर को पानी पिलाते हो! ये तो छपनी ही चाहिए।
परम ज्ञानी जी ने "प्रशंसा का ऐसा बम गिरा कि भोलाराम शहीद-ए-आजम हो गए। तीस दिन में किताब मुद्रणालय से बाहर।
  लेकिन सवाल था—दुनिया को कैसे पता चले कि भोलाराम छप गए? परम ज्ञानी जी ने आँख मारी, "चिंता मत करो, फार्मूला मेरे पास है।
"उनका बैकग्राउंड फार्मूला था—सम्मान बाँटो, भीड़ बटोरो। रामलाल, श्यामलाल, लल्लू, जगदर, भुनगे-बगदर—हर कोई सम्मानित होगा। और हर सम्मानित शख्स अपने साथ बीवी, बच्चे, रिश्तेदार, और शायद गर्लफ्रेंड भी लाएगा। बस, इंस्टाग्राम लाइव के लिए भीड़ जुट गई।
विमोचन का तमाशा यानि आयोजन शुरू हुआ। मंच पर मालाएँ, शाल-श्रीफल, और यशगान के फलक।
मुख्य अतिथि त्रैलोक्य स्वामी से कम नज़र न आते थे।
कुछ अतिथि तो क्षीरसागर में विष्णु की तरह विराजमान लग रहे थे। आयोजन में शहर के नामी-गिरामी और "फुर्सत के रात-दिन" वाले लोग जुटे।
हर वक्ता अपने दिमाग के जखीरे को चटखारे ले-लेकर उवाच रहा था। माइक बार-बार खराब हो रहा था, और आयोजक- सह- मंच संचालक पहली लाइन से लेकर हाल के प्रवेश द्वार तक रेकी करते हुए नजर आ रहे थे । हर आमद पर आए हुए आगंतुक के नाम का उल्लेख करते हुए , अपने कार्यक्रम से जोड़ने वाले मंच संचालक उर्फ आयोजक उर्फ परम ज्ञानी की प्रतिभा को शहर का बच्चा-बच्चा जानता है। उनके व्यक्तित्व पर मेरे जैसे अकिंचन का कुछ कहना सूरज को एलईडी लाइट दिखाने के बराबर है।
परम ज्ञानी लीलाधर कृष्ण से कम नहीं हैं तभी तो, महीने में दो-चार साहित्यिक महाभारत हो जाया करते हैं शहर में..!
इस अप्रतिम दृश्य को देखकर भोलाराम को लगा, वे इंद्र सभा में गंधर्वों के बीच बैठे हैं।

  मंच के सामने दर्शक दीर्घा में पीछे वाली पंक्ति में अपन जी और तुपन जी की कानाफूसी शुरू
हो गई थी।
अपन जी: (कान खोजते हुए) गजब आयोजन! कवि को पैसे वाला होना चाहिए है न?
तुपन जी: बिल्कुल! इसे छठी का पूजन कहां कीजिए ।
अपन जी: तुपन जी, बिल्कुल सही कहा आपने।  अब तो हिंदी साहित्य का ये प्रचंड वेग कोई नहीं रोक सकता!
तुपन जी: प्रचंड? अरे, प्रलयंकारी कहो! हां एक बात कि  तुम भी तो सम्मानित हो रहे हो?
अपन जी: (कलकतिया पान से रंगी खीस निपोरते बोले ) हाँ, भाई, दबाव था, वरना अपन अम्मान सम्मान के चक्कर में पड़ते नहीं।
तुपन जी: अरे, पिछले महीने भी तो तुझे किसी किताब की छटी पर शाल-श्रीफल मिला था?
अपन जी: हाँ, मेरा भी सम्मान हुआ था। सम्मान में मिले श्रीफल की चटनी बनवाई। पाइल्स के लिए मुफीद है, बब्बू भाई बता रहे थे।
तुपन जी: अरे, पाइल्स तो मुझे भी है! आजमाऊँगा।
तभी मंच से चीख: "संस्था ‘दो और दो पांच’ श्री तुपन जी को भी उनकी साहित्य साधना के लिए सम्मानित करती है! यह उनका संस्था की ओर से दिए जाने वाला लाइफटाइम सम्मान है । जोरदार तालियों से इनका सम्मान कीजिए। "
पूरे  हॉल में तालियों की आवाज़ गूंजने लगीं।
तुपन जी भी फट्ट से मंच पर जा पहुँचे, यह अलग बात है कि कथित तौर पर उन्हें सम्मान की दरकार नहीं रहती। खचाखच्च फोटो हैंचे गए, स्वयंभू पत्रकार पर और आमंत्रित पत्रकार वीडियो जर्नलिस्ट ने मंच का घेराव करके फोटो वीडियो रिकॉर्ड किए। तुपन जी के सम्मान की कार्रवाई 5 मिनट के अंदर निपटा दी गई। लाइफटाइम अवॉर्ड के लिए इतना टाइम काफी है।
तुपन जी, लौटते वक्त कलगीदार मुर्गे की तरह दाएं बाएं बैठे दर्शकों  के प्रति आभार प्रदर्शित करते गर्दन हिलाते आभार  जताते, वापस सीधे अपन जी के पास लौट आए।
आज  भोलाराम का साहित्यकार बन जाने का सपना भी पूरा होने वाला था परंतु उनके विमोचित होने के पहले मंच से लगभग बीस सम्मान आवंटित हो चुके थे ।
हॉल में भगदड़ मच गई। उद्घोषक चीख रहा था। सम्मान वितरण में  "कछु मारे, कछु मर्दिसी" वाली स्थिति बन गई थी।
   भीड़ सेल्फी ले रही थी, इंस्टाग्राम रील्स बना रही थी, और यूट्यूब पर लाइव बाइट्स चल रहे थे।
  इस बीच उद्घोषक ने भोलाराम जी को इनवाइट कर लिया। मंच के मध्य में गणेश जी की तरह स्थापित होने के निर्देश का पालन करते हुए  भोलाराम भावुक हो उठे। कभी  उन्हें लगा, वे साहित्य जगत में स्थापित हो गए।
   वे यह महसूस कर रहे थे गोया उनकी एक ओर दिनकर दूसरी ओर भवानी प्रसाद तिवारी जी खड़े दिखते,  यह भी महसूस किया होगा उनने कि माखनलाल चतुर्वेदी , सुभद्रा दीदी बिल्कुल आसपास मौजूद हैं ।
     कभी हॉल में मचे तमाशे देख कर उसे लगा कि वे ठगे गए हैं।
   तभी पीछे से आवाज़ आई - "काय भोलू , कवि कब बन गए रे?
झल्ले की आवाज़ सुन  भोलाराम पानदरीबा वाले भोलू बन गए ।
*****
लेकिन सच यही है साहित्यकार की प्राण प्रतिष्ठा का यह अजीबोगरीब खेल एकदम नया नहीं।
हर शहर में यह तमाशा होता रहता है।
जहां परम ज्ञानी जैसे लोग इसके सर्जनहार, और भोलाराम जैसे कवि इसके शिकार।
साहित्य के नाम पर यह "दूल्हा-दुल्हन आपके, बाकी सब हमारा" का धंधा है।
और हाँ, अगली बार विमोचन में वायरल रील्स का बजट भी जोड़ लीजिएगा।
(नोट: परसाई के शहर में व्यंग्य लिखना अपराध हो, तो यह अपराध बार-बार करूँगा!)
#डिस्क्लेमर: यह व्यंग्य है। किसी व्यक्ति, स्थान, या घटना से इसका कोई लेना-देना नहीं। समानता महज संयोग है।
#गिरीशबिल्लौरेमुकुल 

शनिवार, फ़रवरी 08, 2025

"स्व. भवानी दादा का कृतित्व गीतांजलि प्राण पूजा प्राण धारा : एक लघु पुस्तक समीक्षा"

"स्व. भवानी दादा का कृतित्व गीतांजलि प्राण पूजा प्राण धारा : पुस्तक समीक्षा"
 



स्वर्गीय लुकमान से जब माटी की गगरिया गीत सुनता तो लगता की है अध्यात्म की परा

काष्ठा तक पहुंचने वाला गीत किसने लिखा है ? जल्द ही पता चल गया कि यह दार्शनिक गीत पंडित भवानी प्रसाद तिवारी की लेखनी से निकाला और सीधे मेरे जैसे का जीवन का दर्शन बन पड़ा है। भवानी प्रसाद तिवारी जी यानी हमारे भवानी दादा फ्रीडम फाइटर थे इनका जन्म 12 फरवरी 1912 में हुआ था। पंडित विनायक राव के पुत्र के रूप में सागर में जन्मे इस महासागर की कर्मभूमि जबलपुर रही. पूज्य भवानी दादा का निधन 13 दिसंबर 1977 को हुआ था। वह दौर ही कुछ अलग था जब, कविताई किसी कवि के अंतस में विराजे दार्शनिक व्यक्तित्व को उजागर करता था। गीतांजलि, प्राण- पूजा, प्राण - धारा, जैसी महान काव्य संग्रह, इसी पत्थर के शहर में रहने वाले महान दार्शनिक कवि भवानी प्रसाद जी तिवारी रचे थे। आज के दौर को सीखना चाहिए अपने इतिहास से, जहां कभी अपने सम्मानों की संख्या बढ़ाने के लिए कविता लिखते हैं यह ऐसे लोगों का शहर पहले तो न था। व्याकरण आचार्य कामता प्रसाद जी स्वर्गीय श्री केशव पाठक, तथा उनकी मानस बहन देवी मां सुभद्रा कुमारी चौहान, श्री,भवानी प्रसाद तिवारी, श्री पन्नालाल श्रीवास्तव नूर, पूज्य श्री गोविंद प्रसाद तिवारी, स्व जवाहरलाल चौरसिया तरुण, गीतकार श्री श्याम श्रीवास्तव चाचा जी, परम पूज्य घनश्याम चौरसिया बादल जैसी हस्तियों का शहर साहित्य के के साथ क्या कर रहा है इससे कोई भी अनभिज्ञ नहीं है। शहर साहित्य के तथा कथित सम्मान वितरण केंद्र के रूप में मेरे लिए दारुण दुख है , आपका नजरिया जो भी हो मुझे माफ करें न करें मैंने अपनी बात खुलकर रख दी है। गीत कविता शहर की तासीर को बता देते हैं कि इस शहर में किस प्रकार की हवा चल रही है। कामोंबेस प्रत्येक शहर में यही कुछ हो रहा है। खैर हम मुद्दे पर बात करें ज्यादा बेहतर होगा। डॉ अनामिका तिवारी जी ने जब पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जी की तीन पुस्तकों का समेकन काव्य रचनावली के रूप में कर प्रकाशित कर विमोचन किया उन दिनों मैं भी एक व्याधि से संघर्ष कर रहा था। पिछले महीने ही अचानक भाई रमाकांत गौतम जी ने पूछ लिया - कि आपको काव्यांजलि की जानकारी है ! मैंने अपनी अभिज्ञता अभिव्यक्त की, और पूछा कि यह कृति कहां मिलेगी। गौतम जी ने कृति डॉ अनामिका दीदी से लेकर आने का वादा किया और वादे के पक्के जीवट गौतम जी ने मुझ पर कृपा की। शहर में बहुत से लोग बहुत वादे करते हैं, पूरे आदमी भाव से मुस्कुरा कर गार्डन में मटका मटका कर प्रॉमिस करते हैं और फिर कहां विलुप्त हैं यह वादा करने वाले और उनका अंतस ही जानता है। गीतांजलि के बहुत अनुवाद हुए हैं, इस पर टीकाएं लिखी गईं , पर रवींद्र बाबू के मानस को गीतांजलि के माध्यम से अगर हिंदी के किसी गीतकार ने पढ़ा है तो वे भवानी दादा के अलावा कोई और होगा मुझे विश्वास नहीं है। फिर भी यहां स्पष्ट करना जरूरी है कि आदरणीय भवानी दादा केवल गीतांजलि के अनुगायन के कारण स्थापित हुए ऐसा नहीं है, प्राण पूजा प्राण धारा और गद्य में उनकी मौजूदगी से वे स्थापित साहित्यकार के रूप में युगों युग तक याद किए जाएंगे। आपको याद ही होगा बांग्ला भाषा में विश्व कवि रविंद्र नाथ टैगोर जी की गीतांजलि का प्रकाशन 1910 में हुआ था। गुरुदेव ने इसका अंग्रेजी अनुवाद स्वयं किया था और उसी अंग्रेजी अनुवाद के सहारे पूज्य भवानी दादा ने गीतांजलि लिखी। 1947 में सुषमा साहित्य मंदिर जबलपुर द्वारा प्रकाशित किया गया। यही कृति 1985 में अक्षय प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा पुनः प्रकाशित की गई। इसके अतिरिक्त प्राण - पूजा, प्राण- धारा, काव्य संग्रह 70 से 80 के बीच लोक चेतना प्रकाशन से सुधी पाठकों के पास आए थे। इन कृतियों की प्रति अब अनुपलब्ध होती जा रही थीं। बस पुत्रवधू डॉक्टर अनामिका तिवारी ने, अपने ससुर की तीनों कृतियों का समेकित रूप से प्रशासन समग्र के रूप में कराया है। राज्यसभा सदस्य नगर के महापौर तथा अनेकों उपलब्धियां उपाधियां हासिल करने वाले पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जबलपुर के अप्रतिम सार्वकालिक हस्ताक्षर कहे जा सकते हैं। भवानी दादा पर उपलब्धियां और पदवियां कभी हावी नहीं हुई। आइए व्यक्तित्व से आप उनके कृतित्व की ओर चलते हैं। अगर हम गीतांजलि की चर्चा करते हैं तो गीतांजलि रविंद्र नाथ टैगोर जी की वैश्विक कृति है। भवानी दादा ने हम हिंदी वालों का परिचय गुरुदेव रविंद्र जी से कराया है। हम आपके इस कर्ज को चुका नहीं सकते। संग्रह को प्रकाशित करने वाली पुत्रवधू डॉक्टर अनामिका तिवारी ने अपने ससुर जी के बारे में लिखा कि वे कविता नहीं लिखते थे बल्कि कविता जीते थे। उनकी ही बात अपनी शैली में कहना चाहता हूं कि जीवन ने उन्हें कविता दी और कविता ने उन्हें उनकी अनुपस्थिति में जीवंत कर दिया। गीतांजलि के गद्य को हिंदी में अनुचित करने वाले भवानी दादा प्रोफेशनल ट्रांसलेटर के समान नजर नहीं आते बल्कि ऐसा लगता है कि गुरुदेव और भवानी दादा के मन मानस में एक ही नर्मदा प्रवाहित रही होगी। इस बात की पुष्टि बिना लाग- लपेट के भवानी दादा के व्यक्तित्व और कृतित्व की चर्चा करने वाले आचार्य (डॉ) हरिशंकर दुबे भी करते हैं। वे कहते हैं कि दादा ने गीतांजलि को महसूस करके उसका अनुवाद किया है, । अगर कोई कभी संगीत की सरगम से भली भांति परिचित हो तो उसके गीत का गेय होना स्वाभाविक है। परंतु बंगाल से अंग्रेजी अंग्रेजी से हिंदी यानी भाषा तीसरे पड़ाव में आकर शब्द अर्थ और संगीतिक परिवर्तन कर सकती है परंतु, गीतांजलि के मामले में ऐसा कुछ नहीं है। संगीतकार अगर गीतांजलि के हिंदी वर्जन का कंपोजीशन तैयार करें तो उन्हें बिल्कुल कठिनाई नहीं होगी यह मेरा दावा है। यह दावा इसलिए भी कर रहा हूं क्योंकि माटी की गगरिया गीत सुनकर लोगों को नाचते हमने देखा है। लुकमान शेषाद्री जब इस गीत को गया करते थे पूरा माहौल भौतिक एवं आध्यात्मिक नर्तन के लिए बाध्य हो जाता। अगर यहां एक भी कविता का उदाहरण पेश किया तो आपकी पढ़ने की इच्छा कदाचित कम न हो जाए इसलिए मैं आग्रह करूंगा कि आप यदि कवि है तो इस कृति को अवश्य पढ़ें क्योंकि, आपके मस्तिष्क सार्वकालिक गीत रचना का साहस बढ़ जाएगा। फिर भी बात ही देता हूं मैं नहीं जानता मीत कि तुम कैसे गाते हो मधुर गीत ! यह तो एक उदाहरण मात्र है। भवानी दादा गीत लोक व्यवहार के गीत हैं , जिनको दार्शनिक एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण से परखें तो उनके गीत सकारात्मक जीवन दर्शन अनावरित करते हैं। पूज्य भवानी दादा का समकालीन वातावरण कुल मिलाकर केवल पॉलिटिकल नहीं था स्वतंत्रता के लिए संघर्ष और उसमें शामिल व्यक्तित्व विराट भावी हुआ करते थे। जिसका प्रभाव उनके सृजन पर देखा जा सकता है। फिर चाहे निराला फणीश्वर नाथ रेणु गोपाल दास नीरज हरिवंश राय बच्चन, जैसे महाकवि क्यों न हों? कृति पर चर्चा अंतिम नहीं है, यह एक परिचय मात्र है,। उनकी जीवनी रचनाकारों के लिए एक नया मार्ग प्रशस्त करती है जो कविताई को पुरस्कार का मार्ग बनाते हैं। उनके लिए भी जो मंच पर सस्ती लोकप्रियता के लिए आधे आधे घंटे तक चुटकुले बाजी करते हैं जिसे टोटका कह सकते हैं और फिर शब्दों की स्वेटर दिखा दिया करते हैं।






रविवार, अगस्त 25, 2024

मानसिक स्मृति कोष : से उभरते दृश्य

 


   जीवन में  इंद्रिय सक्रियता एक ऐसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो हमारे जीवन के संचालन के अलावा स्मृति कोष में जानकारी को सुरक्षित करने में भी सहायक है।
इस संबंध में आगे चर्चा करेंगे उसके पहले आपको बता देना आवश्यक है कि - हम केवल घटनाओं के पुनरूत्पादन के विषय में चर्चा कर रहे हैं न कि उस जैसी घटना की पुनरावृत्ति के विषय पर।
   इंद्रियों के माध्यम से हम सूचनाओं एकत्र करते हैं और वह सूचना हमारे स्मृति कोष में संचित हो जाती है। अर्थात हमारे मस्तिष्क में केवल वही बात जमा होती है जिसे हम  गंध,ध्वनि, आवाज़, स्वाद, दृश्य, भाव, के रूप में महसूस करते हैं।
  प जो जो घटनाएं हम महसूस कर सकते हैं केवल वह ही हमारे स्मृति कोष में जमा होती है ।  
आते हैं हमारा स्मृति कोष एक तरह से  एक डाटा बैंक है।
मस्तिष्क में संचित सूचनाओं को क्या हम पुनरूत्पादित कर सकते हैं अथवा क्या ऐसी जानकारी का पुनरूत्पादन हो सकता है?
   हम मस्तिष्क में संचित सूचनाओं को स्वयं भी पुनरुत्पादित कर सकते हैं तथा कई बार ऐसी घटनाएं जो  स्मृति कोष में संचित होती हैं, स्वयं ही पुनरूत्पादित हो जातीं हैं।
इनका  पुनरूत्पादन  जागते हुए या सोते हुए कभी भी हो सकता है।
जागृत अवस्था में हम घटित घटनाओं को भौतिक रूप से क्रिया रूप में कर सकते हैं।
  लेकिन जब हम सोते हैं तब हमें यह सब कुछ आभासी रूप में दिखाई देता है।
   अब आप सोच रहे होंगे कि क्या नेत्रहीन व्यक्ति  कोई घटना स्वप्न में देख सकता है ?
    यदि व्यक्ति की देखने की क्षमता जिस उम्र तक उपलब्ध होती है उसे उम्र तक के दृश्यों के आधार पर नेत्रहीन व्यक्ति स्वप्न देख सकता है। अर्थात उसके स्मृति कोष से स्वप्न के रूप में केवल वही दिखाई देता है जो उसके स्मृति कोष में संचित है।
   परंतु जन्मांध व्यक्ति केवल घटित हुई   घटनाओं का स्वप्न के रूप में पुनरुत्पाद
ध्वनि अर्थात वार्तालाप, गंध , स्पर्श के रूप में महसूस कर सकता है।
    इसी क्रम में एक प्रश्न यह है कि जन्म से मूकबधिर व्यक्ति स्वप्न देख सकता है ?
    वास्तव में हम स्वप्न नहीं देखे बल्कि हम महसूस करते हैं। जन्म से मूकबधिर  व्यक्ति केवल स्वप्न आने पर  घटना को महसूस करता है।
  जागृत अवस्था में ऐसे व्यक्ति मूकबधिर व्यक्ति कि मस्तिष्क में घटनाओं का पुनरूत्पादन सामान्य लोगों की तरह ही महसूस होता है।
अब आप हेलेन केलर जैसी किसी व्यक्ति की कल्पना कीजिए। जो देख सुन और बोल नहीं पाती थी, फिर भी महसूस कर लेने मात्र से उन्होंने अपने दौर में ऐसी ऐसी विचार रखे जो सोशियो इकोनामिक पॉलीटिकल परिस्थितियों के लिए उपयोगी साबित हुए। केवल महसूस कर लेने मात्र से हमारे ही स्मृति कोष में सूचनाएं जमा हो जाती हैं। जिसका पुनरूत्पादन सामान्य और सामान्य से बेहतर परिणाम देता है। हेलेन केलर इसका एक बेहतर उदाहरण है।
हेलेन केलर की जीवन गाथा बार-बार पढ़ने को मन करता है। एक लिंक में आपके साथ साझा कर रहा हूं, मेरे दृष्टिकोण में हेलेन केलर की जिंदगी इस यूट्यूब लिंक पर आपके लिए प्रस्तुत है
https://youtu.be/Cu_1wBT76fk
   स्टीफन हॉकिंग भी दूसरे बेहतरीन उदाहरण के रूप में एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक दार्शनिक के रूप में स्थापित है।
  जब भी कभी सपने में कोई घटना या  घटनाओं का पुनरूत्पादन अर्थात री- क्रिएशन होता है तो वह  केवल आभासी होता है। जबकि हमारे मस्तिष्क में जागृत अवस्था में पुनरूत्पादन होने से उसकी सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों तरह के प्रभाव पड़ते हैं।
  कभी-कभी आपने महसूस किया होगा कि किसी व्यक्ति के साथ आपके अच्छे अनुभव न रहने के कारण आप उसकी उपस्थिति में असहजता महसूस करते हैं
   और किसी व्यक्ति के साथ आपके विचार मिलने अथवा उनके साथ बिताए गए बेहतरीन समय के कारण आप सहज और उत्साहित होते हैं।
  कई बार ऐसी स्थितियों के कारण पाप निर्माण भी कर सकते हैं। तो कई बार ऐसी स्थितियां विनाशकारी भी बन सकती है।
   यह व्यक्तिगत चिंतन है, संभावना है कि आप इस चिंतन से सहमति न रखते होंगे, इस हेतु मैं आपका अग्रिम आभार व्यक्त करता हूं। जो उपरोक्त विवरण से सहमति रखते हैं उनके प्रति भी समान भाव से सम्मान और आभार व्यक्त करता हूं।
#Psychology, #स्वप्न    #निद्रा #संचित_स्मृति_कोष
#हेलेन_केलर #गिरीशबिल्लौरेमुकुल  #हॉकिंग्स 

शनिवार, अगस्त 10, 2024

life Sketch | আলোচক শ্রী মলয় দাশগুপ্ত | तीन देशों के राष्ट्रगान में टैगोर


গতকাল অর্থাৎ ৭ই আগস্ট ছিল রবীন্দ্রনাথ ঠাকুরের স্মরণ দিবস।
গতকালের পর্বে আমরা শুনেছি ঠাকুরের গান যা গেয়েছিলেন ডক্টর জাহাজের ডাক্তাররা সুলেরে নে।
‪@shiprasullere4379‬ 
‪@youtubecreators‬ 
‪@YouTube‬ ‪@worldview‬ 
🔗 গুরুদেব রবীন্দ্রনাথ ঠাকুরের স্মরণে
गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर के स्मृति दिवस 7 अगस्त पर
   • মন মোরো মাগেরো শোঙ্গি  অংশ 01  | स्वर...  


आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं श्री मलय दासगुप्ता की दृष्टि में #गुरुदेव_रविंद्रनाथ_टैगोर
के संस्मरण 
जिसे आप मेरे ब्लॉग मन की बात पर यहां पढ़ सकते हैं 
https://girishbilloremukulji.blogspot...
#podcast #facts 
#NationalAnthem of #bangladesh
   • Amaar Sonar Bangla Ami Tomai Bhalobas...  
National Anthem of India
   • National Anthem 52 Second || भारतीय र...  
National Anthem of 
#SriLanka
   • Sri Lankan National Anthem  
Rabindranath Tagore has contributed to all the three national anthems mentioned above. Two national anthems have been written by Rabindraji and the tune of the third national anthem has been composed by Ravindra Nath Tagore .


मंगलवार, अगस्त 06, 2024

B'desh Crisis | दक्षिण एशिया के लिए खतरे की घंटी ? 02


( #डिस्क्लेमर:हमारे इस विमर्श का उद्देश्य केवल दक्षिण एशिया में शांति एवं मित्र राष्ट्रों के सोशियो इकोनामिक डेवलपमेंट पर पढ़ने वाले सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव की समीक्षा करना है। हमारी इस विमर्श का कोई स्थानीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पॉलिटिकल उद्देश्य कदापि नहीं है। )
    पिछले भाग में अपने जाना कि बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के लिए किए गए तख्तापलट एक वैश्विक स्तर पर की गई करवाई हो सकती है अब आगे ...)
हमने आपको बताया था कि बांग्लादेश में डेमोग्राफिक अरेंजमेंट में 15 करोड़ मुसलमान हैं और इसके बाद 1.31 करोड़  जनसंख्या  हिंदुओं की है. इनके अलावा  बांग्लादेश में 10 लाख बौद्ध धर्म को मानने वाले, 4.95 लाख ईसाई और 1.98 लाख मत एवं संप्रदायों से जुड़े हुए लोग रहते हैं।
  सांप्रदायिकता को लेकर पाकिस्तान की तरह बांग्लादेश भी अत्यधिक संवेदनशील है। आजादी के बाद अभिभाजित  पाकिस्तान के इस हिस्से में लगभग 27 प्रतिशत हिंदू आबादी निवास करती थी परंतु अब मात्र 8% आबादी ही हिंदू आबादी है।
    भारत में नागरिकता के परिपेक्ष में कानून लाने का उद्देश्य भी मानव अधिकार की रक्षा ही था। बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदाय विशेष रूप से हिंदू और बौद्ध कथित रूप से इस आंदोलन के निशाने पर हैं।
उदाहरण स्वरूप नवग्रह मंदिर तथा अन्य मंदिरों को निशाना बनाना, हिंदू परिवारों के घर में तोड़फोड़ करना, इस्कॉन मंदिरों पर हम लोग को छात्र आंदोलन कहना अनुचित है। बांग्लादेश में मुस्लिम अतिवादियों ने कई वर्षों से हिंदू ब्लॉगर्स को निशाने पर रखा गया था और उनकी बेरहमी से हत्या भी कर दी थी।
   आंदोलनकारी छात्र यह भूल चुके हैं कि, पाकिस्तान ने अपने पूर्वी हिस्से यानी वर्तमान बांग्लादेश में एक लाख से अधिक महिलाओं को बलात्कार का शिकार बनाया तथा लगभग 30 लाख लोगों मौत के घाट उतार दिया था। बांग्लादेश की युवा पीढ़ी को यह याद रखना चाहिए कि वे चीनी और पाकिस्तानी साजिशों का मोहरा बन गए हैं।   
   अब तो यह तय हो चुका है कि पाकिस्तान और चीन मिलकर भारत विरोधी वातावरण निर्मित करने के लिए दक्षिण एशिया में सक्रिय हो चुके हैं।
कुछ यूट्यूबर जैसे अंकित अवस्थी ने बताया है कि शेख हसीना की सरकार के विरुद्ध अमेरिका ने भी वातावरण तैयार किया है। उनका तर्क है कि अमेरिका द्वारा शेख हसीना सरकार को सैन्य अड्डा स्थापित करने के लिए पहले दबाव डाला गया था। परंतु शेख हसीना ने उनके प्रस्ताव को नकार दिया था।
इसके अतिरिक्त अमेरिका से जारी बयान से भी लगता है कि आर्मी कार्रवाई को संतोष जनक बताया है जबकि ग्राउंड रियलिटी यह है कि 24 घंटे से अधिक समय भी जाने के बाद हिंदू माइनॉरिटी, शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के सदस्यों एवं पदाधिकारीयों को हिंसा का शिकार बनाया जा रहा है।
अगर यह स्थिति नियंत्रित नहीं होती है तो उन की पीसकीपिंग फोर्स को अपना दायित्व निभाना होगा।
फिलहाल बांग्लादेश में अराजकता के लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराया जाना जल्दबाजी होगा। 
  इसके परिणाम स्वरुप भारतीय उप महाद्वीप में अस्थिरता को स्थान मिलता नजर आ रहा है।
   यहां यह कहना भी गलत नहीं होगा कि चीन और पाकिस्तान  का यह प्रयास है कि भारत की स्थिति दुश्मनों से घिरे इजरायल की तरह हो जाए। ताकि चीन अपने विस्तारवादी एजेंडे को संपूर्ण दक्षिण एशिया क्षेत्र में लागू कर सके।
  अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक स्थिति जो भी हो किसी भी देश में सामाजिक अस्थिरता फैलाना मानव अधिकार का सबसे अपराध  है।
भारत के सीमावर्ती राज्यों मणिपुर असम पश्चिम बंगाल में अब सीमा सुरक्षा भारत के लिए चुनौती बन चुका है। निश्चित तौर पर भारत  सरकार इस मुद्दे पर भी विशेष ध्यान देगी।
    भारतीय उपमहाद्वीप में भारत को अलग-अलग कर देने की चीन की कोशिश है पहले भी जारी रही है इसका विवरण हम पिछले पॉडकास्ट में प्रस्तुत कर चुके हैं। 
#बांग्लादेश #Socio_Economic_Effects
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#खालिदाजिया #अजितभारतीलाइव
#ISI  #चीन_का_षड्यंत्र
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India's Foreign Policy

सोमवार, अगस्त 05, 2024

B'desh Crisis | दक्षिण एशिया के लिए खतरे की ?घंटी 01

( #डिस्क्लेमर:हमारे इस विमर्श का उद्देश्य केवल दक्षिण एशिया में शांति एवं मित्र राष्ट्रों के सोशियो इकोनामिक डेवलपमेंट पर पढ़ने वाले सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव की समीक्षा करना है। हमारी इस विमर्श का कोई स्थानीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पॉलिटिकल उद्देश्य कदापि नहीं है। )
#बांग्लादेश #Socio_Economic_Effects

दक्षिण एशिया के महत्वपूर्ण देश बांग्लादेश के इंफ्रास्ट्रक्चरल डेवलपमेंट के लिए  भारत की प्रतिबद्धता सदा से ही रही है। पाकिस्तान से विभाजन के पूर्व तथा
1971 के पश्चात से ही भारत का दृष्टिकोण बांग्लादेश के लिए सकारात्मक रहा है।
    2024- 25 के भारतीय बजट में  बांग्लादेश को विकास सहायता के तहत 120 करोड़ रुपए की राशि प्रदान की जाएगी 
   भारतीय अर्थव्यवस्था के सहयोग एवं मानव संसाधन विकास के महत्वपूर्ण स्वीकारते हुए बांग्लादेश ने अपने आर्थिक स्तर को सुधारने के लिए प्रभावशाली रूप से भारत का सहयोग लिया है।
भारतीय विदेश नीति में  भारतीय उपमहाद्वीप दक्षिण एशियाई देशों के प्रति सम्मानजनक सह अस्तित्व के कांसेप्ट को प्रमुखता दी जाती रही है।
   परंतु पाकिस्तान एक ऐसा राष्ट्र है जो भारतीय विदेश नीति के लिए आवश्यक मापदंडों को सहन नहीं कर रहा है।
पिछले कुछ दिनों से बांग्लादेश में असहज स्थिति उत्पन्न करने के लिए आंतरिक वातावरण बेहद हिंसक बनाया जा रहा है। भले ही अप्रत्यक्ष रूप से परंतु बांग्लादेश में भी एक लंबे अंतराल से शेख हसीना की पार्टी को हटाने की कोशिश लगातार जारी रही है।

5 जून 2024 को बांग्लादेश के न्यायालय निर्णय के बाद 4 जुलाई 2024 से आरक्षण के मुद्दे को लेकर बांग्लादेश के छात्र विगत कई महीनों से आंदोलन कर रहे थे। 
   आज 5 अगस्त 2024 को शेख हसीना द्वारा इस्तीफा देकर अपनी बहन के साथ बांग्लादेश से बाहर निकल चुके हैं। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक शेख हसीना ने भारत में आ चुकी है तथा उनकी मुलाकात NSA श्री अजीत डोभाल से बातचीत हो चुकी है।

   16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान से मुक्त हुए बांग्लादेश शेख मुजीबुर रहमान एवं उनके परिवार के 17 सदस्यों की हत्या आर्मी के तख्ता पलट में 1975 में कर दी गई थी।
  शेख मुजीबुर रहमान जिन्हें बंगबंधु के नाम से जाना जाता है, की हत्या के बाद सेना ने बांग्लादेश आर्मी चीफ जियाउर रहमान के नेतृत्व में बांग्लादेश की सत्ता संभाली थी। हालांकि उन पर यह आरोप लगाता रहा है कि वे मुजीब की हत्या के दोषी हैं। जबकि उन्होंने ही शेख हसीना को प्रजातांत्रिक रास्ते से वापस स्थापित किया।
  विकसित राष्ट्रों से लेकर अल्प विकसित राष्ट्रों तक राष्ट्र प्रमुख के आवास पर हमला बोलना बेहद सोशियो पॉलीटिकल नजरिया से नकारात्मक स्थिति का परिचायक है।
डेमोक्रेटिक सिस्टम कभी भी हिंसा का हिमायती नहीं रहा परंतु डेमोक्रेसी में हिंसा का प्रवेश तख्ता पलट, राष्ट्र प्रमुख के आवास पर हमला बोलना, डेमोक्रेटिक सिस्टम की विकृति का उदाहरण माना जा सकता है।
  अपने अमेरिका में भी भीड़ का राष्ट्रपति भवन में प्रवेश करना देखा होगा तो आपको श्रीलंका में भी इस तरह की गतिविधि नजर आई होगी।
  यह तीसरा मौका है जब भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश के राष्ट्र प्रमुख के आवास पर जनता ने हमला बोला है।
उपरोक्त स्थितियों के अलावा अगर हम गौर करें तो म्यांमार श्रीलंका के बाद बांग्लादेश में पॉलीटिकल अनरेस्ट की स्थिति कोई सामाजिक आंदोलन की परिणीति नहीं हो सकती।
  दोपहर बाद जब  बांग्लादेश से संबंधित खबर आनी शुरू हुई तो मुझे यह महसूस हो गया था कि - "यह एक अंतरराष्ट्रीय स्तर से प्रेरित  प्रजातंत्र को समाप्त करने वाला षड्यंत्र हो सकता है।"
  फिर धीरे-धीरे मीडिया इस बात का खुलासा करने लगा।
   अगर यह कयास लगाया जाता है कि - बांग्लादेश का मौजूदा नेतृत्व, दो अंतरराष्ट्रीय ताकतों के षडयंत्रों का शिकार हुआ है तो शायद गलत नहीं होगा।
   फिलहाल हम उन खबरों पर नजर बनाकर रखे हैं जो बांग्लादेश की स्थितियों पर सामने लाई जाएगी। फिर भी यह कहा जा सकता है कि बांग्लादेश श्रीलंका नेपाल म्यांमार मालदीव में दिखने वाले दृश्य दक्षिण एशिया के लिए सकारात्मक नहीं है।
बांग्लादेश से आने वाली खबरों को देखकर प्रतीत होता है कि दक्षिण एशिया अब मिडिल ईस्ट की तरह सोशियो इकोनामिक सिस्टम के संदर्भ में नकारात्मक दिशा की ओर जा रहा है।
   दक्षिण एशिया में भारत के बाद बांग्लादेश ही एक ऐसा राष्ट्र है जिसकी अर्थव्यवस्था विकास का आभास देती है परंतु वर्तमान परिस्थितियों को देखकर लगता है अब बांग्लादेश उग्र एवं कट्टरपंथी विचारधारा एवं आयातित अराजकतावादी विचारधारा का शिकार होकर अस्थिरता के चक्रव्यूह में घिरता चला जा रहा  है।
   देखना यह है कि 1971 में जन्मे इस राष्ट्र के आर्थिक सामाजिक विकास फिर कब स्थापित हो सकेगा। इतना तो तय है कि बांग्लादेश में अब जो भी सरकार बनेगी वह भारत की समर्थक होगी या नहीं यह कहना मुश्किल है।
प्राप्त समाचारों के अनुसार बांग्लादेश में गैर इस्लामिक नागरिकों को भी टारगेट किया जा रहा है।
  इससे प्रतीत होता है कि पाकिस्तान की आई एस आई का कहीं न कहीं बांग्लादेश की आंतरिक गतिविधियों  में हस्तक्षेप बढ़ गया है।
और संप्रदायिक रूप से बांग्लादेश संवेदनशील होता जा रहा है।
  बांग्लादेश में करीब 15 करोड़ मुसलमान हैं और इसके बाद 1.31 करोड़  जनसंख्या  हिंदुओं की है. इनके अलावा बांग्लादेश में 10 लाख बौद्ध धर्म को मानने वाले, 4.95 लाख ईसाई और 1.98 लाख दूसरे धर्मों को मानने वाले लोग हैं ।
  इसका अर्थ यह है कि बांग्लादेश में अगर पंथनिरपेक्ष सरकार का गठन नहीं होता तो सामाजिक संरचना नकारात्मक रूप से प्रभावित होगी। 

क्या तलाशते हैं लोग इंटरनेट पर


     साप्ताहिक पॉडकास्ट दुनिया इस सप्ताह में  आज से हम प्रत्येक रविवार की शाम दुनिया इस सप्ताह शीर्षक से एक पॉडकास्ट आपके लिए लाएंगे। जो पूरे सप्ताह में हुए महत्वपूर्ण घटनाक्रम पर केंद्रित होगा।
    ( खबरें 4 अगस्त 2024 तक  )
  आज जानते हैं इस सप्ताह में उन समाचारों के बारे में जो सबसे ज्यादा खोजे गए अथवा चर्चित रहे हैं
    इस सप्ताह हम विश्लेषण कर रहे हैं कि विश्व में  खास तौर पर अमेरिका यूरोप तथा भारत, दक्षिण एशिया के अन्य देशों जैसे बांग्लादेश और पाकिस्तान में किन विषयों पर आधारित कंटेंट्स को देखा और दिखाया जा रहा है।
   इस समय गूगल पर अमेरिका में सर्वाधिक खोज की जा रही है वह अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव को लेकर सर्वाधिक कंटेंट खोजा जा रहा है।
   जबकि पिछले दो दिनों से अर्थात एक अगस्त के पक्ष से अमेरिका सहित संपूर्ण विश्व के लोग इसराइल फिलिस्तीन  और हमास पर केंद्रित समाचारों को तलाश रहे हैं।
  अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव लिए अमेरिका की जनता ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व की जनता और  मीडिया हाउस दोनों प्रत्याशियों कमला हैरिस एवं  डोनाल्ड ट्रंप  की स्थितियां समझना चाहते हैं।
  स्मरण हो कि जो बाइडन के बाद अब भारतीय मूल की कमला हैरिस अमेरिकी राष्ट्रपति के पद पर डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रत्याशी हैं।
  विश्व भर के विशेषज्ञ डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार  कमला हैरिस एवं रिपब्लिकन ट्रंप की लोकप्रियता के बारे में जानना चाहते हैं और इसी आधार पर अमेरिका के इलेक्शन पर प्रिडिक्शन किया जा रहा है।
   मीडिया पर प्रचारित समाचारों को देखा जाए तो ज्ञात होता है कि रिपब्लिकन पार्टी और डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवारों में अब कांटे का संघर्ष नजर आ रहा है। जबकि पिछले एक माह से स्थिति रिपब्लिक रिपब्लिकन पार्टी के पक्ष में थी।
अमेरिका में महंगाई की दर में वृद्धि के कारण सोने का बाजार भाव भी इन दिनों सुर्खियों में है।  सोने का भाव तय करने वाला इंग्लैंड का बुलियन बाजार सोने की कीमतों में यूरोप के प्रभाव को प्रदर्शित करता है। जब जब दुनिया में यूरोप की आर्थिक स्थिति कमजोर होती है तब तक विश्व में सोने के भाव में अचानक वृद्धि देखी जाती है।
   विश्व में भले ही सोना एक निवेश का कारण हो परंतु भारत में सोना सामाजिक सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि भारत में सोने से जुड़े हुए समाचारों पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
  वैश्विक स्थिति में जहां एक को अमेरिका का इलेक्शन सबके लिए कौतूहल का विषय बना है वहीं दूसरी ओर इजरायल के खतरनाक जासूसी संगठन मोसाद द्वारा कथित रूप से तेहरान में हमास के चीफ  हानियां की हत्या को लेकर बेहद रहस्यमई कहानियां  सामने आ रही है।
   सर्च इंजन में हमास के प्रमुख हानिया की हत्या को लेकर यह खोजा जा रहा है कि किस तरह से इसराइल के जासूसी संगठन मोसाद ने उन्हें मौत के घाट उतारा।
  लगभग 1 वर्ष से या कहीं इसराइल के बने के बाद से इसराइल और हमास के बीच चल रहे संघर्ष की परिणीति एक रहस्यमई हत्या के रूप में हुई है। आगे और क्या होता है यह भी विचारणीय है।
    कुछ मीडिया चैनल यह अंदाज लग रहे हैं कि ईरान के भीतर ही कोई ऐसे स्लीपर सेल है जो आतंकी संगठन के प्रमुख को निपटने में सहयोग कर रहे हैं।
भारत में जिन समाचारों में रुचि ली जा रही है उनमें संसद की गतिविधियों के अलावा बरसात एक प्रमुख मुद्दा है।
परंतु जब से हमास प्रमुख का की कथित तौर पर हत्या मोसाद द्वारा की गई है, उसके परिणाम पर चिंता व्यक्त की जा रही है।
   मीडिया जगत यह मान रहा है कि अब तीसरा विश्व युद्ध नजदीक है।
भारत में भी जो समाचार सर्च किया जा रहे हैं उनमें अब अचानक ट्रेंड बदलता नजर आ रहा है। कन्वेंशनल प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर प्रकाशित होने वाले समाचार और विशेष आर्टिकल तीसरे विश्व युद्ध की आहट को महसूस करते नजर आ रहे हैं।
   भारत में अचानक पाकिस्तान से 600 आतंकवादियों की घुसपैठ चिंता का विषय है। परंतु अच्छी खबर यह है कि अब तक के एनकाउंटर में मारे गए आतंकवादियों के रूप में घुसे पाकिस्तान सेना के कमांडोज में से एक को जिंदा पकड़ लिया गया है।
   इस सप्ताह में भारत के लिए से पाकिस्तानी कमांडो को जिंदा पकड़ना बेहद महत्वपूर्ण एवं आवश्यक भी है।
   भारत में सर्च की जाने वाली खबरों में 200  रोहिंग्याओं का लखनऊ के पास अवैध प्रवास भी सनसनी बना हुआ है।
   पाकिस्तान में औसत इंटरनेट यूजर वल्गर कंटेंट खोजने में नंबर वन है। स्मरण हो कि पाकिस्तान में सर्वाधिक पोर्न देखा जाता है।
    दक्षिण एशिया का एक और देश है बांग्लादेश, यूट्यूब पर लाइव होकर पैसे कमाने की दौड़ में बांग्लादेश पश्चिम बंगाल एवं बिहार, उत्तर प्रदेश से महिलाएं एवं पति पत्नी देर रात तक अश्लील प्रसारण में व्यस्त रहती हैं।
  भारत में  सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा कंटेंट संसद की पिछली कार्रवाई में हुई नोकझोंक पर मीम्स और कंटेंटस का आदान प्रदान हो रहा  है। 

रविवार, अगस्त 04, 2024

Eternal. | सनातनी अस्थि-पंजरों पूजन न करें..?

   बहुत दिनों से यह सवाल मेरे मित्र मुझसे पूछते थे। सनातन में अस्थि कलश विसर्जित किया जाता है। क्योंकि शरीर और प्राण दो अलग-अलग वस्तु है। कतिपय सनातनी उन स्थानों की पूजा करते हैं जहां शरीरों को प्रथा अनुसार मृत्यु के बाद भूमिगत कर दिया जाता हैं ।
 सनातनी लोगों के लिए ऐसा करना वर्जित है। 
    सामान्यतः  सनातन धर्म में देह को प्राण के देह से निकल जाने के बाद अग्नि को समर्पित कर दिया जाता है उसकी अस्थियों एवं भस्म को गंगा या अन्य पवित्र नदी को सौंपा जाता है।  मृतक के मरने के 11 दिन बाद शरीर से पृथक हुए प्राण को पूर्वजों के साथ मिलाकर ब्रह्म के अर्थात परम उर्जा में समाविष्ट करने का नियम है। तदुपरांत सवा महीने तक दिवंगत आत्मा की स्मृति में ऐसे कार्य जो विलासिता की श्रेणी में आते हैं को संपन्न करने कराने की अनुमति सनातन में नहीं है।
सनातन ऐसे किसी विषय को रुकता नहीं है जिसमें कि किसी परिवार का हित छुपा हुआ हो। उदाहरण के तौर पर विवाह संस्कार रोजगार के लिए पर्यटन इत्यादि। क्योंकि सनातन व्यवस्था में विकल्पों का महत्व है तथा जीवन चर्या के लिए विकल्प भी मौजूद है ऐसी स्थिति में मृत्यु के उपरांत उत्तर कर्मों की काल अवधि में परिवर्तन किया जा सकता है। उदाहरण स्वरूप स्थाई नियम है किसी की मृत्यु के 1 वर्ष उपरांत घर में शुभ कार्य हो सकते हैं। परंतु आवश्यकता पड़ने पर 12 माह उपरांत होने वाली बरसी की तिथि में परिवर्तन किया जा सकता है। यहां तक कि अगर विवाह जैसा कार्य संपादित किया जा रहा हो और उसी समय परिवार में कोई मृत्यु हो जाए तो उत्तर कर्म तथा विवाह समानांतर रूप में संपन्न किए जा सकते हैं। सनातन कट्टर व्यवस्था को विकल्पों के तौर पर समाप्त करने की सलाह देता है। सनातन का हर संप्रदाय अपने अपने नियम बनाता है। इससे सनातन के मूल स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं होता। सनातन धर्म है ना कि सांप्रदायिक व्यवस्था। सनातन जिस ईश्वर की कल्पना करता है वह ईश्वर प्रत्येक जीव के साथ समानता का व्यवहार करता है। सनातन का  अनुसरण करने वाला व्यक्ति चाहे वह शैव वैष्णव अथवा शाक्त हो सभी में एक ही ब्रह्म की अवधारणा दृढ़ता से समाहित होती है।
    स्वर्ग और नर्क की परिकल्पना मूल रूप से सनातन में नहीं की गई। ऐसी मेरी अवधारणा है सर्वमान्य ग्रंथों में स्वर्ग नरक की परिकल्पना नहीं है।  ब्रह्म एक परम ऊर्जा है। हमारे प्राण उसी परम उर्जा का अंश होते हैं। प्रतीकात्मक रूप से हम सनातन धर्म के अनुयाई मृतक के पिंड अपने पूर्वजों के  पिंडों के साथ मिलाकर सहपिंडी की प्रक्रिया का निष्पादन करते हैं। यह अनुष्ठान हम निरंतर करते हैं कहीं-कहीं  पुण्यतिथि पर अथवा श्राद्ध पक्ष में।
  यह वैज्ञानिक सत्य भी है। केवल हम उन शरीरों को भस्मी भूत करते हैं। विशेष परिस्थिति में समाधि देने का भी प्रावधान है। परंतु ऐसा सामान्य रूप से नहीं होता। मित्र को मेरी सलाह थी कि-" हम अमर आत्मा की पूजन करते हैं अगर वह हमारे पूर्वज है तो अगर समकक्ष या छोटी उम्र के हैं तो उन्हें श्रद्धा सहित आमंत्रित कर उनका स्मरण करते हैं। यह परम सत्य है कि आत्मा नामक ऊर्जा का मिलन अगर प्रमुख ऊर्जा अर्थात ब्रह्म से नहीं होता तो वह या तो पुन: जन्म लेती हैं ,अथवा ऐसी आत्माएं जन्म लेने के लिए किसी भी योनि में प्रविष्ट हो  सकती है। हमारी सनातनी मान्यता है कि हमें उन आत्माओं की प्रति तर्पण जैसी प्रक्रिया करने से आत्मा जिस योनि में जन्म लेती है को आत्मिक सुख का अनुभव होता है। 
हमें किन लोगों की समाधि पर पूजन करनी चाहिए
हमें केवल ऐसी मृत समाधिष्ट    महा ज्ञानियों तपस्वियों और ब्रह्मचारीयों की पूजन करने की आज्ञा है जो ऋषि परंपरा एवं लौकिक जीवन में जीव ब्रह्म के अनुरूप आचरण कर चुके हैं। ऋषि परंपरा के दिवंगत व्यक्तियों की समाधि यों को छोड़कर अन्य किसी भी मत एवं संप्रदाय के मृतकों की समाधि की पूजा करना वर्जित है इन समाधियों में नर कंकाल के अलावा कुछ नहीं होता।
यह भी मान्यता है कि जो लोग मृत शरीरों को संभाल कर रखते हैं तथा उनकी पूजन करते हैं उससे कुलदेवी या कुलदेवता रुष्ट हो जाते हैं। क्योंकि हमारी कुल की रक्षा कुलदेवी या कुलदेवता द्वारा की जाती है। कुलदेवी अथवा कुल देवता हमारे कुल की रक्षा और उन्हें सतत आशीर्वचन देने का दायित्व निभाते हैं। किंतु हम भ्रमित होकर अन्य संप्रदायों से संबंधित व्यक्तियों की समाधि पर आराधना करना सनातन में वर्जित है। ऐसा करने से कुलदेवी अथवा कुलदेवता के प्रति आपका अविश्वास प्रकट होता है। ऐसी स्थिति में जो सनातनी व्यक्ति है उसे कभी भी किसी अन्य संप्रदाय के प्रति आस्था रखने वालों से संबंधित समाधि पर ना तो जाना चाहिए और ना ही उन पर विश्वास ही करना चाहिए। क्योंकि हम अस्थि पूजक नहीं है बल्कि हम ब्रह्म के आराधक हैं। हमारी कुल देवी या देवता के प्रति आस्था ना रखते हुए हम अगर अन्य किसी पर विश्वास करते हैं तो यह अपने ही कुल देवी या देवता के प्रति सकारात्मक श्रद्धा से खुद को अलग कर लेते हैं। जिनके घर में श्राद्ध पक्ष एवं कुलदेवी और कुलदेवताओं का पूजन किया जाता है उन्हें किसी अन्य गैर सनातनी व्यक्ति की समाधि पर जाना शास्त्र सम्मत नहीं है भले ही वे कितने महत्वपूर्ण क्यों न हों। 
   आज से ही जो भी कब्रों दरगाह अथवा ऐसे किसी स्थान पर जाते हैं जहां उन्हें भ्रम होता है कि उनकी मनोकामना पूर्ण होगी । वास्तव में यह भ्रामक प्रचार के कारण होता है। पंडितों एवं आचार्यों को चाहिए कि वे इस संदेश को हर तरफ विस्तारित करें। 
  हां यदि आप अन्य किसी संप्रदाय को मानते हैं तो आप यह सब कर सकते हैं , इसे हमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए । परंतु सनातन धर्म के माननीय वालों के लिए यह सब वर्जित है।
#YouTube पर इससे संबंधित पॉडकास्ट सुनिए 
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सोमवार, जुलाई 15, 2024

बीएसएनल टाटा कोलैबोरेशन : विश्व को भारत का संदेश

  बीएसएनल टाटा कोलैबोरेशन : विश्व को भारत का संदेश
  भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ-साथ भारत की व्यापारिक बुद्धिमत्ता को कमजोर साबित करने वाली विचारधारा को आज गहरा झटका महसूस हो रहा होगा। टाटा के साथ कोलैबोरेशन करके भारत ने विश्व को यह बता दिया है कि हम चीन पर उतना निर्भर नहीं है जितना समझा जाता रहा है।
   कॉविड-19 आने से पहले भारत लगभग यह सुनिश्चित कर चुका था कि -"चीन की कंपनियों के साथ भारत की सरकारी कंपनी का अनुबंध भारत में संचार क्रांति को एक नया स्वरूप प्रदान कर देगा..!"
    कॉविड-19 के दोनों एपिसोड के बाद चीन की संदिग्धता, विश्व व्यापी हो चुकी है। अगर भारत का बीएसएनल सशक्तिकरण का प्रोजेक्ट चीन के साथ नए स्वरूप में आता तो तय था कि हम अपनी न  केवल गरिमा को काम करते बल्कि हमारी चीन पर निर्भरता भी स्पष्ट रूप से बढ़ जाती।
     सूत्रों की मानें तो दूरसंचार के क्षेत्र में चीन की कंपनियों  के साथ भारत का करार एक नई किस्म की मोनोपोली को स्थापित कर देता। इसमें कोई शक नहीं कि चीन के साथ हमारे आर्थिक संबंध बेहद सकारात्मक हैं ।
परंतु हमें अपने अस्तित्व और भारत के वैश्विक महत्व को बनाए रखने के लिए आंतरिक रूप से मजबूत बने रहने की आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता।
    जानकार बताते हैं कि भारत की सरकारी कंपनी बीएसएनएल और चीन की संचार कंपनियों के साथ हुए समझौता अगर पूरा हो जाता तो 3G के बाद सारे संचार बदलाव में चीन का हस्तक्षेप बढ़ जाता।
आपको याद होगा कि जुलाई 2020 के पूर्व भारत सरकार ने चीन के 59 ऐप्स सुरक्षा के मद्देनजर रद्द कर दिए थे। और फिर जुलाई 2020 में 4G सेवाओं को अपग्रेड करने वाले 4 टेंडर भी रद्द किए गए थे।
मुख्य रूप से चीन ने कंपनियों के जरिए विभिन्न देशों के सुरक्षा प्रबंधन पर भी निशाना साध लिया था। भारतीय सुरक्षा को लेकर उठाए गए इस कदम को एक टर्निंग पॉइंट कहा जा सकता है।
    भारत सरकार ने घाटे में चल रहे BSNL के वित्तीय स्वास्थ्य को सुधारने लगभग 8 हजार करोड़ रुपए की सहायता BSNL को देते हुए कहा था कि - भारतीय संचार क्षेत्र में उपयोग में चीन से आयातित 75% इक्विपमेंट्स का निर्माण भारत में ही हो।
अब  इक्विपमेंट्स के मामले में भारत की चीन पर निर्भरता कम होने लगी है।
    टेलीकॉम क्षेत्र को  भारत सरकार मजबूत बनाने के लिए R & D यानी  शोध एवं विकास पर खर्च करने की दिशा में तेजी से बढ़ रही है।
  भारत सरकार के उपक्रम BSNL ने टाटा के साथ किए समझौते के बाद प्रायवेट कंपनियों पर भी नकेल कसने का काम किया है
   इसके अलावा भारत के भीतर संचार क्षेत्र को एयरटेल जिओ और वी आई जैसी कंपनियों पर निर्भर रहना पड़ता।
    वर्तमान व्यवस्था के अंतर्गत, चौथे और पांचवें जनरेशन के स्पेक्ट्रम के मेंटेनेंस और उपभोक्ता के हितों को संरक्षित रखने का दायित्व टाटा का होगा।
  संचार क्षेत्र में टाटा की मौजूदगी से केबल ऑपरेटर को भी रोजगार मिलने की अपार संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
    कुल मिलाकर जहां एक और यह समझौता वैश्विक व्यापार व्यवस्था को भारत की आत्मनिर्भरता का संदेश देता है वहीं दूसरी ओर आंतरिक ढांचा गत सुधार को भी
मजबूत करने का प्रयास है।
    टाटा के साथ बीएसएनल के जुड़ाव का समाचार तब तक अधूरी रहेगी क्योंकि अभी तक हमने स्टार लिंक के एलॉन मुस्क की चर्चा नहीं की है। एलॉन मस्क की कंपनी स्टार लिंक हमारे देश में संचार क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण सहयोगी साबित होगा।
आप सोच रहे हैं कि स्टारलिंक , BSNL के लिए किस प्रकार से सहायक होगी ?
     स्टारलिंक सैटेलाइट अन्य जियोस्टेशनरी सैटेलाइट की तुलना में कम ऑर्बिट में हैं, जिससे तेज इंटरनेट कनेक्टिविटी देना काफी आसान हो जाता है.
टेस्ला, स्पेसएक्स एवं स्टार लिंक के सीईओ एलन मस्क (Elon Musk) अपनी स्टारलिंक (Starlink) इंटरनेट सर्विस के जरिए 80 देशों को वैश्विक इंटरनेट सेवा का विस्तार करना चाहते हैं। पिछले दिनों उनकी भारत यात्रा के सुखद परिणाम को आप अवश्य ही देखेंगे। 

शुक्रवार, जुलाई 12, 2024

क्या 2025 में सोने की कीमतें स्थिर हो जाएंगी ?

विश्व बैंक के मुताबिक, साल 2024 में सोने की कीमत औसतन 2,100 डॉलर प्रति औंस रहेगी
   यह अनुमान इस बात पर आधारित है अंतरराष्ट्रीय तनाव की स्थिति पर।
हम सब जानते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय तनाव अथवा  संघर्ष के कारण वैश्विक रूप से पूंजी निर्माण एवं व्यापार अनिश्चितता बढ़ सकती है,
   मूल्यवान धातुओं के मूल्य में तेजी से उछाल भी इसी कारण आता है।
आईएनजी का अनुमान है कि साल 2024 में सोने की कीमत औसतन 2,031 डॉलर प्रति औंस रहेगी, जबकि चौथी तिमाही में इसका औसत 2,100 डॉलर प्रति औंस रहेगा. यह तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगाए गए अनुमान हैं। आईए भारत के संदर्भ में सोने की कीमतों के संबंध में हांबचर्चा करते हैं
*2025 के बाद आएगी सोने में स्थिरता..!*
सवाल यह है कि क्या भारत में सोने की कीमतों में भविष्य में स्थिरता आ सकती है।
यह समकालीन परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
   भारत में सोने की कीमत का अनुमान कई आर्थिक विकास एवं राजनीतिक परिस्थितियों के अधीन है।  पर निर्भर    
        विश्लेषकों का अनुमान था कि साल 2024 के अंत तक सोने की कीमतें लगभग ₹75,000 प्रति 10 ग्राम तक पहुंच सकती हैं. परंतु सोने की कीमतों में विश्लेषकों के अनुमान को गलत साबित करते हुए पहले 6 महीनों  में ही बढ़त बना ली है।
कुछ अनुमानों के मुताबिक, साल 2024 के अंत तक सोना की कीमत 80 हज़ार से एक लाख रुपये तक पहुंच जाएगी इससे स्पष्ट है कि सोना लगभग ₹100000 प्रति 10 ग्राम वर्षांत के पूर्व ही हो सकता है।
    साल 2025 तक 10 ग्राम सोने की कीमत एक लाख तीस हजार से अधिक नहीं होगा। वर्तमान में कम मूल्य वाले स्टॉक पर निवेश बढ़ाना जारी है। परंतु टैक्सेशन को देखते हुए मध्यमवर्ग  पूंजी बाज़ार विनियोग के लिए मानसिक तौर से तैयार नहीं है।
    अर्थव्यवस्था का वित्तीय विश्लेषण एवं मध्य वर्ग के पूंजी निर्माण की दर को देखकर लगता है कि - "वह अपनी बचत विनियोजित में ही विनियोजित करेगा।"
मध्य वर्ग का पूंजी निवेश तब तक सोने में होता रहेगा जब तक कि सोने की कीमतों में 2015 और 2018 के बीच बीच की स्थिरता न बने। ऐसा लगता है कि 2025 में सोने के मूल्य में स्थिरता के संकेत नहीं हैं।
आपने देखा होगा 2019 में अचानक 56% की वृद्धि के साथ सोने में उछाल आना शुरू हो गया था। सोने की कीमतों में यह वृद्धि आंशिक  उतार-चढ़ाव के साथ 2030 तक जारी रहने की संभावना है।
*वर्तमान में सोने में उछाल का प्रतिशत मासिक रूप से 3.9 रहा है जबकि वर्तमान  तिमाही में  2.4 प्रतिशत वृद्धि मापी की गई।
6 माह एवं 1 वर्ष में हुई बढ़त पर नजर डालें तो  17.9% तथा 24.7% वृद्धि दर है।*
  *कुल मिलाकर  पिछले 5 वर्षों में कीमतों में बढ़ोतरी 117.7% के साथ उच्चतम स्थान पर है।*
   अगर सरकार आयकर पर अधिकतम सीमा को बढ़ा देती है तो देखा जा सकता है कि स्वर्ण कीमतों में और अधिक वृद्धि हो सकती है।
   बहरहाल केवल अनुमान है, वास्तविकता तो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों पर निर्भर करती है। सोने की कीमतों में स्थिरता की कल्पना फिलहाल करना गलत होगा।
   समसामयिक परिस्थितियों तो यही संकेत दे रही हैं।
Youtube 

मंगलवार, जुलाई 02, 2024

भारत का मध्यम वर्ग ही भारत का सॉफ्ट पावर है

     6 दिसंबर 2011 को अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक भाषण में आर्थिक विकास में मध्य वर्ग की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा था, “एक कमजोर मध्य वर्ग पूरे देश के आर्थिक विकास को बाधित करता है। मजबूत विकास के लिए सशक्त मध्य वर्ग जरूरी है। जब कंपनियों के उत्पाद और सेवाओं को खरीदने में मध्यवर्गीय परिवारों की क्षमता घटने लगती है, तो अर्थव्यवस्था में ऊपर से नीचे तक सब कुछ गिरने लगता है। असमानता हमारे लोकतंत्र को विकृत करती है क्योंकि इससे वे चुनिंदा लोग ही अपनी आवाज उठा पाते हैं जिनके पास लॉबिंग और प्रचार के लिए पैसा होता है।”
   उपरोक्त समाचार शायद आपने पढ़ा होगा। यदि नहीं पढ़ा तो हू बहू काफी पेस्ट किया है। 
   किसी भी राष्ट्र की समृद्धि और उसके हैप्पीनेस इंडेक्स के सकारात्मक परिवर्तन के संदर्भ में बराक ओबामा कार्य है कथन पूरी तरह सही और सटीक माना जा सकता है 
  यहां हम मध्यम वर्ग को विकास के संदर्भ में विश्लेषित करेंगे।
   मिडिल क्लास की परिभाषा क्या है
उसे जनसंख्या और प्रति व्यक्ति वार्षिक आय के पैरामीटर पर कैसे समझा जाएगा इस पर बहुत सारी पाठ्य सामग्री
पब्लिक डोमेन पर पहले से ही मौजूद है
अतः इस पर चर्चा करना जरुरी नहीं। 
   मार्क्स से प्रभावित साहित्यकारों एवं विचारकों की अवधारणा जो भी कुछ हो
बदलते परिवेश में मध्य वर्ग के प्रति सकारात्मक विचार विमर्श की आवश्यकता है। 
   दावा यह किया जा रहा है कि साल 2047 भारत मिडिल क्लास वर्ग की आबादी 100 करोड़ से भी अधिक हो सकती है। 
   मध्य वर्ग की आबादी बढ़ने से भारतीय अर्थ तंत्र आमूल चूल परिवर्तन की नज़र आएगा। मध्य वर्ग की संख्यात्मक वृद्धि से टैक्स की परिधि में संख्यात्मक एवं गुणात्मक वृद्धि भी होगी
  विश्व के मध्यवर्ग विशेषता है कि वह टैक्स पूरी इमानदारी के साथ चुकाता है
  मध्य वर्ग जहां एक ओर पूंजी पति संस्थाओं के लिए आक्सीजन है वहीं दूसरी ओर निम्न वर्ग के लिए तुरंत मिलने वाला शैल्टर भी हो जाता है।
  गरीब व्यक्तियों परिवारों के लिए फाइलों के सहारे प्राप्त होने वाली सुविधा एवं सहायता से पहले मध्य वर्ग की सहायता उस तक से पहले पहुंचती है।
    अब स्थिति यह है कि -" मध्यवर्ग कीमतों में अत्यधिक उतार चढ़ाव के कारण अपने मासिक और वार्षिक बजट में स्थिरता नहीं ला पा रहा है।"
  नरेंद्र मोदी जी ने प्रधानमंत्री बनने के पश्चात अमेरिका के मेडिसिन स्कवॉयर में अपनी भाषण में कहा था कि हम निजी सेक्टर के साथ-साथ व्यक्तिगत सेक्टर होगी संरक्षित करेंगे।
  इसका संकेत यह माना जा सकता है कि प्रधानमंत्री ने आर्थिक परिपेक्ष्य में  मध्यम वर्ग के सॉफ्ट पावर का एम्पॉवरमेंट की कोशिश करने का संकेत दिया था।
   किसी भी देश की इकोनॉमी का आंतरिक पक्ष तभी चमकदार हो सकता जब उसे देश का मध्यम वर्ग मजबूत होता है 
   सवाल यह है कि भारत के संदर्भ में देखा जाए तो भारत का मध्यम वर्ग क्रमशः अपनी योग्यता कार्य कुशलता और संघर्ष शीलता के कारण भारत के संपूर्ण विकास में महत्वपूर्ण स्थान दर्ज कर लिया है।
  वर्ष 2013 में मध्यम वर्ग की औसत आमदनी 4.4 लाख रुपए वार्षिक थी
लेकिन वर्तमान में यह आय बढ़कर 13 लाख से अधिक हो चुकी है।
  स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के रिसर्च से पता चलता है कि 2047 तक भारतीयों की आमदनी 49.9 लाख रुपए सालाना हो जाएगी।
   2021 तक माध्यम वर्ग 432 मिलियन भारतीयों का समूह था जो जनसंख्या का लगभग 31% है
  वर्ष 2005 में जनसंख्या के सापेक्ष 14% लोग मध्य वर्ग में थे।
  उपरोक्त आंकड़ों से पता चलता है कि 
मध्य वर्ग का आकार बढ़ रहा है।
   भारत में सबसे निम्न मध्यम वर्ग को औसत दैनिक आय 17 अमेरिकी डॉलर तथा उच्च मध्य वर्ग की 100 अमेरिकी डॉलर  महत्वपूर्ण आंकड़ा है
औसत रूप से प्रत्येक मध्य वर्गी परिवार के पास काम से कम ₹8 लाख की संपत्ति अवश्य होती है।
   देखने में यह स्थिति बेहद आकर्षक और हैप्पीनेस इंडेक्स को ऊपर प्रदर्शित करने वाली लग रही है। परंतु भारत में प्राइस इंडेक्स में निरंतर परिवर्तन से मध्य वर्ग द्वारा कैपिटल जेनरेशन करने में कठिनाई उत्पन्न हो रही है।
  मध्य वर्ग की दूसरी हम कठिनाई है आयकर जो उसे पूंजी निर्माण के लिए सबसे बड़ी बाधा बनकर तैयार है।
   मध्यमवर्ग के पास चिकित्सा और शिक्षा पर असीमित खर्च की समस्या भी चिंता का विषय है। 
  अगर मौलिक जरूरतों जैसे चिकित्सा शिक्षा को ध्यान में रखा जाए तो सामान्य मध्य वर्गी व्यक्ति को परिवार में आकस्मिक बीमारियों के इलाज के लिए कर्ज यह पारिवारिक सहायता की आवश्यकता महसूस होती है।
परंतु दूसरा पहलू यह भी है कि मध्यमवर्गीय परिवार शो ऑफ करने में पीछे नहीं होते। उनके वैवाहिक एवं रिचुअल्स के आयोजनों पर होने वाले खर्च करने की प्रवृत्ति का फायदा बाजार बाकायदा उठा रहा है।
  मध्यमवर्ग को अगर अपना पारिवारिक अर्थ तंत्र मजबूत रखना है तो यह जरूरी है कि उसे अपने अनावश्यक खर्चो को सीमित कर देना चाहिए।
   उसकी यह बचत राष्ट्रीय बचत में शामिल होगी। जो स्वयं मध्य वर्गी एवं राष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण होती है।
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शनिवार, जून 29, 2024

भारत के लिए खतरे की घंटी : आयातित विचारधाराओं द्वारा स्थापित नैरेटिव

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क्या भारत को आयातित विचारधारा द्वारा स्थापित नैरेटिव से खतरा है ?
कुछ बिंदुओं पर विचार करने के बाद महसूस होता है कि  अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस तरह का ही प्रयास जारी है।

   श्रोताओं  नमस्कार जय भारत जय हिंद वंदे मातरम , 
   डिजिटल इनफॉरमेशन इंडस्ट्री  अब एक भयावह चौराहे पर आ चुकी है ।
कई बार तो महसूस होता है कि अब बंदरों के हाथों में उस्तरे पहुंच  चुके हैं यह स्थिति खतरनाक भी है।
न्यू मीडिया मनोरंजक कंटेंट की आड़ में  बहुत कुछ ऐसा परोस रहा है जो आम आदमी का ब्रेनवॉश करने में सफल होता है।
  यूरोप और अमेरिका ने भयानक तौर पर नस्लवाद का मंजर देखा है इन्ही  यूरोपीय देशों और अमेरिका के मीडिया संस्थान  भारत में जाति प्रथा, आदि को  लेकर सर्वाधिक नकारात्मक टिप्पणियां करते नज़र आते हैं।
सिंध एवं बलोचिस्तान के लोगों को ला पता करने वाले पाकिस्तानी प्रशासन  एवं  चीन के उइगर मुस्लिमों पर चुप्पी साधने वाले , पश्चिमी देशों के मीडिया घरानों ने
बताते फिरते हैं कि भारत आज भी जातिवाद और पिछड़ेपन की गिरफ्त में है।
  ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन यानी बीबीसी बे लगाम होकर भारत के मामलों में इस  अदा से कंटेंट परोसता है जिससे प्रतीत हो कि भारत में सामाजिक सांस्कृतिक असमानताएं आज भी मौजूद हैं।
जबलपुर में डिप्टी कमिश्नर के पद पर फुलर नामक एक प्रशासनिक अधिकारी था। वह भारतीयों से ठीक उसी तरह से घृणा करता था जैसे वेस्टर्न चर्चिल भारत के लोगों से घृणा का रिश्ता रखते थे। इसके अलावा दक्षिण एशिया देश  एवं अफ्रीकन ट्राइब को लूटने वाले अधिनायक वादी देश के मीडिया में भारत को जाति प्रथा के नाम पर लांछित किया जाता है
सब जानते हैं कि बीबीसी जैसे संचार संस्थान ब्रिटिश सरकार के वित्त पोषण से जीवंत  है। बीबीसी बी अपने मंतव्य को स्थापित करने में कभी पीछे नहीं रहता।
अब हम आते हैं नए दौर में डिजिटल मीडिया की ओर
जिसने  तूफान सा मचा दिया है
  डिजिटल एवं  इलेक्ट्रॉनिक मीडिया  शुद्ध रूप से  मीडिया एक व्यावसायिक ढांचा है । इनको विज्ञापनों के लिए  टीआरपी की जरूरत होती है।
ओटीटी पर प्रसारित होने वाले अधिकांश धारावाहिक एवं फिल्मों में सवर्ण और दलित, जैसे शब्दों को पूछा जाता है।  विशेष रूप से ब्राह्मणों को टारगेट करके नकारात्मक रूप से प्रस्तुत किया जा रहा है।
अब आप ही सोचिए भारत में जातिवादी व्यवस्था अगर आज चरम  पर है तो यह कैसे हो रहा कि आपको मिलने वाला हर दूसरा या तीसरा वैवाहिक आमंत्रण पत्र अंतरजातीय विवाह का होता है।
कभी सोचा है आपने शायद नहीं तो अब सोचिए प्रतिकार कीजिए।
ओटीटी प्लेटफॉर्म के पास या तो अच्छे लेखकों  का अकाल  है, अथवा इसके पीछे कोई अर्थशास्त्र कम कर रहा है।
   सूचना संचार माध्यमों के द्वारा इन दिनों  आपको  जो विषय वस्तु कहानी कथानक और नैरेटिव्स परोसे  जा रहे हैं उसके बदले आप उन्हें पैसा भी देते हैं और समय भी खर्च करते हैं। यदि आप पैसा कर रहे हैं तो आपको एक सलाह है कि कृपया अच्छी किताबें खरीद लीजिए और किताबों से बात कीजिए।
न्यू मीडिया में ओटीटी प्लेटफॉर्म के अलावा ऑडियो माध्यमों की दुकान से सजी हुई हैं । इन दुकानों से सूचना और समाचार खरीदने हैं ।  इंटरनेट या ओटीटी प्लेटफॉर्म  पर पैसा और समय खर्च करके। भारतीय मूल का मीडिया अंतरराष्ट्रीय मीडिया बाजार का एक हिस्सा है। वह प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ है इसमें कोई शक नहीं।
  पर जब इनके सहारे नकारात्मक मंतव्य को स्थापित करने के प्रयास होते हैं तो लगता है कि अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर भारत में कुछ नकारात्मक करने की कोशिश की जा रही है।
 
ओटीटी एवं social media साइट्स एवं ऐप्स के जरिए तक पहुंचने वाले कंटेंट में जातिवादी समाज, सांप्रदायिक असहिष्णुता जैसी विषय को बेहद चतुराई से प्रस्तुत किया जा रहा है।
  भूतपूर्व ट्विटर जो अब अभूतपूर्व एक्स बन चुका है, इस सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर पिछले दिनों भारत में जाति भेद फैलाने वाले मुद्दे को तेजी से हाईलाइट किया गया।  किसी एक पुस्तक के हवाले से कहा गया कि नालंदा विश्वविद्यालय को जलाने वाला बख्तियार खिलजी नहीं था बल्कि ब्राह्मण थे। वैसे इस तरह के मीडिया अपनी ऑडियंस के विस्तार के लिए ब्राह्मणों को सबसे सॉफ्ट टारगेट मानते हैं। YouTube पर तो नव बौद्धों के अलावा प्रगतिशीलता के नाम पर साहित्य प्रस्तुत करने वालों की भीड़ सी आ गई है।
यह सब आयातित विचारधारा के पुरोधाओं का मिशन है। इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता  कि सामाजिक अस्थिरता पैदा करने के लिए फाइनेंशियल सपोर्ट सिस्टम भी काम कर रहा हो।
यह सब आयातित विचारधाराओं के द्वारा किया जा रहा है इसमें कोई दो राय नहीं।
भारत में निवास करने वाली से सभी जातियों को ध्रुवीकृत किया जा सके। यानी उनका पोलराइजेशन किया जा सके। इसके अपने राजनीतिक उद्देश्य हो सकते हैं परंतु निर्वाचन के उपरांत इसका एकमात्र उद्देश्य यह समझ में आ रहा है कि आयातित विचारधारा पर आधारित इस नैरेटिव को रचने वालों ने भारत में अनरेस्ट पैदा करने की कोशिश की है ।
इतिहास के संदर्भ में यह  पूरी तरह से इरेलीवेंट नैरेटिव, है जो  एक्स  से निकलकर कई सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर इधर से उधर फुदकता दिखाई दे रहा है।
  सोचिए एक स्थापित और प्रमाणित इतिहास को झूठा साबित करने वाला नैरेटिव टीवी चैनलों के लिए मसाला था। समाज पर इसका क्या असर हो रहा है शायद  डिजिटल युग के मनोरंजन एवं सूचना उद्योग को कोई लेना-देना नहीं।
मनोरंजन एवं सूचना उद्योग के मालिकों के लिए यह मुद्दा केवल लाभ का स्रोत बन चुका है।
   बहुत से यूट्यूबर नालंदा विश्वविद्यालय को जलाए जाने वाले इस मुद्दे  पर विशेषज्ञ बनकर कुकरमुत्तों के रूप में विमर्श करते नजर आ रहे हैं।
   इरफान हबीब ब्रांड इतिहास करो नहीं तो चुप्पी साध ली है इस मुद्दे पर।
यही पता चलता है कि आयातित विचारधारा हम पर किस तरह से हावी है।
  ग्लोबलाइजेशन एवं डिजिटल क्रांति  के बाद  न्यू मीडिया अर्थात सोशल मीडिया को अचानक बहुत बड़ा अवसर हाथ लग गया है।
न्यू मीडिया कब भस्मासुर बन जाए कहां नहीं जा सकता।
  अपनी संप्रभुता बचाए रखने के लिए प्रजातांत्रिक सरकारों को इसे नियंत्रित करने की पहला जरूर करना चाहिए।
  आप सब जानते हैं,  यूरोपीय के  आक्रामक मीडिया  कॉन्सेप्ट  एवं  आईडियोलॉजी के बारे में ।
जिसने गरीब और प्रगतिशील देशों   पर भी प्रभाव छोड़ा है। जिसमें भारत भी शामिल है। भले यह विश्व की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था हो परंतु इस देश में एक ऐसा माइंड सेट तैयार किया जा रहा है , जो किसी भी देश के लिए  अनरेस्ट की स्थिति भी पैदा करने  वाला हो सकता है। सरकार को इस पर विचार करने की जरूरत है। और हमें भी बौद्धिक स्तर पर सावधानी बरतनी की जरूरत है।
बेशक मीडिया को स्वतंत्र होना चाहिए , परंतु उसकी स्वतंत्रता की सीमा किसी राष्ट्र की संप्रभुता से ऊपर नहीं हो सकती।
  आज के दौर में मीडिया की स्वतंत्रता का एक अर्थ यह भी है कि-"मीडिया किसी से कमिटेड न हो, हो तो केवल सच्चाई से "

  देख लीजिए आपको क्या करना है, हम तो सरकार को यही सलाह देंगे की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पुनर्विचार करने की जरूरत है।
  बेलगाम होते सोशल मीडिया पर लगाम लगाने की जरूरत है। 

गुरुवार, जून 27, 2024

रंगमंच की गिरती साख कौन जिम्मेदार

    फोटो गूगल से आभार सहित
     रंगमंच की गिरती साख कौन जिम्मेदार
                          गिरीश बिल्लोरे मुकुल
     Show must go on रंगमंच को पूरी तरह से परिभाषित करने वाला वाक्य है। रंगमंच का अस्तित्व ही प्रदर्शनों पर निर्भर करता है। यह सब जारी है और रहेगा, परंतु चिंतन इस बात पर होते रहना चाहिए कि-" रंगमंच के स्तर में गिरावट न हो सके..!'
आइए हम इसी मुद्दे पर विमर्श करते हैं। यहां रंगमंच को कुछ ढांचे के रूप में नहीं समझा जाए जो केवल नाटकों के प्रदर्शन के लिए होता है बल्कि रंगमंच संपूर्ण प्रदर्शनकारी कलाओं के लिए महत्वपूर्ण एवं आधारभूत आवश्यकता है। इन दिनों मंच के स्वरूप स्वरूप को तकनीकी तौर पर विस्तार और सुदृढ़ता मिल रहा है। इससे उलट प्रस्तुति कंटेंट के संदर्भ में विचार करें तो  ऐसा लगता है कि-" रंगमंच कमजोर हो गए हैं!"
    महानगरों मध्यम दर्जे के शहरों में कला का प्रदर्शन तादाद अथवा संख्यात्मक दृष्टि से बड़ा है परंतु इसके गुणात्मक पहलू को अगर देखा जाए तो गुणवत्ता में गहरा प्रभाव पड़ा है। सबसे पहले  आपको स्पष्ट करना जरूरी है कि हम यहां रंगमंच पर अभी नाट्य प्रस्तुतियों की चर्चा नहीं कर रहे हैं बल्कि मंच पर प्रस्तुत किए जाने वाली अन्य सभी विधाओं की बात की जावेगी जिनमें नाटक, कवि सम्मेलन, कवयत्री सम्मेलन मुशायरे, संभाषण, हास्य, मिमिक्री, संगीत, आदि सभी विधाओं पर विमर्श करना चाहते हैं।
    विगत 10 वर्षों से जो देखा जा रहा है उसने हमने पाया है कि कवि सम्मेलन पूरी तरह से पॉलीटिकल हास्य व्यंग और  फूहड़ श्रंगार पर केंद्रित है।  जबकि संगीत रचनाओं में केवल फिल्मी और कराओके गायन को संगीत की अप्रतिम साधना माना जा रहा है। मिमिक्री और हास्य की श्रेणी में रखे जाने वाले कार्यक्रमों में अश्लीलता और स्तर हीन चुटकुले बाजी के अलावा अच्छे कंटेंट देखने को नहीं मिल रहे हैं। कवि सम्मेलनों की दशा तो बेहद शर्मनाक हो चुकी है। 15 से 20 मिनट तक एक कवि आपसी छींटाकशी का या तो केंद्र रहता है  छींटाकशी करने का प्रयास करता है। शेष 15 से 20 मिनट तक घटिया चुटकुले वह भी ऐसे चुटकुले जो जो हुई या तो तू ही अच्छी होंगी अथवा पॉलिटिकल अथवा द्विअर्थी संवादों पर केंद्रित होते हैं। इसे कवियों की भाषा में टोटके कहा जाता है। मैं तो यही कहूंगा कि 
*मंच कवि खद्योत सम: जँह-तँह करत प्रकाश*
   देश विदेश में अपने नाम का परचम लहराने वाले मंचीय कवि कुमार विश्वास कितने भी महान कवि हो जाएं परंतु वे ओम प्रकाश आदित्य जैसे कवियों को स्पर्श तक  नहीं कर पाए हैं। यह ऑब्जरवेशन है यहां में मनोज मुंतशिर थे अवश्य प्रभावित हूं। कविता के साथ केवल कविता और काव्यात्मकता होती है। टोटकों को जगह देने के लिए कविताएं करने वाले लोग मेरी दृष्टि में कम से कम कभी तो नहीं है हां मनोरंजन का पैकेज अवश्य हो सकते हैं।
   संगीत के आयोजनों में केवल फिल्मी गीतों का लुभावना गुलदस्ता भेंट करने वाली संस्थाएं मेरी दृष्टि में संगीत की सेवा नहीं बल्कि बॉलीवुड गीतों का गुलदस्ता पेश करती नजर आती हैं। यह कार्य तो आर्केस्ट्रा पार्टी का है । नादिरा बब्बर का  नाटक मेरे ह्रदय पर गहरी छाप छोड़ गया। इस प्रकार के नाटकों का प्रदर्शन अब मंच पर क्यों नहीं होता? अधिकांश नाट्य समूह खास विचारधारा से संबद्ध होते हैं। यहां मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि अधिकतर नाटक नकारात्मक आयातित विचारधारा से प्रेरित होते हैं। वही लोग अपने नैरेटिव स्थापित करने के लिए नाट्य सेवा करते हैं। थिएटर किसी एक विचारधारा की बपौती कदापि नहीं है। भरतमुनि का नाट्यशास्त्र स्वयं प्रजापिता ब्रह्मा के ऑब्जरवेशन में लिखा गया है। लेकिन दुर्भाग्य है कि-" थोड़ा सा भी चर्चित होने के पश्चात कुकुरमुत्ता की तरह नाट्य संस्थाएं मध्यम स्तर के शहरों एवं महानगरों में पनपने लगीं हैं।
   विचार संप्रेषण के लिए यह प्रभावी माध्यम भी अब मंच से धारा सही होता नजर आ रहा है।
    प्रदर्शनकारी कलाओं में दर्शकों जुटाने की तकनीकी का सहारा लिया जा रहा है। अब तो केवल मनोरंजन के लिए थिएटर शेष रह गए हैं।
   नृत्य प्रस्तुतियों को देखिए विगत कई वर्षों से मौलिक नृत्य चाहे वह लोकनृत्य हो  क्लासिकल अथवा  सेमीक्लासिकल आप वर्ष भर का किसी भी शहर कार्यकाल उठा कर देख ले आपको नहीं मिलेगा।
   मेरे शहर के, हास्य कलाकार के के नायकर, कुलकर्णी भाई, माईम आर्टिस्ट के ध्रुव गुप्ता जैसे हास्य कलाकारों के सामने कपिल शर्मा जैसा स्टैंडिंग कॉमेडियन इतना प्रभाव कारी सिद्ध नहीं हो रहा है जितना कि संस्कारधानी के उपरोक्त कलाकार प्रभाव छोड़ते थे ।
  क्या कारण है कि मंच का स्तर गिर रहा है?
    इस बार की पतासाजी करने पर आप स्वयं पाएंगे कि - प्रस्तुति के कंटेंट में नकारात्मक प्रवृत्ति देखी जा रही है। अपने ही शहर के कुछ उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूं जैसे कि अब न तो लुकमान जैसे महान गुरु हैं, न ही शेषाद्री या सुशांत जैसे धैर्यवान शिष्य। न ही भवानी दादा जैसे कवियों गीत कारों की रचनाएं जब कुबेर की ढोलक की ताल के साथ मिलकर लुकमान के स्वरों के रथ पर आरूढ़ होकर श्रोताओं की मन मानस पर सरपट होती थी तो भाव से भरा दर्शक श्रोता वाह वाह ही नहीं करता था बल्कि से विजनवास बहुत से लोगों की आंखों आंसुओं के झरने, झरते हुए हमने देखे हैं यह था असर।
     रात को 2:00 बजे कवि गोष्ठियों से लौटकर घर में डांट खाते थे पर हमें संतोष था कि हमने आज महान रचनाकारों से उच्च स्तरीय कविताएं सुनी हैं। हम अक्सर काव्य गोष्ठियों में अपनी कविताई का प्रशिक्षण लेते थे। हमारी शहर में भानु कवि से लेकर रास बिहारी पांडे तक वक्तव्य के मामले में मूर्धन्य वक्ता स्वर्गीय एडवोकेट राजेंद्र तिवारी जिनका अंग्रेजी हिंदी संस्कृत बुंदेली हर भाषा पर कमांड था को सुनकर हम बड़े हुए हैं पर अब मंच पर संभाषण की कला सिखाने वाले लोग नहीं है अगर है भी तो उन्हें दरकिनार रखा जाता है। मंच को चमकीला बनाने और अखबार में छा जाने की आकांक्षा ने मंच पर घातक प्रहार किया है। यह हमारी सांस्कृतिक निरंतरता को बाधित करने का एक सुगठित प्रयास है।
   सामवेद हमारी कलात्मकता का सर्व मान्य प्रतिमान है। मैं नहीं कह रहा हूं कि आप सब इस पर सहमति प्रदान करें परंतु मंच के वैभव को उठाने में उसे परिष्कृत करने में हमारा बड़ा दायित्व बनता है।
  आप सोच रहे होंगे कि- " नहीं हम दोषी नहीं है कलाकार दोषी हैं।"
  तो मैं कहता हूं कि मंच को ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाले कलाकार और दर्शक श्रोता दोनों ही हैं, और उसे अर्थात मंच को नुकसान पहुंचाने वाले भी हम ही तो हैं।
    बुंदेली छत्तीसगढ़ी मराठी गुजराती हिंदी पट्टी की अन्य बोलियों के मंचों पर मौलिक कलाओं का प्रदर्शन नहीं हो रहा है। विरले ही बृंदवन समूह, अथवा थिएटर समूह होंगे जो कि ऐसा कुछ कर रहे हैं, न तो अब तीजनबाई है न ही सुमिरन धुर्वे की कदर करने वाला कोई । मालवा निमाड़ भुवाना महाकौशल बुंदेलखंड छत्तीसगढ़ बघेलखंड भोजपुरी जो सांस्कृतिक परंपराओं से प्रेरित गीत संगीत से भरा पड़ा है। परंतु हम केवल अश्लीलता युक्त कंटेंट को आगे बढ़ा रहे हैं। हरियाणा और भोजपुरी गीतों के साथ अभद्र एवं अश्लील नृत्य करते-करते कलाकार महान सेलिब्रिटी बन गए हैं। आप खुद ही तय कर लीजिए कि मंच का पतन हुआ है या मंच की प्रगति हुई है।
  इस क्रम में  वर्तमान में संस्कारधानी का सौभाग्य है कि यहां एक महिलाओं का बैंड है जिसे जानकी बैंड के नाम से जानते हैं इस बैंड की विशेषता यह है कि इसमें  मौलिक स्वरूप में लोक परंपराओं पर केंद्रित गीत संगीत, सेमी क्लासिकल संगीत की प्रस्तुतियां की जाती है। यह बैंड बेहद अल्प समय में संपूर्ण भारत में स्थान बना चुका है।
   थिएटर में संगीत का प्रयोग होना अन की प्रक्रिया है । संपूर्ण नौ रसों का आस्वादन दर्शकों को कभी एक साथ नहीं मिल पाता मंच की अपनी समस्याएं हैं परंतु टेलीविजन से हटकर हमें चंद्रप्रकाश जैसे महान नाट्यशास्त्र के सुविज्ञ का अनुसरण करना चाहिए। काका हाथरसी शैल चतुर्वेदी जैसे कवियों का स्मरण कर लेने मात्र से आज के हास्य कवियों को अपना स्तर समझ में आ जाएगा। माणिक वर्मा केपी सक्सेना को भुला देना मेरी अल्पज्ञता होगी। सुधि पाठको मैं अपने आर्टिकल्स में आप से संवाद करना चाहता हूं और करता भी हूं। मेरे आर्टिकल का यह आशय कदापि नहीं कि हम किसी पर दबाव पैदा कर रहे हैं, या किसी को हम अपमानित करना चाहते हूँ, मैं तो अपने शहर की मित्र संघ मिलन साहित्य परिषद जैसी संस्थाओं का पुनः आह्वान करता हूं कि वे आगे आएं और आने वाली पीढ़ी को बताएं कि हमने तब क्या किया था जब हम मंच पर टॉर्च या गैस बत्ती जला कर कार्यक्रमों की प्रस्तुति करते थे। अपने 32 साल के सांस्कृतिक जीवन में केवल हमने मंच की ऊंचाइयां देखी है तो अब गिरावट भी देख रहे हैं।
   अंततः स्पष्ट करना चाहूंगा कि-" अगर कलाकार हो तो ईमानदारी से कला का प्रदर्शन करो लेकिन उसके पहले अपनी कला की मौलिकता में तनिक भी मिलावट ना आने दो।
    हमें अपने-अपने शहरों से महान कलाकार प्रोत्साहित करने हैं न कि ऐसी कलाकार जो कॉपी पेस्ट करने के आदि हों।
  *बच्चों को भी यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि- "वे बड़े महान कलाकार हैं।, आजकल के अभिभावक अपने बच्चों को कलाकार से ज्यादा सेलिब्रिटी के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं। परंतु मैं आपको स्पष्ट कर दूं कि सब्जी बेचने वाले घरों घर काम करने वाले परिवारों से आए बच्चों में भी प्रतिभागी बिल्कुल कमी नहीं है। मैं अपने सहयोगियों के प्रति कृतज्ञ रहता हूं जो बच्चों में उनकी प्रतिभा को तलाशते हैं और फिर तराश देते हैं।"*
   

साहित्य शिल्पी डॉ सुमित्र का महा प्रयाण


   70 के दशक में अगर किसी महान  व्यक्तित्व से मुलाकात हुई थी तो वे थे डॉ. राजकुमार तिवारी "सुमित्र" जी।
  सुमित्र जी के माध्यम से साहित्य जगत को पहचान का रास्ता मिला था। गौर वर्णी काया के स्वामी, मित्रों के मित्र, और राजेश पाठक प्रवीण के  साहित्यिक गुरु डॉक्टर राजकुमार सुमित्र जी के कोतवाली स्थित आवास में देर रात तक गोष्ठियों में शामिल होना, अपनी बारी का इंतजार करना उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण होता था उनके व्यक्तित्व से लगातार सीखते रहना। स्व. श्री घनश्याम चौरसिया "बादल" के माध्यम से उनके घर में आयोजित एक कवि गोष्ठी में स्वर्गीय बाबूजी के साथ देर रात तक हुई बैठक में लगा कि यह कवि गोष्ठी नहीं बल्कि कवियों को निखारने की कार्यशाला है।
  धीरे-धीरे कभी ऐसी घरेलू बैठकों की आदत सी पड़ चुकी थी। वहीं शहर के नामचीन साहित्यकारों से मुलाकात हुआ करती थी। उनके कोतवाली के पीछे वाले घर को साहित्य का मंदिर कहना गलत न होगा। 
 तट विहीन तथाकथित प्रगतिशील कविताओं के दौर में गीत, छंद, दोहा सवैया, कवित्त, आदि के अनुगुंजन ने लेखन को नई दिशा दी थी।
  गेट नंबर 2 के पास स्थित नवीन दुनिया प्रेस में बतौर साहित्य संपादक सुमित्र जी द्वारा नारी-निकुंज औसत रूप से सर्वाधिक बिकने वाला संस्करण हुआ करता था।
   हमें भी दादा अक्सर पूरे अंक में लिखने की छूट देते थे। कविता के साथ कंटेंट क्रिएशन की शिक्षा शशि जी और सुमित्र जी से ही हासिल की है। 
  अभी-अभी पूज्य सुमित्र जी के महाप्रयाण का समाचार राजेश के व्हाट्सएप संदेश के जरिए मिला। 
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.राजकुमार तिवारी सुमित्र का निधन जबलपुर के साहित्यिक समाज के लिए एक दुखद प्रसंग है। नए स्वर नए गीत कार्यक्रम की श्रृंखला प्रारंभ कर पूज्य गुरुदेव सुमित्र जी ने सार्थक सृजन को दिशा प्रदान की है। वे अक्सर कहते थे कि-"उससे बड़ा सौभाग्यशाली कोई नहीं जिसके घर में साहित्यकारों के चरणरज न गिरें।" 
अपने आप को पीड़ा का राजकुमार कहने वाले दादा ने ये भी कहा - " दर्द की जागीर है, बाँट रहा हूँ प्यार।”
गायत्री कथा सम्मान के संस्थापक सुमित्र जी नगर के हर एक रचना कार्य और साहित्य साधकों के केंद्र बिंदु हुआ करते थे। उनकी साहित्यिक सक्रियता से शहर जबलपुर साहित्य साधना का केंद्र था। सृजनकर्ता को दुलारना,उसे मजबूती देना, यहां तक की प्रकाशित करना भी उनका ही दायित्व बन गया था। हम तो उनके आजीवन ऋणी है।

 जबलपुर  ही नही प्रदेश के प्रतिष्ठित साहित्यकार, लगभग 40 कृतियों के रचयिता, पाथेय साहित्य कला अकादमी के संस्थापक कविवर डॉ. राजकुमार तिवारी सुमित्र का आज दिनांक 27 फरवरी 2024 को  रात्रि 10  बजे 85 वर्ष की उम्र में निधन हो गया । 
  सुमित्र जी डॉक्टर भावना तिवारी, श्रीमती कामना , एवं चिरंजीव डॉ.हर्ष कुमार तिवारी के पिता , बाल पत्रकार बेटी प्रियम के पितामह एवं हम सब साहित्य अनुरागीयों तथा नए युवा साहित्यकारों के  प्रेरणा स्रोत अब हमारी स्मृतियों में शेष रहेंगे। .
सुमित्र ने अनेक समाचार पत्रों में सम्पादकीय सेवाएं  दी ।
आप प्रदेश ही नही. देश, प्रदेश की साहित्यिक धारा के संवाहक रहे। यूरोप में भी भारतीय साहित्य का परचम लहराने वाली इस शख्सियत ने लगभग सात दशक साहित्य की अप्रतिम सेवा की है।

गुरुवार, जून 06, 2024

“क्या मूर्ति-पूजा त्याज्य है अथवा मूर्तिपूजक काफिर है?”



मूर्ति पूजा और मूर्ति पूजा को को लेकर एक विचित्र सा वातावरण उत्पन्न कर दिया गया है। यह वातावरण इस्लाम के प्रसार के साथ बहुत अधिक तेजी से निर्मित हुआ। मंदिरों में तोड़फोड़ करना उन्हें जमींदोज करना एक मिशन बन गया था।  गजनवी से पहले भी ऐसी वारदातें होती रहे हैं। भारत में  वास्तुकला एवं मूर्ती-कला  का विकास पूर्व वैदिक काल तथा वैदिक काल में ही हो गया था। परंतु मूर्तिकला का विस्तार मिलते ही कई शिल्पकार वास्तु एवं शिल्प संरचना के लिए सक्रीय हो गये.  शिल्प एवं मूर्तिकला के विकास के सहारे किसी भी  सभ्यता के विकास को अस्वीकार नहीं की जा सकती. अर्थात सभ्यता के विकास लिए शिल्प एवं मूर्तिकला के विकास को एक घटक मानना चाहिए. सुर-असुर कथानकों को पर ध्यान दें तो... हम पातें हैं कि असुरों ने बड़े बड़े ऐसे किलों का निर्माण कराया जिससे सुर-समूह  से सुराक्षा  मिल सके. इंद्र को पुरंदर की पदवी असुरों  के दुर्ग ध्वस्त करने के कारण ही प्राप्त थी.

आइये अब हम विचार करतें हैं... मूर्ति-कला के विस्तार की वजह क्या है. वास्तव में मूर्तिकला जब बड़े पैमाने पर जनता द्वारा अपनाई जाने लगी तब उसे राजाश्रय भी मिला. राजाश्रय से कला का तीव्रता से विकास हुआ .भारतीय नदी-घाटी सभ्यताओं में  यूनानी सभ्यताओं तथा हर सभ्यताओं में रहने वाली नस्लों ने अपनी संस्कृति में कला तत्वों के मौजूदगी के प्रमाण दिए हैं.  भारतीय सन्दर्भ में देखा जाए तो वेदों में भले ही पूजन प्रणाली देवी-देवताओं को यज्ञ में हव्य अर्थात समिधा  डालकर आहूत किया जाता रहा है,   किन्तु कालान्तर में शिव पूजन के लिए अनाकृत-मूर्तियों का पूजन प्रारम्भ हो गया . कालान्तर में ईश्वर / ईश्वर के स्वरूपों एवं देवताओं को आकृति के रूप में पूजा जाने लगा.

मूर्तिकला के विकास के साथ साथ कला के सम्मान को चिर-स्थायित्व देने के लिए उसे पूजा प्रणाली का अनिवार्य हिस्सा समकालीन भारतीय सामाजिक व्यवस्था द्वारा बनाया गया. इस क्रम में यह उल्लेख अनिवार्य है कि-“भारतीय सभ्यता में बुद्ध के पूर्व आंशिक रूप से मूर्ति-आराधना का शुभारंभ हो गया था.” परन्तु बुद्ध के बाद मठों में मूर्ती-पूजा अधिक विस्तारित हुई. इसी क्रम में सिन्धु-घाटी सभ्यता में मूर्ति पूजा के प्रमाण मिलें हैं. मध्यप्रदेश के पचमढ़ी क्षेत्र एवं मंदसौर  में मिले गुफा चित्रों एवं कप्स की खोज  वाकणकर जी ने खोजकर गुफा कालीन 70 हज़ार साल पुरानी मानव प्रजाति की विक्सित होती  सभ्यता के विकास में कला की मौजूदगी का प्रमाण दिया था. जो मूर्तिकला का अत्यंत प्राथिक प्रमाण था. 7000 हज़ार वर्ष-पूर्व रामायण काल  में तथा 5000 साल प्राचीन महाभारत काल में  शिव की पूजन के दो उदाहरण मिलते हैं. रामेश्वरम में शिव लिंग की श्री राम द्वारा तथा गंधार (कंधार) में गांधारी द्वारा की साधना का विवरण उल्लेखनीय है. कामोबेश प्रारम्भ में भगवान शिव की क्षवियों की पूजन का उल्लेख मिलता है. आदिवासी प्रतीकात्मक रूप से शिवाराधना करते रहे हैं . आज भी वे बड़ा-देव के स्वरुप पूजित हैं.

तदुपरांत बुद्ध एवं जैन मतों  के विस्तार के साथ अखंड भारत में उतर पश्चिमी भू-भाग अफगानिस्तान से लेकर सम्पूर्ण भारत में बौद्ध,जैन सहित सभी सम्प्रदायों क्रमश: वैष्णव, शाक्त, ने भी अपनी अपनी आराधना प्रणालियों में मूर्ति-पूजन को शामिल किया. निर्गुण ब्रह्म के उपासकों ने  भी ब्रह्म के  प्रतीकात्मक स्वरूपं चित्रों, मूर्तियों की आराधना स्वीकृत की . यह एक सांस्कृतिक बदलाव था. ब्रह्म के स्वरुप का लौकिक अवतरण कराया गया. चोल पांड्य आदि नें दक्षिण भारत से मध्यप्रांत तक तथा समुद्रीमार्ग से जिन जिन द्वीपों पर राज्य स्थापित किये वहा भी पवित्र मंदिरों का निर्माण कराया . मार्तंड सूर्य मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी ईस्वी में कर्कोटा राजवंश के तहत कश्मीर के तीसरे महाराज ललितादित्य मुक्तापिदा द्वारा किया गया था ।

 चंदेल राजाओं ने दसवीं से बारहवी शताब्दी तक मध्य भारत में शासन किया। खजुराहो के मंदिरों का निर्माण 950 ईसवीं से 1050 ईसवीं के बीच इन्हीं चन्देल राजाओं द्वारा किया गया। मंदिरों के निर्माण के बाद चन्देलों ने अपनी राजधानी महोबा स्थानांतरित कर दी। लेकिन इसके बाद भी खजुराहो का महत्व बना रहा।

इसके अतिरिक्त काश्मीर के  शारदा-पीठ, के बारे में तो आप सभी जानते हैं . इसके अतिरिक्त 51 शक्ति पीठों का विवरण निम्नानुसार विकी पीडिया तक में उपलब्ध है.

1. किरीट शक्तिपीठ : पश्चिम बंगाल में हुगली नदी के लालबाग कोट तट पर स्थित है। किरात यानी सिराभूषण या सती माता का मुकुट वहां गिराया गया था। मूर्तियाँ विमला (शुद्ध) के रूप में देवी हैं और संगबर्ता के रूप में शिव हैं।

2. कात्यायनी शक्तिपीठ : मथुरा के वृंदावन में भूतेश्वर में स्थित है, जहां सती के केश गिरे थे। देवी शक्ति का प्रतीक हैं जबकि भैरव भूतेश (जीवों के भगवान) का प्रतीक हैं।

3. कृवीर शक्तिपीठ : महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित है। देवी की तीन आँखें वहाँ गिरी थीं। मूर्तियाँ महिषमर्दिनी के रूप में देवी और क्रोधीश के रूप में शिव हैं।

4. श्री पर्वत शक्तिपीठ :   कुछ विद्वानों का मानना ​​है कि यह लद्दाख में स्थित है तो कुछ का मानना ​​है कि यह असम के सिलहट में है। मूर्तियाँ श्री सुंदरी के रूप में देवी हैं और सुंदरानंद के रूप में शिव हैं।

5. विशालाक्षी शक्तिपीठ : यहां देवी के कुंडल (कुंडल) गिरे थे और यह वाराणसी के मीराघाट पर स्थित है, जो  देवी के रूप में विश्वलक्ष्मी और शिव कला के रूप में हैं।

6. गोदावरी तट शक्तिपीठ : आंध्र प्रदेश के गोदावरी तट के कब्बूर में स्थित है। देवी का बायाँ गाल यहाँ गिरा था और मूर्तियाँ विश्वेश्वरी (जगत की माँ) और शिव दंडपाणि के रूप में हैं।

7. शुचिन्द्रम शक्तिपीठ: भारत के सबसे दक्षिणी सिरे के पास, तमिलनाडु में कन्याकुमारी स्थित है। देवी के ऊपरी दाँत यहाँ गिरे थे और मूर्तियाँ नारायणी के रूप में देवी और संघर के रूप में शिव हैं।

8. पंचसागरशक्ति: इस पीठ का सही स्थान ज्ञात नहीं है, लेकिन देवी के निचले दांत यहां गिरे थे और मूर्तियाँ बरही के रूप में देवी और महारुद्र के रूप में शिव हैं।

9. ज्वालामुखी शक्तिपीठ : हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में स्थित है। देवी की जीभ यहाँ गिरी थी और मूर्तियाँ अम्बिका के रूप में देवी और उन्मत्त के रूप में शिव हैं। 

10. भैरव पर्वत शक्तिपीठ :   इसके स्थान को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कुछ लोग गिरिनगर, गुजरात में होने का तर्क देते हैं, जबकि कुछ मध्य प्रदेश के उज्जैन में शिप्रा नदी के पास होने का तर्क देते हैं, जहाँ देवी के ऊपरी होंठ गिरे थे। मूर्तियाँ अवंती के रूप में देवी और लम्बकर्ण के रूप में शिव हैं। हरसिद्धि मंदिर

11. अट्टाहस शक्तिपीठ :   पश्चिम बंगाल के निकट लाभपुर में है। देवी के निचले होंठ यहां गिरे थे और मूर्तियाँ फुलरा के रूप में देवी और भैरव विश्वेश के रूप में शिव हैं।

12. जनस्थान शक्तिपीठ: महाराष्ट्र के नासिक में पंचवटी में स्थित है। देवी की ठोड़ी यहाँ गिरी थी और मूर्तियाँ भ्रामरी के रूप में देवी और विक्रमाटक के रूप में शिव हैं।

13. कश्मीर या अमरनाथ शक्तिपीठ :   जम्मू कश्मीर के अमरनाथ में है। देवी की गर्दन यहाँ गिरी थी और मूर्तियाँ महामाया के रूप में देवी और त्रिसंध्यास्वर के रूप में शिव हैं।

14. नंदीपुर शक्तिपीठ :   पश्चिम बंगाल के सांथ्य में स्थित है। देवी का हार यहां गिरा था और मूर्तियां नंदिनी के रूप में देवी और नंदकिशोर के रूप में शिव हैं।

15. श्री शैल शक्तिपीठ :   कुरनूल, आंध्र प्रदेश के पास। यहां देवी के गले का हिस्सा गिरा था। मूर्तियाँ महालक्ष्मी के रूप में देवी और शम्बरानंद के रूप में शिव हैं।

16. नलहटी शक्तिपीठ :   पश्चिम बंगाल के बोलपुर में है। देवी की मुखर नली यहां गिरी थी और मूर्तियां कालिका के रूप में देवी और योगेश के रूप में शिव हैं।

17. मिथिला शक्तिपीठ : इसका स्थान अभी अज्ञात है। स्थान तीन स्थानों पर माना जाता है, नेपाल के जनकपुर में और बिहार के समस्तीपुर और सहरसा में, जहाँ देवी का बायाँ कंधा गिरा था। मूर्तियाँ महादेवी के रूप में देवी और महोदरा के रूप में शिव हैं।

18. रत्नावली शक्तिपीठ : स्थान अज्ञात है, चेन्नई, तमिलनाडु के पास स्थित होने का सुझाव दिया। देवी का दाहिना कंधा यहाँ गिरा था और मूर्तियाँ कुमारी के रूप में देवी और भैरव के रूप में शिव हैं।

19. अंबाजी शक्तिपीठ : गुजरात की गिरनार पहाड़ियों में स्थित है। देवी का पेट यहां गिरा था और मूर्तियां चंद्रभागा के रूप में देवी और वक्रतुंड के रूप में शिव हैं।

20. जालंधर शक्तिपीठ : पंजाब के जालंधर में स्थित है। देवी के बाएं स्तन यहाँ गिरे थे और मूर्तियाँ त्रिपुरमालिनी के रूप में देवी और भिसन के रूप में शिव हैं।

21. रामगिरी शक्तिपीठ :   सटीक स्थान ज्ञात नहीं है, चित्रकूट, यूपी में कुछ बहस करते हैं जबकि अन्य मेहर, मध्य प्रदेश में बहस करते हैं। देवी के दाहिने स्तन यहाँ गिरे थे और मूर्तियाँ शिवानी के रूप में देवी और चंदा के रूप में शिव हैं।

22. वैद्यनाथ शक्तिपीठ : झारखंड के गिरिडीह, देवघर में स्थित है। देवी का दिल यहां गिर गया और मूर्तियां देवी के रूप में जयदुर्गा और शिव वैद्यनाथ के रूप में हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां सती का अंतिम संस्कार किया गया था।

23. वक्रेश्वर शक्तिपीठ: पश्चिम बंगाल के सांथ्य में स्थित है। देवी का मन या भौंहों का केंद्र यहां गिरा था और मूर्तियां महिषमर्दिनी के रूप में देवी और वक्रनाथ के रूप में शिव हैं।

24. कन्याकाश्रम कन्याकुमारी शक्तिपीठ :   कन्याकुमारी के तीन सागरों हिन्द महासागर, अरब सागर में स्थित तथा बंगाल की खाड़ी, तमिलनाडु के संगम पर स्थित है। देवी की पीठ यहाँ गिरी थी और मूर्तियाँ देवी के रूप में शरवानी और शिव निमिषा के रूप में हैं।

25. बहुला शक्तिपीठ: कटवा, वीरभूम में स्थित, डब्ल्यूबी देवी की बाईं भुजा यहाँ गिरी थी और मूर्तियाँ बहुला के रूप में देवी और भीरुक के रूप में शिव हैं।

26. उज्जयिनी शक्तिपीठ: मध्य प्रदेश के उज्जैन में पवित्र क्षिप्रा के दोनों किनारों पर स्थित है। देवी की कोहनी यहाँ गिरी थी और मूर्तियाँ मंगलचंडी के रूप में देवी और कपिलंबर के रूप में शिव हैं।

27. मणिवेदिका शक्तिपीठ : राजस्थान के पुष्कर में स्थित है। गायत्री मंदिर का दूसरा नाम है। देवी की हथेलियों के बीच या दोनों कलाइयां यहां गिरी थीं और मूर्तियाँ गायत्री के रूप में देवी और सर्वानंद के रूप में शिव हैं।

28. प्रयाग शक्तिपीठ : इलाहाबाद में स्थित यूपी देवी की दस अंगुलियां यहां गिरी थीं और मूर्तियां ललिता और शिवा भाव के रूप में देवी हैं।

29. विरजक्षेत्र, उत्कल शक्तिपीठ: उड़ीसा के पुरी और याजपुर में स्थित है। देवी की नाभि यहाँ गिरी थी और मूर्तियाँ देवी के रूप में विमला और शिव जगन्नाथ के रूप में हैं।

30. कांची शक्तिपीठ:  तमिलनाडु के कांचीवरम में स्थित है। देवी का कंकाल यहां गिरा था और मूर्तियां देवगर्भ के रूप में देवी और रुरु के रूप में शिव हैं।

31. कलमाधव शक्तिपीठ: सटीक स्थान ज्ञात नहीं है। लेकिन देवी के दाहिने कूल्हे यहाँ गिरे और मूर्तियाँ काली के रूप में देवी और असितानंद के रूप में शिव हैं।

32. सोना शक्तिपीठ : बिहार में स्थित है। देवी के बाएं कूल्हे यहाँ गिरे थे और मूर्तियाँ नर्मदा के रूप में देवी और वाड्रासेन के रूप में शिव हैं।

33. कामाख्या शक्तिपीठ : असम के कामगिरी की पहाड़ियों में स्थित है। देवी की योनी या योनि यहाँ गिरी थी और मूर्तियाँ कामख्या के रूप में देवी और उमानंद के रूप में शिव हैं।

34. जयंती शक्तिपीठ: जयंतिया हिल्स, असम में स्थित है। देवी की बायीं जंघा यहां गिरी थी और मूर्तियाँ जयंती के रूप में देवी और भैरव के रूप में शिव हैं ??क्रमदीश्वर।

35. मगध शक्तिपीठ : बिहार के पटना में स्थित है। देवी की दाहिनी जांघ यहां गिरी थी और मूर्तियां देवी के रूप में सर्वानंदकारी और शिव व्योमकेश के रूप में हैं।

36. त्रिस्तोता शक्तिपीठ: पश्चिम बंगाल में जलपाईगुड़ी जिले के शालबारी गाँव में तिस्ता नदी के तट पर स्थित है। देवी के बाएँ पैर यहाँ गिरे थे और मूर्तियाँ भ्रामरी के रूप में देवी और ईश्वर के रूप में शिव हैं।

37. त्रिपुरा सुंदरी शक्तित्रीपुरी शक्तिपीठ : त्रिपुरा के किशोर ग्राम में स्थित है। देवी का दाहिना पैर यहां गिरा था और मूर्तियां त्रिपुरसुंदरी के रूप में देवी और त्रिपुरेश के रूप में शिव हैं।

38. विभाष शक्तिपीठ: पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले के तमलुक में स्थित है। देवी का बायाँ टखना यहाँ गिरा था और मूर्तियाँ भीमारूपा के रूप में देवी और सर्वानंद के रूप में शिव हैं।

39. देवीकुप पीठ कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ: हरियाणा के कुरुक्षेत्र जंक्शन में द्वैपायन शक्ति के पास झील के पास स्थित है। देवी का दाहिना टखना यहाँ गिरा था और मूर्तियाँ सावित्री या स्थाणु के रूप में देवी और अश्वनाथ के रूप में शिव हैं।  देवीकूप पीठ कुरुक्षेत्र

40. युगद्य शक्तिपीठ, क्षीरग्राम शक्तिपीठ: पश्चिम बंगाल के खिरग्राम में स्थित है। देवी का दाहिना पैर का अंगूठा यहां गिरा था और मूर्तियां देवी के रूप में योगदया और शिव को खिरकंठ के रूप में हैं।

41. अंबिका विराट शक्तिपीठ : राजस्थान के जयपुर में वैराटग्राम में स्थित है। देवी के पैरों के छोटे पैर यहां गिरे थे और मूर्तियाँ अंबिका के रूप में देवी और अमृता के रूप में शिव हैं।

42. कालीघाट शक्तिपीठ : पश्चिम बंगाल के कलकत्ता में कालीघाट में स्थित है। कालीमंदिर के नाम से भी जाना जाता है। उनके दाहिने पैर से देवी के चार छोटे पैर यहाँ गिरे थे और मूर्तियाँ काली के रूप में देवी और नकुलेश या नकुलेश्वर के रूप में शिव हैं।

43. मनसा शक्तिपीठ: मानसरोवर झील, तिब्बत के निकट स्थित है। देवी का दाहिना हाथ या हथेली गिर गई और मूर्तियाँ देवी के रूप में दखचायनी और शिव अमर के रूप में हैं।

44. लंका शक्तिपीठ :  श्रीलंका में स्थित है। देवी के पैरों की घंटियाँ (नूपुर) यहाँ गिरी थीं और मूर्तियाँ देवी के रूप में इन्द्रकशी और शिव को राक्षसेश्वर के रूप में हैं।

45. गंडकी शक्तिपीठ : नेपाल के मुक्तिनाथ में स्थित है। देवी का दाहिना गाल यहाँ गिरा था और मूर्तियाँ गंडकीचंडी के रूप में देवी और चक्रपाणि के रूप में शिव हैं।

46. ​​गुह्येश्वरी शक्तिपीठ: नेपाल के काठमांडू में पशुपतिनाथ मंदिर के पास स्थित है। देवी के दो घुटने यहाँ गिरे थे और मूर्तियाँ महामाया के रूप में देवी और कपाली के रूप में शिव हैं।

47. हिंगलाज शक्तिपीठ: पाकिस्तान के हिंगुला में स्थित है। देवी का मन या मस्तिष्क यहाँ गिर गया और मूर्तियाँ कोटरी के रूप में देवी और भीमलोचन के रूप में शिव हैं।

48. सुगंधा शक्तिपीठ: बांग्लादेश के खुलना में नदी के तट पर स्थित है। देवी की नाक यहाँ गिरी थी और मूर्तियाँ सुनंदा के रूप में देवी और त्रयंबक के रूप में शिव हैं।

49. कार्तोयागत शक्तिपीठ: बांग्लादेश के करोतोआ तट पर स्थित है। देवी की बाईं सीट या उनके कपड़े यहां गिरे थे और मूर्तियाँ अपर्णा के रूप में देवी और भैरव के रूप में शिव हैं।

50. छत्तल शक्तिपीठ : बांग्लादेश के चटगाँव में स्थित है। देवी की दाहिनी भुजा यहाँ गिरी थी और मूर्तियाँ भवानी (देवी) के रूप में देवी और चंद्रशेखर के रूप में शिव हैं।

51. यशोर शक्तिपीठ: बांग्लादेश के जेस्सोर में स्थित है। देवी के हाथों का केंद्र यहां गिरा था और मूर्तियां चंदा के रूप में जशोरेश्वरी और शिव हैं।

[स्रोत:- डिवाइन इंडिया  https://www.thedivineindia.com/51-shakti-peeths/5918]

प्राचीन पौराणिक-टेक्स्ट के अनुसार समाजं एवं राजाओं द्वारा मंदिरों का निर्माण कराया. इसके अलावा जैन तीर्थों, बौद्ध-मठों, पगोडाओं, में मूर्तियाँ स्थापित हैं. जिनकी आराधना पूर्ण पवित्रता के साथ करना बंधन कारी है. यह एक सामाजिक सांस्कृतिक परम्परा है. जिसे कोई कुछ भी कहे पर सनातन में इन सार्वजनिक आराधना स्थलों के अलावा आदि शंकराचार्य द्वारा प्रेरित “आराधना-सरलीकरण” व्यवस्था में घर के दीवाले अर्थात देवालय में पंचायतन के रूप में पूजा जाना एक पवित्र परम्परा है.

मूर्तिपूजा तब गलत मानी जा सकती थी जब कि-“इससे जीवों के विरुद्ध संघातिक यातनाएं दीं जातीं हों अथवा यह  मानवता के अस्तित्व के लिए खतरा हो . ऐसा नहीं है तो फिर क्यों –“ मूर्ति-पूजा त्याज्य हो अथवा  मूर्तिपूजक काफिर कहे जावें ? ”

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