Ad

नोबेल शांति परिवार लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
नोबेल शांति परिवार लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, अगस्त 09, 2025

नोबल शांति पुरस्कार की दौड़े

विश्व का सबसे प्रतिष्ठित सम्मान नोबेल पुरस्कार है, और यह तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब यह वैश्विक शांति के लिए दिया जाए। डोनाल्ड ट्रंप इस पुरस्कार की चाहत रखते हैं और कई  बार दावा कर चुके हैं कि उन्होंने 'ऑपरेशन सिंदूर' को रुकवाया, साथ ही छह अन्य युद्धों में शांति स्थापित करने का प्रचार कर रहे हैं।
नोबेल शांति पुरस्कार शांति, सहयोग और मानवता की उन्नति के लिए दिया जाता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या युद्ध को बढ़ावा देकर या युद्धविराम का दावा करने वाली शक्तियों को यह पुरस्कार देना उचित है?
अमेरिका का सामरिक हथियार व्यापार पांच से छै ट्रिलियन डॉलर का है। पब्लिक डोमेन के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका छै से आठ प्रत्यक्ष युद्धों और तीस से चालीस प्रॉक्सी युद्धों में शामिल रहा है, जिसके परिणामस्वरूप लाखों लोग अपने जीने के अधिकार से वंचित हुए हैं। हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमले इसका ऐतिहासिक उदाहरण हैं। विश्व के हथियार व्यापार में अमेरिका की हिस्सेदारी लगभग चालीस प्रतिशत है, और प्रथम विश्व युद्ध से लेकर अब तक वह हथियारों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता रहा है।
अमेरिका ने कभी भी निशस्त्रीकरण की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए। एक अच्छा राष्ट्र वह है जो अपनी और गरीब राष्ट्रों की संप्रभुता की रक्षा के लिए सामरिक सहायता दे, लेकिन अमेरिका हथियारों को व्यावसायिक रूप से उत्पादित करता है और 'अमेरिका फर्स्ट' नीति के तहत गरीब व विकासशील देशों के किसानों के हितों को नजरअंदाज करता है।
ट्रंप का दावा है कि उन्होंने 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम कराया। व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने कहा कि ट्रंप ने हर महीने एक संघर्ष समाप्त किया, जैसे भारत-पाकिस्तान, थाईलैंड-कंबोडिया, और इज़राइल-ईरान। भारत ने इन दावों को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि 'ऑपरेशन सिंदूर' उसका स्वतंत्र रणनीतिक निर्णय था, जिसमें किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता नहीं थी
ट्रंप के पहले कार्यकाल में अमेरिका ने दो सौ बिलियन डॉलर के हथियार निर्यात किए, जिनमें सऊदी अरब और भारत के साथ सौदे शामिल थे। उनके वर्तमान कार्यकाल में भी (भारत के साथ तीन दशमलव छै बिलियन डॉलर की डील एवं एफ-पैंतीस को छोड़कर) , अन्य देशों के साथ समान स्तर के सौदे हुए हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध में अमेरिका का हथियारों का व्यापार और अप्रत्यक्ष भूमिका उसकी नीतियों को और स्पष्ट करती है।
अमेरिका भारत में अपनी कृषि सप्लाई चेन स्थापित करना चाहता है। यह भारतीय किसानों के प्रति अप्रत्यक्ष हिंसा है, जो उनकी आजीविका को प्रभावित करती है। क्या ट्रंप नोबेल शांति पुरस्कार के हकदार हैं?
अमेरिका का इतिहास शांति के बजाय हथियार व्यापार और भू-राजनीतिक हितों को बढ़ावा देने का रहा है। प्रथम विश्व युद्ध से लेकर अब तक, अमेरिका ने युद्धों को बढ़ावा देने और हथियारों के व्यापार में अग्रणी भूमिका निभाई है। ट्रंप की नीतियाँ, जैसे भारत पर टैरिफ और रूस-यूक्रेन युद्ध में हथियारों की आपूर्ति, उनकी 'शांति' की छवि पर सवाल उठाती हैं।
नोबेल शांति पुरस्कार ऐसी शख्सियतों को दिया जाना चाहिए जो वास्तव में मानवता और शांति के लिए समर्पित हों, न कि उन शक्तियों को जो युद्धों को बढ़ावा देकर युद्धविराम का श्रेय लेने का प्रयास करें। अमेरिका का 'डीप स्टेट' और पूंजीवादी हित राष्ट्रपति की नीतियों पर हावी रहते हैं, जिसके कारण शांति की स्थापना में उनकी विश्वसनीयता संदिग्ध है।
मेरा मानना है कि अमेरिका का इतिहास और ट्रंप की नीतियाँ उनके शांतिप्रिय होने के दावे को खोखला साबित करती हैं। नोबेल शांति पुरस्कार समिति को चाहिए कि वह अमेरिकी राष्ट्रपतियों को डिफ़ॉल्ट रूप से इस पुरस्कार की पात्रता से बाहर रखे, क्योंकि उनकी नीतियाँ शांति के बजाय व्यापारिक और सामरिक हितों को प्राथमिकता देती हैं। 

Ad

यह ब्लॉग खोजें

मिसफिट : हिंदी के श्रेष्ठ ब्लॉगस में