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सोमवार, अगस्त 05, 2024

B'desh Crisis | दक्षिण एशिया के लिए खतरे की ?घंटी 01

( #डिस्क्लेमर:हमारे इस विमर्श का उद्देश्य केवल दक्षिण एशिया में शांति एवं मित्र राष्ट्रों के सोशियो इकोनामिक डेवलपमेंट पर पढ़ने वाले सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव की समीक्षा करना है। हमारी इस विमर्श का कोई स्थानीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पॉलिटिकल उद्देश्य कदापि नहीं है। )
#बांग्लादेश #Socio_Economic_Effects

दक्षिण एशिया के महत्वपूर्ण देश बांग्लादेश के इंफ्रास्ट्रक्चरल डेवलपमेंट के लिए  भारत की प्रतिबद्धता सदा से ही रही है। पाकिस्तान से विभाजन के पूर्व तथा
1971 के पश्चात से ही भारत का दृष्टिकोण बांग्लादेश के लिए सकारात्मक रहा है।
    2024- 25 के भारतीय बजट में  बांग्लादेश को विकास सहायता के तहत 120 करोड़ रुपए की राशि प्रदान की जाएगी 
   भारतीय अर्थव्यवस्था के सहयोग एवं मानव संसाधन विकास के महत्वपूर्ण स्वीकारते हुए बांग्लादेश ने अपने आर्थिक स्तर को सुधारने के लिए प्रभावशाली रूप से भारत का सहयोग लिया है।
भारतीय विदेश नीति में  भारतीय उपमहाद्वीप दक्षिण एशियाई देशों के प्रति सम्मानजनक सह अस्तित्व के कांसेप्ट को प्रमुखता दी जाती रही है।
   परंतु पाकिस्तान एक ऐसा राष्ट्र है जो भारतीय विदेश नीति के लिए आवश्यक मापदंडों को सहन नहीं कर रहा है।
पिछले कुछ दिनों से बांग्लादेश में असहज स्थिति उत्पन्न करने के लिए आंतरिक वातावरण बेहद हिंसक बनाया जा रहा है। भले ही अप्रत्यक्ष रूप से परंतु बांग्लादेश में भी एक लंबे अंतराल से शेख हसीना की पार्टी को हटाने की कोशिश लगातार जारी रही है।

5 जून 2024 को बांग्लादेश के न्यायालय निर्णय के बाद 4 जुलाई 2024 से आरक्षण के मुद्दे को लेकर बांग्लादेश के छात्र विगत कई महीनों से आंदोलन कर रहे थे। 
   आज 5 अगस्त 2024 को शेख हसीना द्वारा इस्तीफा देकर अपनी बहन के साथ बांग्लादेश से बाहर निकल चुके हैं। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक शेख हसीना ने भारत में आ चुकी है तथा उनकी मुलाकात NSA श्री अजीत डोभाल से बातचीत हो चुकी है।

   16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान से मुक्त हुए बांग्लादेश शेख मुजीबुर रहमान एवं उनके परिवार के 17 सदस्यों की हत्या आर्मी के तख्ता पलट में 1975 में कर दी गई थी।
  शेख मुजीबुर रहमान जिन्हें बंगबंधु के नाम से जाना जाता है, की हत्या के बाद सेना ने बांग्लादेश आर्मी चीफ जियाउर रहमान के नेतृत्व में बांग्लादेश की सत्ता संभाली थी। हालांकि उन पर यह आरोप लगाता रहा है कि वे मुजीब की हत्या के दोषी हैं। जबकि उन्होंने ही शेख हसीना को प्रजातांत्रिक रास्ते से वापस स्थापित किया।
  विकसित राष्ट्रों से लेकर अल्प विकसित राष्ट्रों तक राष्ट्र प्रमुख के आवास पर हमला बोलना बेहद सोशियो पॉलीटिकल नजरिया से नकारात्मक स्थिति का परिचायक है।
डेमोक्रेटिक सिस्टम कभी भी हिंसा का हिमायती नहीं रहा परंतु डेमोक्रेसी में हिंसा का प्रवेश तख्ता पलट, राष्ट्र प्रमुख के आवास पर हमला बोलना, डेमोक्रेटिक सिस्टम की विकृति का उदाहरण माना जा सकता है।
  अपने अमेरिका में भी भीड़ का राष्ट्रपति भवन में प्रवेश करना देखा होगा तो आपको श्रीलंका में भी इस तरह की गतिविधि नजर आई होगी।
  यह तीसरा मौका है जब भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश के राष्ट्र प्रमुख के आवास पर जनता ने हमला बोला है।
उपरोक्त स्थितियों के अलावा अगर हम गौर करें तो म्यांमार श्रीलंका के बाद बांग्लादेश में पॉलीटिकल अनरेस्ट की स्थिति कोई सामाजिक आंदोलन की परिणीति नहीं हो सकती।
  दोपहर बाद जब  बांग्लादेश से संबंधित खबर आनी शुरू हुई तो मुझे यह महसूस हो गया था कि - "यह एक अंतरराष्ट्रीय स्तर से प्रेरित  प्रजातंत्र को समाप्त करने वाला षड्यंत्र हो सकता है।"
  फिर धीरे-धीरे मीडिया इस बात का खुलासा करने लगा।
   अगर यह कयास लगाया जाता है कि - बांग्लादेश का मौजूदा नेतृत्व, दो अंतरराष्ट्रीय ताकतों के षडयंत्रों का शिकार हुआ है तो शायद गलत नहीं होगा।
   फिलहाल हम उन खबरों पर नजर बनाकर रखे हैं जो बांग्लादेश की स्थितियों पर सामने लाई जाएगी। फिर भी यह कहा जा सकता है कि बांग्लादेश श्रीलंका नेपाल म्यांमार मालदीव में दिखने वाले दृश्य दक्षिण एशिया के लिए सकारात्मक नहीं है।
बांग्लादेश से आने वाली खबरों को देखकर प्रतीत होता है कि दक्षिण एशिया अब मिडिल ईस्ट की तरह सोशियो इकोनामिक सिस्टम के संदर्भ में नकारात्मक दिशा की ओर जा रहा है।
   दक्षिण एशिया में भारत के बाद बांग्लादेश ही एक ऐसा राष्ट्र है जिसकी अर्थव्यवस्था विकास का आभास देती है परंतु वर्तमान परिस्थितियों को देखकर लगता है अब बांग्लादेश उग्र एवं कट्टरपंथी विचारधारा एवं आयातित अराजकतावादी विचारधारा का शिकार होकर अस्थिरता के चक्रव्यूह में घिरता चला जा रहा  है।
   देखना यह है कि 1971 में जन्मे इस राष्ट्र के आर्थिक सामाजिक विकास फिर कब स्थापित हो सकेगा। इतना तो तय है कि बांग्लादेश में अब जो भी सरकार बनेगी वह भारत की समर्थक होगी या नहीं यह कहना मुश्किल है।
प्राप्त समाचारों के अनुसार बांग्लादेश में गैर इस्लामिक नागरिकों को भी टारगेट किया जा रहा है।
  इससे प्रतीत होता है कि पाकिस्तान की आई एस आई का कहीं न कहीं बांग्लादेश की आंतरिक गतिविधियों  में हस्तक्षेप बढ़ गया है।
और संप्रदायिक रूप से बांग्लादेश संवेदनशील होता जा रहा है।
  बांग्लादेश में करीब 15 करोड़ मुसलमान हैं और इसके बाद 1.31 करोड़  जनसंख्या  हिंदुओं की है. इनके अलावा बांग्लादेश में 10 लाख बौद्ध धर्म को मानने वाले, 4.95 लाख ईसाई और 1.98 लाख दूसरे धर्मों को मानने वाले लोग हैं ।
  इसका अर्थ यह है कि बांग्लादेश में अगर पंथनिरपेक्ष सरकार का गठन नहीं होता तो सामाजिक संरचना नकारात्मक रूप से प्रभावित होगी। 

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