70 के दशक में अगर किसी महान व्यक्तित्व से मुलाकात हुई थी तो वे थे डॉ. राजकुमार तिवारी "सुमित्र" जी।
सुमित्र जी के माध्यम से साहित्य जगत को पहचान का रास्ता मिला था। गौर वर्णी काया के स्वामी, मित्रों के मित्र, और राजेश पाठक प्रवीण के साहित्यिक गुरु डॉक्टर राजकुमार सुमित्र जी के कोतवाली स्थित आवास में देर रात तक गोष्ठियों में शामिल होना, अपनी बारी का इंतजार करना उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण होता था उनके व्यक्तित्व से लगातार सीखते रहना। स्व. श्री घनश्याम चौरसिया "बादल" के माध्यम से उनके घर में आयोजित एक कवि गोष्ठी में स्वर्गीय बाबूजी के साथ देर रात तक हुई बैठक में लगा कि यह कवि गोष्ठी नहीं बल्कि कवियों को निखारने की कार्यशाला है।
धीरे-धीरे कभी ऐसी घरेलू बैठकों की आदत सी पड़ चुकी थी। वहीं शहर के नामचीन साहित्यकारों से मुलाकात हुआ करती थी। उनके कोतवाली के पीछे वाले घर को साहित्य का मंदिर कहना गलत न होगा।
तट विहीन तथाकथित प्रगतिशील कविताओं के दौर में गीत, छंद, दोहा सवैया, कवित्त, आदि के अनुगुंजन ने लेखन को नई दिशा दी थी।
गेट नंबर 2 के पास स्थित नवीन दुनिया प्रेस में बतौर साहित्य संपादक सुमित्र जी द्वारा नारी-निकुंज औसत रूप से सर्वाधिक बिकने वाला संस्करण हुआ करता था।
हमें भी दादा अक्सर पूरे अंक में लिखने की छूट देते थे। कविता के साथ कंटेंट क्रिएशन की शिक्षा शशि जी और सुमित्र जी से ही हासिल की है।
अभी-अभी पूज्य सुमित्र जी के महाप्रयाण का समाचार राजेश के व्हाट्सएप संदेश के जरिए मिला।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.राजकुमार तिवारी सुमित्र का निधन जबलपुर के साहित्यिक समाज के लिए एक दुखद प्रसंग है। नए स्वर नए गीत कार्यक्रम की श्रृंखला प्रारंभ कर पूज्य गुरुदेव सुमित्र जी ने सार्थक सृजन को दिशा प्रदान की है। वे अक्सर कहते थे कि-"उससे बड़ा सौभाग्यशाली कोई नहीं जिसके घर में साहित्यकारों के चरणरज न गिरें।"
अपने आप को पीड़ा का राजकुमार कहने वाले दादा ने ये भी कहा - " दर्द की जागीर है, बाँट रहा हूँ प्यार।”
गायत्री कथा सम्मान के संस्थापक सुमित्र जी नगर के हर एक रचना कार्य और साहित्य साधकों के केंद्र बिंदु हुआ करते थे। उनकी साहित्यिक सक्रियता से शहर जबलपुर साहित्य साधना का केंद्र था। सृजनकर्ता को दुलारना,उसे मजबूती देना, यहां तक की प्रकाशित करना भी उनका ही दायित्व बन गया था। हम तो उनके आजीवन ऋणी है।
जबलपुर ही नही प्रदेश के प्रतिष्ठित साहित्यकार, लगभग 40 कृतियों के रचयिता, पाथेय साहित्य कला अकादमी के संस्थापक कविवर डॉ. राजकुमार तिवारी सुमित्र का आज दिनांक 27 फरवरी 2024 को रात्रि 10 बजे 85 वर्ष की उम्र में निधन हो गया ।
सुमित्र जी डॉक्टर भावना तिवारी, श्रीमती कामना , एवं चिरंजीव डॉ.हर्ष कुमार तिवारी के पिता , बाल पत्रकार बेटी प्रियम के पितामह एवं हम सब साहित्य अनुरागीयों तथा नए युवा साहित्यकारों के प्रेरणा स्रोत अब हमारी स्मृतियों में शेष रहेंगे। .
सुमित्र ने अनेक समाचार पत्रों में सम्पादकीय सेवाएं दी ।
आप प्रदेश ही नही. देश, प्रदेश की साहित्यिक धारा के संवाहक रहे। यूरोप में भी भारतीय साहित्य का परचम लहराने वाली इस शख्सियत ने लगभग सात दशक साहित्य की अप्रतिम सेवा की है।