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मार्च, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

किसी के लिए दिशा सूचक बनने का सुख

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                              गिरीश बिल्लोरे “मुकुल” आज नगर निगम का एक स्वीपर अपने बेहद उत्साही बेटे को बालभवन में लाया तो बेहद खुश हुआ... मन उसने बताया 72% अंक लाने वाले बच्चे की हैण्ड रेटिंग सुधारवानी है . इसे एडमिशन दीजिये . मैंने बताया हम क्रिएटिव राइटिंग  की क्लास लगाएंगे फिर क्रिएटिव  राइटिंग  के बारे में बताया. पिता उदास होकर जाने लगा तो मैंने उसे समझाया -. फिर भी पिता उदास हुआ. उसके मानस में बस सुंदर लिपि सीखने की इच्छा थी. जिससे पढ़ाई में मदद मिलेगी पिता के मन में पढ़ाई के लिए बेहद आदर्श रुख है इसमें कोई दो मत नहीं परन्तु जीवन केवल किताबी ज्ञान से नहीं चल पाएगा, उस बच्चे को भी वही लैगैसी शिफ्ट हुई थी . बच्चे न कहा – “सर, मैं केवल वो काम करूंगा अध्ययन में सहायक हो ” मैंने सवाल किया- “क्या बाकी किसी खेलकूद जैसी  एक्टिविटी में हिस्सा लेते हो ..?” वो- “नहीं, उससे कोई फ़ायदा न होगा पढ़ाई में ” मैं- “तो कुछ तो करते होगे ” वो- “हाँ, घर में झाडू पौंछा बरतन आदि साफ़ कर लेता हूँ..” मैं- “झाडू पौंछा बरतन आदि से जुड़े कोई सवाल कभी किसी एक्जाम में पूछे जाते ह

माँ कहती थी आ गौरैया कनकी चांवल खा गौरैया

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फोटो साभार विकी पीडिया से  फुदक चिरैया उड़ गई भैया माँ कहती थी आ गौरैया कनकी चांवल खा गौरैया          उड़ गई भैया   उड़ गई भैया ..!! पंखे से टकराई थी तो          काकी चुनका लाई थी  ! दादी ने रुई के फाहे से बूंदे कुछ टपकाई थी !! होश में आई जब गौरैया उड़ गई भैया   उड़ गई भैया ..!! गेंहू चावल ज्वार बाजरा पापड़- वापड़, अमकरियाँ , पलक झपकते चौंच में चुग्गा भर लेतीं थीं जो चिड़ियाँ !! चिकचिक हल्ला करतीं  - आँगन आँगन गौरैया ...!! जंगला साफ़ करो न साजन चिड़िया का घर बना वहां ..! जो तोड़ोगे घर इनका तुम भटकेंगी ये कहाँ कहाँ ? अंडे सेने दो इनको तुम – अपनी प्यारी गौरैया ...!! हर जंगले में जाली लग गई आँगन से चुग्गा  भी  गुम...! बच्चे सब परदेश निकस गए- घर में शेष रहे हम तुम ....!! न तो घर में रौनक बाक़ी, न आंगन में गौरैया ...!!

बावरे फकीरा को सात साल पूरे हुए

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दिनांक 14 मार्च 2009 को सायं:07:30 बजे स्थानीय मानस भवन में आयोजितभक्ति एलबम "बावरे-फ़कीरा" का लोकार्पण समारोह अवसर पर ईश्वर दास रोहाणी ने कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री मुकेश गर्ग महानिदेशक संगीत संकल्प  अस्थि रोग विशेषज्ञ डाक्टर जितेन्द्र जामदार के आतिथ्य में आयोजित हुआ . था  बेहद अध्यात्मिक-उर्जा से परिपूर्ण वातावरण में एलबम का विमोचन कराने साईं बाबा बने एक बच्चे द्वारा  मशहूर पोलियो ग्रस्त गायक जाकिर हुसैन एवं आभास जोशी को मंच पर लाया गया . अतिथियों के अलावा बावरे फकीरा टीम के सदस्यों तथा श्रीमती पुष्पा जोशी श्री काशीनाथ बिल्लोरे की उपस्थिति में एलबम का विमोचन किया गया . इस अवसर अंध-मूक-बधिर-विद्यालय के छात्र   विशेष रूप से आमंत्रित थे .स्थानीय कलाकारों श्री चारु शुक्ला   { मंडला }, विदिशा नाथ .मृदुल.श्रृद्धा बिल्लोरे.अक्षिता   , आकाश जैन   , दिलीप कोरी   , राशि तिवारी.शेषाद्री अय्यर के अलावा आभास जोशी एवं वाइस आफ इंडिया द्वितीय के गायक श्री ज़ाकिर हुसैन तथा संदीपा पारे द्वारा मनोरंजक गीत-संगीत निशा स्वर बिखेरे .  आयोजकों के अनुसार एलबम के विक्रय से संगृहीत र

वर्ग संघर्ष : एक संक्रामक बीमारी है ?

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साभार : समालोचना ब्लॉग     कहते हैं खाए बिना ज़िंदा रह सकता हूँ पर लिखे बिना नहीं . मानव की आदिम प्रवृत्ति है –“सिगमेंट-शिप” जिससे वो बंधा रहना चाहता है . जहां उसे आत्म सुरक्षा का आभास बना रहता है .मानव जन्मजात पशु है . वो गुर्राता है, डराता है, डरता भी   है, इस बीच उसे पावर चाहिए ......... पावर के लिए सबसे पहले अपनों को अधीन करना चाहता है करता भी है . फिर अपने अधिकारों का अधिरोपण शेष समूह पर करता है . केंद्र में सबके वही होता है जो सत्ता सियासती तरीके अख्तियार कर संचालित करता है . सत्ता को संचालित करने जो ज़रूरी है वो है संसाधन ....... अर्थात अधिकाँश भाग शीर्ष का . मैन-पावर, धन, भूमि, यानी नक़्शे के भीतर स्थित सब कुछ सत्ता में . पर कालान्तर में प्रजातांत्रिक व्यवस्थाएं प्रभावी हुईं   और राजशाही सामंताशाही ने प्रस्थान किया. और साथ ही साथ   शुरू होता है आदिम कबीलियाई प्रवृत्ति को उकसाने का खेल . कोई भी व्यक्ति अथवा समूह   सत्ता से अधिक दिन दूर नहीं रह पाता जो सत्ता का सुख भोग चुका है अथवा आकांक्षी है . उसके डी एन ए में राज करने की प्रवृत्ति ज़िंदा जो होती है .          समुदाय का समर

रक्त बीज हूँ मुझे शूल आके मत चुभा

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काल के कपाल पे, प्रश्न कुछ उछाल के बोध तुम करा रहे, नित नए कमाल के ...!! चेतना के पास हो, ऐसा लग रहा कहाँ ? कोई जल रहा यहाँ कोई जल रहा वहाँ ? हाथ गुमशुदा हुए, दिन लदे मशाल के ..!! लिखे हैं ग्रन्थ आपने, आग जो उगल रहे ग्रंथियों में आपकी,   नागनाथ पल रहे..! “नर्तन नित अग्नि” का, चेतना सम्हाल लें !! रक्त बीज हूँ मुझे शूल आके मत चुभा  हरेक बूँद में मुझे ताज़ा ताज़ा मुझको पा   प्राण ही जो चाहिए तो प्रेम से निकाल ले  !! नर्तकी है आग देख मस्त होक चल रही  कल तलक जो आग मेरे सीने में थी पल ! एक भी हो अगर, चिंगारी तू निकाल दे !! धर्म क्या है मर्म का, मर्म क्या है धर्म का - ज्ञान जो नहीं तो तू , दुशाला ओढ़ शर्म का ! मत बना सबब इन्हें - रोजिया बवाल के !!               

“विश्व के विराट होने का बोध होना ज़रूरी है ...!”

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                        एक आध्यात्मिक सन्दर्भ में दूसरों के लिए जीना और खुद के लिए जीना दो शिखर है .   इन दोनों शिखरों के बीच एक गहरी खाई है. एक शिखर से दूसरे शिखर के बीच कोई पुल सरीखा एक भी रास्ता नहीं है . खुद के लिए जीते जीते आपको उड़कर दूसरों के लिए जीने वाले शिखर पर जाना पड़ता है. परन्तु सबको उड़ने की ताकत और पंख  भौतिक रूप से न कभी मिले हैं न मिलेंगे . तो फिर विकल्प क्या है हम कैसे आध्यात्मिक पथ के पथचारी हो सकते है...? सोचो आप जीने की कलाओं से परिपूर्ण हैं . आपके पास शब्द हैं विचार हैं, तर्क हैं परन्तु संवेदनाएं मृतप्राय: हैं . अर्थात आप सामष्ठिक कल्याण के लिए अभी तैयार नहीं . आपमें उड़ान भरने की क्षमता कहाँ . कि आप बहुजन हिताय सोचें !.. आप जैसे ही अपने में संकुचित होंगें तुरंत आप में से आत्मशक्ति का क्षरण होना शुरू हो जाता है. इस क्षरण को ढांकने आप एक कल्ट ओढ़ लेंगें - कि आप ये हैं आप वो हैं . अक्सर हमने सुना है – अमुक जी इस शीर्ष पद पर हैं तमुक जी उस शीर्ष पद पर हैं. और दौनों यानी ये अमुक जी और तमुक जी अपने लग्गू-भग्गूओं को विश्व समझ लेते हैं . इनमें से एक श्रीमान हैं – श

महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए सभी का समर्पण जरूरी है: दीदी ज्ञानेश्वरी

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                             दीदी ज्ञानेश्वरी   महिलाओं एवं बच्चों के साथ-साथ सम्पूर्ण समाज के विकास एवं खुशहाली सबके संयुक्त प्रयास से आती है। सभी अपनी चिंतनशीलता एवं सकारात्मक सोच से एक साथ मिलकर एक ही प्रकार के संकल्पों को सही आकार दे सकते है।           जीवन के लिए सबसे जरूरी चीज शिक्षा है जो हमारा अधिकार भी है। संपूर्ण विकास के लिए शिक्षा के साथ-साथ हमारी समझदारी भी आवश्यक है। तदाशय के विचार व्यक्त करते हुए दीदी ज्ञानेश्वरी ने संभागीय उपसंचालक , महिला सशक्तिकरण कार्यालय द्वारा आयोजित कार्यक्रम में  व्यक्त किये । उन्होने आगे कहा कि समाज में बदलाव देखे जा रहे है फिर भी निरंतर सकारात्मक परिर्वतन की आवश्यकता है। पर्यावरण की समस्या लिंगभेद , समाजिक एकात्मकता के बिन्दुओं को उठाते हुए पूज्य ज्ञानेश्वरी दीदी ने समाज में बेटे-बेटी के बीच भेदभाव घटाने पर बल दिया । श्रीमति उजयारो बाई बैगा                      आयुक्त , महिला सशक्तिकरण , म.प्र. श्रीमति कल्पना श्रीवास्तव द्वारा दिये गये निर्देशों के अनुरूप श्रीमति मनीषा लुम्बा , उप संचालक महिला , महिला सषक्तिकरण , जबलपुर संभाग ,

हरे मंडप की तपन

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साभार : इंडिया फोरम से  ( एक विधुर पंडित विवाह संस्कार कराने के लिए अधिकृत है ... पर एक विधवा माँ  अपने बेटे या बेटी के विवाह संस्कार में मंडप की परिधि से बाहर क्यों रखी जाती है. उसे वैवाहिक सांस्कृतिक रस्मों से दूर रखना कितना पाशविक एवं निर्मम होता है इसका अंदाजा लगाएं ..... ऐसी व्यवस्था को अस्वीकृत करें . विधवा नारी के लिए अनावश्यक सीमा रेखा खींच कर विषमताओं को प्रश्रय देना सर्वथा अनुचित है आप क्या सोचते हैं....... ? विषमता को चोट कीजिये  )   वैभव की  देह देहरी पे लाकर रखी गई फिर उठाकर ले गए आमतौर पर ऐसा ही तो होता है. चौखट के भीतर सामाजिक नियंत्रण रेखा के बीच एक नारी रह जाती है . जो अबला बेचारी विधवा, जिसके अधिकार तय हो जाते. उसे कैसे अपने आचरण से कौटोम्बिक  यश को बरकरार रखना हैं सब कुछ ठूंस ठूंस के सिखाया जाता है . चार लोगों का भय दिखाकर . चेतना  दर्द और स्तब्धता के सैलाब से अपेक्षाकृत कम समय में उबर गई . भूलना बायोलाजिकल प्रक्रिया है . न भूलना एक बीमारी कही जा सकती है . चेतना पच्चीस बरस पहले की नारी अब एक परिपक्व प्रौढावस्था को जी रही है . खुद के जॉब के साथ साथ   सं

चिंतन की बीमारी

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                                                         सैपुरा ( शहपुरा-भिटौनी ) में मन्नू सिंग मास्साब की हैड मास्टरी  वाले बालक प्राथमिक स्कूल में एडमीशन लिया था तबई से हम चिंतनशील जीव हूं. रेल्वे स्टेशन से तांगे से थाने के पीछे वाले स्कूल में टाट पट्टी पर बैठ पढ़ना लिखना सीखते सीखते हम चिंतन करना सीख गए. पहली दूसरी क्लास से ही  हमारे दिमाग में चिंतन-कीट ने प्रवेश कर लिया था.  चिंतनशील होने की मुख्य वज़ह हम आगे बताएंगे पहले एक किस्सा सुन लीजिये           चिंतन की बीमारी ज्यों ही हमको लगी हम   चिंतनशील होने के कारण हम एक एक  घटना पर चिंतनरत हो जाया करते  थे .  पाकिस्तान से युद्ध का समय था पड़ौसी कल्याण सिंह मामाजी ने मामी को डाटा - ब्लेक आउट आडर है तू है कि लालटेन तेज़ जला रई है गंवार .. बस उसी सोच में थे कि कमरे के भीतर जल रहे लालटेन और ब्लेकआऊट का क्या रिश्ता हो सकता है.. कि मामा जी ने मामी की भद्रा उतार दी . मामाजी इतने गुस्से में थे कि वो मामी की शिकायत लेकर मां के पास आए और बोले- इस गंवार को बताओ दीदी , इंद्रा गांधी बोल रईं थी कि जनता मुश्किल समय में हमारा साथ दे और ये है कि.. म

अश्वत्थामा हत: - गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”

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                            साभार :  listcrux.com   से   सोशल  मीडिया  पर  हो रही बातें  त्वरित  होतीं  हैं . जो त्वरित है वो अधपका हुआ करता है .  अधपका भोजन और अधकचरी बात नुकसान देह होती हैं . अश्वत्थामा हतो हत: ……… त्वरित  अभिव्यक्ति  में गर्माहट  हो  सकती  है चिंतन नहीं ..... !  किसी  को  नीचा  दिखाना  अपमानित  करने वालों को  यदि   खुद  पर  कोई  टिप्पणी मिले  तो  "असहिष्णुता" का आरोप ....... लगाना आज का शगल है . लोग अपने झुण्ड और झंडे को लेकर अति संवेदित और भावुक हैं .  मेरा  मानना है कि ..... जब  सात  रंग  एक  साथ  मिलकर  पारदर्शी  हो जाते  हैं  तो  कई  विचारधाराएं  सर्वहारा  के  लिए ! आम  आदमी  के  लिए ! उपयोगी  क्यों नहीं हो सकती .भाई  ये देश देखना एक दिन  लांछन गाली-गुफ्तार को  दर  किनार  कर    आगे  बढेगा ......   मुंह चला  कर  देश  का अपमान  कराने  वाले  झाड़ियों  में  लुकाछिप  जाएंगे झाड़ी के पीछे स्वच्छता अभियान की धज्जियां उड़ाते .. बदबू फैलाते नज़र आएँगे. मुझे यकीन है  हिन्दुस्तान  आगे  आएगा सियासत और समाज  के ढाँचे  में मौलिक  बदलाव  के  साथ ……   पता है