सैपुरा (शहपुरा-भिटौनी) में मन्नू सिंग मास्साब की हैड मास्टरी वाले बालक
प्राथमिक स्कूल में एडमीशन लिया था तबई से हम चिंतनशील जीव हूं. रेल्वे स्टेशन से
तांगे से थाने के पीछे वाले स्कूल में टाट पट्टी पर बैठ पढ़ना लिखना सीखते सीखते हम
चिंतन करना सीख गए. पहली दूसरी क्लास से ही हमारे दिमाग में चिंतन-कीट ने
प्रवेश कर लिया था. चिंतनशील होने की मुख्य वज़ह हम आगे बताएंगे पहले एक किस्सा
सुन लीजिये
चिंतन की बीमारी ज्यों ही हमको लगी हम चिंतनशील होने के कारण हम एक एक घटना पर चिंतनरत हो जाया करते थे . पाकिस्तान से युद्ध का समय था पड़ौसी
कल्याण सिंह मामाजी ने मामी को डाटा - ब्लेक आउट आडर है तू है कि लालटेन तेज़ जला
रई है गंवार .. बस उसी सोच में थे कि कमरे के भीतर जल रहे लालटेन और ब्लेकआऊट का
क्या रिश्ता हो सकता है.. कि मामा जी ने मामी की भद्रा उतार दी . मामाजी इतने
गुस्से में थे कि वो मामी की शिकायत लेकर मां के पास आए और बोले- इस गंवार को बताओ
दीदी, इंद्रा गांधी बोल रईं थी कि जनता मुश्किल समय
में हमारा साथ दे और ये है कि.. मां हंस पड़ी उल्टे कल्याण मामा की क्लास लेली -
पागल तुम हो पाकिस्तान का घुसपैठिया विमान एक तो शहपुरा-भिटौनी तक आ नहीं सकता.
दूसरे आ भी गया तो उसे कल्याण तेरे घर के लालटेन की लाइट कैसे दिखेगी बता रेल्वे
क्वार्टर में पक्की छत है कि नईं चल जा भाभी को अब ऐसे न झिझकारना. दिमाग में सवाल
उठ रहे थे कि पाक़िस्तान का जहाज़ लालटेन ब्लैक आऊट जे सब क्या है.. चलो आज़ मास्साब
से पूछूंगा . कि यकायक एक आवाज़ ठीक सर के ऊपर से हमारी खोपड़ी में जा टकराई - गिरीश, कै छक्के चौअन....?
मेरा ज़वाब था - छै: नारे चऊअन...!!
रजक मास्साब- तुमसे हम पूछ कछु रए तुम बता कछु रए..सो रए हो का . सटाक एक चपत गाल पै आंखन में आंसू
मन में उदासी लए हम चिंतन शील हो गए .
सही उत्तर र देने के बावज़ूद मिले चापतोपहार से हम क्रुद्ध न होकर चिंतन करने लगे थे .
निष्कर्ष में हमने पाया ये मास्साब लोग वो जीवात्मा धारण करते हैं जो चपतियाने का मौका न तज़ने की प्रेरणा देती है .
एक तो रामचरन भैया तांगेवाले बड़े
प्यार से अपने एन अपने बगल में बिठाते थे जो घोड़े के दक्षिणावर्त्य के एकदम समक्ष
का हिस्सा उस पर घोड़े को वायु-विकार की बीमारी थी . हमसे पीछे बैठने वालों तक घोड़े
के दक्षिणावर्त्य से
निकसी हर हास्यस्पद
ध्वनियां सहज सुनाई देती थी उस पर रामचरन बच्चों को नेक सलाह देते थे.... घोड़ा
पादे तो हंसियो मति.. बाक़ी बच्चे चिल्लाते थे .. नईं तो भैया .. दाद हो जाएगी न...
फ़िर तांगे में बच्चों की खिलखिलाहट गूंजती . अपुन का हाल तब बुरा हो जाता था..
प्रदूषण की वज़ह से . न तो हंस पाते न रो
पाते न गुस्सा कर पाते ..ये सब घटनाएं दिमाग पर असर करतीं थीं . जमादारिन के बच्चे
को न छूने की हिदायतें.. ?
मामी को हमेशा डांट मिलना, पुरुष रेल कर्मियों का दारू पीकर जलवा
बिखेरना.. ये सब अजीब लगता था
औरतें तब भी रोतीं थीं.. आज भी रोटी हैं . बच्चे आज भी पन्नी बीनते हैं. ट्रेन में पौंछा
मारते हैं चाय पिलाते हैं... गाली भी खाते हैं.. बताओ भाई.. किसी विदेशी को "गली का करोड़पति कुत्ता" बनाने का आमंत्रण देती इस व्यवस्था के बारे में कितना चिंतन
करतें हैं हम आप शायद बहुत कम .. इस आलेख के साथ लगी फ़ोटो में एक बच्चे को हमने
ए.सी. कोच में पौंछा लगाते देखा. हम विचलित थे.. आज़ ये तस्वीर पुराने फ़ोल्डर में
नज़र आई सोशल साईट पर भी दे डाली.. एक महाशय का कमेंट मिला "यही धंधा है इनका...
सहानुभूति के लिए अथवा चंद लाइक पाने के लिए फोटो भले ही
लगा दीजिये. ऐसे हजारों बच्चे, जवान, बूढ़े और विकलांग हैं जिनके लिए
भारतीय रेल जीवन रेखा है और ये वहीँ से कमाते हैं...
भाई साहब बड़े जोश से आगे लिखते हैं - मैं जब रेवाड़ी से दिल्ली अप-डाउन करता था तब कम से कम दस ऐसे भिखारी जैसी शक्लों को जानता था जो ऐसे ही दरिद्र बनकर शाम को पांच-सात सौ कमाकर जाते हैं..."
भाई साहब बड़े जोश से आगे लिखते हैं - मैं जब रेवाड़ी से दिल्ली अप-डाउन करता था तब कम से कम दस ऐसे भिखारी जैसी शक्लों को जानता था जो ऐसे ही दरिद्र बनकर शाम को पांच-सात सौ कमाकर जाते हैं..."
हम लोग इतने नैगेटिव हो गए हैं कि सिर्फ़ विरोध करते हैं . सरकारें समाज विचारक
दाएं बाएँ वाले लोग इनके बारे में क्या सोच रहे हैं मुझे लगता है कुछ भी नहीं .
ये केवल विरोध कर किनारा करते हैं . इनको आत्म चिंतन की बीमारी
कभी न हुई ऐसा लगता है .. वरना इनकी सोच शून्य न होती . कुंठा के बिरवें रोंपना कहां तक
ठीक है.. अगर आप को मेरा विचार पसंद नहीं तो मेरी सोच और सकारात्मक सोच बदल
दूंगा न कदापि नहीं ..
लोग जिसे धंधा कह कर छुटकारा पाना चाहते हैं वे क्या खाक भारतीय होंगे..!! अगर
सच्चे भारतीय हो तो पौंछा लगाने वाले बच्चों के लिए कोई सक्रीय क्यों नहीं होता .
बच्चों को स्कूल जाने दो न जा सकें तो छोड़ आओ स्कूल . कठोर क़ानून बनाओ .......
ट्रेन में बच्चे काम करते नज़र न आएं भीख मत दो .. एक बार मिलकर कुछ ऐसा करो कि
व्यवस्था कम से कम बच्चों के लिए संवेदित
हो जाए.
कल श्री श्री रविशंकर जी के कल्चरल उत्सव में युगपुरुष भी पहुँचे थे... युगपुरुष के भासड़ के मुख्य अंश ये हैं-
1-दो बार पूरी दमदारी से पूरी दुनिया को बताया कि मैं दिल्ली का मुख्यमंत्री हूँ।
2-'अगर गुरु जी इनिशिएटिव लें तो' हम यमुना को साफ़ करेंगे (इनिशिएटिव माने पैसा और मेहनत)
3-मैं बहुत स्वार्थी आदमी हूँ (ब्रेकिंग न्यूज़)
4-गुरु जी के वॉलेंटियर्स बहुत अच्छे हैं, मैं उनसे माँगता हूँ कि अपने वॉलेंटियर्स हमें दे दें(पंजाब में चुनाव लड़ना है जी)
5-इतिहास में पहली बार युगपुरुष ने बिना ऊँगली उठाए अपना भासड़ समाप्त किया(हालाँकि बहुत कंट्रोल करना पड़ा फिर भी केंद्र सरकार का नाम ले ही लिया )
2-'अगर गुरु जी इनिशिएटिव लें तो' हम यमुना को साफ़ करेंगे (इनिशिएटिव माने पैसा और मेहनत)
3-मैं बहुत स्वार्थी आदमी हूँ (ब्रेकिंग न्यूज़)
4-गुरु जी के वॉलेंटियर्स बहुत अच्छे हैं, मैं उनसे माँगता हूँ कि अपने वॉलेंटियर्स हमें दे दें(पंजाब में चुनाव लड़ना है जी)
5-इतिहास में पहली बार युगपुरुष ने बिना ऊँगली उठाए अपना भासड़ समाप्त किया(हालाँकि बहुत कंट्रोल करना पड़ा फिर भी केंद्र सरकार का नाम ले ही लिया )