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अप्रैल, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मन अकारण खुश हो तो व्यक्तित्व में निखार आता है..

               मन अकारण  खुश हो तो व्यक्तित्व में निखार आता है.. .. कारण सहित प्रसन्नता आत्मविश्वास को दो गुना हो जाता है आज़ मेरे साथ ऐसा ही है.. मेरी बिटिया शिवानी तीन साल पहले बी काम आनर्स के लिये इंदोर गई थी. सवाल ये उठे थे तब कि क्या जबलपुर में बेहतर कालेज नहीं . सवालों को अनसुना किया इंदौर के कुछ कालेज में घूमा एक कालेज प्रबंधन ने बताया - सर, देखिये हमारे कालेज में  Abhishek Bachchan  तक आ चुके हैं. शिक्षा के व्यावसायीकरण के दौर में @Abhihek Bachchan अथवा  Dr. Kumar Vishwas  जैसों का सहारा लेन ा स्वभाविक है.. किंतु मेरी नज़र में सर्वथा ग़लत था और आज़ भी ग़लत ही है.. IPS Academy, Indore  में मुझे ऐसा ऐसा कोई प्रलोभन नहीं दिया गया. सीनियर बच्चों के ओजस्वी चेहरों ने कालेज का स्तर बता दिया. बस तीन साला सफ़र  Shivani Billore  ने ऐसे शुरु किया. स्कूल के दिनों से ही बिटिया में तर्क शक्ति समझदारी और बुद्धि स्तरीय है . उसकी एक मित्र ने कामर्स विषय लेने पर कुछ कमेंट किया तो एक मित्र को ये कहती पाई गई - "केवल साईंस फ़ेकल्टी से देश नही चलता समझी तुमको तो मैं अपनी कम्पनी में नौकरी दूंगी ,"

एक गीत आस का एक नव प्रयास सा

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अदेह के सदेह प्रश्न कौन गढ़ रहा कहो गढ़ के दोष मेरे सर कौन मढ़ रहा कहो  ? ***************************** बाग में बहार में , , सावनी फुहार में ! पिरो गया किमाच कौन मोगरे के हार में !! पग तले दबा मुझे कौन बढ़ गया कहो... ? ***************************** एक गीत आस का एक नव प्रयास सा गीत था अगीत था ! या कोई कयास था... ? गीत पे अगीत का वो दोष मढ़ गया कहो... ? ***************************** तिमिर में खूब  रो लिये जला सके न तुम  दिये ! दीन हीन ज़िंदगी ने हौसले  डुबो दिये !! बेवज़ह के शोक गीत कौन गढ़ रहा कहो... ?

उनको आस्तीन में सम्हाल के रखने की ज़ुर्रत

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        मेरा एक अभिन्न मित्र    भाई आदतन किसी को भी ह्यूमलेट करने के आदी हैं   एक बात माननी पड़ेगी बंदा है बहुत दिमाग़दार जो कहता और करता है सटीक यानी उसका निशाना सदा ही केवल उसी को लाभ पहुंचाने वाला होता है.. कुल मिला कर मैने भी इस हुनर को सीखने उसे अपनी आस्तीन में महफ़ूज़ रखा है. बाहार जाएगा क्या मालून कौन उसका एपीसोड खत्म कर दे ... ?             अब हमने उसे भाई कहा है तो क़रीबी होगा हमारे लंगोटिया यार है भाई.. अपना... हां न सिर्फ़ लंगोटिया बल्कि पोतड़िया यार है.. डा. सुले मैडम के हस्पताल में हम दौनों साथ ही साथ प्रसूते थे. तब से अब तक दोस्ती सलामत दोस्ताना सलामत केवल हम सलामत नहीं कुछ दाग लगवाए हम पर उस रासायनिक दुष्कर्म में  उस भाई का अहम रोल था. दाग धोने में खूब मदद की ऐसा लोगों को लगा पर सच तो ये है कि वो केवल हमारे दाग-धोने में अपने अवदान को रेखांकित करता रहा वास्तव में उसने खास किस्म का वाचिक कैमिकल हम पर रगड़ रहा था ताक़ि हमारे दाग पुख्ता और ताज़ा तरीन बनें रहें ..       उसका नाम न पूछो तुलसी सहित कई आदि कवियों ने राम को तो अमर कर दिया किंतु साथ ही साथ रावण का उल्लेख कर उ

फ़िर सत्ता के मद में ये ही,बन जाएंगे अभिसारी

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अमिय पात्र   सब   भरे   भरे   से  , नागों   को   पहरेदारी गली   गली   को   छान   रहें   हैं  , देखो   विष   के   व्यापारी , मुखर - वक्तता , प्रखर   ओज   ले   भरमाने   कल   आएँगे मेरे   तेरे   सबके   मन   में  ,  झूठी   आस   जगाएंगे फ़िर   सत्ता   के   मद   में   ये   ही , बन   जाएंगे   अभिसारी .................................. देखो   विष   के   व्यापारी , कैसे   कह   दूँ   प्रिया   मैं  , कब - तक   लौटूंगा   अब   शाम   ढले बम   से   अटी   हुई   हैं   सड़कें , फैला   है   विष   गले - गले . बस   गहरा   चिंतन   प्रिय   करना , खबरें   हुईं   हैं   अंगारी .................................. देखो   विष   के   व्यापारी , लिप्सा   मानस   में   सबके   देखो   अपने   हिस्से   पाने   की देखो   उसने   जिद्द   पकड़   ली   अपनी   ही   धुन   गाने   की , पार्थ   विकल   है   युद्ध   अटल   है   छोड़   रूप   अब   श्रृंगारी .................................. देखो   विष   के   व्यापारी ,

निर्लिप्त जननायक को भी नेपथ्य में ले जाने की क्षमता वाले लोग मौज़ूद हैं. : सुलभा बिल्लोरे

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                [इस आलेख में मेरे स्वम के विचार हैं ब्लाग के स्वामी से इस आलेख का कोई लेना देना नहीं है ]                       आज़ ही किसी ने वाट्स-अप पर एक ज़बरदस्त कोटेशन भेजा ... " उच्च स्तरीय सोच वाले   नित नूतन रास्ते तलाशते हैं.. सफ़लता के लिये सहज  और और सरल पथ क्या हों.. मध्यम स्तर की सोच वाले घटनाओं के विन्यास में व्यस्त होते हैं जबकि सामान्य सोच वाले केवल किसी व्यक्ति की प्रसंशा अथवा निंदा में डूबे रहते हैं …!!"   आज़कल तीसरी श्रेणी के लोगों की भरमार है. लोग एक दूसरे के छिद्रांवेषण में इतने मशगूल हो जाते हैं कि उनको अच्छा बुरा सब एक सा नज़र आता है. बोलते हैं तो इस तरह कि बोल नहीं रहे बल्कि जीभ से ज़हर बो रहे हैं.. और ये स्थितियां देश में सियासी मंचों पर बाक़ायदा आप हर अतरे-दूसरे दिन देख सुन रहें हैं.  मित्रो जो दिमागों में होता है वो  दिलों के रास्ते दुनियां तक आसानी से संचरित हो जाता है. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और फ़्रांस की    क्रांति (   French Revolution 1789-1799 )  सामंती आचरण के विरुद्ध उपजी  थी जबकि स्वातंत्र्योत्तर भारत की परिपक्व होती  प्रजातांत्रि

चावल के दानों पर हुए अत्याचार का प्रतिफ़ल: पोहा उर्फ़ पोया...

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गूगल बाबा के पास है पोहे का अकूत भंडार  दिनेश को अपनी बारी का इंतज़ार है..  हम  डिंडोरी जाते समय इसी महाप्रसाद  यानि पोहेका सेवन करते हैं सुबह-सकारे..!!   मित्रो पोएट्री जैसे मेरा प्रिय शगल है ठीक उसी तरह मेरे सहित बहुतेरे लोगों का शौक सुबह सकारे पोहा+ईट= पोहेट्री है.   पो्हे  के बारे  गूगल बाबा की झोली  किसम किसम की रेसिपी और सूचनाएं अटी पड़ी है. पर एक जानकारी हमने खोजी है जो गूगल बाबा के दिमाग में आज़ तलक नईं आई होगी कि हम बहुत निर्दयी हैं.. क्योंकि  हम चावल Rice के दानों पर हुए अत्याचार के प्रतिफ़ल पोहे सेवन कितना मज़ा ले लेकर करतें हैं.  जैसे ही ये भाव मन में आया तो मन बैरागी सा हो गया. किंतु दूसरे ही क्षण लगा बिना अत्याचार के हम अन्नजीवी हो ही नहीं सकते सो मन का वैराग्य भाव तुरंत ऐसे गायब हुआ जैसे किसी सरकारी  के मन से ऊपरी आय से घृणा भाव तिरोहित होता है. अस्तु ..आगे बांचिये . पोहा जबलईपुर में खासकर करमचन्द चौक पर सुबह-सकारे मिलता है तो  इंदोर (इंदौर) में किसिम किसिम के पोए चौराए चौराए (चौराहे-चौराहे) मिलते हैं. हम अपनी मौसेरी बहन के घर पहुंचे तो हमको सेओं-पोया,कांदा-पो

मुझे ऐसा मोक्ष नहीं चाहिये

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हां मां सोचता हूं  मुझे भी मुक्ति चाहिये..   वेदों पुराणों ने  जिसे मोक्ष  कहा है..! कहते हैं कि  सरिता में अस्थियों के प्रवाह से  मुक्ति मिलती है....  औरों की तरह मेरी अस्थियां भी सरिता में प्रवाहित होंगी..? मां, तुम्हारे पावन प्रवाह को मेरी अस्थियां  दूषित करेंगी न मुझे ऐसा मोक्ष नहीं चाहिये बार बार जन्म लेना चाहता हूं तुम्हारे तटों को बुहारने  तुमको पावन सव्यसाची मां कह के पुकारने मुझे जन्म लेना ही होगा..  मुक्ति मोक्ष न अब नहीं..  बस तेरे सुरम्य तटों पर  जन्मता रहूं.. बारंबार ...... कोल-भील-किरात- मछुआ  मछली- पक्षी- कछुआ  कुछ भी बनूं सुना है.... तेरे तट में  सब दिव्य हो जाते हैं...  मां... रेवा.... सच यही मोक्ष है न........

बेलगाम वक्ता मुलायम सिंह जी उर्फ़ नेताजी

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                जो दु:खी है उसे पीड़ा देना सांस्कृतिक अपराध नहीं तो और क्या है. नारी के बारे में आम आदमी की सोच बदलने की कोशिशों  हर स्थिति में हताश करना ही होगा. क़ानून, सरकार, व्यवस्था इस समस्या से निज़ात दिलाए यह अपेक्षा हमारी सामाजिक एवम सांस्कृतिक विपन्नता के अलावा कुछ नहीं. आराधना चतुर्वेदी "मुक्ति" ने अपने आलेख में इस समस्या को कई कोणों से समझने और समझाने की सफ़ल कोशिश की है. मुक्ति अपने आलेख में बतातीं हैं कि हर स्तर पर नारी के प्रति रवैया असहज है. आर्थिक और भौगोलिक दृष्टि से भी देखा जाए तो नारी की स्थिति में कोई खास सहज और सामान्य बात नज़र नहीं आती. मैं सहमत हूं कि सिर्फ़ नारी की देह पर आकर टिक जाती है बहसें जबकी नारी वादियों को नारी की सम्पूर्ण स्थिति का चिंतन करना ज़रूरी है. परन्तु सामाजिक कमज़ोरी ये है कि हिजड़ों पर हंसना, लंगड़े को लंगड़ा अंधे को अंधा  कहना औरत को सामग्री करार दिया जाना हमारी चेतना में बस गया है  जो सबसे बड़ा सामाजिक एवम सांस्कृतिक अपराध  है .                     आप सभी जानते हैं कि  औरतों, अपाहिजों,हिज़ड़ों को हर बार अपने आपको  को साबित करना होता है.

सक्षम चिरंजीवी भव:

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इन दिनों हमारे नेता सक्षम जी खूब मज़े ले रहे हैं सियासत के भी  सियासियों के भी पेशे से तो सक्षम जी मस्ती के थोक व्यापारी हैं.. पए इनका बिज़नस  अन्य से अलहदा है.कल की ही बात है... माइक मिला तो बस लगे हाथ में लेके कुछ कुछ बोलने .. मानो बोल रहे हों -" प्यार कैसे किया जा सकता है इस अंटी से पूछो ...!" बेचारे सक्षम जी क्या जाने ये क्या सभी ऐसेइच्च तो करतीं हैं.. हम सारे पति टाइप के लोगों की औक़ात इससे ज़्यादा कहां..? बताओ भला .. आप पार्टी के बाद ऐसा असर हुआ कि झाड़ू इकदम स्टार बन गई.. आव देखा देखा न ताव वो तो एक दिन हम पे ही तन गई.    फ़िर एकाएक चुप हो गये वे टी.वी. देख देख के जान चुके हैं कि - हिंदुस्तान में सारे फ़साद की जड़ में माइक का बड़ा भारी योगदान है.. ! अस्तु सक्षम जी माइक को कच्चा चबा जाने के गुंताड़े में लग गये एन वक़्त पे सामाजिक संस्था के कर्ताधर्ता ने सक्षम जी को समझाया-"न बेटे ऐसा नहीं करते लो सौंफ़ खाओ.. !!"           सौंफ़  के शौकीन भाई सक्षम ने  सौंफ़  मुट्ठी भरी और मुंह में दस पच्चीस दाने मुंह में गये होंगे बाक़ी केज़री कक्का वाली दिल्ली सरकार सरीखे बिखर गए ज़मी

महिला वोटर्स में 12.21% की बढ़त जबकि मात्र 7.31% पुरुष वोटर्स बढ़े

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भारतीय जनतांत्रिक व्यवस्था अब एक रोचक नुक्कड़ तक जा पहुंची है.. जहां से एक रास्ता जाता दिखाई देता है प्रजातांत्रिक मूल्यों के प्रति आस्था के शिखर पर पहुंचने का तो दूसरा आत्मविश्वास से लबालब जनतंत्र के मुख्य बिंदू यानी "वोटर" की "आत्मविश्वासी-पहल" तक जाने का. दौनों ही रास्ते पाज़िटिविटी से लबालब हैं ... ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि  अब मतदाता आत्मशक्ति से भरा पूरा नज़र आ रहा है.          वोट अब कीमती इस लिये भी है कि वोटर ने उसकी ताक़त को पहचान लिया. इस पहचान से परिचित कराने का श्रेय भारत के शक्तिवान निर्वाचन आयोग को देना भी गलत फ़ैसला नहीं है. मध्य-प्रदेश के आंकड़ों को देखिये पिछले लोकसभा चुनाव के सापेक्ष 09.71% वोटों का इज़ाफ़ा हुआ . और महिलाओं ने अपना पोलिंग परसेंट बढ़ाकर 12.21% जबकि पुरुष वोटर्स मात्र 7.31%  की वृद्धि दर्ज कर पाए.  प्रथम चरण में ग्रीन ज़ोन में जिन ज़िलों को रखा जाता है वो बेशक सराहना के पात्र हैं छिन्दवाड़ा 81.08 76.89 79.05 होशंगाबाद 71.11 59.65 65.76 मण्डला 69.21 64.08 66.68

नीरो नै पीरो न लाल रंग ले अपनई रंग में ..!!

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नीरो नै पीरो न लाल रंग ले अपनई रंग में ..!! ********* प्रीत भरी   पिचकारी   नैनन   सें   मारी मन भओ गुलाबी , सूखी रही सारी. हो गए गुलाबी से गाल रंग ले अपनई रंग में ..!! ********* कपड़न खौं रंग हौ तो रंग   छूट  जाहै तन को रंग पानी से तुरतई मिट जाहै सखियां फ़िर करहैं सवाल- रंग ले अपनई रंग में..!! ********* प्रीत की नरबदा मैं लोरत हूं तरपत हूं तोरे काजे खुद  सै रोजिन्ना  झगरत हूं मैंक दे नरबदा में जाल – रंग ले अपनई रंग में..!! ********

तुम चुप क्यों हो कारण क्या है ?

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तुम चुप क्यों हो कारण क्या है ? गुमसुम क्यों हो   कारण क्या है ? जलते देख रहे हो तुम भी प्रश्न व्यवस्था के परवत पर क्यों कर तापस वेश बना के, जा बैठै बरगद के तट पर    हां मंथन का अवसर है ये   स्थिर क्यों हो कारण क्या है अस्ताचल ने भोर प्रसूती उदयाचल में उभरी शाम निशाआचरी संस्कृति में नित उदघोष वयंरक्षाम रावण युग से ये युग आगे रक्ष पितामह रावण क्या है एक दिवंगत सा चिंतन ले, चेहरों पे ले बेबस भाव व्यवसायिक कृत्रिम मुस्कानें , मानस पे है गहन दबाव समझौतों के तानेबाने क्यों बुनते हो कारण क्या है ? भीड़ तुम्हारा धरम बताओ, क्या है क्या गिरगिट जैसा है किस किताब से निकला है ये- धर्म तुम्हारा किस जैसा है , हिंसा बो   विद्वेष उगाते फ़िरते हो क्यों, कारण क्या है ?