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मंगलवार, अप्रैल 15, 2014

मुझे ऐसा मोक्ष नहीं चाहिये

हां मां सोचता हूं 
मुझे भी मुक्ति चाहिये.. 
वेदों पुराणों ने 
जिसे मोक्ष  कहा है..!
कहते हैं कि 
सरिता में अस्थियों के प्रवाह से 
मुक्ति मिलती है.... 
औरों की तरह मेरी अस्थियां भी
सरिता में प्रवाहित होंगी..?
मां,
तुम्हारे पावन प्रवाह को मेरी अस्थियां 
दूषित करेंगी
न मुझे ऐसा मोक्ष नहीं चाहिये
बार बार जन्म लेना चाहता हूं
तुम्हारे तटों को बुहारने 
तुमको पावन सव्यसाची मां कह के पुकारने
मुझे जन्म लेना ही होगा.. 
मुक्ति मोक्ष न अब नहीं.. 
बस तेरे सुरम्य तटों पर 
जन्मता रहूं..
बारंबार ......
कोल-भील-किरात- मछुआ 
मछली- पक्षी- कछुआ 
कुछ भी बनूं सुना है....
तेरे तट में 
सब दिव्य हो जाते हैं... 
मां... रेवा.... सच यही मोक्ष है न........




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