[इस आलेख में मेरे स्वम के विचार हैं ब्लाग के स्वामी से इस आलेख का कोई लेना देना नहीं है ]
आज़ ही किसी ने वाट्स-अप पर एक ज़बरदस्त कोटेशन भेजा ... " उच्च स्तरीय सोच वाले नित नूतन रास्ते तलाशते हैं.. सफ़लता के लिये सहज और और सरल पथ क्या हों.. मध्यम स्तर की सोच वाले घटनाओं के विन्यास में व्यस्त होते हैं जबकि सामान्य सोच वाले केवल किसी व्यक्ति की प्रसंशा अथवा निंदा में डूबे रहते हैं…!!"
आज़कल तीसरी श्रेणी के लोगों की भरमार है. लोग एक दूसरे के छिद्रांवेषण में इतने मशगूल हो जाते हैं कि उनको अच्छा बुरा सब एक सा नज़र आता है. बोलते हैं तो इस तरह कि बोल नहीं रहे बल्कि जीभ से ज़हर बो रहे हैं.. और ये स्थितियां देश में सियासी मंचों पर बाक़ायदा आप हर अतरे-दूसरे दिन देख सुन रहें हैं. मित्रो जो दिमागों में होता है वो दिलों के रास्ते दुनियां तक आसानी से संचरित हो जाता है.
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और फ़्रांस की क्रांति ( French Revolution1789-1799) सामंती आचरण के विरुद्ध उपजी थी जबकि स्वातंत्र्योत्तर भारत की परिपक्व होती प्रजातांत्रिक व्यवस्था में भारत को ऐसी किसी नकारात्मक राजनैतिक विद्रूपता की आवश्यकता नहीं है जो हिंसा,घृणा तक सत्ता के व्यामोह में फ़ंस कर किसी भी हद गिरा जावे . किंतु सत्ता का चिरयौवन किसे सम्मोहित न करेगा यही सम्मोहन चिंतन पर सहज़ ही विपरीत प्रभाव डालता है जिसकी परिणिती बेलग़ाम अभिव्यक्ति के रूप में अवतरित होती है. यहां यह कहना आवश्यक है कि क्रियेशन के लिये आवश्यकतानुसार विध्वंस आवश्यक है.. यानि हर पुनर्रचना को विध्वंस की ज़रूरत नेहीं होती .
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और फ़्रांस की क्रांति ( French Revolution1789-1799) सामंती आचरण के विरुद्ध उपजी थी जबकि स्वातंत्र्योत्तर भारत की परिपक्व होती प्रजातांत्रिक व्यवस्था में भारत को ऐसी किसी नकारात्मक राजनैतिक विद्रूपता की आवश्यकता नहीं है जो हिंसा,घृणा तक सत्ता के व्यामोह में फ़ंस कर किसी भी हद गिरा जावे . किंतु सत्ता का चिरयौवन किसे सम्मोहित न करेगा यही सम्मोहन चिंतन पर सहज़ ही विपरीत प्रभाव डालता है जिसकी परिणिती बेलग़ाम अभिव्यक्ति के रूप में अवतरित होती है. यहां यह कहना आवश्यक है कि क्रियेशन के लिये आवश्यकतानुसार विध्वंस आवश्यक है.. यानि हर पुनर्रचना को विध्वंस की ज़रूरत नेहीं होती .
कल जब आज़ का दौर इतिहास होगा तब अन्ना हज़ारे का अभ्युदय फ़िर अचानक नेपथ्य में जाना आकस्मिक दुर्घटना ही माना जावेगा . इसके तथ्यांवेषण में एक नहीं कई नाम शामिल किये जावेगें जो अन्ना की सामाजिक क्रांति को सियासत के छोर तक ले जाने के मोहपाश में आज़ नज़र आ रहे हैं. यानी आज़ जन समुदाय की क्रांति को आधार देने वाले निर्लिप्त जननायक को भी नेपथ्य में ले जाने की क्षमता वाले लोग मौज़ूद हैं. जहां तक सेक्यूलरिज़्म का सवाल है सेक्यूलर होने का दावा करने वाली पार्टियां खुद एक धर्म विशेष को अछूत बनाने में पीछे क़तई नहीं रहतीं . शाज़िया का ये कथन सुन के आप खुद ही फ़ैसला कीजिये कि क्या शाज़िया सही हैं..जो प्रोवोग करतीं नज़र आ रहीं हैं