जो दु:खी है उसे पीड़ा देना सांस्कृतिक अपराध नहीं तो और क्या है. नारी के बारे में आम आदमी की सोच बदलने की कोशिशों हर स्थिति में हताश करना ही होगा. क़ानून, सरकार, व्यवस्था इस समस्या से निज़ात दिलाए यह अपेक्षा हमारी सामाजिक एवम सांस्कृतिक विपन्नता के अलावा कुछ नहीं. आराधना चतुर्वेदी "मुक्ति" ने अपने आलेख में इस समस्या को कई कोणों से समझने और समझाने की सफ़ल कोशिश की है. मुक्ति अपने आलेख में बतातीं हैं कि हर स्तर पर नारी के प्रति रवैया असहज है. आर्थिक और भौगोलिक दृष्टि से भी देखा जाए तो नारी की स्थिति में कोई खास सहज और सामान्य बात नज़र नहीं आती. मैं सहमत हूं कि सिर्फ़ नारी की देह पर आकर टिक जाती है बहसें जबकी नारी वादियों को नारी की सम्पूर्ण स्थिति का चिंतन करना ज़रूरी है. परन्तु सामाजिक कमज़ोरी ये है कि हिजड़ों पर हंसना, लंगड़े को लंगड़ा अंधे को अंधा कहना औरत को सामग्री करार दिया जाना हमारी चेतना में बस गया है जो सबसे बड़ा सामाजिक एवम सांस्कृतिक अपराध है .
आप सभी जानते हैं कि औरतों, अपाहिजों,हिज़ड़ों को हर बार अपने आपको को साबित करना होता है. कि वे देश के विकास का हिस्सा हैं.. अगर इस वर्ग को देखा जाता है तो तुरंत मन में संदेह का भाव जन्म ले लेता है कि "अरे..! इससे ये काम कैसे सम्भव होगा.....?" सारे विश्व में कमोबेश ऐसी ही स्थिति है.. .. सब अष्टावक्र रूज़वेल्ट को नहीं जानते, सबने मैत्रेयी गार्गी को समझने की कोशिश कहां की. यानी कुल मिला कर सामाजिक सांस्कृतिक अज्ञानता और इससे विकास को कैसे दिशा मिलेगी चिंतन का विषय है.
इससे आगे मुलायम सिंह जी उर्फ़ नेताजी का चिंतन आज़ के दौर में एक दोयम दर्ज़े का घटिया और गलीच चिंतन है. गुंडों को (कदाचित चुनाव जीतने के यंत्रों को) बचाने नेताजी का बयान दुख:द घटना है. पर उनके इस चिंतन पर गोया उनका भूत तारी है. शायद उनके पिता ने यही कह उनको माफ़ी दे दी होगी.
किसी मूर्ख अधिकारी के मुंह से सुना-"कमज़ोर पेदा होता ही मर जाने के लिये..!" यानी दमन के लिये प्रेरक ऐसी अवधारणाओं को लेकर मुलायम सिंह जैसे कठोर एवम कुत्सित विचारक अगर बोलते हैं तो सामंती दौर का अहसास किया जा सकता है. सच कितना कढ़वा बोलते हैं लोग इतना सोच लें कि उनके घरों में नारीयां भी हैं तो शायद गलीच वाक्य न बोल पाते . आने वाले कल को किसने देखा न जाने उनकी आने वाली पीढ़ी जब अपने ऐसे दुराग्रही पूर्वज़ों के बारे में सोचेगी तो क्या सोचेगी .......
खैर..... सब मुलायम की तरह कठोर और कुंठित नहीं होते... चलिये आप हम अपनी सोच को पावन बनाएं रखें.. हिज़ड़ों से शुभकामनाएं लें....अपाहिज़ों के अंतस में उर्ज़ा का संचरण करें.. औरतों का सम्मान करें