27.4.14

उनको आस्तीन में सम्हाल के रखने की ज़ुर्रत

       
मेरा एक अभिन्न मित्र 
 
भाई आदतन किसी को भी ह्यूमलेट करने के आदी हैं  एक बात माननी पड़ेगी बंदा है बहुत दिमाग़दार जो कहता और करता है सटीक यानी उसका निशाना सदा ही केवल उसी को लाभ पहुंचाने वाला होता है.. कुल मिला कर मैने भी इस हुनर को सीखने उसे अपनी आस्तीन में महफ़ूज़ रखा है. बाहार जाएगा क्या मालून कौन उसका एपीसोड खत्म कर दे ... ? 
           अब हमने उसे भाई कहा है तो क़रीबी होगा हमारे लंगोटिया यार है भाई.. अपना... हां न सिर्फ़ लंगोटिया बल्कि पोतड़िया यार है.. डा. सुले मैडम के हस्पताल में हम दौनों साथ ही साथ प्रसूते थे. तब से अब तक दोस्ती सलामत दोस्ताना सलामत केवल हम सलामत नहीं कुछ दाग लगवाए हम पर उस रासायनिक दुष्कर्म में  उस भाई का अहम रोल था. दाग धोने में खूब मदद की ऐसा लोगों को लगा पर सच तो ये है कि वो केवल हमारे दाग-धोने में अपने अवदान को रेखांकित करता रहा वास्तव में उसने खास किस्म का वाचिक कैमिकल हम पर रगड़ रहा था ताक़ि हमारे दाग पुख्ता और ताज़ा तरीन बनें रहें ..
      उसका नाम न पूछो तुलसी सहित कई आदि कवियों ने राम को तो अमर कर दिया किंतु साथ ही साथ रावण का उल्लेख कर उसे भी अमरत्व प्रदान कर उसे ऐतिहासिक बनाया पर मैं उन सहृदयी कवियों में नहीं यक़ीनन मैने  उन मित्रों का नाम कभी न तो लिखा और न ही लिखूंगा  क्यों कि मैने उनसे आनुपातिक दूरी कायम कर ली है.. ये अलग बात है कि उनको आस्तीन में  सम्हाल के रखने की ज़ुर्रत की है. 
        न जाने दुनिया को क्या हो गया है.. आज़कल रिश्ते रिस रहे हैं.. मज़बूरी हो गया है इन नातों को ढोना लोगों के लिये ... दरअसल अब तो रिश्ते सामयिक आवश्यकता आधारित होते हैं.. अब रिश्तों को लेकर गंभीर होना निरी बेवकूफ़ी मानी जाती है . जो भी हो देश परदेश में अवसरानुसार मैत्री भले आवश्यक हो किंतु सतत मानसिक जुड़ाव वाली मैत्री का पाठ कृष्ण ने पढ़ा है तो हमें पश्चिमी बुनावट वाले नाते क्यों पसंद आने लगे हैं.. जो आधारित हैं.. "आज नाता :कल बाय बाय टाटा "   वाले सिद्धांत पर रिश्ते पोर्टेबल भी हो चले हैं नैनो भी... जितना विस्तार का अवसर मिल रहा है हमें उतने ही हम सिमट रहे हैं.. अब आप का माथा दु:ख रहा होगा न कि भाई की कथा सुनाते सुनाते ये क्या हम तत्व विश्लेषण करने लगे तो भाई हम मजे मंजाए लिक्खाड़ हैं सुनिये हम उसी बनाम उन्हीं मित्रों की बात कर रहे जिनसे रिसता है मित्रता का रिश्ता ...... कमीनगी तो देखिये ज़नाब मुझसे मिलकर गया नामाकूल मेरे सामने मेरे सुखी रहने की कामना करके गया .. और किसी आदमखोर रसूखदार को मेरी चुगली कर रहा था अन्य आदमखोरों के साथ  .. तभी से मैने तय किया है है इन पीठ पर वार करने वालों को अपनी आस्तीन में रख लूं लोग बाजुएं काटते हैं.. जिसके लिये मैं तैयार हूं .. मेरी तो बाजुएं कटेंगी वैसे भी अधूरा हूं  पर बाजुओं में रहने वाले का क्या हश्र होगा आप समझ ही गए होगे न अब तक.... तो भाईयो....... सककर्मियों ... आस्तीन में रहना चाहोगे.. तो बता देना


कवि अमृत ”वाणी” ने चुटीले अंदाज़ में आस्तीन वालों का कुछ यूं सम्मान किया है..

सांप हमें क्या काटेंगे
हमारे जहर से
वे बेमौत  मरे जायेंगे
अगर हमको काटेंगे ?

कान खोल कर सुनलो
विषैले   सांपो
वंश समूल नष्ट  हो जायेगा
जिस दिन हम तुमको काटेंगे
क्यों

क्योंकि
हम आस्तीन के सांप हे |


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अंतिम सत्य 

What is the difference between welding and wedding .
In welding there are sparks first and bonding later, whereas in wedding there is bonding first and sparks later. 
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