भारतीय जनतांत्रिक व्यवस्था अब एक रोचक नुक्कड़ तक जा पहुंची
है.. जहां से एक रास्ता जाता दिखाई देता है प्रजातांत्रिक मूल्यों के प्रति आस्था के शिखर पर पहुंचने का तो दूसरा आत्मविश्वास से लबालब जनतंत्र के मुख्य बिंदू यानी "वोटर" की "आत्मविश्वासी-पहल" तक जाने का. दौनों ही रास्ते पाज़िटिविटी से लबालब हैं ... ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि अब मतदाता आत्मशक्ति से भरा पूरा नज़र आ रहा है.
वोट अब कीमती इस लिये भी है कि वोटर ने उसकी ताक़त को पहचान लिया. इस पहचान से परिचित कराने का श्रेय भारत के शक्तिवान निर्वाचन आयोग को देना भी गलत फ़ैसला नहीं है. मध्य-प्रदेश के आंकड़ों को देखिये पिछले लोकसभा चुनाव के सापेक्ष 09.71% वोटों का इज़ाफ़ा हुआ . और महिलाओं ने अपना पोलिंग परसेंट बढ़ाकर 12.21% जबकि पुरुष वोटर्स मात्र 7.31% की वृद्धि दर्ज कर पाए.
प्रथम चरण में ग्रीन ज़ोन में जिन ज़िलों को रखा जाता है वो बेशक सराहना के पात्र हैं
छिन्दवाड़ा
|
81.08
|
76.89
|
79.05
|
होशंगाबाद
|
71.11
|
59.65
|
65.76
|
मण्डला
|
69.21
|
64.08
|
66.68
|
बालाघाट
|
69.14
|
67.04
|
68.1
|
शहडोल, सतना और जबलपुर, जिलों को पीले ज़ोन में रखा जा सकता है...
शहडोल
|
65.6
|
58.57
|
62.2
|
सतना
|
64.82
|
60.28
|
62.68
|
जबलपुर
|
62.2
|
54.48
|
58.53
|
सबसे पीछे रहने वाले ज़िलों में रीवा, सीधी जिले रहे जिनको लाल क्षेत्र में वर्गीकृत किया है
रीवा
|
55.84
|
51.58
|
53.84
|
सीधी
|
59.72
|
53.67
|
56.86
|
जिन जिलों में महिलाओं ने पोलिंग में कम हिस्सेदारी दिखाई उनका वोटिंग प्रतिशत भी कम ही रहा.
क्यों बढ़ा मतदान का प्रतिशत ?
वोटिंग के बाद अचानक सभी आश्चर्य चकित हैं कि क्या हुआ कि अचानक मतदान के प्रतिशत में एकाएक वृद्धि हो गई. बात दरअसल ये थी कि निर्वाचन आयोग का लक्ष्य था कि कम से कम दस फ़ीसदी इज़ाफ़ा हो. इस लक्ष्य को लेकर
सिस्टमेटिक वोटर्स एजुकेशन एण्ड इलेक्ट्रोलपार्टिसिपेशन यानी स्वीप के तहत वोटर्स को एज़ूकेट किया गया . जिस जिले में जितने प्रभावशाली ढंग से इस प्लान को तैयार कर लागू किया उस ज़िले में पोलिंग प्रतिशत उसी तेज़ी से पोलिंग परसेंट बढ़ा है.
महिला वोटर्स की अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी के कारण की पतासाज़ी में एक महत्वपूर्ण बिंदु स्पष्ट हुआ है कि - स्वीप गतिविधियों महिलाओं ने मोर्चा सम्हाला था. सी.ई.ओ. डिंडोरी श्री कर्मवीर शर्मा को शुरु से भरोसा था कि महिलाएं कुछ ही नहीं बहुत कुछ कर पाएंगीं.श्री कर्मवीर शर्मा |
.आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, सहायिकाओं, आशा एवम उषा वर्कर्स के लिये एक नया काम था पर अनजाना नहीं. हमने थमा दी उनके हाथों में एक ज़िम्मेदारी वोट अपील की .. तरीका भी सुझाए कि सबसे पहले महिलाऒं को जोड़िये . लोकगीतों के लिये न्योता दिया गया गांव गांव महिलाओं के हाथ थमाई ढोलक झांझ मंजीरे और उनके अपने गीत अपनी राग ..हर सभा में बेटियां हाथों में मेंहदी लगा रहीं थीं. कुछ बालिकाएं बहुएं रांगोली बनाने आईं . और फ़िर संवाद कायम हुआ. फ़िर बात हुई.. पर्ची के साथ न्योता दिया पीले चावल वाला कुल मिला कर आत्मीय सांस्कृतिक परिवेश जो गांव के लिये ज़रूरी था . परिणाम दिखा भी सम्मान सहित न्यौता देने का
आप खुद देखिये पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या ? पोलिंग आंकड़े भी यही तो कह रहें हैं. बेशक भारतीय प्रज़ातांत्रिक व्यवस्था एक नये नुक्कड़ पर है जहां से जाने वाला हर रास्ता पाज़िटिविटी की ओर जाता है..
10 अप्रैल 2014 को हर कंट्रोल रूम में बैठे जिलों के डी एम’स डिंडोरी कलेक्टर साहिबा श्रीमति छवि भारद्वाज़ की तरह बेहद प्रफ़ुल्लित हो रहे थे जो 10% वोटिंग के लक्ष्य को पार होता देख रहे थे .