17.10.22
16.10.22
बौद्ध मत : विस्तार सीमाएं तथा नव-बुद्धिज्म
14 अक्टूबर
300 BCE में सम्राट अशोक बौद्ध
हुए थे। इसी दिन को अशोक विजयादशमी के रूप में भी मनाया
जाता है।
बीबीसी के
अनुसार दीक्षा ग्रहण करने का क्रम आज़ से 66 वर्ष से जारी है , परंतु यह अर्ध्दसत्य है पूर्ण सत्य है कि- 300 ईसा पूर्व से जारी है।
महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म 563 BCE में हुआ । उनको
तत्व ज्ञान होने के उपरांत बुद्धिज़्म का प्रसार भी होने लगा ।
बुद्ध के प्रवचनों का जन मानस पर सीधा एवम गहरा प्रभाव पड़ता था। बौद्धमत, का विस्तार भारत एवं विश्व के अधिकांश हिस्सों में हज़ारों साल पहले होना प्रारम्भ हो चुका था।
आप जानते ही हैं कि बुद्ध ने पंचशील का प्रवर्तन किया, उसका प्रबोधन भी किया. जो जन-मन मानस के लिए नया विज़न था .
1. किसी जीवित वस्तु को न ही नष्ट करना और न ही कष्ट पहुंचाना।
2. चोरी अर्थात दूसरे की संपत्ति की धोखाधड़ी या हिंसा द्वारा न हथियाना और न उस पर कब्जा करना।
3. झूठ न बोलना।
4. तृष्णा न करना।
5. मादक पदार्थों का सेवन न करना।
फिर अष्टांग योग का प्रबोधन भी कम प्रभावी न था ...
बुद्ध मानते थे कि संसार में दु:ख के समापन के लिए बुद्ध ने आर्य अष्टांग मार्ग
निर्धारित किया.........–
1. सम्यक दृष्टि, अर्थात अंधविश्वास से मुक्ति।
2. सम्यक संकल्प, जो बुद्धिमान तथा उत्साहपूर्ण व्यक्तियों के योग्य
होता है।
3. सम्यक वचन अर्थात
दयापूर्ण, स्पष्ट तथा
सत्य भाषण।
4. सम्यक आचरण अर्थात
शांतिपूर्ण, ईमानदारी
तथा शुद्ध आचरण।
5. सम्यक जीविका अर्थात किसी
भी जीवधारी को किसी भी प्रकार की क्षति या चोट न पहुंचाना।
6. अन्य सात बातों में सम्यक
परिरक्षण।
7. सम्यक स्मृति अर्थात एक
सक्रिय तथा जागरूक मस्तिष्क, और
8. सम्यक समाधि अर्थात जीवन के गंभीर रहस्यों के संबंध में गंभीर विचार।
मेरे मतानुसार बुद्ध का यह लोक-दर्शन ही धम्म के लोक व्यापीकरण तेज़ी से हुआ है और होता भी है.
प्रमुख विस्तारक के रूप में प्रियदर्शी
अशोक ने किया। प्राचीन इतिहासकार कहते हैं कि -" बुद्धिज्म बुद्ध के उपरांत तेजी से राजाश्रय के साथ विकसित एवं विस्तारित हुआ है । श्रीलंका चीन
हांगकांग, थाईलैंड, बर्मा जापान
अफगानिस्तान के रास्ते मध्य एशिया के देशों सहित इस
विचारधारा ने विस्तार पाया। बौद्ध इसे धम्म कहते हैं। कई विचारकों का मानना है कि
इस विचारधारा ने सीरिया तक विस्तार किया था, किंतु
अवेस्टा के प्रसार से इस विचारधारा को सीमित रहना पड़ा। यहां यह कहना एकदम सटीक
नहीं है कि- "केवल अवेस्टा के कारण ही ऐसा हुआ। बल्कि इसके कई और कारण थे.. आइए
देखते हैं हम कि और क्या कारण हो सकते हैं बुद्धिज्म के विस्तार के रुक जाने के...
सबसे
पहले बताना चाहता हूँ कि- धर्म में में एक विशेष गुण होता है - कि इसका विस्तार सत्ता के जरिए न होकर दार्शनिक
महापुरुषों के जरिए होता है, जबकि अन्य सभी संप्रदायों/मतों का विस्तार
राज्य के प्रमुख द्वारा कराया जा सकता है और ऐसा हुआ भी है.। संप्रदायों की यह
प्रवृत्ति स्वभाविक है।
सनातन के अलावा जैन केवल जैन
मत ही एक ऐसा सोशल रिवॉल्यूशन कहा जा सकता है जो राजा महाराजाओं के दखल के बिना
अथवा अल्प दखल से विस्तारित हुआ है।
बौद्ध मत को मानने वाले राजाओं
ने न केवल अपने राज्य का विस्तार किया बल्कि बुद्धिज्म को भी विस्तार दिया।
बुद्ध
के विचार सहज स्वीकार्य क्यों ?
महात्मा बुद्ध के सिद्धांतों
में अहिंसा करुणा दया और आत्म विकास तपस्या समभाव जो उपनिषदों का निचोड़ है के प्रचार करने के लिए
प्रभावी कदम उठाने से बुद्धिज्म सरलता से जन सामान्य को स्वीकार्य हुआ। परंतु इसका
यह अर्थ नहीं कि केवल बौद्ध भिक्षुको द्वारा ही विस्तार किया गया हो । गौतम बुद्ध
के विचारों के विस्तार के लिए राजश्रय से
भी प्राप्त हुआ।
दीर्घकाल
में बुद्धिज्म में भी मानवीय महत्वाकांक्षा एवं लोकेशणा के चलते, बुद्धिज्म
प्रभावित होने लगा। बुद्धिज्म में सब कुछ अति उत्तम होने के बावजूद भी एक और कमी
थी जिसे सांस्कृतिक आकर्षण का अभाव कहा जा सकता है। परिणाम स्वरूप सामान्य
व्यक्तियों ने इसे अस्वीकार करना प्रारंभ कर दिया। और यहीं से बुद्धिज्म का
विस्तार रुकने लगा। मनुष्य के जीवन में व्यक्तिगत एवं सामूहिक उत्सव के महत्व को
नकारा नहीं जा सकता। उसे मनोरंजन भी चाहिए उसकी इंद्रियों के सुख की पूर्ति के लिए
भी जीवन आवश्यक संसाधन जुटाना चाहता है। लेकिन वैराग्य का अतिरेक मनुष्य जीवन को
जटिल बना देता है। शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति ना होने पर अर्थात डिजायर्स की
पूर्ति का अभाव कुंठा को जन्म देता है। जीवन प्रणाली के लिए अनुकूलता के महत्व को
अधिकृत नहीं किया जा सकता। शनै शनै बुद्धिज्म का स्थानीय विस्तार भौगोलिक एवं
सामाजिक रुप से क्रमशः रुकता चला गया।
वैसे यह सर्वव्यापी है कि-"बौद्धमत का आधार सनातन ही है". साथ ही एक बिंदु सनातन का असली संवाहक “सन्यासी ही नहीं
बल्कि सद-गृहस्थ भी होता है.”
क्रमश: जारी अगले भाग में
बुद्धके विचारों के पुन: प्रचारित/स्थापना का प्रयास
11.10.22
प्रयत्नशैथिल्यानन्तसमापत्तिभ्याम् : सलिल समाधिया अपने जन्म पर्व पर
6.10.22
"हाँ भई..नमक का दरोगा है गुजरात..!"
एक प्रोफेसर के एक ट्वीट ने हंगामा बरपा दिया है। महामहिम राष्ट्रपति ने जब कहा कि भारत की 70% आबादी गुजरात का नमक खाती है। तो इस बात को अन्य अर्थों में ले जाते हुए पॉलिटिकल रंगों में रंगने की कोशिश करने वाले एक राजनीतिक दल के नेता ने महामहिम के वक्तव्य की न सिर्फ आलोचना की बल्कि उनके विरुद्ध अनाप-शनाप बातें ट्विटर पर कर दीं।
मित्रों, वास्तव में भारत में नमक का दरोगा अगर है तो वह गुजरात ही है। गुजरात के जामनगर, मीठापुर, झाखर, चैरा, भावनगर, राजुला, गांधीधाम, कांधला, मालिया और लावणपुर. सहित 15 जिलों में दैनिक उपयोग के नमक का उत्पादन होता है। जबकि तमिलनाडु में तूतीकोरिन, वेदारानयम, कोवलांग. आंध्र प्रदेश में चिन्नागंजम, इसकापल्ली, कृष्णापट्टम, काकीनाड़ा और नौपाडा. महाराष्ट्र में भांडप, भायंदतर और पालघर. ओडिसा में गंजम और सुमादी. पश्चिम बंगाल में कोंतेई
राजस्थान में झीलों सांभर, नेवा, राजस, कुच्चाम, सुजानगढ़ और फलोदी हैं आदि झीलों में नमक की मौजूदगी है.
जमीन के नमक उत्पादन कच्छ के रण में कारागोंडा, धरंगधारा और संथालपुर मैं होता है.
पहाड़ियों पर भी नमक का उत्पादन किया जाता हिमाचल प्रदेश में इसका उत्पादन होता है।
विश्व में नमक का उत्पादन करने वाले प्रथम तीन देशों में अमेरिका चीन और भारत का नाम है। भारत में सर्वाधिक नमक गुजरात के समुद्र तटीय इलाकों से उत्पादित होता है जिसकी आपूर्ति भारत की 70% आबादी के लिए की जाती है। पूरे देश में 11799 यूनिट है.
सेंधा नमक राजस्थान के सांभर नामक झील से प्राप्त होता है। परंतु पाकिस्तान में सेंधा नमक के उत्पादन के सापेक्ष भारत में इसकी उत्पादन क्षमता और गुणवत्ता उतनी नहीं है जितनी पाकिस्तान से आने वाले नमक में है।
नमक को लेकर भारतीय फिल्म शोले का एक डायलॉग मुझे याद आ रहा है तेरा क्या होगा कालिया? सरदार मैंने आपका नमक खाया। तो फिर आपको याद होगा कि सरदार ने क्या कहा अब गोली खा. इसी तरह मुंशी प्रेमचंद नमक का दरोगा कहानी लिखकर ईमानदारी की पराकाष्ठा का आकलन प्रस्तुत किया था। कुछ लोग सैलरी मिलते ही सबसे पहले नमक खरीदते हैं। जबकि कुछ खीर में मिठास की समृद्धि को बढ़ाने के लिए चुटकी भर नमक डाल देते हैं। नमक कभी किसी के हाथ में नहीं दिया जाता वरना उस व्यक्ति से झगड़ा हो जाता है । नमक हलाल नमक हराम ई जैसे शब्द बड़े मायने रखते हैं। जबकि कुछ लोग ऐलान करते हुए सीना तान कर यह कहते हुए सुने गए कि-"मैंने तुम्हारा नमक थोड़ी खाया है जो तुम्हारी गुलामी करूंगा ..?"
नमक का सीधा संबंध नैतिकता से जोड़ा जाता है यह सही है कि भारत में कुल खपत होने वाली नमक की मात्रा का लगभग 70% से अधिक हिस्सा गुजरात से आता है। गांधी और वर्तमान प्रधानमंत्री भी गुजरात से आते हैं गुजरात में महात्मा जी ने नमक सत्याग्रह प्रारंभ किया था। भारत में नमक का उत्पादन बहुत पुराना है। आयुर्वेद में भी नमक के इस्तेमाल का विवरण प्राप्त है। कहने का अर्थ यही है कि-" सच में गुजरात भारत में नमक का दरोगा है। नमक को लेकर कुछ अवधारणाएं कुछ मिथक तथा कुछ भ्रांतियां हैं..! परंतु हमारे पॉलिटिकल विचारक अध्ययन करते हैं और बातें अधिक करते हैं। विगत 2 दिनों से एक विद्वान प्रोफ़ेसर जो पॉलिटिकल भी हैं ने महामहिम राष्ट्रपति जी के बयान पर सवाल खड़ा करने के लिए ट्वीट कर दिया। इस समय उनके कारण सोशल मीडिया के प्लेटफार्म ट्विटर का माहौल नमकीन सा हो गया है। इसके साथ साथ लोगों को बात करने का मौका भी नहीं दिया। जब तक पूरी जानकारी न हो तब तक हमें कुछ बोलना अथवा लिखना नहीं चाहिए। अब प्रोफेसर डॉ उदित राज के ट्वीट को ही देख लीजिए महामहिम पर सवाल उठाकर वह अब जनता के आकर्षण का केंद्र बन गए हैं। दशहरा मना कर फुर्सत हुई जनता सोशल मीडिया पर टिकलियां फोड़ते नजर आ रही है ।
4.10.22
जबलपुर का दशहरा : 400 वर्ष से अधिक पुरानी परंपरा (लेखक प्रशांत पोळ )
अगर हमारे सींग होते..!
अगर हमारे सींग होते तब क्या होता ? कभी सोचा है आपने ?
सोचा तो हमने भी न था पर शहर की सजावट और दुर्गा उत्सव की हलचल देखते हुए अचानक फुटपाथ पर बोरा बिछा कर बैठे एक विक्रेता से हमारी श्रीमती जी ने सींग खरीदने की इच्छा जाहिर की..?
हमने कहा - इसकी जरूरत कहां है आपको .. पिछले बरस तो हम आपकी जीभ की पूजा कर अपनी विजयादशमी को सिद्ध कर चुके थे परंतु इस बार मैं नहीं चाहता कि आप इस तरह का कोई शस्त्र खरीदें..!
ऑटो रोककर हमने वही किया उन्होंने तय किया था। मनुष्य प्रस्तावित करता है और उसका निराकरण ईश्वर करता है यह कहावत बिल्कुल झूठी है पति-पत्नी के संदर्भ में। पति प्रस्तावित करता है पत्नी उसे डिस्पोज करती है। और पति की क्या मजाल की पत्नी द्वारा प्रस्तावित कोई भी प्रस्ताव निर्णायक मोड़ पर न ला सके..? मेरी अकेले की आत्मकथा नहीं है।
तुम पढ़ रहे हो ना अगर विवाहित पुरुष तो तुम्हारी यही समस्या है लिख कर दे दूं.. ? धोखे से कुंवारे लड़के अगर इस विवरण को पढ़ रहे होंगे अपने सोना बाबू वाले इवेंट मुक्त होकर तो भैया जान लो यह तुम्हारा भी भविष्यफल है। सोना बाबू वाला लफड़ा जब से युवाओं के बीच पनप रहा है जब से लड़के इस समस्या के अभ्यस्त हो गए हैं।
चलो मूल विषय पर आते हैं। अगर
हमारे सींग होते तो क्या होता और क्या न होता...?
हमने इस बारे में श्रीमती जी से पूछ लिया कि अगर वास्तव में हमारे सींग होते तो क्या होता..?
" क्या ही होता एक तो सूट सिर में घुसाने में बड़ी तकलीफ होती। और क्या ब्यूटी पार्लर का खर्चा दुगना हो जाता । केश सज्जा के साथ-साथ सींग सज्जा के लिए बजट तुम्हारा कि बिगड़ता मुझे क्या? यह कहकर वे अपने कामकाज में व्यस्त हो गई।
बात तो सही है अगर सींग होते तो कितनी ही मजबूत माचो बनियान होती जल्दबाजी में फट जाती और नुकसान हमारा ही होता। सबसे ज्यादा परंपरागत बनने वालों का नुकसान होना तय था। जैसे कोई बुजुर्ग दादाजी सिर हिला हाथ हिला बस कुर्ते में छेद
हां यह बात सही है अब शब्दों का प्रयोग नहीं होता डायरेक्ट सींग से जवाब दिया जाता। सरकार को इंडियन पैनल कोर्ट की धाराओं में बदलाव लाना पड़ता ।
जब किसी से नाराजगी के बाद बहुत दिनों बाद मिलो तो उसका यही वाक्य होता है-" आजकल तुम हमसे मिलते ही नहीं क्या हमारे सींग निकले हैं..?
या फिर कोई यह भी पूछता है -"कहां नदारद थे, गधे के सिर पर सींग की तरह गायब..!"
इस तरह के सवालों का कोई औचित्य न रह जाता।
सींगों की मौजूदगी में सबसे ज्यादा तकलीफ हमारे शारदा अथवा हमारे अन्य की सज्जाकारों को होती ।
शारदा भैया पूछ ही लेते:-" तुमाए बांए बाजू वारो सींग तनक बैंड सो हो गओ , कौनों अच्छे डांक्टर को काय नईं दिखाते ?
घर में आने जाने वाले आगंतुक पति-पत्नी के चेहरे के भाव से आजकल अंदाज लगा लेते हैं-" कि किस स्तर पर द्वंद हुआ है ?" और अगर मनुष्य प्रजाति के सींग होते तो लोग सींग की स्थिति देख कर अनुमान लगाते।
मेरे एक योग मित्र से पूछा कि भाई अगर ऐसा होता तो क्या होता?
होना क्या था शीर्षासन लगना बंद हो जाता।
मास्टर साहब को टेंशन होती अब गुड्डी कैसे तनवाएं..!
दीपावली पर हम अपने लोगों पर बेहतरीन कलर करवा सकते थे अगर सींग होते तो। दिवाली के दूसरे दिन फिर बैल गाय बछड़े का क्या काम..!
पॉलीटिशियंस के संदर्भ में सोचा जाए जिसके जितनी मजबूत सींग उसके उतने विधायक पीएम तो वह पक्का अब मौका लगे तो प्राइम मिनिस्टर।
ब्यूरोक्रेसी के बारे में कुछ नहीं कहूंगा उसी का हिस्सा हूं। जो मैंने कहा है उसे आप स्वयं कह लीजिए मुस्कुराइए हंसी है हंसते रहिए वैसे एक बात बता दूं अपने कान जरा पास लाना.. हमारे तो परमानेंट निकले किसी को बताना नहीं।
*यह आर्टिकल केवल हास्य-विनोद के लिए लिखा गया है, कोई से क्रोधित होकर मेरी और अपने सींग लेकर न दौड़ना भाई. लेखक हूं मेरी कलम ज्यादा घातक हो सकती है इन काल्पनिक सींगो की तुलना में*
3.10.22
नजर और नजरिया
द्वारपाल ने उससे कठोर शब्दों में पूछा _" कौन हो भाई, फटे कपड़े कपड़ों में कहां घुसे आ रहे हो...? यह राज महल है यहां दरबार है यहां केवल उनको प्रवेश मिलेगा जो राज सेवक हों अथवा जिन्हें राजा ने बुलाया हो..!
वह अकिंचन व्यक्ति अपने ज़ेब से रुक्का निकालता है, तथा दरबान को दिखाता है।
दरबान अपने वरिष्ठ अधिकारी से परामर्श करके कहता है कि-" यह आमंत्रण तुम किसी से चुरा कर लाए हो ना जाओ भाग जाओ अब मुंह ना दिखाना फिर..!"
इस चेतावनी के बाद यह निर्धन व्यक्ति वापस लौट जाता है। कुछ देर बाद सजा संवरा युवक पहरेदार को अपना आमंत्रण दिखाता है और महल में प्रवेश कर देता है।
हुआ यूं था कि राजा ने प्रतिभाशाली लोगों को आमंत्रित किया था अपने साथ भोजन करने। जिसके लिए बाकायदा आमंत्रण भेजे गए थे और प्रतिभाशाली कलाकार आए।
राजा अपने राज्य के इन महान कलाकारों को प्रोत्साहित किया कोई मूर्तिकार था कोई चित्रकार था उन कवि था तो कोई वक्ता था कोई मधुर तान छेड़ता तो मानो स्वर्ग में इंद्र अपनी सभा में बैठे हो और गंधर्व ब्रह्म की आराधना का शाम गायन कर रही हूं । दिनभर यह क्रम चलता रहा राजा को इन कलाकारों की प्रतिभा पर गर्व होने लगा और वह नतमस्तक हुआ राजा मुक्त हस्त दान करता चला गया।
जब भोजन की बारी आएगी तब सभी एक पंगत में बैठे हुए थे। राजा स्वयं भोजन परोस रहे थे और अचानक वे सुदर्शन युवक के बाजू में जाकर बैठ गए।
युवक सहित अन्य कलाकारों की प्रतिभा से वाकिफ तो थे। युवक के साथ भोजन करते हुए तुम्हें कुछ ज्यादा ही अच्छा लग रहा था।
यह क्या? राजा चकित रह गए राजा ने कहा-" आप अपनी पगड़ी पर दिवाली क्यों लगा रहे हैं अरे यह क्या आपने तो अपनी कुर्ते को खिलाने लगे ।
राजन, मुझे मेरी पोशाक की वजह से आपके द्वारपाल ने भगा दिया था। मैं सामान्य वस्त्र पहना था इनमें कुछ फटे वस्त्र भी थे। मेरी पादुका भी खंडित थी। आपके प्रहरियों ने मुझे तब लौटा दिया था। दूसरी बार में नगर सेठ के पुत्र जो मेरे मित्र हैं उनसे यह सब लेकर आया। तब प्रहरियों ने मुझे बिल्कुल नहीं रोका, पूरे सम्मान के साथ मुझे राज महल में प्रवेश किया है।
हे भूपति... मेरा मूल्यांकन जिस आधार पर हुआ है और जिसे देख कर आपके प्रहरियों ने मुझे महल में प्रवेश दिया है यह महान है कि मैं? निसंदेह मेरे वस्त्र महान है श्रेष्ठ वरना आपके प्रहरियों के मन में ऐसी कोई भावना ना होती।
राजा शर्म से सर झुका कर बोले-" जिस राष्ट्र में गंधर्व का को सम्मान नहीं मिलता यह सृजन हीन कांति हीन राष्ट्र होते हैं। युवक मैं तुमसे क्षमा चाहता हूं।
यह कहानी फिर कहानी है पुराना कथानक है सब जानते हैं कोई इनके पात्र के रूप में मिर्जा गालिब को रख देता है तो कोई अन्य किसी को। परंतु यह सत्य है कि वेशभूषा आज की भाषा में कहें तो अपीरियंस के आधार पर यह तय किया जाता है कि हमें क्या करना है।
आपकी कीमत आपकी नौकरी के स्तर तथा आपके आर्थिक बैकग्राउंड से आती जाती है । वरिष्ठ पदों पर रहने वाले व्यक्ति आर्थिक रूप से संपन्न व्यक्ति भले ही वह वैशाख नंदन क्यों ना हो उनका सम्मान करने में इसी को अपराध बोध महसूस नहीं होता। मुझे दफ्तर से आने जाने के लिए एक ऑटो आता है । सोसाइटी का दरबान पहले दो-तीन दिनों तक उस ऑटो वाले से अभद्रता से व्यवहार करता था।
इसकी अभद्रता इस हद तक पहुंच गई सोसाइटी के पोर्च में मुझे उतारने के लिए ऑटो वाले ने जैसे ही ऑटो खड़ा किया तुरंत वह दरबान चीख पड़ा ऑटो बाहर लेकर आओ । यह दुनिया की रीत है दुनिया उनकी पतंगों की तरह है जो चमकते दीपक के इर्द-गिर्द घूमते हैं और उसमें जलकर मर भी जाते हैं। आपकी सादगी को कोई पसंद नहीं करता बस इतनी सी बात नहीं है यह आपकी सादगी को बर्दाश्त भी नहीं कर सकते।
मेरे बारे में
- बाल भवन जबलपुर
- जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर
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