14 अक्टूबर
300 BCE में सम्राट अशोक बौद्ध
हुए थे। इसी दिन को अशोक विजयादशमी के रूप में भी मनाया
जाता है।
बीबीसी के
अनुसार दीक्षा ग्रहण करने का क्रम आज़ से 66 वर्ष से जारी है , परंतु यह अर्ध्दसत्य है पूर्ण सत्य है कि- 300 ईसा पूर्व से जारी है।
महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म 563 BCE में हुआ । उनको
तत्व ज्ञान होने के उपरांत बुद्धिज़्म का प्रसार भी होने लगा ।
बुद्ध के प्रवचनों का जन मानस पर सीधा एवम गहरा प्रभाव पड़ता था। बौद्धमत, का विस्तार भारत एवं विश्व के अधिकांश हिस्सों में हज़ारों साल पहले होना प्रारम्भ हो चुका था।
आप जानते ही हैं कि बुद्ध ने पंचशील का प्रवर्तन किया, उसका प्रबोधन भी किया. जो जन-मन मानस के लिए नया विज़न था .
1. किसी जीवित वस्तु को न ही नष्ट करना और न ही कष्ट पहुंचाना।
2. चोरी अर्थात दूसरे की संपत्ति की धोखाधड़ी या हिंसा द्वारा न हथियाना और न उस पर कब्जा करना।
3. झूठ न बोलना।
4. तृष्णा न करना।
5. मादक पदार्थों का सेवन न करना।
फिर अष्टांग योग का प्रबोधन भी कम प्रभावी न था ...
बुद्ध मानते थे कि संसार में दु:ख के समापन के लिए बुद्ध ने आर्य अष्टांग मार्ग
निर्धारित किया.........–
1. सम्यक दृष्टि, अर्थात अंधविश्वास से मुक्ति।
2. सम्यक संकल्प, जो बुद्धिमान तथा उत्साहपूर्ण व्यक्तियों के योग्य
होता है।
3. सम्यक वचन अर्थात
दयापूर्ण, स्पष्ट तथा
सत्य भाषण।
4. सम्यक आचरण अर्थात
शांतिपूर्ण, ईमानदारी
तथा शुद्ध आचरण।
5. सम्यक जीविका अर्थात किसी
भी जीवधारी को किसी भी प्रकार की क्षति या चोट न पहुंचाना।
6. अन्य सात बातों में सम्यक
परिरक्षण।
7. सम्यक स्मृति अर्थात एक
सक्रिय तथा जागरूक मस्तिष्क, और
8. सम्यक समाधि अर्थात जीवन के गंभीर रहस्यों के संबंध में गंभीर विचार।
मेरे मतानुसार बुद्ध का यह लोक-दर्शन ही धम्म के लोक व्यापीकरण तेज़ी से हुआ है और होता भी है.
प्रमुख विस्तारक के रूप में प्रियदर्शी
अशोक ने किया। प्राचीन इतिहासकार कहते हैं कि -" बुद्धिज्म बुद्ध के उपरांत तेजी से राजाश्रय के साथ विकसित एवं विस्तारित हुआ है । श्रीलंका चीन
हांगकांग, थाईलैंड, बर्मा जापान
अफगानिस्तान के रास्ते मध्य एशिया के देशों सहित इस
विचारधारा ने विस्तार पाया। बौद्ध इसे धम्म कहते हैं। कई विचारकों का मानना है कि
इस विचारधारा ने सीरिया तक विस्तार किया था, किंतु
अवेस्टा के प्रसार से इस विचारधारा को सीमित रहना पड़ा। यहां यह कहना एकदम सटीक
नहीं है कि- "केवल अवेस्टा के कारण ही ऐसा हुआ। बल्कि इसके कई और कारण थे.. आइए
देखते हैं हम कि और क्या कारण हो सकते हैं बुद्धिज्म के विस्तार के रुक जाने के...
सबसे
पहले बताना चाहता हूँ कि- धर्म में में एक विशेष गुण होता है - कि इसका विस्तार सत्ता के जरिए न होकर दार्शनिक
महापुरुषों के जरिए होता है, जबकि अन्य सभी संप्रदायों/मतों का विस्तार
राज्य के प्रमुख द्वारा कराया जा सकता है और ऐसा हुआ भी है.। संप्रदायों की यह
प्रवृत्ति स्वभाविक है।
सनातन के अलावा जैन केवल जैन
मत ही एक ऐसा सोशल रिवॉल्यूशन कहा जा सकता है जो राजा महाराजाओं के दखल के बिना
अथवा अल्प दखल से विस्तारित हुआ है।
बौद्ध मत को मानने वाले राजाओं
ने न केवल अपने राज्य का विस्तार किया बल्कि बुद्धिज्म को भी विस्तार दिया।
बुद्ध
के विचार सहज स्वीकार्य क्यों ?
महात्मा बुद्ध के सिद्धांतों
में अहिंसा करुणा दया और आत्म विकास तपस्या समभाव जो उपनिषदों का निचोड़ है के प्रचार करने के लिए
प्रभावी कदम उठाने से बुद्धिज्म सरलता से जन सामान्य को स्वीकार्य हुआ। परंतु इसका
यह अर्थ नहीं कि केवल बौद्ध भिक्षुको द्वारा ही विस्तार किया गया हो । गौतम बुद्ध
के विचारों के विस्तार के लिए राजश्रय से
भी प्राप्त हुआ।
दीर्घकाल
में बुद्धिज्म में भी मानवीय महत्वाकांक्षा एवं लोकेशणा के चलते, बुद्धिज्म
प्रभावित होने लगा। बुद्धिज्म में सब कुछ अति उत्तम होने के बावजूद भी एक और कमी
थी जिसे सांस्कृतिक आकर्षण का अभाव कहा जा सकता है। परिणाम स्वरूप सामान्य
व्यक्तियों ने इसे अस्वीकार करना प्रारंभ कर दिया। और यहीं से बुद्धिज्म का
विस्तार रुकने लगा। मनुष्य के जीवन में व्यक्तिगत एवं सामूहिक उत्सव के महत्व को
नकारा नहीं जा सकता। उसे मनोरंजन भी चाहिए उसकी इंद्रियों के सुख की पूर्ति के लिए
भी जीवन आवश्यक संसाधन जुटाना चाहता है। लेकिन वैराग्य का अतिरेक मनुष्य जीवन को
जटिल बना देता है। शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति ना होने पर अर्थात डिजायर्स की
पूर्ति का अभाव कुंठा को जन्म देता है। जीवन प्रणाली के लिए अनुकूलता के महत्व को
अधिकृत नहीं किया जा सकता। शनै शनै बुद्धिज्म का स्थानीय विस्तार भौगोलिक एवं
सामाजिक रुप से क्रमशः रुकता चला गया।
वैसे यह सर्वव्यापी है कि-"बौद्धमत का आधार सनातन ही है". साथ ही एक बिंदु सनातन का असली संवाहक “सन्यासी ही नहीं
बल्कि सद-गृहस्थ भी होता है.”
क्रमश: जारी अगले भाग में
बुद्धके विचारों के पुन: प्रचारित/स्थापना का प्रयास