27.3.22

क्या पढूं...?

याद होगा आपको क्या लिखूं नि:बंध पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी साहब बड़े  विचार मग्न थे, और इसी विचार प्रवाह में  डूब कर  बक्शी जी ने लिख मारा एक निबंध ! निबंध क्या सच्चाई थी। लिखने के बाद टोपी टांगने की समस्या खूंटी खोजना भी उनकी है समस्या थी ना ।
   उन्हें  लिखने की समस्या थी मुझे पढ़ने की समस्या है। ज्यादातर किताबों में रेफरेंसेस संदर्भ कई किताबों कई लेख कई सृजन  नहीं होते बल्कि कभी-कभी रेफरल बुक नजर आते हैं तो कभी कभी शब्दकोश से उठाए गए शब्दों का संयोजन लगते हैं। कभी वह डाक्ट्रिन लगते हैं तो कभी दाएं बाएं से किए गए कमिटमेंटस नजर आते हैं। कविताओं की दशा भी यही है। कभी कहीं कदाचित आ जाता है नर्मदा महाकाव्य स्त्रियां घर लौटती है वरना वही सब  जैसा ऊपर बताया है। बुरा मत मानिए कलमकार कई सारी रचनाएं ऐसा लगता है कि बहुत पहले कभी खड़ी हैं वास्तव में ऐसा ही होता है। फिर से शब्द संयोजन बदल जाता है मामला जस का तस परोस देते हैं हमारे कलमकार।  क्या करें गिलहरी और अखरोट का रिश्ता ही ऐसा है !
   फफक फफक के रोया था जब बंटवारे पर ट्रेन टू पाकिस्तान महसूस की थी, और दूसरी बात अब जबकि मित्र गंगा चरण मिश्र ने एक कथा मेरे घर पर आ कर सुनाई थी। याद नहीं आ रहा शायद धर्मयुग अथवा साप्ताहिक हिंदुस्तान में काली आंधी भी महसूस हुई थी। किशोरावस्था से निकलते निकलते पता चला की रोटी भी कमाना है यह अलग बात है कि वह गालियां दे रहा था-" मैं कोई नौकरी नहीं करता" ! खैर छोड़ो नादान है समझ नहीं है अनुदान पर जीना भी एक कला है ।
   पता नहीं इतना साहित्य बिखरा हुआ है भारत के वातावरण में कहानी लिख लो कविता रच लो, निबंध लिख लो पर कई लोगों का कंटेंट आयातित क्यों है ? समझ में नहीं आ रहा...!
    अभिज्ञान शाकुंतलम् और हैमलेट में  अंतर क्या है ? 
     अभी तो कुमारसंभव की बात ही नहीं कर रहा चलो करता भी नहीं ।
    अब तो मैंने तय कर दिया है कि-"आंखों तुम केवल हिस्ट्री पढ़ो..!
  हिस्ट्री है कि टाइमलाइन सेट नहीं कर पा रही लिखने में मिस्टेक हो गई किस सोच समझकर यह लिखा गया-" श्री राम कृष्ण केवल कपोल कल्पनाएं हैं ।
   अब यह वाक्य पढ़कर आपको लग रहा होगा कि यह दाएं बाजू से उभरा कोई चिंतन है ? 
   निश्चित तौर पर यही घोषित कर रहे हैं लोग और जैसे ही अरुण पांडे जी ने भरतमुनि के नाट्य शास्त्र का उल्लेख किया तो समझ में आया की कोई कुछ भी कह ले लेकिन विद्वान अपने जान संदर्भों को अंगीकार कर रहे हैं।
   तो समझ लीजिए कि मैं बात कर रहा हूं मानवतावादी वैश्विक तानेबाने की..! जहां से अनुगुंजित होता है-" वसुधैव कुटुंबकम" का उद्घोष ।
   कल ही किसी मुद्दे पर चर्चा चल रही थी विद्वान मित्र शैलेन्द्र पारे जी ने कहा था -" एकला चलो भी जरूरी है लेकिन सब को लेकर चलना भी जरूरी है...!"
बदलती परिस्थिति में जड़ता को कोई स्थान नहीं है ....  it's a very clear nothing is final truth...! Why you are wasting your time  for final truth...?
    समय बदलता है परिस्थितियां बदलती है कभी-कभी तो स्थितियों के वजह से विज्ञान की प्रतिपादित सिद्धांत भी खंडित हो जाती हैं और हमें चकित कर देते हैं । 
    क्या जरूरत है वैश्विक वैमनस्यता बोने की जरूरत तो यह है कि जो बोया है अगर वह कटीला है तो कांटो को तोड़ दिया जाए कुछ नया उगाया जाए।
   कबीर के बाद कबीर पत्थर के बनाके उन्हें पूजें तो  कबीर हंसेंगे कि बेवजह लिखा था दोहा कि- 
पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजू पहाड़
तासे जा चाकी भली, पीस खाय संसार ।
    कबीर ने जो कहा अपने मदमस्त अंदाज में कहा। कभी की अभिव्यक्ति के संदर्भ को समझना चाहिए । 
    अब के कबीर कमिटेड हैं पक्षपाती भी । मिर्जा गालिब और अनोखे निकले 
कह गए -"कहीं ऐसा न कि वाँ ही वही..!
   अब यह देश क़बीरों का नहीं है मिर्जा गालिबों का नहीं है । अब इसमें आयातित विचारधाराएं राज करती हैं ।
वही पढ़ो जो हम पढ़ाएं 
वहीं सुनो जो हम सुनाएं ।
जो राग उनने बना के रखी
उसी पे शब्दों को हम सजाएं..?
न वोल्गा से कथा शुरू है
न गंगा के आ रुकी है ।
न चार पाठों की संस्कृति है-
न गीत की गति कभी रुकी है ।।
      अब आप ही बताएं क्या पढ़े और क्या पढ़ाएं। मैं मंदिर इसलिए जाता हूं कि वहां एक शिल्पी में अथक मेहनत कर एक मूर्ति रखी है शिल्पी की आस्था पर मोहित हूँ और मुझे उसकी आस्था पर आस्था है । मैं मुशरिक नहीं हूं इस बात का सर्टिफिकेशन भी नहीं चाहिए । मुझे मेरा आनंद चाहिए वह चाहे अकेले में मिले या मेले में। तो बता दो ना कि मैं क्या पढूँ और क्यों पढूँ..?
    चलो तो जब तय करना तब बता देना फिलहाल सोता हूं रात गहरा चुकी है ।

19.3.22

कश्मीर नामा 01 : सहदेव ने स्थापित किया था कश्मीर

     12 वीं शताब्दी में  वर्तमान कश्मीर के परिहास पूर्व में जन्में कल्हण के पिता हर्ष देव के दरबार में दरबारी थे। लोहार वंश का साम्राज्य था कश्मीर में। लोहार राजवंश कश्मीर 11वीं और 12वीं शताब्दी में राज करता था। लोहार वंश की स्थापना संग्राम राज ने की थी। राजा संग्राम राज के वंशज हर्ष देव का शासन काल विसंगतियों भरा था। इस राजा ने मंदिरों तक को लूटा था। किसी राजा के दरबार में उनके एक महामात्य चंपक के 2 पुत्र थे। एक पुत्र का नाम कल्हण था तथा दूसरा पुत्र कनक के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कल्हण कवि थे जबकि कनक संगीतज्ञ।
यूरोपीय विद्वान विंटरनिट्स भारत के प्रथम इतिहासकार के रूप में कल्हण का नाम सर्वोच्च स्थान पर रखा उसका कारण था कि कल्हण अपनी कृति-"राजतरंगिणी" में व्यवस्थित ढंग से इतिहास का लेखन किया। इतिहास लेखन के लिए जिन बिंदुओं का विशेष ध्यान दिया जाता है उसका ध्यान रखते हुए कल्हण ने काव्य के रूप में राजतरंगिणी की रचना की। इस कृति का रचनाकाल 1147 से लेकर 1149 ईस्वी था। कुछ लोगों की मान्यता है कि सन 1150 तक यह इतिहास लिखा गया। कुछ लोगों का मंतव्य है कि-"कल्हण ही राज तरंगिणी का लेखन काल कल्हण के बाद भी जारी रहा। और उसके सह लेखक थे जोनराज, प्रज्ञा भट्ट, श्रीवर अथवा सीवर एवम सुका ।
   अर्थात राज तरंगिणी में कई और लेखक भी शामिल हुए।
   राज तरंगिणी का जिन भाषाओं में रूपांतरण हुआ वह है राजा जैनुबुद्दीन के दरबारी कवि मुरला अहमद शाह जिन्होंने इस कृति का फारसी भाषा में अनुवाद बसीर उल अरमाद नाम से किया था। इसी नाम से मुगल बादशाह अकबर के राज कवि शाह मुल्लाह शाहबादी ने भी किया है।
अंग्रेजी विद्वान शाहजहां के कार्यकाल में भारत आए और उन्होंने अपनी किताब पैराडाइज ऑफ इंडिया में इस किताब का अनुवाद प्रकाशित किया था। परंतु यह कृति अब विश्व में उपलब्ध नहीं है। अंग्रेजी भाषा में ऑरेलेस्टाइन द्वारा किए गए अनुवाद की उपलब्धता विश्व साहित्य में है।
   मैंने अपनी कृति भारतीय मानव सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार 1600 पूर्व में महाभारत के काल का विवरण प्रस्तुत कर दिया है। महाभारत काल से लेकर लोहार वंश के अंतिम हिंदू राजावंश तक 36 वर्ष और 64 उप जातियों का उल्लेख करते हुए कल्हण ने इतिहास का लेखन किया है। कल्हण ने अपने इतिहास में अर्थात राज तरंगिणी में यह तथ्य स्थापित किया है कि पांडवों के छोटे भाई सहदेव ने कश्मीर में राज्य की स्थापना की थी।
   राज तरंगिणी के अनुसार अशोक ने कश्मीर में भी अपने राज्य का विस्तार कर लिया था। प्रारंभ में अशोक शैव संप्रदाय का मानने वाला था। तदुपरांत वह बौद्ध धर्म को मानने लगा। इस कृति में कुषाण वंश के राजा कनिष्क के कश्मीर में विस्तार का भी उल्लेख करते हुए बताया गया है कि वहां कनिष्क पुर नामक नगर की स्थापना कनिष्क ने ही की थी। कनिष्क के काल में चौथी बौद्ध संगति का विवरण भी है।
   राजा अवंती बर्मन के दरबार में सूर नामक प्रथम इंजीनियर ने झेलम पर पुल बनाया था ऐसा उल्लेख इस कृति में मिलता है।
   कल्हण ने 813 ईसा पूर्व से 1150 ईस्वी तक अपनी कृति में दर्ज किया है। कृपया देखिए महाभारत का कालखंड 3762 ईसा पूर्व की पुष्टि आचार्य मृगेंद्र विनोद एवं वेदवीर आर्य ने भी की है। तदनुसार इसका उल्लेख मेरी कृति भारतीय मानव सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार 16000 ईसा पूर्व में प्रश्न क्रमांक 192 से 197 तक में दर्ज है।
  मित्रों कल्हण ने अपनी संस्कृत में लिखी गई कृति राज तरंगिणी में जिस इतिहास लेखन के मूल  तत्वों का ध्यान रखा है उन्हें हम क्रमशः निम्नानुसार विश्लेषण कर सकते हैं....
[  ] प्राचीन राजवंश की क्रमवार जानकारी। राज तरंगिणी का अर्थ होता है राजाओं की नदियां अर्थात राज सत्ता का प्रवाह।
[  ] अपने ग्रंथ को प्रमाणित सिद्ध करने के लिए उन्होंने (कल्हण ने) 7826 श्लोकों में महाभारत काल से लेकर 1150 ईस्वी तक का इतिहास लिखा है।
[  ] प्रथम 3 तरंगिणीयों में अर्थात अध्याय में राजवंशों का रामायण एवं महाभारत कालीन राजवंशों का तत्सम कालीन संबंध उल्लेखित किया है।
[  ] कल्याण में कश्मीर में बौद्ध धर्म की स्थापना 273 ईसा पूर्व उल्लेखित की है।
[  ] परमाणु की पुष्टि के लिए श्रुति परंपरा पुरातात्विक प्रमाण आदि का विश्लेषण भी राज तरंगिणी में डाला है।
[  ] राज तरंगिणी में आठ तरंगिणीयां 7826 श्लोक हैं।
[  ] राज तरंगिणी में सभी राजवंशों का तटस्थ भाव से विश्लेषण किया है राजाओं के गुण दोषों का स्पष्ट चित्रण किया है।
[  ] सामाजिक व्यवस्था धार्मिक आर्थिक एवं आध्यात्मिक परिस्थितियों का सटीक विवरण प्रदर्शित है।
          भारत के प्राचीनतम इतिहास को समझने के लिए रोमिला थापर जैसे भ्रामक मंतव्य स्थापित करने वाले इतिहासकारों की जरूरत नहीं है। हमें चाहिए कि हम प्राचीन इतिहास का अध्ययन कल्हण की राज तरंगिणी से शुरू करें।
नोट:- युवाओं को यह आर्टिकल इसलिए पढ़ना चाहिए क्योंकि ताकि वे पीएससी यूपीएससी एवं अन्य प्रतियोगी स्पर्धाओं के लिए *प्राचीन भारतीय इतिहास* उपयोगी पाठ्य सामग्री है।
  अन्य सभी को इस हेतु पढ़ना चाहिए ताकि आप भारत को समझ सकें।

18.3.22

मैक्समूलर ही नहीं दिनकर जी और राहुल सांकृत्यायन जी ने भी झूठ बोला


   भारत के इतिहास को काल्पनिक साबित करने का क्रम आज से नहीं बल्कि वर्षों से चल रहा है। विगत 70 वर्षों से तो यह बहुत तेजी से चला है। वामपंथी विचारक और लेखक भारत के अस्तित्व को ही न करते हैं।  वामपंथी इतिहासकारों ने तो हद ही कर दी भारतीय महानायक श्रीराम और श्रीकृष्ण को मिथक चरित्र बता दिया। मित्रों जैनिज्म के प्रथम महापुरुष नेमिनाथ तक को इन साजिश करने वालों ने कृष्ण के समकालीन होते हुए व्याख्या और चर्चा से बाहर कर दिया ताकि कृष्ण को कल्पनिक घोषित किया जा सके। साहित्यकार अक्सर कल्पना में लेखन करते हैं। मेरा हमेशा से एक ही उद्देश्य रहा है कि जो लिखो यथार्थ लिखो लोकोपयोगी लिखो राष्ट्र के अस्तित्व को स्थापित करने वाला कंटेंट लिखो। परंतु दुर्भाग्य है इस देश का रामधारी सिंह दिनकर ने राम को लोक कथाओं का नायक निरूपित कर दिया।
लोक साहित्य में भारतीय वैदिक साहित्य में  विदेशी यात्रियों द्वारा लिखे गए साहित्य में भारत के यथार्थ को चित्रित किया है। फिर भी हम अपने प्रमाद वश तथाकथित प्रगतिशील साहित्यकारों के प्रश्नों का जवाब नहीं दे पाते। हम पढ़ते नहीं हैं इसलिए हम जवाब नहीं दे पाते।
रामधारी सिंह दिनकर को नकारना मेरे लिए कोई कठिन नहीं था हो सकता है आपके लिए कठिन हो।
  *चर्चिल ने भारत को केवल एक भौगोलिक शब्द कहा है उनका मानना था भारत एक भौगोलिक शब्द है जैसे भूमध्य रेखा कोई राष्ट्र नहीं भारत भी एक राष्ट्र नहीं है।*
*सर जॉन स्ट्रैची कहते हैं-" भारत के बारे में जानने वाली पहली और महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत नाम का कोई देश ना कभी था न कभी है*
  इन तमाम मान्यताओं और नैरेटिवस को यूरोपियन नेपोटिज्म के अलावा क्या नाम दिया जाए?
   मित्रों अब समय आ गया है जब वेदों, उपनिषदों, आरण्यकों, संहिताओं, महाकाव्य क्रमशः रामायण महाभारत, शास्त्रों आदि पर स्पष्ट मीमांसा करते हुए अपनी बात रखी जाए। इस क्रम में मैंने *भारतीय मानव सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार 16000 ईसा पूर्व* कृति की रचना की है। यह एक ऐतिहासिक कृति है। इसी क्रम में जनरल जीडी बक्शी ने सरस्वती सभ्यता के जरिए भी भारत को भारतीय नजरिए से समझने की पेशकश की है । मित्रों आइए विंस्टन चर्चिल और स्ट्रैची को नकारते हुए मैक्स मूलर तथा वामपंथी लेखकों साहित्यकारों जैसे संस्कृति के चार अध्याय लिखने वाले रामधारी सिंह दिनकर को वोल्गा से गंगा तक लिखने वाले राहुल सांकृत्यायन द्वारा स्थापित मंतव्य को जड़ से समाप्त किया जाए। वरना हम अपनी संतानों को क्या जवाब देंगे।
कृपया अमेजॉन फ्लिपकार्ट गूगल बुक्स किंडल पर उपलब्ध ऐसी कृतियों को अवश्य पढ़ें और जाने भारत का सच्चा इतिहास भारतीय नजरिया से।
  Bhartiya Manav Sabhyta Evam Sanskriti Ke Pravesh Dwaar: 16000 Isa Purva ( भारतीय मानव–सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेशद्वार : 16000 ईसा पूर्व ) 

28.2.22

शून्न्य से शिखर पर जाया जाता है ना कि एकदम शिखर पर कोई भी चढ़ा है आज तक...?


कल्पनाएं शिखर पर ले जा सकती है। भौतिक रूप से कोई भी शिखर पर पहली सीधी से ही चढ़ता है। कुछ लोग सोचते हैं कि वो एकदम आकाश में बादलों की तरह छा जाएं और बरसने लगे। भला कैसे संभव है बादल भी तो शून्य से बनते हैं। आप बनती हैं पानी की अथाह जल राशि से और कण कण व्याप्त भाप बन जाते हैं बादल। और फिर बरसते हैं शीतलता भरी बरसात का यही कारण है। शिखर से तो पत्थर लुढ़कते हैं सड़कें जाम हो जाती हैं। उल्कापात हो सकता है परंतु जमीन से आकाश को कवर करने की एक परियोजना होती है पानी की पानी जो समंदर से भाप में बदलता है और फिर वही तो बरसता है?
   हम अपने जीवन में यही गलती करते हैं और एकदम से छलांग लगाते हैं आकाश को छू लेने के लिए क्यों? चलो शून्य से शिखर की यात्रा शुरू करें चलो सागर मंथन करें बात आपको अच्छी लगेगी बहुत अच्छा कहा सिर्फ इतना मत कहिए एक बार महसूस कर लीजिए। 
*ॐ राम कृष्ण हरि:*

"भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का प्रवेश द्वार 16000 वर्ष ईसा पूर्व..! आन लाइन रिलीज़ महाशिवरात्री 1 फरवरी 2022 "

    (ShriHind Prakashan Ujjain )
भारत का सांस्कृतिक विकास कब और कैसे हुआ और किसने किया...? यह आज तक अनुत्तरित सवाल है। मैक्समूलर जैसे पश्चिमी विचारकों ने भारत के प्राचीन इतिहास को ईसा के 1500 वर्ष तक सीमित कर दिया । जो मेरी दृष्टि में  सर्वथा भारत वर्ष के साथ एक अन्यायपूर्ण कार्य रहा है । उदाहरण के लिए अवगत होवें कि –“जिस नदी के तटों पर वेद श्रुति के रूप में विद्वत जन द्वारा लिखे गए वह  सरस्वती नदी की  विलुप्ति 10000 वर्ष पूर्व हो चुकी थी जबकि विदेशी विचारक और भारतीय साहित्यकार क्रमश: श्रीयुत रामधारी सिंह जी दिनकर एवं यायावर बुद्धिष्ट विद्वान श्री राहुल सांकृत्यायन ने भी मैक्समूलर जी के सुर में सुर मिलाते हुए हमारी सभ्यता के विकासानुक्रम को ईसा के 1500 साल पूर्व तक सीमित किया है ।” इतना ही नहीं  श्रीयुत रामधारी सिंह जी दिनकर जी ने अपनी कृति “संस्कृति के चार अध्याय में तो राम को लोक कथाओं का नायक सिद्ध किया है ।” 
श्रीयुत विष्णु श्रीधर वाकणकर जी ने मध्यप्रदेश की नर्मदा घाटी एवं भारत में जीवन  की मौजूदगी 1.75 लाख साबित कर चुके हैं ।  
 इन सभी सवालों के जवाब जानने इस पुस्तक को लिखा है ।  ताकि हम जान सकें कि  हमने अपना विकास कब  और  कैसे किया ? 
इस पुस्तक में भारत के वैभवशाली सांस्कृतिक विकास का विवरण भी दर्ज है। 
आजकल  हम-आप नासा के हवाले से कई बातें कहते हैं परंतु हमारे पूर्वज सूर्य सिद्धांतों  के आधार पर नक्षत्र विज्ञान की व्याख्या करते हुए भविष्य की घटनाओं जैसे ऋतु परिवर्तन ग्रहण, ग्रहों का संरेखण, नक्षत्रों की स्थिति का अध्ययन एवं परिणाम बता देते थे । कम लोग ही जानते होंगे कि- सबसे सटीक सूर्य सिद्धांत किसने लिखा ? इस सूर्य सिद्धांत (नक्षत्र-विज्ञान) के लेखक मयासुर नामक असुर प्रजाति के विद्वान थे। यही नक्षत्र विज्ञान का अद्भुत ज्ञान का भंडार निमिष निमिष का हिसाब देता था। बेचारे गैलीलियो को तो  बड़ी जद्दोजहद के बाद सिद्ध कर पाए कि  पृथ्वी गोल है लेकिन इसके पहले ही पौराणिक कथाओं में  वराह का विवरण दर्ज़ हो चुका था । आपने यकीनन   वराह के चित्र पर गेंद पृथ्वी गोल की आकृति देखी ही होगी यानी भारतीय नक्षत्र विज्ञान हजारों हजारों वर्ष पहले तय कर चुका था कि पृथ्वी गोल है।
अखंड भारत में  ज्ञान विज्ञान के तमाम बिंदुओं एवं विषयों के पूर्व आज से लगभग 1.75 से 1.5 लाख वर्ष पहले ही मानव की उत्पत्ति हो चुकी थी तथा ईसा के 16000 वर्ष पूर्व सभ्यता का विकास होने लगा था । 
  सांस्कृतिक विकास यात्रा   ज्ञान 4000 या 5000 साल पुराना नहीं है बल्कि भारत की सभ्यता का विकास लाखों  वर्ष पहले भारत में ही हुआ है और सांस्कृतिक विकास 16000 वर्ष ईसा पूर्व हुआ है। मेरे कृति "भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का प्रवेश द्वार 16000 वर्ष ईसा पूर्व..!" ऐसे ही कई बिन्दुओं एवं विषयों पर केन्द्रित है ।   
यह पुस्तक आन लाइन मार्केटिंग साइट्स  पर  01 मार्च 2022 से उपलब्ध होगी । इसकी प्री बुकिंग भी संभव है।  
गिरीश बिल्लोरे मुकुल
girishbillore@gmail.com
9479756905

25.2.22

Will Ukraine Russia war be the shortest?



Russia wants to return to its Soviet condition. Putin wants the old situation to be restored to what the world saw in 1991.
The US and the NATO Alliance together are not going to do anything in this matter.
  The United States does not, under any circumstances, support any form of military action other than sanctions.Going to war with Russia would be equivalent to opening the window to a world war.At the time of writing these lines, US President Joe Biden has made harsh remarks regarding interference on freedom and sovereignty
  Russia's four big banks and important products may be banned, but it is clear that Europe is in this war, fearful of energy, especially petrol, which goes through pipelines from Russia to Europe
    In this small war, there appears to be a mutual vested interest between Russia, America as well as many other countries in Europe.
  It is certain that Ukraine cannot survive with Russia for more than 1  or 2days without any outside help.In such a situation, the war can take a very short period of time.
   The negative consequences of this war can be seen immediately in the countries around , Ukraine like slovakia, Lithuania etc.
Here was the legality and illegality of the war, but there is no position to comment at the moment, but it is true that the thinking of Russia has proved to be expansionist.
Meanwhile, the concern of about 20000 Indians is haunting the Government of India.Till the time of writing of these lines, the Government of India is planning to relocate citizens to other countries by road other than by air.
Honey is not ready to give up on Ukraine's army chief and foreign minister Putin. Ukraine has made it clear the spirit of fighting till the last breath.
    Although Ukraine is diligently engaged in defending its existence, but the situation has changed due to the absence of NATO in the war.
Overall, this war is definitely small but will raise very big questions, which will put not only the Russian leadership but America in the dock in solving it.
Shortest War of the world
The Anglo-Zanzibar War was a military conflict fought between the United Kingdom and the Zanzibar Sultanate on 27 August 1896. The conflict lasted between 38 and 45 minutes, marking it as the shortest recorded war in history.

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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