Ad

सोमवार, फ़रवरी 28, 2022

शून्न्य से शिखर पर जाया जाता है ना कि एकदम शिखर पर कोई भी चढ़ा है आज तक...?


कल्पनाएं शिखर पर ले जा सकती है। भौतिक रूप से कोई भी शिखर पर पहली सीधी से ही चढ़ता है। कुछ लोग सोचते हैं कि वो एकदम आकाश में बादलों की तरह छा जाएं और बरसने लगे। भला कैसे संभव है बादल भी तो शून्य से बनते हैं। आप बनती हैं पानी की अथाह जल राशि से और कण कण व्याप्त भाप बन जाते हैं बादल। और फिर बरसते हैं शीतलता भरी बरसात का यही कारण है। शिखर से तो पत्थर लुढ़कते हैं सड़कें जाम हो जाती हैं। उल्कापात हो सकता है परंतु जमीन से आकाश को कवर करने की एक परियोजना होती है पानी की पानी जो समंदर से भाप में बदलता है और फिर वही तो बरसता है?
   हम अपने जीवन में यही गलती करते हैं और एकदम से छलांग लगाते हैं आकाश को छू लेने के लिए क्यों? चलो शून्य से शिखर की यात्रा शुरू करें चलो सागर मंथन करें बात आपको अच्छी लगेगी बहुत अच्छा कहा सिर्फ इतना मत कहिए एक बार महसूस कर लीजिए। 
*ॐ राम कृष्ण हरि:*

Ad

यह ब्लॉग खोजें

मिसफिट : हिंदी के श्रेष्ठ ब्लॉगस में