19.11.21

सांप्रदायिकता बनाम बेतरतीब सृजित मंतव्यों की स्थापना के प्रयास


  बहुत दिनों से कन्वेंशनल एवं सोशल मीडिया पर सांप्रदायिक सहिष्णुता का पाठ पढ़ाया जा रहा है। कुछ उदाहरण प्रस्तुत है कि कहीं से सकारात्मक वातावरण की उत्पत्ति होती है उसका स्वागत करना चाहिए। इन सवालों से ऊपर है काफिर और गज़वा ए हिंद जैसे शब्द..!

   मनुष्य एक मानव का जन्म लेता है और फिर वह अपनी मान्यता के अनुसार या कहीं परंपरा के अनुसार उस मत को स्वीकार कर लेता है . 

   वह या तो मूर्ति पूजक हो जाता है या निरंकार ब्रह्म की उपासना में अपने आपको पता है। इन दिनों जो वातावरण निर्मित किया गया है वह है सनातन के विरुद्ध शंखनाद रने का। निरंकार  ब्रह्म तथा साकार ब्रह्म की उपासना पर किसी को कोई संघर्ष जैसी स्थिति निर्मित नहीं करनी चाहिए। जब स्वयं सिद्ध है कि भारतीय एक ही डीएनए के हैं तो सांस्कृतिक एकात्मता गुरेज़ कैसा. ?
 इस सवाल की पतासाजी करने पर पता चला कि लोग एक दूसरे की पूजा प्रणाली पर भी सवाल उठाने लगे। काफिर का मतलब है कि जो बुरा है और बुरा वह है जो मूर्ति की पूजा करता है या जो उन डॉक्ट्रींस को नहीं मानता जो किसी ने कहे हैं। भाई यही संघर्ष का कारण है। अगर मैं कहूं कि मैं क़यामत का इंतजार नहीं करता बल्कि मुमुक्ष होकर  जन्म जन्मांतर के बंधन से मुक्ति की उम्मीद करता हूं । 
और उसके लिए साधना करना यदि अब्राहिम अवधारणा पर आधारित एक संप्रदाय कोम मानने वालों को, एतराज़ नहीं करना चाहिए। 
और यदि मैं कहूं कि अब्राह्मिक संप्रदायों पूजा प्रणाली ग़लत है तो मैं स्वयं ही ग़लत हूं मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए । अर्थात एक दूसरे की पूजा पद्धतियों का सम्मान करना चाहिए जैसा भारत आमतौर पर करता है। परंतु मूर्तिपूजक हमेशा काफ़िर कहे जाते हैं यह कहां तक न्याय पूर्ण है ? और यह भी कहाँ जायज़ है कि तलवार के दम पर या किसी तरह की स्ट्रेटजी बना कर आपके विश्वास को बदलने के लिए बाध्य किया जाए। 

       यहां हम कलाम साहब बाबा भीमराव अंबेडकर सहित हजारों उन लोगों को याद करना चाहते हैं जो अप्रासंगिक मान्यताओं के विरुद्ध अपनी रख चुके हैं। उन्होंने क्या कहा था उसे बिना याद किए बताना जरूरी है कि सांप्रदायिक सहिष्णुता त्याग मांगती है और हम वर्षों से ऐसा त्याग करते चले आ रहे हैं। यह सनातन विचारधारा का मौलिक आधार भी है। हम विश्व बंधुत्व की बात करते हैं हम अनहलक अर्थात एकस्मिन ब्रह्म: द्वितीयो नास्ति ..

  भारतीय दर्शन में धर्म का यही विशाल इनपुट भारतीय दर्शन को मजबूती देता है और उससे झलकती है भारतीय सामाजिक व्यवस्था में सहिष्णुता । और जो काम गुरुद्वारे ने किया वह उनके सहिष्णुता आधारित संस्कार  के कारण हुआ। गुरु तेग बहादुर और उनके चारों साहबजादे बहुत याद आते हैं ऐसा लगता है यह सब घटनाक्रम इतिहास में नहीं बल्कि हमारी आंखों के सामने हो रहा था। 16 महाजनपद भारतीय प्रशासनिक प्रबंधन व्यवस्था के मूल आधार थे। इन महाजनपदों में विश्व व्यापार विभिन्न महाद्वीपों में सत्ताओं के साथ  अंतर्संबंधों के प्रमाण कोणार्क के सूर्य मंदिर में नजर आते हैं । आप जाकर देख सकते हैं । सनातन सार्वकालिक  सहिष्णु है ।  इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए। परंतु जब हम देखते हैं कि हमारी सामाजिक धार्मिक एवं एथेनिक व्यवस्था को खंडित किया जाता है तो हम विध्वंसक को किस तरह से दीर्घकाल तक स्वीकार कर सकते हैं।

    वैसे इन दिनों हिंदू और हिंदुत्व जैसे शब्दों पर भी अल्प ज्ञानी विशद व्याख्या करने को उतारू हैं ! हिंदुत्व एक एब्स्ट्रेक्ट है हिंदुत्व को हिंदू जब एग्जीक्यूट करता है तो वह विभिन्न प्रकार से परंपराओं, रीतियों, और आज्ञाओं  का परिपालन करता है। इसमें कहां हिंसा है बताएं शायद कहीं भी नहीं। जब हिंसा नहीं है तो दिवाली होली दशहरा जैसे पर्व टारगेट किए जाते हैं। मात्र 4 दिन का दीपावली पर्व पर मुख्य रूप से झोपड़ियों से अट्टालिकाओं को ज्योतिर्मय करना कहां प्राकृतिक छेड़छाड़ है। हां पटाखे चलाए जाते हैं। इन पटाखों से अवश्य कुछ प्रतिशत पर्यावरण प्रभावित होता है परंतु उपभोक्तावादी वैश्विक सामाजिक व्यवस्था के लिए जो कारखाने खोले गए हैं उनका क्या ?

    मामला 365 दिनों का अगर है तो जायज है सवाल उठाना ! परंतु केवल पर्व को दोषी साबित कर देना अथवा होली पर पानी की कमी का रोना रोना क्या सनातनीयों को टारगेट करने का प्रयास नहीं है। सनातन तो नहीं कहता कि किसी पर्व पर पशुओं की बलि देना इकोसिस्टम को गंभीर रूप से प्रभावित करता है? फिर किस आधार पर हिंदुत्व दूषित है या दोषपूर्ण है या उस पर अंगुलियां उठाई जाती हैं। सामाजिक व्यवस्था में हमारी परंपराओं एवं हमारे एथेनिक संकेतों को लक्षित करना न केवल अन्याय है बल्कि हिंदुओं पर अघोषित प्रहार भी है। तथाकथित बुद्धिजीवियों को समझ लेना चाहिए कि- यज्ञ और साधनाएं जिसमें हवन शामिल हैं से पर्यावरण संरक्षण होता है। कोशिश करें समझने की..,  कि सनातन क्या है हर बात में सियासत अच्छी नहीं ।

   समाज समाज की परंपराएं उस क्षेत्र की जलवायु भौगोलिक परिस्थिति एवं वहां रहने वाले लोगों की प्राचीन से परिष्कृत होते हुए वर्तमान तक की सामाजिक आर्थिक व्यवस्था से बनती है। भारत कृषि प्रधान देश रहा है उसकी अपनी प्राचीन सामाजिक व्यवस्था एवं प्रणाली है जो दिनोंदिन परिमार्जित होती रहती है। जबकि कुछ व्यवस्थाएं बदल ही नहीं पातीं । परिस्थिति जो भी हो अपनी राजनीतिक लक्ष्यों को साधने के लिए सामाजिक व्यवस्था को बिगाड़ना बहुत बड़ा अपराध होगा और आने वाली नस्लें ऐसे किसी प्रयास को माफ नहीं कर सकती ।जहाँ तक गुरुद्वारे में विधर्म आराधाना की अनुमति देने का वाकया है.... उसके आधार में प्रबंधन कमेटी के पदाधिकारियों को पूज्य गुरु तेग बहादुर जी  एवम साहिबजादों का  बलिदान याद नहीं । अभागे लोग हैं । 

16.11.21

भारत के संदर्भ में राष्ट्रवाद

राष्ट्रवाद और भारतीय संस्कृति की अवधारणा
    आजकल राष्ट्रवादी विचारधारा बेहद प्रासंगिक और प्रभाव शिल्पी है। बावजूद इसके खुद को राष्ट्रवादी साबित करने के लिए लोग यह प्रयास करते हैं कि वह धर्म की वकालत करें या उस पर चर्चा करते रहे।
    और जो अपने आप को राष्ट्रवादी नहीं मानते वह भी इतने कुंठा ग्रस्त नजर आते हैं कि किसी बहुसंख्यक आबादी को निशाना बनाने से खुद को बचा नहीं पाते। जहां तक भारत के संदर्भ में राष्ट्रवाद का प्रश्न है राष्ट्रवाद की परिभाषा का पुनरीक्षण या उसकी स्पष्ट व्याख्या जरूरी है।
  वर्तमान में जो परिभाषा दी है सबसे पहले उसे देख लेते हैं:-
"राष्ट्रवाद (nationalism) यह विश्वास है कि लोगों का एक समूह इतिहास, परंपरा, भाषा, जातीयता या जातिवाद और संस्कृति के आधार पर खुद को विभाजित करता है। इन सीमाओं के कारण, वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि उन्हें अपने स्वयं के निर्णयों के आधार पर अपना स्वयं का संप्रभु राजनीतिक समुदाय, 'राष्ट्र' स्थापित करने का अधिकार है।"
    बुद्धिमान और विद्वान इस संदर्भ में मौन है। और उनकी यही चुप्पी न केवल राष्ट्रवाद को सही तरीके से प्रस्तुत होने दे रही है और ना ही उसे अच्छी तरह प्रस्तुत किया जा रहा।
   राष्ट्रवाद में जाति का या जाति समूह परंपरा भाषा आदि आदि को घटक के रूप में शामिल कर कुल मिलाकर मानवता के विरुद्ध परिभाषित करने की कोशिश की है। स्पष्ट रूप से देखा जाए तो राष्ट्रवाद को सार्वभौमिकता की भारतीय अवधारणा से जिसमें वसुधैव कुटुंबकम सूत्र वाक्य का उल्लेख किया गया है को मानवता का विरोधी माना है।
    वास्तव में राष्ट्रवाद राष्ट्र की भौगोलिक सांस्कृतिक एवं परंपरागत यह कुल मिलाकर सभ्यता के विकास का प्रयास है ।
   प्रचलित परिभाषा हिटलर के डोर वाले जर्मन के नाजीवाद की छवि के आधार पर बनाई गई है। भारत जैसे देश जहां की मूल अवधारणा में वसुदेव कुटुंबकम वहां यह परिभाषा लागू करना ऐतिहासिक भूल है।
    भारत में राष्ट्रवाद की परिभाषा क्या होनी चाहिए...?
     इस विषय पर अब विमर्श की आवश्यकता है .. !
    मेरे दृष्टिकोण से भारत के संदर्भ में "हम भारत के लोग अपनी भौगोलिक सीमाओं के भीतर समतामूलक समाज की परंपराओं का पालन करते हुए शांति सद्भाव एवं समन्वय के साथ राष्ट्र की प्रभुसत्ता, एवं आंतरिक एवं बाहरी सुदृढ़ता के लिए प्रतिबद्ध हैं..! हम अपनी इस प्रतिबद्धता के लिए भारत के संविधान में सन्निहित बिंदुओं के लिए वचनबद्ध हैं । यही हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है यही हमारा राष्ट्रवाद है। हम वैश्विक संस्कृतियों के सम्मान के साथ अपनी संस्कृति के प्रकटीकरण के अधिकार की रक्षा करते हैं। हमारा राष्ट्रवाद किसी संप्रदाय के सम्मान के साथ उनके द्वारा हमारे आत्मसम्मान की रक्षा पर आधारित है।"
     प्रचलित परिभाषा में राष्ट्रवाद को एक अवधारणा Concept माना गया है जबकि उपरोक्त अनुसार दी गई परिभाषा में राष्ट्रवाद कांसेप्ट नहीं एक डिक्लेरेशन अर्थात उद्घोषणा है।
    यहां स्वर्गीय बापू श्री मोहनदास करमचंद गांधी जी अर्थात बापू जी के उस उत्तर से सहमति नहीं है कि राष्ट्रवादी भटके हुए हैं।
   राष्ट्रवाद और राष्ट्रवादी भारतीय संदर्भों में सहिष्णुता की सबसे बेहतरीन मिसाल है ।
   भारतीय राष्ट्रवाद को सूक्ष्म नजर से देखा जाए तो भारतीय राष्ट्रवाद सेवा और समानता का एक अमूर्त किंतु सर्वमान्य दस्तावेज है। भारत में राष्ट्रवाद सनातन धर्म  तथा उसमें अंतर्निहित समुदायों तथा अन्य विदेशी संप्रदायों के साथ प्रारंभिक तौर पर ही सम्मानजनक व्यवहार करता है। अतः आवश्यक नहीं है कि पृथक से सेक्युलर होने की कोई गारंटी दी जावे।
    भारतीय राष्ट्रवाद किसी आक्रांता भयभीत करने वाली ताकतों संस्कृति एवं धार्मिक कटाक्ष की निंदा करता है। सनातन धर्म में अंतर्निहित प्रावधान डॉक्ट्रींस एवं एडवाइजरी बहुविकल्पीय होने के कारण देश काल परिस्थिति के साथ परिवर्तित होती रहती हैं। किंतु किसी के व्यक्तिगत हित के लिए इसे परिवर्तित नहीं किया जाता और ना ही ऐसी करने की कोई अनुशंसा ही की गई है। अतः यह समझना जरूरी है कि भारतीय राष्ट्रवाद एक तरह से सतर्क एवं सचेत जीवन शैली भी है ।
    यह जीवन शैली परंपराओं एवं सामाजिक सांस्कृतिक प्रथाओं के परिपेक्ष में स्वयं अनुकूलित हो जाती है।
     मूल रूप से भारत में जाति प्रथा नहीं है। वास्तव में यह वर्ण व्यवस्था है जिसका सीधा संबंध अर्थ उपार्जन की प्रक्रिया से है। कालांतर में सोने का काम करने वाला सोनी हो गया तो लोहे का काम करने वाला लोहार हो गया। क्योंकि उन्हें एक ही प्रकार का एनवायरमेंट प्राप्त था अतः वे उसी समूह में रहने लगे और उन्हीं के साथ सामूहिक सामाजिक व्यवहार रीति रिवाज आदि का पालन करने लगे यह दीर्घकालीन परिणाम है ना कि भारतीय दर्शन में इसका कोई अस्तित्व रहा है। इसे समझने के लिए वैदिक व्यवस्था को समझना होगा।
  विदेशी आक्रांताओं के आक्रामक रवैया से तदुपरांत फूट डालो राज करो के सिद्धांत के आधार पर सामाजिक विघटन मध्यकाल के आते आते वृहद रूप से हो गया और इसे स्थायित्व मिला। यद्यपि यह विषय बहुत अधिक विचार का है परंतु इस विषय पर विमर्श आयातित विचारधाराओं के प्रभाव से बेहद नकारात्मक रूप से प्रभावित हुआ है। अब तो ना शास्त्रार्थ होते नाही विमर्श होते। अब केवल अपनी मत एवं मंतव्य की स्थापना के प्रयास बौद्धिक स्तर पर भी होने लगे हैं। अस्तु भारतीय राष्ट्रवाद किसी जाति धर्म संप्रदाय वर्ग वर्ण भाषा क्षेत्र से विरत एकात्मता की परिभाषा के रूप में प्रतिष्ठित है। यहां जर्मन की तरह कभी कोई कोई बंधन नहीं था या नहीं है कि भारत में रहकर आप अपनी स्वधर्म का या सांप्रदायिक मूल्यों का पालन नहीं कर सकते। इसका उदाहरण पूर्व काल में भारत में गिरजाघर और प्रार्थना स्थल के लिए हमारे पूर्वज भूमि और संसाधन भी प्रदान करते थे।

उत्तर पूर्वी सीमाओं पर भारत का पहरेदार S-400


एस-400 ट्रिम्फ एक विमान भेदी हथियार एस-300 परिवार का नवीनीकरण के रूप में रूस की अल्माज़ केंद्रीय डिजाइन ब्यूरो द्वारा 1990 के दशक में विकसित विमान भेदी हथियार प्रणाली है। यह 2007 के बाद से ही रूसी सशस्त्र सेना में सेवा कर रही है। (Wikipedia)
    रूस में विकसित यह मिसाइल रूस की एक और रक्षा प्रणाली S-300 का एडवांस रूप है . इस रक्षा प्रणाली पर भारी मात्रा में पैसे खर्च करने के औचित्य को लेकर सवाल उठाए जा सकते हैं परंतु इसी रक्षा प्रणाली के खरीदने के लिए जिन तथ्यों को महत्वपूर्ण माना जाता है उनमें लाल साम्राज्य अर्थात चीन की विस्तार वादी नीति सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। अपने व्यवसाय हित को साधने के लिए चीन पूर्वोत्तर राज्यों में भी अपना हक जमाना चाहता है और उसकी कोई भी अंतरराष्ट्रीय संधि ऐसी नहीं है जिसमें चीन ने अपना लाभ ना देखा हो।
*S400 की सप्लाई प्रारंभ।*
   चीनी विस्तार वादी नीति के विरुद्ध भारत ने विलंब से किंतु जरूरी कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि है की S400 के आने के बाद पूर्वोत्तर शक्ति संतुलन की स्थिति निर्मित हो जावेगी। कुछ विद्वानों का यह मानना है कि इससे उत्तेजित होकर चीन अपने हथकंडे अपनाने शुरू कर देगा।
     मेरा मानना है कि वर्तमान में चीन की आंतरिक व्यवस्था बेहद खतरनाक एवं तनावपूर्ण है। इसका उदाहरण चीन में हुए लगभग 150 बम विस्फोट से लगाया जा सकता है। बावजूद इसके कि- चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने जिंग पिंग के हाथ मजबूत किए हैं।
     विश्व राजनीतिक पटल पर राष्ट्रपति की गैरमौजूदगी भी इसी फैक्ट को पुष्ट करती है।
   ऐसा नहीं है कि  S400 की तैनाती केवल उत्तर पूर्वी सुरक्षा के लिए की जाएगी बल्कि माना जा रहा है कि यह पाकिस्तान को भी कवर करने के लिए कारगर साबित होने वाली एक बेहतरीन मिसाइल है।
     इस मिसाइल को लेकर सबसे ज्यादा उत्तेजक वातावरण पाकिस्तान के मीडिया जगत में देखा गया।
भारत के अधिकतम प्रयासों के बावजूद भारत की पश्चिमी एवं उत्तर पूर्वी सीमाओं पर पिछले कई वर्षों से तनाव एवं झड़प की स्थिति को देखते हुए भारत के इस निर्णय पर विश्व वैश्विक स्तर पर सराहना स्वभाविक है। चीन की विस्तार वाली नीति को लेकर विश्व न केवल नाराज है बल्कि कोविड-19 से प्रभावित सभी  देश और उसकी आबादी चीन के प्रति बेहद आक्रोशित है।
    विगत रात्रि एक रक्षा विशेषज्ञ व्यवसाई श्री पराग द्वारा अपनी टि्वटर हैंडल से यह बात अभिव्यक्त की कि भारत निकट भविष्य में पूर्वोत्तर सीमा और पाकिस्तान को कवर कर लेगा यह कार्य आज से 20 वर्ष पूर्व कर लेना था। जो नहीं हो पाया।  राष्ट्र की संप्रभुता एवं उसके अस्तित्व की रक्षा करना राष्ट्र प्रमुख की जिम्मेदारी है।
     अब मीडिया के बढ़ते हस्तक्षेप के मद्देनजर वैश्विक राजनीति से परिचित होना बहुत जरूरी है। वैश्विक राजनीति का प्रभाव भारतीय अप्रवासियों पर भी पड़ता है। मेरे एक मित्र रमेश सूरी जी एवम विशेष जी कहते हैं कि वास्तव में हमें जो सम्मान अब मिल रहा है उसे हम हासिल कर पाने में पहले असमर्थ रहे हैं।
   वैश्विक राजनीति के संदर्भ में देखा जाए तो भारत ने कोविड-19 में जो प्रदर्शन किया उससे भारत की स्थिति बेहद मजबूत हुई है। पराग जी के मत के अनुसार विश्व में उसे ही श्रेष्ठ माना जा रहा है जिसका मेडिकल क्षेत्र में रक्षा क्षेत्र में दबदबा कायम हो तथा आर्थिक मॉडल उत्कृष्ट हो वह देश इन दिनों प्रासंगिक है। इस शताब्दी में पराग जी के इस कथन को अस्वीकार करना बहुत कठिन है। इसमें कोई शक नहीं कि एस 400 महंगा सौदा है परंतु विपरीत परिस्थितियों में जैसा की बहुत संभव है भारत यह सिद्ध कर पाएगा कि यह समझौता कितना महत्वपूर्ण और समकालीन परिस्थितियों में प्रासंगिक है। रूस से यह समझौता अमेरिकन दबाव के बावजूद करके भारत एवं रूस ने यह संदेश दिया है कि आत्मरक्षा का कोई दूसरा विकल्प हो ही नहीं सकता। भारतीय रक्षा व्यवस्था में सुधार लाना उसे परिमार्जित करना एक प्रभावी प्रणाली है और इसका स्वागत और सम्मान करना ही होगा। अगर इस रक्षा सौदे को लेकर किसी भी तरह का कन्फ्यूजन हो तो हम गलवान से लेकर अब तक के जिनपिंग के नकारात्मक प्रयासों को देख कर ही समझ सकते हैं ।

12.11.21

ऊन-सलाई वाले दिन..!


  वो दिन जो अब कभी नहीं लौटेंगे यकीन कर लो कभी नहीं लौटेंगे । न मां तुम हो ना तुम्हारी वह सखियां जो सर्दियों वाली दोपहरी में आंगन भर देती थीं गौरैया तब परेशान हो जाती थी फिर भी बगल में सूख रहे अनाज को चुग ही लेती थी। मां तब तुम थी जब मिट्टी के आंगन में दिवाली के बाद दोपहर रोज दिवाली हुआ करती थी। हंसी ठहाको के अचानक पटाखे फूटा करते थे। तो कभी पता नहीं चलता था कि किसी के दुख में मुंह में ऊपर वाले तालु और जीव के बीच से आप सब किच्च किच्च की आवाज निकाल रही हैं या गौरैया के झुंड से चिक चिक की आवाज निकल रही है। कभी कभार पता चल जाता था जब कोई सखी साड़ी के पल्लू से कोरों को सुखाती । 
   परिवार के हर सदस्य के  लिए हर साल एक नया स्वेटर बुनने वाली तुम और तुम्हारी सखियां ऊन वाले से बहुत रिक झिक करतीं थीं । आखिर हारता वही था।
     मां मुझे याद है और जिसे याद ना होगा याद आ जाएगा सड़क पर फेरी लगाता ऊन वाला पूरे गांव में- ले ल्यो ऊन लेल्यो केशमी उन वाल्या कुल 200 या 300 रुपयों में गांव भर को ठंड से बचने का साधन दे जाता था। और फिर शुरू होती थी आप सब की साधना। रोज दोपहर 12 बजे से शाम तक स्वेटर की बुनाई का दौर बचा खुचा काम हम सब को खिलाने पिलाने के बाद लालटेन की जीवनी रोशनी महिंद्रा देती थी। हमें मालूम था कि हमारी स्वीट मां तुम जरूर बुनोगी ।
   हाथ बुनाई की स्वेटर अलग-अलग डिजाइन में पूरा वातावरण कलरफुल और जाड़ा उससे तो पूरा गांव कह दिया करता था- जाड़ा तो क्या जाड़े का बाप भी आ जाए तो हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। हमें मालूम नहीं कब सोती थी कब जाती थी सोती हुई थी या नहीं भगवान जाने।
    अब तो ऊन-सलाई, ऐसा लगता है इतिहास है। मुझे याद है एक बार जब मैं जॉब पर लगने के बाद किसी आंगनवाड़ी के इंस्पेक्शन पर गया तो देखा कि- वह वर्कर स्वेटर बुन रही है। खाली समय था मुझे भी कोई आपत्ति नहीं थी परंतु अकारण भय वश वह उसे छुपाने की कोशिश की अपनी लगी..!
   और जब मैंने उससे कहा जरा दिखाओ तो डरते कांपते उस महिला ने जब स्वेटर दिखाई तब मुझे तुम्हारी बहुत याद आई थी। मैंने उससे कहा था कि आज तुमने मेरी मां की याद दिला दी। डिजाइन बहुत अच्छी बनाई है।
  औरतें तब पिछड़ी नहीं थी कुछ किताबें पढ़ कर कोई पढ़ा लिखा नहीं बन जाता। यह औरतें तब आत्मनिर्भर थी हर घर में सिलाई मशीन हर घर में ऊन-सलाई पुराने ऊन के गोले, जो अक्सर नई डिजाइन में बनी स्वेटर के साथ फिर हमारे सीने से जा सकते थे। मां तुम बहुत याद आती हो सीने पर चिपके हुए उन स्वेटर्स को याद करता हूं तो बहुत याद आती हो। याद है मौसी और मंगला दीदी ने भी फूल भी बुनकर टाक दिए थे मेरी हरी और सफेद ट्विटर पर। बहुत कठिन बुनाई थी।
     वह अब वह कला वह आत्मनिर्भरता
ना गांव में है ना शहर में। पता नहीं तुम सब जो आठवीं या मैट्रिक तक भी पढ़ीं न थीं । कुछ तो निरक्षर ही थी और कुछ 2-3 क्लास पढ़ी हुई । पर ऊन के गोले में लपेट कर बखूबी बचत को जमा कर घरेलू बचत को हिफाजत से रख देती थीं । न अब किसी के पास स्वेटर बुनने का वक्त है और ना ही स्वेटर की गर्मी में अपनी ममत्व की गर्मी को समाहित करके पहनाने की हिम्मत ही शेष है। सुना है टाइम किसी के पास नहीं है। अब हमारी गली से ऊन वाला नहीं निकलता । ना वह दोपहर की आंगनवाली सभाएं सजतीं । तब आप नई बेटियों और बहुओं को जीवन के संकल्प समझाती। मां आप आंगन नहीं सजते । 
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

10.11.21

freedom movement for sindhudesh in Pakistan

पिछले आर्टिकल में आपने बलोच फ्रीडम मूवमेंट के बारे में पढ़ा था कि किस तरह से पाकिस्तान में फ्रीडम मांग रहे हैं वहां के बलूचिस्तानी। वास्तविकता यह है कि जितना बलूचिस्तान के लोग परिपक्वता के साथ आंदोलन को आगे ले जा रहे हैं उसके सापेक्ष परिपक्व नहीं है। ट्विटर स्पेस चलाने वाले कुछ हैंडल को सुन कर  यह स्पष्ट होता है कि अल्ताफ हुसैन की कोशिश को आई एस आई एवं आर्मी की साजिशों का ना काम करने की कोशिश कर रही है। एक राष्ट्र में यह स्वभाविक कि वह किसी भी अलगाववादी आंदोलन को दबाए और वह ऐसे प्रयास करता है । 
   लेकिन आंदोलनों को दबाने की विधि पूरी तरह से अमानुष एवं वर्तमान संदर्भ में कहा जाए तो मानव अधिकारों के खिलाफ है। यहां भी वही स्थिति है जैसा कि बलूचिस्तान में पाकिस्तानी प्रशासन कर रहा है। लोगों को उठाकर ले जाना और फिर उनकी ला से अज्ञात खाली जमीन पर फेंक देना जैसे मुद्दे इन स्पेस  में सम्मिलित पाए गए।
   लोगों का कहना है कि सरकारी नौकरियों में सिंध के कोटे के साथ भी हेरफेर किया जाता है। सोशल मीडिया पर यह भी खुलकर सामने आया है कि सिंध क्षेत्र आर्थिक तौर पर बहुत समृद्ध है।
     बलूचिस्तान और सिंध देश आजादी की मांग ठीक उसी तरह करने पर आमदा है जिस तरह बंगबंधु मुजीब उर रहमान ने पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश बनाकर किया है। वास्तव में जो मैच्योरिटी पूर्वी पाकिस्तान में थी वह मैच्योरिटी यद्यपि इन दोनों आंदोलनों में नजर नहीं आती। परंतु यह भी उससे बड़ा सत्य है कि पाकिस्तान के पंजाब सूबे के खिलाफ अब आवाज तेजी से बुलंद होती जा रही है। संजरानी नामक एक टि्वटर आईडी के द्वारा भी सिंधुदेश के लिए निरंतर आवाज उठाई जा रही है।
  बलूचिस्तान एवं अल्ताफ हुसैन की लीडरशिप में चलाए जा रहे हैं सिंधु देश की मुक्ति के लिए चलाए जा रहे इस आंदोलन के कमजोर होने की कई सारी वजह हो सकती हैं उनमें से सबसे प्रमुख है कि वे अब एक ऐसी पाकिस्तान आर्मी के सामने हैं जो कुछ ज्यादा ही चतुर एवं चालाक लोगों के हाथों में है।
   दक्षिण एशिया में अगर कोई सबसे अशांत देश है तो उसमें इस सबसे पहला है चीन जिसकी अशांति विश्व के सामने तक पहुंच क्यों नहीं रही है पर इंटरनल जबरदस्त लावा देख रहा है। उसके बाद अफगानिस्तान पाकिस्तान अपने आप को इस सूची में लाने में सफल है। सिंधु देश के लिए आंदोलन करने वालों के साथ सोनम महाजन भी पिछले कुछ दिनों से देखी जा रहीं है । इसका अर्थ क्या निकलता है यह एक अलग बात हो सकती है परंतु सोशल मीडिया पर किसी भी तरह की स्वतंत्रता के मंतव्य को विस्तारित तो किया जा सकता है परंतु स्वतंत्रता मिलना ना मिलना वहां के आंदोलनकारियों की रणनीति पर निर्भर करता है।
यहां एक बात पूरी तरह से स्पष्ट है कि पंजाब सिंध प्रांत के अनुपात में पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था के लिए अन उत्पादक श्रेणी का इलाका माना जाता है । जबकि बलूचिस्तान प्राकृतिक संपदा ओं से भरा पड़ा है। जिसके दोहन की क्षमता पाकिस्तान की पूर्व आर्मी डेमोक्रेटिक सरकार के पास ना तो कभी थी ना है और ना रहेगी। पाकिस्तान का चिंतन यह है कि वह किसी भी तरह से एक ऐसा वतन बनके रहे जहां हुक्मरान और गरीब आवाम हमेशा जिंदा रहे। यही है पाकिस्तान की सबसे बड़ी कमजोरी। आपने आज तक कोई भी ऐसा इन्वेंशन नहीं सुना होगा जो पाकिस्तान में हुआ हो। वह 70 वर्ष तक अमेरिका और अन्य देशों के हाथों की कठपुतली बना रहा। बोरिस जॉनसन ने पिछले दिनों भारत के प्रधानमंत्री श्री मोदी के लिए जो शब्द कहे की एक सूर्य है एक प्रकृति है और एक नरेंद्र मोदी है। इसका अर्थ यह है कि विश्व भारत की क्षमताओं एवं उसकी शक्ति को पहचान चुका है। और यही सब हमारे पड़ोसी देश को पसंद नहीं। विश्व राजनीति को भारतीय समझाने में सफल हुआ है कि आतंकवाद अंततः है अंतररष्ट्रीय बुराई है

9.11.21

Freedom movement intensified in Balochistan.

क्या पाकिस्तान फिर टूटेगा ?
            विगत कुछ दिनों में 18 बलूच स्टूडेंट्स को जबरिया हॉस्टल से उठा कर ले हथियारों से लैस लोग अपहरण करके ले गए । घर से जबरन उठाना सिंध और बलूचिस्तान के नागरिकों लिए कोई नई बात नहीं है। नादिर बलूच बताते हैं कि- यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट और वाइस प्रेसिडेंट को अगवा करके ले जाया गया जिनका अब तक कोई अता पता नहीं है। अपहृत युवाओं एवं आंदोलनकारियों की हत्या भी कर दी जाती है और  हत्या के बाद शव को क्षत-विक्षत हालत में वीरान जगहों पर फेंक दिया जाता है। ऐसी क्रूरता लगभग 20 वर्षों से जारी होने की जानकारी ट्विटर स्पेस के जरिए इन दिनों आम होने लगी। इसी गुमशुदगी के विरोध में बलूचिस्तान यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स  एक दिनी स्ट्राइक की घोषणा की है। यह स्ट्राइक  8 नवंबर 2021 से प्रारंभ करने जा रहे हैं । आंदोलनकारियों का कहना है कि बलूचिस्तान के स्टूडेंट्स को यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर और पाकिस्तानी इंतजामियां के द्वारा उनके हॉस्टल से लगभग अपहृत किया जा रहा है। मानव अधिकार का घोर उल्लंघन करते हुए बलूचिस्तान में रियाज बलोच के अनुसार अब तक सैकड़ों लोगों को बिना किसी वैधानिक कार्रवाई के हिरासत में लेकर लापता कर दिया जाता है। बलूचिस्तान के मेंबर ऑफ पार्लियामेंट मेंबर ऑफ लेजिसलेटिव असेंबली तथा मुख्यमंत्री की भूमिका पर भी अब तो उस सवाल उठने लगे हैं। परंतु आई एस आई एवं पाकिस्तानी आर्मी का मानव अधिकार हनन का एजेंडा लगातार जारी है।
स्पेस पर मुखर होते बलूच नागरिक अब तो खुलेआम सरकार के कर्तव्यों और अपने अधिकारों की आवाज उठाते हैं। यह एक प्रतीकात्मक घटना है वास्तव में सिंध और बलूचिस्तान दोनों ही किसी भी हालत में पाकिस्तान के साथ रहना पसंद नहीं कर रहे है, और यही है पाकिस्तान के भविष्य में होने वाली विघटन का आधार। बलूचिस्तान तथा सिंधुदेश के नागरिक मूलभूत सुविधाओं के अभाव में घबराए हुए हैं।
    पिछले दिनों टि्वटर स्पेस में अपनी तकरीर करते हुए एक बलूच एक्टिविस्ट ने बताया था कि- जो नौजवान शादी करने जा रहा था उसे तक शादी की रस्म पूरी नहीं करने दी गई। और उसे लापता कर दिया गया। ऐसा नहीं है कि इस मामले में यूनाइटेड नेशन के सामने मानव अधिकार से संबंधित याचिकाएं प्रस्तुत नहीं की गई परंतु यूनाइटेड नेशन द्वारा इस पर बहुत तेजी से काम करने की जरूरत है।
    बलूचिस्तान लिबरेशन मूवमेंट के अधिकांश एक्टिविस्ट इन दिनों बलूचिस्तान से बाहर अमेरिका यूके तथा अन्य यूरोपीयन देशों में रहकर यथासंभव मदद कर रहे हैं परंतु पाकिस्तान आर्मी मानव अधिकार की सबसे बड़ी बाधा सिद्ध होती जा रही है। यदि हम बात करें कि अब तक कितने आंदोलन बलूचिस्तान में किए गए तो हम देखते हैं कि
• प्रथम संघर्ष (१९४७-१९५५)
• द्वितीय संघर्ष (१९५८-५९)
• तृतीय संघर्ष (१९६० के दशक में)
• चतुर्थ संघर्ष (१९७३-७७)
• पंचम संघर्ष (२००४ से २०१२ तक)
• षष्ट संघर्ष (२०१२ से अब तक)
         भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने वाला पाकिस्तान इन दिनों आर्थिक तनाव सामाजिक अस्थिरता के साथ-साथ नागरिक जीवन समंक सिटीजन लाइफ इंडेक्स के मामले में नकारात्मक स्थिति निर्मित कर रहा है।
•     वर्तमान में रोज आजादी की हिमायत करने वाले राष्ट्रों में  इराक, इजराइल, सोवियत संघ,अमेरिका  एवं भारत का नाम भी शुमार होता है (विकीपीडिया के अनुसार)। 
  सभी राष्ट्र उनकी मांगों को जायज स्वीकारते हैं तथा उन पर होने वाले जोर जुल्म के खिलाफ अपनी बात रखते हैं। परंतु विगत कई वर्षों से इस संबंध में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा ना के बराबर ही हुई है। बेशक उसका कारण जियो पोलिटिकल सिचुएशन और कोविड-19 की भयावह स्थिति भी हो सकती है इससे इनकार नहीं किया जा सकता।
   मित्रों पाकिस्तान के आजादी के उत्सव में बलूच और सिंधुदेश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मानसिक और भौतिक रूप से उपस्थित नहीं रहते। इन दोनों स्वतंत्रता की पक्षधर राज्य इन दिनों सोशल मीडिया पर तेजी से सक्रिय हुए हैं। लेकिन कोई भी आंदोलन केवल सोशल मीडिया के जरिए सफल नहीं हो सकता । आंदोलनकारियों को सुभाष चंद्र बोस की तरह अपनी रणनीति बनानी होगी तब वह किसी हालत में पाकिस्तान की वर्तमान आर्थिक अव्यवस्था सामाजिक प्रतिकूलता एवं अपनी राष्ट्रवादी आस्थाओं के साथ आगे बढ़ सकते हैं। ट्विटर पर आज स्पेस में पता चला कि स्टूडेंट्स का हड़ताल वाला आव्हान वर्तमान में लापता 15 स्टूडेंट्स की रिहाई की घोषणा तक चल सकता है और इस पर भी प्रो आर्मी पाकिस्तानी डेमोक्रेटिक सिस्टम ने अगर उन्हें रिलीज नहीं किया तो वह पूरी यूनिवर्सिटी को लगातार बंद रख सकते हैं।
     एफएटीएफ द्वारा लगे प्रतिबंधों में अगर मानव अधिकार को भी शामिल किया जाए तो पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से मुक्ति तो नहीं मिल सकती बल्कि उन्हें ब्लैक लिस्ट में भी जाना पड़ सकता है। भारत में संप्रदाय विशेष के लिए गाहे-बगाहे प्रश्न उठाने वाले पाकिस्तान के शीर्ष नेतृत्व एवं उनके कैबिनेट के लोग आत्म निरीक्षण कर कम से कम मानव अधिकारों के संबंध में ना तो गंभीर है और ना ही संवेदित नजर आते हैं ।
    वर्तमान परिस्थितियों को पर गौर करें तो पाकिस्तान की स्थिति 1971 वाली स्थिति हो सकती है इसमें कोई दो राय नहीं। यह पाकिस्तान की प्रो मिलिट्री डेमोक्रेसी आई एस आई और मिलिट्री स्वयं भी जानती है ।
गिरीश बिल्लोरे मुकुल

8.11.21

भारत केवल एक भूमि नहीं बल्कि विचार भी है


  भारत एक भूखंड का नाम नहीं है बल्कि भारत एक विचार भी है इस विचार में अंतर्निहित है-
[  ] भारत की सभ्यता
[  ] सभ्यता एवं संस्कृति का प्रवेश द्वार
[  ] आध्यात्मिक जीवन धारा
[  ] सांस्कृतिक वैभव
[  ] वैश्विक सहिष्णुता
       भारतीय सभ्यता बहुत प्राचीन है कोई भी नकार नहीं सकता। भ्रांति वर्ष या उदाहरणों की साक्ष्यों की उपलब्धता ना होने के कारण यह कई बार कहा गया है कि भारत की सभ्यता का विकास बिंदु लगभग 5000 वर्ष पुराना है। इस संबंध में चिंतन एवं अध्ययन से पता चलता है कि भारत की सभ्यता का विकास वर्तमान मन्वंतर में 25000 वर्ष पूर्व हुआ। इसके पूर्व भारतीय सभ्यता वनचारी सभ्यता थी इसमें कोई शक नहीं। वनचारी सभ्यता का अर्थ समझने के लिए श्रीयुत श्रीधर वाकणकर को संदर्भित किया जा सकता है। उनकी खोज से स्पष्ट हो जाता है कि मध्य भारत में भी प्राचीन मानव के आवासीय प्रमाण मिले हैं। और यह प्रमाण लगभग डेढ़ लाख से दो लाख वर्ष पूर्व के हैं। यहां यह प्रमाण नहीं मिलते कि भारत में मनुष्य प्रजाति का प्राणी अफ्रीका से आया था। इसके पीछे मेरा अवलोकन है कि-"जहां मानव प्रजाति के पूर्व अन्य स्पीशीज के सृजन का अवसर प्रकृति ने दिया वहां कालांतर में मानव सभ्यता का विकास हुआ है। अब यह कहना सर्वथा संदिग्ध होगा कि- अफ्रीका से मानव प्रजाति का झील विकसित हुआ"
    डायनासोर जो मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले के नजदीक स्थित जिला डिंडोरी के जंगलों में पाए जाते थे। इस बात की गवाही देते हैं वहां मिले फॉसिल। अर्थात डायनासोर  और उससे छोटे जीवो का अस्तित्व भारत में रहा है ऐसी घटनाएं और जगह भी हो सकती हैं इससे असहमति नामुमकिन है। सुधि पाठक जन इसका तात्पर्य है कि जीव विकास के लिए अनुकूल परिस्थिति जब मध्यप्रदेश में करोड़ों साल पूर्व रही है तो मानव जीवन के अस्तित्व में आने की परिस्थिति से इनकार नहीं किया जा सकता।
[  ] सभ्यता एवं संस्कृति का प्रवेश द्वार
शनै शनै वनवासी मानव जीवन ने अपने आप को विकसित किया और यह विकास बौद्धिक कारणों से कर लिया। जिसका का प्रथम चरण का समूह में रहना आत्मरक्षा के प्रयास का नाम जैसे गुफाओं में रहना आदि आदि। फिर धीरे-धीरे समूह का विस्तार हो जाना यह प्रक्रिया मेरे अनुमान से लगभग पच्चीस से पचास हजार वर्ष में पूर्ण हुई होगी। इस प्रकार क्रमश: परंतु धीरे-धीरे सभ्यता विकसित होती रही।
[  ] आध्यात्मिक जीवन धारा-
भारत की आध्यात्मिक जीवन धारा  की रीढ़ की हड्डी है । भारत में जिन सिद्धांतों को हजारों साल पहले प्रतिपादित कर दिया वे मानवता के सिद्धांत थे । द्वैत अद्वैत के मूल आधार पर विश्व बंधुत्व का उद्घोष करता हुआ यह मंत्र सर्वे जना सुखिनो भवंतु मानव संस्कृति का मूल आधार है। इसके बिना कोई भी संस्कृति दीर्घकाल तक व्यवस्थित और स्थापित नहीं रह सकती। भारत का अध्यात्म कहता है कि जब मानवीय मूल्यों का संरक्षण करना हो तो शत्रु को भी प्रोटेक्शन दो और जब न्याय का महत्व रेखांकित करना हो तो महाभारत करो। शब्दों का खेल नहीं बल्कि हमारी सभ्यता की मूलभूत विशेषता है। महाभारत क्यों हुआ कृष्ण ने दुर्योधन से न्याय हित  में कुल 5 गांव मांगे थे दुर्योधन मान लेते पांडव युद्ध के लिए आगे ना बढ़ते। न्याय को न करने वाला सदैव शूलों की शैया पर लेटता है । वरदान जो अभिशाप बन जाता है इच्छा मृत्यु का वरदान बीच में जैसे पवित्र व्यक्ति के लिए अभिशाप बन गया। अभिशाप इसलिए कि नुकीले वाणों से बनी सैया पर एक लंबी अवधि तक उन्हें लेटे रहना पड़ा। उन्होंने द्रोपती के चीरहरण के समय महिला के हित में एक भी आवाज ना उठाई। वास्तव में यह एक संदेश भी है कि यदि आप कमजोर के हितों के रक्षक नहीं है तो आपको उसका परिणाम अवश्य मिलेगा। अफगानिस्तान की परिस्थितियों को देखिए जुल्म जुर्म और आक्रांता का दस्तावेज बन गया है अफगानिस्तान। इतिहास में कभी भी इन्हें सकारात्मक नजरिए से कोई नहीं देखेगा। मुझे तो संदेह है कि ऐसी विचारधारा भी बहुत जल्दी समाप्त हो जाएगी जो कमजोर वर्ग के लिए हिंसक हो। आपने देखा होगा माया इंका,मिस्त्र की सभ्यता
,मेसोपोटामिया की सभ्यता,सुमेरिया की सभ्यता,असीरिया की सभ्यता,चीन की सभ्यता,यूनान की सभ्यता,रोम की सभ्यता समाप्त हुई इसके पीछे उनकी आध्यात्मिक विचारधारा में कमियां निश्चित रूप से मौजूद रही है।
[  ] सांस्कृतिक वैभव-
भारत के सांस्कृतिक विकास में धर्म जो संप्रदाय नहीं है,मानवीय मूल्य, आध्यात्मिक दर्शन, मानवता के प्रति प्रतिबद्धता, जन के अधिकारों जैसे तत्वों का न्याय और निष्ठा का समावेशन किया गया है जिसके परिणाम स्वरूप हमारा सांस्कृतिक स्वरूप वैभवशाली है। और यही वैभव आकृष्ट करता है दुनिया को।
[  ] वैश्विक सहिष्णुता
क्योंकि भारत में विश्व बंधुत्व का समावेश है अतः भारत का सदैव प्रयास होता है कि विश्व के साथ संबंध सकारात्मक रहे। इसके उदाहरण सम्राट अशोक के काल के पूर्व द्वापर और उसके पूर्व त्रेता युग के इतिहास में परिलक्षित होता है।
    इंडोनेशिया बाली जावा सुमात्रा श्रीलंका इत्यादि क्षेत्रों की यात्रा कर बुद्ध ने भी यही साबित किया है।
   अखंड भारत यही है इस का भौगोलिक स्वरूप राजनीतिक स्वरूप सामाजिक एवं आर्थिक स्वरूप भले ही सीमा में बंधा हुआ हो परंतु वैचारिक रूप से जहां एक भारतीय जाता है वहां एक भारत जन्म ले लेता है। अन्य संप्रदायों को बल छल कपट और लालच देकर अपनी संस्कृति और पूजा प्रणाली वितरित करते हुए हमने देखा है आप भी देखते हैं। लेकिन भारतीय ऐसा नहीं करते। भारतीय सनातन के विस्तार के लिए कार्य नहीं करते। क्योंकि सनातन में सन्निहित मूल्यों का क्षरण नहीं होता। अगर आप अमृत की परिभाषा जानना चाहते हैं तो सनातन के मूल्यों को देख सकते हैं। सनातन को स्वीकार नाना स्वीकार ना यहां यह सवाल नहीं है और ना ही मैं सनातन का प्रचारक हूं पर सनातन व्यवस्था अनूठी सामाजिक व्यवस्था है क्यों अनादि है अनंत है।
गिरीश बिल्लोरे मुकुल

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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