8.4.14

श्रृद्धांजली : मित्र अलबेला यानी टीकम चंद जी खत्री को



मेरा स्नेहाभिननन्दन अंगीकृत किया
यह समाचार हम सबके लिये दु:खद और क्षति का समाचार है कि भाई अलबेला जी अब हमारे बीच नहीं हैं. अलबेला जी यानी टीकमचंद खत्री एक ऐसा व्यक्तित्व लेकर अपने सार्वजनिक  जीवन को जी रहे थे जो आम आदमी को क़तई मय्यसर नहीं. जी हां वे खास थे .. जिससे भी एक बार मिले उसके अभिन्न हो गये . चाहे योगेन्द्र मौद्गिल हों अथवा आशुतोष असर  , ललित शर्मा, पाबला जी, राज भाटिया जी सबके दिल में बसी शख्सियत को कौन भुला पाएगा भला. भाटिया जी के भारत प्रवास के दौरान आयोजित ब्लागर्स मीट अविस्मरणीय थी. जबलपुर में एल.एन. सी.टी कालेज़ में आयोजित एक कार्यक्रम में भाई अलबेला आमंत्रित थे  किंतु कुमार विश्वास ने अपनी प्रस्तुति के बाद मंच पर स्वयम कार्यक्रम के समापन की घोषणा की जबकि आयोजकों के मुताबिक ऐसा करने का उनको कोई हक़ न था जब कि अलबेला भी मौज़ूद थे ... जिनकी उपस्थिति का ज़िक्र भी किया था कुमार ने.. पर जब हमने पीढ़ा व्यक्त की तो उन्हौने कहा था-"गिरीश भाई, मंच पर अब सियासी रंग तारी है.. हटाओ छोड़ो.. ! "
                           जब भी जबलपुर से गुज़रते तो वक़्त हुआ तो मेरे साथ न मिला तो फ़ोन पर बातचीत . ऐसा मित्र जिससे मिलकर हमारा ही नहीं उन सबका दिल धार धार अश्रुपूरित कर रहा होगा.... जो अलबेला के तनिक भी सम्पर्क में आए हों .
डा. किसलय के साथ अलबेला जी

                              हास्य कवि एंव मंच संचालक अलबेला खत्री का निधन मंगलवार 8 अप्रेल 14 को दोपहर 3 बजे के करीब हो गया, फेफड़े पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो जाने से उन्हें सूरत के नानपुरा स्थित महावीर क्रोमा हास्पिटल के ICU विभाग में करीब सप्ताह भर पूर्व भर्ती कराया गया था, उनकी स्थिति में कोई सुधार नही होने के पश्चात आज उन्होंने अंतिम साँस ली, देश-विदेश के काव्य मंचों पर वर्षों से अपनी प्रस्तुति के द्वारा अलग पहचान बनाने वाले अलबेला खत्री 'स्टार वन चेनल' पर प्रसारित 'ग्रेट लाफ्टर' कार्यक्रम के विजेता भी रह चुके हैं, तथा अन्य चेनलों पर भी अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं। मूल गंगानगर (राजस्थान) के निवासी अलबेला खत्री अतीत में महाराष्ट्रा के मुंबई व मालेगांव जैसे शहरों में भी रह चुके हैं। कुछ वर्षों पूर्व उन्होंने सूरत में काव्य मंचो के द्वारा अपनी आजीविका प्रारम्भ की थी, शुरुआत में वे शहर के भागल विस्तार के नानावट क्षैत्र में और विगत कुछ वर्षों से अडाजण-पाल विस्तार के रामेश्वरम केम्पस स्थित अपने निजी आवास में रहते थे, परिवार में पीछे उनकी धर्मपत्नि आरती व 12 वर्षीय पुत्र आलोक हैं. 
नि:शब्द स्तब्ध हैं हम काश झूठी हो  खबर
पर नियति नटी का खेल अज़ीब होता है 
नियति उसको छीनती क्यों जो हमारे बेहद क़रीब होता है
... अलबेला की मिलनसारिता अलबेली थी .. अनवरत मित्रों से जुढ़ाव बनाए रखने का हुनर सिर्फ़ और सिर्फ़ अलबेला जी में थी अलबेला अब हमारे बीच सशरीर नहीं पर स्मृतियां शेष हैं... मेरे साथ उनने जमीन पर बैठकर सादा भोजन लिया साथ बैठे देर तक परिवार से बात की.. बाबूजी, हरीश भैया, सतीष भैया, और किसलय जी , जितेंद्र जोशी सबसे मिले.. पारिवारिक मुलाक़ात इतनी आत्मीय थी कि उस मुलाक़ात की यादें अमिट होनी तय थीं...
तभी तो अलबेला जी अब तो कुछ लिखने की हिम्मत भी नहीं बची न ही शब्द ही शेष हैं.. तुम साथ ले गये मेरे शब्द मेरे भाव निष्प्राण तो हम हो गये हैं... तुम सदा अमर रहो.. सबके मानस में ............... अलविदा श्रृद्धांजलियां... अमन ............ अलबेले मित्र को .
अलबेले ब्लाग अलबेला के

Albelakhatri.com
अलबेला खत्री की महफ़िल
Hasya Kavi Albela Khatri






31.3.14

ठाकुर सा’ब का कुत्ता........ जो आदमी की मौत मरा

फ़ोटो साभार "इधर से"
             

  साले कुत्ते की मौत मरेगा.. !, उसे तो कुत्ते की मौत मरना चाहिये... अक्सर ये कोसन-मंत्र का उच्चारण रोजिन्ना सुनाई देता है. पर अगरचे कोसने वाले लोग हमारे ठाकुर साब से मिले होते तो  साले कुत्ते की मौत मरेगा.. !, उसे तो कुत्ते की मौत मरना चाहिये..किंतु  ठाकुर साब के कुत्ते की मौत नहीं.कारण साफ़ है कि ठाकुर साब का कुत्ता कुत्ता न होकर उनका पारिवारिक सदस्य बन चुका था.  वज़ह ठाकुर साब न थे वरन ठकुराइन जी की पारखी आंखें थीं . ये अलहदा बात है कि ठाकुर साब को चुनने में उनकी आंखें धोका खा गईं थीं पर इसका दोष  ठकुराइन जी का न था ... ठाकुर साब का चुनाव पारिवारिक इंतखाब था वोटें इन्ही सु.प्र. ठाकुर को मिलीं. चलिये ठाकुर साब को छोड़िये कुत्ते पर आते हैं..
         "यूं तो वो देसी कुतिया एवम सरकारी अफ़सर के विदेशी कुत्ते के मिलन का परिणाम यानी अर्ध्ददेशी नस्ल का  किंतु  उसे जैकी नाम देकर उसका अंग्रेज़ीकरण किया जाना श्रीमति ठाकुर का ही काम रहा होगा वरना एक मेव स्वामी होने का एहसास उनको कैसे होता. ठाकुर साब को वे सुनते हो, ये, वो, हां..जी... सर्वनामों से सम्बोधित करतीं थीं किंतु जैकी को पूर्ण स्नेह के साथ जैकी का सम्बोधन कर बुलाने वाली ठकुराइन ने अपने बगल वाले कमरे में एक बिस्तर जैसा कि आमतौर पर किशोरवय संधि पर आने वाले बच्चों के लिये बड़े घरों में होता है लगवा दिया.   
जब  ठकुराइन जी जैकी को लाईं थीं तब एक पालना एन उनके बाजू में लगा था. ठाकुर साब की मज़ाल क्या कि वे इस अगाध स्नेहिल वातावरण में निमिष मात्र बाधा उत्पन्न करते 
एक दिन ...
ठकुराइन- ए जी, सुनते हो..?
ठाकुर साब - वो ही तो काम है मेरा.. बोलो !
ठकुराइन- जैकी अब बड़ा हो चला है.. 
ठाकुर साब -  तो ?
ठकुराइन- उसे बाजू वाले कमरे में रखूंगी तुम अब बैठक के पीछे वाले कमरे को ड्रिंक्स-रूम बना लो !
ठाकुर साब (बुदबुदाए ) जो आदेश, हमारी दशा कुत्ते से बदतर हो चली है अब.. 
ठकुराइन- क्या कहा... ?
ठाकुर साब- कुछ नहीं .. हम कह रहे थे आखिर कुत्ता भी तो प्राणी ही होता है.. बताओ युधिष्टिर महाराज उसे स्वर्ग तक ले गए थे.. भाईयों को छोड़ कर.. हम तुम्हारे जैकी को एक कमरा नहीं दे सकते क्या.. ?
                           अर्वाचीन प्रसंगों पर पुरातन प्रसंगों की पुनरावृत्ति से माहौल कुछ सामान्य हुआ वरना ठाकुर साब की फ़ज़ीहत तो तय थी. समय के साथ  उम्र जरावस्था की ओर ले जा रही थी सभी को ठाकुर साब भी बेहद गर्व महसूस करने लगे जैकी पर जब उनने सुना कि अस्थाना साब ने कहा है कि - हे प्रभू, अगला जन्म अगर कुत्ते का देना हो तो मुझे ठाकुर साब का कुत्ता बना. क्या ठाठ हैं भाई उसके..  !!-
ठाकुर साब बताते हैं कि अस्थाना साब का यह वक्तव्य उनकी उम्र में बढ़ा देता है..!! . 
************
आज़ अचानक ठाकुर साब मिले बोले- जबलपुर जाओगे ..?
हम- हां, चलोगे क्या आप भी...?
            ठाकुर साब हमारी आल्टो में लद गए जबलपुर वापस आने के लिये.  रास्ते में हमसे पूछने लगे कि भई पिछले महीने छुट्टी पे थे क्या ? दिखाई नहीं दिये.
हम बोले - जी भंडारी हास्पिटल में थे हम , निमोनिया हो गया था. 
          बस अस्पताल निमोनिया बीमारी का सूत्र पकड़ कर  ठाकुर साब के मुंह से एक लम्बी एम. पी. थ्री फ़ाइल चालू हो गई.. ठाकुर साब शुरु हो गये .. हमारा जैकी भी निमोनिया की वज़ह से प्रभू को प्यारा हुआ. 
हम- जैकी..?
ठाकुर साब- हां हमारा कुत्ता.. 
       और बिना इस बात की परवाह किये ठाकुर साब की   एम. पी. थ्री फ़ाइल चालू .वो सब सुनाया जो पहले भाग में हम आपको बता चुके हैं. फ़िर शहपुरा आते ही चाय पीकर और तरोताज़ा हो बताने  लगे कि - भाई जैकी के इलाज़ पर दो लाख रुपया खर्च हो गया
हम- जैकी..का इलाज़ दो लाख.. 
ठाकुर साब- हां भई हां दो लाख ...
       एक सन्नाटा कुछ देर के लिये पसरा हमने ड्रायवर को देखा वो मुंह झुकाए हंस रहा था हम ने खुद पे काबू पाया हम उनकी चुप्पी तुड़वाने के लिये मुंह खोल ही रहे थे कि श्रीमान जी बोले- यार बिल्लोरे, क्या रोग न था उसे.. हार्ट अटैक , सुगर, बी.पी. सब कुछ तो था. बाकायदा रात बिरात डाक्टर एक फ़ोन पे हाज़िर हो जाते थे . उसके हार्ट का  आपरेशन तक करा डाला ..अरे हां उसको मोतिआ बिंद भी था. लेकिन मरा वो निमोनिया.. से..!!
निमोनिया से...?
                             हां उसके कमरे का ए सी ज़रा हाई था. तुम्हारी भाभी बाहर गईं थीं. कोई घर पर न था वैसे भी वो बीमार चल रहा था. नौकर चाकर में इत्ती अकल कहां.. ए सी तेज़ कर दिया (मैं मन में सोच रहा था कि नौकर चाकर अक्लवान रहे होंगे  तभी तो ईर्ष्यावश ऐसा किया उनने  )   बस दूसरे दिन से जैकी लस्तपस्त तुम्हारी भाभी को फ़ोन लगाया उस वक्त वो दार्जलिंग में थीं. प्रायवेट एयर टेक्सी से भागी भागी आईं .. मैं उस वक्त जबलपुर न आ सका वापस सरकारी नौकर की दशा तो तुम जानते ही हो.. पंद्रह दिन इलाज़ चला पर निमोनिया के लिये उस वक्त ऐसे इलाज़ भी तो न थे अब बताओ तुम पंद्रह दिन में ठीक हो गए न.. ?
         जी में आया कि ठाकुर साब को गाड़ी के बाहर ढकेल दूं.. पर बात बदलते हुये हम बोले- सा, कुत्ता ही था न काहे इतना परेशान थे.. आप लोग..?
    क्यों न होते, वो तो किसी ऐरे-गैरे का कुत्ता तो न था..  सु.प्र. ठाकुर का था. जानते हो एक बार उसका दिल  एक हमारे बड़े बाबू की कुतिया पे आ गया.. मैडम समझ गईं बोलीं गुप्ता जी को समझा दो कि वो रानी को बांध के रखें. वो आज़कल अपने दरवाज़े चक्कर लगाती है जैकी भी कूं कूं कर बाहर भागने को करता है. जब गुप्ता जी की कुतिया की हरकतें ज़्यादा बढ़ने लगीं तो हमने   उनका तबादला कर दिया.जिले से बाहर . और सुनो उस कुत्ते की खासियत ये थी कि जब हम पति-पत्नि लड़ाई झगड़ा करते तो वो हमारी तरफ़ मुंह कर गुर्राया करता था. क्या मज़ाल कि हमारे घर में कोई मेहमान किचिन में घुस जाए. केवल महाराजन को बिना ठकुराइन के किचिन में घुसने देता था.  नौकर चाकर अगर तिनका भी फ़ैंकने जाएं तो जैकी को दिखाना ज़रूरी होता था. 
       जब वो मरा तो ठकुराइन की गोद में उसके लिये इंसानों की तरह कर्मकांड करवाया.. अंतिम संस्कार के बाद पूरी क्रियाएं छैमाह तक.. 
               इस बीच हम जबलपुर आ चुके थे ठाकुर साब को उनके बताए अड्डे पे उतारा और फ़िर आज़ तक सोच रहें हैं कि - जैकी के मरने के बाद अंतिम संस्कार करने वाले ठाकुर साब ने मुंडन कराया था कि नहीं.. या वे पितृपक्ष में उसके नाम की धूप डालते हैं कि नहीं. अगली बार फ़िर जैकी को लेकर ठाकुर साब को उकसाऊंगा. अनुत्तरित सवालो के ज़वाब ज़रूर मिलेंगे......... क्योंकि ठाकुर साब एक बड़ी लम्बी चटाई बिछाते हैं. कोशिश करूंगा कि वे गया जी जाकर कुत्ते का अंतिम श्राद्ध कर दें.    

19.3.14

छै: नारे चऊअन...या नौ छक्के चऊअन....?

 कोई न उठा था उस दिन इस बच्चे को एसी कोच में 
सफ़ाई करते रोकने से .. टी. वी. वाले सियासी विषय
 इससे अधिक गम्भीर हैं क्या..
                       सैपुरा (शहपुरा-भिटौनी) में मन्नू सिंग मास्साब की हैड मास्टरी  वाले बालक प्राथमिक स्कूल में एडमीशन लिया था तबई से हम चिंतनशील जीव हूं. रेल्वे स्टेशन से तांगे से थाने के पीछे वाले स्कूल में टाट पट्टी पर बैठ पढ़ना लिखना सीखते सीखते हम चिंतन करना सीख गए. पहली दूसरी क्लास से ही  हमारे दिमाग में चिंतन-कीट ने प्रवेश कर लिया था.  चिंतनशील होने की मुख्य वज़ह हम आगे बताएंगे पहले एक किस्सा सुन लीजिये        एक दिन  रजक मास्साब हमसे पूछा - कै छक्के चौअन....?
 चिंतन की बीमारी
              चिंतनशील होने के कारण हम एक घटना पर चिंतनरत थे इसी वज़ह उस वक़्त दूनिया (पहाड़ा) दिमाग़ में न था .  पाकिस्तान से युद्ध का समय था पड़ौसी कल्याण सिंह मामाजी ने मामी को डाटा - ब्लेक आउट आडर है तू है कि लालटेन तेज़ जला रई है गंवार .. बस उसी सोच में थे कि कमरे के भीतर जल रहे लालटेन और ब्लेकआऊट का क्या रिश्ता हो सकता है.. कि मामा जी ने मामी की भद्रा उतार दी . मामाजी इतने गुस्से में थे कि वो मामी की शिकायत लेकर मां के पास आए और बोले- इस गंवार को बताओ दीदी, इंद्रा गांधी बोल रईं थी कि जनता मुश्किल समय में हमारा साथ दे और ये है कि.. मां हंस पड़ी उल्टे कल्याण मामा की क्लास लेली - पागल तुम हो पाकिस्तान का घुसपैठिया विमान एक तो शहपुरा-भिटौनी तक आ नहीं सकता. दूसरे आ भी गया तो उसे कल्याण तेरे घर के लालटेन की लाइट कैसे दिखेगी बता रेल्वे क्वार्टर में पक्की छत है कि नईं चल जा भाभी को अब ऐसे न झिझकारना. दिमाग में सवाल उठ रहे थे कि पाक़िस्तान का जहाज़ लालटेन ब्लैक आऊट जे सब क्या है.. चलो आज़ मास्साब से पूछूंगा . कि यकायक एक आवाज़ ठीक सर के ऊपर से हमारी खोपड़ी में जा टकराई - गिरीश, कै छक्के चौअन....?    
मेरा ज़वाब था - छै: नारे चऊअन...!!
                            मास्साब- हम पूछ कछु रए तुम बता कछु रए..सो रए का .  सटाक एक चपत गाल पै आंखन में आंसू मन में उदासी लिये हम सही उत्तर देने के बावज़ूद सोचने लगे  ये मास्साब लोग चपतियाने का मौका नहीं तज़ते .  एक तो रामचरन  तांगेवाले बड़े प्यार से अपने एन अपने बगल में बिठाते थे जो घोड़े के दक्षिणावर्त्य के एकदम समक्ष का हिस्सा उस पर घोड़े को वायु-विकार की बीमारी थी . हमसे पीछे बैठने वालों तक घोड़े के दक्षिणावर्त्य से निकसी हर हास्यस्पद ध्वनियां सहज सुनाई देती थी उस पर रामचरन बच्चों को नेक सलाह देते थे.... घोड़ा पादे तो हंसियो मति.. बाक़ी बच्चे चिल्लाते थे .. नईं तो चाचा.. दाद हो जाएगी न... फ़िर तांगे में बच्चों की खिलखिलाहट गूंजती . अपुन का हाल तब बुरा हो जाता था.. न तो हंस पाते न रो पाते न गुस्सा कर पाते ..ये सब घटनाएं दिमाग पर असर करतीं थीं . जमादारिन के बच्चे को न छूने की हिदायतें.. ? मामी को हमेशा डांट मिलना, पुरुष रेल कर्मियों का दारू पीकर जलवा बिखेरना.. ये सब अजीब लगता था 
    औरतें तब भी रोतीं थीं.. बच्चे आज भी पन्नी बीनते हैं. ट्रेन में पौंछा मारते हैं चाय पिलाते हैं... गाली भी खाते हैं.. बताओ भाई.. किसी विदेशी को "गली का करोड़पति कुत्ता" बनाने का आमंत्रण देती इस व्यवस्था के बारे में कितना चिंतन करतें हैं हम आप शायद बहुत कम .. इस आलेख के साथ लगी फ़ोटो में एक बच्चे को हमने ए.सी. कोच में पौंछा लगाते देखा. हम विचलित थे.. आज़ ये तस्वीर पुराने फ़ोल्डर में नज़र आई सोशल साईट पर भी दे डाली.. एक महाशय का कमेंट मिला "यही धंधा है इनका...
सहानुभूति के लिए अथवा चंद लाइक पाने के लिए फोटो भले ही लगा दीजिये... ऐसे हजारों बच्चे, जवान, बूढ़े और विकलांग हैं जिनके लिए भारतीय रेल जीवन रेखा है और ये वहीँ से कमाते हैं...
मैं जब रेवाड़ी से दिल्ली अप-डाउन करता था तब कम से कम दस ऐसे भिखारी जैसी शक्लों को जानता था जो ऐसे ही दरिद्र बनकर शाम को पांच-सात सौ कमाकर जाते हैं...
"
             हम लोग इतने नैगेटिव हो गए हैं कि सिर्फ़ विरोध करते हैं  केवल विरोध से  आत्म चिंतन की सकारात्मकता शून्य हो जाती है . कुंठा के बिरवें रोंपना कहां तक ठीक है.. अगर  आप को मेरा विचार पसंद नहीं तो मेरी सोच और सकारात्मक सोच बदल दूंगा क्या.. लोग जिसे धंधा कह कर छुटकारा पाना चाहते हैं वे क्या खाक राष्ट्रवादी होंगे..!! खैर बेचारे क्या जानें कि उनकी नज़र में इन धंधेबाज बच्चों की वज़ह से ही उनका घर चलता है.. ! 

17.3.14

सखियां फ़िर करहैं सवाल- रंग ले अपनई रंग में..!! (बुंदेली प्रेम गीत )

नीरो नै पीरो न लाल

रंग ले अपनई रंग में ..!!
*********
प्रीत भरी पिचकारी नैनन सें मारी
मन भओ गुलाबी, सूखी रही सारी.
हो गए गुलाबी से गाल
रंग ले अपनई रंग में ..!!
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कपड़न खौं रंग हौ तो रंग   छूट  जाहै
तन को रंग पानी से तुरतई मिट जाहै
सखियां फ़िर करहैं सवाल-
रंग ले अपनई रंग में..!!
*********
प्रीत की नरबदा मैं लोरत हूं तरपत हूं
तोरे काजे खुद  सै रोजिन्ना  झगरत हूं
मैंक दे नरबदा में जाल –
रंग ले अपनई रंग में..!!

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मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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