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रविवार, मार्च 18, 2012

A TRIBUTE TO SHIRDEE SAI BABADEVOTIONAL ALBUM "BAWARE FAQEERA"

A TRIBUTE TO SHIRDEE SAI BABADEVOTIONAL ALBUM



                                 "BAWARE FAQEERA"
                              VOICE :- 
                              *ABHAS JOSHI -*SANDEEPA PARE
                             MUSIC:- 
                             *SHREYASH JOSHI 
                              LYRICS:- 
                             *GIRISH BILLORE"MUKUL" 










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गुरुवार, मार्च 15, 2012

आ मीत लौट चलें गीत को सँवार लें

आ मीत लौट चलें गीत को सँवार  ले
अर्चना का वक़्त है आ बातियाँ सुधार लें
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भूल हो गयी अगर गीत में या छंद में
जुट जाएं मीत आ सुधार के प्रबंध में
कोई रूठा हो अगर तो प्रेम से पुकार लें
आ मीत .................................!!
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कौन जाने कुंठित मन कितने घर जलाएगा
कौन जाने मन का दंभ- "कितने गुल खिलाएगा..?"
प्रेम कलश रीता तो, चल अमिय उधार लें ..!!
आ मीत .................................!!
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आत्म-मुग्धता का दौर,शिखर के लिये  ये दौड़
न कहीं सुकून है,न मिला किसी को ठौर
शंखनाद फिर  कभी ! आज  तो  सितार लें ॥!
आ मीत .................................!!
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बावरे-फ़क़ीरा की लांचिंग को चार बरस पूरे :गिरीश बिल्लोरे

१४ मार्च २००९ की शाम कुछ यादें

आराधना और प्रभू का आभार  
विकलागों की सेवा का संकल्प लेकर उसे पूरा करना उसे आकार देना अनुकरणीय है.मुझे बेहद प्रसन्नता है की सव्यसाची कला ग्रुप जबलपुर द्वारा जिस भक्ति एलबम “बावरे-फ़कीरा” का लोकार्पण किया जा रहा है सराहनीय कार्य है “-तदाशय के विचार दिनांक 14 मार्च 2009 को सायं:07:30 बजे स्थानीय मानस भवन में आयोजितभक्ति एलबम “बावरे-फ़कीरा” का लोकार्पण समारोह अवसर पर ईश्वर दास रोहाणी ने व्यक्त किये . कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री मुकेश गर्ग महानिदेशक संगीत संकल्प ने कार्यक्रम के उद्द्येश्य की सफलता के लिए समुदाय से अनुरोध किया जबकि अस्थि रोग विशेषज्ञ डाक्टर जितेन्द्र जामदार के बावरे-फकीरा एलबम टीम के सदस्यों आभास जोशी,गिरीश बिल्लोरे,श्रेयस जोशी,सहित सभी सदस्यों के कृतित्व पर प्रकाश डाला. डाक्टर जामदार का कथन था कि “गिरीश और ज़ाकिर हुसैन वो लोग हैं जो बैसाखियों से नहीं बैसाखियाँ उनसे चलतीं है.
जाकिर हुसैन 
बेहद अध्यात्मिक-उर्जा से परिपूर्ण वातावरण में एलबम का विमोचन कराने साईं बाबा बने एक बच्चे ने मशहूर पोलियो ग्रस्त गायक जाकिर हुसैन एवं आभास जोशी को मंच पर लाया गया . अतिथियों के अलावा बावरे फकीरा टीम के सदस्यों तथा श्रीमती पुष्पा जोशी श्री काशीनाथ बिल्लोरे की उपस्थिति में एलबम का विमोचन किया गया .
इस अवसर अंध-मूक-बधिर-विद्यालय के छात्र विशेष रूप से आमंत्रित थे .इस अवसर पर स्थानीय कलाकारों श्री चारु शुक्ला {मंडला},विदिशा नाथ .मृदुल.श्रृद्धा बिल्लोरे.अक्षिता ,आकाश जैन ,दिलीप कोरी ,राशि तिवारी.शेषाद्री अय्यर के अलावा आभास जोशी एवं वाइस आफ इंडिया द्वितीय के गायक श्री ज़ाकिर हुसैन तथा संदीपा पारे द्वारा मनोरंजक गीत-संगीत निशा स्वर बिखेरे . आयोजकों के अनुसार एलबम के विक्रय से संगृहीत राशि संस्था द्वारा व्यय किया जावेगा.वर्तमान में इस हेतु लाइफ लाइन एक्सप्रेस को सहयोग हेतु एलबम के प्रथम संस्करण से प्राप्त लाभांश राशि जिला प्रशासन जबलपुर को सौंपी जावेगी.
श्री युत  रोहाणी जी 
अचानक हाल में आभास का पीछे से प्रवेश  
आयोजन में उन व्यक्तियों को भी सम्मानित किया गया जिन्हौने वाइस आफ इंडिया प्रथम के दौरान आभास-जोशी-स्नेह मंच जबलपुर के आव्हान पर आभास जोशी के समर्थन में वातावरण निर्माण हेतु सहयोग किया. ,श्री रोहित तिवारी “हीरा”,प्रहलाद पटेल मित्र गरीब मदद संस्था संस्थापक अध्यक्ष ,गनपत पटेल,प्रमोद देशमुख,अशोक जैन सुप्रभात क्लब जबलपुर,,श्री रमेश बडकुल ,यशो,श्री पंकज भोज,दीपांशु दुबे,अनुराग वरदे,आभास जोशी स्नेह मंच ,जबलपुर डाक्टर संध्या जैन श्रुति ,डाक्टर प्रशांत कौरव,जितेन्द्र चौबे,आभास जोशी स्नेह मंच ,भोपाल,के संजय चौरे,आभास जोशी स्नेह मंच खंडवा योगेन्द्र जोशी,श्री गोविन्द दुबे,आभास के ज्योतिषी माधव यादव मनीष शर्मा,महावीर महिला मंडल महावीर कालोनी गुप्तेश्वर श्रीमती वन्दना जोशी,लता श्रीवास्तव,प्रवीणा टाक,सिमरन सूरी,कॅनॅडा से आए ब्लॉगर श्री समीर लाल,महिला परिषद् शिवनगर श्रीमती नीलम जैन ,श्रीमती आरती जैनमंजू जैन,समीर विश्वकर्मा,योगेश गोस्वामी नितिन अग्रवाल, को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया.







सतीश बिल्लोरे जिनने मेरा सपना
साकार किया 



प्रेस कांफ्रेंस 

दर्शक दीर्घा में ब्लागर्स 



संगीतकार श्रेयस जोशी 

आप यहां से पहुँचिये
बावरे फकीरा सुनने
"बावरे-फकीरा"
माँ स्व. प्रमिला देवी 
मेरी बिटिया श्रद्धा 

रविवार, मार्च 11, 2012

50 वर्ष पूर्व अरबवासियों के प्रति दृष्टि :डैनियल पाइप्स


डैनियल
पाइप्स





1962 में अत्यंत आकर्षक, चिकने आवरण पर 160 पृष्ठों की The Arab World शीर्षक की पुस्तक में तात्कालिक रूप में कहा गया, "कभी अत्यन्त समृद्ध और फिर पराभव को प्राप्त विस्तृत अरब सभ्यता आज परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। कुछ फलदायक अव्यवस्था प्राचीन जीवन की निश्चित परिपाटी को बदल रही है" ।
इस संस्करण ने इस बात का दावा किया कि इसकी तीन विशेषतायें आधी शताब्दी के बाद भी इसे समीक्षा के लिये बाध्य करती हैं। पहला, उस समय की उच्चस्तरीय अमेरिकी साप्ताहिक पत्रिका लाइफ ने इसे प्रकाशित किया जिसमें कि सांस्कृतिक केंद्रीयता निहित थी । दूसरा, एक सेवा निवृत्त विदेश मंत्रालय के अधिकारी जार्ज वी एलेन ने इसकी प्रस्तावना लिखी थी जिससे कि पुस्तक के मह्त्व की ओर संकेत जाता था। तीसरा, एक ख्यातिलब्ध ब्रिटिश पत्रकार, इतिहासकार और उपन्यासकर्ता डेसमन्ड स्टीवर्ट ( 1924 – 1981) ने इस पुस्तक को लिखा ।
द अरब वर्ल्ड अत्यंत प्रभावी रूप से दूसरे काल के समय को प्रस्तुत करता है; वैसे तो पूरी तरह अपने विषय को बहुत मधुर बनाकर नहीं रखा है लेकिन स्टीवर्ट ने सहज और शालीन भाव से अपनी बात रखी है जो कि आज के सबसे मुखर लेखक को भी चुप कर देगा। उदाहरण के लिये वे कहते हैं कि जब पश्चिमी पर्यटक अरब भाषी देशों में प्रवेश करते ही " अलादीन और अली बाबा के क्षेत्र में प्रवेश करते हैं जहाँ कि लोग उन्हें उनकी बाइबिल की व्याख्या की याद दिलाते हैं" अल कायदा के इस युग में उनकी भावना से किंचित मुठभेड की जा सकती है।
सबसे रोचक यह है कि इस पुस्तक से यह प्रदर्शित होता है कि किस प्रकार एक प्रमुख विश्लेषक भी बडे चित्र को पढने में गलती कर बैठता है।
जैसा कि इसके शीर्षक से स्पष्ट है कि पुस्तक की विषयवस्तु मोरक्को से इराक तक एक अरब जन का अस्तित्व है ऐसे लोग जो कि इस प्रकार परम्परा से आबद्ध हैं कि स्टीवर्ट ने पक्षी इसकी तुलना करते हुए लिखा है, " अरबवादियों की एक अलग सामान्य संस्कृति है जिसे वे इसे हमिंग पक्षी के घोंसले की भाँति चाह कर भी हर बार फेंक नहीं सकते" अरबवासियों द्वारा अपने देशों को एक रख पाने में असफल रहने के पिछले रिकार्ड की अवहेलना करते हुए स्टीवर्ट भविष्यवाणी करते हैं कि, " कुछ भी हो अरब संघ की शक्ति बनी रहेगी"। 1962 के बाद शायद ही ऐसा सम्भव रह सका कि अरबी भाषा ही केवल जन की परिभाषा कर सकी और इतिहास और भूगोल नकार दिये गये।
उनकी विषयवस्तु की दूसरी महत्वपूर्ण चीज इस्लाम है। स्टीवर्ट लिखते हैं कि इस सामान्य आस्था ने मानवता को नयी ऊँचाइयों की ओर पहुचाया है और यह " शांतिवादी ना होकर भी इसका मुख्य शब्द सलाम या शांति है" वे इस्लाम को एक " सहिष्णु धर्म मानते हैं" और अरबवासियों को परम्परागत रूप से " सहिष्णु आक्रांता" और " सहिष्णु स्वामी मानते हैं"। मुसलमानों ने यहूदियों और ईसाइयों के साथ सहिष्णुता पूर्वक व्यवहार किया" । वास्तव में तो अरबवासियों की सहिष्णुता एक संस्कृति तक फैल गयी। सहिष्णुता के प्रति स्टीवर्ट की इस दृष्टि से वे आग्रहपूर्वक लेकिन अयुक्तिपूर्ण ढंग से इस्लामवाद की अभिव्यक्ति को नकार देते हैं, जो उनकी नजर में, " एक पुरानी पीढी की चीज है जिसके प्रति नयी पीढी में कोई आकर्षण नहीं है"। संक्षेप में स्टीवर्ट इस्लामवाद के आरम्भ से आधुनिक काल तक इसकी सर्वोच्चता को लेकर इसके बारे में कुछ भी नहीं जान सके।
तीसरी महत्वपूर्ण चीज अरबवासियों का आधुनिता के प्रति प्रतिबद्धता : " आश्चर्यों में से एक यह है कि बीसवीं शताब्दी के अरब मुस्लिमों ने आधुनिक विश्व के परिवर्तनों को स्वीकार किया है" । सउदी अरब और यमन को छोड्कर हर स्थान पर उन्हें मिला कि, " अरब आधुनिकता दिखाई देने वाली शक्ति है" (इसलिये परिवर्तन की हवा मेरा पहला शब्द है) । महिलाओं के प्रति उनकी एकांगी चिंता पढने वाले को सन्न कर देती है: " हरम और इसके मनोवैज्ञानिक स्तम्भ बीसवीं शताब्दी में आये हैं"। आर्थिक मामलों में महिलायें लगभग पुरुषों के बराबर हैं। वे वही देख रहे हैं जो वह चाहते हैं और वास्तविकता से उनके ऊपर कोई असर होता नहीं दिखता ।
अपनी व्यापक दृष्टि के आशावाद को जारी रखते हुए स्टीवर्ट को लगता है कि अरब भाषी अपने प्राचीन काल से बाहर आने को प्रतिबद्ध हैं। वह सातवीं शताब्दी के बारे में लिखते हैं जिस प्रकार कि अब कोई भी साहस नहीं कर सकेगा विशेष रूप से जार्ज ड्ब्ल्यू बुश की इराकी मह्त्वाकाँक्षा और बराक ओबामा के लीबिया के खतरनाक मिशन के बाद। "पहले चार खलीफा ब्रिटेन के विलियम ग्लैडस्टोन की भाँति लोकतांत्रिक थे यदि अमेरिका के थामस जेफरसन की भाँति नहीं तो," स्टीवर्ट तो यह भी दावा करते हैं कि " अरब सभ्यता पश्चिमी संस्कृति का भाग है न कि पूर्वी संस्कृति का" इसका अर्थ कुछ भी हो ।
पचास वर्ष पूर्व इस्लाम के सम्बंध में जानकारी कितनी कम थी कि लाइफ पत्रिका के दो दर्जन कर्मचारी पुस्तक के सम्पादकीय स्टाफ के रूप में एक चित्र पर इस गलत सूचना के साथ अंकित थे कि इस्लाम की तीर्थयात्रा " प्रत्येक वर्ष बसंत में होती है" ( हज प्रत्येक वर्ष के कैलेंडर के आरम्भ होने से 10 या 11 की तिथि को होता है)
किसी के पूर्वाधिकारी की भूलों का प्रभाव होता है। मेरे जैसे विश्लेषक को आशा करनी चाहिये कि डेसमन्ड स्टीवर्ट और लाइफ की भाँति अस्पष्टता ना हो ताकि समय व्यतीत होने के साथ बुरे रूप में न देखा जाये। इसलिये निश्चित रूप से मैं इतिहास इस भाव से पढता हूँ कि व्यापक दृष्टि बने और तात्कालिक अवधारणाओं तक सीमित न रहे । 2062 में यह बतायें कि मैं कैसा कर रहा हूँ ।

शुक्रवार, मार्च 09, 2012

संस्कारधानी ने कायम की है मिसाल शालीन होली की :प्रभात साहू


  “संस्कारधानी ने कायम की है मिसाल शालीन होली की उसी की एक बानगी आज़ यहां देखने को मिल रही है , वैसे समय के साथ बदलते शहर में फ़ागुन के इस त्यौहार का स्वरूप बदल दिया है किंतु कुछ लोग आज़ भी संस्कृति के संरक्षण के लिये सतत प्रतिबद्ध है. हमलोग संस्था की कोशिश भी इसी दिशा में उठाया गया एक क़दम है. जिसकी जितनी भी सराहना की जाए कम होगी – तदाशय के विचार श्री प्रभात साहू महापौर जबलपुर ने गेटनम्बर चार के निवासियों के संगठन हमलोग के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किये. इस अवसर पर कार्यक्रम के विशेष आमंत्रित पूर्व-महापौर श्री सदानन्द गोडबोले ने कहा-“एकता एवम सादगी का दस्तावेज बन रहे इस कार्यक्रम की जितनी भी सराहना की जाए कम होगी जहां कला एवम संस्कृति के रंग बिखेरे गये सादगी एवम पारिवारिक माहौल में जहां एक ओर दिवंगतों को स्मरण किया गया वहीं बुजुर्गों को सम्मानित कर युवाओं ने अनूठी मिसाल कायम की. गेट नम्बर चार निवासियों के संगठन “हमलोग ” द्वारा होलिका-दहन की शाम को रंगारंग बना कर होली को और यादगार बना दिया.  कार्यक्रम का शुभारम्भ दिवंगत एड.स्व.श्री जगदीश तिवारी जी के स्मरण के साथ हुआ,तदुपरांत श्री पी.लाल ,श्री काशीनाथ बिल्लोरे , श्री रमेश चंद्र गौर , डा.मलय शर्मा, श्री टी.पी.अग्निहोत्री, श्री प्रमोद कुमार अग्रवाल , श्री एस. के. श्रीवास्तव, डा.रामकृष्ण रावत,श्री एम. के. सोनी एवम श्री गणपत पटेल का अभिनन्दन किया गया. द्वितीय चरण में सुप्रसिद्ध गायक   शेषाद्रि-अय्यर का गायन   एवम स्थानीय कलाकार श्रद्धा बिल्लोरे, आयुषि चौबे मयूर चौबे कनिष्का सोनी ने गीत तथा श्री आशीष चतुर्वेदी (हास्य-प्रस्तुतियां)मुस्कान चतुर्वेदी (नृत्य) की प्रस्तुतियां दीं.
                                   

श्रीयुत मलय की अध्यक्षता इरफ़ान झांस्वी के संचालन में सम्पन्न कवि-सम्मेलन में में  सुश्री अम्बर-प्रियदर्शी,इरफ़ान झांस्वी, डा०विजय तिवारी”किसलय”, आशुतोष “असर”,विनोद अवस्थी,अभय तिवारी, गिरीश बिल्लोरे, श्रीमति मनीषा सोनी,प्रणव पण्डया ,ने देर रात तक हास्य-व्यंग्य एवम श्रृंगार रस से लबालब कविताएं प्रस्तुत कीं.कार्यक्रम के आयोजन में उज्जवल चौबे,श्री अरविंद वर्मा,  सजल चौबे, अखिल श्रीवास्तव”डब्बू”,राजेश जैन, श्री वीरेंद्र चौबे,श्री सतीष बिल्लोरे, संतुल शर्मा, जितेंद्र चौबे,एड. राहुल जैन श्री सुनील जैन, हरप्रीत सिंह आहूजा,मोहित जैन,हरीश शामदासानी,एल.पी.नामदेव का सहयोग उल्लेखनीय रहा . 
प्रभात साहू

आज बसंत की रात गमन की बात न करना :गोपालदास नीरज़

वसंत का श्रृंगारी स्वरूप कवि मन को प्रभावित न करे ..!-असंभव है.. हर कवि-मन  कई कई भावों बगीचे से गुज़रता प्रकृति से रस बटोरता आ कर अपने लिखने वाले टेबल पे रखी डायरी के खाली पन्ने पर अपनी तरंग में डूब कर लिख लेता है गीत..नज़्म...ग़ज़ल.. यानी.कविता  उकेरता है शब्द-चित्र . जो दिखाई भी देतें हैं सुना भी जाता है उनको .. अरे हां.. गाया भी तो जाता है.. गीत सुरों पे सवार हो कर व्योम के विस्तार पर विचरण करता है .. बरसों बरस.. दूर तक़ देर तलक... इसी क्रम में नीरज जी की एक रचना अपने सुर में पेश कर रही हूं..
 


आज बसंत की रात
गमन की बात न करना
धूल बिछाए फूल-बिछौना
बगिया पहने चांदी-सोना
बलिया फेंके जादू-टोना
महक उठे सब पात
हवन की बात न करना
आज बसंत की रात…….
बौराई अमवा की डाली
गदराई गेंहू की बाली
सरसों खड़ी बजाये ताली
झूम रहे जलजात
शमन की बात न करना
आज बसंत की रात……..
खिड़की खोल चंद्रमा झांके
चुनरी खींच सितारे टाँके
मना करूँ शोर मचा के
कोयलिया अनखात
गहन की बात न करना
आज बसंत की रात…….
निंदिया बैरन सुधि बिसराई
सेज निगोड़ी करे ढिठाई
ताना मारे सौत जुन्हाई
रह-रह प्राण पिरत
चुभन की बात न करना
आज बसंत की रात……
ये पीली चूंदर ये चादर
ये सुन्दर छवि, ये रस-गागर
जन्म-मरण की ये राज-कँवर
सब भू की सौगात
गगन की बात न करना
आज बसंत की रात……..
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गीतकार : गोपालदास नीरज़,स्वर : अर्चना चावजी,
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