भारत में जडी-बूटियों का अनुप्रयोग औषधि के रूप में किया जाना सदियों से ज़ारी है किंतु उपेक्षा की सुईंयां अक्सर चुभा दीं जाती हैं इन कोशिशों और कोशिश में लगे लोंगों को....! फ़िर भी हौसलों के ज़खीरे लिये ये लोग अपने अपने मोर्चे पर तैनात हैं. चाहे बाबा रामदेव अथवा अलका सरवत मिश्रा ............ जो जडी-बूटियों से जीवन को बेहतर बनाने की कोशिशे जारी रखे हुये हैं अलका जी एक ऐसे विषय पर लिखतीं हैं जिसकी ज़रुरत आज हर व्यक्ति को है वे अपने सारे शोध-आलेख ब्लॉग मेरा समस्त पर पोस्ट करतीं हैं तथा आभार व्यक्त करतीं हैं हिंद युग्म वाले शैलेश भारतवासी का जिन्हौने उनको एक लोक प्रिय ब्लॉगर बनाया. इसी दौरान हमसे रहा न गया हमने ज़नाब सरवत ज़माल जी से बात चीत भी की
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अनिता कुमार जी का जन्म-दिवस 18 मार्च 2010 को आया किन्तु व्यक्तिगत व्यस्तता के कारण वे आन लाइन नहीं हुईं थी. फिर एम टी एन एल की ब्राड-बैंड सेवा ने उनको नेट पर आने न दिया और आज जब वे नेट पर आई तो हमने थमा दिया ये उपहार आप भी खो जायेंगे इस उपहार मंजूषा को खुलता देख मुझे यकीन है ......आपको यकीन न हो तो लगाइए एक चटका नीचे डिव-शेयर प्लेयर पर या एक क्लिक संवाद एवं विमर्श पर किन्तु एक महत्त्व पूर्ण सूचना यह देनी ज़रूरी कि अनिता जी का सबसे मनपसंद गीत फिल्म मेरे महबूब फिल्म से है जिसे यहां यू-ट्यूब पर देखा-सुना जा सकता है
ऐसा नहीं है कि आज एकलव्य की अनुकृतियां न हों अन्तस से भावुक, सदैव तत्पर महेन्द्र मिश्र अपने आप में एक जोरदार व्यक्तित्व को जी रही हैं.... आप सुनिये उनसे उनके दिल की बात आज़ उनकी वसीयत ज़रूर देखिये उनके ब्लाग ”समयचक्र” पर.......शहीद भगत सिंह को याद किया उनने निरंतर पर . मिश्र जी में भोले भाले शिव के अंश को नकारना गलत होगा........... किंतु शान्त चित्त हो कर जब वे सृजन करतें हैं तो बस भूल जाते हैं समय को भूलें क्यों न समयचक्र चला भी तो रहे हैं वे ही.
लिमिटि खरे का कथन गलत है ऐसा कहना भूल होगी रोज़नामचा वाले लिमिटि जी के बारे में जो प्रोफ़ाइल में है ठीक वैसा ही व्यक्तित्व जी रहे.
लिमटी खरे LIMTY KHARE
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किया है। हमने पत्रकारिता 1983 में सिवनी से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर में अनेक अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा
इस प्रोफ़ाइल से इतर तेवर नहीं है लिमिटि जी के. यकीं न हो तो आप खुद सुनिये
29 मार्च 2010 आभास के जन्म दिवस पर अग्रिम रूप से हार्दिक-शुभ कामनाओं के साथ आज का पाडकास्ट प्रस्तुत है.आभास ने साक्षात्कार के दौरान बताया कबीर को गायेंगे आभास संगीतकार होंगें श्रेयस जी
भावों की हाथ सलाई ले हम शब्द बुने तुम सुर देना
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जीवन के सफर में हमने भी भी
कुछ सपन बुनें तुमको लेकर .
कुछ स्वपन मेरे थे मुक्त गीत
कुछ सपनों के तीखे तेवर ..?
मन की पीडा जब गीत बने श्रेयस होगा तुम सुर देना ...!!
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आभास मुझे था जीवन में
कुछ ऐसा हम कर जाएंगे
देंगें इक मुट्ठी दान कभी
भर-भर के झोली पाएँगें ..!
जब मन इतराए बादल सा तुम सावन का रिम झिम सुर देना !!
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आभास और मेरे साथ हिंद युग्म पाडकास्ट [पृष्ठ आवाज़ पर ] की बातचीत सुनने यहाँ क्लिक कीजिये
रेखा श्रीवास्तव जी की कहानी उनके ब्लॉग यथार्थ पर अमृत की बूंदे पढ़करमन के एक कोने में छिपी कहानी उभर आई ..यह कथा बरसों से मन के कोने में .छिपी थी उसे आज आप-सबसे शेयर कर रहा हूँ.
दुनियाँ भर की सारी बातें फ़िज़ूल हैं कुछ भी श्रेष्ठ नज़र नहीं आती जब आप पुरुष के रूप में शमशान में अंतिम विदा दे रहे होते हैं....... तब आप सारी कायनात को एक न्यायाधीश की नज़र से देखते हैं खुद को भी अच्छे बुरे का ज्ञान तभी होता है . और नारी को अपनी श्रेष्टता-का अहसास भी तब होता है जब वह माँ बनके मातृत्व-धारित करती है. कुल मिला कर बस यही फर्क है स्त्री-पुरुष में वर्ना सब बराबर है हाँ तो वाकया उस माँ का है जो परिस्थित वश एक ही साल में दूसरी बार माँ बन जाती है कृशकाय माँ पहली संतान के जन्म के ठीक नौ माह बाद फिर प्रसव का बोझ न उठा सकी. और उसने विदा ले ही ली इस दुनिया से . पचपन बरस की विधवा दादी के सर दो नन्हे-मुन्ने बच्चों की ज़वाब देही ...........उम्र के इस पड़ाव पर कोई भी स्त्री कितनी अकेली हो जाती है इसका अंदाजा सभी लगा सकते हैं किन्तु ममतामयी देवी में मातृत्व कभी ख़त्म नहीं होता. उस स्त्री का मातृत्व भाव दूने वेग से उभरा. मध्यम आय वर्गीय परिवार की महिला एक दिन जब नवजात बच्चे को लेकर डाक्टर के पास गई तो डाक्टर ने उसे सलाह दी कि पूरे चार माह एक्सक्लूजिव-ब्रीस्ट-फीडिंग पर रखवाईये कोई बाहरी आहार नहीं वरना बच्चे को नुकसान होगा बार बार इसी तरह बीमार होता रहेगा. इस सवाल का हल उस महिला के पास कहाँ. बस भीगी आँखों से टकटकी लगाए पीडियाट्रीशियन को देखती रही. फीस दी और घर आ गयी. शिशु के जीवन को बचाने की ललक रात को भूख से बिलखते बच्चे को कैसे संतुष्ट करे बार बार डाक्टर की नसीहत याद आती थी. देर तक कभी शिशु को दुलारती पुचकारती एक बार फिर नव-प्रसूता-धात्री माँ बन जाने की ईश्वर से प्रार्थना करती कभी कोरें भिगोती. कभी अकुलाती. व्याकुल आकुल सी वो माँ एक पल के लिए भी ना सो सकी..... तीस बरस पहले के दिन याद करती उन्हीं दिनों को वापस देने ईश्वर से याचना करती उस ममतामयी की झपकी लगी तब सारे लोग एक बार झपकी ज़रूर लेते है हैं हाँ वो समय रहा होगा सुबह सकारे ४ से ५ बजे का. अचानक उसने शिशु के मुंह से अमिय-पात्र लगा दिया. सुबह सवेरे देर आठ बजे जागी वो माँ बन चुकी थी. उसे लगा सच मैं वो माँ है उसे अमृत-आने लगा है . दूध की धार बह निकली अमिय पात्रों से ............उसने पूरे चार माह एक्सक्लूजिव-ब्रीस्ट-फीडिंग कराई शिशु को अन्न-प्राशन के दिन अपने भाई को बुलाया. चंडी के चम्मच से पसनी की गई शिशु की ...... आपको यकीं नहीं होगा किन्तु यह सत्य है इसका प्रमाण दे सकता हूँ फिर कभी ........