Ad

शुक्रवार, मार्च 26, 2010

तापसी नागराज नई-दुनिया द्वारा नायिका 2010 अवार्ड हेतु नामांकित













Tapsi Nagraj nominated for Naika Award in Art  & Culture category by NAI-DUNIYA JABALPUR kindly suport send your  vote by your  sms
type  NVJ22 & send it to 53434

अनिता कुमार जी को जन्म-दिवस का संगीत भरा उपहार

अनिता कुमार जी का  जन्म-दिवस 18 मार्च 2010 को आया किन्तु व्यक्तिगत व्यस्तता के कारण वे आन लाइन नहीं हुईं थी. फिर एम टी एन एल की ब्राड-बैंड सेवा ने उनको नेट पर आने न दिया और आज जब वे नेट पर आई तो हमने थमा दिया ये उपहार आप भी खो जायेंगे इस उपहार मंजूषा को खुलता देख मुझे यकीन है ......आपको यकीन न हो तो लगाइए एक चटका नीचे डिव-शेयर प्लेयर पर या एक क्लिक संवाद एवं विमर्श पर किन्तु एक महत्त्व पूर्ण सूचना यह देनी ज़रूरी कि अनिता जी का सबसे  मनपसंद गीत फिल्म मेरे महबूब फिल्म से है  जिसे यहां यू-ट्यूब पर देखा-सुना जा सकता है

आभारी  हूँ :-इन डाट काम का और श्री बी एस पाबला जी के इस प्रयास का  और  अब आपका जो इसे सुन रहे हैं 

बुधवार, मार्च 24, 2010

समयचक्र को निरंतरता देता एकलव्य बनाम महेन्द्र मिश्र पाड्कास्ट भाग एक

https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgy5SwRFbp0nznkVpVPX8pgjd5QplXWFIQFT2_ugqhdeoL4Isbnf8EC99qnjtkqjhutmI31jqChUgYg5N-9rrfxOV1ixq5AwKMJmJvxbdJQe9wRvbvAQw-ptekfj0JePgCxr-ZNiGb_FiMV/s45/DSCN0032.jpgऐसा नहीं है कि आज एकलव्य की अनुकृतियां न हों  अन्तस से भावुक, सदैव तत्पर महेन्द्र मिश्र अपने आप में एक जोरदार व्यक्तित्व को जी रही हैं.... आप सुनिये उनसे उनके दिल की बात आज़ उनकी वसीयत ज़रूर देखिये उनके ब्लाग ”समयचक्र” पर.......शहीद भगत सिंह को याद किया उनने निरंतर पर . मिश्र जी में  भोले भाले शिव के अंश को नकारना गलत होगा........... किंतु शान्त चित्त हो कर जब वे सृजन करतें हैं तो बस भूल जाते हैं समय को भूलें क्यों न समयचक्र चला भी तो रहे हैं वे ही. 

मंगलवार, मार्च 23, 2010

अश्लीता को बढा रहा है इलैक्ट्रानिक मीडिया :लिमिटि खरे

[0154.jpg]

लिमिटि खरे का कथन गलत है ऐसा कहना भूल होगी रोज़नामचा वाले लिमिटि जी के बारे में जो प्रोफ़ाइल में है ठीक वैसा ही व्यक्तित्व जी रहे.
लिमटी खरे LIMTY KHARE
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किया है। हमने पत्रकारिता 1983 में सिवनी से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर में अनेक अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा
इस प्रोफ़ाइल से इतर तेवर नहीं है लिमिटि जी के. यकीं न हो तो आप खुद सुनिये

रविवार, मार्च 21, 2010

आभास जोशी से एक मुलाक़ात


29 मार्च 2010 आभास  के  जन्म दिवस पर अग्रिम रूप से हार्दिक-शुभ कामनाओं के साथ आज का पाडकास्ट प्रस्तुत है.आभास ने साक्षात्कार के दौरान बताया कबीर को गायेंगे आभास संगीतकार होंगें श्रेयस  जी
   
भावों की हाथ सलाई ले हम शब्द बुने तुम सुर देना
***********************
जीवन के सफर में हमने भी  भी
कुछ सपन बुनें तुमको लेकर .
कुछ स्वपन मेरे थे मुक्त गीत
कुछ सपनों के तीखे तेवर ..?
मन की पीडा जब गीत बने श्रेयस होगा तुम सुर देना ...!!
*************************
आभास मुझे था जीवन में
कुछ ऐसा हम कर जाएंगे
देंगें इक मुट्ठी दान कभी
भर-भर के झोली पाएँगें ..!
जब मन इतराए बादल सा तुम सावन का रिम झिम सुर देना !!
_____________________________________



आभास और मेरे साथ हिंद युग्म पाडकास्ट [पृष्ठ आवाज़ पर ] की बातचीत सुनने यहाँ क्लिक कीजिये
my singer

शनिवार, मार्च 20, 2010

जाग उठा मातृत्व उसका अमिय-पान भी कराया उसने

रेखा श्रीवास्तव जी की कहानी उनके ब्लॉग यथार्थ पर अमृत  की  बूंदे  पढ़कर  मन के एक कोने में  छिपी कहानी उभर आई ..यह कथा बरसों से मन के कोने में .छिपी थी  उसे  आज आप-सबसे  शेयर कर रहा हूँ.
दुनियाँ भर की सारी बातें फ़िज़ूल हैं कुछ भी श्रेष्ठ नज़र नहीं आती जब आप पुरुष के रूप में शमशान में अंतिम विदा दे रहे होते हैं....... तब आप सारी कायनात  को एक न्यायाधीश की नज़र से देखते हैं खुद को भी अच्छे बुरे का ज्ञान तभी होता है . और नारी को अपनी  श्रेष्टता-का अहसास भी तब होता है जब वह माँ बनके मातृत्व-धारित करती है. कुल मिला कर बस यही फर्क है स्त्री-पुरुष में वर्ना सब बराबर है हाँ तो वाकया उस माँ का है जो परिस्थित वश एक ही साल में दूसरी बार माँ बन जाती है कृशकाय माँ पहली संतान के जन्म के ठीक नौ माह बाद फिर प्रसव का बोझ न उठा सकी. और उसने  विदा ले ही ली इस दुनिया से . पचपन बरस की विधवा दादी के सर दो नन्हे-मुन्ने बच्चों की ज़वाब देही ...........उम्र के इस पड़ाव पर कोई भी स्त्री कितनी अकेली हो जाती है इसका अंदाजा सभी लगा सकते हैं किन्तु ममतामयी देवी में मातृत्व कभी ख़त्म नहीं होता. उस स्त्री का मातृत्व भाव दूने वेग से उभरा. मध्यम आय वर्गीय परिवार की महिला एक दिन जब नवजात बच्चे को लेकर डाक्टर के पास गई तो डाक्टर ने उसे सलाह दी कि पूरे चार  माह एक्सक्लूजिव-ब्रीस्ट-फीडिंग पर रखवाईये कोई बाहरी आहार नहीं वरना बच्चे को नुकसान होगा बार बार इसी तरह बीमार होता रहेगा. इस सवाल का हल उस महिला के पास कहाँ. बस भीगी आँखों से टकटकी लगाए पीडियाट्रीशियन  को देखती रही. फीस दी और घर आ गयी. शिशु के जीवन को बचाने की ललक रात को भूख से बिलखते बच्चे को कैसे संतुष्ट करे बार बार डाक्टर की नसीहत याद आती थी. देर तक कभी शिशु को दुलारती पुचकारती एक बार फिर नव-प्रसूता-धात्री माँ बन जाने की ईश्वर से प्रार्थना करती कभी कोरें भिगोती. कभी अकुलाती. व्याकुल आकुल सी वो माँ एक पल के लिए भी ना सो सकी..... तीस बरस पहले के दिन याद करती उन्हीं दिनों को वापस देने ईश्वर से याचना करती उस ममतामयी  की झपकी लगी तब सारे लोग एक बार झपकी ज़रूर लेते है हैं हाँ वो समय रहा होगा सुबह सकारे ४ से ५ बजे का. अचानक उसने शिशु के मुंह  से  अमिय-पात्र लगा दिया. सुबह सवेरे देर आठ बजे जागी वो माँ बन चुकी थी. उसे लगा सच मैं वो माँ है उसे अमृत-आने लगा है . दूध की धार बह निकली अमिय पात्रों से ............उसने   पूरे चार  माह एक्सक्लूजिव-ब्रीस्ट-फीडिंग कराई शिशु को अन्न-प्राशन के दिन अपने भाई को बुलाया. चंडी के चम्मच   से पसनी की गई शिशु की ...... आपको यकीं नहीं होगा किन्तु यह सत्य है इसका प्रमाण दे सकता हूँ फिर कभी ........

गुरुवार, मार्च 18, 2010

आडियो कांफ्रेंस: सुनिये पंडित रूप चन्द्र शास्त्री मयंक [खटीमा,उत्तरांचल ],स्वप्न--मंजूषा[कनाडा],कार्तिक-अग्निहोत्री[सहारा-समय,जबलपुर],और गिरीश


 अभी  आप  ने सुनिये  पंडित रूप चन्द्र शास्त्री मयंक [खटीमा,उत्तरांचल ],स्वप्न--मंजूषा[कनाडा],कार्तिक-अग्निहोत्री[सहारा-समय,जबलपुर],तथा मेरी वार्ता.
शास्त्री जी की कविता जो संभवत: स्पष्ट न सुनाई दे रही हो अत: पाठ्य-रूप में देखिये
नही जानता कैसे बन जाते हैं,


मुझसे गीत-गजल।


जाने कब मन के नभ पर,


छा जाते हैं गहरे बादल।।


ना कोई कापी या कागज,


ना ही कलम चलाता हूँ।


खोल पेज-मेकर को,


हिन्दी टंकण करता जाता हूँ।।


देख छटा बारिश की,


अंगुलियाँ चलने लगतीं है।


कम्प्यूटर देखा तो उस पर,


शब्द उगलने लगतीं हैं।।


नजर पड़ी टीवी पर तो,


अपनी हरकत कर जातीं हैं।


चिड़िया का स्वर सुन कर,


अपने करतब को दिखलातीं है।।


बस्ता और पेंसिल पर,


उल्लू बन क्या-क्या रचतीं हैं।


सेल-फोन, तितली-रानी,

इनके नयनों में सजतीं है।।

कौआ, भँवरा और पतंग भी,

इनको बहुत सुहाती हैं।

नेता जी की टोपी,

श्यामल गैया बहुत लुभाती है।।
सावन का झूला हो'

चाहे होली की हों मस्त फुहारें।

जाने कैसे दिखलातीं ये,

बाल-गीत के मस्त नजारे।।
मैं तो केवल जाल-जगत पर

इन्हें लगाता जाता हूँ।
                                                                  क्या कुछ लिख मारा है,


मुड़कर नही देख ये पाता हूँ।।


जिन देवी की कृपा हुई है,


उनका करता हूँ वन्दन।


सरस्वती माता का करता,


कोटि-कोटि हूँ अभिनन्दन।।
डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"
टनकपुर रोड, खटीमा,
ऊधमसिंहनगर, उत्तराखंड, भारत - 262308.
फोनः05943-250207, 09368499921, 09997996437

Ad

यह ब्लॉग खोजें

मिसफिट : हिंदी के श्रेष्ठ ब्लॉगस में