प्रज़ातन्त्र की सबसे काली घिनौनी घटना ही कहा जाएगा जब संविधान के रक्षकों ने मूर्खता पूर्ण हरकत कर देश को उस स्थान पर लाकर खडा कर दिया जहां से देश बिखरा बिखरा नज़र आ रहा है. इसे किसी राजनैतिक स्वार्थ परकवृत्ति की पराकाष्ठा ही कहा जाएगा .
अब समय आ गया है कि जब इन बुनियाद परस्तों को सख्ती से निपटा जाए किन्तु भारतीय प्रज़ातंत्र की सबसे बडी ताकत जहां वोट है वहीं दूसरी ओर यही वोट सबसे बडी कमज़ोरी है.यही कमज़ोरी राष्ट्र के लिए घातक है
बरसों से तुष्टि-तुष्टि का खेल खेल रहे राज नेता जब भाषा/रंग/क्षेत्र/ तक को "तुष्टि" के लिये इस्तेमाल करने लग गए हैं. यानि सर्वोपरि है स्वार्थ उसके सामने देश क्या है इसकी प्रवाह कौन करे. सम्माननीय सदन में झापड मारना देश की प्रतिष्ठा को तमाचा जडना दिख रहा था.
जहां तक हिंदुस्तान में हिंदी के अपमान का सवाल वो तो गरीबों की भाषा है......भारत में सियासी लोग गरीब और गरीबों का इस्तेमाल कब और कैसे करतें हैं हम सभी जानतें है. और इन गरीबों के साथ वास्तव में कैसा बर्ताव होता यह भी किसी से छिपा भी कहां है. तो उसकी भाषा और भूषा के साथ वही बर्ताव होना आम बात है जैसा आज एम एन एस के माननीय विधायकों ने किया.
अभी वंदे मातरम वाली पीढा को हिंदुस्तान भूला नही है कि यह दूसरा रुला देने वाला दर्दनाक दृश्य.......सच अब तो लग रहा है कि कहीं हम कबीलियाई जीवन की ओर तो नहीं मुड रहे हैं.
राष्ट्र आज़ जिस संकट की ओर धकेला जा रहा है.....उसका हिसाब आज़ नहीं तो कल देना होगा किंतु हिसाब देने वाले निरीह भारतीय लोग ही होंगे जिनके पास आम आदमी वाला अघोषित एवम वर्चुअल आई० कार्ड है.
ओम शांति शांति शांति
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मंगलवार, नवंबर 10, 2009
रविवार, नवंबर 08, 2009
गुरुवार, नवंबर 05, 2009
इन्टरनेट पर उन्माद फ़ैलाने वालों पर आई०टी० प्रतिबन्ध लगाए
मंगलवार, नवंबर 03, 2009
काव्य पहेली देखें सुधि पाठकों की पसंद कौन हैं.?
हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
"......................................."
के बाद चतुर्थ पंक्ति के लिये मुझे न तो भाव मिल पा रहे थे न ही शब्द-संयोजना संभव हो पा रही थी. किंतु मेरी बात को पूरी करने वाले मित्र को यह चार पंक्तियां सादर भेंट कर दी जावेंगी इस से मेरा हक समाप्त हो जाएगा आपको भी यदि कोई पंक्ति सूझ रही हो तो देर किस बात यदि आप प्रविष्ठि न देना चाहें तो आप अपनी पसंद के कवि का नाम ज़रूर दर्ज़ कीजिए
"समस्या-पूर्ती" हेतु मिसफिट पर आयोजित प्रतियोगिता काव्य पहेली के लिए प्राप्त प्रविष्ठियों पर आपकी पसंद क्रमानुसार दर्ज़ कीजिये तब तक आता है जूरी का निर्णय
प्रतिभा जी की पंक्ति जोडने से पद को देखिये
हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
कि कुछ पग बस जीत दूर है..
____________________________________________हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
कि कुछ पग बस जीत दूर है..
समीर भाई की पंक्ति जुडते ही पद का स्वरुप ये हुआ है
हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
हरेक लश्कर है रोया रोया.
_____________________________________________ हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
हरेक लश्कर है रोया रोया.
अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी जी की पंक्ति जुडते ही
हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
''हो जायेगा पत्थर इन्सां गोया |''
_____________________________________________________हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
''हो जायेगा पत्थर इन्सां गोया |''
राजीव तनेजा जी जो कवि हो गये है इस बहाने
हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
अपना भविष्य आप बनाएँ
_____________________________________________________हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
अपना भविष्य आप बनाएँ
पहेली सम्राठ ताउ राम पुरिया उवाच
हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
परेशानी का बीज खुद ही बोया बोया.
_______________________________________________हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
परेशानी का बीज खुद ही बोया बोया.
एम. वर्मा जी की पंक्तियां जोडते ही पद हुआ यूं
हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
काटोगे वही जो बीज बोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
काटोगे वही जो बीज बोया
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बवाल
हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोयाचलो जगाएं इन्हैं उठाएं.....
है गर्म पानी लहू समोया
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रविवार, नवंबर 01, 2009
काव्य पहेली
सुधि सहयोगियो/सहयोगिनो
सादर अभिवादन इस पद की चौथी पंक्ति पूरी कीजिए सबसे उपयुक्त पंक्ति जुडते ही पद घोषित विजेता का हो जाएगा . झट सोचिए पट से टाईप कर दीजिए
हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
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सादर अभिवादन इस पद की चौथी पंक्ति पूरी कीजिए सबसे उपयुक्त पंक्ति जुडते ही पद घोषित विजेता का हो जाएगा . झट सोचिए पट से टाईप कर दीजिए
हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
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शनिवार, अक्टूबर 31, 2009
गुरुवार, अक्टूबर 29, 2009
अफसर और साहित्यिक आयोजन :भाग एक
::एक अफसर का साहित्यिक आयोजन में आना ::
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पिछले कई दिनों से मेरी समझ में आ रहा है और मैं देख भी रहा हूँ एक अफसर नुमा साहित्यकार श्री रमेश जी को तो जहां भी बुलाया जाता पद के साथ बुलाया जाता है ..... अगर उनको रमेश कुमार को केवल साहित्यकार के रूप में बुलाया जाता है तो वे अपना पद साथ में ज़रूर ले जाते हैं जो सांकेतिक होता है। यानी साथ में एक चपरासी, साहब को सम्हालता हुआ एक बच्चे को रही उनकी मैडम को सम्हालने की बात साहब उन्हें तो पूरी सभा सम्हाले रहती है। एक तो आगे वाली सीट मिलती फ़िर व्यवस्था पांडे की हिदायत पर एक ऐसी महिला बतौर परिचर मिलती जिसे आयोजन स्थली का पूरा भौगौलिक ज्ञान हो ताकि कार्यक्रम के दौरान किसी भी प्रकार की शंका का निवारण सहजता से कराया जा सके। और कुछ लोग जो मैडम की कुरसी के उस सटीक एंगल वाली कुर्सी पर विराजमान होते हैं जहाँ से वे तो नख से शिख तक श्रीमती सुमिता रमेश कुमार की देख भाल करते हैं । उधर कार्यक्रम को पूरे यौवन पे आता देख रमेश जी पूरी तल्लीनता से कार्यक्रम में शामिल रहतें हैं साहित्यिक कार्यक्रम उनके लिए तब तक आकर्षक होता है जब तक शहर के लीडिंग अखबार और केबल टी वी वाले भाई लोग कवरेज़ न कर लें । कवरेज़ निपटते ही रमेश कुमार जी के दिव्य चक्षु ओपन हो जातें हैं और वे अपनी सरकारी मज़बूरी का हवाला देते हुए जनता से विदा लेते हैं । रमेश कुमार जैसे लोगों को इस समाज में साहित्य समागम के प्रमुख बना कर व्यवस्था पांडे जन अपना रिश्ता कायम कर लेतें हैं साहित्य की इस सच्ची सेवा से मित्रों मन अभीभूत है .................शायद आप भी ..........!!
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