31.8.17

चीन भाई को समझ देर से आई

भारत की विदेश नीति में आए अहम परिवर्तन के बारे में पहले से ही सभी को यकीन है. कि यह एक पाजिटिव बदलाव है. जून 2017 से अगस्त 2017 के बीच कटे 72 दिनों तक छाती से छाती टकराकर चीन भारत के सैनिक  एक दूसरे धकेलते रहे डोकलाम में और  भारत की दृढ़ता से हटना पड़ा.  जापानी एवं पाकिस्तानी मीडिया से भी भारत के दबाव में चीन के डोकलाम से हटने की पुष्टि हुई है.
 बाकायदा इस बात की   स्मरण होगा कि मैंने पूर्व में अपने मिसफिट पर 26 जुलाई 17  प्रकाशित  लेख में साफ़ तौर पर इस कयास से असहमति व्यक्त की थी कि चीन खुद को युद्ध में ठेल सकता है. स्क्रीन शॉट में देखा सकतें हैं .
ये अलहदा बात है कि - चीन सहित विश्व के सारे देश इस चीनी अखबार और अन्य डिजिटल मीडिया वर्सेस भारतीय मीडिया पर शब्दों के तीर और वाक्यों की मिसाइल्स दागी गईं  कुछ भारतीय लोग इस मीडिया वार से भले इत्तिफाक न करें पर सूचनाओं संवादों के वैश्विक विस्तारीकरण के फायदे दौनों देशों ओ मिले भारत को इस मायने में कि उसने अपने स्टैंड को सही साबित किया वहीं चीन को हर उस बात का ज़वाब मिला जो उसने विश्व के सामने लाने की कोशिश की थी.
हमारी भूटान से संधि है कि हम उसकी सीमाओं पर उसके सहयोगी होंगें यह भी तय है कि भूटान को सामरिक सहयोग भारत की ओर से मिलेगा . उधर चीन से हमारी संधि है कि सीमा पर हम अनुशासित रहेंगे .. दौनो ही देशों के बीच 1962 के बाद से शायद ही कोई गोली चली हो . गोली तो द्दूर का मसला है दौनों देश के सैनिक केवल एक दूसरे पर हाथ भी नहीं उठाते एक दूसरे को सीमा से हटाने  अपने अपने सीने अड़ाया करतें हैं . 
पाकिस्तान सहित कुछ इंटलएक्चुअल्स सशंकित थे कि भारत चीन युद्ध होगा . हालांकि अमेरीकी विश्लेषक भी यही दावा करते रहे कि भारत चीन युद्ध होगा ! अमेरीकी विश्लेषण केवल चीन को उद्दोंमाद से उबारने के लिए एक रणनीति थी . पाकिस्तानी सरकार , मीडिया आर्मी सभी इंडो चायना युद्ध के बारे में अपनी अल्पज्ञता आशान्वित रहें हैं . 
  वैसे विश्व को साफ़-साफ़ सन्देश मिल गया कि भारत जब भूटान से हुई संधि के लिए इतना प्रतिबद्ध है तो उसकी सीमाओं पर निगाह लगाने वाले पाकिस्तान को कुछ हासिल नहीं होने वाला है. 


https://www.youtube.com/watch?v=II_iPuv2L7U

25.8.17

डेरा सच्चा सौदा कि झूठा सौदा : सलिल समाधिया

सलिल समाधिया 
डेरा सच्चा सौदा कि झूठा सौदा
अब हम सब कौवे कायें-कांव-कांव करने लगेंगे... घरों के ड्राइंग रूम में , चाय- पान के टपरों में , बार, रेस्टॉरेंट में बैठकर...
गुरमीत राम-रहीम को गालियां बकेंगे ,..उनके भक्तों को मूर्ख कहेंगे और चाय पी-पीकर, सिगरेटें फूँक- फूंककर , पान-खा- खाकर.. खूब कोसेंगे.. सरकार, राजनीति, मीडिया सभी को .
लेकिन खुद का डेरा और झूठा सौदा कभी नहीं देखेंगे। ..हममे से कोई भी सच्चा सौदा के भक्तों से अलग है क्या ??
बस इतना ही है की अभी तक हमारे गुरु और भगवान पर आंच नहीं आई है। ...
आएगी.. तो हम भी यही करेंगे... ??
बात ये नहीं है कि राम-रहीम क्या है ,कि रामपाल क्या है....बात ये है कि हम क्या हैं ??
हम क्यों जाते हैं इन डेरों पे ?? .. क्या हम भक्त हैं , सत्य-पिपासु हैं , क्या हैं ??
जो बात लिख रहा हूँ , जानता हूँ कि 100 में से 90 को बिलकुल नहीं पुसायेगी , ...चुभेगी .डंक मारेगी । क्यों ??
क्योंकि वो भी किसी न किसी गुरु या डेरा पर सज़दा कर रहा है
मैं हैरान... हूँ कि हमारे देश में हर 100 मीटर के दायरे में मंदिर ,मज़ार हैं सब ओर देव पुज रहे हैं। एक सामान्य शहर में औसतन पच्चीस हज़ार मंदिर होते हैं ..लेकिन हम लोग इतने बड़े भिखारी हैं कि वहां तो जाते ही हैं .. लेकिन रामपाल या राम-रहीम के पास भी जाते हैं ...अब या तो हमारा देवता बोगस है या या हमारी श्रद्धा नपुंसक है
हम इतने बड़े वाले " मँगने" हैं कि राम से नहीं मिल पाया तो रामपाल को पकड़ लेते हैं...
वेश्या की तरह हम गुरु और देव बदलते जाते हैं
..
यही कारण है कि एक शहर में अगर बीस हज़ार मंदिर हैं तो उसी शहर में दस हज़ार गुरु भी डेरा डाले हैं और सबका धंधा चल रहा है। ..
क्योंकि मंदिर भी अपने आप नहीं चलता उसके पीछे मंदिर का धंधा चलने वाले १० गुरुघंटाल डेरा डाले हैं
हम चाहते क्या हैं आखिर। ....
क्या .. ईश्वर? ...नहीं
क्या सत्य..??.......नहीं
ज्ञान..? ....नहीं
हम चाहते हैं.. ...पैसा ,
हम चाहते हैं ....सफलता, ..उपलब्धि,.. नौकरी,
हम चाहते हैं ...प्रमोशन,.. मुकद्दमे में जीत,.. बच्चे का भविष्य,.. स्वास्थ्य ..बेटी की शादी,.. कर्ज़े से मुक्ति,
हाँ चाहते हैं गाडी, मकान, शोहरत
हमारी सब प्रार्थनाओं का सार है-
सुख सम्पति घर आवे कष्ट मिटे तन का
दरअसल, हम बौड़म, बेवकूफों का एक बहुत बड़ा बाजार है
हम ऐसे कन्ज़ूमर हैं जिनके पास अभाव रूपी दौलत है
अशांति,बेचैनी, महत्वाकांक्षा की अपार सम्पदा है..
इसी पर नज़र गड़ाए हैं गुरु, मंदिरों के ट्रस्टी, आश्रमों के संचालक, ज्योतिषी, योग और आयुर्वेद बेचने वाले , जीवा और पतंजलि ....आदि आदि ...
अच्छा ..इधर देश में जैसे ही एक मध्यम वर्ग पैदा हुआ ... नव धनाढ्य , अंग्रेजी बोलने वाला ...
फैशनेबल,...टेक्नोफ्रेंडली,... फ़र्ज़ी इंटेलेक्चुअल लोगों का ...तो वहां तुरंत ही उनको फंसाने के लिए नए फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाले धंधेबाज बाबाओं ने भी अपना जाल फेंका
अब हम लीचड़ लोग,.. सदियों के गुलाम, हमारे लिए तो अंग्रेजी वैसे भी हाई-फाई चीज़ है.. तो अंग्रेजी में ज्ञान और धर्म की बात करने वाले के तो हम तलवे ही चाटने लगते हैं.. ...तो उग आये फलां फाउंडेशन।..ढिकां.. .धाम। ..अब चूँकि साउथ वालों की अंग्रेजी ज्यादा अच्छी होती है तो इसीलिए साऊथ से एक-एक करके अंग्रेजी डां बाबा उगना शुरू हो गए ... ताकि हाई सैलरी पैकेज वाले आईटी स्टूडेंट्सरूपी " नए भक्त " न छूटने पाएं।
लेकिन छोड़िये हम मूरख,.. लीचड़, बोर, लैन्डु-लपाडु लोग क्या सत्य को जानेंगे ..
जानना तो छोड़िये ..कभी सत्य को जानने की जिज्ञासा भी पैदा कर पाएंगे अभी दूर की कौड़ी है
अभी तो "अथातो ब्रह्म जिज्ञासा "का देश "अथातो धन इच्छा" बना रहेगा बहुत वर्षों तक ..
भूख हमें है नहीं ईश्वर की ...लेकिन भोजन खूब कर रहे हैं ईश्वर का.. इसीलिए अजीर्ण हुआ जा रहा है... अपच हो गई है धर्म की... मस्तिष्क में सड़ रहा है... ये बिना भूख का भोजन ,और अध्यात्म की उल्टियां कर रहे हैं हम लोग ...
गाय की पूजा करेंगे लेकिन कुत्ते को पत्थर मारेंगे
जिन जानवरों की धार्मिकता संदिग्ध हो उन्हें काटकर खाएंगे
एक ओर वृक्ष की पूजा करेंगे लेकिन उसी वृक्ष को काटकर ,जलाकर उसपर मांस भूंजेंगे
ज़मीन घेरने के लालच से घर के पिछवाड़े या सामने मंदिर बनाएंगे और फिर वहां त्याग और अपरिग्रह का देवता स्थापित हो जायेगा...
पूरा देश पुराण, भागवत की कथाओं से सराबोर है कथा वाचक पांडित्य के दम्भ से दमक रहे हैं और सुनाने वाले भक्ति के मद से ...
यहाँ तर्क,मीमांसा, वैज्ञानिकता की बात मत कीजिये.. मार डालेंगे आप को
यहाँ तो हम घर से दफ्तर जाते 50 मुर्दा मंदिरों को सर झुकायेंगे और 50 जीवित आत्माओं को गाली बकेंगे
जिसको जितनी कहानियां याद हैं वो उतना बड़ा पंडित है
अभी तो बहुत वर्षों तक राम- रहीमों का डेरा चलना है बॉस
सब लोग ज़ोर से अपने-अपने गुरुओं की जयजयकार करो
अब सब लोग अपने गुरुओं के पक्ष में खूब तर्क देना... okay
और सिद्ध करना की बाकी का तो पता नहीं... लेकिन हमारे गुरु की बात ही कुछ और है
लेकिन ध्यान रहे ...हमारी जिज्ञासा है की नहीं ये कभी मत देखना
हमें सत्य की प्यास है की नहीं सोचना भी मत। ..नहीं तो .... हाथ में आ जायेगी
तो शुतुरमुर्गों। ..स्वयं में ही विराजमान उस परम के अथाह समुन्दर से मुंह छिपा लो
और गुरु और डेरों में मुंह छिपा लो
स्वयं का दीपक कभी मत बनना
अज्ञान का डेरा डेल रहो
यही तुम्हारे लिए सच्चा सौदा है

24.8.17

मैं तो मज़दूर हूँ हर रोज़ कमाने वाला !!



तू जहां है, वहां   मैं  कहाँ आने वाला ,
मैं तो मज़दूर हूँ हर रोज़ कमाने वाला !!
बलूनों की तरह हवा में न उड़ाना मुझको..
तेरा ख्याल हूँ , वापस नहीं   आनेवाला ।
मुझसे मिलना तेरी किस्मत है गुरूर न कर
वक़्त हूँ जो गया तोवापस नहीं आने वाला ।।
ख्याल-ओ-वक्त को सलीके से सम्हाले रखिये -
पैदा न हुआ अबतक इनको बचाने वाला ।।
तेरी तारीफ़ के किस्से , तेरी जानिब से आए .!
मिला  क्यों  तुझे ,हम सब से मिलाने वाला ?
तेरी आवाज़ में नश्तर का असर क्यों कर है –
मिला नहीं है गोया लोरियां सुनाने वाला !!

22.8.17

‘बाणस्तंभ’ - प्रशांत पोळ

  व्हाट्सएप पर प्राप्त   प्रशांत पोळ का आलेख बाणस्तंभ मिसफिट पर प्रकाशित करते हुए हर्षित हूँ .

इतिहासबडा चमत्कारी विषय हैं. इसको खोजते
प्रशांत पोळ
खोजते हमारा सामना ऐसे स्थिति से होता हैं
, की हम आश्चर्य में पड जाते हैं. पहले हम स्वयं से पूछते हैं, यह कैसे संभव हैं..? डेढ़ हजार वर्ष पहले इतना उन्नत और अत्याधुनिक ज्ञान हम भारतीयों के पास था, इस पर विश्वास ही नहीं होता..!
गुजरात के सोमनाथ मंदिर में आकर कुछ ऐसी ही स्थिति होती हैं. वैसे भी सोमनाथ मंदिर का इतिहास बड़ा ही विलक्षण और गौरवशाली रहा हैं. १२ ज्योतिर्लिंगों में से पहला ज्योतिर्लिंग हैं सोमनाथ..! एक वैभवशाली, सुंदर शिवलिंग..!! इतना समृध्द की उत्तर-पश्चिम से आने वाले प्रत्येक आक्रांता की पहली नजर सोमनाथ पर जाती थी. अनेकों बार सोमनाथ मंदिर पर हमले हुए. उसे लूटा गया. सोना, चांदी, हिरा, माणिक, मोती आदि गाड़ियाँ भर-भर कर आक्रांता ले गए. इतनी संपत्ति लुटने के बाद भी हर बार सोमनाथ का शिवालय उसी वैभव के साथ खड़ा रहता था.
लेकिन केवल इस वैभव के कारण ही सोमनाथ का महत्व नहीं हैं. सोमनाथ का मंदिर भारत के पश्चिम समुद्र तट पर हैं. विशाल अरब सागर रोज भगवान सोमनाथ के चरण पखारता हैं. और गत हजारों वर्षों के ज्ञात इतिहास में इस अरब सागर ने कभी भी अपनी मर्यादा नहीं लांघी हैं. न जाने कितने आंधी, तूफ़ान आये, चक्रवात आये लेकिन किसी भी आंधी, तूफ़ान, चक्रवात से मंदिर की कोई हानि नहीं हुई हैं.
इस मंदिर के प्रांगण में एक स्तंभ (खंबा) हैं. यह बाणस्तंभनाम से जाना जाता हैं. यह स्तंभ कब से वहां पर हैं बता पाना कठिन हैं. लगभग छठी शताब्दी से इस बाणस्तंभ का इतिहास में नाम आता हैं. लेकिन इसका अर्थ यह नहीं की बाणस्तंभ का निर्माण छठवे शतक में हुआ हैं. उस के सैकड़ों वर्ष पहले इसका निर्माण हुआ होगा. यह एक दिशादर्शक स्तंभ हैं, जिस पर समुद्र की ओर इंगित करता एक बाण हैं. इस बाणस्तंभ पर लिखा हैं
आसमुद्रांत दक्षिण धृव पर्यंत 
अबाधित ज्योतिरमार्ग..

इसका अर्थ यह हुआ – ‘इस बिंदु से दक्षिण धृव तक सीधी रेषा में एक भी अवरोध या बाधा नहीं हैं.अर्थात इस समूची दूरी में जमीन का एक भी टुकड़ा नहीं हैं’. 
जब मैंने पहली बार इस स्तंभ को देखा और यह शिलालेख पढ़ा, तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए. यह ज्ञान इतने वर्षों पहले हम भारतीयों को था..? कैसे संभव हैं..? और यदि यह सच हैं, तो कितने समृध्दशाली ज्ञान की वैश्विक धरोहर हम संजोये हैं..! 
संस्कृत में लिखे हुए इस पंक्ति के अर्थ में अनेक गूढ़ अर्थ समाहित हैं. इस पंक्ति का सरल अर्थ यह हैं की सोमनाथ मंदिर के उस बिंदु से लेकर दक्षिण धृव तक (अर्थात अंटार्टिका तक), एक सीधी रेखा खिंची जाए तो बीच में एक भी भूखंड नहीं आता हैं’. क्या यह सच हैं..? आज के इस तंत्रविज्ञान के युग में यह ढूँढना संभव तो हैं, लेकिन उतना आसान नहीं.
गूगल मैप में ढूंढने के बाद भूखंड नहीं दिखता हैं, लेकिन वह बड़ा भूखंड. छोटे, छोटे भूखंडों को देखने के लिए मैप को एनलार्जया ज़ूमकरते हुए आगे जाना पड़ता हैं. वैसे तो यह बड़ा ही बोरिंगसा काम हैं. लेकिन धीरज रख कर धीरे-धीरे देखते गए तो रास्ते में एक भी भूखंड (अर्थात 10 किलोमीटर X 10 किलोमीटर से बड़ा भूखंड. उससे छोटा पकड में नहीं आता हैं) नहीं आता हैं. अर्थात हम मान कर चले की उस संस्कृत श्लोक में सत्यता हैं.
किन्तु फिर भी मूल प्रश्न वैसा ही रहता हैं. अगर मान कर भी चलते हैं की सन ६०० में इस बाण स्तंभ का निर्माण हुआ था, तो भी उस जमाने में पृथ्वी को दक्षिणी धृव हैं, यह ज्ञान हमारे पुरखों के पास कहांसे आया..? अच्छा, दक्षिण धृव ज्ञात था यह मान भी लिया तो भी सोमनाथ मंदिर से दक्षिण धृव तक सीधी रेषा में एक भी भूखंड नहीं आता हैं, यह मैपिंगकिसने किया..? कैसे किया..? सब कुछ अद्भुत..!!
इसका अर्थ यह हैं की बाण स्तंभके निर्माण काल में भारतीयों को पृथ्वी गोल हैं, इसका ज्ञान था. इतना ही नहीं, पृथ्वी को दक्षिण धृव हैं (अर्थात उत्तर धृव भी हैं) यह भी ज्ञान था. यह कैसे संभव हुआ..? इसके लिए पृथ्वी का एरिअल व्यूलेने का कोई साधन उपलब्ध था..? अथवा पृथ्वी का विकसित नक्शा बना था..
नक़्शे बनाने का एक शास्त्र होता हैं. अंग्रेजी में इसे कार्टोग्राफी’ (यह मूलतः फ्रेंच शब्द हैं.) कहते हैं. यह प्राचीन शास्त्र हैं. इसा से पहले छह से आठ हजार वर्ष पूर्व की गुफाओं में आकाश के ग्रह तारों के नक़्शे मिले थे. परन्तु पृथ्वी का पहला नक्शा किसने बनाया इस पर एकमत नहीं हैं. हमारे भारतीय ज्ञान का कोई सबूत न मिलने के कारण यह सम्मान एनेक्झिमेंडरइस ग्रीक वैज्ञानिक को दिया जाता हैं. इनका कालखंड इसा पूर्व ६११ से ५४६ वर्ष था. किन्तु इन्होने बनाया हुआ नक्शा अत्यंत प्राथमिक अवस्था में था. उस कालखंड में जहां जहां मनुष्यों की बसाहट का ज्ञान था, बस वही हिस्सा नक़्शे में दिखाया गया हैं. इस लिए उस नक़्शे में उत्तर और दक्षिण धृव दिखने का कोई कारण ही नहीं था. 
आज की दुनिया के वास्तविक रूप  के करीब जाने वाला नक्शा हेनरिक्स मार्टेलसने साधारणतः सन १४९० के आसपास तैयार किया था. ऐसा माना जाता हैं, की कोलंबस ने इसी नक़्शे के आधार पर अपना समुद्री सफर तय किया था. 
पृथ्वी गोल हैंइस प्रकार का विचार यूरोप के कुछ वैज्ञानिकों ने व्यक्त किया था. एनेक्सिमेंडरइसा पूर्व ६०० वर्ष, पृथ्वी को सिलेंडर के रूप में माना था. एरिस्टोटल’ (इसा पूर्व ३८४ इसा पूर्व ३२२) ने भी पृथ्वी को गोल माना था. 
लेकिन भारत में यह ज्ञान बहुत प्राचीन समय से था, जिसके प्रमाण भी मिलते हैं. इसी ज्ञान के आधार पर आगे चलकर आर्यभट्ट ने सन ५०० के आस पास इस गोल पृथ्वी का व्यास ४,९६७ योजन हैं (अर्थात नए मापदंडोंके अनुसार ३९,९६८ किलोमीटर हैं) यह भी दृढतापूर्वक बताया. आज की अत्याधुनिक तकनीकी की सहायता से पृथ्वी का व्यास ४०,०७५ किलोमीटर माना गया हैं. इसका अर्थ यह हुआ की आर्यभट्ट के आकलन में मात्र ०.२६% का अंतर आ रहा हैं, जो नाममात्र हैं..! लगभग डेढ़ हजार वर्ष पहले आर्यभट्ट के पास यह ज्ञान कहां से आया..?
सन २००८ में जर्मनी के विख्यात इतिहासविद जोसेफ श्वार्ट्सबर्ग ने यह साबित कर दिया की इसा पूर्व दो-ढाई हजार वर्ष, भारत में नकाशा शास्त्र अत्यंत विकसित था. नगर रचना के नक्शे उस समय उपलब्ध तो थे ही, परन्तु नौकायन के लिए आवश्यक नक़्शे भी उपलब्ध थे. 
भारत में नौकायन शास्त्र प्राचीन काल से विकसित था. संपूर्ण दक्षिण आशिया में जिस प्रकार से हिन्दू संस्कृति के चिन्ह पग पग पर दिखते हैं, उससे यह ज्ञात होता हैं की भारत के जहाज पूर्व दिशा में जावा, सुमात्रा, यवद्वीप को पार कर के जापान तक प्रवास कर के आते थे. सन १९५५ में गुजरात के लोथलमें ढाई हजार वर्ष पूर्व के अवशेष मिले हैं. इसमें भारत के प्रगत नौकायन के अनेक प्रमाण मिलते हैं.
सोमनाथ मंदिर के निर्माण काल में दक्षिण धृव तक दिशादर्शन, उस समय के भारतियों को था यह निश्चित हैं. लेकिन सबसे महत्वपूर्व प्रश्न सामने आता हैं की दक्षिण धृव तक सीधी रेखा में समुद्र में कोई अवरोध नहीं हैं, ऐसा बाद में खोज निकाला, या दक्षिण धृव से भारत के पश्चिम तट पर, बिना अवरोध के सीधी रेखा जहां मिलती हैं, वहां पहला ज्योतिर्लिंग स्थापित किया..?
उस बाण स्तंभ पर लिखी गयी उन पंक्तियों में
(‘आसमुद्रांत दक्षिण धृव पर्यंत, अबाधित ज्योतिरमार्ग..’)
जिसका उल्लेख किया  गया हैं, वह ज्योतिरमार्गक्या है..
यह आज भी प्रश्न ही हैं..!
- प्रशांत पोळ

21.8.17

*बालभवन के बच्चों ने किया वृद्धाश्रम में बुज़ुर्गों का मनोरंजन*



15 अगस्त 2017 को रेडक्रॉस सोसायटी जबलपुर द्वारा संचालित एवम प्रबंधित  वृद्धाश्रम में बुजुर्गों का भरपूर मनोरंजन किया । कार्याक्रम का आयोजन मुक्तिफाउंडेशन की टीम ने  डॉक्टर विवेक जैन ने किया ।



      इस अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि श्री धीरज पटैरिया थे जबकि अध्यक्षता संभागीय उपसंचालक श्रीमती मनीषा लुम्बा ने की । 



      डॉ शिप्रा सुल्लेरे के मार्गदर्शन में  तैयार राष्ट्रीय भावपूर्ण  गीत-नृत्यों की प्रस्तुतियां  बालभवन के कलाकारों ने दी ।

      इस कार्यक्रम में गिरीश बिल्लोरे के अलावा नृत्य गुरु श्री इंद्र पांडे मौजूद थे।

18.8.17

life sketch of legendary poetess late Subhadra Kumari Chauhan



#Mila_Tez_Se_Tez is the  Short Musical Play & #compilation of emotional patriotic story  Based on life sketch of  legendary poetess late  Subhadra Kumari Chauhan Directed and Scripted by Mr. Sanjay Garg Assistant Director Manisha  Tiwari (Ex Student of Dn. BalBhavan Jabalpur M.P. )
Music Director :-  Dr. Shipra Sullere
Music Pit & Singers  :- Sameer Sarate,   Muskaan Soni, Shreya Thakur, Ishita Tiwari, Ranjana Nishad, Ayush Rajak, Harsh Soundiya, Sajal Soni & Akrsh Jain   
ARTISTS: Palak Gupta Shreya Khandelwal Prageet Sharma, Vaishnavi Barsaiyan,Vaishali barsaiyan,Shifali Suhane, Sneha Gupta, Anjali Gupta, Shreya Tiwari, Ashutosh Rajak, Unnati Tiwari, Sparsh Shrivas, Manasi Soni, Prathamesh Bakshi, Raj Gupta, Sonu Ben, Rajavardhan Patel, Ananya Vishvakarma, Sagar Soni, Priyanka Soni, Riddhi Shukla, Himanshi Vishvakarma, Anamol Vishvakarma, Avanshika Burman, Of  Balbhavan Jabalpur
Back Stage :- Davindar Sing Grover, Rajkumar Gupta , Akshay Singh Thakur, Ravindra Murahar, Sanjay Pateriya, Mr. Prem, Vinay Sharma, Indra Pandey Ruchi Kesharvani,
First Show :- On 16.08.2017At Shri Janaki Raman College Jabalpur
With the Assistance of Sahity-Parishad Government Of Madhy-Pradesh Bhopal .
Special Thanks to :- Smt. Tripti Tripathi,  Director Jawahar Balbhavan Bhopal. Smt.Manisha Lumba, Dy Director Women Empowerment, Jabalpur Division,

Creation & Production :- Girish Billore, Director Divisional Balbhavan, Jabalpur M.P   

for more clips visit :- Girish Billore 

https://www.youtube.com/watch?v=z95THUG0W_o


https://www.youtube.com/watch?v=Moj7c2Oj8CA


https://www.youtube.com/watch?v=eKuZKdMoWB8


https://www.youtube.com/watch?v=UaxaCPDjhhU


https://www.youtube.com/watch?v=ZT-IkgynUIw

15.8.17

स्वतंत्रता सेनानी श्री गोपीकृष्ण जोशी : दिनेश पारे

आज स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मुझे अपने नानाजी की याद आ रही है। वे स्वतंत्रता आंदोलन के एक वीर सिपाही थे। आईए आज मैं आप सभी को एक आलेख के द्वारा उनका जीवन परिचय करवाता हूँ।
अंग्रेजी राज में नार्मदीय समाज के एक साधारण कृषक परिवार का नौजवान लड़का सरकारी नौकरी छोड़कर स्वाधीनता संग्राम में कूद जाए, ऐसा अपवाद स्वरूप ही होता था, लेकिन हरदा के पास मसनगाँव रेलवे स्टेशन के स्व. श्री रामकरण जोशी के सुपुत्र श्री गोपीकृष्ण जोशी ने २४ साल की कच्ची उम्र में ऐसा साहस कर दिखाया था। यह आज से लगभग ७५ साल पुरानी बात है। श्री जोशी को रेलवे में सिग्नेलर की नौकरी को ज़्यादा समय भी नहीं हुआ था कि रेलवे में हुई एक हड़ताल को निमित्त बनाकर उन्होंने सरकारी वर्दी उतारकर खादी धारण की और आज़ादी के सिपाही बन गए। तब कांग्रेस आज की तरह एक राजनीतिक दल भर नही था, बल्कि भारत की स्वाधीनता के लिए चलाया जा रहा सशक्त आंदोलन था। अगस्त १९४७ में भारत को स्वतंत्रता मिलने तक वे कांग्रेस की तरफ से गाँव-गाँव घूमकर आज़ादी की अलख जगाते थे और हिंदी-अंग्रेजी व मराठी में धाराप्रवाह भाषण देते थे। अंग्रेज़ो की खिलाफत करने और आज़ादी के आंदोलन में भाग लेने के फलस्वरूप उन्हें बार-बार सज़ा होती। उन्होंने होशंगाबाद, जबलपुर और नागपुर की जेलों में लगभग आठ माह बिताये।हरदा नगर की मिडिल स्कूल में मेन गेट के पास स्वाधीनता संग्राम की स्मृति में बने स्तंभ पर आज़ादी के सिपाहियों में स्व. श्री गोपीकृष्ण जोशी का नाम अंकित है। भारत की आज़ादी के बाद वे जीवन पर्यन्त कांग्रेस में रहकर लोकल बोर्ड, जनपद आदि में सदस्य व चेयरमैन रहे। मसनगाँव ग्राम पंचायत के वे लंबे समय तक सरपंच भी रहे। पूर्व मुख्यमंत्री स्व. भगवंतराव मंडलोई और पूर्व मंत्री स्व. मिश्रीलाल गंगवाल से उनकी घनिष्ठता थी। दरअसल श्री गंगवाल जब प्रजा मंडल के आंदोलन में पुलिस से बचने के लिए भूमिगत होते थे, तब वे श्री जोशी के पास मसनगाँव आ जाते थे। दिसम्बर १९८० में उनका देहावसान हुआ।

14.8.17

एडवोकेट विवेक पांडे के ’आईडिया’ को शिकागो यूनिवर्सिटी ने पब्लिश किया : ज़हीर अंसारी

दुनिया में मैथ्स, फिजिक्स, केमेस्ट्री व इकानॉमिक आदि के स्थापित सिद्धांत है| इन सिद्धांतों के आधार पर शिक्षण तथा अविष्कारिक अनुसंधान किए जाते है| जैसे गणित का सिद्धांत है कि दो और दो चार होंगे| यानि पूरे दुनिया में यही फार्मूला प्रचलन में है अर्थात दो और दो चार ही होंगे तीन या पांच नहीं| मगर विधि और न्याय शास्त्र में ऐसा कोई एकीकृत सिद्धांत नहीं है जो समूची दुनिया में मान्य हो| देश, काल, परिस्थिति और धर्म के अनुसार सबका अपना-अपना विधि और न्याय शास्त्र है| इस विसंगति को दूर करने और एकरुपता स्थापित करने का प्रयास विश्व के शीर्ष विद्वान काफी दिनों से कर रहे हैं लेकिन अब तक किसी को सफलता नहीं मिली है|
सारी दुनिया के विद्वान इस विषय पर माथा खपा रहे हैं, ऐसे में जबलपुर शहर के पेशेवर वकील विवेक रंजन पांडे ने कल्याणकारी विधि-न्याय शास्त्र के सिद्धांत का आईडियाकोई 7-8 बरस पहले तैयार कर लिया था| विवेक रंजन पांडे लगातार इस सिद्धांत को सर्वमान्य बनाने के लिए प्रयासरत रहे| चूंकि भारत में किसी भी विषय के सैद्धांतिकरण को गंभीरता से नहीं लिया जाता लिहाजा उनके आईडियाको यहां महत्व नहीं मिला| विवेक रंजन पांडे ने जब अपना यह आईडियाकिसी वरिष्ठ विद्वान के जरिये अमेरिका की शिकागो यूनिवर्सिटी भेजा तो उन्हें यह आईडियापसंद आया| शिकागो यूनिवर्सिटी ने इंवीटेशन के साथ वीजा भेजकर उन्हें आमंत्रित कर लिया| एडवोकेट पांडे ने अपने इस आईडियाका प्रजेंटेशन यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र और गणित शास्त्र के विद्वानों के समक्ष दिया तो उन्हें कल्याणकारी विधि शास्त्र का यह आईडियापसंद आया| एडवोकेट पांडे ने अपने इस आईडियाका शीर्षक कानून के आर्थिक विश्लेषण में कल्याणकारी न्याय शास्त्रदिया है|
पारंपरिक न्याय के किसी सिद्धांत में न्याय का कोई पुख़्ता सिद्धान्त नहीं है। पारंपरिक न्याय भावनात्मक विचार अथवा प्रभु शक्ति द्वारा शासन करने की धमकी या डर के आधार पर होता है जबकि कल्याण न्याय शास्त्र अवधारण यह कि मनुष्य के कल्याण के अच्छे स्तर के लिए ऐसा सिद्धांत बनाया जाए जिसमें विधि और न्याय के सिद्धांत एकजुट हों जो लोगों की भलाई में मलहम का काम करे। एडवोकेट विवेक रंजन पांडे के इस आईडियाको अहमियत देते हुए यूनिवर्सिटी आफ शिकागो लॉ स्कूल विस्तृत सिद्धांत प्रतिपादित करने का दायित्व सौंपा है| उनके इस कार्य में अमेरिका और यूरोप के बड़े-बड़े विद्वान सहयोग प्रदान करेंगे| इस कार्य को प्रमोट करने के लिए यूनिवर्सिटी आफ शिकागो लॉ स्कूल ने कमिटमेंट किया है| एडवोकेट पांडे ने जो पहला पेपर तैयार किया था उसे यूनिवर्सिटी आफ शिकागो लॉ स्कूल ने WORKING PAPER ON THE WELFAREJURISPUDENCE IN ECONOMIC ANALYSIS OF LAW अपनी वेब साईट पर लोड कर दिया है| इसे विवेक रंजन पांडे के नाम से गूगल पर भी सर्च किया जा सकता है| इस पब्लिकेशन के बाद अब विवेक पांडे को विस्तृत थ्योरी तैयार करना होगा|
यहां यह बताना जरुरी है कि विवेक रंजन पांडे एमपी हाईकोर्ट में प्रेक्टिस करते हैं| अच्छे वकील के साथ अच्छे स्कालर्स भी हैं| यहां उनकी क्षमताओं को अंडर स्टीमेट किया जाता रहा है| वजह साफ थी कि जिस वैश्विक विचार को मतलब थ्योरी आफ लॉ और थ्योरी आफ जस्टिस को एकीकृत करने की सोच को अधिकांशत: लोग समझ नहीं पाए|

विवेक रंजन पांडे की इस उपलब्धि में उन्हें अनंत शुभकामनाएं | उन्होंने जबलपुर के नाम को गौरवान्वित किया है।

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धर्म और संप्रदाय

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