सलिल समाधिया |
डेरा सच्चा सौदा कि झूठा सौदा
अब हम सब कौवे कायें-कांव-कांव करने लगेंगे... घरों के ड्राइंग रूम में , चाय- पान के टपरों में , बार, रेस्टॉरेंट में बैठकर...
गुरमीत राम-रहीम को गालियां बकेंगे ,..उनके भक्तों को मूर्ख कहेंगे और चाय पी-पीकर, सिगरेटें फूँक- फूंककर , पान-खा- खाकर.. खूब कोसेंगे.. सरकार, राजनीति, मीडिया सभी को .
अब हम सब कौवे कायें-कांव-कांव करने लगेंगे... घरों के ड्राइंग रूम में , चाय- पान के टपरों में , बार, रेस्टॉरेंट में बैठकर...
गुरमीत राम-रहीम को गालियां बकेंगे ,..उनके भक्तों को मूर्ख कहेंगे और चाय पी-पीकर, सिगरेटें फूँक- फूंककर , पान-खा- खाकर.. खूब कोसेंगे.. सरकार, राजनीति, मीडिया सभी को .
लेकिन खुद का डेरा और झूठा सौदा कभी नहीं
देखेंगे। ..हममे से कोई भी सच्चा सौदा के भक्तों से अलग है क्या ??
बस इतना ही है की अभी तक हमारे गुरु और भगवान पर आंच नहीं आई है। ...
आएगी.. तो हम भी यही करेंगे... ??
बात ये नहीं है कि राम-रहीम क्या है ,कि रामपाल क्या है....बात ये है कि हम क्या हैं ??
हम क्यों जाते हैं इन डेरों पे ?? .. क्या हम भक्त हैं , सत्य-पिपासु हैं , क्या हैं ??
जो बात लिख रहा हूँ , जानता हूँ कि 100 में से 90 को बिलकुल नहीं पुसायेगी , ...चुभेगी .डंक मारेगी । क्यों ??
क्योंकि वो भी किसी न किसी गुरु या डेरा पर सज़दा कर रहा है
मैं हैरान... हूँ कि हमारे देश में हर 100 मीटर के दायरे में मंदिर ,मज़ार हैं सब ओर देव पुज रहे हैं। एक सामान्य शहर में औसतन पच्चीस हज़ार मंदिर होते हैं ..लेकिन हम लोग इतने बड़े भिखारी हैं कि वहां तो जाते ही हैं .. लेकिन रामपाल या राम-रहीम के पास भी जाते हैं ...अब या तो हमारा देवता बोगस है या या हमारी श्रद्धा नपुंसक है
हम इतने बड़े वाले " मँगने" हैं कि राम से नहीं मिल पाया तो रामपाल को पकड़ लेते हैं...
वेश्या की तरह हम गुरु और देव बदलते जाते हैं
..यही कारण है कि एक शहर में अगर बीस हज़ार मंदिर हैं तो उसी शहर में दस हज़ार गुरु भी डेरा डाले हैं और सबका धंधा चल रहा है। ..
क्योंकि मंदिर भी अपने आप नहीं चलता उसके पीछे मंदिर का धंधा चलने वाले १० गुरुघंटाल डेरा डाले हैं
हम चाहते क्या हैं आखिर। ....
क्या .. ईश्वर? ...नहीं
क्या सत्य..??.......नहीं
ज्ञान..? ....नहीं
हम चाहते हैं.. ...पैसा ,
हम चाहते हैं ....सफलता, ..उपलब्धि,.. नौकरी,
हम चाहते हैं ...प्रमोशन,.. मुकद्दमे में जीत,.. बच्चे का भविष्य,.. स्वास्थ्य ..बेटी की शादी,.. कर्ज़े से मुक्ति,
हाँ चाहते हैं गाडी, मकान, शोहरत
हमारी सब प्रार्थनाओं का सार है-
बस इतना ही है की अभी तक हमारे गुरु और भगवान पर आंच नहीं आई है। ...
आएगी.. तो हम भी यही करेंगे... ??
बात ये नहीं है कि राम-रहीम क्या है ,कि रामपाल क्या है....बात ये है कि हम क्या हैं ??
हम क्यों जाते हैं इन डेरों पे ?? .. क्या हम भक्त हैं , सत्य-पिपासु हैं , क्या हैं ??
जो बात लिख रहा हूँ , जानता हूँ कि 100 में से 90 को बिलकुल नहीं पुसायेगी , ...चुभेगी .डंक मारेगी । क्यों ??
क्योंकि वो भी किसी न किसी गुरु या डेरा पर सज़दा कर रहा है
मैं हैरान... हूँ कि हमारे देश में हर 100 मीटर के दायरे में मंदिर ,मज़ार हैं सब ओर देव पुज रहे हैं। एक सामान्य शहर में औसतन पच्चीस हज़ार मंदिर होते हैं ..लेकिन हम लोग इतने बड़े भिखारी हैं कि वहां तो जाते ही हैं .. लेकिन रामपाल या राम-रहीम के पास भी जाते हैं ...अब या तो हमारा देवता बोगस है या या हमारी श्रद्धा नपुंसक है
हम इतने बड़े वाले " मँगने" हैं कि राम से नहीं मिल पाया तो रामपाल को पकड़ लेते हैं...
वेश्या की तरह हम गुरु और देव बदलते जाते हैं
..यही कारण है कि एक शहर में अगर बीस हज़ार मंदिर हैं तो उसी शहर में दस हज़ार गुरु भी डेरा डाले हैं और सबका धंधा चल रहा है। ..
क्योंकि मंदिर भी अपने आप नहीं चलता उसके पीछे मंदिर का धंधा चलने वाले १० गुरुघंटाल डेरा डाले हैं
हम चाहते क्या हैं आखिर। ....
क्या .. ईश्वर? ...नहीं
क्या सत्य..??.......नहीं
ज्ञान..? ....नहीं
हम चाहते हैं.. ...पैसा ,
हम चाहते हैं ....सफलता, ..उपलब्धि,.. नौकरी,
हम चाहते हैं ...प्रमोशन,.. मुकद्दमे में जीत,.. बच्चे का भविष्य,.. स्वास्थ्य ..बेटी की शादी,.. कर्ज़े से मुक्ति,
हाँ चाहते हैं गाडी, मकान, शोहरत
हमारी सब प्रार्थनाओं का सार है-
सुख सम्पति घर आवे कष्ट मिटे तन का
दरअसल, हम बौड़म, बेवकूफों
का एक बहुत बड़ा बाजार है
हम ऐसे कन्ज़ूमर हैं जिनके पास अभाव रूपी दौलत है
अशांति,बेचैनी, महत्वाकांक्षा की अपार सम्पदा है..
इसी पर नज़र गड़ाए हैं गुरु, मंदिरों के ट्रस्टी, आश्रमों के संचालक, ज्योतिषी, योग और आयुर्वेद बेचने वाले , जीवा और पतंजलि ....आदि आदि ...
हम ऐसे कन्ज़ूमर हैं जिनके पास अभाव रूपी दौलत है
अशांति,बेचैनी, महत्वाकांक्षा की अपार सम्पदा है..
इसी पर नज़र गड़ाए हैं गुरु, मंदिरों के ट्रस्टी, आश्रमों के संचालक, ज्योतिषी, योग और आयुर्वेद बेचने वाले , जीवा और पतंजलि ....आदि आदि ...
अच्छा ..इधर देश में जैसे ही एक मध्यम वर्ग
पैदा हुआ ... नव धनाढ्य , अंग्रेजी बोलने वाला ...
फैशनेबल,...टेक्नोफ्रेंडली,... फ़र्ज़ी इंटेलेक्चुअल लोगों का ...तो वहां तुरंत ही उनको फंसाने के लिए नए फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाले धंधेबाज बाबाओं ने भी अपना जाल फेंका
फैशनेबल,...टेक्नोफ्रेंडली,... फ़र्ज़ी इंटेलेक्चुअल लोगों का ...तो वहां तुरंत ही उनको फंसाने के लिए नए फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाले धंधेबाज बाबाओं ने भी अपना जाल फेंका
अब हम लीचड़ लोग,.. सदियों के गुलाम, हमारे लिए तो अंग्रेजी वैसे भी हाई-फाई चीज़ है.. तो
अंग्रेजी में ज्ञान और धर्म की बात करने वाले के तो हम तलवे ही चाटने लगते हैं..
...तो उग आये फलां फाउंडेशन।..ढिकां.. .धाम। ..अब चूँकि साउथ वालों की अंग्रेजी
ज्यादा अच्छी होती है तो इसीलिए साऊथ से एक-एक करके अंग्रेजी डां बाबा उगना शुरू
हो गए ... ताकि हाई सैलरी पैकेज वाले आईटी स्टूडेंट्सरूपी " नए भक्त " न
छूटने पाएं।
लेकिन छोड़िये हम मूरख,.. लीचड़, बोर, लैन्डु-लपाडु लोग क्या सत्य को जानेंगे ..
जानना तो छोड़िये ..कभी सत्य को जानने की जिज्ञासा भी पैदा कर पाएंगे अभी दूर की कौड़ी है
अभी तो "अथातो ब्रह्म जिज्ञासा "का देश "अथातो धन इच्छा" बना रहेगा बहुत वर्षों तक ..
लेकिन छोड़िये हम मूरख,.. लीचड़, बोर, लैन्डु-लपाडु लोग क्या सत्य को जानेंगे ..
जानना तो छोड़िये ..कभी सत्य को जानने की जिज्ञासा भी पैदा कर पाएंगे अभी दूर की कौड़ी है
अभी तो "अथातो ब्रह्म जिज्ञासा "का देश "अथातो धन इच्छा" बना रहेगा बहुत वर्षों तक ..
भूख हमें है नहीं ईश्वर की ...लेकिन भोजन खूब
कर रहे हैं ईश्वर का.. इसीलिए अजीर्ण हुआ जा रहा है... अपच हो गई है धर्म की...
मस्तिष्क में सड़ रहा है... ये बिना भूख का भोजन ,और अध्यात्म की उल्टियां कर रहे हैं हम लोग ...
गाय की पूजा करेंगे लेकिन कुत्ते को पत्थर
मारेंगे
जिन जानवरों की धार्मिकता संदिग्ध हो उन्हें काटकर खाएंगे
एक ओर वृक्ष की पूजा करेंगे लेकिन उसी वृक्ष को काटकर ,जलाकर उसपर मांस भूंजेंगे
ज़मीन घेरने के लालच से घर के पिछवाड़े या सामने मंदिर बनाएंगे और फिर वहां त्याग और अपरिग्रह का देवता स्थापित हो जायेगा...
पूरा देश पुराण, भागवत की कथाओं से सराबोर है कथा वाचक पांडित्य के दम्भ से दमक रहे हैं और सुनाने वाले भक्ति के मद से ...
यहाँ तर्क,मीमांसा, वैज्ञानिकता की बात मत कीजिये.. मार डालेंगे आप को
जिन जानवरों की धार्मिकता संदिग्ध हो उन्हें काटकर खाएंगे
एक ओर वृक्ष की पूजा करेंगे लेकिन उसी वृक्ष को काटकर ,जलाकर उसपर मांस भूंजेंगे
ज़मीन घेरने के लालच से घर के पिछवाड़े या सामने मंदिर बनाएंगे और फिर वहां त्याग और अपरिग्रह का देवता स्थापित हो जायेगा...
पूरा देश पुराण, भागवत की कथाओं से सराबोर है कथा वाचक पांडित्य के दम्भ से दमक रहे हैं और सुनाने वाले भक्ति के मद से ...
यहाँ तर्क,मीमांसा, वैज्ञानिकता की बात मत कीजिये.. मार डालेंगे आप को
यहाँ तो हम घर से दफ्तर जाते 50 मुर्दा
मंदिरों को सर झुकायेंगे और 50 जीवित आत्माओं को गाली बकेंगे
जिसको जितनी कहानियां याद हैं वो उतना बड़ा पंडित है
जिसको जितनी कहानियां याद हैं वो उतना बड़ा पंडित है
अभी तो बहुत वर्षों तक राम- रहीमों का डेरा
चलना है बॉस
सब लोग ज़ोर से अपने-अपने गुरुओं की जयजयकार
करो
अब सब लोग अपने गुरुओं के पक्ष में खूब तर्क देना... okay
अब सब लोग अपने गुरुओं के पक्ष में खूब तर्क देना... okay
और सिद्ध करना की बाकी का तो पता नहीं...
लेकिन हमारे गुरु की बात ही कुछ और है
लेकिन ध्यान रहे ...हमारी जिज्ञासा है की नहीं ये कभी मत देखना
हमें सत्य की प्यास है की नहीं सोचना भी मत। ..नहीं तो .... हाथ में आ जायेगी
तो शुतुरमुर्गों। ..स्वयं में ही विराजमान उस परम के अथाह समुन्दर से मुंह छिपा लो
और गुरु और डेरों में मुंह छिपा लो
स्वयं का दीपक कभी मत बनना
अज्ञान का डेरा डेल रहो
यही तुम्हारे लिए सच्चा सौदा है
लेकिन ध्यान रहे ...हमारी जिज्ञासा है की नहीं ये कभी मत देखना
हमें सत्य की प्यास है की नहीं सोचना भी मत। ..नहीं तो .... हाथ में आ जायेगी
तो शुतुरमुर्गों। ..स्वयं में ही विराजमान उस परम के अथाह समुन्दर से मुंह छिपा लो
और गुरु और डेरों में मुंह छिपा लो
स्वयं का दीपक कभी मत बनना
अज्ञान का डेरा डेल रहो
यही तुम्हारे लिए सच्चा सौदा है