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दिसंबर, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कम बोलते हैं शुभम बोलती हैं उनकी पेंटिंग्स

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  20 अगस्त 1997 को जन्मे   शुभम   के पिता   श्री जगदीश राज अहिरवार पेशे से सब्जी व्यापारी हैं . 2007  में  बाल भवन में  बेटे को उसकी रूचि देखते हुए  संभागीय बाल भवन में प्रवेश दिलाया । रोज़ कमाने  वाले जगदीश बच्चों के भविष्य को लेकर बेहद संवेदित हैं . बच्चों को घरेलू आर्थिक परेशानियों से अप्रभावित  रखने वाली शुभमराज माताजी श्रीमती कोमल का सपना है –“ बच्चे के  सारे सपने पूरे हों.... ! ”            तीन भाईयों में शुभम सबसे बड़े बेटे शुभम जिसका रुझान बचपन से ही    चित्रकारी में है जबकि अन्य छोटे भाई खेल और पढ़ाई में रुचि रखते हैं ।   शुभम का     चित्रकला के प्रशिक्षण का सपना बाल-भवन ने    पूरा किया । उसका मानना है हमें    खुद के विकास के    लिए    अच्छे अवसर एवं अच्छे स्थान की तलाश    करनी चाहिए मुझे बालभवन जबलपुर में आकर अपने सपने पूरा करने का मौका मिला    मैं रोमांचित हूँ । अपनी सफलता का श्रेय माता पिता एवं बालभवन को देते हुए शुभमराज ने कहा की- “ बाल-भवन    की अनुदेशिका श्रीमती रेणु पाण्डे के प्रभावी प्रशिक्षण एवं अनुशासन से ही    मुझे राष्ट्रीय स्तर के इस पुरस्कार प्राप्त

निर्भया आखिर पत्थर को पिघला दिया तुमने पर देर हो गई

निर्भया तुम ज्योति बनी परन्तु बहुत देर हो जब तक तुम्हारे-ताप से पत्थर पिघले तब तक तुम्हारा क्रूर अपराधी सिलाई मशीन लेकर तार तार हुए  दिलों के पर सुइयां चुभाने की कोशिश में लग जाएगा . फिर भी तुम्हारी वज़ह से पत्थर पिघले .... चली गईं पर तुम्हारे बलिदान ने देश को अप्रतिम उपहार दिया है ..... क्या कहूं नि:शब्द हूँ ..... अब एक भी अक्षर लिखना मेरे लिए भारी है ....... नमन बेटी ............    ( जुविलाइन जस्टिस अधिनियम संशोधन पर त्वरित टिप्पणी )

टनों पिघले हुए मोम पर सुलगता सवाल "ज्योतिसिंह यानी निर्भया "

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डा राम मनोहर लोहिया जी ने कहा था- "ज़िंदा कौमें पांच साल इंतज़ार नहीं करतीं" अगर लोहिया ने सही कहा है तो हमें अपने ज़िंदा होने पर संदेह है. निर्भया यानी ज्योति सिंह के जीने मरने से किसी को क्या फर्क पडेगा. पड़े भी क्यों भारत में जो जब ज़रूरी तौर पर होना चाहिए वो तब हो ही कैसे सकता है . जब सब जानते हैं कि निर्भया यानी ज्योति के बलिदान के बाद टनों से मोमबत्तियां पिघला तो दीं आम जनता ने... सुनो निर्भया की माँ....! और हाँ  पिता तुम भी सुन लो...!!  हमने भी अगुआई की थी ... उस दिन मोमबत्ती जला कर ये अलग बात है उसी पिघले मोम पर आप सवाल सुलगा रहे हो ..! क्या रखा है इस सबमें जाओ जब संभव होगा तब हम बदलेंगे  ..... क़ानून अभी हमको फुरसत नहीं हमको विरोध करना है ... ताकत दिखानी है तब तक आप इंतज़ार करो ..   ऐसा इस लिए कहा जा रहा है क्योंकि  शोकमग्न हूँ रो रहा हूँ ..  देश उस हकीम के सामने है जो पर्ची पर दवा लिखने के लिए कलम तलाश रहा है . कितने असहिष्णु हैं वे लोग जो सहिष्णुता के लिए दोहरे मानदंड रखते हैं . पूरे विश्व को समझ आ गया है . यह भी समझ चुका है देश कितना भुल्लकड़ है . जो डा. लोहिया

“क्या सच कमजोरों को दुनियाँ में जीने हक़ है भी कि नहीं..!”

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   आज एक बार फिर मेरी नज़र में एक मूर्ख सरकारी अधिकारी के बयान से अपना आलेख शुरू करूंगा जिसने एक बार कहा था-“कमजोर को स्थाईत्व का हक़ कदापि नहीं ! ” उस नामुराद असहिष्णु अफसर का यह कथन हम जैसे लोगों के लिए असहिष्णु हो सकता हैं किन्तु ज्ञान का हर विस्तार उसे संपुष्ट यानी कन्फर्म करता है  अर्थ-शास्त्र राजनीति-शास्त्र, कायिक-विज्ञान या कहें हर जगह कमजोर के स्थायित्व के अंत की निकटता का विस्तार से उल्लेख है . इस  पुष्टि  के बावजूद इस विषय पर लिखने की जोखिम इस लिए भी उठाया जा रहा है क्योंकि यह सिद्धांत मानवीय सन्दर्भों में यह विषय सर्वथा अग्राह्य होना चाहिए पर  समाज में इस बात को इस तरह घुट्टी में पिलाया गया है कि-"कमजोर को अनदेखा करो..!" यह विचार इतना परिपक्व हो चुका है कि सामाजिक ढाँचे में रच बस सा गया है . और फिर यहीं से आरम्भ होती है असमानता की यात्रा “कमजोर यानी शीघ्र समाप्त होने वाला” जब ये विचार और विस्तार पाता है तो बेशक सामाजिक संरचना इसे आत्म-सात कर लेती है . अरब देशों में नारी के अधिकारों का ज़िक्र करें तो बायोलोजिकल कारणों से पुरुषोचित साम्य न होने के कारण उसे अलग

बैसाखी के सहारे आरोपी को पकड़ लिया

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यह रिपोर्ट पलपल इंडिया में " यहाँ "  पर प्रकाशित हुई है जो मूलरूप से प्रतिलिपि कर यहाँ प्रकाशित की गई है    गणेश के दोनों पैर नहीं है. वह बैसाखी के सहारे चलता है , लेकिन उसने जो काम किया वह एक पुलिस वाला ही कर सकता है. पत्नी की हत्या करके भाग रहे हत्यारे पति को उसने बैसाखी के सहारे 1 किलोमीटर तक पीछा किया और उसे पकड़ लिया. मामला ढाई महीने पुराना है. कानूनी प्रक्रिया की वजह से गणेश का नाम नहीं खोला गया था. अब एसपी ने उसके इस साहस के लिए उसे 5 हजार रुपए का इनाम देकर सैल्यूट किया. 26 सितम्बर की रात बरगी डैम के पास बने घर के आंगन में गणेश यादव ( 30 ) अपने पिता और दोस्त के साथ बैठे थे. अचानक गणेश को जंगल से किसी महिला की चीखें सुनाईं पड़ी. गणेश ने ये बातें अपने पिता और दोस्त को बताईं , लेकिन दोनों उसे वहम होने की बात कहकर शांत कर दिया. लेकिन गणेश खुद को नहीं रोक पाए और बैसाखी उठाकर तेजी से उस तरफ भागने लगे , जहां से चीखें आ रहीं थीं. गणेश को झाड़ियों के बीच से अचानक एक व्यक्ति भागता हुआ नजर आया और वो उसके पीछे लग गया. सहारा ही बन गया हथियार               करीब एक किलो

निःशक्त व्यक्ति अधिनियम, 1995 में संशोधन अपेक्षित है

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आज मेरी नज़र नियम एवं अधिनियम ब्लॉग पर पडी जहां विकलांग व्यक्तियों के अधिकार को लेकर एक आलेख है जो 2009 में प्रकाशित हुआ है . जिसमें विशेष रूप से सक्षम व्यक्तियों के लिए बनाए गए अधिनियम में विकलांग व्यक्तियों को     आधारभूत अधिकारों का विस्तार से विवरण दिया है . किन्तु मेरी नज़र में यह  अनुसूचित संवर्गों के हितार्थ बनाए कानूनों के सापेक्ष   उतना प्रभाव-पूर्ण नहीं जितना कि अपेक्षा थी . अत: अधिनियाँ एवं उसके नियमों में कुछ आवश्यक परिवर्तन वांछित हैं.   यद्यपि विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2011 में काफी हद तक सुधार किया है किन्तु जिन बिन्दुओं पर संसोधन के लिए   ध्यान आकृष्ट कराया जा रहा है   जो दौनों ही अधिनियमों को कारगर एवं प्रभावी बना सकते हैं                  वास्तव में इस अधिनियम की प्रभावशीलता  अत्यधिक लाभप्रद नहीं है. परन्तु ऐसा नहीं कि रोज़गार को लेकर अधिनियम का प्रभाव कमजोर रहा है . शासकीय रिक्त पदों की पूर्ती के मामलों में इसे अधिनियम से अभूतपूर्व सफलता मिली है. किन्तु सामाजिक संरक्षण के मामले में पीडब्ल्यू अधिनियम 1995 अधिक प्रभाव साबित नहीं कर पाया है. अतएव इस

ओशो तुम ठहरे गाडरवारा के मैं जन्म से सालेचौका का हूँ.

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ओशो 1990 में देह त्याग  हम 1990 में देह के साथ   जीवन भर के लिए कुछ तय तो किया था पर पता नहीं ऐसा क्या हुआ हुआ कि अपने आपको असहज पा रहा हूँ . मुझे जो मिला आसानी से कभी नहीं मिला मिलता भी कैसे जो चाहिए मज़दूर को उसके लिए मज़दूरी तो करना ही चाहिए न . मुफ्त जो मिला वो तो पचेगा नहीं न .. नियति ने जो छीना उससे अधिक दे दिया कभी देने से रुका नहीं परमेश्वर मैं भी लुटाने से खुद को क्यों रोकूँ.. ? बताओ भला. अरे जो मुझे हासिल हुआ है वो सच में मेरा नहीं उसका दिया है .   एक बार बचपने में एक आध्यात्मोत्प्रेरित कविता लिखी थी  काश हममें सामर्थ्य होता  अवरोधों में बढ़ने का  नए स्वप्न गढ़ने का  और पूछने का  यदि तू ही है दाता  तो बता कौन है तेरा दाता ?           कविता लिख गई कैसे लिखी क्यों किया इतना बड़ा सवाल जो परमेश्वर से अन्य किसी कठोर मतावलंबी करता तो उसे ईश-निंदा का दंड भोगना होता.. पर बालपन में इस कविता का लिखा जाना परमेश्वर से सवाल करना मुझे रोमांचित कर रहा है .. पर एक दिन जब डी एन जैन कालेज के सभागार में पंडित हरिकृष्ण त्रिपाठी जी ने कहा-"अप्प दीपो भव " तब जान

बेटी बचाओ के साथ साथ बेटी दुलारो भी कहना होगा डा कुमारेन्द्र सिंग सेंगर

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रंगोली ने कहा ’’ सेवगर्ल चाइल्ड ‘‘    जबलपुर / महिला सशक्तिकरण संचालनालय म 0 प्र 0 शासन द्वारा संचालित संभागीय बाल भवन  द्वारा लाडो अभियान अंर्तगत आयोजित रंगों की उड़ान कार्यक्रम  अंर्तगत  जबलपुर में  उरई जिला जालोन (उत्तरप्रदेश) , से पधारे बेटी-बचाओ अभियान (बिटोली कार्यक्रम के सूत्रधार एवं संचालक ) मुख्य अतिथि डा . कुमारेन्द्र सिंह सेंगर   एवं ख्याति प्राप्त संगीत निर्देशक  अमित चक्रवर्ती की अध्यक्षता में रंगो की उड़ान अंर्तगत रांगोली प्रतियोगिता का  शुभारंभ किया गया ।                                                           मुख्य अतिथि के रूप में  डा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर  ने बच्चों द्वारा बनायी गयी रांगोली की सराहना करते हुए कहा कि अब से तो बेटी बचाओ , बेटी पढ़ाओ भ्रूण हत्या रोको  जैसे लाड़ो अभियान  कार्यक्रम म 0 प्र 0 शासन द्वारा चलाए जा रहे है जो बेशक सराहनीय है। अब इसको आगे  बेटी को को प्यार करो  का नारा देना ही होगा। सांस्कृतिक तरीके  से बालभवन द्वारा जिस तरह शासकीय योजनाओं का प्रचार प्रसार करने  का प्रयास किया जा रहा है यह एक अनूठी कोशिश है जो बेहद सराहनीय है

~~ लाड़ो अभियान अंतर्गत ~~ रंगो की उड़ान

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                                      ~~ लाड़ो  अभियान अंतर्गत ~~ रंगो की उड़ान प्रतियोगिताओं हेतु प्रविष्टियों के लिए आमंत्रण आयोजक संचालक संभागीय बाल-भवन , महिला बाल विकास विभाग ( महिला सशक्तिकरण संचालनालय ) गढ़ाफाटक जबलपुर फोन 0761-2401584 , 09479756905 , 07722902503 , 8109666349 , 09179700804 जबलपुर दिनांक 09/12/2015                    रांगोली प्रतियोगिता :- दिनांक 11 दिसंबर 2015 स्थान :- संभागीय बाल-भवन          समूह विभाजन •         ग्रुप अ – बालिकाओं के लिए –    6 से 8 वर्ष , 9 से 11, 12 से 16, 16 से 18 वर्ष   ( कुल 4                                                         ग्रुप ) •         ग्रुप ब –   बालकों के लिए –          6 से 8 वर्ष , 9 से 11, 12 से 16, ( कुल 3 ग्रुप ) •         ग्रुप स –   महिलाओं   के लिए –    18 वर्ष से अधिक   ( कुल 01 ग्रुप ) •         ग्रुप द –   पुरुषों   के लिए –            18 वर्ष से अधिक   ( कुल 01 ग्रुप )        पोस्टर   प्रतियोगिता :- दिनांक 16 दिसंबर 2015 स्थान :- संभाग