खुद को नया विस्तार देने जा रहा हूँ
खुद को नया विस्तार देने जा रहा हूँ तय नहीं मंजिल मगर मैं जा रहा हूँ . मैं अकेला ही तो आया था यहाँ – इक जुड़ा दूजा जुड़ा फिर कारवां .... बात जो थी कल में अब वो कहाँ – सबके ज़ेहन में पनपते आसमाँ ! निकल के घर से बताने ये ही सबको आ रहा हूँ !! ::::::::::::::::: मखमली बिस्तर की जुगतें मत लगा - शूल की शैया सजा दे, तेग से तकिया बना ! अतिथि हूँ आपका, कुछेक-दिन का साथ है – फिर वही यायावरी है और तड़पती आवाज़ है मीत, अब में जा रहा हूँ गीत भी ले जा रहा हूँ !! ::::::::::::::::: सच कहूं संघर्ष हूँ ! संघर्ष का परिणाम हूँ . झुका न जो सच कभी, वो टूटता अंजाम हूँ ! गीत पीडा के मुझे अब दिल से गाने दीजिये – पल हैं जितने पास मेरे मुस्कुराने दीजिये !! पीर इतनी है कि अब मैं मुस्कुराने जा रहा हूँ !! गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”