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मार्च, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ठाकुर सा’ब का कुत्ता........ जो आदमी की मौत मरा

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फ़ोटो साभार " इधर से "                 साले कुत्ते की मौत मरेगा.. ! , उसे तो कुत्ते की मौत मरना चाहिये... अक्सर ये कोसन-मंत्र का उच्चारण रोजिन्ना सुनाई देता है. पर अगरचे कोसने वाले लोग हमारे ठाकुर सा ’ ब से मिले होते तो   साले कुत्ते की मौत मरेगा.. ! , उसे तो कुत्ते की मौत मरना चाहिये..किंतु   ठाकुर सा ’ ब के कुत्ते की मौत नहीं.कारण साफ़ है कि ठाकुर सा ’ ब का कुत्ता कुत्ता न होकर उनका पारिवारिक सदस्य बन चुका था.  वज़ह ठाकुर साब न थे वरन ठकुराइन जी की पारखी आंखें थीं . ये अलहदा बात है कि ठाकुर सा ’ ब को चुनने में उनकी आंखें धोका खा गईं थीं पर इसका दोष     ठकुराइन जी का न था ... ठाकुर सा ’ ब का चुनाव पारिवारिक इंतखाब था वोटें इन्ही सु.प्र. ठाकुर को मिलीं. चलिये ठाकुर साब को छोड़िये कुत्ते पर आते हैं..          " यूं तो वो देसी कुतिया एवम सरकारी अफ़सर के विदेशी कुत्ते के मिलन का परिणाम यानी अर्ध्ददेशी नस्ल का  किंतु  उसे जैकी नाम देकर उसका अंग्रेज़ीकरण किया जाना श्रीमति ठाकुर का ही काम रहा होगा वरना एक मेव स्वामी होने का एहसास उनको कैसे होता. ठाकुर सा ’ ब को वे

छै: नारे चऊअन...या नौ छक्के चऊअन....?

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  कोई न उठा था उस दिन  इस बच्चे को एसी कोच में  सफ़ाई करते रोकने से ..  ?  टी. वी. वाले सियासी विषय  इससे अधिक गम्भीर हैं क्या..                         सैपुरा ( शहपुरा-भिटौनी ) में मन्नू सिंग मास्साब की हैड मास्टरी  वाले बालक प्राथमिक स्कूल में एडमीशन लिया था तबई से हम चिंतनशील जीव हूं. रेल्वे स्टेशन से तांगे से थाने के पीछे वाले स्कूल में टाट पट्टी पर बैठ पढ़ना लिखना सीखते सीखते हम चिंतन करना सीख गए. पहली दूसरी क्लास से ही  हमारे दिमाग में चिंतन-कीट ने प्रवेश कर लिया था.  चिंतनशील होने की मुख्य वज़ह हम आगे बताएंगे पहले एक किस्सा सुन लीजिये        एक दिन  रजक मास्साब हमसे पूछा - कै छक्के चौअन....?  चिंतन की बीमारी               चिंतनशील होने के कारण हम एक घटना पर चिंतनरत थे इसी वज़ह उस वक़्त दूनिया (पहाड़ा) दिमाग़ में न था .  पाकिस्तान से युद्ध का समय था पड़ौसी कल्याण सिंह मामाजी ने मामी को डाटा - ब्लेक आउट आडर है तू है कि लालटेन तेज़ जला रई है गंवार .. बस उसी सोच में थे कि कमरे के भीतर जल रहे लालटेन और ब्लेकआऊट का क्या रिश्ता हो सकता है.. कि मामा जी ने मामी की भद्रा उतार दी . म

सखियां फ़िर करहैं सवाल- रंग ले अपनई रंग में..!! (बुंदेली प्रेम गीत )

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नीरो नै पीरो न लाल रंग ले अपनई रंग में ..!! ********* प्रीत भरी   पिचकारी   नैनन   सें   मारी मन भओ गुलाबी , सूखी रही सारी. हो गए गुलाबी से गाल रंग ले अपनई रंग में ..!! ********* कपड़न खौं रंग हौ तो रंग   छूट  जाहै तन को रंग पानी से तुरतई मिट जाहै सखियां फ़िर करहैं सवाल- रंग ले अपनई रंग में..!! ********* प्रीत की नरबदा मैं लोरत हूं तरपत हूं तोरे काजे खुद  सै रोजिन्ना  झगरत हूं मैंक दे नरबदा में जाल – रंग ले अपनई रंग में..!! ********

हमाई ठठरी बांधत बांधत बे सुई निपुर गये

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रमपुरा वारे कक्का जू                         रमपुरा वारे कक्का जू की का कहें दद्दा बे हते बड़े ताकत बारे . नाएं देखो तो माएं देखो तौ जिते देखो उतै... जो मिलो बा ई की   ठठरी बांध देत हते .बूढ़ी बाखर के मालक कक्का जू खौं जे दिना समझ परौ के उनको मान नै भओ तौ बस तन्नक देर नईयां लगत है ठठरी बांधबे में. एक दिना में कित्तन की बांधत है  बे खुदई गिनत नईंयां गिनहैं जब गिनती जानै. न गिनती न पहाड़ा जनबे वारे कक्का रोजई ग्यान ऐसों बांटत फ़िरत हैं कि उनके लिंघां कोऊ लग्गे नईं लगत ...!!     चुनाव नैरे आए तौ पार्टी ने टिकट दै दई और कक्का जू खौं खुलम्मखुला बता दओ कि  कोऊ की   ठठरी न बांधियो चुनाव लौं. जा लै लो टिकट चुनाव लड़ लौ.. कोऊ कौ कछु कहियो मती, झगड़्बौ-लड़बौ बंद अब चुनाव लडौ़ समझे.. ! कक्का जू :- जा का सरत धर दई .. हमसे जो न हु है..          पार्टी लीडर बोलो :- कक्का जू, तुम जानत नईं हौ, जीतबे के बाद तुमाए लाने मुतके मिल हैं.. सबकी बांध दईयो . रहो लड़बो-झगड़बो तो दरबार मैं जान खै माइक तोड़ियो, मारियो, कुर्सी मैकियो, जो कन्ने हो उतई करियो दद्दा मनौ जनता से प्यार-दुलार सै बोट तौ लै लो .        

होलिका - शक्ति सम्पन्न सत्ती : प्रजापति

हमारे महामानवों ने सभी तीज-त्यौहारों को पर्यावरण व स्वास्थ्य के लिए शुरू किए हैं। होलिका दहन में पर्यावरण, आध्यात्मिक का गूढ़ रहस्य छिपा हुवा है। होलिका दहन से पर्यावरण सुधार व शारीरिक स्वास्थ्य को लाभ होता है। होलिका दहन से शक्ति सम्पन्न की नीति अनिति अपनाने से भस्म हो जाने की शिक्षा मिलती है। वर्तमान में कुड़ा-करकट इकट्ठा करके होलिका दहन करना नितान्त आवश्यक है। होलिका दहन के समय दुषविचारों, दुष्कर्मों को जलाने व सत्कर्मों को अपनाने की भावना रखनी चाहिये। होलिका दहन से विशेष तौर से महिलाओं को शिक्षा लेनी चाहिये कि शक्ति सम्पन्न सत्ती होलिका भी असत्य का साथ देने से जल जाती है। सत्य फिर भी जीवित रहता है। हम वर्षों से पर्यावरण सन्तुलन व सुरक्षा का कार्य कर रहे हैं। जिसका गूढ रहस्य है प्राणियों के स्वास्थ्य की रक्षा करना। स्वस्थ प्राणियों से असीम शान्ति कायम हो सकेगी- प्रजापति होली का दहन का प्रचलन कब से शुरू हुआ क्यों शुरू हुआ? इस बारे में अनेक तरह के विचार प्रकाशित हो रहे हैं कई किवदन्तियां प्रकाशित होती है कई ग्रन्थों में होलिका दहन के बारे में बहुत कुछ लिखा हुआ है साथ ही देश-काल के अन