उस दिन शहर के अखबार समाचार पत्रों में रंगा था समाचार उसके खिलाफ़ जन शिकायतों को लेकर हंगामा, श्रीमान क के नेतृत्व में आला अधिकारीयों को ज्ञापन सौंपा गया ? नाम सहित छपे इस समाचार से वो हताशा से भरा उन बेईमान मकसद परस्तों को कोस रहा था किंतु कुछ न कर सका राज़ दंड के भय से बेचारगी का जीवन ही उसकी नियति है. एक दिन वो एक पत्रकार मित्र से मिला और पेपर दिखाते हुए उससे निवेदन किया -भाई,संजय इस समाचार में केवल अमुक जी का व्यक्तिगत स्वार्थ आपको समझ नहीं आया ? संजय -समझ तो आया आया भाई साहब किंतु , मैं क्या करुँ पापी पेट रोटी का सवाल है जो गोल-गोल तभी फूलतीं हैं जब मैं अपने घर तनखा लेकर आता हूँ…..! वो- तो ठीक है ऐसा करो भइयाजी,मेरी इन-इन उपलब्धियों को प्रकाशित कर दो अपने लीडिंग अखबार में ! फ़िर उसने अपनी उपलब्धियां गिनाईं जिन्हैं सार्वजनिक करने से कल तक शर्माते था . उसकी बात सुन कर संजय ने कहा भैयाजी,आपको इन सब काम का वेतन मिलता है ,कोई अनोखी बात कहो जो तुमने सरकारी नौकर होकर कभी की हो ? वो -अनोखी बात…….? संजय ने पूछा - अरे हाँ,