6.2.21

किसान आंदोलन का आयतन

चिंता मत कीजिए किसान आंदोलन को लेकर । हठ का अर्थ क्या होता है यह आप बेहतर तरीके से समझ सकते हैं, शायद अब तक समझ भी चुके होंगे। अगर आप आंदोलन के स्तर की ओर जाएं तो आप पाएंगे की प्रारंभिक दिनों में यह आंदोलन कैनेडियन सपोर्ट से चलता रहा। 
इससे इंकार इसलिए कोई नहीं कर सकता क्योंकि 26 जनवरी तक उन्होंनेे जो तथा वह उनकी द्वारा कर लिया गया। तिरंगे के साथ  पंथ का झंडा लगाकर  सरकार को कुछ ऐसा करने आंदोलनकारियों के मुख्य रणनीतिकार का मुख्य उद्देश्य था कि - भारत सरकार ऐसा कोई कठोर कदम उठा ले जोो गणतंत्र के लिए एक धब्बा बन जाए और उसे ना केवल भारतीय बल्कि विश्व स्तर पर प्रचारित किया जा सके। 
लेेेेकिन उस दिन अर्थात 26 जनवरी 2021 को दिल्ली पुलिस के जवानों ने अद्भुत धैर्य रखा और अपने आप को चोटिल भी करवा लिया  लेकिन  प्रतिक्रिया स्वरूप  कोई भी ऐसी कार्यवाही नहीं की जिससे कि रणनीतिकार सफल हो जाएं।
  अंततोगत्वा स्थिति यह बनी की अब किस तरह की टूल का इस्तेमाल किया जाए?
मेरी राय में आप उस दृश्य की कल्पना कीजिए जो वीडियो के रूप में मौजूद है। एक इनोसेंट आंदोलन कर्ता ने तिरंगा उस जवान को दिया जो खंंबेे हुआ था  । 
और उसने  बेरहमी  और बेइज्जती से भारतीय  तिरंगे को  तथा फिर निशान साहिब का पवित्र ध्वज फहरा दिया । 
  चिंतन कीजिए कि 26 जनवरी वाली भीड़ में निसंदेह खालिस्तान समर्थक मौजूद थे। ऑस्ट्रेलिया कनाडा से भारत आए थे हो सकता है कि वह अभी भी अर्थात 6 फरवरी तक आंदोलन में अप्रत्यक्ष रूप से भागीदार हैं। मित्रों इस पर चिंतन कीजिए और तय कीजिए कि अब आप क्या सोचते हैं ?
यह सर्वथा  हठधर्मिता है। जिस तरह से आंदोलन के साथ अनुषांगिक घटनाएं हो रही हैं  उससे जो संदेश निकल कर आ रहा है कि देश में तोड़फोड़ की राजनीति आंदोलनकारियों को संवाद हीनता के मार्ग पर ले जा रही है । और इस बात को शेष भारतीय जनता समझ चुकी है। 
      लगातार मैंने इस प्रश्न को लेकर मित्रों से संवाद कर रहा हूं  कि अधिनियम में कौन सी ऐसी कमी है जिस पर आंदोलन इतना लंबा खींचा जा सकता है। मित्रों का मानना है कि-  मासूमियत का आधिक्य और पैसों की उपलब्धता इस आंदोलन को लंबा बना रही है ताकि किसी तरह से ही सही आंदोलन जिसमें वास्तविक कृषक की मौजूदगी अपेक्षाकृत कम है को ख्याति प्राप्त हो।
उन मुद्दों पर जो पूर्व में डिस्कस हो चुके हैं तथा सरकार ने उन पर रिव्यू करने का आश्वासन दिया है । ढिठाई तो इतनी की संवाद स्थापित ही नहीं करेंगे !
अगर संवाद ही नहीं करना चाहते तो फासीवादी हो आंदोलन कुल मिलाकर पैरासाइट बन चुका है अस्थिरता के पैरोंकारियों का ।
भारतीय गणतंत्र पर्व पर दो महान ध्वजाओं का अपमान हुआ । एक तिरंगा दूसरा निशान साहिब ।
अगर किसी ने भी भारत से जनतंत्र का समापन कराने का प्रयास घोर साम्यवाद के आगमन की आहट होगा। शेष आप सब समझदार है । 
संवाद के लिए  एक फोन काल की दूरी पर प्रधानमंत्री का ऐलान वह वाक्य था जिसने मानो आंदोलन को स्तब्ध कर दिया था। किंतु लोगों का कृत्रिम समर्थन  आंदोलन की लिए संजीवनी बूटी बन गया। रणनीतिकारों का दबाव और आंदोलन को विश्व प्रसिद्ध बनाने  के लिए पैसेे देकर ट्वीट करने वाली तथाकथित हस्तियों के समर्थन हासिल किए गए । 
इससे दो बात सामने आ रहे हैं एक आंदोलन का प्रायोजित होना दूसरा भारत में ऐसा वातावरण निर्मित करना जिससे भारतीय लोकतंत्र को बदनाम किया जा सके।
   अब आप समझ ही गए होंगे कि एक्सट्रीम लेफ्ट खास तौर पर अर्बन नक्सल वादियों का इसमें कितना योगदान है और न्यू यॉर्क टाइम्स जैसे पत्र के माध्यम से अपनी विचारधारा और नैरेटिव किस तरह से विकसित किया जा रहा है। यहांं एक तथ्य और विचारणीय है कि ट्वीट करने वाली रेहाना ग्रेटा और मियां खलीफा को सर्च इंजन में ऊपर लानेे का फंडा भी इसमें अंतर्निहित है ।
   चलिए अब चिंतन का वक्त है । हम अभी भी अगर आप सत्य की पड़ताल नहीं कर पाए हैं तो आर्टिकल की पढ़ने के बाद जरूर कीजिए । 
   ( समस्त फ़ोटो गूगल से साभार )

5.2.21

रामराज साम्यवाद और भारत

मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता के बीच एक चेतना है जो दर्शन का मूलाधार है । चेतना वर्ग विहीनता का आधार है । चेतना की पृष्ठभूमि के घनत्व में जो चिंतन होता है वह स्वाधिकार  के साथ समष्टि के अधिकारों की मौजूदगी का आभास कराता है । 
      किसी पर कुछ भी मत लादो पंथ वर्ग में मत बांधों । जो जैसा है उसे वैसा ही रहने दो उसके अधिकारों पर अतिक्रमण मत कौए की तुलना कोयल से मत करो । कोयल को काग के अनुकरण एवम अनुशरण की सलाह देना चाहते तो निरे मूर्ख हो। गाय का दूध बकरी के दूध का समानार्थी हो सकता है विकल्प भी है पर वो गाय के स्तन से निकला गाय का दूध नहीं है । उसे जो है वह रहने दो । अगर बलात बदलाव करोगे तो मूर्खता होगी । कुल मिलाकर किसी को बदलने की ज़रुरत क्या है। अतएव दर्शन का मूल तत्व  है कि मानव जीवन आत्मोन्नति के लिए है । 
       वामपंथ कहता है पदार्थ श्रेष्ठ है, सनातन की व्याख्या है... पुरुषार्थ से अर्जित पदार्थ के साथ उपभोक्ता को आत्मोन्नति का अभ्यास करना ही होगा । वाम ईश्वर की सत्ता को अस्वीकार करता है । दैहिक संपृक्ति के साथ आत्मज्ञान के सहारे  सनातन ईश्वर से अंतिम मिलन का पथ  स्वीकार करने की सलाह देता है । सनातन अवधारणाओं पर  विमर्श एवम अभ्यास को मार्ग सुझाता है । 
   सनातन धर्म में देह एवम भावात्मकता का विश्लेषक  बना देता है। जवकि  वामपंथ या अन्य सम्प्रदाय -"सामाजिक क़ानून बनाते नज़र आते हैं ।" क़ानून बनाना राजा का धर्म है । राजा जो जन गण का प्रशासनिक प्रबन्धन कर्ता है । राजा एक शक्ति है वो भारत में  प्रजातंत्र में   निहित है । उसे बनाने दो । बाज़ारों को बाज़ार की तरह काम करने दो उससे घृणा मत करो कयोंकि वाज़ार दैहिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पुरुषार्थ के रास्ते खोलता है। जो वस्तु को  अत्यधिक मूल्यवान मत बनाओ ।  Cost enhancement करना  अत्यधिक लाभ कमाने की पृवृत्ति को स्थापित करने की कोशिश है । 
      उपरोक्त की तर्ज पर मूल्य का क्षरण भी मत करो वरना अनाधिकृत उपभोग वृत्ति को समर्थन मिलेगा, साथ ही उत्पादक सबसे पहले श्रम की कीमतों को गिराएगा । श्रमिकों के अधिकार अतिक्रमित होंगे । एक श्रमिक के साथ उसका परिवार उच्च स्तर पर नहीं जा सकेगा । हो सकता है श्रमिक आधी रोटी खाने पर मजबूर हो जाए। 
   कोविड-19 महाविनाश की असफल कोशिश थी । उसके सर्वाधिक प्रभाव काल में चीन की जीडीपी में उछाल आया है । 
   कार्ल मार्क्स ने सर्वजन हिताय का तत्व मूल रूप अपने चिंतन में रखा था । लेनिन औऱ स्टालिन ने इसे भटका दिया । कार्ल मार्क्स का लक्ष्य था मज़दूरों को सामर्थ्य देना । पर सम्पति पर अधिकार से वंचित कर देना। यह एक सीमा तक ठीक था । पर भारत के संदर्भ में फिट नहीं था । रामायण काल जिसमें  राजा मांधाता से लेकर राम के वंशजों तक का काल देखें तो वह कालावधि प्रजातांत्रिक-मोनार्की की कालावधि है । प्रजा का महत्व अधिक रहा है। इसी कारण गांधी जी ने -रामराज की अवधारणा को श्रेष्ठ माना यद्यपि प्रयोग वादी होने एवम सोवियत विचारधारा के कारण उनकी बात सैकेंडरी रही। 
     यहां मेरा मानना है कि-"साम्यवाद की अवधारणा भारत के अनुकूल नहीं है ।" 
             भारतीय सामाजिक आर्थिक विकास का मॉडल रामराज ही है । क्योंकि यह मॉडल  पदार्थ के उपयोग उपभोग  एवम आत्मोन्नति की ओर समानता से देखता है। 
          पर आज़ाद भारत के संविधान में ही धर्म को रिलीज़न यानी सम्प्रदाय कह कर जिस प्रकार से भ्रमित किया गया उसके परिणाम से आप हम सब परिचित हैं । सनातन धर्म ही धर्म है शेष सब पंथ या सम्प्रदाय कहे जाने चाहिए। डिक्शनरीयों में धर्म शब्द को उसकी प्रकृति अनुसार परिभाषित  कर धर्म ही लिखना चाहिये । 
   उपरोक्त बिंदु ओर जरा सा विषयांतर होना पड़ा पर ज़रूरी था।
( शेष फिर कभी )

4.2.21

अगर कुंठित है तो क्या आप आध्यात्मिक हैं? कदापि नहीं,


अगर कुंठित है तो क्या आप आध्यात्मिक हैं? कदापि नहीं, धर्म अध्यात्म दर्शन सब कुछ वस्तु वाद को प्रवर्तित नहीं करता। ना ही वस्तु वाद से सनातन का कोई लेना देना है। सनातन इस बात की अनुमति देता है कि- हम आप वसुधैव कुटुंबकम की विराट कांसेप्ट को अंतर्निहित करें। किसी का भी गलत स्केच बनाना यानी उसको गलत तरीके से पोट्रेट करना मलिनता की निशानी है। 
कार्ल मार्क्स बहुत बड़े विद्वान थे। हम सब जानते हैं। सर्वहारा के लिए बहुत बड़ा चिंतन सामने लेकर आए। उनके सिद्धांतों से ठीक वैसे ही विरक्ति आ सकती थी जैसा कि गीता के  अध्याय को पढ़कर आती है । 
परंतु उनका चिंतन रियलिस्टिक साइंटिफिक मैटेरियल को लेकर आगे बढ़ता है। कार्ल मार्क्स कहते हैं कि दुनिया में साम्य की स्थापना हो। 
 सर्वहारा यानी मजदूर वर्ग सुखी हो। यहां तक सबको स्वीकार्य है कार्ल मार्क्स लेकिन उनके बाद अनुयाईयों ने खूनी संघर्ष शुरू कर दिया और स्टालिन तक आते-आते लाल झंडे का रंग गहराता चला गया। *जब सत्ता का स्वाद जीभ पर लग जाता है तब वसुधैव कुटुंबकम अर्थात हम सब की परिकल्पना उसी घातक स्वरूप में बदल जाती है जहां से कार्ल मार्क्स बचा कर ले जाना चाहते थे*
 यह जर्मन की व्यवस्था थी मोनार्की ने जर्मन को कार्ल मार्क्स जैसा महायोगी दिया किंतु वे भौतिकवाद के प्रवर्तक बन गए जबकि वे सब को सुखी देखना चाहते थे। इसके विपरीत सनातन परंपरा में राम ने विश्व विजय प्राप्त की पूरे विश्व के लगभग पूर्व एशिया मध्य एशिया अफ्रीका यहां तक कि लंका से आगे तक राम का साम्राज्य विस्तारित हुआ। राम ने  विश्व में राम राज्य की स्थापना की। जिसके अवशेष जावा सुमात्रा मलय कंबोडिया कंपू चिया म्यानमार तक आज भी मिलते हैं। राम ने वैचारिक और बौद्धिक समृद्धि विश्व बनाने की सफल कोशिश की थी। उसके कुछ हजार साल बाद महायोगी कृष्ण आए थे हम सब जानते हैं। कृष्ण ने कौरवों को अपना विरोधी अंतिम सांस तक नहीं माना। कृष्ण तो बाल्यकाल से ही अन्याय के विरोध में खड़े थे। उनका अंतिम प्रस्ताव था केवल 5 गांव परंतु विद्वान मित्रों का मित्र बलशाली दुर्योधन इस पर भी तैयार ना था। अंततोगत्वा कृष्ण ने समझौता ना करते हुए जिसका जो अधिकार था उसको सौंप दिया। 
  संपूर्ण युद्ध केवल 18 दिन चला श्री कृष्ण ने बड़े परकोटे वाली द्वारका नगरी बना ली और आराम से शेष जीवन सामान्य बिताने लगे। 
 मैंने यहां 3 चरित्र उल्लेखित किया है कार्ल मार्क्स श्री राम और श्री कृष्ण कार्ल मार्क्स को छोड़कर राम और कृष्ण समाज के लिए कुंठित नजरिया ना रख कर वसुधैव कुटुंबकम की अलख जगाई।
 255 साल पूर्व कार्ल मार्क्स का सिद्धांत प्रकाश में आया। और अब तक विश्व को उसके अनुचर दुख दे रहे हैं। क्योंकि यथार्थ पदार्थ वादी चिंतन से ईश्वर तत्व को ना मानने वाले लोगों ने जिस बर्बरता पूर्ण ढंग से सोवियत संघ चाइना कंबोडिया लाओस जैसे  देशों में रक्तपात  किया है तथा उनको निशाना बनाया है। उस दौर का एहसास करते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
अब आप सोच रहे होंगे कि यह आलेख क्यों लिखा गया..?

इसके पीछे 3 मकसद है-
*01. पूजा पाठ कर लेना अनुष्ठान कर लेना मात्र सनातन का ऐसा नहीं है बल्कि संपूर्ण आचार विचार में परिवर्तन करना उद्देश्य होना चाहिए।*
*02. जब तक हम पदार्थ वादी चिंतन को श्रेष्ठ मानते रहेंगे तब तक ना तो हम खुद का विकास कर सकते और ना ही सामाजिक संरचना को समझ सकते हैं। सामाजिक संरचना को समझने का अर्थ है सब के प्रति सहृदयता और असहमति का सम्मान। राम और कृष्ण का जीवन इसी दार्शनिक बिंदु पर एकात्मता का संदेश देता है। और निहित स्वार्थों के चलते व्यवस्था को क्षतिग्रस्त भी नहीं करता*
*03. जब जब भी हम सब का कांसेप्ट क्षतिग्रस्त हुआ है तब तब समाज में कुंठाएं जन्म लेती हैं। और ऐसी कुंठा किसी को अपमानित करने और उसे गलत ढंग से पोट्रेट करने की कोशिश में बदल जाती है।

28.1.21

ओह तो मेघा पाटकर भी भटके हुए लोगों के आंदोलन की हिस्सा हैं ?


 वीडियो अवश्य देखिए मेरे चैनल मिसफ़िट लाइव पर 
Is kisan andolan anti indian khalistan movement

लाल किले कांड पर के संदर्भ में लोगों का यह मानना है कि यह आंदोलन भटक गया है वास्तविकता तो यह है कि यह भटके हुए लोगों का आंदोलन है जो भारत को विश्व में बदनाम करने की साजिश थी।
     अपने हाथों में फैक्चर का दर्द भोगने वाली एस एच ओ बलजीत सिंह ने बताया कि-" असलहे लेकर आए थे और हमने धीरज नहीं खोया।'
    कमर में गंभीर फैक्चर होने के बावजूद घायल जोगिंदर सिंह सहायक इंस्पेक्टर पुलिस ने पंजाब भारतीयता और देश प्रेम का संदेश दिया .
   दिल्ली पुलिस कमिश्नर एसएन श्रीवास्तव ने कहा कि- "लगभग  394 पुलिसकर्मी विभिन्न अस्पतालों में इलाज कर रहे हैं 19 आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए हैं 50 आरोपियों को हिरासत में रखा है किसान निर्धारित समय और निर्धारित रूट से बाहर जाकर ट्रैक्टर रैली प्रारंभ कर दी।"
   इस सूचना के साथ कि भानु सिंह एवं वीएम सिंह के गुट ने आंदोलन से स्वयं को अलग कर लिया है।
 वी एम सिंह के नेतृत्व में एवं  श्री भानु जी जो चिल्ला बॉर्डर पर मौजूद आंदोलनकारियों का नेतृत्व कर रहे थे। यह दोनों नेता भारतीय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के अपमान से शुद्ध थे और इन्होंने 27 जनवरी 2021 की शाम होते-होते आंदोलन से ही अपने आप को अलग कर लिया .
    आप जो शेष बचे हैं उनमें राकेश टिकैत योगेंद्र यादव मेघा पाटकर जैसी वामपंथी विचारकों के हाथ में किसान आंदोलन की बागडोर है जो वास्तविक रूप में शुरू से ही थी।
   इस बीच मृत युवक की पहचान ऑस्ट्रेलिया निवासी युवक के रूप में की गई है। जो विगत कुछ माह पूर्व भारत आया था और आंदोलन में किसान के रूप में शामिल हुआ। इस युवा की मृत्यु ट्रैक्टर के पलटने से हुई है।
   राकेश टिकट मेघा पाटकर और योगेंद्र यादव की परिकल्पना को आकार देने वाला दीप सिंधु का सीधा रिलेशन वर्तमान में धर्मेंद्र देओल सनी देओल परिवार से नहीं है इसकी पुष्टि स्वयं सनी देओल ने 6 दिसंबर 2020 में ट्वीट करके कर दी थी ।
  मित्रों अगर कभी पंथ या धर्म के ध्वज की बात होगी तो उसे किसी भी स्थिति में तिरंगे से ऊपर या उसके समानांतर इस भावना से नहीं ठहराया जा सकता जिससे भारतीय एकात्मता को चोट पहुंचे।
    मित्रों 26 जनवरी 2021 के दिन रिकॉर्ड वीडियो भविष्य के लिए साक्ष्य बनेंगे ।
 आरएसएस के विरुद्ध बोलने वाले कर्नल दानवीर सिंह चौहान ने तक अपने वक्तव्य में माना एवम कहा है कि - "पंजाब में खालिस्तान आंदोलन का कोई विचार वर्तमान समय में जीवित नहीं है। कर्नल दानवीर से चौहान खालिस्तान आंदोलन के विदेशी कनेक्शनस् अवश्य है।  आम भारतीय कर्नल दानवीर सिंह चौहान के वक्तव्य से आंशिक सहमति रख सकता है और रखता भी है । यदि यह सही है तो सिखों को भी इस तथ्य को समझ लेना चाहिए । अर्थात अब वो समय है कि सिख समाज के नेता इसकी खुल के निंदा करें । साथ ही साथ मुखर होकर इस घटना को  राष्ट्र विरोधी घटना मानते हुए राष्ट्र विरोधियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग मुखर होकर ही करें । कर्नल दानवीर इस आंदोलन को शुद्ध रूप से किसान आंदोलन नहीं मानते हैं।


26.1.21

आंदोलन से पल्ला कैसे झाड़ सकते हो माफी मांगो यादव जी टिकैत जी कक्का जी मुला जी

बहुत ठंडा मौसम था । आज सुबह विजुअलटी मुश्किल से एक या डेढ़ किलोमीटर यह जबलपुर का मौसम परंतु इस मौसम  पर भारी था हमारा अपना उत्साह हम जो संविधान का सम्मान करते हैं हम जो षड्यंत्र करके किसी को बदनाम नहीं करते। हमारा दर्शन भी यह नहीं सिखाता। ना ही हमारी संस्कृति को ऐसे दृश्य देखने को मिले हो जिनसे तिरंगे के अपमान को बल मिले।
          लगातार एक सप्ताह से हम भारतीय आज के दिन का इंतजार कर रहे थे। 19 प्रोटोकॉल ना होता तो बच्चे भी सांस्कृतिक आयोजनों के लिए अपना बेहतर से बेहतर देने का प्रयास करते। आज 119 व्यक्तियों को पद्म पुरस्कार वीर और इनोवेटिव काम करने वाले बच्चों का सम्मानित होना बेशक गर्व की बात होती है। बाबा अंबेडकर हम शर्मिंदा हैं कि तुम्हारे नेतृत्व में लिखे गए इस संविधान नामक ग्रंथ पर जहां एक ओर गर्व करने का उत्सवी दिन था वहीं दूसरी ओर क्रूर एवं कुंठित मानसिकता ने ना केवल 72वें 
उत्साह से नहीं मनाने दिया वहीं दूसरी ओर गहरा विषाद लेकर हम शोकाकुल हो गए हैं । 
       आपको यहां स्पष्ट कर देना चाहता हूं मेरा उद्देश्य किसी भी मूर्ख व्यक्ति के नाम का जिक्र करने का कदापि नहीं है ना मैं यह चाहता हूं कि उन्हें यहां उल्लेखित कर उन्हें अमर कर दिया जावे । 
    मुद्दा यह है कि-" आंदोलन के प्रेरक एवं कर्ताधर्ता आज उस समय अपना पल्ला झाड़ते नजर आए जिन्होंने आंदोलन को शांतिपूर्ण ढंग से करने का दावा किया था तथा उनके वकीलों ने माननीय सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया था हम शान्ति पूर्ण ट्रेक्टर मार्च इस लिए करेंगे  क्योंकि हम किसान भारतीय राष्ट्रीय पर्व  मना सकते..!"
    मीलार्ड भी सहमत ही होंगे जब हम सब सहमत हैं कि सब को हक है अपने राष्ट्रीय पर्वों को मनाने का। परंतु आज जिस तरह से निहंग तलवारें और फिर से चमकाते हुए लाल किले पर चढ़ गए उससे यह साबित हो गया कि यह आंदोलन मौलिक रूप से किस बुनियाद पर शुरू किया गया था । सूचनाओं के अनुसार दिल्ली में 86 पुलिसकर्मी के साथ 120 से अधिक लोग घायल हैं। किसान आंदोलन के 62 वें दिन आंदोलन के गंदे स्वरूप को देखकर लगा कि यह आंदोलन कनाडा एवं पाकिस्तानी के  साथ  आतंकियों की संधि का परिणाम है। भारत सरकार के वकील साहब यह स्थिति एक्सप्लेन करते रहे परंतु मीलार्ड को अधिक भरोसा था झूठा प्रॉमिस करने वाले आंदोलनकारियों के वकीलों पर। इसकी वजह है कि मिलावट यह समझ रहे होंगे कि जो किसान भारत के अन्नदाता है वह इस तरह का व्यवहार तो नहीं करेंगे। टेलीविजन पर दिखाया गया कि महिला पुलिस वीडियो जर्नलिस्ट प्रेस रिपोर्टर पर हमलावर होते किसान अन्नदाता तो नहीं क्योंकि एक पुलिसकर्मी को घेर कर मारने वाले  किसान आतंक की नए तरीके से परिभाषा प्रस्तुत कर रहे हैं। यह तरीका साफ तौर पर आयातित विचारधाराओं अर्बन नक्सली सोच का सुझाया हुआ ही है।

    आईटीओ पुलिस को ट्रैक्टर घुमाकर आतंकित करने वाला किसान जय जवान जय किसान के नारे की धज्जियां उड़ाता नजर आया शास्त्री जी हम भी शर्मिंदा हैं।
       इस बात में कोई दो राय नहीं है कि इस आंदोलन में वित्तीय व्यवस्थापन से लेकर स्ट्रैटेजिक प्लानिंग भी हर हालत में
पाकिस्तान कनाडा चीन और भारत में पल रहे नक्सलवादी स्लीपर सेल की उपज है।
   मजबूरी में मुझे स्वराज इंडिया के संयोजक का नाम यहां जिक्र करना पड़ रहा है जो किसान आंदोलन से पल्ला झाड़ रहे हैं वास्तव में मुख्य कल्पित यही व्यक्ति है जिसे देश योगेंद्र यादव के नाम से जानता है। दीप संधू जिसे आंदोलन से अलग रखने का खुलासा करने वाला यह व्यक्ति सर से पांव तक झूठ बोल रहा है क्योंकि लगातार दो महीनों से संधू अत्यधिक सक्रिय है और उससे लगातार इस आंदोलन को हर एंगल से सहायता प्राप्त हो रही है। सनी देओल के साथ कभी जुड़ा यह व्यक्ति अर्थात दीप संधू वास्तव में अवसरवादी एवं भारत विरोधी गतिविधि में सक्रिय लोगों के हथियार चलाने का एक कंधा है
            दीप सन्धु
भारत वासियों चाहे कुछ भी हो अगर ये आंदोलनकारी किसान नेता माफी नहीं मांगते तो इन्हें देशद्रोही मान लेना एवं इनके खिलाफ विधिवत क्रिमिनल प्रोसिडिंग  प्रारंभ करना आवश्यक है अगर यह माफी मांग लेते हैं तब भी क्रिमिनल प्रोसीडिंग्स आवश्यक है  ताकि जिस न्याय व्यवस्था की आंखों में धूल झोंक कर पुलिस प्रशासन को गुमराह कर समय से पूर्व रैली निकाली गई और लाल किले पर धार्मिक एवम मोर्चे का झंडा फहरा  दिया गया। 
सुधी पाठकों अन्य प्रदेशों की सरकार को भी अपने अपने कृषि प्रधान इलाकों से इस आंदोलन में शामिल पुणे गए किसानों की सूची भी तैयार कर ले ताकि सनद रहे और वक्त पर काम आवे।

24.1.21

नेता जी क्यों महान हैं..?

महात्मा गांधी ने जिनके बारे में कहा था - वे देशभक्तों के देशभक्त हैं ।
 तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा,  दिल्ली चलो कदम कदम बढ़ाए जा, जय हिंद, इन शब्दों के जरिए नेता जी को हम पहचानते हैं। राष्ट्रवादी इतिहासकार डॉ आनंद राणा  के अनुसार  नेताजी चार बार नेता जी का जबलपुर आगमन हुआ था।
 नेताजी गीता और महाभारत कथा के मिश्रित वर्जन थे। नेताजी के बारे में कहा जाता है कि वे हिटलर से मिले थे इतिहास भी यही है। परंतु आपने हमने कोई ऐसा शब्द भी नहीं पढ़ा जिसमें उन्होंने हिटलर के नैरेटिव  का जिक्र किया हो या उसे स्वीकार हो या फिर लेश मात्र भी सहमति व्यक्त की गई हो..!
  नेताजी की फैमिली से शादी भारतीय वैदिक परंपरा और रिचुअल्स के साथ संपन्न हुई। कई  विवरणों को पढ़कर पता चलता है कि- अपने विवाह के दौरान वे एमिली शेंगल के समक्ष भारतीय संस्कृति विवाह संस्था रिचुअल्स के महत्व का विश्लेषण और आवश्यकता पर प्रकाश डालते रहे। नेता जी महान क्यों है यह एक सवाल मेरे जिस्म में मौजूद मस्तिष्क में निरंतर सांय सांय होता है। अनुज धर ने नेताजी के व्यक्तित्व को बखूबी उभारते हुए स्पष्ट किया है कि- नेताजी अपने आप को आजादी के बाद नेता जी ने अपने जीवन को लगभग गुमशुदा कर लिया था। *इंडियाज मोस्ट कवर अप* के लेखक अनुज धर का मानना है कि भगवन उर्फ गुमनामी बाबा ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे । 
   इसके संबंध में उन्होंने इस बहस  से पर्दा हटा दिया  कि गुमनामी बाबा की हैंडराइटिंग पूरी तरह से नेताजी की हैंडराइटिंग से मिलती है। 
  अगर ऐसी बात है तो बेशक भारत का सबसे महान नेता का रुतबा नेताजी सुभाष चंद्र जी कोही दिया जाना चाहिए।
भारतीय राजनीति में ऐसे कम ही लोग हुए हैं जिन्होंने प्रयोगवादी होने का आरोप अपने सिर पर नहीं लिया है। वास्तव में इस श्रेणी में मेरे हिसाब से दो ही व्यक्ति रखे जा सकते हैं एक सरदार बल्लभ भाई पटेल और दूसरे नेताजी सुभाष चंद्र बोस।
मित्रों और सुधि पाठकों हम मस्तिष्क धारी हैं चिंतन भी करते हैं हमारे पास शब्द भाव विश्लेषण सब कुछ है तो विमर्श भी होगा और विमर्श में सहमति या असहमति सब कुछ संभव है।
चलिए तो वापस चलते हैं नेताजी के महान होने के संदर्भ में एक टच और जानते हैं
" मेरे कार्यालय में मेरी सहकर्मी के माता और पिता दोनों ही आजाद हिंद फौज में सेनानी थे। उन्होंने बताया कि माता-पिता अक्सर नेताजी की सहृदयता के बारे में चर्चा करते हुए सुनाई देते थे। वह अवश्य समझाते थे कि आजादी के लिए बलिदानी होना जरूरी है परंतु किसी को भूखा या बीमार देखकर नेताजी बेचैन हो जाते थे। श्रीमती अय्यर की मां के पैर में जहाज का एक कीला घुस गया था नेता जी ने स्वयं अपने हाथों से श्रीमती अय्यर के जख्म पर फर्स्ट ऐड किया और उस वक्त भी बेहद भावुक थे।
  60 हजार सैनिकों के लाव लश्कर वाली आईएनए  24000 के आसपास सैनिकों का शहीद हो जाना उनके हृदय को छलनी कर रहा था वे बहुत दुखी हो जाते थे उन शहीदों को याद करते हुए ।
शत शत नमन नेताजी एक बार फिर से जन्म लोग भारत में

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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