14.9.17
11.9.17
बच्चों के हितों के संरक्षण
सादर वन्दे मातरम
विषय :- बच्चों के हितों के संरक्षण बाबत
मान्यवर
7 वर्षीय प्रद्युम्न ठाकुर की निर्मम हत्या के संबंध में जो न्यायिक जांच की कार्रवाई हो रही है वो विधि सम्मत ही होगी ऐसा विश्वास सभी भारतवासी करते हैं ।
मान्यवर में एक रचनाधर्मी हूँ । जो संवेदनशीलओं से अपेक्षाकृत अधिक भरा हो सकता है ! इससे आप निश्चित रूप से सहमत अवश्य होंगें ।
मान्यवर जब भी किसी मासूम के साथ कोई घटना होती है हर व्यक्ति विचलित हो जाता है । यही स्थिति घटना के बाद मेरी भी थी. अबसे लगभग 30 घंटे पहले इस द्रवित करने वाली खबर गहरा असर किया है । सोने की कोशिशें काम करने लिखने की कोशिशें निरंतर बेकार रहीं । एक मायूस और स्तब्ध स्थिति में हूँ ।
रेयान इंटरनेशनल शिक्षण संस्था में घटित इस अमानवीय घटना के लिए ज़िम्मेदारी तय होना एक प्रक्रिया एवम व्यवस्था के तहत ही होगी इस बात का सबको ज्ञान है ।
तथापि मेरा "बच्चों के हितों के संरक्षण के लिए* कुछ सुझाव हैं
1 :- किसी भी शिक्षण संस्थान को नर्सरी से लेकर हायर सेकंडरी स्कूल की अनुमति न दी जावे ।
2 :- नर्सरी स्कूलों/ प्रायमरी की स्थापना के लिए ठीक उसी तरह से अमले को निजी एवम शासकीय संस्थानों में नियुक्तियां दी जावें जिस प्रकार रेल विभाग के कुछ विशेष पदों के लिए सायको-टेस्ट लिया जाता है ।
3 :- नर्सरी के लिए विशेष तरह के प्रोफेशनल कोर्स समर्पित महिलाओं को नर्सरी टीचिंग स्टाफ बनाने के पूर्व देना अनिवार्य है। नर्सरी स्कूलों में बिना मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञ की सहमति के शिक्षकों की तैनाती न हो ।
शैक्षिकेत्तर स्टाफ को भी इसी प्रकार के प्रशिक्षण एवम परीक्षण से गुजरना होगा ।
*बाल सुरक्षा के लिए उपाय*
मान्यवर
7 वर्षीय प्रद्युम्न ठाकुर की निर्मम हत्या के संबंध में जो न्यायिक जांच की कार्रवाई हो रही है वो विधि सम्मत ही होगी ऐसा विश्वास सभी भारतवासी करते हैं ।
मान्यवर में एक रचनाधर्मी हूँ । जो संवेदनशीलओं से अपेक्षाकृत अधिक भरा हो सकता है ! इससे आप निश्चित रूप से सहमत अवश्य होंगें ।
मान्यवर जब भी किसी मासूम के साथ कोई घटना होती है हर व्यक्ति विचलित हो जाता है । यही स्थिति घटना के बाद मेरी भी थी. अबसे लगभग 30 घंटे पहले इस द्रवित करने वाली खबर गहरा असर किया है । सोने की कोशिशें काम करने लिखने की कोशिशें निरंतर बेकार रहीं । एक मायूस और स्तब्ध स्थिति में हूँ ।
रेयान इंटरनेशनल शिक्षण संस्था में घटित इस अमानवीय घटना के लिए ज़िम्मेदारी तय होना एक प्रक्रिया एवम व्यवस्था के तहत ही होगी इस बात का सबको ज्ञान है ।
तथापि मेरा "बच्चों के हितों के संरक्षण के लिए* कुछ सुझाव हैं
1 :- किसी भी शिक्षण संस्थान को नर्सरी से लेकर हायर सेकंडरी स्कूल की अनुमति न दी जावे ।
2 :- नर्सरी स्कूलों/ प्रायमरी की स्थापना के लिए ठीक उसी तरह से अमले को निजी एवम शासकीय संस्थानों में नियुक्तियां दी जावें जिस प्रकार रेल विभाग के कुछ विशेष पदों के लिए सायको-टेस्ट लिया जाता है ।
3 :- नर्सरी के लिए विशेष तरह के प्रोफेशनल कोर्स समर्पित महिलाओं को नर्सरी टीचिंग स्टाफ बनाने के पूर्व देना अनिवार्य है। नर्सरी स्कूलों में बिना मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञ की सहमति के शिक्षकों की तैनाती न हो ।
शैक्षिकेत्तर स्टाफ को भी इसी प्रकार के प्रशिक्षण एवम परीक्षण से गुजरना होगा ।
4 :- सी सी टी वी मॉनिटरिंग :- हर संस्थान में जहां बच्चे पढ़ रहे हों अथवा आवासीय सुविधा सहित किसी भी कारण से निवासरत हों की सी सी टी वी मॉनिटरिंग सतत रूप से संभव है । हर संस्थान में संस्थान के खुलने से बंद होने तक की हर एक स्थान पर खेल का मैदान , प्रवेश द्वार अध्ययन कक्ष (क्लासरूम) कॉरिडोर , इंडोर गेम्स रूम, सिकरूम, टॉयलेट / बाथरूम के प्रवेश द्वार आदि में लगाएं जा सकतें हैं । आवासीय संस्थानों के मामलों में 24x7 कालखंड के लिए ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिये ।
कंट्रोल रूम :- यह एक ऐसी जगह हो जो प्राचार्य की निगरानी के लिए अनुकूलित हो तथा एक एक टैक्नीशियन लगातार एक से दो घण्टे निगरानी कर । आवासीय संस्थाओं के मामलों में 4पाली में कार्य संभव है ।
*अतिरिक्त्त व्यवस्था*
वेबकास्टिंग एक ऐसी प्रणाली है जिससे कई स्तर से सी सी टी वी के ज़रिए मॉनिटरिंग संभव है । सरकार इस प्रणाली को NIC के माध्यम से वेबकास्टिंग करा सकतीं है । जिसकी लिंक मॉनिटरिंग पुलिस कन्ट्रोल रूम में यातायात व्यवस्था की मॉनिटरिंग की तरह की जा सकती है ।
सी सी टी वी मॉनिटरिंग योजना के लिए हर संस्थान का सक्षम होना आवश्यक होगा । केवल उन्हीं NGO's को नर्सरी शिक्षा की अनुमति मिले जो ऐसा कर सकतीं हैं ।
5 :- ग्रामीण क्षेत्रों के मामलों में आंगनबाड़ी केंद्रों का सार्वजनिक स्थानों जैसे पंचायत द्वारा निर्मित सामुदायिक भवन स्कूलों भवनों के साथ आंगनबाड़ी केंद्रों का संचालन हो सकता है । जहां जनसामान्य की सहजरूप से सतत निगरानी होती है । मध्यप्रदेश में ऐसे प्रयोग सरकार के सांझा चूल्हा कार्यक्रम के ज़रिए मिड डे मील की आपूर्ति के कारण अधिकांश गाँवों में हुआ भी ।
सी सी टी वी मॉनिटरिंग योजना के लिए हर संस्थान का सक्षम होना आवश्यक होगा । केवल उन्हीं NGO's को नर्सरी शिक्षा की अनुमति मिले जो ऐसा कर सकतीं हैं ।
5 :- ग्रामीण क्षेत्रों के मामलों में आंगनबाड़ी केंद्रों का सार्वजनिक स्थानों जैसे पंचायत द्वारा निर्मित सामुदायिक भवन स्कूलों भवनों के साथ आंगनबाड़ी केंद्रों का संचालन हो सकता है । जहां जनसामान्य की सहजरूप से सतत निगरानी होती है । मध्यप्रदेश में ऐसे प्रयोग सरकार के सांझा चूल्हा कार्यक्रम के ज़रिए मिड डे मील की आपूर्ति के कारण अधिकांश गाँवों में हुआ भी ।
6 :- बच्चों के लिए जीपीएस मानिटरिंग बैंड और साउंड रिकार्डर :- ऐसी जीपीएस मानिटरिंग डिवाइस के विकास के लिए काम करना होगा जो साधारण व्यक्ति की क्रय सीमा के भीतर हो . जिनका लिंकिंग अभिभावकों के सेलफोन पर संभव हो सकती है. जिओ द्वारा जिस सस्ती प्रणाली से डाटा उपलब्ध कराया जा रहा है उसी नेटवर्क प्रणाली से जीपीएस डिवाइस का पोजीशनिग डाटा एवं साउंड डाटा अभिभावकों / स्कूल के डाटा बैंक जो सेलफोन हो में अंतरित हो सकते हैं .
तकनीकी विकास के दौर में उपरोक्त व्यवस्थाएं असंभव कदापि नहीं हैं ।
तकनीकी विकास के दौर में उपरोक्त व्यवस्थाएं असंभव कदापि नहीं हैं ।
इस व्यवस्था को नर्सरी/प्रायमरी स्कूलों में लागू कराना प्रस्तावित है
7.9.17
स्व शरद बिल्लोरे को समर्पित : कविता
💐💐💐💐💐💐💐
*इस कविता की सृजन प्रक्रिया बेहद जटिल रही इसे मुक्कमल करना मेरे बस में न था वो बिछुड़ा हुआ आया अश्कों में घुला और मैंने भी इस बार टपकने न दिया और तब कहीं जाकर पूरा हुआ ये शोकगीत*
💐💐💐💐💐💐💐💐
वो था तो न था
नहीं है तो तैर कर
आ जाता है आँखों में
टप्प से टपक जाता है
आँसुओं के साथ
फिर गुम हो जाता है वाष्पित होकर
विराट में
आता ज़रूर है
गाहे बगाहे
भाई था न
बड़ा था
आएगा क्यों नहीं
सुनो तुम सब रोना
ये एक कायिक सत्य है
सबको उसे याद रखना है
इन यादों में -
इक हूक सी उठती है आंखे डबडबातीं हैं
भर जातीं हैं अश्कों से इन्हीं में घुला होता है वो
टपकने मत देना ...
वो अश्रुओं के साथ हवा में
खो जाता है .... !!
नहीं है तो तैर कर
आ जाता है आँखों में
टप्प से टपक जाता है
आँसुओं के साथ
फिर गुम हो जाता है वाष्पित होकर
विराट में
आता ज़रूर है
गाहे बगाहे
भाई था न
बड़ा था
आएगा क्यों नहीं
सुनो तुम सब रोना
ये एक कायिक सत्य है
सबको उसे याद रखना है
इन यादों में -
इक हूक सी उठती है आंखे डबडबातीं हैं
भर जातीं हैं अश्कों से इन्हीं में घुला होता है वो
टपकने मत देना ...
वो अश्रुओं के साथ हवा में
खो जाता है .... !!
* गिरीश बिल्लोरे मुकुल*
5.9.17
आतंकवाद के खिलाफ नवम ब्रिक्स सम्मेलन का घोषणापत्र
“हम
क्षेत्र में तालिबान, आईएसआईएस, अल
कायदा और उनके साथी संगठनों पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट, इस्लामिक
मूवमेंट ऑफ उज्बेकिस्तान, हक्कानी नेटवर्क, लश्करे तैयबा और जैश ए मोहम्मद, तहरीके तालिबान पाकिस्तान, हिज़्ब
उत्तहरीर आदि की हिंसा के कारण नाज़ुक सुरक्षा स्थिति से चिंतित हैं।”
जो तोड़ी चुप्पी तो सलवटों ने, किसी के
माथे पे घर बनाया
किसी ने अपना छिपाया चेहरा , किसी का रुतबा है तमतमाया !
ब्रिक्स सम्मलेन में आतंकवाद के खिलाफ आए घोषणापत्र के आम होते ही आतंकवाद लिए शैल्टर बने चीन, मुख्य पालनहार बने पाकिस्तान और खुद टेरेरिस्ट ग्रुपों की स्थिति इस शेर में अभिव्यक्त है. लगातार आतंकवाद और आतंकियों को यू एन में रक्षाकवच पहनाकर सुरक्षित निकालने वाले चीन की जिस तरह से कूटनीतिक पराजय हुई है उससे साबित हुआ है कि - हिंसा के खिलाफ सारा विश्व एक धुन में शान्तिगीत गा रहा है .
सिक्के के दूसरे भाग को देखें तो चीन अब मदमत्त सांड को अपने आंगन में बांधने से कहीं न कहीं परहेज़ कर रहा है. वज़ह साफ़ है कि उसे अपनी उत्पादित सामग्रियों को बेचना है. एक चतुर व्यापारी तभी सफल होता है जब वह ग्राहक की नज़र में कर्कश क्रूर न हो ईमानदार हो. लोग दूकान को भी साफ सुथरी देखना चाहतें हैं . चीन रूपी दूकान के सामने "आतंकवाद के संरक्षण का सांड" अधिक समय तक बंधे रहने में चीन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बार बार शर्मिन्दगी उठानी पड़ रही है.
चीन को इस बात का इल्म भी अच्छी तरह है कि - आतंकवाद का संपोषण का परिणाम 9/11 से अधिक भी हो सकता है. भारत में "भस्मासुर" को बच्चा बच्चा जानता है विश्व ने भले उसे 9/11 को देखा हो .
भारतीय विश्वनीति में जिस तेज़ी से बदलाव आये हैं उसे समझाने की अब ज़रूरत महसूस नहीं हो रही .
ब्राजील
रूस इंडिया चीन दक्षिण अफ्रीका के संगठन ब्रिक्स में भारत ब्राजील रूस और दक्षिण
आफ्रीका के बीच अत्यंत समझदारी भरे सम्बन्ध हैं जबकि चीन एक ऐसा देश है जिसके
वैश्विक सम्बन्ध अगर बेहतर हैं भी तो सिन्क्रोनाइज़्ड शायद ही हों. भारत के साथ तो
सम्बन्ध सदा असामान्य ही रहे हैं.
दक्षिण
एशिया में नवम ब्रिक्स सम्मेलन के पूर्व
डोकलाम पर भारत के साथ चीन का तनावयुक्त वातावरण चीनी विश्वनीति का दुष्परिणाम ही रहा
है. जिस तेज़ी से चीन के सरकारी मीडिया के ज़रिये चीन की चीखें सुनाई दे रहीं थीं उसका उत्तर हमारे देश के निजी मीडिया (टेक्स्ट एवं डिजिटल मीडिया ) ने देकर ऐसा वातावरण बनाया कि चीन ने खुदको अपनी सीमाओं में सीमित करने को ही उचित माना . हमारी सरकार ने अधिकृत रूप से कम ही कहा और जब भी कहा तो ये सन्देश पूरे विश्व में यही गया कि एशिया में सबसे शरारती चीन है . यही कूटनीति थी कि विश्व के अधिकाँश देश भारत के पक्षधर हुए और केवल वह अपने पालित दास पाक सनकी पडौसी उत्तर-कोरिया के साथ नज़र आया. स्थिति सामान्य होते ही ब्रिक्स सम्मेलन में श्री नरेन्द्र मोदी जी का सभी सदस्य राष्ट्राध्यक्षों को आतंकवाद की मुखालफत के लिए तैयार कर भारत ने कूटनीतिक सफलता का नया कीर्तीमान स्थापित कर लिया जो इतिहास में अब दर्ज है
चीन पर भरोसा कितना किया जावे :- इस तरह के सवाल स्वाभाविक हैं अभी तो चीन पर भरोसा 100% करना ज़ल्दबाजी ही है . विश्व चाहता है कि चीन उत्तर-कोरिया की सनक को कम करे यदि जिंग-पिंग साहब यह कर सके तो विश्व में उनका सम्मान बढ़ सकता हैं .
क्या पाकिस्तान में पल रहे आतंकवादी संगठन प्रभावित होंगे :- ये दूसरा अहम सवाल है अगर आप पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को देखें तो यह देश हमसे 20 वर्ष पीछे है . यही सवाल बरसों से उसकी आवाम कर रही है कि- रक्षा बज़ट के सापेक्ष विकास के लिए पाक कब संवेदित होगा ? अगर पाकिस्तान चाहे तो अपनी आवाम के मुस्तकबिल को खुद सवाँरे अन्यथा आने वाले 20 वर्षों में उसकी जनता विश्व की सर्वाधिक दुखी जनता होगी. विकल्प पाक के पास थाल में सजा उसकी आर्मी-डोमिनेटेड सरकार के सामने है.
तीसरा और अंतिम सवाल यह भी इस सम्मेलन के बाद सामने आता है कि क्या - ब्रिक्स सफल होगा ? अगर आतंक के विरोध में सब एक सुर में हैं तो ब्रिक्स देशों के विकास की ऊँचाइयों को कोई रोक नहीं सकता . इन राष्ट्रों में आपसी व्यावसायिक समन्वयन की प्रक्रिया अन्य कोई विषम परिस्थिति पेश न आए तो तेज़ होना तय है . यद्यपि पूरे संयुक्त घोषणा पत्र के अध्ययन के उपरांत कुछ कहना बेहतर होगा .
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
- सम्मेलन :- ब्रिक्स शिखर बैठक
- आयोजन स्थल : चीन के फुजियान प्रांत में तटीय शहर शियामेन
- आवृत्ति :- नवम
- सम्मिलित सदस्य देश एवं उनके राष्ट्राध्यक्ष : मेज़बान चीन / राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत / प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी , रूस / राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन, दक्षिण अफ्रीका/ राष्ट्रपति जैकब जूमा और ब्राज़ील / राष्ट्रपति मिशेल तेमेर
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
2.9.17
कुछ ऊंट ऊंचा कुछ पूंछ ऊंची ऊंट की
जीभ-पलट गीत गाने में जितने कठिन लिखने में लगे उतने पढ़ने में नहीं . पर एक बात तयशुदा है कि जब आप जीभ के लिए
कठिनाई पैदा करने वाला ये गीत गाएंगें तो न तो आप न ही कोई जो सुन रहा होगा हँसे
बिना रह न सकेगा ..
***************************
कुछ ऊंट ऊंचा कुछ पूंछ ऊंची ऊंट की
***************************
ऊबड़-खाबड़ रास्ता , बूढ़ा बक़रा हांफता
!
चीकू की कापी ले बन्दर बैठा- डाल पे जांचता !
मम्मी पापा बाहर निकले, रुत आई तब छूट की
कुछ ऊंट ऊंचा कुछ पूंछ ऊंची ऊंट की
***************************
एक कहानी गोधा रानी मल्ला चोर खींचे डोर
पांव देख के रोए मोरनी , बादल देखे नाचे मोर
नाच मयूरी ले लाऊंगा.. सोलह जोड़ी बूट की
कुछ ऊंट ऊंचा कुछ पूंछ ऊंची ऊंट की
***************************
सरपट गांव का रास्ता, बकरा कैसे खांसता ?
बन्दर का टूटा था चश्मा कैसे कापी जांचता ?
गोधा रानी कहां की रानी मल्ला चोर कैसा चोर
बनी दुलहनियां देख मोरनी, मस्ती में फ़िर नाचे मोर ..
पहले-पहल कही मेरी...... सारी बातें झूठ थीं
कुछ ऊंट ऊंचा कुछ पूंछ ऊंची ऊंट की
गिरीश
बिल्लोरे “मुकुल”
1.9.17
पाकिस्तान में सकारात्मक विचारक भी हैं
हमसाये मुल्क पाकिस्तान
में भारत की तरक्की से सबक लेने की सलाह देने वालों की कमी नहीं हैं .
भारत की तरक्की की वज़ह के बारे में पाकिस्तानी विचारकों की सोच बेहद
सकारात्मक है कुछ विद्वान् भारतीय सनातनियों के योग्यता के इतने कायल हैं कि वे
मानतें हैं कि अगर भारत ने आज जो मुकाम हासिल किया है वो भारतीयों को विरासत में
हासिल पठन-पाठन की अभिरुची से ही हासिल हैं . वे भारतीय शिक्षा प्रणाली को मुग़ल काल से ही बेहतर
मानते हैं . क्लासरा और इनकी तरह के पाकिस्तानी विचारक एवं विश्लेषक जब तुलनात्मक
विश्लेष्ण करतें हैं तो उनका नज़रिया पाकिस्तानी सरकार को विकास के एजेंडे को
प्राथमिकता देने की सलाह होता है.
रऊफ क्लासरा एक ऐसे ही विश्लेषक पत्रकार हैं जो अपने
एपिसोडस में बड़े अदब से न केवल हाकिम-ओ-हुक्मरानों को समझातें है बल्कि पाकिस्तानी
आवाम को भी बाकायदा नसीहतें देना नहीं भूलते .
वास्तव में अब वैश्विक समग्र
विकास के दौर में हर देश को धर्म पंथ विचारधारा क्षेत्रवाद आदि से इतर
केवल मानवतावादी विश्व की स्थापना के लिए काम करना ही होगा . जहां से जो बेहतर
मिले उसे स्वीकारने में कोई संकोच किसी को भी न हो . पर पाक की आर्मी डोमिनेटेड
सिविल सरकार ने भारत से संपर्क सम्बन्ध न रखने के निर्णय को पाकिस्तानी मीडिया ने सार्क सैटेलाईट में शामिल न होना गलत माना है . तो हामिद बशनी भी अपनी सरकार को समझाते नज़र
आतें हैं . अब हसन निसार ने तो भारत की तरक्की का सटीक विश्लेष्ण किया. हास्य
व्यंग्य में अपनी बात कहने वाले एक विश्लेषक शो में जुनैद सलीम ने खुलासा किया जो दवाई हिन्दुस्तान मे 2 रूपए मे बिकती है,वोपाकिस्तान मे 1000 रूपए मे बिक रही है तो व्यंग्यात्मक शैली में अज़ीज़ ने कहा कि पाकिस्तान में बीमार दवाओं की बढ़ी
कीमतों के डर से ठीक हो जाता है.
क्लासरा
या तारेक फतह के बारे में जब भी धैर्य से
सोचें तो आप पाएंगें कि वे और उनके जैसे कई विचारक मानवतावाद को प्राथमिकता के
क्रम में सर्वोपरि रखतें हैं . अगर आप वैश्वीकरण के हिमायती हैं तो आप अवश्य
वैश्वीकरण में मानवता के समावेशन के महत्व को स्वीकारेंगे .
31.8.17
चीन भाई को समझ देर से आई
भारत
की विदेश नीति में आए अहम परिवर्तन के बारे में पहले से ही सभी को यकीन है. कि यह
एक पाजिटिव बदलाव है. जून 2017 से अगस्त 2017 के बीच कटे 72 दिनों तक छाती से छाती टकराकर चीन भारत के सैनिक एक
दूसरे धकेलते रहे डोकलाम में और भारत की दृढ़ता से हटना पड़ा. जापानी एवं पाकिस्तानी मीडिया से भी भारत के दबाव में चीन के डोकलाम से हटने की पुष्टि हुई है.
बाकायदा इस बात की स्मरण होगा कि मैंने
पूर्व में अपने मिसफिट पर 26 जुलाई 17 प्रकाशित लेख में साफ़ तौर पर इस कयास से असहमति व्यक्त की थी कि चीन खुद को
युद्ध में ठेल सकता है. स्क्रीन शॉट में देखा सकतें हैं .
ये अलहदा बात है कि - चीन सहित विश्व के सारे देश इस चीनी अखबार और अन्य डिजिटल मीडिया वर्सेस भारतीय मीडिया पर शब्दों के तीर और वाक्यों की मिसाइल्स दागी गईं कुछ भारतीय लोग इस मीडिया वार से भले इत्तिफाक न करें पर सूचनाओं संवादों के वैश्विक विस्तारीकरण के फायदे दौनों देशों ओ मिले भारत को इस मायने में कि उसने अपने स्टैंड को सही साबित किया वहीं चीन को हर उस बात का ज़वाब मिला जो उसने विश्व के सामने लाने की कोशिश की थी.
हमारी भूटान से संधि है कि हम उसकी सीमाओं पर उसके सहयोगी होंगें यह भी तय है कि भूटान को सामरिक सहयोग भारत की ओर से मिलेगा . उधर चीन से हमारी संधि है कि सीमा पर हम अनुशासित रहेंगे .. दौनो ही देशों के बीच 1962 के बाद से शायद ही कोई गोली चली हो . गोली तो द्दूर का मसला है दौनों देश के सैनिक केवल एक दूसरे पर हाथ भी नहीं उठाते एक दूसरे को सीमा से हटाने अपने अपने सीने अड़ाया करतें हैं .
पाकिस्तान सहित कुछ इंटलएक्चुअल्स सशंकित थे कि भारत चीन युद्ध होगा . हालांकि अमेरीकी विश्लेषक भी यही दावा करते रहे कि भारत चीन युद्ध होगा ! अमेरीकी विश्लेषण केवल चीन को उद्दोंमाद से उबारने के लिए एक रणनीति थी . पाकिस्तानी सरकार , मीडिया आर्मी सभी इंडो चायना युद्ध के बारे में अपनी अल्पज्ञता आशान्वित रहें हैं .
वैसे विश्व को साफ़-साफ़ सन्देश मिल गया कि भारत जब भूटान से हुई संधि के लिए इतना प्रतिबद्ध है तो उसकी सीमाओं पर निगाह लगाने वाले पाकिस्तान को कुछ हासिल नहीं होने वाला है.
https://www.youtube.com/watch?v=II_iPuv2L7U
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मेरे बारे में
- बाल भवन जबलपुर
- जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर
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