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मंगलवार, अप्रैल 14, 2015

अशिक्षित एवं नशेड़ी पुरूषों को महिलाओं की आबरू से कोई सरोकार नहीं :रीता विश्वकर्मा

रीता विश्वकर्मा लेखिका 
शौचालय जैसी बुनियादी सुविधा की कमी के कारण लोगों  को खुले में शौच जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। निश्चय ही यह देश और समाज के लिए एक बड़ी समस्या है। 2011 की जनगणना के मुताबिक देश भर में 53 प्रतिशत घरों में आज भी शौचालय नही है। ग्रामीण इलाकों के 69.3 प्रतिशत घरों में शौचालय नही है। महात्मा गांधी शैाचालय को सामाजिक बदलाव के रूप में देखते थे। गांधी जी ने हमेशा स्वच्छता पर जोर दिया उनका कहना था कि स्वच्छता स्वतन्त्रता से ज्यादा जरूरी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी साफ सफाई को लेकर स्वच्छ भारत अभियान पर काफी जोर देते रहे है। सरकार का ऐलान इस दिशा में एक सार्थक कदम माना जा रहा है। 
गांधी जी को एक प्रेरणा मानते हुए गत् 2 अक्टूबर 2014 से स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया गया। ढलती शाम और घूंघट से मुँह ढके बहू-बेटियाँ गांव से दूर खेतों की तरफ जाती हुई जब दिखती हैं तो हर संवेदनशील व्यक्ति का सिर शर्म से झुक जाता है। तमाम लड़कियाँ और महिलाएँ शौच जाने के लिए सांझ गहराने का इंतजार करती है, ताकि शौच के लिए जा सके। यही नहीं सुबह होने से पहले और शाम ढलने के बाद ही ये अंधेरे जंगल में शौच के लिए जा सकती हैं। यह स्थिति सिर्फ गावों की ही नही बल्कि शहर की छोटी व गरीब बस्तियों की भी है जहाँ महिलाओं को शौच से निवृत्त होने के लिए सुनसान जगह एवं अंधेरे का इन्तजार करना पड़ता है। पुरूषों को रेल की पटरियो, नदी-नालों, झाडियों तक भटकना पड़ता है। 
आकडों के अनुसार आबादी के तकरीबन 68 साल बाद आज भी भारत में 62 करोड़ लोग यानी लगभग आधी आबादी खुले में शौच के लिए जाती है खासकर महिलाओं बच्चियों द्वारा खुले में शौच करने की मजबूरी हमारे लिए बेहद शर्मदिंगी की बात है। तमाम प्रयासों के बावजुद भारत में आज भी 12 करोड़ शौचालयों की कमी है हालांकि निराशा के इस आलम में एक राहत की बात है कि शौचालय बनाना सरकार की अब सर्वोच्च प्राथमिकता बन गई है।
आँकड़े जो भी दर्शायें, परन्तु शौचालय के बारे मे गाँव-देहात ही नहीं शहरी क्षेत्ऱ भी काफी पीछे है। नगर पंचायतों/पालिकाओं में सर्वेक्षण किया जाये तो यह सुस्पष्ट हो जायेगा कि शौचालयो के निमार्ण को लेकर नब्बे प्रतिशत से अधिक परिवारों के लोगों को कोई फिक्र ही नहीं है। ठीक इसी तरह के हालात ग्रामीण क्षे़त्रों की है। वहां तो सोच ही नहीं है, तब शौचालय किस तरह निर्मित होंगे।
इन परिवारों के लोग डीण्टीण्एचण् पर दूरदर्शन के कार्यक्रम देखेंगे। खास तौर पर विद्याबालन ब्राण्ड अम्बैस्डर वाला विज्ञापन-जहाँ सोच वहाँ शौचालय के डायलाग जुबान पर रहेंगे, लेकिन मजाल क्या कि इस पर अमल करें। एक से पूँछा तो गांव वालों ने कहा कि यह देहात है, अब भी नदी-नालों के किनारे, खेतों की मेड़ की आड़ तथा बाग-बगीचों की खुली हवा मे शौच करना हमारे यहाँ की पुरानी परम्परा है। शौचालय मे घुटन होती है। रही बात सरकारी इमदाद की तो उसका सदुपयोग कर लिया गया है। गाँव के सरपंच और ग्रामीणों ने मिलकर शौचालय निर्माण में मिलने वाले सरकारी अनुदान का लाभ ले लिया है। गाँव शौचालयों से संतृप्त है, जिसे सरकारी अभिलेखों में भी देखा जा सकता है। 
कहना पड़ा पुरानी परम्परा, सरकारी अनुदान......आदि का सदुपयोग तो ठीक है लेकिन जरा सोंचो जब सब कुछ पुराने ढर्रे पर ही चलेगा तब 21वीं सदी का नारा स्वच्छता-सफाई आदि को लेकर सरकार का अभियान कितना सफल होगा। इसके अलावा खुले में शौच जाना महिला-पुरूष दोनोें के लिए शर्म की बात तो है, साथ ही इससे होने वाली बीमारियों के प्रति वह लोग क्यों नहीं सोचते। किसी ने कहा शौचालय अनुदान लेने वालों ने उस पैसे की दारू हलक से उतारकर सोचने-समझने की क्षमता खो दिया है। यही नहीं गाँव के सरपंच से मिलकर ये लोग तो मनरेगा का पैसा भी दारू में खर्च कर देते हैं। रही बात सोच की तो इन्हें क्या पड़ी है कि बहू-बेटियाँ खुले में शौच करें या फिर उनके साथ बहुत कुछ ऐसा-वैसा (अप्रिय एवं दुःखद अश्लील) हो जिसका बयान जुबान द्वारा नहीं किया जा सकता। 
कस्बों/शहरों व बस्तियों के भी हालत कुछ इसी तरह के हैं। यहाँ परिवारों के पुरूष मुखिया दारूबाजहोने की वजह से सब पैसा नशा करने में ही खर्च कर देते हैं। घर की बहू-बेटियाँ क्या कर रही हैं और क्या करना चाहिए उन्हें इससे कुछ भी लेना-देना नहीं। शाम होते ही ये पुरूष घर की दिहाड़ी कामकाजी महिलाओं से पैसे मांगकर नशाकरते है। पैसा न दे पाने की स्थिति में ये पुरूष अपनी बहू-बेटियों को गालियों से अलंकृत करने के साथ-साथ उनका दैहिक उत्पीड़न करते हैं। शौचालय की बात तो दूर इन नशेड़ियों को शर्म नहीं आती कि उनके परिवार की महिलाएँ शौच के लिए कस्बाई आबादी के ऐसे स्थानों पर जाती हैं, जहाँ पहले से ही दरिन्दों, वहशियों एवं कामलोलुप की टोलियाँ उनके साथ जबरिया मुँह कालाकरने की फिराक में रहती हैं। और ऐसा होता भी है, जो प्रायः मीडिया की सुर्खियों में रहता है। फिर भी शौचालयनिर्माण के प्रति जागरूक नहीं हो रहे हैं। गाँव, देहात शहर और कस्बों के 90 प्रतिशत इलाकों में हालात एक जैसे हैं। कारण क्या हो सकता है? परिवार के पुरूष/महिला मुखिया में शिक्षा का अभाव, आर्थिक तंगी, नशाखोरी, बेरोजगारी, निठल्ला एवं निकम्मापन.....? हालांकि कई नगर पंचायतों, नगर पालिकाओं में कुछ संगठनों द्वारा सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण कराया गया है, लेकिन इनका उपयोग बाहरी यात्री, स्थानीय दुकानदार, व्यवसाई एवं पैसे वाले लोग ही करते हैं। 

होना क्या चाहिए- खुले में शौच जाने की प्रथा का अन्त यदि जन जागरण से न समाप्त हो, तब कानून बनाकर उल्लघंन करने वालों को दण्डित किया जाए। इस तरह होने से 50 प्रतिशत से अधिक सेक्स क्राइम पर तात्कालिक प्रभाव से अंकुश लग जाएगा। जहाँ बहू-बेटियों की इज्जत सही-सलामत रहेगी वहीं स्वच्छ वातावरण होने की वजह से संक्रामक बीमारियों के फैलने की सम्भावना भी कम हो जाएगी। शौचालयनिर्माण न कराने वालों पर अर्थदण्ड लगाए जाने का प्रावधान हो, साथ ही सरकारी अनुदान राशि बढ़ाए जाने की भी जरूरत है, क्योंकि महँगाई की वजह से भी शौचालय के निर्माण में बाधाएँ आ रही हैं। मेरा अपना मानना है कि बगैर सख्त काननू के देश के अशिक्षित समाज में भय नहीं होगा और न ही सरकार का कोई ऐसा अभियान जिसमें सर्व समाज का हित निहित हो सफल ही हो सकता है। 

रविवार, अप्रैल 12, 2015

हां हिमांशु जी मेरा मानसिक संतुलन बिगड़ गया है ...........

फेसबुक पर मैंने एक पोस्ट डाली है 
"खुले शब्दों में साफ़ साफ़ कह रहा हूँ ............... जवाब हो तो देना ............ दे न पाओगे ..... मुझे मालूम है ................. 
                     भारतीय आराध्यों के खिलाफत करने प्रगतिशीलों की कलम जितने फर्राटे से दौड़ती है एक हर्फ़ न लिख पाए आतंक के खिलाफ
आज भी सिर्फ  #परसाई ओढ़ बिछा रए हैं .
 इनके लिए विषय चुक गए हैं .
 इन बुद्धजीवी कीट पतंगों की अब कहीं न तो कोई ज़मीन  बची  है न   आसमान  एकाध  मुआ  आईएसआईएस  के  पास  जाए  तो   पता   चलेगा   हकीकत   में  जिस  थाली   में   खाते   हैं   उसे   गरियाने    का    अर्थ   क्या  होता है  .  ससुरे    कलम    नहीं   हिला  रहे    आतंक  पे.."
ये सब मैंने ज्ञानदत्त पांडे जी द्वारा शेयर इस लिंक से उद्वेलि होकर लिखा था 
जो कि आजतक चैनल पर प्रकाशित एक  समाचार में प्रकाशित है 


समाचार का विवरण ये रहा :- 







जैसे ही पेंटिंग कोलकाता और गुवाहाटी के पब्लिकेशन में छपी, लोगों ने सोशल मीडिया पर जमकर गुस्सा निकालना शुरु कर दिया. यही नहीं, अकरम हुसैन के खिलाफ असम के सिलचर में मामला भी दर्ज कराया गया है. उनकी यह पेंटिंग गुवाहाटी के रवींद्र भवन स्थित स्टेट आर्ट गैलरी में बुधवार को प्रदर्शित की गई थी. प्रदर्शनी के दौरान ही इसकी तीखी आलोचना की जाने लगी एयर इसे तुरंत ही गैलरी से हटा लिया गया.
http://article.plash.in/article/details/4913384?utm_content=buffer024d7&utm_medium=social&utm_source=facebook.com&utm_campaign=buffer
           
इस पर   हमारे रंगकर्मी  मित्र हिमांशु राय  ने त्वरित प्रतिक्रया स्वरुप हमारे  मानसिक संतुलन बिगड़ने की टिप्पणी करते हुए पोस्ट को एम्बेड कर दिया मुझे इस बात की परवाह नहीं . भारतीय आराध्यों का माखौल करना , सहिष्णु  सनातन के खिलाफ बरसों से षडयंत्र जारी रखने वालों की खिलाफत किसी ने न कि,  की भी तो उनको मानसिक रूप से असंतुलित बोला गया . उसे इग्नोर करने की कोशिश की . भारत में राम थे न थे कृष्ण थे न थे हिंदुत्व ठीक है या गलत, इस सब के बारे में खूब कलम एवं मुंह  चलाने वाले जुगनूं ब्रांड साहित्यकार अब आतंक के खिलाफ क्यों नहीं लिख रहे .
       माँ .... बहन .......... बेटियों की गाली तक इनकी कहानियों में  साफ़ साफ़ लिखी जातीं हैं . जो अब सिनेमा पर दिखाई भी जाने लगीं हैं. इस वर्ग के चित्रकार न्यूडिटी के हिमायती हैं ये है इनका चेहरा . 
 मुझे इनके युवा मानस पर होते कुंठित हमले की चिंता तब भी थी अब भी है . कभी गांधी का धुर विरोध करने वाला एक साहित्यकार वक्ता गांधी को सार्वकालिक कहते सुना गया . पाठक तय करें मानसिक असंतुलन किधर है . 
 रहा धर्मों का सवाल तो सभी धर्मों में अच्छाइयां हैं ........... जब अल्ला हू का घोष होता है तो वो ऐसी  वैज्ञानिक क्रिया है जिससे उदघोष करने वाला व्यक्ति अथवा व्यक्तियों  के समूह को लाभ मिलता है . उसका स्नायु-तंत्र रेग्यूलेट होता है . ॐ के घोष में भी यही सब होता है . 

           धर्म मूलरूप जीवन को साफ्ट और शालीन बनाते हैं किन्तु अतिचारी उससे अपने तरीके से उन्माद की तरफ ले जाते हैं .   स्वयं को अतिबुद्धिवादी  साहित्यकारों का खेमा केवल भारतीय सनातन की कमियों का हास्यास्पद या घिनौना चित्र सामने लाते हैं गोया उससे इनकी रोजी रोटी चलाती हो इनका  एक भी व्यक्ति ISIS के खिलाफ कुछ नहीं बोल रहा इसका अर्थ क्या निकालूँ ...........
  • शायद यह कि इनके मध्य कोई दुरभि संधि है 
  • अथवा ये मानसिक रूप से असंतुलित हैं .................      

बुधवार, अप्रैल 08, 2015

बाजू उखड़ गया जबसे, और ज्यादा वजन उठाता हूं

जागरण जंक्शन साईट पर "स्त्री-दर्पण ब्लॉग"  पर  प्रकाशित ये कहानी रोंगटे खड़े करने में सहायक है 
हौसले की ऐसी कहानी सुनकर अनायास ही दिमाग में यह पंक्तियां कौंध उठती हैं - मंजिले उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है

यह कहानी है अमेरिका की टेक्सास प्रांत की निवासी क्रिस्टल कांटू की. क्रिस्टल कांटू पर दुष्यंत कुमार का यह शेर  एक बाजू उखड़ गया जबसे, और ज्यादा वजन उठाता हूं
शब्दशः सही बैठता है. क्रिस्टल वेटलिफ्टर हैं और एक कार दुर्घटना में अपना एक हाथ गंवा चुकी हैं. इसके बावजूद भी उनके हौसले पस्त होने की बजाय बुलंद हैं. क्रिस्टल अब पहले से कहीं अधिक भार उठाती हैं जो यह साबित करता है कि ताकत दरअसल इंसान के शरीर में नहीं बल्कि उसकी आत्मा में वास करती है.


25 साल की क्रिस्टल एक हाथ से 210 पाउंड का भार अपने सर से उपर उठा लेती हैं. अब वे जिम में पहले से कहीं अधिक वर्जिश करती हैं. दरअसल पिछले साल अगस्त में वे अपने बॉयफ्रेंड डेनियल क्यूएट के साथ अपने गृहनगर टेक्सास के सैन एंटोनियो के बाहर कार ड्राइव कर रहीं थी कि अचानक टायर फट गया. डेनियल को तो कुछ नहीं हुआ पर क्रिस्टल का हांथ बुरी तरह दब गया. उन्हें हवाई जहाज से अस्पताल ले जाया गया. 
क्रिस्टल कहती हैं, “ मैने अपने हांथ को देखा और सोचा ठीक है यह देखने में बेहद बुरा लग रहा है पर मेरी जिजीविषा जाग उठी थी. मैने खुद से प्रश्न किया अब आगे क्या किया जाए?”
 क्रिस्टल आगे कहती हैं जब मैं अस्पताल पहुंची तो सर्जन ने मुझे बताया कि मेरा हांथ काटना पड़ेगा. मैं कुछ देर तक सोचती रही फिर कहा- ठीक है अगर इससे मेरी जान बचती है तो काट दो”“उस दिन के बाद एक दिन भी ऐसा नहीं गुजरा जब मैने अपने हांथ के बारे में न सोचा हो.
क्रिस्टल जो क्रॉस फिट विधा का अभ्यास करती हैं जिसमें वेटलिफ्टिंग के अलावा जिमनास्टिक और कार्डियो भी शामिल रहता है अपने एक्सीडेंट के तीन सप्ताह के भीतर वापस जिम में पहुंच गई. 
क्रिस्टल कहती हैं कि मैं खुद आश्चर्यचकित हूं कि लोग मुझसे प्रेरणा ले रहे हैं. यह सुनकर बेहद अच्छा लगता है कि विश्वभर में लोग मेरी मिशाले दे रहें है. मेरी वजह से कई लोग जिम जाने के लिए प्रेरित हो रहें है.
सचमुच हौसले की ऐसी विलक्षण कहानियां विरले ही देखने को मिलती हैं. भारत की अरुणिमा सिन्हा ने भी हौसले की कुछ ऐसी ही मिशाल कायम की है. इस पूर्व राष्ट्रीय खिलाड़ी ने कुछ बदमाशों से लड़ते हुए अपना एक पांव भले हीए गंवा दिया पर इससे उनके हौसले पर कोई फर्क नही पड़ा. एक पांव होने के बावजूद अरुणिमा ने माउंट एवरेस्ट फतह करने में कामयाबी हासिल की. अरुणिमा की योजना विश्व की सात अन्य चोटियों को फतह करने की है.


शनिवार, अप्रैल 04, 2015

हेपीटाइटस से जूझने वाले अविनाश जी को मदद करना हमारी ज़वाबदेही है



मित्रो
सादर अभिवादन 
                         आप सभी अवगत ही होंगे कि भाई अविनाश वाचस्पति शासकीय सेवा में रहते हुए हेपीटायटस सी के शिकार हुए हैं . यही कारण है कि उनको समय पूर्व नौकरी भी छोड़नी पड़ी . हम अपने इन प्यारे से मित्र के दीर्घ जीवी होने की मंगलकामना करते हैं साथ ही निवेदन भी है कि यथा संभव उनको सहायता दें ताकि वे शीघ्र स्वस्थ्य होकर हम सबके बीच पुन: पूर्ववत सक्रीय होकर ब्लॉग जगत को एक और नए मुकाम पर ले आएं .......... इस के लिए हमें यथा  उनको मदद देनी ही चाहिए
बैंक खातों का विवरण निम्नानुसार है :-
Smt. SARVAISH VACHASPATI WIFE OF AVINASH VACHASPATI
ICICI SAVING BANK ACCOUNT NO, 629401135858 Ifsc  code icic0006294
BANK DETAILS
ICICI BANK, SHAKUNTALA APARTMENTS, NEHRU PLACE, NEW DELHI

MOB. No. of Shri Awinash jee :-  08570321868

 Kindly Deposit minimum Rs. 500=00 Maximum as you wish  

शुक्रवार, अप्रैल 03, 2015

“हर पुरुष संभावित रेपिस्ट” : नंदिता दास का नज़रिया

 “मेरी मर्जी” मैं ये करूं या वो करूं ........... ये सोचूँ या वो सोचूँ .......... ऐसे रहूँ या वैसे रहूँ सब कुछ मेरी मर्जी पर आधारित होना चाहिए . चलो माँ भी लिया जाए कि सबको  अपनी अपनी निजता के साथ जीने का हक़ है . इसके मायने ये भी तो निकलते हैं कि हर  किसी को  भी हक़ है कि अनावश्यक रूप से कोई भी कुछ भी बोल के  निजता पर आक्रामक हो जाए और उसे बलात्कारियों की कतार में बलात  ला खड़ा करे ........... पता नहीं क्या हो गया है लोगों को कि वे अनाप-शनाप बोले जा रहे है . नंदिता जी के हालिया बयान ने सभी  पुरुषों को  यह कह कर बलात्कारियों की कतार में खड़ा कर दिया है कि –“ हर पुरुष संभावित रेपिस्ट” है .
एक अजीब सी बेचेनी नज़र आ रही है सैलीब्रिटीज़ के विचारों में सभी आदिम स्वतन्त्रता के पक्षधर हो रहे है . मुझे अपने कालेज के दिन याद आ रहे हैं प्रोफ़ेसर स्वर्गीया  राजमती दिवाकर कहा करतीं थीं –“वक्तव्य देना जीभ को  तालू से मिला कर या हटा कर शब्द पैदा कर देना नहीं है .......... तुम्हारे दिमाग से शरारती जीभ नियंत्रित रहे वरना तुम्हारा वक्तव्य तुम्हारे दिमाग पर हथौड़े चलाएगा ! 5 मिनट तक तुमको  कुछ कहना है तो तुम्हैं कम से कम 25 घंटे पढ़ना चाहिए .  ” – लगता  नंदिता जैसी सेलेब्रिटीज को प्रोफ़ेसर दिवाकर जैसी विदुषी ने पढ़ाया होता .
अगर नंदिता इसी बात को कुछ यूं कहतीं – “हर किसी पुरुष पर सहज भरोसा नहीं किया जा सकता तो ”  
यद्यपि अपने बयान से निकलते अर्थ को समझने में नंदिता ने अपने बयान को वापस तो नहीं लिया बल्कि यह ट्वीट कर पीछे हटने की कोशिश की है कि ये कदापि न था कि हर पुरुष रेपिस्ट है .........  
इससे पहले भारतीय समाज को रंगभेद के कटघरे में खडा कर देने वाला बयान बी बी सी को दिया था कि - "भारत में अगर आप गोरी नहीं हैं, तो आप सुंदर नहीं हैं."

सोचने वाली बात ये है कि मीडिया में जगह पाने मॉससाइकिक रोगी जाने कब स्वस्थ्य होंगे . 

बुधवार, अप्रैल 01, 2015

"My Choice" पर स्नेहा चौहान की त्वरित टिप्पणी



स्नेहा चौहान
लेखिका पत्रकार स्नेहा चौहान ने दीपिका  के वीडियो को देखा और  त्वरित टिप्पणी करते हुए दीपिका के लिए कुछ सवाल बिखेर दिए  स्नेहा पूछतीं हैं -
My Choice बहुत महत्वपूर्ण सम्माननीय  महिलाओं  ने वीडियो में काम किया है ... किन्तु  आपने  उन बातों को कहा है जो यकीनन वो खुद की ज़िन्दगी में कभी नहीं करेंगी ।
1.     सेक्स शादी से पहले करो तो बोलने का माद्दा होना चाहिए ।
2.     पति ने भी किया हो तो उसको क़बूल करने की हिम्मत भी है ?
3.      शादी के बाद अगर पति किसी ओर भी सेक्स करे तो तुमको दिक्कत नहीं होनी चाहिए । ये सोचा है 
4.     फिगर कैसा भी हो तो दुबले होने के लिए क्यों मरी जाती हैं ?
5.     शादी नहीं करनी मत करो लेकिन जिसको करनी  है उसे बोलो मत  .
6.     पहनना या न पहनना चॉइस है लेकिन क्या बिना इसके बाजार में निकल सकोगी हिम्मत है । 
           देश में जहाँ  कपड़ो की वजह से बलात्कार होते है.... ऐसा कहा और माना जाता हो ? ये संभव है क्या ? 
वास्तव में स्नेहा के दीपिका से सवाल सहज रूप से उभरे सवाल हैं जिसके जवाब स्नेहा को मिलना  सम्भव  नहीं है  . कौन स्नेहा कैसी स्नेहा ऐसी बहुतेरी स्नेहाएं होंगीं जिनने त्वरित टिप्पणी की होगी  . बाकी कुछ  अपने अपने अंदाज़ में दीपिका के वीडियो का अर्थ समझने के गुंताड़े में होंगी  . और कुछेक इस सबसे दूर मनपसंद टीवी सीरियल का लुफ्त ले रहीं होंगी  
          पूरा विश्व शुद्ध व्यापारिक नज़रिये से मुद्दों को देख रहा है   .... उनका स्तेमाल भी व्यावसायिक ही है  .
         "तो अब इस वीडियो का और इतनी नारीवादिता का क्या होगा "
           वीडियो को तो मुकाम हासिल हो गया उसे बनाने के बाद दर्शक चाहिए थे खबरिया चैनल्स के ज़रिये चर्चा में आया आते ही 41 लाख दर्शकों ने देखा ...................... लोग गुमशुदा होमी अदाजनियां को नई  पहचान मिली  . इस पहचान के के कई अर्थ निकलेंगे  . वर्जनाओं के विरुद्ध   एकजुट  होते इस दौर में केवल सुर्खियां बटोरना धन कमाना मूल उद्देश्य है  . ज़रा सोचिये कोई क्योंकर "मिले सुर मेरा तुम्हारा ब्रांड " वीडियो देखेगा  .....  और आपको शायद याद होगी ये खबर होमी बाबा एक फिल्ममेकर  हैं वे  दीपिका के की लोकप्रियता को ज़बरदस्त तरीके से कैश करेंगें ये तय है  . सारा खेल सुर्ख़ियों में छाए रहने का प्लेंड गेम है  .        
यूं तो हमने 28/03/2015  को ही इस वीडियो को देख लिया था पर हमने इग्नोर किया कारण इस पर टिप्पणी करना उचित नहीं पाया  बेवज़ह विवादित  वीडियो को वायरल कराना  चाहते थे किन्तु जब आज जब हमने आप जैसी संवेदित एवं सही अर्थों में वीमेन एम्पावरमेंट की हिमायती को विचलित होते देखा तो तो सोचा  वीडियो बनाने के एक पहलू से तो आज ही आपको भिज्ञ करा ही दें सच यह है कि ऐसा वीडियो शुद्ध रूप से व्यावसायिक प्रक्रिया का एक हिस्सा  है .
देखा  जाए तो  My Choice  वीडियो को सेलेब्रिटीज के अधकचरे  ज्ञान एवं मूर्खता पूर्ण प्रयोग का सटीक माँ लेना चाहिए  है और इसे बढ़ावा न देते हुए इग्नोर करना चाहिए किन्तु समुदाय  इग्नोर करने की ताकत खो चुका है समझदार है रिएक्ट करता है पर वैसे जैसे कि रोज जागता है, मार्निंग-वाक् पर जाता है, अखबार देखता है , व्यवस्था को कोसता है , किसी की खिल्ली उडाता है ... समुदाय ठीक वैसे ही किसी चटपटे मुद्दे पर पल भर सोचता है रिएक्ट भी कर देता है .
सोचा  भी न होगा उसने कि “जेंडर-संवेदीकरण” की नवीनतम आवश्यकता के दौर में होमी ने  दीपिका से  दशकों पुराने “नारी-मुक्ति-आन्दोलन” की झंडाबरदारी  करा दी .
 दीपिका अभिनीत इस वीडियो में किसी को भी  नारी-सशक्तिकरण जो सम्पूर्ण विकास में जेंडर-समानता लाने का पूर्वाभ्यास है नज़र नहीं आया आता भी क्यों .. My Choice  वीडियो में नया कुछ दिखाने के प्रयास  में बरसों पुराना नारी-मुक्ति का पश्चिमी आन्दोलन जिसे स्वयं पश्चिम ने खारिज कर दिया था का प्रकटीकरण मात्र किया है .    

          अंतत: एक बात तो तय पाई जाती है कि – सेलेब्रिटीज जिनका गहरा प्रभाव अक्सर समकालीन युवा पीढ़ी पर पड़ता है उसे “महिलाओं के  सशक्तिकरण ” के मायने ही  नहीं मालूम   वे सिर्फ विषयों को नकदी में बदलने की कोशिश में लगे रहते हैं .!    

मंगलवार, मार्च 31, 2015

पूरे शहर को मेरी कमियाँ गिना के आ



पूरे शहर को मेरी कमियाँ  गिना के आ

जितना भी  मुझसे बैर हो, दूना निभा के आ ।

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कब से खड़ा हूं ज़ख्मी-ज़िगर हाथ में लिये

सब आए तू न आया  , मुलाक़ात के लिये  !

तेरे दिये ज़ख्मों को तेरा ईंतज़ार है –

वो हैं हरे तुझसे सवालत के लिये !!

       चल दुश्मनी का ही सही रिश्ता निभा ने  आ 

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रंगरेज हूँ  हर रंग की तासीर से वाकिफ 

जो लाता  है दुआऐं मैं हूँ  वही काज़िद  ।

शफ़्फ़ाक हुआ करतीं  हैं झुकी डालियाँ मिलके 

इक तू ही मेरी हकीकत न वाकिफ  . 

       आ मेरी तासीर को आज़माने आ  .    

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