"खुले शब्दों में साफ़
साफ़ कह रहा हूँ ............... जवाब हो तो देना ............ दे न पाओगे .....
मुझे मालूम है .................
भारतीय आराध्यों के खिलाफत करने प्रगतिशीलों की
कलम जितने फर्राटे से दौड़ती है एक हर्फ़ न लिख पाए आतंक के खिलाफ
आज भी सिर्फ #परसाई ओढ़ बिछा रए हैं .
इनके लिए विषय चुक गए
हैं .
इन बुद्धजीवी कीट
पतंगों की अब कहीं न तो कोई ज़मीन बची है न आसमान एकाध
मुआ आईएसआईएस के पास जाए तो पता
चलेगा हकीकत में जिस थाली में
खाते हैं उसे गरियाने का अर्थ
क्या होता है . ससुरे कलम
नहीं हिला रहे आतंक पे.."
ये सब मैंने ज्ञानदत्त पांडे जी द्वारा शेयर इस लिंक से उद्वेलि होकर लिखा था
जो कि आजतक चैनल पर प्रकाशित एक समाचार में प्रकाशित है
समाचार का विवरण ये रहा :-
http://article.plash.in/article/details/4913384?utm_content=buffer024d7&utm_medium=social&utm_source=facebook.com&utm_campaign=buffer
ये सब मैंने ज्ञानदत्त पांडे जी द्वारा शेयर इस लिंक से उद्वेलि होकर लिखा था
जो कि आजतक चैनल पर प्रकाशित एक समाचार में प्रकाशित है
समाचार का विवरण ये रहा :-
http://article.plash.in/article/details/4913384?utm_content=buffer024d7&utm_medium=social&utm_source=facebook.com&utm_campaign=buffer
इस पर हमारे रंगकर्मी मित्र हिमांशु राय ने त्वरित प्रतिक्रया स्वरुप हमारे मानसिक संतुलन बिगड़ने की टिप्पणी करते हुए पोस्ट को एम्बेड कर दिया मुझे इस बात की परवाह नहीं . भारतीय आराध्यों का माखौल करना , सहिष्णु सनातन के खिलाफ बरसों से षडयंत्र जारी रखने वालों की खिलाफत किसी ने न कि, की भी तो उनको मानसिक रूप से असंतुलित बोला गया . उसे इग्नोर करने की कोशिश की . भारत में राम थे न थे कृष्ण थे न थे हिंदुत्व ठीक है या गलत, इस सब के बारे में खूब कलम एवं मुंह चलाने वाले जुगनूं ब्रांड साहित्यकार अब आतंक के खिलाफ क्यों नहीं लिख रहे .
माँ
.... बहन .......... बेटियों की गाली तक इनकी कहानियों में साफ़ साफ़ लिखी
जातीं हैं . जो अब सिनेमा पर दिखाई भी जाने लगीं हैं. इस वर्ग के चित्रकार
न्यूडिटी के हिमायती हैं ये है इनका चेहरा .
मुझे इनके युवा मानस
पर होते कुंठित हमले की चिंता तब भी थी अब भी है . कभी गांधी का धुर विरोध करने
वाला एक साहित्यकार वक्ता गांधी को सार्वकालिक कहते सुना गया . पाठक तय करें
मानसिक असंतुलन किधर है .
रहा धर्मों का सवाल
तो सभी धर्मों में अच्छाइयां हैं ........... जब अल्ला हू का घोष होता है तो वो
ऐसी वैज्ञानिक क्रिया है जिससे उदघोष करने वाला व्यक्ति अथवा व्यक्तियों
के समूह को लाभ मिलता है . उसका स्नायु-तंत्र रेग्यूलेट होता है . ॐ के घोष
में भी यही सब होता है .
धर्म मूलरूप जीवन को साफ्ट और शालीन बनाते हैं किन्तु
अतिचारी उससे अपने तरीके से उन्माद की तरफ ले जाते हैं . स्वयं को अतिबुद्धिवादी साहित्यकारों का खेमा केवल भारतीय सनातन की कमियों का हास्यास्पद या घिनौना चित्र सामने लाते हैं गोया उससे इनकी रोजी रोटी चलाती हो इनका एक भी व्यक्ति ISIS के खिलाफ कुछ नहीं बोल रहा इसका अर्थ क्या निकालूँ ...........
- शायद यह कि इनके मध्य कोई दुरभि संधि है
- अथवा ये मानसिक रूप से असंतुलित हैं .................