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शुक्रवार, जनवरी 09, 2015

वेदों की वैज्ञानिकता और दादा परसाई

 11दिसम्बर,1983' पूछो परसाई सेस्तम्भ में  भिलाई से सुरेश कुमार जैन ने परसाई जी से एक सवाल किया था कि -"वेदों की वैज्ञानिकता को आप क्या मानते हैं ? "
उत्तर कुछ ये था -  वेदों की वैज्ञानिकता से आपका क्या अर्थक्या यह अर्थ है कि वेदों में आधुनिक विज्ञान हैकुछ पुरातनवादी यह दावा करते हैं कि आज जो वैज्ञानिक खोजें हुई हैंवे सब वेदों में हैं। यह मूर्खता हैअंधविश्वास है।अगर यह बात सही होती तो ये भारतीय वैज्ञानिकों को पहले ही बता देते कि अमुक वेद की ऋचाओं में अणु विस्फोट से ऊर्जा उत्पन्न करने का सूत्र दिया है। हम क्यों हाथ जोड़ते पश्विम के देशों के।
वेद हैं और वेदांग हैं फिर उपवेद हैंभाष्य हैं। इनकी रचना एक साथ नहीं हुई। सबसे प्राचीन ऋग्वेद हैं। उस समय आर्य केवल शिकार पर निर्भर नहीं रहे थे । वे खेती करने लगे थे।उनकी छोटी-छोटी बस्तियां बस गयीं थीं ।वे प्रकृति के हर तत्व और क्रिया को चामत्कारिक मानते थे और प्रकृति से संघर्ष भी चला था। जो पत्थर की रगड़ से आग पैदा करते थे,वे कितना विज्ञान जानते थे उससे बहुत अधिक विज्ञान तो सिंधु घाटी के पास था ।
वेदों की रचना हजार सालों में हुई होगी । फिर उपवेद की रचना हुई ।विज्ञानगणित,ज्योतिषचिकित्सा शास्त्र आदि की जानकारी वेदों और उपवेदों में है ।
      यह सही है कि ज्यामिति(ज्यामेट्री ) और गणित के कुछ सिद्धांत भारत में सबसे पहले खोजे गए।शून्य,दशमलव दुनिया को भारत ने ही दिए ।आयुर्वेद एक पूर्ण चिकित्सा शास्त्र है । चरक ने औषधि और सुश्रुत ने शल्य क्रिया पर श्लोक लिखे। वाग्भट्ट ने चिकित्सा शास्त्र को और आगे बढ़ाया।बाणभट्ट ने तारों,ग्रहो,उपग्रहों का अध्ययन किया। उसके शिष्यों ने इसे आगे बढ़ाया ।
यह सब चारों वेदों में है ,यह कहना गलत है । यह कहना भी गलत है कि वेदमंत्र ब्रह्मवाणी है । सारा विज्ञान वेदों में मानने वाला बड़ा सुखी मुर्ख रह सकता है । असल में उत्पादन के साधन,जीवन के रूप,समाज व्यवस्था आदि के साथ धीरे-धीरे ज्ञान और विज्ञान का विकास हुआ।
यह गर्व गलत नहीं है कि हमारे पूर्वजों ने कुछ ज्ञान दुनिया को पहली बार दिया। इस अर्थ में प्राचीन ग्रीक भी हमसे पीछे थे ।  मगर इस कारण पीछे लौटना,उस प्राचीन को स्वर्णयुग मानना, उसकी याद करके आधुनिकता को नकारना-हमारे देश और समाज के लिए घातक है । यह पुरानी रस्सी से फांसी लगाकर आत्महत्या करने की तरह है ।ज्ञान और विज्ञान की लगातार विकासशील परम्परा होती है । किसी युग में विज्ञान शिखर पर पहुंच जाए और फिर समाज उस विज्ञान से वंचित हो जाए,ऐसा नहीं होता। यह तभी होता है जब पूरी सभ्यता किसी कारण मिट जाए ।
 गणित एवं आयुर्वेद पर अपने टिप्पणी देते हुए परसाई जी ने अन्य सभी वेदों के लिए साफ तौर पर लिखा है कि - "हम प्राचीन युग को स्वर्णयुग मान कर उसके पीछे आधुनिकता को नकारें न ....  " 
          परसाई जी यहाँ सही हैं ...... खासकर बोको-हराम एवं आई एस आई एस के संदर्भ में तो एक तरफा सटीक बात कही थी उनने । किसी धर्म पंथ में समयानुसार देश काल परिस्थितियों के अनुरूप परिवर्तन स्वाभाविक हैं धर्म कानून-व्यवस्था को रेग्यूलेट नहीं करता वरन मानवता के प्रति सजगता या कहूँ कि "मानवता-सापेक्ष"  बनाने की व्यवस्था को आकार देने की कोशिश करता है । ऐसे में धर्माधारित राज्य  की परिकल्पना करना सर्वथा गलत है । इस हेतु विचारक विद्वान आध्यात्मिकता को स्वीकारते हुए प्राणियों के लिए धर्म के सिद्धान्त को सर्वोपरि मानते हैं । न कि धर्म के लिए प्राणी जुटाने पर भरोसा रखते हैं । कुल मिला कर  परसाई जी सही कह गए थे । परंतु परसाई जी के इस जवाब को केवल सनातन से जोड़कर देखना भी गलत है । उनके इस महान उत्तर को आज के संदर्भ में व्यापक रूप से देखा और समझा जाना चाहिए । पर ये नही भूलना चाहिए कि उनका मत ही अंतिम सत्य है विकी में लिखा यह आलेख या गलत है अथवा परसाई जी इस बारे में न जान पाएँ हों ................ 
शिवकर बापूजी तलपदे (1864 - 17 सितम्बर 1917) कला एवं संस्कृत के विद्वान तथा आधुनिक समय के विमान के प्रथम आविष्कर्ता थे। उनका जन्म ई. 1864 में मुंबईमहाराष्ट्र में हुआ था ।[1] वो ‘जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट, मुंबई’ से अध्ययन समाप्त कर वही शिक्षक नियुक्त हुये ।[2] उनके विद्यार्थी काल में गुरू श्री चिरंजीलाल वर्मा से वेद में वर्णित विद्याओं की जानकारी उन्हें मिली। उन्होनें स्वामी दयानन्द सरस्वती कृत ‘ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका’ एवं ‘ऋग्वेद एवं यजुर्वेद भाष्य’ ग्रंथों का अध्ययन कर प्राचीन भारतीय विमानविद्या पर कार्यकरने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होंने संस्कृत सीखकर वैदिक विमानविद्या पर अनुसंधान आरंभ किया ।[3]
शिवकर ने ई. 1882 में एक प्रयोगशाला स्थापित किया और ऋग्वेद के मंत्रों के आधार पर आधुनिक काल का पहला विमान का निर्माण किया ।[4]इसका परीक्षण ई. 1895 में मुंबई के चौपाटी समुद्र तट पर कियागया था । इस कार्यक्रम में उपस्थित प्रत्यक्षदर्शियों में सयाजीराव गायकवाड़, लालजी नारायण, महादेव गोविन्द रानाडे आदि प्रतिष्ठित सज्जन उपस्थित थे । शिवकर विमान को जनोपयोगी बनाना चाहते थे लेकिन उन्हें अंग्रेज सरकार से किसी भी प्रकार की सहायता नहीं मिली थी ।[5] शिवकर ने ई. 1916 में पं. सुब्राय शास्त्री से महर्षि भरद्वाज की यन्त्रसर्वस्व - वैमानिक प्रकरण ग्रन्थ का अध्ययन कर ‘मरुत्सखा’ विमान का निर्माण आरंभ किया । किन्तु लम्बी समय से चलरही अस्वस्थता के कारण दि. 17 सितम्बर 1917 को उनका स्वर्गवास हुआ एवं ‘मरुत्सखा’ विमान निर्माण का कार्य अधूरा रह गया ।[6] 
     मेरा मत है कि -"सभ्यता आधुनिक बदलाव  के अभाव में स्थिर जल की तरह होती है । जिसमें मलिनता का उत्पादन स्वाभाविक है ।" आप भी यही सोच सकें तो बेहतर होगा ...............................    
  


बुधवार, जनवरी 07, 2015

भारतीय-अमेरिकी के नाम पर अमेरिका में बिजनेस स्कूल


 एक शीर्ष निजी अमेरिकी विश्वविद्यालय ने अपने पहले बिजनेस स्कूल का नाम एक भारतीय अमेरिकी रियल इस्टेट कारोबारी के नाम पर रखा है। रॉकफोर्ड विश्वविद्यालय ने पुरी बिजनेस स्कूल की स्थापना का ऐलान किया है। इस स्कूल को फर्स्ट रॉकफोर्ड ग्रुप के संस्थापक और अध्यक्ष सुनील पुरी ने 50 लाख डॉलर का योगदान दिया है। पुरी ने रॉकफोर्ड विश्वविद्यालय से 1982 में अपनी पढ़ाई की थी और वर्ष 2013 में संस्थान ने उन्हें डॉक्टर ऑफ हयूमन लेटर्स की मानद उपाधि से सम्मानित किया था। इस संबंध में पुरी ने कहा यह मेरे और मेरे परिवार के लिए महत्वपूर्ण है कि पुरी बिजनेस स्कूल में छात्र, अध्यापक और समुदाय न केवल आपस में संवाद कर सकते हैं बल्कि वहां का पाठयक्रम भी इस प्रकार तैयार किया गया है कि विश्वविद्यालय आगे बढ़ने और क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की अपनी प्रतिबद्धता पूरी कर सके। उन्होंने कहा कि यहां छात्रों को नवउत्कर्ष की अपार संभावनाएं मिलेंगी। पुरी ने कहा कि उनकी सफलता में रॉकफोर्ड कॉलेज का महत्वपूर्ण योगदान रहा है और इसके एवज में वह पुरी बिजनेस स्कूल के माध्यम से संस्थान के लिए कुछ करना चाहते हैं। पिछले सप्ताह आयोजित जिस समारोह में रॉकफोर्ड विश्वविद्यालय ने पुरी बिजनेस स्कूल की स्थापना की घोषणा की उसमें सीनेटर डिक डर्बिन भी मौजूद थे। उन्होंने कहा रॉकफोर्ड विश्वविद्यालय के लिए प्रतिबद्धता की खातिर अपने मित्र सुनील पुरी को सम्मानित करते हुए तथा पुरी बिजनेस स्कूल उन्हें समर्पित करते हुए मुक्षे खुशी हो रही है। डर्बिन ने कहा वर्ष 1979 में जब पुरी रॉकफोर्ड विश्वविद्यालय आए थे तब उनके पास न तो धन था और न समुचित शिक्षा थी। लेकिन उनके पास उम्मीद और कुछ कर गुजरने का साहस था। रॉकफोर्ड विश्वविद्यालय ने उन्हें एक मौका दिया और आज उन्होंने खुद कहा कि उनकी सफलता में संस्थान के योगदान को वह भूले नहीं हैं। मीडिया को जारी एक विज्ञप्ति में बताया गया है कि नये बिजनेस स्कूल के पाठ्यक्रम में अर्थशास्त्र, बिजनेस एंड एकाउंटिंग (ईबीए) कार्यक्रम के साथ साथ संस्थान की कारोबार संबंधी गतिविधियां भी शामिल होंगी। मुंबई में जन्मे पुरी वर्ष 1979 में रॉकफोर्ड कॉलेज में पढ़ने के लिए अमेरिका चले गए थे। वहां से उन्होंने 1982 में बैचलर ऑफ साइंस इन एकाउंटिंग में स्नातक किया।

सोमवार, जनवरी 05, 2015

Ten Kings By Ashok Banker

Under the aegis of Club Literati and Arera Club  ‘Author Speaks’ session was organized in association with Amaryllis, an imprint of Manjul Publishing House. India’s epic storyteller Ashok Banker talked about his latest book TEN KINGS and read interesting portions from it. Ashok Banker is an internationally acclaimed bestselling author of 42 books which have sold more than 20 lakh copies in 16 languages across 58 countries.  New York Times describes his work as “being better written than many books in the genre..”. His historical mega serial ‘Chakravartin Ashok Samrat’  is being aired on Colors channel  from 5th January 2015.
TEN KINGS set in 3400 BCE, is the riveting story of a legendary battle between King Sudas and the combined invading force of ten kings from neighboring regions. The battle decided the future course of the region’s history and laid the foundation of bharatvarsha.

In this interactive session moderated by Kaneez Razavi , senior editor with Amaryllis the audience participated enthusiastically. Additional Chief Secretary Aruna Sharma was the Chief Guest on this occasion. She lauded the contribution of Banker and hoped that it will kindle interest among the youth to know more about our ancient past. Waseem Akhtar, Secretary of Arera Club, Vikas Rakheja,MD Manjul Publishing House and a large number of club members were present on this occasion. The program was compeered by Madiha Khan. Seema Raizada, Founder President of Club Literati proposed a vote of thanks.

मंगलवार, दिसंबर 30, 2014

परसाई जी बनाम आमिर खान और फुरसतिया वर्सेज़ मिसफिट

                    पी के ने तीन सौ  करोड़ से ज़्यादा रकम भीतर कर ली हंगामा तब मचा कि आमिर भाई एक तरफा बात करती है इस फिलम के भीतर ...... आमिर बाबू बोले भाई अपुन तो आर्टिस्ट है जे बात आप निर्माता निर्देशक से कहियों  !
           कोई कुछ भी कहे   एक बात तो स्वीकारनी  होगी कि इंसानी आस्थाओं के खिलाफ लोगबाग सदियों से आधी रोटी में दाल लेकर उचकते नज़र आते हैं ... हमाए बाबा परसाई जी कम न थे गणेशोत्सव हो या अन्य कोई उत्सव हिन्दू धर्म के खिलाफ वो लिखना न चूकते ऐसा जबलपुर वालों का मत रहा  है । परंतु परसाई जी कट्टर भगत लोग इस बात को अस्वीकारते हैं  सारे  भगत मानतें हैं कि - "परसाई जी सभी धर्मों की कट्टरताओं के खिलाफ थे । "
            तो भगत  भाई लोग  ये  बताओ कि - किसी भी प्रकार का धार्मिक  विद्वेष के लिए  ऐसे विषय औवेसी ब्रांड वक्तव्य अथवा किसी भड़काऊ विषय को सामने  लाना ज़रूरी है क्या ?
       "नहीं न................ तो समझ लो लोग निब्बू वाले प्रकाश में ( लाइम  लाइट में ) बने रहने अथवा नोट कमाने के लिए अथवा टी आर पी के चक्कर में ऐसा काम करने से चूकते नहीं ।
अब अपने अनूप जी को ही लीजिये वे पुलिया प्रकरणों प्रकाशनोपरांत  इन दिनों परसाई जी की उक्तियों की सीरीज़  फेसबुक पर सांट रहे  हैं उनकी मित्र मंडली में हम ही एक नालायक निकले जिसने ऐन उनकी फेसबुक वाल पे अंगुली कर दी .......... अब जुकर भाई ये फाइसेलिटी प्रोवायाडे हैं तो हम फायदा उठा लिए ।  
       परसाई ने केवल हिन्दुओं को निशाना बनाया था अनूप शुक्ल जी कोई और की नज़ीरें है क्या आपके पास ?
वैसे वे #रजनीश के खिलाफ एक प्रायोजित मुहिम के सूत्रधार थे ऐसा हमने सुना है ।
         भाई साहब को हमारा सवाल गलत अवश्य लगा पर चोखा सवाल है मित्रो दोषारोपण कर हम किस किस को और क्यों आहत करना चाहते हैं ? रही परसाई जी की बात तो जान लीजिये कि बावजूद उनसे गटागट की गोलियां खाने के हम उनके हर मुद्दे को हूबहू स्वीकार लें  तो यह भी एक  तरह की सांप्रदायिकता होगी ।  मुझे परसाई जी पसंद हैं पर उनका हर अक्षर स्वीकार लूँ मुझे स्वीकारी नहीं है ।
            परसाई ने  इस तरह की बात कह दी पता नहीं क्यों  धर्मों को दोष  दिया परसाई ने शायद उनने  धार्मिक पुस्तकों को पढ़ने के बाद एक भी अच्छी बात परसाई को न मिली उन में तो मुझे उनकी शैली में  ही कहना पड़ रहा है कि - परसाई भगत ने उनको गलत चश्मा पकड़ा दिया होगा ।
          कोई बात नहीं ..... होता रहता है बड़े बड़े शहरो में ऐसी छोटी छोटी बात होती ही हैं । हिन्दुत्व क्रिश्चियनिटी इस्लाम सबकी अच्छी एवं मानवता पोषक बातों को हाइलाइट कीजिए अनूप शुक्ल जी सहित उन सभी से मेरा निवेदन है जो  कि सनातन की ज़्यादा भद्द पीटने आमादा हैं कि भाई धर्म के नाम पर किसी को प्रोवोग न किया जावे .... दु:खी तो कतई न करें वरना इसके दुष्परिणाम ही सामने आएंगे ।
                   समय सदभाव को गति देने का है न कि फिजूल में मुद्दे उछालने का ।  आजकल  अधिकतर लेखक / फ़िल्मकार / सोशल-साइट वीर, ब्लागर, नेता धर्मगुरू  बिक जाने योग्य यानि सेलेबल मुद्दे उछलते है ।  मुद्दे उछालते हैं ।  
                    पी के फिल्म पी के की खिलाफत न होती अगर फिल्मकार समझदारी से मुद्दा उठाते , आप आज नहीं कल स्वीकारेंगे कि पी के एकतरफा फिल्म है ।     
मुद्दे पर आता हूँ मैंने फुरसतिया जी की वाल पर लिखा -
परसाई ने केवल हिन्दुओं को निशाना बनाया था अनूप शुक्ल जी कोई और की नज़ीरें है क्या आपके पास ?
वैसे वे #रजनीश के खिलाफ एक प्रायोजित मुहिम के सूत्रधार थे ऐसा हमने सुना है ।
          ये लिखने की वजह थी किसी  धर्म पर निशाना लगाने से क्या हो सकता है .... और देखना यह भी था कि वास्तव में केवल एक  समूह विशेष के बारे में लिखने वाले कितने साहसी हैं .......... मित्रो आगे के कुछ संवाद से आप समझ ही  जाएंगे


अनूप शुक्ल आप तो बचपन से परसाई जी से मिलते रहे हो। इत्ता ही जानते हो परसाई जी को। अफ़सोस हुआ आपकी टिप्पणी से। पढ़ो उनका लिखा हुआ।
  Mukul जी पढ़ा है पढ़ूँगा भी ...... उनके हाथ से गटागट की गोलियां भी खाईं हैं । मैं खुले तौर पर इस बात को सामने लाना चाहता हूँ कि परसाई कालीन परिस्थियों पर भी विमर्श हो ।
 Mukul आप अफसोस ज़ाहिर न करें मैं वो पहला व्यक्ति हूँ जिसने परसाई जी के भोला राम के जीव को पढ़कर संकल्प लिया था कि अफसर बना तो किसी भी मातहत को इस तरह दु:खी न होने दूंगा । ऐसा किया भी .... 1991 में मुझे अवसर मिला भी । इसका ये अर्थ नहीं कि " मैं टार्च बेचने वाले को स्वीकार लूँ "
अनूप शुक्ल परसाईजी ने हर धर्म की कट्टरता के खिलाफ लिखा है। लेकिन पिटे अपने धर्म के कट्टरपंथियों से हैं। अफ़सोस इसलिए कि आपने लिखा क़ि उन्होंने सिर्फ हिंदुओं को निशाना बनाया है । परसाई जी से परिचित व्यक्ति से यह तो अपेक्षा रखी जा सकती है कि वह उनके बारे में इतनी तो समझ रखे ।

 Mukul वही तो पूछ रहा हूँ कि परसाई जी ने अन्य के बारे जो लिखा उसे आप आज पोस्ट कर पाएंगे ............ मैं उन नज़ीरों को सामने लाने की बात ही तो कर रहा हूँ ......... जीनामे यूनाने अन्य सभी कुरीतियों को उजागर किया है अनूप शुक्ल जी
Mukul मैंने आपको अपनी राय नहीं दी वरन एक सवाल पूछा हा... ? चिन्ह के पहले ये ही लिखा है न .................. " परसाई ने केवल हिन्दुओं को निशाना बनाया था अनूप शुक्ल जी कोई और की नज़ीरें है क्या आपके पास ?
वैसे वे #रजनीश के खिलाफ एक प्रायोजित मुहिम के सूत्रधार थे ऐसा हमने सुना है । "
                  इसके बाद फुरसतिया जी ने कुछ भी नहीं कहा ......................   
आमिर भी मौन हैं ....................... सेंसर बोर्ड तो पहले ही नेत्र विकार से ग्रस्त है ......... कुल मिला के सबकी दुकान अपने अपने तरीके से चलती है चलती रहेगी ।

रविवार, दिसंबर 28, 2014

जो कभी भी न मिला, न मैं उसको जानता- वो भी पत्थर आया लेके जाने उसको क्या गिला है.


आप बोलोगें मुकुल जी, आपका तो जलजला है by girishbillore

फ़न उठा कर मुझको ही डसने चला है,
सपोला वो ही मेरी, आस्तीनों में पला है.!
वक़्त मिलता तो समझते आपसे तहज़ीब हम -
हरेक पल में व्यस्तता है तनावों का सिलसिला है.
जो कभी भी न मिला, न मैं उसको जानता-
वो भी पत्थर आया लेके जाने उसको क्या गिला है.
जीभ देखो इतनी लम्बी, कतरनी सी खचाखच्च -
आप अपनी सोचिये, बयानों में क्या रखा है .?
ये अभी तो ”मुकुल” ही है- पूरा खिलने दीजिये-
आप बोलोगें "मुकुल जी, आपका तो जलजला है..!!" 

सोमवार, दिसंबर 22, 2014

हरदे वाला बाबूलाल

हरदे* वाला बाबूलाल 
एक टांग पर खड़ा 
एक हाथ उंचा आकाश को निहारता 
अक्सर देखा जाता था 
घंटाघर में 
जोर जोर से कुछ बोलता था 
जाने क्या कौन जाने 
काला  कम्बल 
कब सोता था उसे ओढ़कर 
कौन जाने ?
किसानों की छकड़ी से 
बाबूलाल को तकते बच्चे 
पूछते - "यो काई बोलच दाजी "
.... कुण जाणा  कई बोले है ....
पोरया, अ वो धसाढ़नई 
मुड़ो  भित्तर कर .......
बच्चे छिप जाते गाड़ी के भीतर 
हरदे वाला बाबूलाल 
एक टांग पर खड़ा 
एक हाथ उंचा आकाश को निहारता 
लोग कहते थे 
गरिया रहा है 
अंग्रेजों को.…………………। 
मेरे  घर के ऐन 
सामने वाला बूढ़ा भी  है 
रोज़िन्ना ......................
लोगों को गरियाता है मातृ-भगनी अलंकरण करता 
 पर वो बाबूलाल नहीं है हरदे वाला   


यह कविता श्रीमती जी से आज सुबह हुई चर्चा पर आधारित है   
*हरदे= हरदा   

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